Monday, October 30, 2017

द्वितीय भाव में सूर्य का फल


〰〰〰〰〰〰〰〰〰
द्वितीय भाव में सूर्य का फल
〰〰〰〰〰〰〰〰
यदि सूर्य जन्म समय में द्वितीय स्थान में अपनी उच्च राशि मेष में स्थित हो तो जातक को राजा द्वारा सम्मान प्राप्त होता है। वह राजपक्ष से धन पाने वाला होता है।
यही सूर्य अपने उच्च नवमांश में स्थित हो तो मनुष्य राजकार्य करने वाला होता है।
यही सूर्य यदि षडवर्ग शुद्ध होकर अर्थात षडवर्ग कुंडलियों में अधिक स्थान पर शुभ वर्ग में गया हो तो ऐसा जातक सज्जन लोगो के सहयोग से धन पाने वाला होता है। इनकी जीविका सभ्य लोगो के सहारे चलती है।

यदि द्वितीय स्थान में सूर्य अपनी नीच राशि तुला में स्थित हो तो ऐसा जातक पाप मार्ग अर्थात अन्याय व अनीति के रास्ते पर चलकर अपनी जीविका कमाता है। ऐसे व्यक्ति धर्म मे भी पाप करते है।

यदि सूर्य द्वितीय भाव मे अपने नीच नवमांश में स्थित हो ऐसा जातक भूमि से धन प्राप्त करता है।

यदि यही सूर्य पाप ग्रहों के वर्ग में गया हो तो जातक चोरी आदि कार्य से धन कमाता है।

यदि सूर्य द्वितीय भाव मे मित्र ग्रह की राशि मे स्थित हो तो ऐसे जातक धन-धान्य से युक्त अथवा धान्य आदि अनाज से जीविकोपार्जन करने वाला होता है।

यदि सूर्य मित्र ग्रह के नवमांश में स्थित हो तो जातक लोहे आदि के व्यवसाय से जीविका चलाता है।

यदि धन स्थान में सूर्य अपने शत्रु ग्रह की राशि मे स्थिति हो जातक के पास संचित धन की सैदव कमी बनी रहती है।

यदि धन स्थान में सूर्य अपने शत्रु के नवमांश में स्थित हो जातक नीच जनो की सेवा कर धन कमाता है।

यदि यही सूर्य द्वितीय भाव मे अपनी मूल त्रिकोण राशि मे स्थित हो तो जातक भिक्षावृति से धन कमाता है।

ग्रह_योगो_में_अंशो_का_महत्व

||#ग्रह_योगो_में_अंशो_का_महत्व||                                                दो या दो से ज्यादा ग्रहो के आपसी सम्बन्ध को योग कहते है।मंगल,बुध,गुरु,शुक्र,शनि ये ग्रह अकेले होने पर भी किसी ग्रह से सम्बन्ध न होकर भी एक योग बनाते जिसे पंचमहापुरुष योग बनाते है जिसमे मंगल रूचक योग, बुध भद्र योग, गुरु अंश योग, शुक्र मालव्य योग और शनि शश योग बनाता है।ग्रह योगो में या किसी भी योग में ग्रहो के अंशो का बहुत महत्व होता है।जब कोई दो या दो से ज्यादा ग्रह आपस में युति दृष्टि या अन्य तरह से सम्बन्ध बनाते है तब उनके अंश क्या है, उन ग्रहो के बीच बनने वाले योगो में अंशो का क्या महत्व है यह स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है।ग्रहो के बीच यदि युति सम्बन्ध है मतलब दो या दो से ज्यादा ग्रह एक ही राशि/भाव में बेठे है तब उनके बीच अंशो में अन्तर बहुत ज्यादा नही होना चाहिए वरना उस योग के फल पूरी तरह से फलित नही होते।मान लीजिये चंद्र गुरु की युति किसी राशि में है चंद्र के अंश 4 है और गुरु के अंश 28 है तो तो दोनों के बीच अंशो में 24 अंश की दुरी है जिस कारण दोनों ग्रह एक राशि में होने के बाद भी अंशो में काफी दूर है और दोनों ही ग्रह जिसमे चंद्र लगभग प्रारंभिक अंशो पर है और गुरु आखरी अंशो पर होने से अंशो में कमजोर भी है जिस कारण चंद्र गुरु के योग से बनने वाले गजकेसरी योग के फल पूरी तरह से ठीक मात्रा में फलित नही होंगे चाहे यह योग गुरु चंद्र की उच्च राशि, स्वराशि में मित्र राशि आदि बली राशि में क्यों न हो।अब यदि चंद्र 10अंश और गुरु 17 अंशो पर है तो दोनों के बीच अंशो में ज्यादा दुरी नही है इस कारण गुरु चंद्र अपनी बली राशि और शुभ भाव में है तब बहुत ठीक और शुभ फल गुरु चंद्र युति(गजकेसरी योग) के मिलेंगे।इसमें एक बात और ध्यान रखने वाली है कोई भी योग हो उस पर अन्य ग्रहो का अशुभ प्रभाव, योग पीड़ित नही होना चाहिए। सूर्य के प्रभाव से अन्य ग्रह अस्त हो जाते है कोई भी ग्रह सूर्य से युति सम्बन्ध बनाने पर सूर्य के बहुत नजदीक अंशो पर नही होना चाहिए और न अंशो में बहुत दूर क्योंकि अंशो में सूर्य के बहुत नजदीक ग्रहो के होने से वह अस्त हो जाते है और कोई शुभ योग सूर्य के साथ कोई ग्रह बनाएगा भी तो वह फलित नही होगा और अस्त का दोष लगेगा।इसी तरह कोई भी ग्रह किसी ग्रह के साथ योग न भी बना रहा हो तब भी वह ग्रह बहुत प्रारंभिक या बहुत आखरी अंशो में नही होना चाहिए वरना ऐसा ग्रह अपने भाव स्वामित्व/ कारक सम्बंधित फल नही दे पाता है।कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह बहुत कम या बहुत ज्यादा अंशो पर हो तो ठीक रहता है क्योंकि ऐसा ग्रह अपने अशुभ फल ज्यादा नही दे पाएगा।इस तरह कोई भी अनुकूल शुभ फल देने वाला, योग बनाने वाले ग्रह अंशो में बली होने चाहिए जो ग्रह अंशो में बहुत कमजोर है उनका मन्त्र जाप, पूजा पाठ ग्रह योग कारक या शुभ भावेश है तो उसका रत्न पहनना ठीक रहता है।अकारक भाव के स्वामी ग्रह अंशो में कमजोर हो तो उनके रत्न नही पहनने चाहिए।

लग्न में उच्च के शुक्र का फल


〰〰〰〰〰〰〰
लग्न में उच्च के शुक्र का फल
〰〰〰〰〰〰〰〰〰
यदि लग्न में शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में स्थित हो तो ऐसा जातक सुंदर घुटने एवं पैरों वाला होता है।

यदि यही शुक्र अपने उच्च नवमांश में स्थित हो तो जातक के हाथ पैर सुंदर आकर-प्रकार वाले होते है।

यदि शुक्र लग्न में षडवर्ग शुद्ध हो तो जातक के शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग आनुपातिक रूप से उपयुक्त आकर-प्रकार वाले होते है।

लग्न में नीचस्थ शुक्र का फल
〰〰〰〰〰〰〰〰〰
यदि लग्न में शुक्र अपनी नीच राशि कन्या में स्थित हो तो ऐसे जातक के सर पर बालो की मात्रा कम होती है।

यदि यही शुक्र अपने नीच नवमांश में हो तो ऐसा जातक गंजा होता है।

यदि लग्न का शुक्र पाप ग्रहों के वर्ग में आया हो तो ऐसे जातक के शरीर पर रोमावलिया (रोएं की पंक्तियां होती है)।

लग्न में मित्र क्षेत्री शुक्र का फल
〰〰〰〰〰〰〰〰〰
यदि लग्न में शुक्र अपने मित्र ग्रह की राशि मे स्थित हो तो ऐसा जातक सौभाग्यशाली व सुंदर कीर्तिवान होता है।

यदि लग्न में शुक्र अपने मित्र के नवमांश में स्थित हो तो ऐसे जातक के नाखून सुंदर आकर वाले होते है।

यदि लग्न में यही शुक्र वर्गोतगं नवमांश में हो तो जातक विविध रूप धारण करने वाला कोई अभिनेता होता है।

लग्न में शत्रु क्षेत्री शुक्र का फल
〰〰〰〰〰〰〰〰〰
यदि लग्न में शुक्र अपने शत्रु ग्रह की राशि मे स्थित हो तो जातक का शरीर कुबड़ा होता है।

यदि लग्न में शुक्र अपने शत्रु ग्रह के नवमांश में हो तो ऐसे जातक के शरीर से  दुर्गंध आती है एवं शरीर पतला होता है।

यदि लग्न में शुक्र अपनी मूल त्रिकोण राशि मे स्थित हो तो जातक आकृति व व्यक्तित्त्व सभी की प्रसन्न करने वाली होती है।

जानिए कहाँ खर्च होगा आपका धन

जानिए कहाँ खर्च होगा आपका धन
 
द्वितीय भाव धन व आर्थिक स्थिति को बताता है। इससे परिवार सुख व पैतृक संपत्ति की भी सूचना मिलती है। द्वितीय भाव में जो राशि होती है, उसका स्वामी द्वितीयेश कहलाता है। इसे धनेश भी कहते हैं।

1.धनेश लग्न में होने से परिवार से प्रेम रहता है, आर्थिक व्यवहार में पटुता हासिल होती है।

2.धनेश धन स्थान में हो तो परिवार का उत्कर्ष होता है व आर्थिक स्थिति हमेशा अच्‍छी रहती है।

3.धनेश तृतीय में हो तो भाई-बहनों की उन्नति व लेखन से आर्थिक लाभ का सूचक है।

4.धनेश चतुर्थ में हो तो माता-पिता से सतत सहयोग व लाभ मिलता है, चैन से जीवन बीतता है।

5.धनेश पंचम में हो तो कला से धनार्जन, संतान के लिए सतत खर्च करना पड़ता है।

6.धनेश षष्ठ में हो तो कमाया गया धन बीमारियों के लिए खर्च होता है, अतिविश्वास से धोखा होता है।

7.धनेश सप्तम में हो तो पत्नी/पति व घर के लिए ही सारा धन खर्च होता रहता है।

8.धनेश अष्टम में हो तो गलत तरीके से पैसा कमाने की वृत्ति रहती है व उससे आरोप-प्रत्यारोप लगते हैं।

9.धनेश नवम में हो तो आर्थिक योग उत्तम, व्यवसाय के लिए दूर की यात्रा के योग आते हैं।

10.धनेश दशम में होने पर नौकरी से लाभ, पैतृक संपत्ति भरपूर मिलती है।

11.धनेश ग्यारहवें स्थान में होने पर मित्र-संबंधियों से सतत सहयोग व लाभ मिलता है।

12.धनेश व्यय में हो तो बीमारी, कोर्ट-कचहरी में धन व्यय होता है। दान-धर्म में भी खर्च होता है।

कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?

कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?

जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के १२ बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।

दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है। चंद्र राहु का शत्रु है। अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।
कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की संभावना रहती है।

कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहु का शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।

जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अतः मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं।

दिन व रात के १२ बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं। शनि व राहु इनके शत्रु हैं, अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की द्योतक है। अतः जब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावना प्रबल होती है।

मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिए ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर ही पड़ता है।
यहां ऊपरी हवाओं से संबद्ध ग्रहों, भावों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत है।


 विशेष तौर पर शनि राहु केतु एवं मंगल की दशा में यह प्रभाव देखा जा सकता है

जब आपका बच्चा जिद्दी और झूठ बोलने लगे तो इसके लिये क्या उपाय करें

जब आपका बच्चा जिद्दी और झूठ बोलने लगे तो इसके लिये क्या उपाय करें *
*बच्चे जिस टेबल पर पढ़ाई करता हैं उस टेबल पर पर चांदी की कटोरी में जल भरकर रख दे , या अगर चांदी की कटोरी नहीं है तो किसी स्वच्छ बर्तन में पानी भरकर उसमें चांदी का एक टुकड़ा या चांदी का एक सिक्का दाल दे , बच्चे की एकाग्रता बढ़ेगी , उसे बैचैनी से शान्ति मिलेगी ।*
*यदि माता पिता को अगर इस चीज का पता चलता ही की बच्चा झूठ बोल रहा है तो उसके सिरहाने धतूरे की जड़ को चांदी के तार में लपेटकर रख दे ।*
*आवला और ब्राम्ही का सेवन बच्चे को करवाये इससे बच्चे का आत्मबल कमजोर नहीं होगा।*
*अगर बच्चा गलत आदत और संगत के कारण झूठ बोल रहा है तो लाल या काले धागे में यह बात सोचते हुए की " मै मेरे बच्चे को झूठ बोलने से बचाना चाहती/चाहता हूँ" 11 गांठे लगा ले और बच्चे के गले में पहन दे ।।*
*यदि कोई बच्चा जरूरत से ज्यादा जिद करे व घर में उछल कूद के साथ कीमती सामानों की तोड़ फोड़ करने पर उतारू रहे तो चांदी का चंद्रमा बनवाकर उसे पूर्णिमा की रात्रि में शुद्ध कच्चा दूध या गंगा जल में डूबाकर ¬ सों सोमाय नमः का एक माला जपकर आकाश के चंद्रमा को दिखाते हुए बच्चे के गले में पहना दें। यदि नजर लगती हो तो काले धागे में भी पहना सकते हैं। वैसे सामान्यतः सफेद धागा में पहनाएं, बच्चे का जिद्दीपन दूर हो जाएगा।*
*बच्चा जिद्दी हो तो मोर पंख छत के पंखे के पंखों पर लगा दे ताकि पंखा चलने पर मोर के पंखो की भी हवा बच्चे को लगे धीरे-धीरे हठ व जिद्द कम होती जायेगी॥*
*बच्चे को मस्तक पर केसर का टीका या हल्दी का टीका लगाना भी शुभ होता हैं, इससे बच्चे को अनुशासन आयेगा ।*
*घर मे पढ़ाई के कक्ष मै माँ सरस्वती की एक मूर्ति या फोटो अवश्य लगावे,और बच्चे से वँहा एक दीपक रोज जलवाए ।*
*सुबह उठते ही बच्चे को अपने धर्म अनुसार गायत्री मन्त्र ,नवकार मन्त्र आदि का पूर्व दिशा की और मुख करके हाथो को देखकर बोलने की आदत डाले ।*
*नियमित रूप से सूर्य देव को ताम्बे के लौटे से जल अर्पित करने से बच्चे का मनोबल बढ़ेगा ,और आँखों की रौशनी भी बढ़ेगी ।*
*हर पूर्णिमा को चांदी के बर्तन से चन्द्रमा को कच्चे दूध का अर्घ्य देने से बच्चे का मन शांत रहेगा और क्रोध एवम् जिद मे कमी आयगी ।*
*जिन लोगो या बच्चों का मंगल राहु केतु या शनि खराब होंगे वह उनको शान्ति से कभी नहीं बैठने देंगे , हमेशा बैचैनी रहेगी , जीवन में अच्छे फल नहीं लेने देंगे , निजी जीवन के साथ साथ रिश्तों में खट्टास आती रहेगी ।बच्चे मै एकाग्रता की कमी आती हैं, पढ़ाई मे मन भटकता हैं । ऐसे में गंगाजल का दान करें , चाहे मंदिर में या चाहे मित्र या परिवार में , अगर बच्चा झूठ बोलता है तो उसके हाथ से दान करवाए । साथ ही पानी का अपव्यय नही होने देlसूर्य नमस्कार, मेडीटेशन और योगासन से चंचल बच्चों का मन शांत होता है।*
*योग के जरिए जिद्दी बच्चों को ठीक किया जा सकता है और जिन बच्चों को बहुत गुस्सा आता हैं उनके गुस्से को नियंत्रित करने में योग बहुत लाभदायक है।*

