Thursday, October 5, 2017


नवग्रहों की दृष्टि विचा ग्रह भी अपनी दृष्टि से जिस भाव को देखता हैं, उस भाप्रकार ग्रह भी अपनी दृष्टि से जिस भाव को देखता हैं, उस भा
जन्म-कुंडली में प्रत्येक ग्रह जिस भाव में बैठा होता हैं, वहां से वह अपनी कुछ विशेष दृष्टियों से किसी दुसरे भाव को भी देखता हैं। इसका सीधा-सीधा प्रभाव मानव जीवन पर होता हैं। जैसे- हम किसी व्यक्ति के पास जाते हैं तो वहां बैठकर हम उसको देखते हैं तथा हम दायें-बायें भी नज़र दौड़ते हैं। हमारी जो नज़रें आगे-पीछे- दायें-बायें होती हैं, इसे हम दृष्टि कहते हैं। इसी प्रकार ग्रह भी अपनी दृष्टि से जिस भाव को देखता हैं, उस भाव की या तो वृद्धि करेगा या हानि करेगा। अगर ग्रह मित्र की दृष्टि से देख रहा होता है तो वह वृद्धि करता है और शत्रु दृष्टि से देखता हैं तो हानि करता है।
सूर्य: सूर्य जिस भाव में बैठा होता हैं, उस भाव से पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव को देखता हैं। उदाहरण के लिए अगर सूर्य लग्न में बैठा हो तो सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि होती हैं।

चन्द्रमा:👉 चन्द्रमा जिस भाव में बैठा होता हैं, उस भाव से पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है। जैसे-चंद्रमा अगर द्वितीय भाव में बैठा हो तो उसकी सप्तम दृष्टि अष्टम भाव पर पडती है।

मंगल:👉 कुंडली में मंगल जिस भाव में बैठा होता है, उस भाव से चौथे, सातवे, आठवे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं। मंगल की दृष्टि 4, 7 व 8 होती हैं। जैसे- अगर मंगल पंचम भाव में बैठा हो तो चौथी दृष्टि अष्टम भाव पर, सप्तम दृष्टि ग्यारहवे भाव पर व अष्टम दृष्टि बारहवे भाव पर होती हैं।

बुध👉 बुध कुंडली में जिस भाव में बैठा होता हैं, वहाँ से पूर्ण सप्तम दृष्टि से देखता हैं।

गुरु👉 गुरु कुंडली में जिस भाव में भी बैठा होता है तो वहाँ से वह 5वें, 7वें व 9वें भाव को देखता हैं। अर्थात इसकी दृष्टि 5, 7, व 9 होती है। उदाहरण के लिये अगर गुरु लग्न में हो तो पंचम दृष्टि पंचम भाव पर सप्तम दृष्टि विवाह स्थान पर तथा नवम दृष्टि भाग्य स्थान पर होती हैं। शुक्र: जन्मकुंडली में शुक्र जिस भाव में बैठा होता है वहां से पूर्ण सप्तम दृष्टि से देखता हैं।

शनि:👉 शनि की दृष्टि 3, 7 व 10 होती हैं। जन्मपत्री में शनि जिस भाव में होता हैं वहां से तीसरे, सातवे व दशम भाव को देखता हैं। उदाहरण के लिए अगर शनि सप्तम भाव में बैठा हो तो उसकी तीसरी दृष्टि भाग्य स्थान पर, सप्तम लग्न पर तथा दशम दृष्टि चतुर्थ भाव पर आती है।
राहु-केतु: राहु व केतु की 5, 7 व 9वी दृष्टि होती है। ये जिस भाव में भी बैठते हैं वहां से पंचम, सप्तम व नवम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। जैसे- अगर राहु दशम भाव में हो तो इसकी पंचम दृष्टि धन भाव पर, सप्तम दृष्टि चतुर्थ भाव पर तथा नवं दृष्टि छटे भाव पर आती हैं।

राहु केतु जिस भाव मे बैठते है अथवा जिस ग्रह के साथ युति करते है उस भाव को बिगाड़ते है।

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