*संतान हीनता दोष *
*संतान की सम्बंध में स्त्री पुरुष दोनों की कुंडली देखनी जरूरी होती है । उसमें भी बीज -- क्षेत्र का विचार भी जरूरी होता है ।*
*बीज --- क्षेत्र*
*पुरुष की कुंडली मे दुर्बल बीज की वजह से जीव धारण करने की क्षमता नही होती है ।।*
*पुरुष की कुंडली मे सूर्य + शुक्र + गुरु के अंश को + करके वो राशि अंश कला जो आये व उसे बिंदु कहते है और इसे ही बीज कहते है ।।*
*बीज विषम राशि मे व विषम नवमांश में होगा तो , शुभ ग्रह युक्त ओर दृष्ट हो तो बीज बलवान है ऐसा समजे ।।*
*जन्म कुंडली मे बीज विषम व नवमांश में सम ओर अगर उलट सुलट होने से बीज मध्यम बलवान समजे ।। संतति देर से होती है और कम होती है ।।सम राशि ,सम नवमांश में बीज अत्यंत दुर्बल होता है ।।*
*स्त्री --- क्षेत्र*
*मंगल का अमल रक्त के गुणधर्म पर ( nature of blood ) है ।।*
*चंद्र ये स्त्री में गर्भधारण शक्ति पर अमल है ।।गुरु ये संतति कारक है ।।*
*स्त्री की कुंडली मे मंगल + चंद्र + गुरु का राशि अंश कला की + करके , जो बिंदु आता है उसे क्षेत्र बोलते है ।।*
*क्षेत्र बिंदु सम राशि मे व नवमांश में सम राशि मे हो तो गर्भधारण शक्ति उत्तम होती है ।।*
*जन्मकुंडली में सम राशि व नवमांश में विषम राशि मे ओर अगर उलट सुलट हो तो बांझपन होता है ।।दोनों ही विषम होतो पूर्ण बांझपन होता है ।।*
*ये क्षेत्र बिंदु भी शुभग्रह युक्त अगर दृष्ट होना चाहिये ।।*
*पापग्रह , मंगल , शनि , राहु , मांदी , अगर नपुंसक ग्रह ये बिंदु के पास नही होना चाहिये ओर उनकी दृस्टि भी नही होनी चहिये ।।*
*बीज -- क्षेत्र क्रूर राशि मे नही होना चाहिये ।।*
*वंध्या राशि मे अगर वो मित्र हो तो भी नही होना चाहिये ।।*
*राहु केतु का सम्बंध 10 अंश तक नही होना चाहिये ।।*
*पुरुष का बीज दुर्बल हो और स्त्री का क्षेत्र बलवान हो तो संतति देर से होती है,मेडिकल उपाय करके होती है ।।पुरुष में बीज उत्पादक शक्ति आ सकती है वो सूर्य के ऊपर अवलंबन है ।।*
*बीज -- क्षेत्र बिंदु को सप्तवर्ग बल में पाप राशि ज्यादा मिलता है तो प्रसवफल निष्पति नही ऐसा समझे ।।*
*दोष के योग*
*1-लग्नेश , सप्तमेश व गुरु दुर्बल परिस्थिति में होता संतति का अभाव दिखता है।*
*2-पंचम भाव मे पापग्रह की राशी व पंचम पर पंचम के अलावा दूसरे पापग्रह की दृष्टि हो तो संतति अभाव । पापग्रह बहुतेक संतति नांश करते है ।।स्त्री कुंडली मे प्रसूति में त्रास दिखता है ।।*
*2 या 3 पापग्रह पंचम में या दृष्टि हो तो पुरूष व स्त्री को बांझपन देता है ।।दुर्बल पंचम में पापग्रह संतति नाश करता है ।।इधर दुर्बल शनि गर्भपात करता है व बलवान शनि कन्या संतति देता है ।।*
*3-पंचम में पापग्रह पाप मध्य में होतो संतति का अभाव ।।*
*4-पंचम से 5 - 6 - 12 स्थान में पापग्रह हो तो संतति दोष होता है व बच्चे हो गये तो वो अल्प आयु होते है ।।*
*5-पंचम में मंगल संतति नाश करता है लेकिन यही मंगल गुरु शुक्र से दृष्ट होतो पहले गर्भ को धोका होता है बाद कि गर्भ में भर भरात होती है ।।*