दुर्घटनाओं को रोकने के लिए उपाय

दुर्घटनाओं को रोकने के लिए उपाय *
*कुंडली बताती हे दुर्घटना योग (एक्सीडेंट के कारण) —*
*युवावस्था यानी जोश-खरोश, एडवेंचर और ढेर-सी रिस्क लेना- नया पहनने-ओढ़ने के साथ तेज रफ्तार से वाहन चलाना यह सभी प्रमुख शौक होते हैं। नए से नया वाहन लेना यह हरेक का सपना होता है मगर क्या चाहने भर से या केवल सपना देखने से वाहन सुख मिलता है।नहीं! वाहन सुख के लिए भी ग्रह योगों का प्रबल होना जरूरी है। यदि चतुर्थ भाव प्रबल हो, वीनस की राशि हो या शुक्र की दृष्टि में हो तो नया व मनचाहा वाहन प्राप्त होता है।*
*यदि चतुर्थ भाव में शनि की राशि हो और शनि यदि नीचस्थ या पाप प्रभाव में हो तो सेकंडहैंड वाहन मिलता है।*
*यदि चतुर्थ का स्वामी लग्न, दशम या चतुर्थ में हो तो माता-पिता के सहयोग से, उनके नाम का वाहन चलाने को मिलता है।*
*चतुर्थेश यदि कमजोर हो तो वाहन सुख या तो नहीं मिलता या फिर दूसरे का वाहन चलाने को मिलता है।*
*चतुर्थेश युवावस्था में हो (डिग्री के अनुसार) तो वाहन सुख जल्दी मिलता है, वृद्ध हो तो देर से वाहन सुख मिलता है।*
*वाहन की खराबी : चतुर्थेश यदि पाप ग्रह हो, कमजोर हो, पाप प्रभाव में हो तो वाहन प्राप्त होने पर भी बार-बार खराब हो जाता हैं। मंगल खराब हो तो (चतुर्थेश होकर) इंजन में गड़बड़ी, शनि के कारण कल-पुर्जों में खराबी, राहु की खराबी से टायर पंचर होना व अन्य ग्रहों की कमजोरी से वाहन की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी आना दृष्टिगत होता है।*
*दुर्घटना योग : वाहन है तो दुर्घटना, चोट-खरोंच का भय बना ही रहता है। यदि सेंटर हाउस का स्वामी, लग्न, अष्टम भाव मजबूत है मगर तीसरा भाव या उसका स्वामी कमजोर हो तो वाहन के साथ छोटी-मोटी टूट-फूट हो सकती है, व्यक्ति को भी छोटी-मोटी चोट लग सकती है।*
*यदि लग्न व सेंटर हाउस का स्वामी दोनों पाप प्रभाव में हो, तीसरा भाव खराब हो मगर अष्टम भाव मजबूत हो तो दुर्घटना तो होती है, मगर जान को खतरा नहीं रहता।*
*यदि अष्टम भाव व तीसरा भाव कमजोर हो तो भयंकर दुर्घटना के योग बन हैं जिससे जान पर भी बन सकती है।*
*शनि के कारण दुर्घटना में पैरों पर चोट लग सकती है, जब कि मंगल सिर पर चोट करता है।*
*उपाय : यदि कुंडली में एक्सीडेंट योग दिखें तो उस प्लेनेट को मजबूत करें, वाहन जीवन भर सावधानी से चलाएँ और वाहन के रख-रखाव का विशेष ध्यान रखें। इंश्योरेंस अवश्य कराएँ।*
*विशेष : वाहन सुख प्राय: चतुर्थेश की दशा-महादशा-अंतरदशा में प्राप्त होता है। उसी तरह दुर्घटना योग भी तृतीयेश-अष्टमेश की दशा-महादशा में बनते है अत: पूर्वानुमान कर सावधानी बरती जा सकती है।क्या आप बार-बार दुर्घटनाग्रस्त होते हैं?*
*दुर्घटना का जिक्र आते ही जिन ग्रहों का सबसे पहले विचार करना चाहिए वे हैं शनि, राहु और मंगल यदि जन्मकुंडली में इनकी स्थिति अशुभ है (6, 8, 12 में) या ये नीच के हों या अशुभ नवांश में हों तो दुर्घटनाओं का सामना होना आम बात है।*
*शनि : शनि का प्रभाव प्राय: नसों व हड्डियों पर रहता है। शनि की खराब स्थिति में नसों में ऑक्सीजन की कमी व हड्डियों में कैल्शियम की कमी होती जाती है अत: वाहन-मशीनरी से चोट लगना व चोट लगने पर हड्डियों में फ्रैक्चर होना आम बात है। यदि पैरों में बार-बार चोट लगे व हड्डी टूटे तो यह शनि की खराब स्थिति को दर्शाता है।*
*क्या करें : शनि की शांति के उपाय करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। मद्यपान और माँसाहार से पूर्ण परहेज करें। नौकरों-कर्मचारियों से अच्छा व्यवहार करें। शनि न्याय का ग्रह है इसलिए न्याय का रास्ता अपनाएँ, परिवार से विशेषत: स्त्रियों से संबंध मधुर रखें।*
*राहु : राहु का प्रभाव दिमाग व आँखों पर रहता है। कमर से ऊपरी हिस्से पर ग्रह विशेष प्रभाव रखता है। राहु की प्रतिकूल स्थिति जीवन में आकस्मिकता लाती है। दुर्घटनाएँ, चोट-चपेट अचानक लगती है और इससे मनोविकार, अंधापन, लकवा आदि लगना राहु के लक्षण हैं। पानी, भूत-बाधा, टोना-टोटका आदि राहु के क्षेत्र में हैं।*
*क्या करें : गणेश जी व सरस्वती की आराधना करें। अवसाद से दूर रहें। सामाजिक संबंध बढ़ाएँ। रिस्क न लें। खुश रहें व बातें न छुपाएँ।*
*मंगल : मंगल हमारे शरीर में रक्त का प्रतिनिधि है। मंगल की अशुभ स्थिति से बार-बार सिर में चोट लगती है। खेलते-दौड़ते समय गिरना आम बात है और इस स्थिति में छोटी से छोटी चोट से भी रक्त स्राव होता जाता है। रक्त संबंधी बीमारियाँ, मासिक धर्म में अत्यधिक रक्त स्राव भी खराब मंगल के लक्षण हैं। अस्त्र-शस्त्रों से दुर्घटना होना, आक्रमण का शिकार होना इससे होता है।*
*क्या करें : मंगलवार का व्रत करें, मसूर की दाल का दान करें। उग्रता पर नियंत्रण रखें। मित्रों की संख्या बढ़ाएँ। मद्यपान व माँसाहार से परहेज करें। अपनी ऊर्जा को रचनात्मक दिशा दें।*
*कब-कब होगी परेशानी : जब-जब इन ग्रहों की महादशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा आएगी, तब-तब संबंधित दुर्घटनाओं के योग बनते हैं। इसके अलावा गोचर में इन ग्रहों के अशुभ स्थानों पर जाने पर, स्थान बदलते समय भी ऐसे कुयोग बनते हैं अत: इस समय का ध्यान रखकर संबंधित उपाय करना नितांत आवश्यक है।*
*एक्सीडेंट के योग भी बताती है कुंडली*
*आज की दौड़-भाग वाली जिंदगी में सभी को कहीं ना कहीं पहुंचने की जल्दी होती है। आवागमन को और अधिक सुगम बनाने वाले वाहनों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।*
*कहीं जल्दी पहुंचने के चक्कर में लोग वाहन तेज गति से चलाते हैं। इसी वजह से दुर्घटनाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। जरा सी लापरवाही जीवन के खतरनाक होती है। कुछ लोगों पूरी सावधानी के साथ चलते हैं फिर भी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में कुछ ग्रह दुर्घटना से संबंधित बताए गए हैं।*
*ज्योतिष शास्त्र से जाना जा सकता है यदि किसी के साथ वाहन दुर्घटना या अन्य कोई एक्सीडेंट से नुकसान होने के योग हों। मंगल, शनि, राहु या सूर्य इनमें से कोई एक ग्रह अष्टम स्थान मे हो तथा इन पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तब दुर्घटना के योग बनाते हैं। इन चारों ग्रहों में से कोई एक ग्रह भी पाप ग्रह के साथ हो तो सड़क दुर्घटना का भय रहता है।*
*पितृ दोष का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है, पितृदोष भी दुर्घटना का कारण होता हैं। स्त्री की पत्रिका में उसके पति की आयु का विचार अष्टम भाव से होता है। नवांश कुंडली मे सूर्य-मंगल यदि एक दूसरे पर दृष्टि रखते हों तो भी सड़क दुर्घटना का खतरा बनता है। राहु की महादशा हो तथा सूर्य या चंद्र अष्टम स्थित हो, तो भी यह खतरा बना रहता है। द्वितीय भाव दूषित होने पर भी यह खतरा मंडराता है।*
*दुर्घटना के योग बचने के लिए अष्टम भाव में स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं। श्री हनुमानजी का पूजन करें। शिवजी का अभिषेक करें। वाहन चलाते समय पूरी सावधानी रखें और यातायात के नियमों का पालन करें।*
*जन्म पत्रिका से भी जाना जा सकता है दुर्घटनाओं के बारे में। यदि हमें पूर्व से जानकारी हो जाए तो हम संभलकर उससे बच सकते हैं। दुर्घटना तो होना है लेकिन क्षति न पहुँच कर चोट लग सकती है। जिस प्रकार हम चिलचिलाती धूप में निकलें और हमने छाता लगा रखा हो तो धूप से राहत मिलेगी, उसी प्रकार दुर्घटना के कारणों को जानकर उपाय कर लिए जाएँ तो उससे कम क्षति होगी।*
*इसके लिए 6ठा और 8वाँ भाव महत्वपूर्ण माना गया है। इनमें बनने वाले अशुभ योग को ही महत्वपूर्ण माना जाएगा। किसी किसी की पत्रिका में षष्ठ भाव व अष्टमेश का स्वामी भी अशुभ ग्रहों के साथ हो तो ऐसे योग बनते हैं।*
*वाहन से दुर्घटना के योग के लिए शुक्र जिम्मेदार होगा। लोहा या मशीनरी से दुर्घटना के योग का जिम्मेदार शनि होगा। आग या विस्फोटक सामग्री से दुर्घटना के योग के लिए मंगल जिम्मेदार होगा। चौपायों से दुर्घटनाग्रस्त होने पर शनि प्रभावी होगा। वहीं अकस्मात दुर्घटना के लिए राहु जिम्मेदार होगा। अब दुर्घटना कहाँ होगी? इसके लिए ग्रहों के तत्व व उनका संबंध देखना होगा।*
*षष्ठ भाव में शनि शत्रु राशि या नीच का होकर केतु के साथ हो तो पशु द्वारा चोट लगती है।*
*षष्ठ भाव में मंगल हो व शनि की दृष्टि पड़े तो मशीनरी से चोट लग सकती है।*
*अष्टम भाव में मंगल शनि के साथ हो या शत्रु राशि का होकर सूर्य के साथ हो तो आग से खतरा हो सकता है।*
*चंद्रमा नीच का हो व मंगल भी साथ हो तो जल से सावधानी बरतना चाहिए।*
*केतु नीच का हो या शत्रु राशि का होकर गुरु मंगल के साथ हो तो हार्ट से संबंधित ऑपरेशन हो सकता है।*
*शनि-मंगल-केतु अष्टम भाव में हों तो वाहनादि से दुर्घटना के कारण चोट लगती है।*
*वायु तत्व की राशि में चंद्र राहु हो व मंगल देखता हो तो हवा में जलने से मृत्यु भय रहता है।*
*अष्टमेश के साथ द्वादश भाव में राहु होकर लग्नेश के साथ हो तो हवाई दुर्घटना की आशंका रहती है।*
*द्वादशेश चंद्र लग्न के साथ हो व द्वादश में कर्क का राहु हो तो अकस्मात मृत्यु योग देता है।*
*मंगल-शनि-केतु सप्तम भाव में हों तो उस जातक का जीवनसाथी ऑपरेशन के कारण या आत्महत्या के कारण या किसी घातक हथियार से मृत्यु हो सकती है।*
*अष्टम में मंगल-शनि वायु तत्व में हों तो जलने से मृत्यु संभव है।*
*सप्तमेश के साथ मंगल-शनि हों तो दुर्घटना के योग बनते हैं।*
*इस प्रकार हम अपनी पत्रिका देखकर दुर्घटना के योग को जान सकते हैं। यह घटना द्वितीयेश मारकेश की महादशा में सप्तमेश की अंतरदशा में अष्टमेश या षष्ठेश के प्रत्यंतर में घट सकती है।*
*उसी प्रकार सप्तमेश की दशा में द्वितीयेश के अंतर में अष्टमेश या षष्ठेश के प्रत्यंतर में हो सकती है। जिस ग्रह की मारक दशा में प्रत्यंतर हो उससे संबंधित वस्तुओं को अपने ऊपर से नौ बार विधिपूर्वक उतारकर जमीन में गाड़ दें यानी पानी में बहा दें तो दुर्घटना योग टल सकता है।*

मुकदमें में विजय पाने के कुछ खास उपाय!!

मुकदमें में विजय पाने के कुछ खास उपाय!!

1. जब भी आप अदालत में जाएँ तो किसी भी हनुमान मंदिर में धूप अगरबत्ती जलाकर, लड्डू या गुड चने का भोग लगाकर एक बार हनुमान चालीसा और बजरंग बान का पाठ करके संकटमोचन बजरंग बलि से अपने मुकदमे में सफलता की प्रार्थना करें .........आपको निसंदेह सफलता प्राप्त होगी ।

2. आप जब भी अदालत जाएँ तो गहरे रंग के कपड़े ही पहन कर जाएँ ।

3. अपने अधिवक्ता को उसके काम की कोई भी वास्तु जैसे कलम उपहार में अवश्य ही प्रदान करें ।

4. अपने कोर्ट के केस की फाइलें घर में बने मंदिर धार्मिक स्थान में रखकर ईश्वर से अपनी सफलता, अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करें ।

5. यदि ग्यारह हकीक पत्थर लेकर किसी मंदिर में चदा दें और कहें की मैं अमुक कार्य में विजय होना चाहता हूँ तो निश्चय ही उस कार्य में विजय प्राप्त होती है ।

6. यदि आप पर कोई मुसीबत आन पड़ी हो कोई रास्ता न सूझ रहा हो या आप कोर्ट कचहरी के मामलों में फँस गए हों, आपका धैर्य जबाब देने लगा हो, जीवन केवल संघर्ष ही रह गया हो, अक्सर हर जगह अपमानित ही महसूस करते हों, तो आपको सात मुखी, पंचमुखी अथवा ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने चाहियें ।

7. मुकदमे में विजय हेतु कोर्ट कचहरी में जाने से पहले ५ गोमती चक्र को अपनी जेब में रखकर , जो स्वर चल रहा हो वह पाँव पहले कोर्ट में रखे अगर स्वर ना समझ आ रहा हो तो दाहिना पैर पहले रखे , मुकदमे में निर्णय आपके पक्ष में होने की संभावना प्रबल होगी ।

8. जब आप पहली बार मुकदमें से वापिस आ रहे तो रास्ते में किसी भी मजार में गुलाब का पुष्प अर्पित करते हुए ही अपने निवास पर आएँ ।

9. मुकदमें अथवा किसी भी प्रकार के वाद विवाद में सफलता हेतु लाल ध् सिंदूरी मूँगा त्रिकोण की आक्रति का सोने या तांबे मिश्रित अंगूठी में बनवाकर उसे दाहिने हाथ के अनामिका उंगली में धारण करें , इससे सफलता की संभावना और अधिक हो जाती है ।

10. मुकदमें में विजय प्राप्ति हेतु घर के पूजा स्थल में सिद्धि विनायक पिरामिड स्थापित करके प्रत्येक बुधवार को गन गणपतए नमो नमः मंत्र का जाप करें । जब भी अदालत जाएँ इस पिरामिड को लाल कपड़े में लपेटकर अपने साथ ले जाएँ ....आपको शीघ्र ही सफलता प्राप्त होगी ।

11. यदि आपका किसी के साथ मुकदमा चल रहा हो और आप उसमें विजय पाना चाहते हैं तो थोडे से चावल लेकर कोर्ट / कचहरी में जांय और उन चावलों को कचहरी में कहीं पर फेंक दें ! जिस कमरे में आपका मुकदमा चल रहा हो उसके बाहर फेंकें तो ज्यादा अच्छा है ! परंतु याद रहे आपको चावल ले जाते या कोर्ट में फेंकते समय कोई देखे नहीं वरना लाभ नहीं होगा ! यह उपाय आपको बिना किसी को पता लगे करना होगा ।

12. अगर आपको किसी दिन कोर्ट कचहरी या किसी भी महत्वपूर्ण काम के लिए जाना हो , तो आप एक कागजी नींबू लेकर उसके चारों कोनो में एक साबुत लौंग गाड़ दें और ईश्वर से अपने कार्यों के सफलता के लिए प्रार्थना करते हुए उसे अपनी जेब में रखकर ही कहीं जाएँ ....उस दिन आपको सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी ।

13. भोज पत्र पर लाल चन्दन से अपने शत्रु का लिखकर शुद्द शहद में डुबोने से शत्रु के मन में आपके प्रति प्रेम और सहानुभूति के भाव जाग्रत हो जाते है।

14. सूर्योदय से पूर्व काले चावल के 11 दाने क्रीं बीज मन्त्र का 21 बार उच्चारण करते हुए दक्षिण दिशा में डाल दें शत्रु का व्यवहार आपके प्रति बदलना शुरू हो जायेगा ।

15. यदि आपको लगता है की आप सही है आपको गलत फंसाया गया है तो आप जब भी अदालत जाएँ लाल कनेर का फूल भिगो कर उसे पीस कर उसका तिलक लगा कर अदालत में जाएँ परिस्थितियाँ आपके अनुकूल होने लगेगी ।

16. एक मुट्ठी तिल में शक्कर मिलाकर किसी सुनसान जगह में ईश्वर से अपने शत्रु पर विजय की प्रार्थना करते हुए डाल दें फिर वापस आ जाएँ पीछे मुड़ कर न देखे शत्रु पक्ष धीरे धीरे शांत हो जायेगा ।

17. जिस दिन न्यायालय जाना हो उस दिन तीन साबुत काली मिर्च के दाने थोड़ी सी शक्कर के साथ मुँह में डालकर चबाते हुए जाएँ, न्यायालय में अनुकूलता रहेगी ।

18. यदि आपके वकील में ही आपके केस में विजय के प्रति संदेह हो, गवाह के मुकरने या आपके विरुद्ध होने का खतरा हो, जज आपके विपरीत हो तो विधि पूर्वक हत्था जोड़ी को अपने साथ ले जाएँ ......आप चमत्कारी परिवर्तन महसूस करेंगे ।

