Monday, October 30, 2017

ग्रह_योगो_में_अंशो_का_महत्व

||#ग्रह_योगो_में_अंशो_का_महत्व||                                                दो या दो से ज्यादा ग्रहो के आपसी सम्बन्ध को योग कहते है।मंगल,बुध,गुरु,शुक्र,शनि ये ग्रह अकेले होने पर भी किसी ग्रह से सम्बन्ध न होकर भी एक योग बनाते जिसे पंचमहापुरुष योग बनाते है जिसमे मंगल रूचक योग, बुध भद्र योग, गुरु अंश योग, शुक्र मालव्य योग और शनि शश योग बनाता है।ग्रह योगो में या किसी भी योग में ग्रहो के अंशो का बहुत महत्व होता है।जब कोई दो या दो से ज्यादा ग्रह आपस में युति दृष्टि या अन्य तरह से सम्बन्ध बनाते है तब उनके अंश क्या है, उन ग्रहो के बीच बनने वाले योगो में अंशो का क्या महत्व है यह स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है।ग्रहो के बीच यदि युति सम्बन्ध है मतलब दो या दो से ज्यादा ग्रह एक ही राशि/भाव में बेठे है तब उनके बीच अंशो में अन्तर बहुत ज्यादा नही होना चाहिए वरना उस योग के फल पूरी तरह से फलित नही होते।मान लीजिये चंद्र गुरु की युति किसी राशि में है चंद्र के अंश 4 है और गुरु के अंश 28 है तो तो दोनों के बीच अंशो में 24 अंश की दुरी है जिस कारण दोनों ग्रह एक राशि में होने के बाद भी अंशो में काफी दूर है और दोनों ही ग्रह जिसमे चंद्र लगभग प्रारंभिक अंशो पर है और गुरु आखरी अंशो पर होने से अंशो में कमजोर भी है जिस कारण चंद्र गुरु के योग से बनने वाले गजकेसरी योग के फल पूरी तरह से ठीक मात्रा में फलित नही होंगे चाहे यह योग गुरु चंद्र की उच्च राशि, स्वराशि में मित्र राशि आदि बली राशि में क्यों न हो।अब यदि चंद्र 10अंश और गुरु 17 अंशो पर है तो दोनों के बीच अंशो में ज्यादा दुरी नही है इस कारण गुरु चंद्र अपनी बली राशि और शुभ भाव में है तब बहुत ठीक और शुभ फल गुरु चंद्र युति(गजकेसरी योग) के मिलेंगे।इसमें एक बात और ध्यान रखने वाली है कोई भी योग हो उस पर अन्य ग्रहो का अशुभ प्रभाव, योग पीड़ित नही होना चाहिए। सूर्य के प्रभाव से अन्य ग्रह अस्त हो जाते है कोई भी ग्रह सूर्य से युति सम्बन्ध बनाने पर सूर्य के बहुत नजदीक अंशो पर नही होना चाहिए और न अंशो में बहुत दूर क्योंकि अंशो में सूर्य के बहुत नजदीक ग्रहो के होने से वह अस्त हो जाते है और कोई शुभ योग सूर्य के साथ कोई ग्रह बनाएगा भी तो वह फलित नही होगा और अस्त का दोष लगेगा।इसी तरह कोई भी ग्रह किसी ग्रह के साथ योग न भी बना रहा हो तब भी वह ग्रह बहुत प्रारंभिक या बहुत आखरी अंशो में नही होना चाहिए वरना ऐसा ग्रह अपने भाव स्वामित्व/ कारक सम्बंधित फल नही दे पाता है।कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह बहुत कम या बहुत ज्यादा अंशो पर हो तो ठीक रहता है क्योंकि ऐसा ग्रह अपने अशुभ फल ज्यादा नही दे पाएगा।इस तरह कोई भी अनुकूल शुभ फल देने वाला, योग बनाने वाले ग्रह अंशो में बली होने चाहिए जो ग्रह अंशो में बहुत कमजोर है उनका मन्त्र जाप, पूजा पाठ ग्रह योग कारक या शुभ भावेश है तो उसका रत्न पहनना ठीक रहता है।अकारक भाव के स्वामी ग्रह अंशो में कमजोर हो तो उनके रत्न नही पहनने चाहिए।

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