Saturday, August 19, 2017

क्यों कुछ दंपत्ति अपना दांपत्य जीवन का निर्वाह ठीक ढंग से कर नहीं पाते?


क्यों कुछ दंपत्ति अपना दांपत्य जीवन का निर्वाह ठीक ढंग से कर नहीं पाते?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका कारण जन्म पत्रिका का सप्तम स्थान होता है। कुण्डली के इस स्थान में यदि सूर्य, गुरु, राहु, मंगल, शनि जैसे ग्रह हो या इस स्थान पर इनकी दृष्टि हो तो जातक का वैवाहिक जीवन परेशानियों से भरा होता है।
सप्तम स्थान पर सूर्य का होना निश्चित ही तलाक का कारण है। गुरु के सप्तम होने पर विवाह तीस वर्ष की आयु के पश्चात करना उत्तम होता है। इसके पहले विवाह करने पर विवाह विच्छेद होता हैं या तलाक का भय बना रहता है।
मंगल तथा शनि सप्तम होने पर पति-पत्नी के मध्य अवांछित विवाद होते हैं। राहु सप्तम होने पर जीवन साथी व्यभिचारी होता है। इस कारण उनके मध्य विवाद उत्पन्न होते हैं, जिनसे तलाक होने की संभावना बढ़ जाती है।
एक परिवार में पति-पत्नी में अथाह प्रेम है। दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण समर्पित हैं। आपस में एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अचानक उनमें कटुता व तनाव उत्पन्न हो जाता है

जातक पारिजात, अध्याय 14, श्लोक 17 में लिखा है, ‘नीचे गुरौ मदनगे सति नष्ट दारौ’ अर्थात् सप्तम भावगत नीच राशिस्थ बृहस्पति से जातक की स्त्री मर जाती है। कर्क लग्न की कुंडलियों में सप्तम भाव गत बृहस्पति की नीच राशि मकर होती है।

व्यवहारिक रूप से उपयरुक्त कथन केवल कर्क लग्न वालों के लिए ही नहीं है, बल्कि कुंडली के सप्तम भाव अधिष्ठित किसी भी राशि में बृहस्पति हो, उससे वैवाहिक सुख अल्प ही होते हैं।
एक नियम यह भी है कि किसी भाव के स्वामी की अपनी राशि से षष्ठ, अष्टम या द्वादश स्थान पर स्थिति से उस भाव के फलों का नाश होता है।
सप्तम से षष्ठ स्थान पर द्वादश भाव- भोग का स्थान और सप्तम से अष्टम द्वितीय भाव- धन, विद्या और परिवार तथा उनसे प्राप्त सुखों का स्थान है। यद्यपि इन भावों में पाप ग्रह अवांछनीय हैं, किन्तु सप्तमेश के रूप में शुभ ग्रह भी चंद्रमा, बुध, बृहस्पति और शुक्र किसी भी राशि में हों, वैवाहिक सुख हेतु अवांछनीय हैं।

चंद्रमा से न्यूनतम और शुक्र से अधिकतम वैवाहिक दुख होते हैं। दांपत्य जीवन कलह से दुखी पाया गया, जिन्हें तलाक के बाद द्वितीय विवाह से सुखी जीवन मिला।
पुरुषों की कुंडली में सप्तम भावगत बुध से नपुंसकता होती है। यदि इसके संग शनि और केतु की युति हो तो नपुंसकता का परिमाण बढ़ जाता है।
ऐसे पुरुषों की स्त्रियां यौन सुखों से मानसिक एवं दैहिक रूप से अतृप्त रहती हैं, जिसके कारण उनका जीवन अलगाव या तलाक हेतु संवेदनशील होता है। सप्तम भावगत बुध के संग चंद्रमा, मंगल, शुक्र और राहु से अनैतिक यौन क्रियाओं की उत्पत्ति होती है, जो वैवाहिक सुख की नाशक है।
सप्तम भाव में राहु, सूर्य जैसे विच्छेदक ग्रह मौज़ूद हों।

2.  राहु, शनि, सूर्य, केतु एवं मंगल जैसे ग्रहों का दृष्टि अथवा युति संबंध सप्तम भाव से बन रहा हो।

3.  सप्तमेश अष्टम भाव में हो, सप्तम का कारक (पुरुष की कुण्डली में शुक्र व स्त्री की कुण्डली में बृहस्पति) पीड़ित हो, सप्तम भाव पर क्रूर व पापी ग्रहों की दृष्टि हो।

4.  सप्तमेश शुभ ग्रह होकर केंद्राधिपत्य दोष से पीड़ित हो, सप्तम भाव पाप कर्तरी में फंसा हुआ हो। पति या पत्नी की कुण्डली में उसके साथी के लिए अल्पायु योग हो किंतु स्वयं उस साथी की कुण्डली में मध्यायु या पूर्णायु हो। ऐसी स्थिति में दोनों के साथ न रह सकने की संभावना पूर्ण होती है।

5.  उपरोक्त के अलावा यदि नवमांश कुण्डली में भी सप्तमेश तथा सप्तम के कारक पीड़ित हों ।