Thursday, October 26, 2017

जन्म पत्रिका में नाजायज संबंध का योग

जन्म पत्रिका में नाजायज संबंध का योग
**********************************
जिस जातक की जन्म पत्रिका मे सप्तम भाव मे शुक्र स्थित होता है तो वह व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता है, यदि सप्तमस्थ शुक्र इस स्थान में अपनी उच्च राशि "मीन" मे हो तो यह योग और प्रबल हो जाता है जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती है। जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता है। यदि जन्म कुंड़ली के सप्तम भाव मे सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है। यदि जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि मे मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि मे स्थित होकर सप्तम भाव मे स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती है।
जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता है व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है। उक्त ग्रह दोष के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता है जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते है। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव मे हो, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता है। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते है।
इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते है। इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली मे इस तरह का योग बन रहा हो उन्हे एक दूसरे कि भावनाओ का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।
*जन्म कुंडली में शुक्र उच्च का होने पर व्यक्ति के कई प्रेम प्रसंगहो सकते हैं, जो कि विवाह के बाद भी जारी रहते हैं।
*सप्तम भाव में मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता हैं स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध भी बनाता है। संतान पक्ष के किये कष्टकारी होता हैं। मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति-पत्नी में दूरियां बढ़ती हैं।
*द्वादश भाव में मंगल शैय्या सुख, भोग, में बाधक होता हैं इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध में प्रेम एवं सामंजस्य का अभाव रहता हैं। यदि मंगल पर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हों, तो व्यक्ति में चारित्रिक दोष और गुप्त रोग उत्पन्न कर सकता हैं। व्यक्ति जीवनसाथी को घातक नुकसान भी कर सकता हैं।
*यदि जन्म कुंडली में सप्तम भाव में शुक्र स्थित व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता हैं जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती हैं। जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता हैं।
*जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है।
*जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि में मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि में स्थित होकर सप्तम भाव में स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती हैं।
*जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है।
*जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता हैं व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है।
उक्त ग्रह दोष के कारणा ऐसा जीवनसाथी मिलता हैं जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते हैं। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते हैं।
जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव में हों, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता हैं। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं। इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते हैं। इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली में में इस तरह का योग बनरहा हों उन्हें एक दूसरे कि भावनाओं का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।

गुरु

1. गुरु यदि लग्न में होतो पूर्वजों की आत्मा का आशीर्र्वाद या दोष दर्शाता है। अकेले में या पूजा करते वक्त उनकी उपस्थिति का आभास होता है। ऐसे व्यक्ति कों अमावस्या के दिन दूध का दान करना चाहिए।

2. दूसरे अथवा आठवें स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में सन्त या सन्त प्रकृति का या और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पडे। ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं के आशीर्वाद रहते है। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृति से समस्त इच्छाएं पूर्व होती हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते है। उत्तरार्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं। उनका जीवन साधारण परंतु सुखमय रहता है और अन्त में मौत को प्राप्त करते है।

3. गुरु तृतीय स्थान पर हो तो यह माना जाता है कि पूर्वजों में कोई स्त्री सती हुई है और उसके आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत होता है किन्तु शापित होने पर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जीवन यापन होता है। कुल देवी या मॉ भगवती की आराधना करने से ऐसे लोग लाभान्वित होते हैं।

4. गुरु चौथे स्थान पर होने पर जातक ने पूर्वजों में से वापस आकर जन्म लिया है। पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन आनंदमय होता है। शापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त पाये जाते हैं। इन्हें हमेशा भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगलमय जीवन की कामना करनी चाहिए।

5. गुरु नवें स्थान पर होने पर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता हैं। ऐसा व्यक्ति माया का त्यागी और सन्त समान विचारों से ओतप्रोत रहता है। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है वह बली, ज्ञानी बनता जाएगा। ऐसे व्यक्ति की बददुआ भी नेक असर देती है।

6. गुरु का दसवें स्थान पर होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म के संस्कार से सन्त प्रवृत्ति, धार्मिक विचार, भगवान पर अटूट श्रळा रखता है। दसवें, नवें या ग्यारहवें स्थान पर शनि या राहु भी है, तो ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्थल, या न्यास का पदाधिकारी होता है या बड़ा सन्त। दुष्टध्प्रवृत्ति के कारण बेइमानी, झूठ, और भ्रष्ट तरीके से आर्थिक उन्नति करता है किन्तु अन्त में भगवान के प्रति समर्पित हो जाता हैं।

7. ग्यारहवें स्थान पर गुरु बतलाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में तंत्र मंत्र गुप्त विद्याओं का जानकार या कुछ गलत कार्य करने से दूषित प्रेत आत्माएं परिवारिक सुख में व्यवधान पैदा करती है। मानसिक अशान्ति हमेशा रहती है। राहू की युति से विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मां काली की आराधना करना चाहिए और संयम से जीवन यापन करना चाहिए।

8. बारहवें स्थान पर गुरु, गुरु के साथ राहु या शनि का योग पूर्वजन्म में इस व्यक्ति द्वारा धार्मिक स्थान या मंदिर तोडने का दोष बतलाता है और उसे इस जन्म में पूर्ण करना पडता है। ऐसे व्यक्ति को अच्छी आत्माएं उदृश्यरुप से साथ देती है। इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ होता है। गलत खान-पान से तकलीफों का सामना करना पड़ता है।

सूर्य ग्रह से संबंधित जानकारी समस्या और उपाय

सूर्य ग्रह से संबंधित जानकारी समस्या और उपाय
🌞ज्योतिष में सूर्य को राजा की पदवी प्रदान की गयी है. ज्योतिष के अनुसार सूर्य आत्मा एवं पिता का प्रतिनिधित्व करता है. सूर्य द्वारा ही सभी ग्रहों को प्रकाश प्राप्त होता है और ग्रहों की इनसे दूरी या नजदीकी उन्हें अस्त भी कर देती है. सूर्य सृष्टि को चलाने वाले प्रत्यक्ष देवता का रूप हैं. कुंडली में सूर्य को पूर्वजों का प्रतिनिधि भी माना जाता है. सूर्य पर किसी भी कुंडली में एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने पर उस कुंडली में पितृ दोष का निर्माण हो जाता है. व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है. सूर्य प्रधान जातक कार्यक्षेत्र में कठोर अनुशासन अधिकारी, उच्च पद पर आसीन अधिकारी, प्रशासक, समय के साथ उन्नति करने वाला, निर्माता, कार्यो का निरीक्षण करने वाला बनता है. बारह राशियों में से सूर्य मेष, सिंह तथा धनु में स्थित होकर विशेष रूप से बलवान होता है तथा मेष राशि में सूर्य को उच्च का माना जाता है. मेष राशि के अतिरिक्त सूर्य सिंह राशि में स्थित होकर भी बली होते हैं. यदि जातक की कुंडली में सूर्य बलवान तथा किसी भी बुरे ग्रह के प्रभाव से रहित है तो जातक को जीवन में बहुत कुछ प्राप्त होता है और स्वास्थ्य उत्तम होता है. सूर्य बलवान होने से जातक शारीरिक तौर पर बहुत चुस्त-दुरुस्त होता है.

*कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य*
कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य शुभ फल देने वाला होता है. सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है. पहला घर सूर्य का ही होता है, इसलिए सूर्य का इस घर में होना अत्यंत शभ फलदायक होता है. ऐसा जातक धार्मिक इमारतों या भवनों का निर्माण और सार्वजनिक उपयोग के लिए कुओं की खुदाई करवाता है. उसकी आजीविका का स्थाई स्रोत अधिकांशत: सरकारी होगा. ईमानदारी से कमाये गये धन में बृद्धि होगी. जातक अपनी आंखों देखी बातों पर ही विश्वास करेगा, कान से सुनी गयी बातों पर नहीं. यदि सूर्य अशुभ है तो जातक के पिता की मृत्यु बचपन में ही हो जाती है. पहले भाव का अशुभ सूर्य और पांचवें भाव का मंगल एक-एक कर संतान की मृत्यु का कारण होता है.

उपाय :
1. जातक को 24 वर्ष से पहले ही शादी कर लेंनी चाहिए.
2. दिन के समय संबंध न बनाएं, इससे पत्नी बीमार रहेगी और मृत्यु भी हो सकती है.
3. अपने पैतृक घर में पानी के लिए एक हैंडपंप लगवाएं.
4. अपने घर के अंत में बाईं ओर एक छोटे और अंधेरे कमरे का निर्माण कराएं.
5. पति या पत्नी दोनों में से किसी एक को गुड़ खाना बंद कर देना चाहिए.

*कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य*
कुंडली के दूसरे भाव का सूर्य यदि शुभ है तो जातक आत्मनिर्भर होगा, शिल्पकला में कुशल और माता-पिता, मामा, बहनों, बेटियो तथा ससुराल वालों का सहयोग करने वाला होगा. यदि चंद्रमा छठवें भाव में होगा तो दूसरे भाव का सूर्य और भी शुभ प्रभाव देगा. आठवें भाव का केतू जातक को अधिक ईमानदार बनाता है. नौवें भाव का राहू जातक को प्रसिद्ध कलाकार या चित्रकार बनता है. नवम भाव का केतू जातक को महान तकनीकी जानकार बनाता है. नवम भाव का मंगल जातक को फैशनेबल बनाता है. यदि सूर्य दूसरे, मंगल पहले और चंद्रमा बारहवें भाव में हो तो जातक की हालत गंभीर हो सकती है और वह हर तरीके से दयनीय होगा. यदि दूसरे भाव में सूर्य अशुभ हो तो आठवें भाव में स्थित मंगल जातक को लालची बनाता है.

उपाय :
1. किसी धार्मिक स्थान में नारियल का तेल, सरसों का तेल और बादाम दान करें.
2. धन, संपत्ति, और महिलाओं से जुड़े विवादों से बचें.
3. दान लेने से बचें, विशेषकर चावल, चांदी, और दूध का दान नहीं लेना चाहिए.

*कुंडली के तीसरे भाव में सूर्य*
कुंडली के तीसरे भाव का सूर्य अगर शुभ है तो जातक अमीर, आत्मनिर्भर होगा और उसके कई छोटे भाई होंगे. जातक पर ईश्वरीय कृपा होगी और वह बौद्धिक व्यवसाय द्वारा लाभ कमाएगा. वह ज्योतिष और गणित में रुचि रखने वाला होगा. यदि तीसरे भाव में सूर्य अशुभ है और कुण्डली में चन्द्रमा भी अशुभ है तो जातक के घर में दिनदहाडे चोरी या डकैती हो सकती है. यदि पहला भाव पीडित है तो जातक के पडोसियों का विनाश हो सकता है.

उपाय :
1. मां को खुश रखते हुए उसका आशिर्वाद लें.
2. दूसरों को चावल या दूध परोसें एवं गरीबों को दान दें.
3. सदाचारी रहें और बुरे कामों से बचने का प्रयास करें.

*कुंडली के चौथे भाव में सूर्य*
चौथे भाव में यदि सूर्य शुभ है तो जातक बुद्धिमान, दयालु और अच्छा प्रशासक होगा. उसके पास आमदनी का स्थिर श्रोत होगा. ऐसा जातक मरने के बाद अपने वंशजों के लिए बहुत धन और बडी विरासत छोड जाता है. यदि चंद्रमा भी सूर्य के साथ चौथे भाव में स्थित है तो जातक किसी नये शोध के माध्यम से बहुत धन अर्जित करेगा. ऐसे में चौथे भाव या दसवें भाव का बुध जातक को प्रसिद्ध व्यापारी बनाता है. यदि सूर्य के साथ बृहस्पति भी चौथे भाव में स्थित है तो जातक सोने और चांदी के व्यापार से अच्छा मुनाफा कमाता है. यदि शनि सातवें भाव में हो तो जातक को रतौंधी या आंख से संबंधित अन्य रोग हो सकता है. यदि सूर्य चौथे भाव में पीडित हो और मंगल दसवें भाव में हो तो जातक की आंखों में दोष हो सकता है लेकिन उसकी किस्मत कमजोर नहीं होगी.

उपाय :
1. जातक को चाहिए कि जरूरतमंद और अंधे लोगों को दान दें और खाना बांटें.
2. लोहे और लकड़ी के साथ जुड़ा व्यापार कदापी न करें.
3. सोने, चांदी और कपड़े से सम्बंधित व्यापार लाभकारी रहेंगे.

*कुंडली के पांचवें भाव में सूर्य*
यदि सूर्य पांचवें भाव में शुभ है तो निश्चित ही जातक के परिवार तथा बच्चों की प्रगति और समृद्धि होगी. यदि पांचवें भाव में कोई सूर्य का शत्रु ग्रह स्थित है तो जातक को सरकार जनित परेशानियों का सामना करना पडेगा. यदि मंगल पहले अथवा आठवें भाव में हो एवं राहू या केतू और शनि नौवें और बारहवें भाव में हो तो जातक राजसी जीवन जीता है. यदि गुरु नौवें या बारहवें भाव में स्थित है तो जातक के शत्रुओं का विनाश होगा लेकिन यह स्थिति जातक के बच्चों के लिए ठीक नहीं है. यदि पांचवें भाव का सूर्य अशुभ है और बृहस्पति दसवें भाव में है तो जातक की पत्नी जीवित नहीं रहती और चाहे जितने विवाह करें पत्नियां मरती जाएंगी.

उपाय :
1. ऐसे जातक को संतान पैदा करने में देरी नहीं करनी चाहिए.
2. घर (मकान) के पूर्वी भाग में ही रसोई घर का निर्माण करें.
3. लगातार 43 दिनों तक सरसों के तेल की कुछ बूंदे जमीन पर गिराएं.

*कुंडली के छठे भाव में सूर्य*
यदि सूर्य छठे भाव में शुभ हो तो जातक भाग्यशाली, क्रोधी तथा सुंदर जीवनसाथी वाला होता है. यदि सूर्य छठे भाव में हो, चंद्रमा, मंगल और बृहस्पति दूसरे भाव में हो तो परंपरा का निर्वाह करना फायदेमंद रहता है. यदि सूर्य छ्ठे भाव में हो और सातवें भाव में केतू या राहू हो तो जातक का एक पुत्र होगा और 48 सालों के भाग्योन्नति होगी. यदि दूसरे भाव में कोई भी ग्रह न हो तो जातक को जीवन के 22वें साल में सरकारी नौकरी मिलने के योग बनते हैं. यदि सूर्य अशुभ हो तो जातक के पुत्र और ननिहाल के लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड सकता है. जातक का स्वास्थ भी ठीक नहीं रहेगा.

उपाय :
1. कुल परम्परा और धार्मिक परम्पराओं कड़ाई से पालन करें अन्यथा परिवार की प्रगति और प्रसन्नता नष्ट हो जायेगी.
2. घर के आहाते (परिसर) में भूमिगत भट्टियों का निर्माण कदापि न करें.
3. रात में भोजन करने के बाद रसोई की आग और स्टोव आदि को दूध का छिड़काव करके बुझाएं.
4. अपने घर के परिसर में हमेशा गंगाजल रखें और बंदरों को गुड़ और चना खिलाएं.

*कुंडली के सातवें भाव में सूर्य*
सातवें भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ है और यदि बृहस्पति, मंगल अथवा चंद्रमा दूसरे भाव में है तो जातक सरकार में मंत्री जैसा पद प्राप्त करता है. बुध उच्च का हो या पांचवें भाव में हो अथवा सातवां भाव मंगल का हो तो जातक के पास आमदनी का अंतहीन श्रोत होगा. यदि सातवें भाव में स्थित सूर्य हानिकारक हो और बृहस्पति, शुक्र या कोई और अशुभ ग्रह ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो तथा बुध किसी भी भाव में नीच हो तो जातक की मौत किसी मुठभेड में परिवार के कई सदस्यों के साथ होती है. सातवें भाव में हानिकारक सूर्य हो और मंगल या शनि दूसरे या बारहवें भाव में स्थित हो तथा चंद्रमा पहले भाव में हो तो जातक को कुष्ट या ल्यूकोडर्मा जैसे चर्म रोग हो सकते हैं.

उपाय :
1. ऐसे जातक नमक का उपयोग कम मात्रा में करें.
2. किसी भी काम को शुरू करने से पहले मीठा खाएं और उसके बाद पानी जरूर पियें.
3. भोजन करने से पहले रोटी का एक टुकड़ा रसोई घर की आग में डालें.
4. काली अथवा बिना सींग वाली गाय को पालें और उसकी सेवा करें, सफेद गाय ना पालें.

*कुंडली के आठवें भाव में सूर्य*
आठवें भाव स्थित सूर्य यदि अनुकूल हो तो उम्र के 22वें वर्ष से सरकार का सहयोग मिलता है. ऐसा सूर्य जातक को सच्चा, पुण्य और राजा की तरह बनाता है. कोई उसे नुकसान पहुंचाने में सक्षम नहीं होता. यदि आठवें भाव स्थित सूर्य अनुकूल न हो तो दूसरे भाव में स्थित बुध आर्थिक संकट पैदा करेगा. जातक अस्थिर स्वभाव, अधीर और अस्वस्थ्य रहेगा. ऐसा जातक ईमानदार होता है किसी की भी बातों में आ जाता है, जिससे कभी-कभी उसे नुकसान भी होता है.

उपाय :
1. ऐसे जातक को चाहिए कि वह घर में कभी भी सफेद कपड़े न रखे.
2. जातक का घर दक्षिण मुखी न हो. उत्तरमुखी घर अत्यधिक फायदे पहुंचाने वाला हो सकता है.
3. हमेशा किसी भी नये काम को शुरू करने से पहले मीठा खाकर  पानी पिना फायदेमंद होगा.
4. यदि संभव हो तो किसी जलती हुई चिता में तांबे के सिक्के डालें और बहती नदी में गुड़ बहाएं.

