||*अपने भाव से 12वे भाव में बेठा ग्रह*|| जिस ग्रह की राशि कुंडली के जिस भाव में पड़ती है वही ग्रह उस भाव का स्वामी होता है।सूर्य चंद्र इनकी एक ही राशि होती है इस कारण यह एक ही भाव के स्वामी होते है।मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि यह दो-दो राशियों के स्वामी होते इस कारण कुंडली में भी यह दो-दोभावो के स्वामी बनते है।राहु केतु किसी राशि के स्वामी नही होते इस कारण यह इसी भाव के स्वामी नही होते है।जब कोई भी ग्रह अपने भाव से 12वे भाव में बेठ जाता है तब वह ग्रह अपने उस भाव के फल में कमी करता है क्योंकि कालपुरुष की कुंडली में 12वां भाव हानि, किसी भी तरह के फल में कमी करता, दुर्भाग्य आदि अशुभ फल का होता है।इसी कारण जो ग्रह अपने भाव से 12वे भाव में चला जाता है तब अपने उस भाव के फल में निश्चित ही कमी, नुकशान या अशुभ फल करेगा जिस भाव का वह स्वामी है जैसे 9वां भाव भाग्य का होता है यदि 9वे भाव का स्वामी नवे भाव से 12वे भाव में हो मतलब जन्मलग्न से 8वे भाव में हो तो भाग्य को कमजोर करेगा, भाग्योदय में संघर्ष रहेगा, भाग्य का सहयोग कम रहेगा क्योंकि एक तो भाग्येश अपने भाव से 12वे भाव में है और जन्म लग्न से भी 8वें भाव में आ गया 8वां और 12वां दोनों ही भाव अशुभ फल देने वाले होते है इस कारण लग्न और अपने भाव दोनों से ही नवमेश अशुभ भाव में बेठा है जो बहुत अशुभ हो गया।जो ग्रह दो दो भावो के स्वामी होते है उनमे यदि 12वे भाव में बेथ गया है और अपने दूसरे भाव से गिनने पर और लग्न से शुभ भाव में है ग्रह शुभ और बली है तो अपने उस दूसरे भाव के फल शुभ देगा।इस तरह किसी भी भाव का स्वामी अपने भाव से 12वें भाव में बैठने पर अपने उस भाव के फल की कमी, नुकशान और अशुभ फल करता है।ऐसे ग्रह की शांति के लिए उस ग्रह का मन्त्र जप, पूजा-पाठ, ग्रह से सम्बंधित वस्तुओ का दान दान करना अशुभ फल से बचाब करता है।
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