पाप_ग्रह_3_6_11_भाव_मे_शुभ_क्युं ?
शनि,राहू,केतू,मंगल,सूर्य का 3,6,11 भावो मे स्थित होना शुभ क्युं माना गया है ?
जैसा कि हम सभी जानते है कि कुंडली मे तीसरा भाव बल और पराक्रम का कहा जाता है और छटा भाव शत्रु और संघर्ष का तथा एकादश भाव लाभ और इच्छाओ का कहा जाता है। और ग्रहो मे सूर्य,मंगल,शनि,राहू,केतू की पाप वृत्ति मानी गई है । अर्थात ये ग्रह काम,क्रोध,लोभ,अंहकार,क्रूता इत्यादी दुर्गुणो से परिपूर्ण माने गये है । और इसी प्रकार अन्य ग्रहो जैसे - गुरू,शुक्र,बुध,चन्द्र ग्रह ज्ञान,दया,करूणा,भावुकता,कोमलता,कला,संगीत इत्यादी शुभ गुणो के प्रतीक माने जाते है ।
और इस तरह अगर अगर तीसरे,छटे,ग्यारहवें भाव मे पाप ग्रह हो तो वहां वे अपने बल,छल,क्रोध को दिखाकर अच्छी क्रियाशीलता दिखाते है
जैसे - तीसरा भाव बल और पराक्रम का भाव है यहां पर अगर मंगल जैसा बल शाली ग्रह हो तो बल और पराक्रम मे वृद्धि करता है। सूर्य जैसा तेजस्वी ,बली और राजसी ग्रह हो तो तब भी बल और पराक्रम बढायेगा , शनि जैसा कपटी ,क्रूर, क्रोधी,चतुर ग्रह हो तो भी बल और पराक्रम बढायेगा । राहू जैसा षडयंत्रकारी, विसम्यकारी ,विशाल ग्रह हो तो भी बल पराक्रम बढायेगा । केतू जैसा धूर्त, निर्मम , क्रोधी ,बली ग्रह हो तो भी बल और पराक्रम बढायेगा।
इसके विपरीत अगर तीसरे भाव मे गुरू जैसा ज्ञानी ,दयावान , महात्मा ग्रह हो तो बल और पराक्रम को अपने विषय के समक्ष तुच्छ जानकर बल और पराक्रम मे न्यूनता देगा। शुक्र जैसा सौन्दर्यशील, कलाप्रिय , संगीतप्रिय ग्रह हो तो ये भी बल और पराक्रम को अपने विषय के प्रतिकूल जानकर इनमे न्यूनता देगा। बुध जैसा बौद्धिक स्तर का, हासपरिहास व बाल गुणो से परिपूर्ण ग्रह भी बल और पराक्रम को अपने विषय के प्रतिकूल जानकर बल व पराक्रम मे न्यूनता देगा। और अगर तीसरे भाव मे चंद्रमा जैसा शीलवान , शीतल प्रकृति का ,स्त्रीयोचित गुण वाला ,चंचल,भावुक ग्रह हो तो भी ये बल व पराक्रम को अपने प्रतिकूल जानकर इनमे न्यूनता प्रदान करेगा।
सामान्य अर्थ मे आप इस तरह भी समझ सकते है कि तीसरा भाव ऐसे स्थानो व चीजो प्रतीक है जहां बल,साहस,मेहनत की जरूरत पडती है जैसे युद्ध स्थल ,हथियार ,औजार इत्यादी और मंगल का कारक मिलिट्री वाला अगर तीसरे भाव अर्थात युद्ध स्थान मे हो तो अच्छा कर सकता है इसके विपरीत यदि यहां गुरू अर्थात कोई पुजारी या मठाधीश या ज्योतिषी हो तो डर व भय से त्रस्त होकर कुछ नही कर सकता।
इसी प्रकार छटा भाव दुश्मनो ,संघर्ष,लडाई झगडे का का कहा जाता है और यहां पर केवल मंगल, सूर्य,शनि,राहू,केतु जैसे क्रूर,साहसी,शक्
तिशाली,षडयंत्रकारी ,प्रकृति के ग्रह ज्यादा बेहतर कर सकते है जबकि गुरू ,शुक्र,चंद्र,बुध जैसे ज्ञानी, विवेकी, धर्मात्मा,स्त्रीयोचित गुणो व बाल गुणो से परिपूर्ण ग्रह हो तो लडाई ,झगडे, संघर्ष, इत्यादी से बचना ही बेहतर समझेंगे।
इसी प्रकार एकादश भाव भी क्रूर स्थान कहलाता है क्युंकि यह छटे भाव से छटा पडता है और लोभ ,लालच व फायदे अथवा लाभ को दर्शाता है ।
यहां पर भी आप देख सकते है कि
जिसकी_लाठी_उसकी_भैंस अतः यहां पर भी क्रूर ,पापी,षडयंत्रकारी ग्रह अच्छा फल देते क्युंकि आप देख सकते है कि नेता, गुंडे ,पापी अत्याचारी लोग ही अधिक लाभ व फायदे की सोचते है और होता भी इनके पास ही है और ज्ञानी ,शांत ,विद्वान, कलाप्रिय लोग धक्के खाते है और पर्याप्त लाभ नही जुटा पाते।
इस तरह आपने समझ लिया होगा कि क्रूर ग्रह क्रूर भावो मे अच्छा फल देते है क्युंकि क्रूर स्थान उनके गुणो के अनुकूल स्थान होते है और सौम्य व शुभ ग्रह क्रूर स्थानो मे अच्छा फल नही दे पाते । क्युंकि क्रूर स्थान सौम्य व शुभ ग्रहो के अनुकूल नही होते।
शनि,राहू,केतू,मंगल,सूर्य का 3,6,11 भावो मे स्थित होना शुभ क्युं माना गया है ?