*कुंडली के नौवें भाव में सूर्य*
नवमें भाव स्थित सूर्य यदि अनुकूल हो तो जातक भाग्यशाली, अच्छे स्वभाव वाला, अच्छे पारिवारिक जीवन वाला और हमेशा दूसरों की मदद करने वाला होगा. यदि बुध पांचवें घर में होगा तो जातक का भाग्योदय 34 साल के बाद होगा. यदि नवें भाव स्थित सूर्य अनुकूल न हो तो जातक बुरा और अपने भाइयों के द्वारा परेशान किया जाएगा. सरकार से अरुचि और प्रतिष्ठा की हानि हो सकती है. ऐसा जातक भाई के साथ सुखी नहीं रहेगा.

उपाय :
1. उपहार या दान के रूप में चांदी की वस्तुएं कभी स्वीकार न करें. अपितु चांदी की वस्तुएं दान करें.
2. ऐसे जातक को पैतृक बर्तन और पीतल के बर्तन नहीं बेचना चाहिए.
3. अत्यधिक क्रोध और अत्यधिक कोमलता से बचें रहना चाहिए.

*कुंडली के दसवें भाव में सूर्य*
दसवें भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ हो तो सरकार से लाभ और सहयोग मिल सकता है. जातक का स्वास्थ्य अच्छा और वह आर्थिक रूप से मजबूत होगा. जातक को सरकारी नौकरी, वाहनों और कर्मचारियों का सुख मिलता रहेगा. ऐसा जातक हमेशा दूसरों पर शक करता है. यदि दसवें भाव में स्थित सूर्य हानिकारक हो और शनि चौथे भाव में हो तो जातक के पिता की मृत्यु बचपन में हो जाती है. सूर्य दसवें भाव में हो और चंद्रमा पांचवें घर में हो तो जातक की आयु कम होगी. यदि चौथे भाव में कोई ग्रह न हों तो जातक सरकारी सहयोग और लाभ से वंचित रह जाएगा.

उपाय :
1. ऐसे जातक को चाहिए कि कभी भी काले और नीले कपड़े न पहनें.
2. किसी नदी या नहर में लगातार 43 दिनों तक तांबें का एक सिक्का डालना अत्यंत शुभ फल देगा.
3. जातक का मांस मदिरा के सेवन से बचें रहना फायदेमंद होगा.

*कुंडली के ग्यारहवें भाव में सूर्य*
यदि ग्यारहवें भाव में स्थित सूर्य शुभ है तो जातक शाकाहारी और परिवार का मुखिया होगा. जातक के तीन बेटे होंगे औए उसे सरकार से लाभ मिलेगा. ग्यारहवें भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ नहीं है और चंद्रमा पांचवें भाव में है और सूर्य पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो यह जातक की आयु को कम करने वाली होती है.

उपाय :
1. ऐसे जातक को चाहिए कि वह मांसहार और शराब के सेवन से बचे.
2. जातक को रात में सोते समय बिस्तर के सिरहने बादाम या मूली रखकर सोना चाहिए.
3. दूसरे दिन उस बादाम या मूली को मंदिर में दान करने से आयु और संतान सुख मिलता है.

*कुंडली के बारहवें भाव में सूर्य*
यदि बारहवें भाव में स्थित सूर्य शुभ हो तो जातक 24 साल के बाद अच्छा धन कमाएगा और जातक का पारिवारिक जीवन अच्छा बितेगा. यदि शुक्र और बुध एक साथ हो तो जातक को व्यापार से लाभ मिलता है और जातक के पास आमदनी के नियमित स्रोत होते हैं. यदि बारहवें भाव का सूर्य अशुभ हो तो जातक अवसाद ग्रस्त, मशीनरी से आर्थिक हानि उठाने वाला और सरकार द्वारा दंडित किया जाने वाला होगा. यदि पहले भाव में कोई और पाप ग्रह हो तो जातक को रात में चैन की नींद नहीं आएगी.

उपाय :
1. जातक को हमेशा अपने घर में एक आंगन रखना चाहिए.
2. ऐसे जातक को चाहिए कि वह हमेशा धार्मिक और सच्चा बने.
3. ऐसे जातक को अपने घर में एक चक्की रखना चाहिए.
4. अपने दुश्मनों को हमेशा क्षमा करें.
उपरोक्त जानकारी पुस्तक से प्राप्त करके पोस्ट की गई है अतः समस्त विद्वानों से निवेदन है उक्त पोस्ट के संबंध में अपने मत अनुसार त्रुटियों को दूर करते हुए मार्गदर्शन करने की कृपा करें l🙇

Wednesday, October 25, 2017

ज्योतिषीय दृष्टि में पितृदोष

ज्योतिषीय दृष्टि में पितृदोष *
*बहुत बार देखने में आया है कि लोग धर्म परायण जीवनयापन करते है। ऐसे लोग दिन की शुरूआत ईश्वर स्मरण, देव आदि की पूजा-पाठ, मन्त्र जाप, मंदिर/ शिवालय आदि जाकर करते है। वह निरंतर तीर्थ यात्राएं भी करते रहते है। सदाचारी जीवनयापन करते है। झूठादि से परहेज रखते है। मांस-मदिरा, परस्त्री गमन से सर्वदा दूर रहते है। किसी का बुरा नहीं सोचते, उल्टा दूसरों के भले के बारे में सदैव सोचते रहते है। दूसरों की मदद के लिए हर पल तैयार रहते है। बावजूद इन सबके स्वंय अपने जीवन में संत्रास पीडित-परेशान रहते है। उन्हें अपने जीवन में निरंतर किसी न किसी तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है। एक तरह उनका पूरा जीवन ही अभावों से भरा, दुःख-दर्द, क्लेश, संताप से परिपूर्ण प्रतीत होता है। आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, पारिवारिक दृष्टि से भी इन्हें नाना प्रकार की समास्याओं का सामना करना पड़ता है। पारिवारिक कलह के साथ पति-पत्नी में गहरे मतभेद उत्पन्न होना, तलाक-संबन्ध विच्छेद की नौबत बन जाना, जीवन साथी की असमय मौत तक जैसी अनेक विषमताओं का सामना करता पड़ता है। जीवन की ऐसी विषमताओं के पीछे पित्तरों के श्राप या पितृदोष को प्रमुख कारण माना जाता है।*
*ज्योतिष शास्त्र मेें द्वादश भाव और नवग्रहों की स्थिति के आधार पर पितृदोष का विचार किया जाता है। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार जब कोई गृहस्थ गृहस्थाश्रम का सुख भोगता हुआ अपने ऋषि, देव और अपने पितृजनों के ऋण से मुक्त नहीं होता, तो उसे अगले जन्म में पितृदोष का सामना करता पड़ता है। पितृदोष के प्रभाव से ऐसे लोग विभिन्न तरह के दुःख, दर्द, संताप, भोगते हुए जीवनयापन करते है। ऐसे लोगों के स्वंय या संतान के विवाह में पर्याप्त विलंब होता है या गृहस्थ जीवन मं सदैव कलह-क्लेश ही बना रहता है। इनका जीवन एक तरह एकान्तिक जीवन बनकर रहता है। संतानहीनता भी पितृदोष का प्रमृख कारण है। निर्धन जीवन, निरंतर व्याधि ग्रस्त रहना और अपमानित व कलंकित जीवनयापन करना भी पितृदोष की विवषता है। पितृदोष के कारण इन्हें विभिन्न तरह के ज्ञात और अज्ञात शत्रु भी नाना प्रकार के कष्ट पहुंचाते रहते है।*
*ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में निम्न ग्रह स्थितियां और ग्रह युतियां विद्यमान रहने पर पितृदोष माना जाता है-:*
*जब लग्न भाव पर राहु और शनि आदि के साथ अन्य अशुभ ग्रहों का प्रभाव पड़े, तो वह ग्रह योग पितृदोष बन जाते है।*
*जब लग्नेश नीच राशिस्थ होकर राहु एंव शनि के साथ योग अथवा दृष्टि संबंध बनाकर बैठे, तो यह भी पितृदोष का प्रमुख लक्षण बनता है।*
*अष्टम भाव में इस युति से धन की हानि का सामना करना पड़ता है। आयु घटती है। नवम्, भाग्य स्थान में इस युति के कारण भाग्योन्नति में निरंतर बाधाएं खड़ी होती है। जबकि दशम् या एकादश भाव में इस युति के प्रभाव से कार्य क्षेत्र, व्यवसाय, नौकरी, लाभ, पदोन्नति आदि में बार-बार विघ्न-बाधाएं आती है।*
*चन्द्र-बुध योग या फिर सूर्य-शनि के सम-सप्तक योग में बैठने को भी पितृदोष माना गया है। इसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र संबन्धी विभिन्न ग्रंथों में सैकड़ों योगों का उल्लेख है, जो अपने प्रभाव से पितृदोष का रूप लेकर जातक को नाना प्रकार के कष्ट देकर सताते है और उसके जीवन को दुःख, क्लेश व संताप से भरते है।*
*जन्मांग के नवम् भाव में बृहस्पति और शुक्र की युति बनी हो अथवा दशम् भाव में चन्द्र पर शनि व केतु का प्रभाव हो, तो भी व्यक्ति पितृदोष ग्रस्त रहता है।*
*नवम् भाव में राहु की युति में बृहस्पति बैठे, तो भी पितृदोष के प्रभाव से जातक के भाग्य में उन्नति पर्याप्त विलंब एंव विघ्न-बाधाओं के बाद ही संभव होती है।*
*लग्न व पंचम भाव में शनि, राहु या केतु अथवा मंगल ग्रहों का अशुभ प्रभाव पड़े, तो भी जातक को पितृदोष के कारण संतान हानि अथवा संतान सुख की कमी का सामना करना पड़ता है।*
*सूर्य लग्न एंव सूर्य स्थित राशि स्वामी तथा चन्द्र लग्न एंव चन्द्र स्थित राशि स्वामी, जब राहु, शनि व केतु में से किसी एक या दो ग्रहों के बुरे प्रभाव में फंस जाएं, तो पितृदोष बनता है। सूर्य लग्न या चन्द्र लग्न अथवा उनकी स्थित राशि को भी लग्न स्वभाव माना जाता है। लग्न व लग्नेश किसी भी जन्मांग की आत्मा के रूप में माने जाते है। अतः इनके पीड़ित रहने से जातक/ जातिका को पितृदोष के कारण शारीरिक एंव मानसिक परेशानियों के साथ मानसिक तनाव, डिप्रेशन, अनिद्रा, स्त्री संबन्धी परेशानियां, संतान संबन्धी कष्ट एंव गृहक्लेश का सामना करना पड़ता है। इनके व्यवसाय या कारोवार में भी सदैव अस्थिर स्थितियां बनी रहती है। आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। जहां तक कि अपयश या अपमान भी झेलना पड़ता है।*
*जब किसी जन्मांग में व्यययेश लग्न भाव में, अष्टमेश पंचम भाव में एंव दशमेश अष्टम भाव में विराजमान हो, तो , तो भी पितृदोष जन्य स्थितियां निर्मित होती है। ऐसी स्थिति में जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करने से तो वचिंत रहता ही है, संतान सुख पाने में भी उसे नाना प्रकार की विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अगर नीच बृहस्पति और राहु या शनि का यह योग सप्तम् भाव में बने, तो उसके दाम्पत्य जीवन पर निश्चित कुप्रभाव पड़ता है। इस कारण पति-पत्नी के मध्य कलह, क्लेश का वातावरण बना रहता है। अष्टम भाव में इस युति से धन की हानि का सामना करना पड़ता है। आयु घटती है। नवम्, भाग्य स्थान में इस युति के कारण भाग्योन्नति में निरंतर बाधाएं खड़ी होती है। जबकि दशम् या एकादश भाव में इस युति के प्रभाव से कार्य क्षेत्र, व्यवसाय, नौकरी, लाभ, पदोन्नति आदि में बार-बार विघ्न-बाधाएं आती है।*
*चन्द्र-बुध योग या फिर सूर्य-शनि के सम-सप्तक योग में बैठने को भी पितृदोष माना गया है। इसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र संबन्धी विभिन्न ग्रंथों में सैकड़ों योगों का उल्लेख है, जो अपने प्रभाव से पितृदोष का रूप लेकर जातक को नाना प्रकार के कष्ट देकर सताते है और उसके जीवन को दुःख, क्लेश व संताप से भरते है।*
*पितृदोष शाति के उपाय-:*
*ज्योतिष शास्त्र और कर्मकाण्ड संबन्धी ग्रंथों में पितृदोष निवारण हेतु अनेक तरह के उपाय बताये गए है। इन उपायों को विधिवत् सम्पन्न करने से व्यक्ति को पितृदोष संबन्धी कष्टों से काफी हद तक मुक्ति मिल जाती है।*
*पितृदोष निवारण के लिए अन्य उपायों के साथ-साथ दिवंगत आत्मीयजनों का श्राद्ध कर्म सम्पन्न करना एक अनिवार्य विधान है। श्राद्ध कर्म के रूप में पितृ पूजन, तर्पण, ब्राह्यण भोजन, वस्त्र, फल, अनाज आदि की दान- दक्षिण से पितृ संतुष्ट होते है और अपने कुलजनों पर प्रसन्न होकर उन्हें अपने आर्शीवाद स्वरूप विभिन्न भोग एंव ऐश्वर्यपूर्ण जीवनयापन करने में मदद करते हैं।*

ज्योतिष अनुसार इन कारणों से होती है तंत्र विधा आप पर

ज्योतिष अनुसार इन कारणों से होती है तंत्र विधा आप पर
अक्सर कुछ लोग दुकानों पर और घरों के बाहर नींबू-मिर्च टांगकर रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे हमारे घर और दुकान की बुरी नजरों से रक्षा हो जाती है। वैसे तो यह तंत्र-मंत्र से जुड़ा एक टोटका है, लेकिन इस परंपरा के पीछे मनोविज्ञान से जुड़ी हुई एक वजह भी है।
तंत्र-मंत्र में नींबू, तरबूज, सफेद कद्दू और मिर्च का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है।
सामान्यत: नींबू का उपयोग बुरी नजर से बचने के लिए किया जाता है। बुरी नजर लगने का मुख्य कारण यह है कि जब कोई व्यक्ति किसी दुकान को, किसी चीज को, किसी बच्चे या अन्य इंसान को लगातार अधिक समय देखता रहता है तो उसे बुरी नजर लग जाती है।
आइये समझे ज्योतिष शास्त्र के कुछ नियम :-
*ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य से पितृ दोष, गुरु से
देवदोष, चंद्र व शुक्र से जल छाया, शनि से यम दोष, राहु
व केतु से प्रेत दोष, मंगल से सर्प व शाकिनी दोष, बुध कुल देवता दोष राहु, केतु शनि ऊपरी
हवाओ के प्रबल कारक हैं ।
*चतुर्थेश अष्टम स्थान में हो, चंद्र पाप ग्रह से
दृष्ट हो, तथा शनि,राहु के द्वारा लग्न व लग्नेश
पीड़ित हो तो अनियंत्रित शक्तियो के
द्वारा वह व्यक्ति परेशान रहता हैं ।
*अश्विनि, आद्रा, अश्लेषा, मघा, स्वाती,मूल, शतभिषा में जन्मे जातक पर इनका प्रभाव
बडी जल्दी पडता हैं ।
*राहु तथा अष्टम भाव के मालिक का प्रभाव लग्न,
लग्नेश चतुर्थ भाव व भावेश, तथा नवम भाव पर हो तो
व्यक्ति निश्चित रूपसे प्रभावित होता हैं ,इन पर तंत्र प्रयोग जल्दी होते हैं ।
*लग्न में राहु तथा चंद्र और त्रिकोण में मंगल व शनि
हों, तो जातक पर भूत, प्रेत, तन्त्र-मंत्र या ऊपरी बाधाओ का प्रभाव होता हैं ।
*किसी जातक के पंचम व नवम भाव पर पापी ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक के उपर तांत्रिक प्रभाव होता हैं ।
*अगर जन्म कुण्डली के पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर
ग्रह स्थित हों। जब चन्द्र या राहू की दशा आएगी तब इस योग के होने पर जातक पर भूत-प्रेत या उपरी हवा का प्रकोप शीघ्र होता है,साथ ही तंत्र प्रयोग भी होते हैं ।
*यदि कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल तथा आठवे व द्वादश भाव के मालिक में से कोई
भी दो ग्रह एवम उससे अधिक ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को भूत-प्रेत बाधा या
पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशानी होती हैं ।
*यदि दूसरे भाव में पाप ग्रह हो तथा राहु केतु या मंगल कि दशा हो तो व्यक्ति को कुछ खिला कर उस पर प्रयोग किया जाता हैं ।
इस पोस्ट का मतलब आपको टोना टोटका के प्रति जागरूक करना था ।हर धर्म की अपनी प्रथा,अपने विचार और अपनी मान्यता होती हैं, कई धर्म आज भी टोना, टोटका नही मानते ।लेकिन पुरातन काल से इस विद्या का सदुपयोग,और दुरूपयोग हम इंसान करते आ रहे हैं ।
दरअसल हम इन टोटको के बुरे प्रभाव से बच सकते हैं, आवश्यकता हैं कि हम अपने धर्म का पालन करे, ईश्वर मे आस्था हो, धर्म के प्रति सम्मान हो । हम अपने ईश्वर के प्रति आस्था,विश्वास कम करते हैं, और दूसरे धर्म की बुराई पर ज्यादा ध्यान देते हैं। जो गलत हैं। जिंदगी मे सब कुछ पाने के लिये साधना जरूरी होती हैं, साधना का मतलब ये नही की आप साधू, महात्मा, सन्यासी ,मुनि बन जाओ । इसका मूल मतलब हैं कि किसी एक भगवान को जीवन मे बसा लो ।
आप मंदिर, मस्जिद, चर्च,गुरुद्वारे, समाधि,दरगाह कंही भी जाओ, वो कोई परेशानी नही, पर आपका कोई इष्ट देव होना जरूरी हैं । जैसे पिता एक ही होता हैं लेकिन पिता तुल्य हम किसी सहारे देने वाले को भी मानते हैं। जब आप किसी एक ईश्वर को साध लेते हैं, हर पल मन मे उनका नाम, स्मरण रहता है तो संसार के बड़े से बड़े टोने, टोटके, जादू,मन्त्र का बुरा असर आप पर कभी नही पड सकता।
अगर फिर भी कोई समस्या हो तो आप एक अच्छे ज्योतिषी से सलाह लेकर अपनी समस्या को दूर कर सकते हैं.

