विवाह के लिये सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र का विचार किया जाता है. ये तीनों शुभ स्थिति में हों तो विवाह शीघ्र होता है तथा वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है.
इसके विपरीत जब सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र तीनों किसी भी प्रकार के पाप प्रभाव में हों तो विवाह में विलम्ब की संभावना बनती है. विवाह के समय का निर्धारण करने में कुण्डली में बन रहे योग विशेष भूमिका निभाते है.
किसी व्यक्ति को जीवन में कितना सुख मिलेगा यह सब कुण्डली के योगों पर निर्भर करता है. शुभ ग्रह, शुभ भावों के स्वामी होकर जब शुभ भावों में स्थित हों, तथा अशुभ ग्रह निर्बल होकर अशुभ भावों के स्वामी होकर, अशुभ भावों में स्थित हों तो व्यक्ति को अनुकुल फल देते हैं.
आईये देखे कि कुण्डली के योग विवाह समय को किस प्रकार प्रभावित करते है.
जब जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम में हों व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है. अष्टम भाव व इस भाव के स्वामी का संबन्ध जिन भावों से बनता है. उन भावों के फलों की प्राप्ति में बाधाएं आने की संभावना रहती है.
इसके अलावा जब जन्म कुण्डली में सूर्य व चन्द्र शनि से पूर्ण दृष्टि संबन्ध रखते हों तब भी व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते है. इस योग में सूर्य व चन्द्र दोनों में से कोई सप्तम भाव का स्वामी हो या फिर सप्तम भाव में स्थित हों तभी इस प्रकार की संभावना बनती है.
शुक्र केन्द्र में स्थित हों और शनि शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में प्रवेश के बाद ही होने की संभावना बनती है.
शनि सप्तमेश होकर एकादश भाव में स्थित हों और एकादशेश दशम भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 21 से 23 वर्ष में होने की उम्मीद रहती है.
अगर शुक्र चन्द्र से सप्तम भाव में स्थ्ति हो और शनि शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों तो भी व्यक्ति का विवाह शीघ्र हो सकता है.
इसके अतिरिक्त सप्तमेश और शुभ ग्रह द्वितीय भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष में हो सकती है.
जब जन्म कुण्डली में शुभ ग्रह प्रथम, द्वितीय या सप्तम भाव में हों तब व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष के आसपास होने के योग बनते है.
चन्द्र जब कुण्डली में शुक्र से सप्तम भाव में हो व बुध चन्द्र से सप्तम भाव में और अष्टमेश पंचम में हो तो व्यक्ति का विवाह 22 वें वर्ष में होने की संभावना बनती है.
इसके अतिरिक्त जब शुक्र द्वितीय में और मंगल अष्टमेश के साथ हों तो व्यक्ति बाईस से सताईस वर्ष की आयु में विवाह करता है.
चन्द्र शुक्र से सप्तम में और लग्नेश शुक्र एकादश भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 27 वें वर्ष में होने की संभावनाएं बनती है.
अगर कुण्डली में सप्तमेश नवम में हो, शुक्र तीसरे में हो तो व्यक्ति का विवाह 27 से 30 के मध्य की आयु में होने के योग बनते है.
अष्टमेश स्व-राशि में स्थित हों और लग्नेश शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बढ़ जाती है.
सप्तमेश त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रहों के साथ हों और शुक्र भी पाप ग्रहों से पीड़ित होकर द्वितीय भाव में स्थित हों तो 30 वर्ष के बाद विवाह की संभावना रहती है.
लग्नेश या सप्तमेश स्वराशि में स्थित होकर पंचम या छठे भाव से दूर स्थित हो तो व्यक्ति की शादी देर से हो सकती है.
अगर सप्तम भाव का स्वामी सूर्य हों तो व्यक्ति का विवाह 24 से 26 वर्ष के मध्य होने की संभावना बनती है.
चन्द्र सप्तमेश होने पर व्यक्ति का विवाह 21 से 22 वें वर्ष के मध्य होने का योग बनाता है.
मंगल सप्तमेश हो तो 24 से 27 के मध्य की आयु में विवाह संभव है.
बुध सप्तमेश होने पर 28 से 30 की आयु में विवाह का योग बनता है.
जिस व्यक्ति की कुण्डली में गुरु सप्तमेश हो उस व्यक्ति का विवाह 22 से 24 वर्ष की आयु में होने की संभावना बनती है.
शुक्र के सप्तमेश होने पर 21 से 23 वर्ष की आयु में विवाह हो सकता है.
शनि सप्तमेश होने पर 30 वर्ष के पश्चात विवाह होने की उम्मीद रहती है.
इन योगों में ग्रहों की स्थिति के अनुसार विवाह समय में परिवर्तन हो सकता है. अगर सप्तमेश उच्च हो, बलवान हो, शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तथा अशुभ ग्रहों के पाप प्रभाव से मुक्त हो तो विवाह की आयु में परिवर्तन होना संभव है.