जैसा कि हम सभी जानते है कि कुंडली मे तीसरा भाव बल और पराक्रम का कहा जाता है और छटा भाव शत्रु और संघर्ष का तथा एकादश भाव लाभ और इच्छाओ का कहा जाता है। और ग्रहो मे सूर्य,मंगल,शनि,राहू,केतू की पाप वृत्ति मानी गई है । अर्थात ये ग्रह काम,क्रोध,लोभ,अंहकार,क्रूता इत्यादी दुर्गुणो से परिपूर्ण माने गये है । और इसी प्रकार अन्य ग्रहो जैसे - गुरू,शुक्र,बुध,चन्द्र ग्रह ज्ञान,दया,करूणा,भावुकता,कोमलता,कला,संगीत इत्यादी शुभ गुणो के प्रतीक माने जाते है ।
और इस तरह अगर अगर तीसरे,छटे,ग्यारहवें भाव मे पाप ग्रह हो तो वहां वे अपने बल,छल,क्रोध को दिखाकर अच्छी क्रियाशीलता दिखाते है
जैसे - तीसरा भाव बल और पराक्रम का भाव है यहां पर अगर मंगल जैसा बल शाली ग्रह हो तो बल और पराक्रम मे वृद्धि करता है। सूर्य जैसा तेजस्वी ,बली और राजसी ग्रह हो तो तब भी बल और पराक्रम बढायेगा , शनि जैसा कपटी ,क्रूर, क्रोधी,चतुर ग्रह हो तो भी बल और पराक्रम बढायेगा । राहू जैसा षडयंत्रकारी, विसम्यकारी ,विशाल ग्रह हो तो भी बल पराक्रम बढायेगा । केतू जैसा धूर्त, निर्मम , क्रोधी ,बली ग्रह हो तो भी बल और पराक्रम बढायेगा।
इसके विपरीत अगर तीसरे भाव मे गुरू जैसा ज्ञानी ,दयावान , महात्मा ग्रह हो तो बल और पराक्रम को अपने विषय के समक्ष तुच्छ जानकर बल और पराक्रम मे न्यूनता देगा। शुक्र जैसा सौन्दर्यशील, कलाप्रिय , संगीतप्रिय ग्रह हो तो ये भी बल और पराक्रम को अपने विषय के प्रतिकूल जानकर इनमे न्यूनता देगा। बुध जैसा बौद्धिक स्तर का, हासपरिहास व बाल गुणो से परिपूर्ण ग्रह भी बल और पराक्रम को अपने विषय के प्रतिकूल जानकर बल व पराक्रम मे न्यूनता देगा। और अगर तीसरे भाव मे चंद्रमा जैसा शीलवान , शीतल प्रकृति का ,स्त्रीयोचित गुण वाला ,चंचल,भावुक ग्रह हो तो भी ये बल व पराक्रम को अपने प्रतिकूल जानकर इनमे न्यूनता प्रदान करेगा।
सामान्य अर्थ मे आप इस तरह भी समझ सकते है कि तीसरा भाव ऐसे स्थानो व चीजो प्रतीक है जहां बल,साहस,मेहनत की जरूरत पडती है जैसे युद्ध स्थल ,हथियार ,औजार इत्यादी और मंगल का कारक मिलिट्री वाला अगर तीसरे भाव अर्थात युद्ध स्थान मे हो तो अच्छा कर सकता है इसके विपरीत यदि यहां गुरू अर्थात कोई पुजारी या मठाधीश या ज्योतिषी हो तो डर व भय से त्रस्त होकर कुछ नही कर सकता।
इसी प्रकार छटा भाव दुश्मनो ,संघर्ष,लडाई झगडे का का कहा जाता है और यहां पर केवल मंगल, सूर्य,शनि,राहू,केतु जैसे क्रूर,साहसी,शक्
तिशाली,षडयंत्रकारी ,प्रकृति के ग्रह ज्यादा बेहतर कर सकते है जबकि गुरू ,शुक्र,चंद्र,बुध जैसे ज्ञानी, विवेकी, धर्मात्मा,स्त्रीयोचित गुणो व बाल गुणो से परिपूर्ण ग्रह हो तो लडाई ,झगडे, संघर्ष, इत्यादी से बचना ही बेहतर समझेंगे।
इसी प्रकार एकादश भाव भी क्रूर स्थान कहलाता है क्युंकि यह छटे भाव से छटा पडता है और लोभ ,लालच व फायदे अथवा लाभ को दर्शाता है ।
यहां पर भी आप देख सकते है कि
जिसकी_लाठी_उसकी_भैंस अतः यहां पर भी क्रूर ,पापी,षडयंत्रकारी ग्रह अच्छा फल देते क्युंकि आप देख सकते है कि नेता, गुंडे ,पापी अत्याचारी लोग ही अधिक लाभ व फायदे की सोचते है और होता भी इनके पास ही है और ज्ञानी ,शांत ,विद्वान, कलाप्रिय लोग धक्के खाते है और पर्याप्त लाभ नही जुटा पाते।
इस तरह आपने समझ लिया होगा कि क्रूर ग्रह क्रूर भावो मे अच्छा फल देते है क्युंकि क्रूर स्थान उनके गुणो के अनुकूल स्थान होते है और सौम्य व शुभ ग्रह क्रूर स्थानो मे अच्छा फल नही दे पाते । क्युंकि क्रूर स्थान सौम्य व शुभ ग्रहो के अनुकूल नही होते।
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