Wednesday, October 11, 2017

ज्योतिष में ग्रहबल जानना

ज्योतिष में ग्रहबल जानना
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यदि अशुभ ग्रह के ऊपर शुभग्रह की दृष्टि हो तो शुभ फल देता है। जिस ग्रह पर पापग्रह अथवा शत्रुग्रह की दृष्टि हो वह निष्फल है। यदि ग्रह नीच, अस्त अथवा शत्रुक्षेत्री हो तो सम्पूर्ण फल व्यर्थ है। उच्च अथवा स्वक्षेत्री ग्रह यदि ६-८-१२ स्थानों में भी स्थित हो तब भी दुष्ट फल नहीं देते हैं, यदि उच्च अथवा स्वक्षेत्री न हो तथा पूर्वोक्त स्थानों में बैठें हों तो दोषकारी हैं। यदि बृहस्पति उच्च, स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री अथवा वर्गोत्तम नवांश का होकर ४-८-१२ स्थानों में भी हो तो शुभ है, परन्तु नीच अथवा शत्रुक्षेत्री शुभ स्थानों में भी बैठा हो तो शुभ नहीं है।

वक्री अथवा उच्च का ग्रह बड़ा बलवान होता है। यदि पापग्रह वक्री हो तो बहुत अशुभ फल देता है, शुभग्रह वक्री हो तो बहुत शुभ फल देता है। स्वक्षेत्री, उच्च, मूलत्रिकोण के ग्रह अनिष्ट फल नहीं देते हैं। जिस ग्रह पर बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि हो वह अनिष्ट फल नहीं देता है। पुरुष ग्रह पुरुष राशि में बलवान होते हैं। स्त्री ग्रह स्त्री राशि में बलवान होते हैं। जो ग्रह उच्च, मित्रक्षेत्री, स्वक्षेत्री, अपने नवांश का अथवा सौम्य ग्रह से दृष्ट हो वह ग्रह बलवान है। क्षीण चन्द्रमा, सूर्य, मङ्गल, शनि तथा इनसे युक्त बुध भी पापग्रह है। जो ग्रह उदित स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री, मित्रवर्गी अथवा मित्रदृष्ट हो वह ग्रह बलवान होता है।

जो ग्रह अपने मूलत्रिकोण, उच्च, मित्रनवांश आदि में हों, वे बलवान होते हैं। शुक्र एवं चन्द्रमा स्त्रीराशि में, शेष ग्रह पुरुष राशि में, सब ग्रह केन्द्र में, चन्द्रमा, शनि एवं मंगल रात में, बुध रात-दिन दोनों में, शेष ग्रह दिन में, पापग्रह कृष्णपक्ष में, शुभग्रह शुक्ल पक्ष में, बुध, सूर्य तथा शनि दिन के तीन भागों में, चन्द्रमा, शुक्र एवं मंगल रात्रि के तीन भागों में, बृहस्पति रात-दिन दोनों में, बुध-बृहस्पति लग्न में, शुक्र-चन्द्रमा सुखस्थान में, शनि सप्तम स्थान में, सूर्य- मंगल दशम स्थान में, वर्ष, मास, दिन तथा होरा के स्वामी, सूर्य एवं चन्द्रमा उत्तरायण में, शेष ग्रह अच्छी किरण वाले वक्री चाल से रहित, युद्ध में जय पाये हुए बलवान होते हैं। इस प्रकार नाना प्रकार के बल से युक्त ग्रह बलवान होते हैं। इससे विपरीत निर्बल होते हैं।
सूर्य, बुध तथा शुक्र प्राय: एक मास पर्यन्त एक राशि में रहते हैं। मंगल डेढ़ महीना, बृहस्पति १३ महीना, शनि ३० महीना, राहु-केतु १८ महीना, चन्द्रमा सवा दो दिन एक राशि में रहते हैं। वक्री अथवा शीघ्री होने से कभी-कभी बुध आदि ग्रहों में अन्तर पड़ जाता है। सूर्य कभी एक राशि को २९ दिन में पार कर लेता है, कभी उसे ३२ दिन भी लग जाते हैं। चन्द्रमा कभी दो दिन में एक राशि को पार कर लेता है, कभी उसे ढाई दिन भी लग जाता है। मंगल जब स्तम्भन में होता है तो इसे २००, २५० दिन तक एक राशि में लग जाते हैं। परन्तु उसके अनन्तर अतिचार होता है उसमें ३० या ३५ दिन में एक राशि का भोग कर लेता है।

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