दरिद्रता और बदहाली लाता है शनि-चंद्र से बना विष योगशनि और चंद्रमा का संयोग जातक के लिए बेहद कष्टकारी माना जाता है। शनि अपनी धीमी प्रकृति के लिए बदनाम है और चंद्रमा अपनी द्रुत गति के लिए विख्यात। किंतु शनि क्षमताशील होने की वजह अक्सर चंद्रमा को प्रताड़ित करता है। यदि चंद्र और शनि की युति कुंडली के किसी भी भाव में हो, तो ऐसे में उनकी आपस में दशा-अंतर्दशा के दौरान विकट फल मिलने की संभावना बलवती होती है।
शनि धीमी गति, लंगड़ापन, शूद्रत्व, सेवक, चाकरी, पुराने घर, खपरैल, बंधन, कारावास, आयु, जीर्ण-शीर्ण अवस्था आदि का कारक ग्रह है जबकि चंद्रमा माता, स्त्री, तरल पदार्थ, सुख, सुख के साथ, कोमलता, मोती, सम्मान, यश आदि का कारकत्व रखता है।
शनि और चंद्र की युति से विष योग नामक दुर्लभ अशुभ योग की सृष्टि होती है। ये विष योग जातक के जीवन में यथा नाम विषाक्तता घोलने में पूर्ण सक्षम है। जिस भी जातक की कुण्डली में विष योग का निर्माण होता है, उसे जीवन भर अशक्तता, मानसिक बीमारी, भ्रम, रोग, बिगड़े दाम्पत्य आदि का सामना करना पड़ता है। हां, जिस भी भाव में ऐसा विष योग निर्मित हो रहा हो, उस भाव अनुसार भी अशुभ फल की प्राप्ति होती है।
जैसे यदि किसी जातक के लग्न चक्र में शनि-चंद्र के संयोग से विष योग बन रहा हो तो ऐसा जातक शारीरिक तौर पर बेहद अक्षम महसूस करता है। उसे ताउम्र कंगाली और दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। लग्न में शनि-चंद्र के बैठ जाने से उसका प्रभाव सप्तम भाव पर बेहद नकारात्मक होता है, जिससे जातक का घरेलू दाम्पत्य जीवन बेहद बुरा बीतता है। लग्न शरीर का प्रतिनिधि है इसलिए इस पर चंद्र और शनि की युति बेहद नकारात्मक असर छोड़ती है। जातक जीवन भर रोग-व्याधि से पीड़ित रहता है।
इसी प्रकार यदि द्वितीय भाव में शनि-चंद्र का संयोग बने तो जातक जीवन भर धनाभाव से ग्रसित होता है। तृतीय भाव में यह युति जातक के पराक्रम को कम कर देती है। चतुर्थ भाव में सुख और मातृ सुख की न्यूनता तथा पंचम भाव में संतान व विवेक का नाश होता है। छठे भाव में ऐसी युति शत्रु-रोग-ऋण में बढ़ोत्तरी व सप्तम भाव में शनि-चंद्र का संयोग पति-पत्नी के बीच सामंजस्य को खत्म करता है। अष्टम भाव में आयु नाश व नवम भाव में भाग्य हीन बनाता है। दशम भाव में ऐसी युति पिता से वैमनस्य व पद-प्रतिष्ठा में कमी एवं ग्यारहवें भाव में एक्सिडेंट करवाने की संभावना बढ़ाने के साथ लाभ में न्यूनता लाती है। जबकि बारहवें भाव में शनि-चंद्र की युति व्यय को आय से बहुत अधिक बढ़ाकर जातक का जीवन कष्टमय बना देने में सक्षम है।
खैर ये तो हुआ शनि-चंद्र से बने विष योग का परिणाम। उपायों को करेे
किसी भी व्यक्ति के जीवन में मौज़ूद ऐसे योग के परिणाम को न्यूनतम किया जा सके..........
