Sunday, October 1, 2017

वर्गोत्तम_ग्रह_की_उत्तोत्तर_उत्तम_अवस्था

|| #वर्गोत्तम_ग्रह_की_उत्तोत्तर_उत्तम_अवस्था ||                                     वगोत्तम ग्रह बली और शुभ प्रभाव युक्त ग्रह होता है।जब कोई ग्रह वर्गोत्तम होता है तब उसके बल और शुभता में वृद्धि हो जाती है जिस कारण वर्गोत्तम ग्रह के फल कई गुना शुभ हो जाते है।जब कोई ग्रह लग्न और नवमांश दोनों कुंडलियो एक ही राशि में होता है तब उसे वर्गोत्तम ग्रह कहते है।जैसे लग्न कुंडली में कन्या राशि में है और नवमांश कुंडली में भी कन्या राशि में होने से सूर्य वर्गोत्तम हो जायेगा।वर्गोतम स्थिति के बाद भी ग्रह की वर्गोत्तम से भी ज्यादा शुभ और मजबूत स्थिति होती है।वैदिक ज्योतिष में षोडश वर्ग कुंडलिया होती है लग्न, चतुर्थांश, सप्तमांश, नवमांश, दशमांश, द्वादशांश, त्रिशांश,  आदि। जब कोई ग्रह लग्न कुंडली नवमांश कुंडली, अन्य वर्ग कुंडलियो में एक ही राशि में हो तब यह ग्रह की बहुत ज्यादा श्रेष्ठ अवस्था हो जाती है।ऐसा ग्रह परम शुभ और बलशाली होता है।षोडश वर्ग कुंडलियो में जितनी ज्यादा वर्ग कुंडलियो में ग्रह एक ही राशि में होगा उतना ही शुभ और श्रेष्ठफल देने वाला होगा।जब कोई ग्रह लग्न कुंडली में योगकारक होकर वर्गोत्तम या उत्तोतर वर्गोत्तम स्थिति आ जाता है और लग्न कुंडली के आलावा अन्य वर्ग कुंडलियो भी योगकारक हो, केंद्र या त्रिकोण में ही हो बेहद श्रेष्ठ फल मिलते है एक तरह से ऐसा ग्रह शक्तिशाली राजयोगकारक होता है।यदि लग्न कुंडली में अकारक भाव का स्वामी होकर अकारक भावो में ही ग्रह वर्गोत्तम होता है और अन्य वर्ग कुंडलियो में वर्ग कुंडलियो के लग्न के अनुसार जैसी उसकी योगकारक, अकारक आदि होती है उन्ही वर्ग कुंडलियो के अनुसार योगकारक होने से शुभ भावो में, अकारक होने से अकारक भावो में होने से फल बहुत अच्छी तरह से पूर्ण और शुभ स्थिति में मिलता है।शुभ ग्रह शुभ और अपनी बली राशि में वर्गोत्तम होने पर आसानी से श्रेष्ठ फल देता है।जबकि क्रूर ग्रहो की राशि में वर्गोत्तम ग्रह थोड़ी मेहनत कराकर फल देता है।जो ग्रह वर्गोत्तम ग्रह के प्रभाव में होते है उन ग्रहो के बल और शुभता में वृद्धि हो जाती है यदि वह ग्रह वर्गोत्तम ग्रह का मित्र, सम ग्रह हो तब ज्यादा अच्छी शुभ रहता है।

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