Monday, October 30, 2017

द्वितीय भाव में सूर्य का फल


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द्वितीय भाव में सूर्य का फल
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यदि सूर्य जन्म समय में द्वितीय स्थान में अपनी उच्च राशि मेष में स्थित हो तो जातक को राजा द्वारा सम्मान प्राप्त होता है। वह राजपक्ष से धन पाने वाला होता है।
यही सूर्य अपने उच्च नवमांश में स्थित हो तो मनुष्य राजकार्य करने वाला होता है।
यही सूर्य यदि षडवर्ग शुद्ध होकर अर्थात षडवर्ग कुंडलियों में अधिक स्थान पर शुभ वर्ग में गया हो तो ऐसा जातक सज्जन लोगो के सहयोग से धन पाने वाला होता है। इनकी जीविका सभ्य लोगो के सहारे चलती है।

यदि द्वितीय स्थान में सूर्य अपनी नीच राशि तुला में स्थित हो तो ऐसा जातक पाप मार्ग अर्थात अन्याय व अनीति के रास्ते पर चलकर अपनी जीविका कमाता है। ऐसे व्यक्ति धर्म मे भी पाप करते है।

यदि सूर्य द्वितीय भाव मे अपने नीच नवमांश में स्थित हो ऐसा जातक भूमि से धन प्राप्त करता है।

यदि यही सूर्य पाप ग्रहों के वर्ग में गया हो तो जातक चोरी आदि कार्य से धन कमाता है।

यदि सूर्य द्वितीय भाव मे मित्र ग्रह की राशि मे स्थित हो तो ऐसे जातक धन-धान्य से युक्त अथवा धान्य आदि अनाज से जीविकोपार्जन करने वाला होता है।

यदि सूर्य मित्र ग्रह के नवमांश में स्थित हो तो जातक लोहे आदि के व्यवसाय से जीविका चलाता है।

यदि धन स्थान में सूर्य अपने शत्रु ग्रह की राशि मे स्थिति हो जातक के पास संचित धन की सैदव कमी बनी रहती है।

यदि धन स्थान में सूर्य अपने शत्रु के नवमांश में स्थित हो जातक नीच जनो की सेवा कर धन कमाता है।

यदि यही सूर्य द्वितीय भाव मे अपनी मूल त्रिकोण राशि मे स्थित हो तो जातक भिक्षावृति से धन कमाता है।

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