पीपल के पेड़ के ठीक नीचे एक पानी वाला नारियल सिर से सात बार उतार कर फोड़ दें और नारियल को प्रसाद के रूप में बॉट दें।
शनिवार के दिन या शनि अमावस्या के दिन संध्या काल सूर्यास्त के पश्चात् श्री शनि देव की प्रतिमा पर या शिला पर तेल चढ़ाए, एक दीपक सरसो के तेल को जलाए दीपक में थोड़ा काला तिल एवं थोड़ा काला उड़द डाल दें। इसके पश्चात् 10 आक के पत्ते ले और काजल पर थोड़ी सरसो का तेल मिला कर स्याही बना ले, और लोहे की कील के माध्यम से प्रत्येक पत्ते में नीचे लिखे मंत्र को लिखे उदाहरण – जैसे 1. ऊॅ, 2. शं, 3. श, 4. नै, 5. श् (आधा श् शंकरवाला) 6. च, 7. रा, 8. यै, 9. न, 10. मः इस प्रकार 10 पत्तो में 10 अक्षर हो जाते है,फिर इन पत्तो को काले धागे में माला का रूप देकर, शनि देव की प्रतिमा या शिला पर चढ़ाये।तब इस क्रिया को करते समय मन ही मन शनि मंत्र का जाप भी करते रहना चाहिए।
गुड़, गुड़ की रेवड़ी, तिल के लड्डू किसी शनि मंदिर में प्रसाद चढ़ाये और प्रसाद को बॉट दे। तथा गाय, कुत्ते, एवं कौओ को भी खिलाए।
शनि मंदिर में या हनुमान जी के मंदिर में घड़ा में पानी भरकर दान करें।
पूर्णिमा के दिन शिव मंदिर में रूद्राभिषेक करवाये।
प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से कम से कम पाँच माला महामृत्युन्जय मंत्र का जाप करे।इस क्रिया को शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ करें।
माता एवं पिता अपने से उम्र में जो अधिक हो अर्थात पिता माता समान हो उनका चरण छूकर आर्षीवाद ले।
शनिवार के दिन कुए में दूध चढ़ाये।
श्री सुन्दर कांड का 49 पाठ करें। किसी हनुमान जी के मंदिर में या पूजा स्थान में शुद्ध घी का दीपक जलाकर पाठ करें, पाठ प्रारम्भ करने के पूर्व अपने गुरू एवं श्री हनुमान जी का आवाहन अवश्य करें।
श्री हनुमान जी को शुद्ध घी एवं सिन्दूर का चोला चढ़ाये श्री हनुमान जी के दाहिने पैर का सिन्दूर अपने माथे में लगाए।
शनि धीमी गति, लंगड़ापन, शूद्रत्व, सेवक, चाकरी, पुराने घर, खपरैल, बंधन, कारावास, आयु, जीर्ण-शीर्ण अवस्था आदि का कारक ग्रह है जबकि चंद्रमा माता, स्त्री, तरल पदार्थ, सुख, सुख के साथ, कोमलता, मोती, सम्मान, यश आदि का कारकत्व रखता है।
शनि और चंद्र की युति से विष योग नामक दुर्लभ अशुभ योग की सृष्टि होती है। ये विष योग जातक के जीवन में यथा नाम विषाक्तता घोलने में पूर्ण सक्षम है। जिस भी जातक की कुण्डली में विष योग का निर्माण होता है, उसे जीवन भर अशक्तता, मानसिक बीमारी, भ्रम, रोग, बिगड़े दाम्पत्य आदि का सामना करना पड़ता है। हां, जिस भी भाव में ऐसा विष योग निर्मित हो रहा हो, उस भाव अनुसार भी अशुभ फल की प्राप्ति होती है।
जैसे यदि किसी जातक के लग्न चक्र में शनि-चंद्र के संयोग से विष योग बन रहा हो तो ऐसा जातक शारीरिक तौर पर बेहद अक्षम महसूस करता है। उसे ताउम्र कंगाली और दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। लग्न में शनि-चंद्र के बैठ जाने से उसका प्रभाव सप्तम भाव पर बेहद नकारात्मक होता है, जिससे जातक का घरेलू दाम्पत्य जीवन बेहद बुरा बीतता है। लग्न शरीर का प्रतिनिधि है इसलिए इस पर चंद्र और शनि की युति बेहद नकारात्मक असर छोड़ती है। जातक जीवन भर रोग-व्याधि से पीड़ित रहता है।