Tuesday, October 24, 2017

उच्च का मंगल

उच्च का मंगल
*****************
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मकर राशि में स्थित होने पर मंगल को उच्च का मंगल कहा जाता है जिसका साधारण शब्दों में अर्थ यह होता है कि मकर राशि में स्थित होने पर मंगल अन्य सभी राशियों की तुलना में सबसे बलवान हो जाते हैं। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि कुंडली में उच्च का मंगल सदा शुभ फलदायी होता है जो सत्य नहीं है क्योंकि कुंडली में मंगल का उच्च होना केवल उसके बल को दर्शाता है तथा उसके शुभ या अशुभ स्वभाव को नहीं जिसके चलते किसी कुंडली में उच्च का मंगल शुभ अथवा अशुभ दोनों प्रकार के फल ही प्रदान कर सकता है जिसका निर्णय उस कुंडली में मंगल के शुभ अशुभ स्वभाव को देखकर ही लिया जा सकता है। आज के इस लेख में हम कुंडली के विभिन्न 12 घरों में स्थित होने पर उच्च के मंगल द्वारा प्रदान किये जाने वाले कुछ संभावित शुभ तथा अशुभ फलों के बारे में विचार करेंगे।
कुंडली के पहले घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के पहले घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन से संबंधित शुभ फल दे सकता है विशेषतया तब जब ऐसा शुभ मंगल कुंडली के पहले घर में स्थित होकर कुंडली में शुभ फलदायी मांगलिक योग बनाता हो। इस प्रकार का शुभ उच्च मंगल जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में भी शुभ फल प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक अपने व्यवसाय के माध्यम से बहुत धन कमा सकते हैं। कुंडली के पहले घर में स्थित शुभ मंगल जातक की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने में सहायता कर सकता है जिसके कारण इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातक आर्थिक रूप से समृद्ध अथवा बहुत समृद्ध हो सकते हैं तथा इस प्रकार का शुभ प्रभाव जातक को सुख, सुविधा तथा ऐश्वर्य से युक्त जीवन भी प्रदान कर सकता है। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के पहले घर में स्थित उच्च के मंगल के अशुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएं पैदा हो सकतीं हैं तथा ये समस्याएं उस स्थिति में और भी दुखदायी हो सकतीं हैं जब कुंडली के पहले घर में स्थित ऐसा अशुभ उच्च मंगल कुंडली में मांगलिक दोष का निर्माण कर दे। कुंडली के किसी भी घर में अशुभ उच्च के मंगल द्वारा बनाया गया मांगलिक दोष जातक के वैवाहिक जीवन को बहुत कष्टमय बना सकता है क्योंकि ऐसा अशुभ मंगल उच्च होने के कारण बहुत अधिक बलवान हो जाता है जिसके कारण ऐसे बलवान मंगल द्वारा बनाया गया मांगलिक दोष भी साधारण मांगलिक दोष की तुलना में अधिक बलवान होता है जिसके कारण इस प्रकार के मांगलिक दोष से पीड़ित जातक का एक विवाह तो आसानी से टूट सकता है तथा जातक की शेष कुंडली अनुकूल न होने की स्थिति में जातक के एक से अधिक विवाह भी टूट सकते हैं। कुंडली के पहले घर में स्थित अशुभ उच्च का मंगल जातक के व्यवसायिक क्षेत्र में भी बाधाएं पैदा कर सकता है जिसके कारण इस प्रकार के अशुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को लंबे समय तक व्यवसायहीन रहना पड़ सकता है।
कुंडली के दूसरे घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के दूसरे घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन को बहुत सुखमय बना सकता है, विशेषतया तब जब इस प्रकार का शुभ उच्च मंगल कुंडली में शुभ फलदायी मांगलिक योग बना रहा हो जिसके चलते ऐसे जातक को अपने विवाह से बहुत सुख प्राप्त हो सकता है। कुंडली में इस प्रकार के उच्च मंगल का शुभ प्रभाव जातक को बहुत मात्रा में धन भी प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपने व्यवसाय से बहुत मात्रा में धन कमाने के अतिरिक्त नाम तथा यश भी कमाते हैं। कुंडली के दूसरे घर में स्थित शुभ उच्च का मंगल जातक को बहुत अच्छी अथवा उत्तम संतान भी प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के प्रभाव में आने वाले जातक की संतान जातक की सेवा करने वाली और जातक को सहायता प्रदान करने वाली होती है। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के दूसरे घर में स्थित उच्च के मंगल के अशुभ होने की स्थिति में जातक के विवाह तथा वैवाहिक जीवन में गंभीर अथवा अति गंभीर समस्याएं पैदा हो सकतीं हैं तथा यह समस्याएं उस स्थिति में और भी गंभीर बन सकती हैं जब इस प्रकार का अशुभ उच्च मंगल कुंडली में मांगलिक दोष का निर्माण कर दे। इस प्रकार के मांगलिक दोष से पीड़ित कुछ जातकों का विवाह देरी से अथवा बहुत ही देरी से हो सकता है जबकि इस प्रकार के मांगलिक दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले कुछ अन्य जातकों के 2 या इससे भी अधिक विवाह बहुत बुरी स्थितियों में टूट सकते हैं। कुंडली के दूसरे घर में स्थित अशुभ उच्च का मंगल जातक की आर्थिक स्थिति पर भी अशुभ प्रभाव डाल सकता है जिसके चलते इस प्रकार के अशुभ प्रभाव में आने वाले जातकों को समय समय पर अनचाहे खर्चों से पीड़ित रहना पड़ सकता है जिससे इन जातकों की आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। कुंडली के दूसरे घर में स्थित अशुभ उच्च का मंगल जातक को अनेक प्रकार के रोगों से पीड़ित भी कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के अशुभ प्रभाव में आने वाले विभिन्न जातक भिन्न भिन्न प्रकार के रोगों के कारण लंबे समय तक कष्ट उठा सकते हैं।
कुंडली के तीसरे घर में उच्च का मंगल : कुंडली के तीसरे घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक को स्वस्थ तथा बलवान शरीर प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक सामान्यतया जीवन भर स्वस्थ तथा सक्रिय रहते हैं। इस प्रकार का शुभ प्रभाव जातक को बहुत साहस, पराक्रम तथा शौर्य प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के उच्च मंगल के शुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातक युद्ध कला में बहुत प्रवीण हो सकते हैं तथा पुलिस बल, सेना बल अथवा ऐसी किसी अन्य संस्था में कार्यरत हो सकते हैं जहां इन्हें अपने शौर्य प्रदर्शन का भरपूर अवसर प्राप्त हो सके। कुंडली के तीसरे घर में स्थित शुभ उच्च के मंगल के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी साहस, आशा तथा प्रयत्न का साथ नहीं छोड़ते तथा अपनी निरंतर संघर्ष करते रहने की क्षमता के कारण विकट से विकट परिस्थितियों में से भी निकल कर अनुकूल परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार के जातक सामान्यतया बहुत अच्छे मित्र भी सिद्ध होते हैं तथा विपत्ति में फंसे अपने किसी मित्र की सहायता करने के लिए ऐसे जातक अपने प्राणों को संकट में भी डाल सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के तीसरे घर में स्थित उच्च के मंगल के अशुभ होने की स्थिति में जातक को अपने विरोधियों तथा शत्रुओं के कारण बहुत विकट परिस्थितियों तथा संकटों का सामना करना पड़ सकता है तथा ऐसे जातक के विरोधी अथवा शत्रु जातक को हानि पहुंचाने के लिए समय समय पर जातक के विरुद्ध षड़यंत्र रचते रहते हैं। कुंडली के तीसरे घर में स्थित अशुभ उच्च मंगल के प्रभाव में आने वाले जातकों को अपने मित्रों, सहयोगियों अथवा भाईयों के कारण भी संकट अथवा हानि का सामना करना पड़ सकता है तथा कुछ स्थितियों में इस प्रकार के अशुभ प्रभाव के कुंडली में बहुत प्रबल होने पर जातक का कोई करीबी मित्र या जातक का सगा भाई भी जातक के साथ विश्वासघात करके उसे गंभीर आर्थिक हानि पहुंचा सकता है अथवा उसे किसी अन्य प्रकार के गंभीर संकट में डाल सकता है।
कुंडली के चौथे घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के चौथे घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक के विवाह तथा वैवाहिक जीवन पर शुभ प्रभाव डाल सकता है जिसके चलते जातक का वैवाहिक जीवन बहुत सुखमय तथा आनंदमय बन सकता है तथा यह संभावनाएं उस स्थिति में और भी बलवान हो जातीं हैं जब कुंडली में स्थित ऐसा शुभ उच्च का मंगल कुंडली में शुभ फलदायी मांगलिक योग बनाता हो। इस प्रकार का शुभ उच्च मंगल जातक को सुंदर तथा धनी पत्नी प्रदान कर सकता है तथा ऐसे शुभ प्रभाव में आने वाले जातकों को अपने जीवन में अनेक प्रकार के सुखों, सुविधाओं तथा साधनों आदि की प्राप्ति होती है जिसके चलते इन जातकों का जीवन सुविधापूर्वक तथा आनंदमय होता है। कुंडली के चौथे घर में स्थित शुभ उच्च का मंगल जातक को विभिन्न प्रकार के सुविधापूर्वक वाहन, आलीशान घर, सुख सुविधा के अन्य साधन तथा बहुत से अन्य लाभ प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक अपने व्यवसायिक जीवन में भी सफल अथवा बहुत सफल रहते हैं। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के चौथे घर में स्थित उच्च के मंगल के अशुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर सकता है तथा जातक के वैवाहिक जीवन में आने वाली मुसीबतें उस स्थिति में और भी बढ़ सकतीं हैं जब इस प्रकार का अशुभ उच्च मंगल कुंडली में मांगलिक दोष बनाता हो। इस प्रकार के मांगलिक दोष के दुष्प्रभाव में आने वाले जातक का विवाह किसी कठोर अथवा बहुत कठोर स्वभाव वाली अथवा बुरे आचरण वाली स्त्री के साथ हो सकता है जो अपने स्वभाव और आचरण के चलते जातक के वैवाहिक जीवन को बहुत कष्टमय अथवा नर्क समान बना सकती है। कुंडली के चौथे घर में स्थित अशुभ उच्च के मंगल का दुष्प्रभाव जातक की मानसिक शांति पर अशुभ प्रभाव डाल सकता है जिसके चलते ऐसे जातक किसी न किसी प्रकार की चिंता के कारण मानसिक रूप से पीड़ित तथा अशांत ही रहते हैं।
कुंडली के पांचवें घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के पांचवें घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक की आर्थिक समृद्धि पर शुभ प्रभाव डाल सकता है जिसके चलते इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक आर्थिक रूप से समृद्ध अथवा बहुत समृद्ध हो सकते हैं। इस प्रकार का शुभ प्रभाव जातक को रचनात्मक विशेषताएं भी प्रदान कर सकता  है जिसके चलते ऐसे जातक रचनात्मकता से जुड़े व्यवसायिक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। कुंडली के पांचवें घर में स्थित शुभ उच्च का मंगल जातक को आध्यात्म तथा परा विज्ञान जैसे क्षेत्रों के प्रति रूचि तथा इन क्षेत्रों में विकास करने की क्षमता भी प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के कुछ जातक ज्योतिष, अंक ज्योतिष, वास्तु शास्त्र, हस्त रेखा शास्त्र आदि जैसे क्षेत्रों में भी कार्यरत पाये जा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के पांचवें घर में स्थित उच्च का मंगल अशुभ होने की स्थिति में जातक की शिक्षा पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है जिसके कारण इस प्रकार के कुछ जातक उच्च शिक्षा प्राप्त ही नहीं कर पाते जबकि इस प्रकार के कुछ अन्य जातकों की शिक्षा बहुत रुकावटों के पश्चात ही पूर्ण हो पाती है। कुंडली के पांचवें घर में स्थित अशुभ उच्च के मंगल का प्रभाव जातक को किसी असामान्य प्रेम संबंध में पड़ने के कारण बहुत समस्याएं दे सकता है। उदाहरण के लिए इस प्रकार के कुछ जातक किसी विवाहित स्त्री के साथ प्रेम संबंध स्थापित कर सकते हैं जिसका भेद खुल जाने के कारण इन जातकों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। कुंडली के पांचवें घर में स्थित अशुभ उच्च के मंगल का प्रभाव जातक को स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है तथा इस प्रकार के अशुभ मंगल के प्रबल प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को अपने जीवन में एक से अधिक बार शल्य चिकित्सा अर्थात सर्जरी का सामना करना पड़ सकता है।
कुंडली के छठे घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के छठे घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक को स्वस्थ शरीर तथा लंबी आयु प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के शुभ मंगल के प्रभाव में आने वाले जातक सामान्यतया स्वस्थ ही रहते हैं। कुंडली में उच्च मंगल का इस प्रकार का प्रभाव जातक के व्यवसायिक क्षेत्र में भी शुभ फल प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक विभिन्न व्यवसायिक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। कुंडली के छठे घर में स्थित शुभ उच्च के मंगल का विशिष्ट प्रबल प्रभाव जातक को सरकार में कोई उच्च आधिकारिक पद प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के कुछ जातक राजनीति के माध्यम से भी सरकार में लाभ तथा प्रभुत्व वाला कोई पद प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार के शुभ मंगल के प्रभाव में आने वाले राजनेता सामान्यता जनता के मध्य बहुत लोकप्रिय होते हैं तथा जन समुदाय के समर्थन के कारण ही ऐसे नेता सरकार में प्रभुत्व का कोई पद प्राप्त करते हैं। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के छठे घर में स्थित उच्च के मंगल के अशुभ होने की स्थिति में जातक को अपनी संपत्ति आदि से संबंधित विवादों के चलते लंबे समय तक कोर्ट केसों का सामना करना पड़ सकता है तथा इस प्रकार के अशुभ प्रभाव के कुंडली में बहुत प्रबल होने की स्थिति में जातक को न्यायालय के प्रतिकूल निर्णय के कारण संपत्ति अथवा धन की हानि भी उठानी पड़ सकती है। कुंडली के छठे घर में स्थित अशुभ उच्च के मंगल के प्रभाव के कारण जातक को अपने पिता के माध्यम से आने वाली अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जिसके चलते इस प्रकार के कुछ जातकों को अपने पिता द्वारा लिया गया कर्ज चुकाना पड़ सकता है जबकि कुछ अन्य जातकों को बहुत लंबे समय तक अपने पिता के किसी रोग के उपचार के लिए बहुत धन व्यय करना पड़ सकता है जिससे इन जातकों को धन की कमी का सामना भी करना पड़ सकता है। कुंडली के छठे घर में स्थित अशुभ उच्च के मंगल का दुष्प्रभाव जातक को किसी गंभीर रोग से पीड़ित भी कर सकता है।
कुंडली के सातवें घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के सातवें घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन को बहुत सुखमय बना सकता है, विशेषतया तब जब इस प्रकार का शुभ उच्च मंगल कुंडली में शुभ फलदायी मांगलिक योग बना रहा हो जिसके चलते ऐसे जातक को अपने विवाह से बहुत सुख प्राप्त हो सकता है तथा इस प्रभाव के चलते जातक को ऐसी पत्नी प्राप्त हो सकती है जो एक सहयोगी तथा मित्र की भांति जातक को उसके जीवन के हर कार्य में सहायता प्रदान करती हो जिसके चलते जातक अपने जीवन के अनेक क्षेत्रों में अपनी पत्नी के सहयोग के कारण अपेक्षाकृत अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है। कुंडली के सातवें घर में स्थित उच्च के मंगल का प्रभाव जातक को व्यवहार कुशल तथा लोगों को प्रभावित करने की कला का ज्ञाता बना सकता है जिसके चलते जातक अपने व्यवसायिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। वहीं दूसरी ओर कुंडली के सातवें घर में स्थित उच्च का मंगल अशुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकता है विशेषतया जब इस प्रकार का अशुभ मंगल कुंडली में मांगलिक  दोष का निर्माण करता हो। इस प्रकार के मांगलिक दोष के प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को विभिन्न कारणों के चलते अपनी पत्नी से लंबे समय के लिए दूर रहना पड़ सकता है जबकि इस प्रकार के कुछ अन्य जातकों के वैवाहिक जीवन में वाद विवाद, झगड़े, गाली गलौच तथा शारीरिक हिंसा की भरमार हो सकती है। इस प्रकार का दोष जातक के एक अथवा एक से भी अधिक विवाह तोड़ भी सकता है तथा इन जातकों को अपने पत्नी के द्वारा दी गई शिकायत के कारण पुलिस केस अथवा कोर्ट केस का सामना भी करना पड़ सकता है जिसके कारण इन जातकों को अपयश भी सहन करना पड़ सकता है।
कुंडली के आठवें घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के आठवें घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन को बहुत सुखमय बना सकता है, विशेषतया तब जब इस प्रकार का शुभ उच्च मंगल कुंडली में शुभ फलदायी मांगलिक योग बना रहा हो जिसके चलते ऐसे जातक को अपने विवाह से बहुत सुख प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार के शुभ उच्च मंगल का कुंडली में प्रभाव जातक को व्यवसायिक क्षेत्र में भी शुभ फल प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक अपने व्यवसाय के माध्यम से बहुत धन कमाने में सफल हो सकते हैं। कुंडली के आठवें घर में स्थित शुभ उच्च का मंगल जातक को लंबी आयु भी प्रदान कर सकता है। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के आठवें घर में स्थित उच्च का मंगल अशुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है विशेषतया जब इस प्रकार का अशुभ मंगल कुंडली में मांगलिक दोष बनाता हो। इस प्रकार के अशुभ मांगलिक दोष के प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों का विवाह बहुत देर से होता है जबकि इस प्रकार के अशुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों के विवाह एक के बाद एक टूटते जाते हैं तथा ऐसे जातको के अनेक विवाह टूट सकते हैं और कुछ स्थितियों में इस प्रकार के कुछ जातकों को 2 या 3 विवाह टूटने के बाद जीवन भर अकेले भी रहना पड़ सकता है। कुंडली के आठवें घर में स्थित अशुभ उच्च का मंगल जातक को विभिन्न प्रकार के रोगों से भी पीड़ित कर सकता है तथा ऐसे रोग सामान्यतया लंबे समय तक चलने वाले होते हैं तथा किसी कुंडली में इस प्रकार का प्रभाव बहुत प्रबल होने की स्थिति में जातक को कोई प्राण घातक रोग भी हो सकता है अथवा जातक की किसी दुर्घटना आदि में आकस्मिक मृत्यु हो सकती है।
कुंडली के नौवें घर में उच्च का मंगल : कुंडली के नौवें घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक को विदेशों में ले जा सकता है जिसके चलते इस प्रकार के कुछ जातक स्थायी रूप से विदेश में जाकर ही बस जाते हैं तथा ऐसे जातक विदेश जाकर बहुत सफलता तथा धन प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के शुभ उच्च मंगल का प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन को भी सुखी बना सकता है तथा इस प्रकार के कुछ जातक विदेश में रहने वाली किसी स्त्री के साथ विवाह करके विदेश में ही स्थायी रूप से स्थापित हो जाते हैं। कुंडली के नौवें घर में स्थित शुभ उच्च मंगल का प्रभाव जातक को व्यवसायिक सफलता भी प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के प्रभाव में आने वाले कुछ जातक समाज में यश तथा प्रतिष्ठा भी प्राप्त कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के नौवें घर में स्थित उच्च का मंगल अशुभ होने की स्थिति में जातक के व्यवसायिक क्षेत्र पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है जिसके चलते जातक को अपने व्यवसायिक क्षेत्र में अनेक प्रकार की रुकावटों, बाधाओं, असफलताओं तथा धन की हानि का सामना करना पड़ सकता है तथा ये समस्याएं उस स्थिति में और भी गंभीर हो जातीं हैं जब इस प्रकार का अशुभ उच्च मंगल कुंडली में पित्र दोष का निर्माण कर रहा हो। इस प्रकार के पित्र दोष के प्रभाव में आने वाले जातक को अपने व्यवसाय के माध्यम से धन हानि के अतिरिक्त अपने द्वारा किये हुए किसी अनुचित कार्य के चलते बहुत अपयश अथवा बदनामी का सामना भी करना पड़ सकता है तथा इस प्रकार का पित्र दोष कुंडली में प्रबल होने की स्थिति में जातक अपने किसी अनुचित कार्य के चलते अपने पूरे परिवार की बहुत बदनामी करवा सकता है।
कुंडली के दसवें घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के दसवें घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक को स्वस्थ शरीर तथा लंबी आयु प्रदान कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक सामान्य से लंबी आयु तक जीवित रहते हैं। कुंडली में इस प्रकार के उच्च मंगल का शुभ प्रभाव जातक को व्यवसायिक सफलता भी प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के कुछ जातक व्यवसाय में बहुत सफल होने के कारण नाम, यश, प्रसिद्धि तथा प्रतिष्ठा भी अर्जित कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के दसवें घर में स्थित उच्च के मंगल के अशुभ होने की स्थिति में जातक को अपने व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जिसके चलते इस प्रकार के कुछ जातकों को अपने आप को व्यवसायिक रूप से स्थापित करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ सकता है, बहुत सी रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है तथा बहुत बार असफलता का सामना भी करना पड़ सकता है जबकि इस प्रकार के अशुभ प्रभाव में आने वाले कुछ अन्य जातकों को अपने व्यवसाय के माध्यम से समय समय पर धन की हानि सहन करनी पड़ सकती है। कुंडली के दसवें घर में स्थित अशुभ उच्च का मंगल जातक के वैवाहिक जीवन पर भी दुष्प्रभाव डाल सकता है जिसके चलते इस प्रकार के अशुभ प्रभाव में आने वाले जातकों को अपने वैवाहिक जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कुंडली के ग्यारहवें घर में उच्च का मंगल : किसी कुंडली के ग्यारहवें घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक को धन लाभ प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के शुभ मंगल के प्रभाव में आने वाले जातक को उस स्थिति में बहुत अधिक धन की प्राप्ति हो सकती है जब ऐसा शुभ उच्च का मंगल कुंडली के ग्यारहवें घर में धन योग का निर्माण कर दे जिसके कारण जातक के आय के एक से अधिक स्तोत्र हो सकते हैं तथा जातक को अपने जीवन मे निरंतर धन की प्राप्ति होती रहती है। इस प्रकार के शुभ उच्च मंगल के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक व्यापार के माध्यम से करोड़ों रुपये कमा सकते हैं तथा ऐसे जातक बहुत बड़े व्यापारिक साम्राज्य की स्थापना भी कर सकते हैं और अपनी व्यापारिक सफलता के कारण ऐसे जातक बहुत बड़े स्तर पर प्रसिद्धि भी प्राप्त कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के ग्यारहवें घर में स्थित उच्च के मंगल के अशुभ होने की स्थिति में जातक को अपने व्यवसाय में बहुत सी रुकावटों तथा समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है तथा इस प्रकार के कुछ जातकों को अपने आप को व्यवसायिक रूप से स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास तथा बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। इस प्रकार के अशुभ उच्च मंगल के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को अपने वैवाहिक जीवन में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है तथा इनमें से कुछ जातकों को विभिन्न कारणों के चलते अपनी पत्नियों से लंबे समय के लिए दूर भी रहना पड़ सकता है जिसके कारण इन जातकों के वैवाहिक सुख में कमी आ सकती है।
कुंडली के बारहवें घर में स्थित उच्च का मंगल : किसी कुंडली के बारहवें घर में स्थित उच्च का मंगल शुभ होने की स्थिति में जातक को व्यवसायिक उद्देश्य से विदेश ले जा सकता है तथा इस प्रकार के शुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातक व्यवसायिक आधार पर विदेश जाकर स्थायी रूप से वहीं बस सकते हैं और ऐसे जातक विदेशों में व्यवसाय स्थापित करके बहुत धन कमाने में सफल भी हो जाते हैं। इस प्रकार के शुभ उच्च मंगल का प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन को सुखमय बना सकता है तथा यह संभावना उस स्थिति में और भी बढ़ जाती है जब ऐसा शुभ उच्च मंगल कुंडली के बारहवें घर में स्थित होकर शुभ फलदायी मांगलिक योग बना रहा हो जिसके प्रभाव के कारण जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय तथा सफल रहता है। वहीं दूसरी ओर, कुंडली के बारहवें घर में स्थित उच्च के मंगल के अशुभ होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं आ सकतीं हैं तथा यह समस्याएं उस स्थिति में और भी गंभीर हो सकतीं हैं जब इस प्रकार का अशुभ उच्च का मंगल कुंडली में मांगलिक दोष का निर्माण कर दे। इस प्रकार के मांगलिक दोष के दुष्प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को अपने व्यवसाय अथवा किसी अन्य कारण के चलते अपनी पत्नी से बहुत लंबे समय तक दूर रहना पड़ सकता है जबकि इस प्रकार के कुछ अन्य जातकों को अपने वैवाहिक जीवन में तर्क वितर्क, वाद विवाद, मनमुटाव, लड़ाई, झगड़े आदि जैसी समस्याओं का नियमित रूप से सामना करना पड़ सकता है तथा इनमें से कुछ जातकों का विवाह टूट भी सकता है। कुंडली के बारहवें घर में स्थित अशुभ उच्च का मंगल जातक को विभिन्न प्रकार के रोगों से पीड़ित भी कर सकता है

