||गुरुवादित्य योग|| गुरु सूर्य के संयोग से बनने वाला योग है।जब गुरु सूर्य आपस में दृष्टि सम्बन्ध बनाते है या किसी भाव में आपस में किसी एक राशि में युति सम्बन्ध बनाते है तब इस योग को गुरुवादित्य योग कहते है।सूर्य ग्रहो के राजा, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, शौर्य, नाम, यश, राज्य, सरकार आदि के कारक है तो गुरु अत्यंत शुभ और बलशाली ग्रह है यह ज्ञान, सम्पन्नता, सम्मान, उच्चाधिकार आदि को देने वाला है।सूर्य आत्मा कारक है गुरु जीव कारक है गुरु सूर्य के योग से जीवात्मा का सर्जन होता है।सूर्य गुरु का योग जातक को समाज में सम्मानित कराता है ऐसे जातक की आत्मा शुद्ध होती है।सूर्य गुरु दोनों राज्य कृपा के कारक है।जिन जातको की कुंडली में सूर्य गुरु शुभ और बली स्थिति में सम्बन्ध बनाते है उनको कई तरह के लाभ मिलते है।मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु लग्न की कुंडली में गुरु सूर्य का सम्बन्ध बहुत श्रेष्ठ व् योगकारक होता है।मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु लग्न में गुरु सूर्य का योग केंद्र त्रिकोण भाव में होना बहुत श्रेष्ठ फल दयाक होता है।सूर्य गुरु युति में यह बात ध्यान में रखना आवश्यक कि गुरु सूर्य से युति अंशो में अस्त न हो, गुरु के अस्त हो जाने से इस योग की शुभता और श्रेष्ठता नष्ट हो जायेगी।गुरु सूर्य पहले भी बताया राजकृपा के कारक है यह योग नवम या दशम भाव से सम्बन्ध रखने पर जातक को राजपक्ष से लाभ की प्राप्ति कराता है।यह लाभ आर्थिक, सरकारी नोकरी, राज्य में उच्च पद प्राप्ति आदि के सम्बन्ध में जातक को सफलता देता है।सूर्य आत्मा का कारक है तो गुरु ज्ञान का जिस कारण गुरु सूर्य का योग जातक को ज्ञानी बनाने के योग फलित करता है।सूर्य गुरु के दृष्टि सम्बन्ध होने से गुरु के बल में वृद्धि हो जाती है क्योंकि सूर्य से सातवे स्थान पर बेठा कोई ग्रह मतलब सूर्यदृष्टि सम्बन्ध होने पर वह ग्रह वक्री हो जाता है।सूर्य के साथ गुरु का दृष्टि सम्बन्ध होने से गुरु वक्री हो जाता है, गुरु के वक्री होने पर गुरु की शुभता और बल में वृद्धि हो जाती है गुरु दृष्टि जो अमृतमयी और कल्याणकारी होती है जो सूर्य पर होती है मतलब गुरु की दृष्टि सूर्य पर होने से गुरु सूर्य को शुभता, श्रेष्ठ बनाता है तो सूर्य से सातवे स्थान पर सूर्य के कारण गुरु वक्री होकर सूर्य के कारण बल और शुभता प्राप्त करता है एक तरह दोनों एक दूसरे को बल और श्रेष्ठ बनाकर दोनों एक दूसरे को सहयोग करते है।इस कारण सूर्य गुरु का सम्बन्ध जातक की कुंडली में सही तरह से होने पर जातक के लिए हमेशा शुभ होता है।
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