Monday, October 2, 2017

कठिन परिश्रम के बाद भी भाग्योदय में बाधा..और उसके उपाय

कठिन परिश्रम के बाद भी भाग्योदय में बाधा..और
उसके उपाय

कठिन परिश्रम के बाद भी किस्मत साथ नहीं दे, और
धक्के खाने पड़े तो व्यक्ति निराश हो जाता है।
कहावत है कि जैसा करोगे वैसा ही भरोगे। लगातार
मेहनत और व्यापार करने पर लाभ की जगह घटा हो
रहा हो। ईमानदारी से और कठिन परिश्रम करने के
बावजूद भी नौकरी नहीं मिलती हो।
योग्यता व पात्रता के आधार पर अच्छा वेतन नहीं
मिलता है। आपके जूनियर तरक्की करते जाय आप इसी
पद पर वर्षों से रहे। आप अपने आपको कोस रहे हैं। जी
हां यदि मेहनत, श्रम और ईमानदारी से काम करने और
योग्यता के आधार पर यश, धन, नौकरी, व्यापार,
पढ़ाई, विवाह, मकान, दुकान, रोग और सेहत में सुख
नहीं मिले लगातार निरंतर हानि, अपयश, रोग,
दरिद्रता कम तनख्वाह किराये का मकान में रहना
आदि दुख पीछा नहीं छोड़ता है, तो समझ लेना
चाहिए, कि भाग्य साथ नहीं दे रहा है।
प्रश्न उठता है कि आखिर आप के साथ ही क्यों
होता है?
1 भाग्य की बाधा के लिये जन्मपत्री में नवम भाव व
नवमेश का गहराई से अध्ययन करना चाहिए।
2 नवम से नवम अर्थात पंचम भाव व पंचमेश की स्थिति
का भी निरीक्षण ध्यानपूर्वक करना चाहिए।
3 भाग्य-यश के दाता सूर्य की स्थिति, पाप ग्रहों
की दृष्टि नीच ग्रहों की दृष्टि नीच ग्रहों की दृष्टि
के प्रभाव में तो नहीं है।
4 धन, वैभव, नौकरी, पति, पुत्र व समृद्धि का दायक
गुरु कहीं नीच का होकर पाप प्रभाव में तो नहीं है।
5 लग्नेश व लग्न पर कहीं पाप व नीच ग्रहों का
प्रभाव तो नहीं है।
भाग्य में बाधा डालने वाले कुछ दोष:
1. लग्नेश यदि नीच राशि में, छठे, आठवे, 12 भाव में हो
तो भाग्य में बाधा आती है।
2. राहू यदि लग्न में नीच का शनि जन्मपत्री में
किसी भी स्थान में हो, तथा मंगल चतुर्थ स्थान में हो
तो भाग्य में बाधा आती है।
3. लग्नेश सूर्य चंद्र व राहू के साथ 12वें भाव में हो तो
भाग्य में बाधा आती है।
4. लग्नेश यदि तुला राशि के सूर्य तथा शनि के साथ
छठे, 8वें में हो तो जातक का भाग्य साथ नहीं देता।
5. पंचम भाव का स्वामी यदि नीच का हो या
वक्री हो तथा छठे, आठवें, 12वें भाव में स्थित हो तो
भाग्य के धोखे सहने पड़ते हैं।
6.पंचम भाव का स्वामी तथा नवमेश यदि नीच के
होकर छठे भाव में हो तो शत्रुओं द्वारा बाधा आती
है।
7. पंचम भाव पर राहु, केतु तथा सूर्य का प्रभाव हो
लग्नेश छठे भाव में हो पितृदोष के कारण भाग्य में
बाधा आती है।
8. मकर राशि का गुरु पंचम भाव में यदि हो तो भाग्य
के धक्के सहने पड़ते हैं।
9. पंचमेश यदि 12वें भाव में मीन राशि के बुध के साथ
हो भाग्य में बाधा आती है।
10. पंचम या नवम भाव में सूर्य उच्च के शनि के साथ हो
तो भाग्य में बाधा देखी जाती है।
11. नवम भाव में यदि राहु के साथ नवमेश हो तो
भाग्य बन जाता है।
12. नवम भाव में सूर्य के साथ शुक्र यदि शनि द्वारा
देखा जाता हो। तो भाग्य साथ नहीं देता।
13. नवमेश यदि 12वें या 8वें भाव में पाप ग्रह द्वारा
देखा जाता हो, तो भाग्य साथ नही देता।
14. नवम भाव का स्वामी 8वें भाव में राहु के साथ
स्थित हो तो पग-पग पर ठोकरे खानी पड़ती है।
15. नवमेश यदि द्वितीय भाव में राहु-केतु के साथ,
शनि द्वारा देखा जाता है, तो व्यक्ति का भाग्य
बंध जाता है।
16. नवमेश यदि द्वादश भाव में षष्ठेश के साथ स्थित
होकर पाप ग्रहों द्वारा देखा जाता हो, तो
बीमारी कर्जा व रोग के कारण कष्ट उठाने पड़ते है।
17. नीच का गुरु नवमेश के साथ अष्टम भाव में राहु, केतु
द्वारा दृष्ट हो तो गुरु छठे, 8वें, 12वें राहु शनि द्वारा
देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।
18. नीचे का गुरु छठे, 8वें, और 12वें राहु शनि द्वारा
देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।
भाग्य बाधा निवारण के उपाय:
सूर्य गुरु लग्नेश व भाग्येश के शुभ उपाय करने से भाग्य
संबंधी बाधाएं दूर हो जाती है।
1. गायत्री मंत्र का जाप करके भगवान सूर्य को जल
दें।
2. प्रात:काल उठकर माता-पिता के चरण छूकर
आशीर्वाद लें।
3. अपने ज्ञान, सामर्थ और पद प्रतिष्ठा का कभी
भी अहंकार न करें।
4. किसी भी निर्बल व असहाय व्यक्ति की बददुआ न
ले।
5. वद्धाश्रम और कमजोर वर्ग की यदाशक्ति तन, मन
और धन से मदद करें।
6. सप्ताह में एक दिन मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा
जाकर ईश्वर से शुभ मंगल की प्रार्थना करें। मंदिर
निर्माण में लोहा, सीमेंट, सरिया इत्यादि का दान
देकर मंदिर निर्माण में मदद करें।
7. पांच सोमवार रुद्र अभिषेक करने से भाग्य संबंधी
अवरोध दूर होते है।
8. 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जाप 108
बार रोज करने से बंधा हुआ भाग्य खुलने लगता है।
9. भाग्यस्थ अथवा अष्टमस्थ राहु अथवा इन दोनों
स्थानों पर राहु की दृष्टि भाग्योदय में बाधा का
बडा कारण होती है। राहु की दशा, अंतदर्शा अथवा
प्रत्यंतर दशा में अकसर भाग्य बाधित होता है। अत:
कुंडली में इस प्रकार के योग बन रहे हों तो उक्तराहु
की शांति करानी चाहिए। इसके लिए अज्ञात
पितर दोष निवृत्ति हेतु नारायणबली, नागबली  कराने से जीवन में भाग्योदय का
रास्ता खुलता है।

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