जन्म कुंडली के कुछ विशिष्ट योग एवं इनका फल

जन्म कुंडली के कुछ विशिष्ट योग एवं इनका फल

द्विभार्या योग? राहू लग्न में पुरुष राशि (सिंह के अलावा) में हो अथवा 7वें भाव में सूर्य, शनि, मंगल, केतु या राहू में से कोर्इ भी दो ग्रह (युति दृष्टि द्वारा) जुड़ जाएं तो द्विभार्या योग बनता है। (ऐसे में सप्तमेष व द्वादशेश की स्थिति भी विचारनी चाहिए)। अष्टमेश सप्तमस्थ हो तो द्विभार्या योग होता है।

राजयोग? नवमेश तथा दशमेश एकसाथ हो तो राजयोग बनता है। दशमेश गुरू यदि त्रिकोण में हो तो राजयोग होता है। एकादशेश, नवमेश व चन्द्र एकसाथ हो (एकादश स्थान में) तथा लग्नेश की उन पर पूर्ण दृष्ट हो तो राजयोग बनता है। ( राजयोग में धन, यश, वैभव, अधिकार बढ़ते है)

विपरीत राजयोग? 6ठें भाव से 8वें भाव का सम्बन्ध हो जाएं। अथवा दशम भाव में 4 से अधिक ग्रह एक हो जाएं। या फिर सारे पापग्रह प्राय: एक ही भाव में आ जाए तो विपरित योग बनता है। इस राजयोग के भांति यदा तरक्की नही होती जाती। किन्तु बिना प्रयास के ही आकस्मिक रूप से सफलता, तरक्की धन या अधिकार की प्राप्ति हो जाती है।

आडम्बरी राजयोग? कुंडली में समस्त ग्रह अकेले बैठें हो तो भी जातक को राजयोग के समान ही फल मिलता है। किन्तु यह आडम्बरी होता है।

विधुत योग? लाभेश परमोच्च होकर शुक्र के साथ हो या लग्नेश केन्द्र में हो तो विधुत योग होता है। इसमें जातक का भाग्योदय विधुतगति से अर्थात अति द्रुतगामी होता है।

नागयोग? पंचमेश नवमस्थ हो तथा एकादशेश चन्द्र के साथ धनभाव में हो तो नागयोग होता है। यह योग जातक को धनवान तथा भाग्यवान बनाता है।

नदी योग? पंचम तथा एकादश भाव पापग्रह युक्त हों किन्तु द्वितीय व अष्टम भाव पापग्रह से मुक्त हों तो नदी योग बनता है, जो जातक का उच्च पदाधिकारी बनाता है।

विश्वविख्यात योग? लग्न, पंचम, सप्तम, नवम, दशम भाव शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातक विश्व में विख्यात होता है। इसे विश्वविख्याति योग कहते है।

अधेन्द्र योग :- लग्नकुंडली में सभी ग्रह यदि पांच से ग्यारह भाव के बीच ही हों तो अधेन्द्र योग होता है। ऐसी जातक सर्वप्रिय, सुन्दर देहवाला व समाज में प्रधान होता है।

दरिद्र योग? केन्द्र के चारों भाव खाली हों अथवा सूर्य द्वितीय भाव में तथा द्वितियेश शनि वक्री हों और 2, 8, 6, 12 या 3 भाव में हों तो लाख प्रयास करने पर भी जातक दरिद्र ही रहता है।

बालारिष्ट योग? चन्द्रमा 5, 7, 8, 12 भाव में हो तथा लग्न पापग्रहों से युत हो तो बालारिष्ट योग बनता है। अथवा चन्द्रमा 12वें भाव में क्षीण हो तथा लग्न व अष्टम में पापग्रह हों, केन्द्र में भी कोर्इ शुभ ग्रह न हो तो भी बालारिष्ट योग बनता है। बालारिष्ट योग में जातक की मृत्यु बाल्यकाल में ही हो जाती है। अथवा बाल्यवस्था में उसे मृत्यु तुल्य कष्ट झेलना पड़ता है।

मृतवत्सा योग? पंचमेश षष्ठ भाव में गुरू व सूर्य से युक्त हो तो जातक की पत्नी का गर्भ गिरता रहता है। अथवा मृत संतान पैदा होती है। अत: इसे मृतवत्सा योग कहते है।

छत्रभंग योग? राहू, शनि व सूर्य में से कोर्इ भी दो ग्रह यदि दशम भाव पर निज प्रभाव ड़ालते है। और दशमेश सबल न हो तो छत्रंभग योग बनता है। जातक यदि राजा है तो राज्य से पृथक हो जाता है। अन्यथा कार्यक्षेत्र व्यवसाय में अत्यन्त कठिनाइयां व विघ्न आते है, तरक्की नही हो पाती।

चाण्डाल योग? क्रूर व सौम्य ग्रह एक ही भाव में साथ हों तो चाण्डाल योग बनता है। विशेषकर गुरू-मंगल, गुरू-शनि, या गुरू-राहू साथ हों तो। इससे योग के बुरे फल मिलते है। तथा जातक की संगति व सोच दूषित हो जाते है।

सुनफा योग? कुंडली में चन्द्रमा जहां हो उससे अगले भाव में (सूर्य को छोड़कर) यदि कोर्इ भी ग्रह बैठा हो तो सुनफा योग बनता है। इससे जातक का लाभ बढ़ता है। (यदि आगे बैठने वाला ग्रह सौम्य या चन्द्रमा का मित्र है तो शुभ लाभ व फल बढ़ते है। अन्यथा कुछ अपेक्षाकृत कमी आ जाती है)।

महाभाग योग? यदि जातक दिन में जन्मा है। (प्रात: से साय: तक) तथा लग्न, सूर्य व चन्द्र विषम राशि में है। तो महाभाग योग बनता है। यदि रात में जन्मा है। (साय: के बाद प्रात: से पूर्व) तथा लग्न, सूर्य व चंद्र समराशि में है। तो भी महाभाग योग बनता है। यह सौभाग्य को बढ़ाता है।

प्रेम विवाह योग? तृतीय, पंचम व सप्तम भाव व उनके भावेषों का परस्पर दृष्टि युति राशि से संबध हो जाए तो जातकों (स्त्री-पुरूष) में प्रेम हो जाता है। लेकिन यदि गुरू भी इन संबधो में शामिल हो जाए तो उनका प्रेम ‘प्रेम विवाह’ में परिवर्तित हो जाता है। लेकिन तृतीय भाव व तृतीयेश न हो, केवल पंचम, सप्तम भाव व भावेश का ही दृष्टि, युति, राशि संबंध हों और गुरू भी साथ हो तो जातक प्रेम तो करता है, लेकिन जिससे प्रेम करता हेै। उससे विवाह नही करता। भले ही जातक स्त्री हो या पुरूष।

गजकेसरी योग? लग्न या चन्द्र से गुरू केन्द्र में होतथा केवल शुभग्रहों से दृष्टयुत हो, अस्त, नीच व शत्रु राशि में न हो तो गजकेसरी योग होता है। जो जातक को अच्छी पहचान प्रतिष्ठा दिलाता है।

बुधादित्य योग? 10वें भाव में बुध व सूर्य का योग हो। पर बुध अस्त न हो तथा सूर्य मित्र या उच्च का हो तो व्यापार में सफलता दिलाने वाला यह योग बुधादित्य योग के नाम से जाना जाता है।

पापकर्तरी योग? शुभ ग्रह जिस भाव में हो उसके पहले व बाद के भाव में क्रूरपापग्रह हों तो पापकर्तरी योग बनता है। इससे बीच के भाव में बैठा हुआ ग्रह पाप प्रभाव तथा दबाव में आकर पीड़ित होता है। अत: शुभ फल कम दे पाता है, उसी भाव में शुभ ग्रह दो पापग्रहों या दो से अधिक पापग्रहों के साथ बैठे तो पापमध्य योग बनता है।

सरकारी नौकरी अथवा व्यवसाय का योग? जन्मकुंडली में बाएं हाथ पर ग्रहों की संख्या अधिक हो तो जातक नौकरी करता है। दाएं हाथ पर अधिक हों तो व्यापार करता है। सूर्य दाएं हाथ पर हों तो सरकारी नौकरी कराता है। शनि बाएं हाथ पर हो तो नौकरी कराता है। 10 वें घर से शनि व सूर्य का सम्बन्ध हो जाए (दृष्टियुतिराशि से) तो जातक प्राय: सरकारी नौकरी करता है। गुरू व बुध बैंक की नौकरी कराते है। बुध व्यापार भी कराते है। गुरू सुनार का अध्यापन कार्य भी कराता है।

विजातीय विवाह योग? राहू 7वें भाव में हो तो जातक का विवाह प्राय: विजातीय विवाह होता है। (पुरूष राशि में हो तो और भी प्रबल सम्भावनाएं होती है।