मंगल का सप्तम में प्रभाव—
मंगल का सप्तम में होना पति या पत्नी के लिये हानिकारक माना जाता है,उसका कारण होता है कि पति या पत्नी के बीच की दूरिया केवल। इसलिये हो जाती है
क्योंकि पति या पत्नी के परिवार वाले जिसके अन्दर माता या पिता को यह मंगल जलन या गुस्सा देता है,जब भी कोई बात बनती है तो पति या पत्नी के लिये सोचने लायक हो जाती है,और अक्सर पारिवारिक मामलों के कारण रिस्ते खराब हो जाते है।
पति की कुंडली में सप्तम भाव मे मंगल होने से पति का झुकाव अक्सर सेक्स के मामलों में कई महिलाओं के साथ हो जाता है,और पति के कामों के अन्दर काम भी उसी प्रकार के होते है जिनसे पति को महिलाओं के सानिध्य मे आना पडता है।
पति के अन्दर अधिक गर्मी के कारण किसी भी प्रकार की जाने वाली बात को धधकते हुये अंगारे की तरफ़ मारा जाता है,जिससे पत्नी का ह्रदय बातों को सुनकर विदीर्ण हो जाता है,
अक्सर वह मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती है,उससे न तो पति को छोडा जा सकता है और ना ही ग्रहण किया जा सकता है,पति की माता और पिता को अधिक परेशानी हो जाती है,माता के अन्दर कितनी ही बुराइयां पत्नी के अन्दर दिखाई देने लगती है

,वह बात बातमें पत्नी को ताने मारने लगती है,और घर के अन्दर इतना क्लेश बढ जाता है कि पिता के लिये असहनीय हो जाता है,या तो पिता ही घर छोड कर चला जाता है,
अथवा वह कोर्ट केश आदि में चला जाता है,इस प्रकार की बातों के कारण पत्नी के परिवार वाले सम्पूर्ण जिन्दगी के लिये पत्नी को अपने साथ ले जाते है।

)जिस स्त्री की जन्मकुंडली में लग्न में मंगल या शनि की राशि में शुक्र हो तथा सप्तम स्थान पर पाप प्रभाव हो तो स्त्री अपने विवाहित पति को छोड़कर किसी अन्य के साथ विवाह कर लेती है।
11. जिसकी कुंडली में सप्त1म स्थान में शुभ एवं पाप दोनों प्रकार के ग्रह हों तथा सप्तमेश या शुक्र निर्बल हो तो स्त्री एक पति को छोड़कर दूसरे के साथ विवाह कर लेती है।
12. यदि चंद्रमा एवं शुक्र पाप ग्रहों के साथ सप्तम स्थान में हो तो पति-पत्नी गुप्त रूप से वैवाहिक संबंध तोड़ देते हैं।
13. सप्तम स्थान में सूर्य हो तथा सप्तमेश निर्बल हो तो उस स्त्री को उसका पति छोड़ देता है।
14. निर्बल पाप ग्रह सप्तम में बैठें हों तो इस योग में उत्पन्न स्त्री को उसका पति छोड़ देता है।
15. लग्न में राहु एवं शनि हो तो व्यक्ति लोकापवाद से अपनी पत्नी का परित्याग कर देता है।
16 सप्तम स्थान में स्थित सूर्य पर उसके शत्रु ग्रह की दृष्टि हो तो इस योग में उत्पन्न स्त्री को उसका पति छोड़ देता .

सातवें भाव में बैठे द्वादशेश से राहू की युति हो तो तलाक होता है। बारहवें भाव में बैठें सप्तमेश से राहु की युति हो तो तलाक होता है। पंचम भाव में बैठे द्वादशेश से राहू की युति हो तो तलाक होता है। पंचम भाव में बैठे सप्तमेश से राहू की युति हो तो तलाक होता है।

सातवें भाव का स्वामी और बाहरवें भाव का स्वामी अगर दसवें भाव में युति करता हो तो में तलाक होता है। सातवें घर में पापी ग्रह हों व चंद्रमा व शुक्र पापी ग्रह से पीड़ित हो पति-पत्नी के तलाक लेने के योग बनते हैं।
सप्तमेश व द्वादशेश छठे आठवें या बाहरवें भाव में हो और सातवें घर में पापी ग्रह हों तो तलाक के योग बनते है। सातवें घर में बैठे सूर्य पर शनि के साथ शत्रु की दृष्टि होने पर तलाक होता है।