*6-स्त्री कुंडली मे मंगल 5th , 7th व 11th में शनि से दृष्ट होतो गर्भपात व मृत जन्म बच्चे होते है ।। पंचम में कन्या का मंगल ज्यादा स्त्री संतति दिखता है ।।*
*7-लग्न , चंद्र से पंचम में नीच सूर्य , गुरु , मंगल , अगर शत्रु राशि मे , अस्तंगत स्थिति में होने से बच्चों का जन्म होके वो मृत होते है ।।*
*8- पंचम में राहु व पंचमेश बलहीन , अशुभ स्थान में ओर पंचमेश मंगल राहु के साथ व पंचम भाव मंगल राहु के मध्य में होतो संतति नाश , चंद्र राहु युति पंचम में हो तो यहीं फल मिलता है ।।*
*9- गुरु लग्नेश , सप्तमेश ,पंचमेश , व बलहीन हो तो ये योग होता है ।। गुरु पाप मध्य व दुर्बल , शुभ दृष्टि रहित हो तो यही योग होता है ।।*
*10- पंचम में व सप्तम में पापग्रह ओर अष्टम में मंगल जातक का स्त्री के गर्भपात होता है , जितने पापग्रह ये भाव मे उसके गर्भपात दिखता है ।।*
*11-पंचमेश दुर्बल अगर अस्तंगत, शत्रु गृही 6 , 8 ,12 के स्वामी युक्त होतो ये योग होता है ।।*
*12- पंचमस्थ केतु उच्च अगर नीच तो दोष दिखता है ।।*
*13- सूर्य , शनि अष्टम में व ये दोनों में से एक स्वग्रही हो तो वो जातक की स्त्री बांझ होती है ।।स्त्री कुंडली मे चंद्र , बुध , अष्टम में बलहीन हो तो बाँझपना कुछ प्रमाण में दिखता है ।।*
*14- स्त्री कुंडली मे गुरु , शुक्र , अष्टम में मृत अपत्य व मंगल अष्टम में होतो गर्भपात होता है ।।*
*बलवान अष्टमेश 8th में मासिकपाली बराबर नही होती है व उसकी वजह से गर्भधारण में प्रॉब्लम होता है ।।*
*संतान की सम्बंध में स्त्री पुरुष दोनों की कुंडली देखनी जरूरी होती है । उसमें भी बीज -- क्षेत्र का विचार भी जरूरी होता है ।*
*बीज --- क्षेत्र*
*पुरुष की कुंडली मे दुर्बल बीज की वजह से जीव धारण करने की क्षमता नही होती है ।।*
*पुरुष की कुंडली मे सूर्य + शुक्र + गुरु के अंश को + करके वो राशि अंश कला जो आये व उसे बिंदु कहते है और इसे ही बीज कहते है ।।*
*बीज विषम राशि मे व विषम नवमांश में होगा तो , शुभ ग्रह युक्त ओर दृष्ट हो तो बीज बलवान है ऐसा समजे ।।*
*जन्म कुंडली मे बीज विषम व नवमांश में सम ओर अगर उलट सुलट होने से बीज मध्यम बलवान समजे ।। संतति देर से होती है और कम होती है ।।सम राशि ,सम नवमांश में बीज अत्यंत दुर्बल होता है ।।*
*स्त्री --- क्षेत्र*
*मंगल का अमल रक्त के गुणधर्म पर ( nature of blood ) है ।।*
*चंद्र ये स्त्री में गर्भधारण शक्ति पर अमल है ।।गुरु ये संतति कारक है ।।*
*स्त्री की कुंडली मे मंगल + चंद्र + गुरु का राशि अंश कला की + करके , जो बिंदु आता है उसे क्षेत्र बोलते है ।।*
*क्षेत्र बिंदु सम राशि मे व नवमांश में सम राशि मे हो तो गर्भधारण शक्ति उत्तम होती है ।।*
*जन्मकुंडली में सम राशि व नवमांश में विषम राशि मे ओर अगर उलट सुलट हो तो बांझपन होता है ।।दोनों ही विषम होतो पूर्ण बांझपन होता है ।।*
*ये क्षेत्र बिंदु भी शुभग्रह युक्त अगर दृष्ट होना चाहिये ।।*
*पापग्रह , मंगल , शनि , राहु , मांदी , अगर नपुंसक ग्रह ये बिंदु के पास नही होना चाहिये ओर उनकी दृस्टि भी नही होनी चहिये ।।*
