मानसिक रोग और ज्योतिष
जन्मकुंडली में शरीर के सभी अंगों का विचार तथा उनमें होने वाले रोग या विकारों का विचार कुण्डली के भिन्न-भिन्न भावों से किया जाता है। रोग तथा शरीर के अंगों के लिये लग्न कुण्डली में मस्तिष्क का विचार प्रथम स्थान से, बुद्धि का विचार पंचम भाव से तथा मनःस्थिति का विचार चन्द्रमा से किया जाता है। इस के अतिरिक्त शनि, बुध, शुक्र तथा सूर्य का मानसिक स्थिति को सामान्य बनाये रखने में विशेष योगदान है।
शरीर क्रिया विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में मस्तिष्क एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। यह शरीर का केन्द्रीय कार्यालय है, यहीं से सभी संदेश व आदेश प्रसारित होकर शरीर में बडे़ से लेकर सूक्षमातिसूक्ष्म अंगों तक को भेज जाते हैं।
मानव मस्तिष्क को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है एक वह जिसमें बुद्धि कार्य करती है, सोचने-विचारने, तर्क विश्लेषण और निर्णय करने की क्षमता इसी में है, इसी को अवचेतन मस्तिष्क कहते हैं। ज्योतिष मतानुसार इसका कारक ग्रह सूर्य है। विचारशील (अवचेतन) मस्तिष्क रात्री में सो जाता है, विश्राम ले लेता है, अथवा कभी-कभी नशा या बेहोशी की दवा लेने से मूर्छाग्रस्त हो जाता है। अवचेतन मस्तिष्क के इसी भाग के विकारग्रस्त होने से जातक मूर्ख, मंदबुद्धि और अनपढ़ अविकसित मस्तिष्क वाला व्यक्ति या तो सुख के साधन कमा नहीं पाता, और यदी कमाता भी है तो उसका समुचित उपयोग करके सुखी नहीं रह पाता। सभी वसतुयें उसके लिये जाल-जंजाल बन जाती हैं। एेसे जातक मंदबुद्धि तो कहलाते हैं, परंतु इनमें शरीर के लिये भूख, मल-त्याग, श्वास-प्रश्वास, रक्तसंचार, तथा पलकों का झपकना आदि क्रियायें सामान्य ढंग से होती हैं। मस्तिष्क की इस विकृति का शरीर के सामान्य क्रम संचालन पर बहुत ही कम असर पड़ता है।
मस्तिष्क का दूसरा भाग वह है, जिसमें आदतें संग्रहित रहति हैं, और शरीर के क्रियाकलापों का निर्देश निर्धारण किया जाता है। हमारी नाड़ियों में रक्त बहता है, ह्रदय धड़कता है, फेफड़े श्वास-प्रश्वास क्रिया में संलग्न रहते हैं, मांसपेशीयां सिकुड़ती-फैलती हैं, पलकें झपकती-खुलती हैं, सोने-जागने का खाने-पीने और मल त्याग का क्रम स्वयं संचालित होता है। पर यह सब अनायास ही नहीं होता, इसके पीछे सक्रिय (चेतन) मस्तिष्क की शक्ति कार्य करती है, इसे ही हम “मन” कहते हैं।
ज्योतिष मतानुसार इस मन का कारक ग्रह चंद्रमा है। उपरोक्त सभी शक्तियां मस्तिष्क (मन) के इसी भाग से मिलती हैं, उन्माद, आवेश आदि विकारों से ग्रसित भी यही होता है, डाक्टर इसी को निद्रित करके आप्रेशन करते हैं। किसी अंग विशेष में सुन्न करने की सूई लगाकर भी मस्तिष्क तक सूचना पहुँचाने वाले ज्ञानतन्तुओं को संज्ञाशून्य कर देते हैं, फलस्वरूप पीड़ा का अनुभव नहीं होता, और आप्रेशन कर लिया जाता है। पागलखानों में इसी चेतन मस्तिष्क का ही ईलाज होता है। अवचेतन की तो एक छोटी सी परत ही मानसिक अस्पतालों की पकड़ मे आई है, वे इसे प्रभावित करने में भी थोड़ा-बहुत सफल हुये हैं, किन्तु इसका अधिकांश भाग अभी भी डाक्टरों की समझ से परे है।
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