सातवें भाव पर पृथकताजनक ग्रहों का प्रभाव : सूर्य, बुध और राहू पृथकताजनक ग्रह हैं ! बारहवें भाव की  राशि का स्वामी ग्रह भी पृथकतावादी ग्रह होता है !
दो या दो से अधिक पृथकताजनक ग्रह अगर साथ मै  हों तो जहा  पर बैठेंगे उससे सम्बन्धित चीजों से आपको अलग कर देते है ! सातवें भाव में बैठेकर  जातक को अपने जीवन साथी से अलग करने  की कोशिश करते है !
सप्तम भाव, सप्तमेश एवं कारक ग्रहों का पापी ग्रहों से युति या दृष्टि  दाम्पत्य जीवन में कटुता करता है। सूर्य, शनि, मंगल एवं राहु (पापी ग्रह) दाम्पत्य जीवन में अलगाव लाते हैं।  पापी ग्रहों को पृथकता कारक ग्रह होते  है ! सप्तम भाव इन पापी ग्रहों से पीड़ित अथवा पाप प्रभाव में हो, तो वैवाहिक जीवन कष्टदायक एवं दुखमय होता है।
19 बृहस्पति :बृहस्पति पति सुख का कारक होकर यदि सप्तम भाव में स्थित हो, जातका के पति सुख में कमी रहेगी। सप्तम भाव के दोनों ओर पापकर्तरी योग (पापी ग्रह) होने पर एक दूसरे के प्रति क्रूर व्यवहार के कारण तलाक की स्थिति बनती है।
 
ग्रहों के फल देने का एक निश्चित समय : जन्मकुंडली में विमशोत्तरी महादशा के नाम से एक कालम होता है जिसमे यह सब समय विवरण दिया रहता है

दशा अन्तर्दशा या गोचर :अशुभ ग्रहों का सातवें भाव में होना ही तलाक  की वजह बनते  है ! ग्रह जो सातवें घर को नुक्सान पहुंचा रहा है उसकी दशा अन्तर्दशा या गोचर में आपकी राशि से भ्रमण कर रहा हो !

उपाय - इष्ट देव,  की आराधना करे। सप्तम स्थान में स्थित क्रूर ग्रह के उपाय करे । मंगल   ग्रह  का दान करें।   गुरुवार का व्रत करें।  माता पार्वती का पूजन करें। सोमवार का व्रत करें। प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।  पीपल की परिक्रमा करें।

सप्तम स्थान, शुक्र व सप्तमेश पाप प्रभाव में हो, सप्तम स्थान में मंगल, शनि, राहु, केतु, हर्षल, नेपच्यून जैसे ग्रहों की दृष्टि हो या ये ग्रह सप्तम स्थान से रहित हो तो वैवाहिक जीवन1 तनावपूर्ण होकर तलाक तक की नौबत आती है। विशेष कर राहु-केतु, मंगल, नेपच्यून तलाक व संबंध विच्छेद कराते हैं।

21--अकेला शनि (निर्बल) तलाक तो नहीं कराता मगर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देता है।

जन्म कुंडली में लग्नेश व चंद्रमा से सप्तम भाव के स्वामी ग्रह शुक्र ग्रह की स्थिति से प्रतिकूल स्थिति में स्थित हों.
23कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो या छठे भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में हो तब यह अदालती तलाक दर्शाता है अर्थात पति-पत्नी का तलाक कोर्ट केस के माध्यम से होगा.

24बारहवें भाव के स्वामी की चतुर्थ भाव के स्वामी से युति हो रही हो और चतुर्थेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भ

भाव में स्थित हो तब पति-पत्नी का अलगाव हो जाता है.
अलगाव देने वाले ग्रह शनि, सूर्य तथा 25राहु का सातवें भाव, सप्तमेश और शुक्र पर प्रभाव पड़ रहा हो या सातवें व आठवें भावों पर एक साथ प्रभाव पड़ रहा हो.

26जन्म कुंडली में सप्तमेश की युति द्वादशेश के साथ सातवें भाव या बारहवें भाव में हो रही हो.
27सप्तमेश व द्वादशेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा हो और इनमें से किसी की भी राहु के साथ हो रही ५हो.
28सप्तमेश व द्वादशेश जन्म कुंडली के दशम भाव में राहु/केतु के साथ स्थित हों.
29जन्म लग्न में मंगल या शनि की राशि हो और उसमें शुक्र लग्न में ही स्थित हो, सातवें भाव में सूर्य, शनि या राहु स्थित हो तब भी अलगाव की संभावना बनती है.
30जन्म कुंडली में शनि या शुक्र के साथ राहु लग्न में स्थित हो. जन्म कुंडली में सूर्य, राहु, शनि व द्वादशेश चतुर्थ भाव में स्थित हो.
31जन्म कुंडली में शुक्र आर्द्रा, मूल, कृत्तिका या ज्येष्ठा नक्षत्र में स्थित हो तब भी दांपत्य जीवन में अलगाव के योग बनते हैं.
32कुंडली के लग्न या सातवें भाव में राहु व शनि स्थित हो और चतुर्थ भाव अत्यधिक पीड़ित हो या अशुभ प्रभाव में हो तब तब भी अलग होने के योग बनते हैं.
33शुक्र से छठे, आठवें या बारहवें भाव में पापी ग्रह स्थित हों और कुंडली का चतुर्थ भाव पीड़ित अवस्था में हो.
34षष्ठेश एक अलगाववादी ग्रह हो और वह दूसरे, चतुर्थ, सप्तम व बारहवें भाव में स्थित हो तब भी अलगाव होता है।तलाक हो सकता ह


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