Saturday, August 12, 2017

Kundli me Santan prapti ke yog


Kundli me Santan prapti ke yog

सन्तान प्राप्ति हमारे पूर्व जन्मोपार्जित कर्मों पर आधारित है। अत: हमें नि:सन्तान दम्पत्ति की कुण्डली का अध्ययन करते वक्त किसी एक की कुण्डली का अध्ययन करने की बजाये पति-पित्न दोंनो की कुण्डली का गहन अध्ययन करने के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये। अगर पंचमेश खराब है या पितृदोष, नागदोष व नाड़ीदोष है तब उनका उपाय मन्त्र, यज्ञ, अनुष्ठान तथा दान-पुण्य से करना चाहिये। प्रस्तुत लेख में सन्तान प्राप्ति में होने वाली रूकावट के कारण व निवारण पर प्रकाश डाला गया है। सन्तान प्राप्ति योग के लिये जन्मकुण्डली का प्रथम स्थान व पंचमेश महत्वपूर्ण होता है। अगर पंचमेश बलवान हो व उसकी लग्न पर दृष्टि हो या लग्नेश के साथ युति हो तो निश्चित तौर पर दाम्पत्ति को सन्तान सुख प्राप्त होगा।

यदि सन्तान के कारक गुरू ग्रह पंचम स्थान में उपनी स्वराशि धनु, मीन या उच्च राशि कर्क या नीच राशि मकर में हो तब कन्याओं का जन्म ज्यादा देखा गया है। पुत्र सन्तान हो भी जाती है तो बीमार रहती है अथवा पुत्र शोक होता है। यदि पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक या मीन राशि पर गुरू की दृष्टि या मंगल का प्रभाव होने पर पुत्र प्राप्ति होती है। यदि पंचम स्थान के दोनों ओर शुभ ग्रह हो व पंचम भाव तथा पंचमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो पुत्र के होने की संभावना ज्यादा होती है। पंचमेश के बलवान होने पर पुत्र लाभ होता है। परन्तु पंचमेश अष्टम या षष्ठ भाव में नहीं होना चाहियें। बलवान पंचम, सप्तम या लग्न में स्थित होने पर उत्तम सन्तान सुख प्राप्त होता है।

बलवान गुरू व सूर्य भी पुत्र सन्तान योग का निर्माण करते हैं। पंचमेश के बलवान हाने पर, शुभ ग्रहों के द्वारा दृष्ट होने पर, शुभ ग्रहों से युत हाने पर पुत्र सन्तान योग बनता है। पंचम स्थान पर चन्द्र ग्रह हो व शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तब भी पुत्र सन्तान योग होता है। पुरूष जातक की कुण्डली में सूर्य व शुक्र बलवान हाने पर वह सन्तान उत्पन्न करने के अधिक योग्य होता है। मंगल व चन्द्रमा के बलवान हाने पर स्त्री जातक सन्तान उत्पन्न करने के योग्य होती है।

सन्तान न होने के योग –

पंचम स्थान या पंचमेश के साथ राहू होने पर सर्पशाप होता है। ऐसे में जातक को पुत्र नहीं होता है अथवा पुत्र नाश होता है।
शुभ ग्रहों की दृष्टि हाने पर पुत्र प्राप्ति हो सकती है।
यदि लग्न व त्रिकोण स्थान में शनि हो और शुभ ग्रहो द्वारा दृष्ट न हो तो पितृशाप से पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है।
पंचमेश मंगल से दृष्ट हो या पंचम भाव में कर्क राशि का मंगल हो तब पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है तथा शत्रु के प्रभाव से पुत्र नाश भी होता है।
पंचमेश व पंचम स्थान पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो तब देवशाप द्वारा पुत्र नाश होता है।
चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह हो पंचमेश के साथ शनि हो एवं व्यय स्थान में पाप ग्रह हो तो मातृदोष कें कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है।
भाग्य भाव में पाप ग्रह हो व पंचमेश के साथ शनि हो तब पितृदोष से सन्तान होने में कठनाई होती है।
गुरू पंचमेश व लग्नेश निर्बल हो तथा सूर्य, चन्द्रमा व नावमांश निर्बल हो तब देवशाप के प्रभाव से सन्तान हानि होती है।
गुरू, शुक्र पाप युक्त हों तो ब्राह्मणशाप व सूर्य, चन्द्र के खराब या नीच के होने पर पितृशाप के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है।
यदि लग्नेश, पंचमेश व गुरू निर्बल हों या 6वें,8वें,12वें स्थान में हो तों भी सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। पाप ग्रह चतुर्थ स्थान में हो तो भी सन्तान प्राप्ति की राह में कठिनाई होती है।
नवम भाव में पाप ग्रह हो तथा सूर्य से युक्त हो तब पिता (जिसकी कुण्डली में यह योग हो उसके पिता) के जीवन काल में पोता देखना नसीब नहीं होता है।

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