इसी प्रकार यदि द्वितीय भाव में शनि-चंद्र का संयोग बने तो जातक जीवन भर धनाभाव से ग्रसित होता है। तृतीय भाव में यह युति जातक के पराक्रम को कम कर देती है। चतुर्थ भाव में सुख और मातृ सुख की न्यूनता तथा पंचम भाव में संतान व विवेक का नाश होता है। छठे भाव में ऐसी युति शत्रु-रोग-ऋण में बढ़ोत्तरी व सप्तम भाव में शनि-चंद्र का संयोग पति-पत्नी के बीच सामंजस्य को खत्म करता है। अष्टम भाव में आयु नाश व नवम भाव में भाग्य हीन बनाता है। दशम भाव में ऐसी युति पिता से वैमनस्य व पद-प्रतिष्ठा में कमी एवं ग्यारहवें भाव में एक्सिडेंट करवाने की संभावना बढ़ाने के साथ लाभ में न्यूनता लाती है। जबकि बारहवें भाव में शनि-चंद्र की युति व्यय को आय से बहुत अधिक बढ़ाकर जातक का जीवन कष्टमय बना देने में सक्षम है।
खैर ये तो हुआ शनि-चंद्र से बने विष योग का परिणाम। उपायों को करेे
किसी भी व्यक्ति के जीवन में मौज़ूद ऐसे योग के परिणाम को न्यूनतम किया जा सके..........
पीपल के पेड़ के ठीक नीचे एक पानी वाला नारियल सिर से सात बार उतार कर फोड़ दें और नारियल को प्रसाद के रूप में बॉट दें।
शनिवार के दिन या शनि अमावस्या के दिन संध्या काल सूर्यास्त के पश्चात् श्री शनि देव की प्रतिमा पर या शिला पर तेल चढ़ाए, एक दीपक सरसो के तेल को जलाए दीपक में थोड़ा काला तिल एवं थोड़ा काला उड़द डाल दें। इसके पश्चात् 10 आक के पत्ते ले और काजल पर थोड़ी सरसो का तेल मिला कर स्याही बना ले, और लोहे की कील के माध्यम से प्रत्येक पत्ते में नीचे लिखे मंत्र को लिखे उदाहरण – जैसे 1. ऊॅ, 2. शं, 3. श, 4. नै, 5. श् (आधा श् शंकरवाला) 6. च, 7. रा, 8. यै, 9. न, 10. मः इस प्रकार 10 पत्तो में 10 अक्षर हो जाते है,फिर इन पत्तो को काले धागे में माला का रूप देकर, शनि देव की प्रतिमा या शिला पर चढ़ाये।तब इस क्रिया को करते समय मन ही मन शनि मंत्र का जाप भी करते रहना चाहिए।
गुड़, गुड़ की रेवड़ी, तिल के लड्डू किसी शनि मंदिर में प्रसाद चढ़ाये और प्रसाद को बॉट दे। तथा गाय, कुत्ते, एवं कौओ को भी खिलाए।
शनि मंदिर में या हनुमान जी के मंदिर में घड़ा में पानी भरकर दान करें।
पूर्णिमा के दिन शिव मंदिर में रूद्राभिषेक करवाये।
प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से कम से कम पाँच माला महामृत्युन्जय मंत्र का जाप करे।इस क्रिया को शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ करें।
माता एवं पिता अपने से उम्र में जो अधिक हो अर्थात पिता माता समान हो उनका चरण छूकर आर्षीवाद ले।
शनिवार के दिन कुए में दूध चढ़ाये।
श्री सुन्दर कांड का 49 पाठ करें। किसी हनुमान जी के मंदिर में या पूजा स्थान में शुद्ध घी का दीपक जलाकर पाठ करें, पाठ प्रारम्भ करने के पूर्व अपने गुरू एवं श्री हनुमान जी का आवाहन अवश्य करें।
श्री हनुमान जी को शुद्ध घी एवं सिन्दूर का चोला चढ़ाये श्री हनुमान जी के दाहिने पैर का सिन्दूर अपने माथे में लगाए।
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