भाग्य को मजबूत करने के उपाय---:
बुध भाग्येश हो तो यह उपाय करे :
तांबे का कड़ा हाथ में पहने, गणेश जी की आराधना करें, गाय को हरा चारा दीजिये।
शुक्र भाग्येश हो तो स्फटिक की माला से शुक्र के मत्र का जप करें, लक्ष्मी जी की आराधना करें।
चंद्र भाग्येश हो तो यह उपाय करे चंद्र के मत्र का जप करें, चांदी के गिलास में जल पिना चाहिए, शिव जी की आराधना करें।
गुरु भाग्येश हो तो विष्णु जी की आराधना करें, गाय को रोटी खिलाएं, पीली वस्तुओं का दान करना चाहिए ।
शनि भाग्येश हो तो काले वस्त्रों ,नीले वस्त्रों को कम पहनें, पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं, शनिवार को हनुमान चालीसा या सुन्दरकांड का पाठ करना चाहिए।
मंगल भाग्येश हो तो मजदूरों को मंगलवार को मिठाई खिलाना चाहिए, लाल मसूर का दान करना चाहिए, मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ करना चाहिए।
सूर्य भाग्येश हो तो गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। सूर्य को नियमित जल देना चाहिए, सूर्य मंत्र का जप करें।
शास्त्र कहता है कि भाग्य बड़ा प्रबल है, मगर पुरुषार्थ द्वारा भाग्य को को बदला जा सकता है। यानी जरुरत है दवा और दुआ के बीच तालमेल बैठाने की। यानि सही तरह से ज्योतिष विद्या को समझने की।
अन्दर की ज्योति और बाहर की ज्योति दोनों काम करें तो बात बनती है। पुरुषार्थ छोड़ें नहीं पूर्ण पुरुषार्थी होकर कार्य में लगें और साथ में प्रभु से आशीर्वाद भी मांगें। मेहनत करें, उपाए भी करते रहें उसकी (ईश्वर) दया जरूर होगी। कई व्यक्ति सोचते हैं कि अचानक ही कोई लाटरी लग जाएगी। किन्तु ऐसा है नही, इसलिए अपने अन्दर के उस दीपक को जलाइए जिसकी रोशनी में सारा संसार देवत्व की ओर जाता दिखाई दे।
भागवत महापुराण पवित्र ग्रंथ का यह सन्देश बड़ा ही अद्भुत है इसे अपने जीवन में अपनाएं। पुरुषार्थ यानि केवल हाथ जोड़ने से ही बात नहीं बनती पुरुषार्थ भी जरूरी है। हाथ जोड़े रहें, सिर झुका रहे, लेकिन हाथ पुरुषार्थ की ओर बढते रहें। दूसरी चीज है हिम्मत, हिम्मत कभी नहीं छोड़ना, साहस बनाए रखना।
जीवन में समस्याएं तो पग-पग हैं, निराश होकर न बैठें, साहस के साथ समस्या का सामना करें। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि जीवन में जागना है, भागना नहीं।
जो व्यक्ति आलस्य में सोया पड़ा है, उसके लिए कलियुग है, जिसने अंगड़ाई लेनी शुरू की उसके लिए द्वापर युग है, जो उठकर खड़ा हो गया, उसके लिए त्रेतायुग है और जो सही चीज़ को समझकर ईश्वर को साथ मानकर कार्य में लग गया उसके लिए सत्युग शुरू हो गया और उसका भाग्य सौभाग्य में बदल जाना निश्चित है।
बुध भाग्येश हो तो यह उपाय करे :
तांबे का कड़ा हाथ में पहने, गणेश जी की आराधना करें, गाय को हरा चारा दीजिये।
शुक्र भाग्येश हो तो स्फटिक की माला से शुक्र के मत्र का जप करें, लक्ष्मी जी की आराधना करें।
चंद्र भाग्येश हो तो यह उपाय करे चंद्र के मत्र का जप करें, चांदी के गिलास में जल पिना चाहिए, शिव जी की आराधना करें।
गुरु भाग्येश हो तो विष्णु जी की आराधना करें, गाय को रोटी खिलाएं, पीली वस्तुओं का दान करना चाहिए ।
शनि भाग्येश हो तो काले वस्त्रों ,नीले वस्त्रों को कम पहनें, पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं, शनिवार को हनुमान चालीसा या सुन्दरकांड का पाठ करना चाहिए।
मंगल भाग्येश हो तो मजदूरों को मंगलवार को मिठाई खिलाना चाहिए, लाल मसूर का दान करना चाहिए, मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ करना चाहिए।
सूर्य भाग्येश हो तो गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। सूर्य को नियमित जल देना चाहिए, सूर्य मंत्र का जप करें।
शास्त्र कहता है कि भाग्य बड़ा प्रबल है, मगर पुरुषार्थ द्वारा भाग्य को को बदला जा सकता है। यानी जरुरत है दवा और दुआ के बीच तालमेल बैठाने की। यानि सही तरह से ज्योतिष विद्या को समझने की।
अन्दर की ज्योति और बाहर की ज्योति दोनों काम करें तो बात बनती है। पुरुषार्थ छोड़ें नहीं पूर्ण पुरुषार्थी होकर कार्य में लगें और साथ में प्रभु से आशीर्वाद भी मांगें। मेहनत करें, उपाए भी करते रहें उसकी (ईश्वर) दया जरूर होगी। कई व्यक्ति सोचते हैं कि अचानक ही कोई लाटरी लग जाएगी। किन्तु ऐसा है नही, इसलिए अपने अन्दर के उस दीपक को जलाइए जिसकी रोशनी में सारा संसार देवत्व की ओर जाता दिखाई दे।
भागवत महापुराण पवित्र ग्रंथ का यह सन्देश बड़ा ही अद्भुत है इसे अपने जीवन में अपनाएं। पुरुषार्थ यानि केवल हाथ जोड़ने से ही बात नहीं बनती पुरुषार्थ भी जरूरी है। हाथ जोड़े रहें, सिर झुका रहे, लेकिन हाथ पुरुषार्थ की ओर बढते रहें। दूसरी चीज है हिम्मत, हिम्मत कभी नहीं छोड़ना, साहस बनाए रखना।
जीवन में समस्याएं तो पग-पग हैं, निराश होकर न बैठें, साहस के साथ समस्या का सामना करें। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि जीवन में जागना है, भागना नहीं।
जो व्यक्ति आलस्य में सोया पड़ा है, उसके लिए कलियुग है, जिसने अंगड़ाई लेनी शुरू की उसके लिए द्वापर युग है, जो उठकर खड़ा हो गया, उसके लिए त्रेतायुग है और जो सही चीज़ को समझकर ईश्वर को साथ मानकर कार्य में लग गया उसके लिए सत्युग शुरू हो गया और उसका भाग्य सौभाग्य में बदल जाना निश्चित है।
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