Monday, September 18, 2017

त्रिषडाय भाव -३-६-११

🌘 त्रिषडाय भाव -३-६-११🌒

 🌘जन्म कुंडली का तृतीय भाव, छटा भाव तथा एकादश भाव त्रिषडाय भाव होते हैं ।
शनि जैसे पापग्रह  त्रिषडाय भाव में अच्छे माने जाते हैं।

🌘तृतीय भाव से हम छोटे भाई – बहन , शौक , संचार , लेखन कार्य , छोटी यात्रायें , पराक्रम आदि देखते हैं ।

 🌘इससे दायां कंधा, बाजु , नौकर देखे जाते हैं ।

✡️तृतीय भाव का कारक ग्रह मंगल है ।

🌘षष्टम भाव रोग ,शत्रु तथा ऋण का भाव है । इस भाव से हम कोर्ट – कचहरी , लडाई –झगडा , लोन ,हिंसा , चोर , संघर्ष, प्रतियोगिता , नौकर – चाकर , ईर्ष्या , कमर से नीचे बस्ति, मामा ,मौसी आदि देखते हैं ।

✡️षष्टम भाव के कारक ग्रह शनि और मंगल हैं ।

इसी प्रकार एकादश भाव लाभ भाव होता है । इसी भाव से जातक को प्राप्ती होती है चाहे वह लाभ की प्राप्ती हो या ज्येष्ठ भ्राता , मनोकामना पूर्ति , मान- सम्मान की प्राप्ती , बायां कंधा, बायां कान, मित्रता , अपने बच्चों के जीवन साथी , सुख – समृधि आदि इसी भाव से विचार किये जाते हैं ।

🌘एकादश भाव में स्थित सभी ग्रह जातक को लाभ देते हैं । यहां तक के इस भाव में वक्री ग्रह भी शुभ फल देते हैं ।  किंतु शुक्र को यहां शुभ नहीं माना गया ।
✡️गुरु इस भाव के लिये कारक ग्रह है ।

🌘त्रिषडाय भाव का प्रथम त्रिषडाय भाव तृतीय भाव है । यह प्रथम काम भाव भी है । काम अर्थात इच्छा पूर्ति की चेष्टा तथा इसका कारक मंगल जैसा कि बताया जा चुका है । तृतीय भाव का सम्बंध जातक में प्राप्ती की चेष्टा उत्पन्न करताहै । मंगल जातक में साहस देता है कि वह इस पथ पर आगे बढे ।

🌘शायद इसी कारण से तृतीय भाव का कारक ग्रह मंगल जैसा तीव्र तथा पापी ग्रह है तथा इसीलिय यह कहा जाता है कि तृतीय भाव में पापी ग्रह स्थित हो तो जातक में ऊर्जा और साहस का संचार करते हैं।

🌘षष्टम भाव अर्थ त्रिकोण का दूसरा त्रिकोण है । जहां प्रतिस्पर्धा भी है , लडाई –झगडा भी है, शत्रु भी है । कहने का अर्थ यह है कि षष्टम भाव तथा षष्ठेश भी धन से सम्बंध रखता है परंतु लडाई ‌झगडे से प्राप्त धन, लोन या ऋण से प्राप्त धन ।

🌘शायद इसी कारण इसके कारक ग्रह मंगल अर्थात लडाई –झगडा व शनि अर्थात कोर्ट –कचहरी है। यदि षष्टम भाव / षष्ठेश का सम्बंध दशम भाव / दशमेश से हो जाये तो जातक दूसरों के
लडाई-झगडे से फायदा उठाता है क्योकि छटा भाव दशम भाव से नवम है तथा दशम भाव छटे भाव से पंचम भाव है।

🌘इसी प्रकार यदि तृतीय भाव / भावेश का सम्बन्ध छटे भाव से हो जाता है तो जातक की ऊर्जा , हिम्मत , पराक्रम , जातक की संघर्ष शक्ति , प्रतियोगिता क्षमता से साथ जुड जाती है । तो जातक अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।
विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत से काम लेता है। उसमें लक्ष्य तक पहुंचने की लगन होती है । जिसके लिये वह सदैव प्रयासरत रहता है ।

🌘एकादश भाव काम त्रिकोण का अंतिम त्रिकोण भाव है । अत: इस भाव में इच्छायें हैं मनोकामनायें हैं। इस त्रिकोण के साथ जिस भी त्रिकोण अर्थात धर्म ,अर्थ , काम या मोक्ष का सम्बंध बनता है उससे सम्बंधित लाभ , हानि, इच्छापूर्ति होती है । इसलिये इस अंतिम काम त्रिकोण मे सभी ग्रह प्राप्ति तक पहुचाते हैं ।

🌘त्रिषडाय भावों को शुभ नहीं माना जाता इसका कारण है ! शायद इसमें दो काम त्रिकोण भाव हैं तथा एक अर्थ त्रिकोण भाव है । इन तीनों का सम्बंध जातक को लाभ प्राप्ति के लिये प्रेरित करता है ! फिर चाहे वो जैसे भी प्राप्त हो । व्यक्ति में प्रतिस्पर्धा होती है ,दूसरों को पीछे छोड कर आगे पडने की प्रवृति होती है ।

🌘उसके लिये वो नैतिक अनैतिक कैसे भी कदम उठा सकता है। उसमें ऊर्जा होती है परंतु उसमें कर्म नहीं होता । जातक को बिना मेहनत के , चोरी से , दूसरों से लडाई – झगडे से, लोन से तथा ऋण आदि से लाभ की प्राप्ति होती है ।

🌘त्रिषडाय भाव में यदि दशम भाव भी जोड दिया जाये तो यह उपचय भाव बन जाता है । दशम भाव जातक का कर्म स्थान होता है । इससे हम नौकरी / व्यवसाय, उच्च पद, अधिकार आदि देखते हैं । त्रिषडाय भाव में दशम भाव जुडने से अब यह उतना अशुभ नहीं रह जाता । इसमें जातक का पुरूषार्थ जुड गया । यदि किसी जातक की जन्म कुंड्ली में उपचय भावों अर्थात तृतीय भाव,षष्टम भाव , दशम भाव तथा एकादश भाव का सम्बंध आ जाता है तो ऐसा जातक “ फर्श से अर्श तक ” पहुंच जाता है । वह ना खुद आराम से बैठता है और ना ही किसी को बैठने देता है ।

🌘जातक जब अपने संघर्ष में , प्रतिस्पर्धा मे अपने कर्मों को साहसपूर्ण व ऊर्जापूर्ण रूप से जोडता है तो उसको श्रेष्ठ की प्राप्ति होती है ।

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