चक्रयोग ? यदि किसी कुंडली में एक राशि से छ: राशि के बीच सभी ग्रह हों तो चक्रयोग होता है। यह जातक को मंत्री पद प्राप्त करने वाला होता है।

अनफा योग? यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से पिछले भाव में कोर्इ शुभ ग्रह हों तो अनफा योग बनता है। इससे चुनाव में सफलता तथा अपने भुजाबल से यश, धन प्राप्त होता है।

भास्कर योग? सूर्य से दूसरे भाव में बुध, बुध से 11वें भाव में चन्द्र और चन्द्र से त्रिकोण में गुरू हो तो भास्कर योग होता है। ऐसा जातक प्रखरबुद्वि, धन, यश, रूप, पराक्रम, शास्त्र ज्ञान, गणित व गंधर्व विधा का जानकार होता है।

चक्रवती योग? यदि कुंडली के नीच /पाप ग्रह की राशि का स्वामी या उसकी उच्च राशि का स्वामी लग्न में हो या चन्द्रमा से केन्द्र (1,4,7,10) में हो तो जातक चक्रवती सम्राट या बड़ी धार्मिक गुरूनेता होता है।

कुबेर योग? गुरू, चन्द्र, सूर्य पंचमस्थ, तृतीयस्थ व नवमस्थ हो और बलवान स्थिति में भी हो तो जातक कुबेर के समान धनी व वैभवयुक्त होता है।

अविवाहित / विवाह प्रतिबंधक योग? चन्द्र पंचमस्थ हो या बलहीनअस्तपापपीडित हो तथा 7वें व 12वें भाव में पापग्रह हो तो जातक कुंआरा ही रहता है। शुक्र व बुुध 7वें भाव में शुभग्रहों से दृष्ट न हों तो जातक कुंआरा रहता है। अथवा राहू व चन्द्र द्वादशस्थ हों तथा शनि व मंगल से दृष्ट हों तो जातक आजीवन कुंआरा रहता है। इसी प्रकार सप्तमेष त्रिकस्थान में हो और 6, 8, 12 के स्वामियों में से कोर्इ सप्तम भाव में हो तब भी जातक कुंआरा रहता है। शनि व मंगल, शुक्र व चन्द्र से 180° पर कुंडली में हो तो भी जातक कुंआरा रहता है।

पतिव्रता योग? यदि गुरू व शुक्र, सूर्य या मंगल के नवमांश में हो तो जातक एक पत्नीव्रत तथा महिला जातक पतिव्रता होती है। यदि द्वितीयेश व सप्तमेश नीच राशि में हो परन्तु सभी शुभ ग्रह केन्द्र या त्रिकोण में हो तो स्त्री जातक पतिव्रता तथा जातक एक पत्नीव्रत वाला होता है। बुध यदि गुरू के नवमांश में हों तो भी पतिव्रता योग होता है चन्द्रमा यदि सप्तम भाव में हो (महिला कुंडली) पाप प्रभाव में न हो तों भी स्त्री पति के लिए कुछ भी कर सकने वाली होती है।

अरिश्टभंग योग? शुक्लपक्ष की रात्रि का जन्म हो और छठे या 8वें भाव में चन्द्र हो तो सर्वारिष्ट नाशक योग होता है। जन्म राशि का स्वामी 1, 4, 7, 10 में स्थित हों तो भी अरिश्टनाशक योग होता है। चन्द्रमा, स्वराशि, उच्च राशि या मित्रराशि में हो तो सर्वारिष्ट नष्ट होते है। चन्द्रमा के 10वें भाग में गुरू, 12वें में बुध, शुक्र व कुंडली के 12वें में पापग्रह हों तो भी अरिष्ट नष्ट होते है।

मूक योग? गुरू व षष्ठेश लग्न में हो अथवा बुध व षष्ठेश की युति किसी भी भाव (विशेषकर दूसरे) में हो। अथवा क्रूर ग्रह सनिध में और चन्द्रमा पापग्रहों से युक्त हो। या कर्क, वृश्चिक व मीन राशि के बुध को अमावस्य का चन्द्र सम्बन्ध है। तो मूक योग बनता है। इस योग में जातक गूंगा होता है। विशेष? 8 व 12 राशि पापग्रहों से युक्त हो तथा किसी भी राशि के अंतिम अंशो में वृष राशि का चन्द्र हो तथा चंद्र पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो जातक जीवन भर गूंगा रहता है।

बधिर योग? शनि से चौथे स्थान में बुध हो तथा षष्ठेश त्रिक भावों में हो तो बधिर योग होता है। अथवा पूर्ण चन्द्र व शुक्र साथ बैठे हो तो बधिर योग बनता है। 12वें भाव में बुध-शुक्र की युति 

Saturday, October 21, 2017

कुंडली में वक्री ग्रहों की महादशा, शुभ-अशुभ प्रभाव

कुंडली में वक्री ग्रहों की महादशा, शुभ-अशुभ प्रभाव तथा उनके भाव स्थिति अनुसार उपाय।
वक्रोपगस्य हि दशा भ्रमयति च कुलालचक्रवत्पुरुषम्।
व्यसनानि रिपुविरोधं करोति पापस्य न शुभस्य।
(सारावली)
वक्री ग्रह की दशा में नित्य देशाटन, व्यसन तथा शत्रुओं का विरोध होता है। पापग्रहों की दशा में ही पाप फल का भोग होता है किन्तु शुभ ग्रह यदि वक्री हों तो उसका शुभफल नहीं होता है।
वक्री ग्रह की दशा
जन्मांग में जो ग्रह वक्री पड़ा हो वह अपनी दशा अंतर्दशा में अदभुत प्रभावशाली फल दिया करता है।वक्री ग्रह अपने से बारहवें पर भी प्रभावी होने से दो भावों से संबंधित हो जाता है। अतः नवमस्थ ग्रह वक्री होने पर अष्टम भाव संबंधी फल भी देता है।
वक्री ग्रह की दशा में स्थान्च्युति, धन व सुख की कमी व विदेश/परदेश गमन होता है। वक्री ग्रह यदि शुभ भावोन्मुख हों (केंद्र, त्रिकोण, लाभ व धन भाव) तो सम्मान, सुख, धन व यश की वृद्धि करता है। ध्यान रहे मार्गी ग्रह त्रिक भाव में स्थित हो तो अपनी दशा अंतर्दशा में अभीष्ट सिद्धि में बाधा, व्यवधान व कठिनाई देता है। प्रत्येक ग्रह की एक निश्चित सामान्य चाल है पर कभी ये चाल अनिश्चित हो जाती है।ऐसा प्रतीत होता है मानो ग्रह की गति धीमी पड़ गई है। वह स्तंभित (स्थिर) सा जान पड़ता है फिर वह ग्रह वक्री हो जाता है। पाप ग्रह (मंगल, शनि) वक्री होने पर अधिक पापी हो जाते हैं तो शुभ ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र) भी वक्री होने पर अपनी शुभता में कमी महसूस करते हैं। सूर्य व चंद्र सदा ही मार्गी रहते हैं वे कभी वक्री नहीं होते राहू केतु सदा वक्री रहते हैं वे कभी भी मार्गी नहीं होते।
उदहारण के लिये यदि किसी जन्मांग से गुरु व शनि वक्री होकर लग्न में स्थित हों तो, वक्री गुरु की पाँचवीं दृष्टि कभी चौथे तो कभी कभी पंचम भाव का फल देगी। इसी प्रकार शनि की तीसरी दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ने से वाद-विवाद, परनिंदा में रूचि तो कभी आलस्य, अकर्मण्यता व श्रम विमुखता देगी।
विभिन्न वक्री ग्रहों का प्रभाव
वक्री मंगल
उत्साह, साहस, परिश्रम, पराक्रम व संघर्ष शक्ति का दाता है। वक्री मंगल जातक को असहिष्णु, अति क्रोधी तथा आतंकवादी बना सकता है।
जातक की कार्यक्षमता सृजनात्मक न होकर, विनाशकारी हो जाती है। ऐसा लगता है मानो विधाता ने भूल से विकास की बजाए ललाट पर विनाश ही लिख दिया हो।
अपनी दशा अंतर्दशा में वक्री मंगल वैर विरोध तथा आपसी मतभेद बढ़ाकर शत्रुता व मुकद्दमे बाजी भी दे सकता है।
ऐसा वक्री मंगल यदि जनमंग में दुस्थान (त्रिक भाव ६, ८, १२) में हो तो जातक हठी, जिद्दी व अड़ियल प्रकृति का होता है। भूमि भवन व शौर्य पराक्रम संबंधी उसके कार्य प्रायः आधे अधूरे छूट जाते हैं।
जातक किसी से भी सहयोग करना अपना अपमान समझता है। वह देह बल का अपव्यय कर मानो आत्म पीड़न में सुख पाता है।
मंगल एक उग्र ग्रह है जो जातक को स्वार्थी व पशुवत् बना सकता है। ऐसा जातक आत्मतुष्टि व स्वार्थ सिद्धि के लिये अनुचित व अनिष्ट कार्य करने में तनिक भी संकोच नहीं करता वक्री मंगल की दशा/अंतर्दशा में अग्रिम घटनाएं हो सकती हैं।
वक्री मंगल में सावधानियाँ
वक्री मंगल के अनिष्ट प्रभाव से बचने के लिये निम्नलिखित सावधानियाँ बरतेंA वक्री मंगल की दशा अंतर्दशा में -
अस्त्र-शस्त्र न खरीदें, न ही घर में घातक हथियार रखें।
वाहन व नयी संपत्ति भी न खरीदें तो अच्छा है नये घर में गृह प्रवेश भी, वक्री मंगल की दशा में, अशुभ व अमंगलकारी माना गया है।
यथासंभव ऑपरेशन (सर्जरी) से बचें, क्योंकि ऐसी सर्जरी प्राण घातक हो सकती है।
नया मुकद्दमा शुरू करना भी उचित नहीं, कारण ये धन नाश व मानसिक अशांति देगा।
नया नौकर/कर्मचारी न रखें कोई नया अनुबंध भी न करें।
वक्री मंगल के गोचर में विवाह से बचें।
ध्यान रहे, मंगल वायदा व वचन बद्धता का प्रतीक है। इसका वक्री होना बात से मुकर जाना, छल कपट या धोखे द्वारा हानिप्रद हो सकता है।
वक्री बुध
साधारणतया बुध बुद्धि, वाणी, अभिव्यक्ति, शिक्षा व साहित्य के प्रति लगाव का प्रतीक है। प्रायः बुध अपनी दशा अंतर्दशा में मौलिक चिंतन तथा सृजनात्मक शक्ति बढ़ाकर उत्कृष्ट साहित्य की रचना करता है।
बुध वक्री होने पर अपनी दशा-अंतर्दशा में आंकड़े व तथ्यों पर आधारित लेख व पुस्तक लिखाएगा। जातक अपनी रचना में अंतर्विरोध व परिवर्तन पर अधिक बल देगा कभी तो वह त्रुटिपूर्ण व ग़लत निर्णयों को भी तर्क द्वारा उचित ठहराएगा।
वक्री बुध विचार, भावनाओं व मानसिक प्रवृतियों को प्रभावित कर उनमें क्रांतिकारी मोड़ (बदलाव) देने में सक्षम है। तर्क संगत विश्लेषण से प्रचलित मान्यताओं को ध्वस्त कर जातक मौलिक चिंतन को नयी दिशा दे सकता है।
वक्री गुरु
साधारणतया गुरु ज्ञान, विवेक, प्रसन्नता व दैवीय ज्ञान का प्रतीक है।
जन्मांग में गुरु का वक्री होना, अदभुत दैवी शक्ति या दैवी बल का  प्रतीक है। जिस कार्य को दूसरे लोग असंभव जान कर अधूरा छोड़ देते हैं वक्री गुरु वाला जातक ऐसे ही कार्यों को पूरा कर यश व प्रतिष्ठा पाता है।
अन्य शब्दों में दूसरों की असफलता को सफलता में बदल देना उसके लिये सहज संभव होता है। किसी भी योजना के गुण, दोष, शक्ति व दुर्बलताएं पहचानने की उसमे अदभुत शक्ति होती है।
चतुर्थ भावस्थ वक्री गुरु, साथियों का मनोबल बढ़ा कर, रुके या अटके हुए कार्यों को सफलतापूर्वक सिरे चढ़ाने में दक्षता देता है। जातक की दूरदृष्टि व दूरगामी प्रभावों के आंकलन की शक्ति बढ़ जाती है।
वह जोखिम उठाकर भी प्रायः सफलता प्राप्त करता है। उसकी प्रबंध क्षमता विशेषकर संकटकालीन व्यवस्था चमत्कारी हुआ करती है।
वक्री शुक्र
शुक्र, मान-सम्मान, सुख-वैभव, वाहन, मनोरंजन, पत्नी या दाम्पत्य सुख व मैत्री पूर्ण सहयोग का प्रतीक है। साधारणतया, शुक्र यदि पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट न हो तो, जातक हंसमुख, हास्य-विनोद प्रिय, मिलनसार व पार्टी की जान होता है। उसको देखने भर से ही उदासी भाग जाती है व हँसी-खुशी का वातावरण सहज बन जाता है।
किन्तु शुक्र जब वक्री होता है तो जातक समाज में घुल मिल नहीं पाता। वह एकाकी रहना पसंद करता है।
जातक की अलगाववादी प्रवृति अपने परिवार व परिवेश में अरुचि तथा अनासक्ति बढ़ाती है। कभी गैर पारंपरिक ढंग से भी ऐसा जातक अपना प्यार वात्सल्य दर्शाता है।
यदि किसी जन्मांग में शुक्र वक्री होकर द्वादश भाव (भोग स्थान) में हो तो जातक में भोगों से पृथक रहने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। वह सुख वैभव से विमुख हो कर संन्यासी भी बन सकता है।
वक्री शनि
शनि को काल पुरुष का दुःख माना जाता है। ये प्रायः दुःख-दारिद्र्य, कष्ट, रोग व मनस्ताप देता है।
वक्री शनि जातक को नैराश्य व अवसाद की स्थिति से उबारता है। जातक निराशा के गहन अन्धकार में भी आशा की किरण खोज लेता है।
वक्री शनि अपनी दशा या अंतर्दशा में आत्मरक्षण व अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये, जातक से सभी उचित, अनुचित कार्य करा लेता है कभी तो जातक स्वार्थ सिद्धि के लिये निम्न स्तर तक गिर सकता है।
ऐसा व्यक्ति सभा गोष्ठी में आना जाना या लोगों से अधिक मेल जोल रखना भी पसंद नहीं करता।
अपने अधिकारों के प्रति भी उदासीन रहता है। कोई व्यक्ति अपने कार्यों को गुप्त रख कर सफलता जनित सुख पाता है।

शनि की साढ़ेसाती एवं ढैया के प्रभाव से शांति उपाय


*शनि की साढ़ेसाती एवं ढैया के प्रभाव से शांति उपाय*..

नोट :-  यह उपाय केवल साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव के लिए है इसका उपयोग शनि की महादशा अंतर्दशा या पर अंतर्दशा में ना करें अन्यथा लाभ की जगह नुकसान भी हो सकता है..


