Wednesday, October 11, 2017

शुक्र मंगल शनि का आपसी सम्बन्ध


शुक्र मंगल शनि का आपसी सम्बन्ध

ज्योतिष में शुक्र मंगल का सम्बन्ध सामान्य तोर से शुभ नही माना जाता।मंगल अग्नि, क्रूरता, पराक्रम, बल, पुरुषत्व और हिंसात्मक का ग्रह है तो शुक्र प्रेम, जल, कोमल प्रवृत्ति, स्त्रितत्व का ग्रह है।जब शुक्र मंगल का आपसी युति या दृष्टि सम्बन्ध बन जाता है तब मंगल शुक्र दोनों के इन फलों में वृद्धि हो जाती है।मंगल रक्त का कारक भी है तो शुक्र पुरुष की वीर्य शक्ति का कारक है रक्त रूपी मंगल को जब शुक्र रूपी वीर्य शक्ति का साथ मिल जाता है तब जातक के अंदर कामवासना ज्यादा आ जाती है।शुक्र मंगल की युति या दृष्टि सम्बन्ध लग्न या सातवें भाव में बनती है तब लग्न पर शुक्र मंगल का प्रभाव आ जाने से जातक या जातिका का शरीर मजबूत कद काठी का होता है चहरे पर एक तरह की ऐसे जातको के चमक रहती है क्योंकि शुक्र खूबसूरती का कारक है तो मंगल खून का जब खून में शुक्र की खूबसूरती शुक्र मंगल के सम्बन्ध से मिल जाती है तब ऐसे जातको के चहरे पर चमक और एक निखार बना रहता है।शुक्र पुरुष की कुंडली में पत्नी/ प्रेमिका स्त्री का कारक होता है मंगल पुरुष शक्ति का कारक है। जिन जातको का सप्तमेश खुद शुक्र मंगल से युति किया होता है ऐसे जातको की पत्नी कुछ दबंद स्वभाव और अत्यंत साहसी होती है।मंगल शुक्र युति पर पाप ग्रहो शनि राहु केतु जैसे ग्रहो का प्रभाव जातक को व्यवचारी भी बना सकता है।पाँचवे भाव मे मंगल शुक्र सम्बन्ध अनेक प्रेम सबंध दे सकता है।पाचवे भाव के मंगल शुक्र पर शुभ ग्रह गुरु का प्रभाव प्रेम में पवित्रा और गहरे पवित्र प्रेम सम्बन्ध देता है।इसी तरह शुक्र मंगल युति पर शुभ ग्रहो पूर्ण चंद्र, शुभ बुध और गुरु का प्रभाव इस युति सम्बन्ध में शुभता देने वाला होता है तो पाप ग्रहो शनि राहु केतु जैसे ग्रहो का प्रभाव इस सम्बन्ध के अनिष्ट फल में वृद्धि करके जातक के जीवन को गलत रास्ते भी दिखाता है।

मंगल और शनी
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ज्योतिष में मंगल और शनी दोनों को क्रूर ग्रह माना गया है लेकिन इनकी क्रूरता में आधरभूत अंतर ये है की शनि क्रूर होते हुवे भी उसका अंतिम परिणाम सुखद होता है जैसे अग्नि सोने को जलाकर स्वस्छ बना देती है उसी प्रकार शनी देव जातक को दुखो की अग्नि में जलाकर लोहे को कुंदन बनाने का कार्य करते है जबकि मंगल उतेजना बढ़ाने वाला उमंग हिंशा और अंहकार से जातक को परिपूर्ण कर जातक के दुःख को बढ़ाने वाला कार्य करवाता है।
इसी प्रकार गुरु और शुक्र शुभ ग्रह माने गये है। गुरु ग्रह देवताओं के गुरु है तो शुक्र देव राक्षसो के शुक्र जातक में सांसारिक गुणों में विरधी करता है तो गुरु अध्यात्मिक गुणों में, शुक्र जातक को स्वार्थी बनाता है तो गुरु परमार्थी शुक्र भोग विलास में रूचि लगवाता है तो गुरु भक्ति में।

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