||राजयोग के उच्चस्तरीय प्रकार|| राजयोग सफलता, सोभाग्य, समृद्धि, पद आदि जैसे शुभ फल देने वाला योग है।जब कुंडली के केंद्र त्रिकोण के स्वामी आपस में युति, दृष्टि, राशि परिवर्तन आदि तरह से सम्बन्ध बनाते है तो उसे राजयोग कहते है।केंद्र त्रिकोण के स्वामी के बीच कुछ ऐसे सम्बन्ध होते है जो दमदार और उच्च स्तरीय राजयोग बनाते है तो कुछ उससे कम, **दशमेश और नवमेश का सम्बन्ध किसी भी तरह से बनने पर सबसे उच्चस्तर शक्तिशाली राजयोग होता है। **दशमेश का दशम भाव में बैठना और नवमेश का नवम भाव में बैठना यह भी उच्च स्तरीय राजयोग है। **इसके बाद लग्नेश दशमेश और लग्नेश नवमेश का सम्बन्ध प्रबल राजयोग बनता है। **इसके बाद दशमेश पंचमेश का सम्बन्ध और नवमेश चतुर्थेश का सम्बन्ध राजयोग आता है। ** इसके बाद चतुर्थेश और पंचमेश का सम्बन्ध राजयोग आता है। **लग्नेश पंचमेश का सम्बन्ध राजयोग बनाएगा। **सप्तमेश पंचमेश और सप्तमेश नवमेश का सम्बन्ध राजयोग बनाएगा।सप्तमेश नवमेश के शुभ सम्बन्ध से शादी के बाद और पंचमेश सप्तमेश के शुभ सम्बन्ध से शादी बाद संतान हो जाने से राजयोग के ज्यादा शुभ फल मिलने लगते है। इस तरह क्रम से ऊपर लिखे राजयोग सुखदायक होतेहै।जब केन्द्रेश त्रिकोणेश का सम्बन्ध केंद्र या त्रिकोण भाव में बनता है तब ज्यादा श्रेष्ठ होता है और त्रिक भाव बनने से श्रेष्ठता में कमी आ जाती है।कुछ जातको की लग्न कुंडली में राजयोग नही होता फिर भी वह राजयोग भोगतेहै।ऐसे जातको की नवमांश कुंडली में राजयोग होता है जिस कारण उनकोराजयोग संबंधी फल मिलते है।नवमांश कुंडली में बनने वाला राजयोग पूरी तरह जब फलित होता है जब नवमांश लग्न लग्न कुंडली के लग्न से बली हो साथ ही चंद्र और चंद्र राशि का स्वामी लग्न कुंडली से ज्यादा नवमांश कुंडली में बली और शुभ हो।राजयोगकारक ग्रह यदि अशुभ प्रभाव, नीच राशि, अस्त, कमजोर हो तब इनकी शुभता ओर बल में वृद्धि के लिए उपाय करने से शुभ फल में वृद्धि की जा सकती है।
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