 ढाई मीटर काला कपड़ा सूती

 7 दाने काली उड़द

7 दाने काले चने


7 दाने कालीमिर्च

7 दाने साबुत नमक उसके अभाव में आप पिसा हुआ कोई भी नमक भी ले सकते हैं फिर आप अपनी मिडिल फिंगर और अंगूठे की मदद से सात चुटकी नमक डालेंगे

70 ग्राम काले तिल

 70 ग्राम काली सरसो

 एक चमड़े का टुकड़ा छोटा

एक पत्थर का कोयला

एक लोहे की कील

 अब आप काले कपड़े के 40 टुकड़े कर लीजिए किसी एक टुकड़े में यह सारा सामान इन सब को काले कपड़े में बांधकर आप पोटली बना लें यह पोटली संख्या में 40 होनी चाहिए, फिर आप एक पोटली  उठाएं  और  उस पर अपनी मिडिल फिंगर से  7 बार सरसों के तेल का  छीटा मारे,  अपने ऊपर से 7 बार एंटी क्लॉक वाइज  उतार कर उसे किसी नदीया सरोवर में डाली है और पीछे मुड़कर ना देखें आपको ऐसा 40 दिन निरंतर करते रहना है आप देखेंगे कि आप पर से शनि की वक्र दृष्टि या साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव शांत होना आरंभ हो चुका है||


Friday, October 20, 2017

रत्नों से हो सकता है बीमारियों का इलाज

इन रोगों में माना गया है असरदार, रत्नों से हो सकता है बीमारियों का इलाज

रत्न ज्योतिष के अनुसार रत्न सिर्फ कुंडली के ग्रह दोषों को दूर करने के काम नहीं आते हैं, बल्कि इन्हें पहनने से कई तरह के रोगों से भी लड़ने की शक्ति मिलती है। दरअसल, आयुर्वेद में रत्नों की भस्म द्वारा रोग निवारण के अनेक प्रयोग बताए गए हैं। इसका वैज्ञानिक कारण रत्न में उपस्थित विशेष रासायनिक तत्व हैं।
जब इन रत्नों को पहना जाता है तो शरीर पर इनका स्पर्श होता है और लगातार इनमें मौजूद रासायनिक तत्वों के संपर्क में आने से रोग खत्म होते हैं। इसके अलावा सीधे तौर पर इनकी भस्म का सेवन कर लिया जाए तो रोग को जड़ से खत्म किया जा सकता है। आइए जानते हैं कौनसा रत्न किस बीमारी में उपयोगी साबित हो सकता है...
1. पन्ना- स्मरण शक्ति के लिए धारण करें।
2. नीलम- गठिया, मिर्गी, हिचकी और नपुंसकता को खत्म करता है।
3 . फिरोजा- दैविक आपदाओं से बचाने के लिए फिरोजा धारण करें।
4. मरियम- बवासीर या बहते हुए रक्त को रोकने के लिए।
5. माणिक- खून की कमी दूर करने के लिए।
6. मोती- तनाव व नसों से जुड़े रोगों के लिए।
7. किडनी स्टोन- किडनी रोग निवारण के लिए।
8. लाडली- दिल की बीमारियों, बवासीर व नजर रोग के लिए धारण कर सकते हैं।
9. मूंगा, मोती-मुंहासों के लिए धारण करें।
10. पन्ना, नीलम, लाजवर्त-पेप्टिक अल्सर में उपयोगी है।
11. पुखराज, लाजवर्थ, मूनस्टोन- दांतों के लिए।
12. माणिक, मोती, पन्ना- सिरदर्द के लिए।
13. गौमेद या मूनस्टोन- गले की खराबी के लिए।
14. माणिक, मूंगा, पुखराज-सर्दी, खांसी, बुखार जिसे बार-बार होता है, वे धारण कर सकते हैं।
15. मूंगा, मोती, पुखराज- बार-बार होने वाली दुर्घटनाअों से बचने के लिए।
16. तांबे की चेन- कुकुर खांसी के लिए।
17. मूंगा, मोती, पन्ना- मूंगा, मोती, पन्ना एक ही अंगुठी में मोतियाबिंद को खत्म करने के लिए धारण करें।
18. मूंगा, पुखराज- कब्ज मुक्ति के लिए।
19. पन्ना, पुखराज, मूंगा- पन्ना, पुखराज, मूंगा एक ही अंगुठी में ब्रेन ट्यूमर के लिए धारण करें।
20. मोती, पुखराज- चांदी की चेन में हर्निया के लिए धारण करें।
कोई भी रत्न शुभ-अशुभ दोनों प्रकार से फल दे सकता है। इसलिए सुख पाने के लिए अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिषी को दिखाकर ही रत्न धारण करें।

Thursday, October 19, 2017

दीपावली पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के सरल उपाय

दीपावली पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के सरल उपाय
(राशि अनुसार)

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन किए गए उपाय बहुत ही जल्दी शुभ फल प्रदान करते है दीपावली पर राशि अनुसार किए जाने वाले उपाय बहुत ही सरल हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं-

मेष राशि

1. दीपावली की रात लाल चंदन और केसर घिसकर उससे रंगा हुआ सफेद कपड़ा यदि आप अपने गल्ले अथवा तिजोरी में बिछाएंगे तो उससे आपकी समृद्धि में हमेशा वृद्धि होगी तथा आकस्मिक धनहानि का अवसर भी नहीं आएगा।

2. दीपावली की शाम घर के मुख्य दरवाजे पर तेल का दीपक जलाएं तथा उस दीपक में दो काली गुंजा डाल दें तो साल भर आपको आर्थिक रूप से परेशानी नहीं होगी। आपका रुका हुआ धन भी जल्दी ही मिल जाएगा।

3. मेष राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ऐं क्लीं सौ:
************************************************
वृषभ राशि

1. यदि बहुत पैसा कमाने के बावजूद भी आप सेविंग नहीं कर पा रहे हैं तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ कमल के फूल का भी पूजन करें तथा बाद में इस फूल को लाल कपड़े में बांधकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी या लॉकर में रखें।

2. दीपावली की रात गाय के घी के दो दीपक जलाकर उन्हें किसी एकांत स्थान पर अपनी मनोकामना बताते हुए पर रख आएं। शीघ्र ही आपकी हर मनोकामना पूरी होने के योग बनेंगे।

3. वृषभ राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ऐं क्लीं श्रीं
************************************************
मिथुन राशि

1. यदि आप धन की कमी से जूझ रहे हैं तो दीपावली की रात लक्ष्मी-गणेश पूजन करते समय दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करके उसे अपने धन स्थान पर रखें। इससे आपकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आ सकता है।

2. यदि आप कर्ज से परेशान हैं तो लक्ष्मी पूजन के बाद गणेशजी की प्रतिमा को खड़ी हल्दी की माला पहनाएं। इससे आपकी परेशान समाप्त हो सकती है।

3. मिथुन राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं क्लीं ऐं स:
************************************************
कर्क राशि

1. यदि आपको धन लाभ की इच्छा है तो दिवाली की शाम को पीपल के पेड़ के नीचे तेल का पंचमुखी दीपक जलाएं। ये बहुत ही खास और अचूक उपाय है।

2. यदि आप दीपावली पर पीला त्रिकोण आकृति का झंड़ा विष्णु भगवान के किसी मंदिर में ऊंचाई वाले स्थान पर इस प्रकार लगाएं कि वह लहराता रहे तो अगली दिवाली तक आपकी मनोकामना पूरी हो सकती है।

3. कर्क राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं क्ली ऐं श्रीं

सिंह राशि

1. दीपावली की रात घर के मुख्य दरवाजे पर गाय के घी का दीपक जला कर रखें। यदि वह दीपक सुबह तक जलता रहे तो समझें कि अगली दिवाली तक आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा साथ ही मान-सम्मान भी बढ़ेगा।

2. यदि शत्रु आपको परेशान कर रहे हैं तो दीपावली की शाम को पीपल के पत्ते पर अनार की कलम से गोरोचन के द्वारा शत्रु का नाम लिखकर भूमि में दबा दें। इससे आपको शत्रु द्वारा कोई हानि नहीं होगी।

3. सिंह राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ह्रीं श्रीं सौं:

कन्या राशि

1. यदि आपको धन संबंधी कोई समस्या है तो आप दीपावली की रात लाल रूमाल में नारियल बांधकर अपने गल्ले अथवा तिजोरी में रखें। इससे धन लाभ हो सकता है। इसके अलावा दीपावली के दिन दो कमलगट्टे की माला माता लक्ष्मी के मंदिर में अर्पित करें।

2. यदि आपको नौकरी संबंधी कोई समस्या है तो आप दीपावली से शुरू प्रत्येक अमावस्या पर रोज मीठे चावल कौओं को खिलाएं। इससे आपकी समस्या का निदान हो सकता है।

3. कन्या राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं श्रीं ऐं सौं

तुला राशि

1. यदि आपको व्यवसाय में घाटा हो रहा है तो आप दीपावली पर बड़ के पेड़ के पत्ते पर सिंदूर व घी से ऊं श्रीं श्रियै नम: मंत्र लिखें और इसे बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।

2. मां लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के लिए तुला राशि के लोग दीपावली की सुबह स्नान आदि नित्य कर्म करने के बाद किसी लक्ष्मी मंदिर में जाकर 11 नारियल अर्पित करें।

3. तुला राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ह्रीं क्लीं श्रीं

वृश्चिक राशि

1. इस राशि के लोगों को यदि धन की इच्छा है तो वे दीपावली पर अपने घर के बगीचे या बरामदे में केले के दो पेड़ लगाएं तथा इनकी देखभाल करें। इसके फल स्वयं न खाएं, दूसरों को दान करें।

2. यदि परिवार में अशांति है तो दीपावली की रात नागकेसर का फूल लाकर घर में कहीं छिपा दें। जहां उसे कोई देख न सके। परिवार में शांति का परिवार में शांति का वातावरण हो जाएगा।

3. वृश्चिक राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ऐं क्लीं सौ:

धनु राशि

1. इस राशि के लोग धन प्राप्ति के लिए दीपावली के दिन पान के पत्ते पर रोली से श्रीं लिख कर अपने पूजा स्थान पर रखें तथा रोज इसकी पूजा करें।

2. दीपावली की पूजा करते समय माता लक्ष्मी को कमल गट्टे की माला अर्पित करें साथ ही कमल का फूल भी। यह दोनों चीजें माता लक्ष्मी को बहुत प्रिय हैं।

3. धनु राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ह्रीं क्लीं सौ:

मकर राशि

1. काफी समय से यदि धन अटका हुआ है तो दीपावली की रात आक की रुई का दीपक घर के ईशान कोण में जलाएं। इससे रुका हुआ धन मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।

2. यदि विवाह में बाधा आ रही है तो दीपावली पर भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पीला वस्त्र, पीली मिठाई या पीले फल अर्पित करें।

3. मकर राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ऐं क्लीं सौ:

कुंभ राशि

1. धन प्राप्ति के लिए दीपावली की रात नारियल के कठोर आवरण में घी डालकर लक्ष्मीजी के समक्ष दीपक जलाएं। यह दीपक रात भर जलने दें।

2. जीवन साथी के साथ नहीं बनती है तो दीपावली के दिन खीर बनाएं। इसका भोग लक्ष्मी को लगाएं और फिर स्वयं भी खाएं। इससे दांपत्य जीवन में मधुरता आएगी।

3. कुंभ राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं

मीन राशि

1. यदि आपको शत्रु पक्ष से परेशानी हैं तो दीपावली की रात कर्पूर के काजल से शत्रु का नाम लिखकर अपने पैर से मिटा दें। शत्रु आपको परेशान नहीं करेंगे।

2. धन लाभ के लिए दीपावली पर किसी लक्ष्मी मंदिर में जाकर कमल के फूल, नारियल अर्पित करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। इससे आपकी धन की समस्या समाप्त हो सकती है।

3. मीन राशि के लोग दीपावली की रात स्फटिक या कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का जाप करें-
ऊं ह्रीं क्लीं सौ:
सभी मित्रों को दीपावली की हार्दीक शुभकामनाएँ

Wednesday, October 18, 2017

माँ लक्ष्मी- श्री गणेश एकसाथ ,क्यों पूजे जाते हैं

दीवाली पर माँ लक्ष्मी- श्री गणेश एकसाथ ,क्यों पूजे जाते हैं ।
दीवाली भारत का अत्यंत प्राचीन सांस्कृतिक पर्व है। इस दिन हम धन और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी एवं विवेक और बुद्धि के देवता भगवान गणेश की पूजा करते हैं। यह हम सब भली भांती जानते हैं कि कोई भी शुभ कार्य गणेश पूजन के बगैर कभी पूरा नहीं होता। गणेश जी बुद्धि प्रदाता हैं। वे विघ्न विनाशक और विघ्नेश्वर हैं। यदि व्यक्ति के पास खूब धन-सम्पदा है और बुद्धि का अभाव है तो वह उसका सदुपयोग नहीं कर पायेगा। अतः व्यक्ति का बुद्धिमान और विवेक होना भी आवश्यक है।
तभी धन के महत्व को समझा जा सकता है। गणेश का विशाल उदर अधिक सम्पदा का प्रतीक है। और सूँढ कुशाग्र बुद्धि का प्रतीक है। साथ ही इनकी पूजा करने से संकटों का नाश भी होता है। गणेश लक्ष्मी की एक साथ पूजा व दोनों की कृपा के महत्त्व को कई कहानियों के माध्यम से बताया गया है। पौराणिक ग्रन्थों में एक कथा में प्रमाण मिलता है कि लक्ष्मी जी की पूजा गणेश जी के साथ क्यों होती है। आइये जाने कि ऐसा क्यों होता है।
एक बार एक वैरागी साधु को राजसुख भोगने की लालसा हुई उसने लक्ष्मी जी की आराधना की। उसकी आराधना से लक्ष्मी जी प्रसन्न हुईं तथा उसे साक्षात दर्शन देकर वरदान दिया कि उसे उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा। दूसरे दिन वह वैरागी साधु राज दरवार में पहुचा। वरदान मिलने से उसे अभिमान हो गया। उसने राजा को धक्का मारा जिससे राजा का मुकुट नीचे गिर गया। राजा व उसके दरबारीगण उसे मारने के लिए दौड़े। परन्तु इसी बीच राजा के गिरे हुए मुकुट से एक काला नाग निकल कर भागने लगा।
सभी चौंक गये और साधु को चमत्कारी समझकर उस की जय जयकार करने लगे। राजा ने प्रसन्न होकर साधु को मंत्री बना दिया। क्योंकि उसी के कारण राजा की जान बची थी। साधु को रहने के लिए अलग से महल दिया गया वह शान से रहने लगा। राजा को एक दिन वह साधु भरे दरवार से हाथ खीचकर बाहर ले गया। यह देख दरबारी जन भी पीछे भागे। सभी के बाहर जाते ही भूकंप आया और भवन खण्डहर में तब्दील हो गया। उसी साधु ने सबकी जान बचाई। अतः साधु का मान-सम्मान बढ़ गया। जिससे उसमें अहंकार की भावना विकसित हो गयी।
राजा के महल में एक गणेश जी की प्रतिमा थी। एक दिन साधु ने वह प्रतिमा यह कह कर वहाँ से हटवा दी कि यह प्रतिमा देखने में बिल्कुल अच्छी नहीं है। साधु के इस कार्य से गणेश जी रुष्ठ हो गये। उसी दिन से उस मंत्री बने साधु की बुद्धि बिगड़ गई वह उल्टा पुल्टा करने लगा। तभी राजा ने उस साधू से नाराज होकर उसे कारागार में डाल दिया। साधू जेल में पुनः लक्ष्मीजी की आराधना करने लगा। लक्ष्मी जी ने दर्शन दे कर उससे कहा कि तुमने गणेश जी का अपमान किया है। अतः गणेश जी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न करों।
लक्ष्मीजी का आदेश पाकर वह गणेश जी की आराधना करने लगा। इससे गणेश जी का क्रोध शान्त हो गया। गणेश जी ने राजा के स्वप्न में आ कर कहा कि साधु को पुनः मंत्री बनाया जाये। राजा ने गणेश जी के आदेश का पालन किया और साधु को मंत्री पद देकर सुशोभित किया। इस प्रकार लक्ष्मीजी और गणेश जी की पूजा साथ-साथ होने लगी। बुद्धि के देवता गणेश जी की भी उपासना लक्ष्मीजी के साथ अवश्य करनी चाहिए क्योंकि यदि लक्ष्मीजी आ भी जाये तो बुद्धि के उपयोग के बिना उन्हें रोक पाना मुश्किल है।
इस प्रकार दीपावली की रात्रि में लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी की भी आराधना की जाती है।

VASTU TIPS

 VASTU TIPS
            वास्तु मे दिशाओ का बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान होता है प्रत्येक दिशा का अपना एक अलग महत्त्व होता है । वास्तु का उद्देश्य सुख शांति सम्पत्ति प्रसन्नता समृद्धि व विकास प्रदान करना होता है ।दीपावली का समय सुख समृद्धि धन वैभव आदि की प्राप्ति के लिए विशेष मायने रखता है । माँ लझमी जी की पूजा अचॅना के साथ-साथ यदि वास्तु के नियमो को भी ध्यान मे रखा जाये तो सकारात्मक उर्जा के साथ-साथ वास्तु के नियमो के उद्देश्य को पुरा कर सुख शांति सम्पत्ति वृद्धि समृद्धि प्रसन्नता आदि को भी प्राप्त किया जा सकता है ।
1....पूर्व दिशा ....घर की सम्पत्ति एवं तिजोरी पूर्व दिशा मे रखना हमेशा शुभ माना जाता है इस दिशा मे रखने से दौलत एवं सम्पत्ति मे सदैव बढ़ोतरी होती है ।    
2.....पश्चिम दिशा ....पश्चिम दिशा मे धन सम्पत्ति व आभूषण रखे जाये तो सामान्य रुप से शुभ होता है लेकिन ऐसे घर का मुखिया महिला पुरुष मिञो का सहयोग होने के बाद भी बङी कठिनाई के साथ धन कमा पाता है ।    
3.....उत्तर दिशा .....उत्तर दिशा धन सम्पत्ति के लिए विशेष होती है घर की इस दिशा मे नगद रुपया व आभूषण जिस आलमारी मे रखते है वह आलमारी भवन की उत्तर दिशा की कमरे की दझिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिये । इस प्रकार रखने से आलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी जो कुबेर देवता की दिशा है ।इस दिशा मे रखे गये पैसे और आभूषण मे वृद्धि होती रहेगी ।
4....दझिण दिशा ....इस दिशा को समृद्धि के मामले मे शुभ नही माना जाता है । इस दिशा मे धन आभूषण सोना चाँदी आदि रखने से नुकसान तो नही होता लेकिन बढ़ोतरी भी विशेष नही होती है ।  
5....ईशान कोण ....इस कोण मे पैसा धन आभूषण आदि रखा जाता है तो घर का मुखिया बुद्धिमान होता है यदि वह उत्तर ईशान मे रखे तो घर की एक कन्या संतान और पूर्व दिशा मे रखे तो एक पुञ संतान बहुत प्रसिद्ध व बुद्धिमान होती है 6.....आग्नेय कोण .....इस कोण मे धन रखने से धन घटता है क्योंकि घर के मुखिया की आमदानी घर के खर्च से कम होने के कारण अकसर कर्ज की स्थिति बनी रहती है ।    
7....नैतृतव कोण  ....इस कोण मे धन महंगा सामान और आभूषण रखने पर अधिक समय तक उपयोगी व सुरक्षित बने रहते है ।    
8....वायव्य कोण .....इस कोण मे धन रखा है तो खर्च जितना भी आमदानी होना मुश्किल हो जाता है और ऐसे व्यक्ति का बजट हमेशा गङबडाया हुआ रहता है ।  
9....घर की तिजोरी के दरवाज़ा पर बैठी हुई माँ लझमी की फोटो लगाये जिसमे दो हाथी सुङ उठाये हुये खङे हो । तिजोरी वाले कमरे का कलर क्रीम या हलका भूरा रखना शुभ होता है ।