*बीज -- क्षेत्र क्रूर राशि मे नही होना चाहिये ।।*
*वंध्या राशि मे अगर वो मित्र हो तो भी नही होना चाहिये ।।*
*राहु केतु का सम्बंध 10 अंश तक नही होना चाहिये ।।*
*पुरुष का बीज दुर्बल हो और स्त्री का क्षेत्र बलवान हो तो संतति देर से होती है,मेडिकल उपाय करके होती है ।।पुरुष में बीज उत्पादक शक्ति आ सकती है वो सूर्य के ऊपर अवलंबन है ।।*
*बीज -- क्षेत्र बिंदु को सप्तवर्ग बल में पाप राशि ज्यादा मिलता है तो प्रसवफल निष्पति नही ऐसा समझे ।।*
*दोष के योग*
*1-लग्नेश , सप्तमेश व गुरु दुर्बल परिस्थिति में होता संतति का अभाव दिखता है।*
*2-पंचम भाव मे पापग्रह की राशी व पंचम पर पंचम के अलावा दूसरे पापग्रह की दृष्टि हो तो संतति अभाव । पापग्रह बहुतेक संतति नांश करते है ।।स्त्री कुंडली मे प्रसूति में त्रास दिखता है ।।*
*2 या 3 पापग्रह पंचम में या दृष्टि हो तो पुरूष व स्त्री को बांझपन देता है ।।दुर्बल पंचम में पापग्रह संतति नाश करता है ।।इधर दुर्बल शनि गर्भपात करता है व बलवान शनि कन्या संतति देता है ।।*
*3-पंचम में पापग्रह पाप मध्य में होतो संतति का अभाव ।।*
*4-पंचम से 5 - 6 - 12 स्थान में पापग्रह हो तो संतति दोष होता है व बच्चे हो गये तो वो अल्प आयु होते है ।।*
*5-पंचम में मंगल संतति नाश करता है लेकिन यही मंगल गुरु शुक्र से दृष्ट होतो पहले गर्भ को धोका होता है बाद कि गर्भ में भर भरात होती है ।।*
*6-स्त्री कुंडली मे मंगल 5th , 7th व 11th में शनि से दृष्ट होतो गर्भपात व मृत जन्म बच्चे होते है ।। पंचम में कन्या का मंगल ज्यादा स्त्री संतति दिखता है ।।*
*7-लग्न , चंद्र से पंचम में नीच सूर्य , गुरु , मंगल , अगर शत्रु राशि मे , अस्तंगत स्थिति में होने से बच्चों का जन्म होके वो मृत होते है ।।*
*8- पंचम में राहु व पंचमेश बलहीन , अशुभ स्थान में ओर पंचमेश मंगल राहु के साथ व पंचम भाव मंगल राहु के मध्य में होतो संतति नाश , चंद्र राहु युति पंचम में हो तो यहीं फल मिलता है ।।*
*9- गुरु लग्नेश , सप्तमेश ,पंचमेश , व बलहीन हो तो ये योग होता है ।। गुरु पाप मध्य व दुर्बल , शुभ दृष्टि रहित हो तो यही योग होता है ।।*
*10- पंचम में व सप्तम में पापग्रह ओर अष्टम में मंगल जातक का स्त्री के गर्भपात होता है , जितने पापग्रह ये भाव मे उसके गर्भपात दिखता है ।।*
*11-पंचमेश दुर्बल अगर अस्तंगत, शत्रु गृही 6 , 8 ,12 के स्वामी युक्त होतो ये योग होता है ।।*
*12- पंचमस्थ केतु उच्च अगर नीच तो दोष दिखता है ।।*
*13- सूर्य , शनि अष्टम में व ये दोनों में से एक स्वग्रही हो तो वो जातक की स्त्री बांझ होती है ।।स्त्री कुंडली मे चंद्र , बुध , अष्टम में बलहीन हो तो बाँझपना कुछ प्रमाण में दिखता है ।।*
*14- स्त्री कुंडली मे गुरु , शुक्र , अष्टम में मृत अपत्य व मंगल अष्टम में होतो गर्भपात होता है ।।*
*बलवान अष्टमेश 8th में मासिकपाली बराबर नही होती है व उसकी वजह से गर्भधारण में प्रॉब्लम होता है ।।*
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