||#पितृदोष|| ज्योतिष में जन्मकुंडली के लग्न, दूसरे, पाचवे, छठे, आठवे, नवे और बारहवे और बाधक भाव से मुख्यत रूप से पितृदोष का विचार किया जाता है।यहाँ बध्यक् भाव का मतलब चर लग्न में ग्यारहवाँ भाव, स्थिर लग्न में नवा भाव और द्विस्वभाव लगण में सातवाँ भाव होता है।ग्रहो में सूर्य, चंद्रमा, गुरु, शनि, राहु और केतु से मुख्यरूप से पितृदोष का विचार किया जाता है।इसी तरह राशियों में मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन राशियों या नवांशो से पितृदोष का विचार किया जाता है।जन्मकुंडली के ऊपर लिखे भाव और राशियों में सूर्यादि ग्रहो का आपस में किसी भी तरह से सम्बन्ध पाप ग्रहो या बाधक भाव से हो तो पित्तदोष होता है।यदि ये भाव ग्रह, भावेश कमजोर हो, ग्रह अस्त हो तो गंभीर पितृदोष होता है।जबकि इनके मजबूत होने पर पितृदोष कमजोर हो जाता है।यह पितृ योग विषम राशियों 1, 3, 5, 7, 9, 11में हो तो पितृदोष कारक पितर पुरुष होता है अगर वह सम राशियों में हो 2, 4, 6, 8, 10 में हो तो पितर स्त्री होती है।पितर दोष कारक पितर कौन है, इसके बारे में संकेत इस तरह से मिलता है।सूर्य के होने पर पिता आदि, चंद्रमा के होने पर माता, दादी, मंगल के होने पर भाई, बृहस्पति के होने पर गुरु, ब्राहम्ण, दादा, कोई पूर्वज, बुध के होने पर मित्र या बहन, शुक्र के होने पर पत्नी या कोई अन्य स्त्री, शनि के होने पर चाचा, ताऊ से सम्बंधित पितर होते है।सूर्य,चंद्र, मंगल,गुरु बुध, शुक्र इनमे से कोई ग्रह शनि राहु इन दोनों के एक साथ युति प्रभाव में आ जाता है तो सम्बंधित कारक से सम्बन्धी का दोष होता गई।यदि लग्नेश और त्रिकोणेश बली हो शुभ भाव में हो तो पितृदोष का प्रभाव जातक पर नही पड़ता।इसके आलावा 2 या 3 ग्रह उच्च होकर शुभ भावेश होकऱ शुभ भाव में बली हो तो पितृदोष होने पर पितृदोष का प्रभाव कम हो जाता है।पितृदोष होने पर जन्मकुंडली में ज्यादा से ज्यादा शुभ योग बनने पर पितृदोष का प्रभाव नही होता है।यदि पितृदोष निवारण के योग कुंडली में न हो और पितृदोष बन रहा है तब पितृदोष शांति पितृयज्ञ कराकर, अमावस्या तिथि पर पितरो के लिए गंगा के तट पर गंगा स्नान कर तर्पण करके करनी चाहिए, गायत्री मन्त्र जप, ब्राह्मणों की सेवा करने, गाय की सेवा करने से पितृदोष के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
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