इसके विपरीत जब सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र तीनों किसी भी प्रकार के पाप प्रभाव में हों तो विवाह में विलम्ब की संभावना बनती है. विवाह के समय का निर्धारण करने में कुण्डली में बन रहे योग विशेष भूमिका निभाते है.
किसी व्यक्ति को जीवन में कितना सुख मिलेगा यह सब कुण्डली के योगों पर निर्भर करता है. शुभ ग्रह, शुभ भावों के स्वामी होकर जब शुभ भावों में स्थित हों, तथा अशुभ ग्रह निर्बल होकर अशुभ भावों के स्वामी होकर, अशुभ भावों में स्थित हों तो व्यक्ति को अनुकुल फल देते हैं.
आईये देखे कि कुण्डली के योग विवाह समय को किस प्रकार प्रभावित करते है.
जब जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम में हों व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है. अष्टम भाव व इस भाव के स्वामी का संबन्ध जिन भावों से बनता है. उन भावों के फलों की प्राप्ति में बाधाएं आने की संभावना रहती है.
इसके अलावा जब जन्म कुण्डली में सूर्य व चन्द्र शनि से पूर्ण दृष्टि संबन्ध रखते हों तब भी व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते है. इस योग में सूर्य व चन्द्र दोनों में से कोई सप्तम भाव का स्वामी हो या फिर सप्तम भाव में स्थित हों तभी इस प्रकार की संभावना बनती है.
शुक्र केन्द्र में स्थित हों और शनि शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में प्रवेश के बाद ही होने की संभावना बनती है.
शनि सप्तमेश होकर एकादश भाव में स्थित हों और एकादशेश दशम भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 21 से 23 वर्ष में होने की उम्मीद रहती है.
अगर शुक्र चन्द्र से सप्तम भाव में स्थ्ति हो और शनि शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों तो भी व्यक्ति का विवाह शीघ्र हो सकता है.
इसके अतिरिक्त सप्तमेश और शुभ ग्रह द्वितीय भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष में हो सकती है.
जब जन्म कुण्डली में शुभ ग्रह प्रथम, द्वितीय या सप्तम भाव में हों तब व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष के आसपास होने के योग बनते है.
चन्द्र जब कुण्डली में शुक्र से सप्तम भाव में हो व बुध चन्द्र से सप्तम भाव में और अष्टमेश पंचम में हो तो व्यक्ति का विवाह 22 वें वर्ष में होने की संभावना बनती है.
इसके अतिरिक्त जब शुक्र द्वितीय में और मंगल अष्टमेश के साथ हों तो व्यक्ति बाईस से सताईस वर्ष की आयु में विवाह करता है.
चन्द्र शुक्र से सप्तम में और लग्नेश शुक्र एकादश भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 27 वें वर्ष में होने की संभावनाएं बनती है.
अगर कुण्डली में सप्तमेश नवम में हो, शुक्र तीसरे में हो तो व्यक्ति का विवाह 27 से 30 के मध्य की आयु में होने के योग बनते है.
अष्टमेश स्व-राशि में स्थित हों और लग्नेश शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बढ़ जाती है.
सप्तमेश त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रहों के साथ हों और शुक्र भी पाप ग्रहों से पीड़ित होकर द्वितीय भाव में स्थित हों तो 30 वर्ष के बाद विवाह की संभावना रहती है.
लग्नेश या सप्तमेश स्वराशि में स्थित होकर पंचम या छठे भाव से दूर स्थित हो तो व्यक्ति की शादी देर से हो सकती है.
अगर सप्तम भाव का स्वामी सूर्य हों तो व्यक्ति का विवाह 24 से 26 वर्ष के मध्य होने की संभावना बनती है.
चन्द्र सप्तमेश होने पर व्यक्ति का विवाह 21 से 22 वें वर्ष के मध्य होने का योग बनाता है.
मंगल सप्तमेश हो तो 24 से 27 के मध्य की आयु में विवाह संभव है.
बुध सप्तमेश होने पर 28 से 30 की आयु में विवाह का योग बनता है.
जिस व्यक्ति की कुण्डली में गुरु सप्तमेश हो उस व्यक्ति का विवाह 22 से 24 वर्ष की आयु में होने की संभावना बनती है.
शुक्र के सप्तमेश होने पर 21 से 23 वर्ष की आयु में विवाह हो सकता है.
शनि सप्तमेश होने पर 30 वर्ष के पश्चात विवाह होने की उम्मीद रहती है.
इन योगों में ग्रहों की स्थिति के अनुसार विवाह समय में परिवर्तन हो सकता है. अगर सप्तमेश उच्च हो, बलवान हो, शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तथा अशुभ ग्रहों के पाप प्रभाव से मुक्त हो तो विवाह की आयु में परिवर्तन होना संभव है.
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