Saturday, August 12, 2017

इन योग जाने अपने घर/मकान के सुख के बारे में-


इन योग जाने अपने घर/मकान के सुख के बारे में----

----- चतुर्थ भाव व दशम भाव के भावाधिपति यदि त्रिकोण में पंचम या नवम या लग्न में या केंद्र में हों तो वह व्यक्ति आजीवन शासकीय भवन का सुख भोगने वाला होता है।
-----यदि चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च का होकर भाग्य में हो तो उस भवन का उत्तम सुख मिलेगा।
------ यदि चतुर्थ भाव में मंगल की चतुर्थ, सप्तम या अष्टम स्वदृष्टि पड़ रही होगी तो उसे उत्तम भवन का मालिक बनाएगी।
------चतुर्थ भाव में यदि षष्ठ भाव का स्वामी उच्च का या मित्र क्षेत्री होकर बैठ जाए तो उसे नाना-मामा के द्वारा भवन मिलेगा।
------यदि द्वितीय भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्वग्रही या उच्च का या मित्र क्षेत्री होकर बैठ जाए तो उसे परिवार के सहयोग से या कौटुम्बिक मकान मिलेगा।
------ यदि चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च का होकर कहीं बैठा हो एवं जिस भाव में उच्च का हो व उसका स्वामी भी उच्च का होकर कहीं भी बैठ जाए तो उसे उत्तम कोठी या उत्तम बंगले का सुख मिलता है।
-----यदि चतुर्थ भाव का स्वामी पराक्रम में हो तो उसे अपने बलबूते पर साधारण मकान मिलता है।
----- यदि चतुर्थ भाव में पंचम भाव का स्वामी मित्र क्षेत्री हो या उच्च का हो तो उसे पुत्रों द्वारा बनाए मकान का सुख मिलता है।
------. चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह हों तो घर का सुख उत्तम रहता है।
-----चंद्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।
------ चतुर्थ स्थान पर गुरु-शुक्र की दृष्टि उच्च कोटि का गृह सुख देती है।
-------चतुर्थ स्थान का स्वामी 6, 8, 12 स्थान में हो तो गृह निर्माण में बाधाएँ आती हैं। उसी तरह 6, 8, 12 भावों में स्वामी चतुर्थ स्थान में हो तो गृह सुख बाधित हो जाता है।
-----चतुर्थ में शनि हो, शनि की राशि हो या दृष्टि हो तो घर में सीलन, बीमारी व अशांति रहती है।
------ चतुर्थ स्थान का केतु घर में उदासीनता ‍देता है।
-----चतुर्थ स्थान का राहु मानसिक अशांति, पीड़ा, चोरी आदि का डर देता है।
------ चतुर्थ स्थान का अधिपति 1, 4, 9 या 10 में होने पर गृह-सौख्य उच्च कोटि का मिलता है।
-------लग्नेश से युक्त होकर चतुर्थेश सर्वोच्च या स्वक्षेत्र में हो तो भवन सुख उत्तम होता है।
------नवमेश केन्द्र में हो, चतुर्थेश सर्वोच्च राशि में या स्वक्षेत्री हो, चतुर्थ भाव में भी स्थित ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो जातक को आधुनिक साज-सज्जा से युक्त भवन की प्राप्ति होगी
-------यदि चतुर्थेश व लग्नेश दोनों चतुर्थ में हो तो अक्समात ही उत्तम भवन सुख प्राप्त होता है।
------भवन सुखकारक ग्रहो की दशान्तर्दशा में शुभ गोचर आने पर सुख प्राप्त होता है।
------चतुर्थ स्थान, चतुर्थेश व चतुर्थ कारक, तीनों चर राशि में शुभ होकर स्थित हों या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में हो या लग्नेश, चतुर्थेश व द्वितीयेश तीनो केन्द्र त्रिकोण में, शुभ राशि में हों, तो अनेक मकानों का सुख प्राप्त होता है।
---------यदि भवन कारक भाव-चतुर्थ में निर्बल ग्रह हो, तो जातक को भवन का सुख नही मिल पाता । इन कारकों पर जितना पाप प्रभाव बढ़ता जाएगा या कारक ग्रह निर्बल होते जाएंगे उतना ही भवन सुख कमजोर रहेगा। पूर्णयता निर्बल या नीच होने पर आसमान तले भी जीवन गुजारना पड़ सकता है। किसी स्थिति में जातक को भवन का सुख कमजोर रहता है, या नहीं मिल पाता इसके कुछ प्रमुख ज्योतिषीय योगों की और ध्यान आकृष्ट करें तो पाते हैं कि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश का रहना प्रमुख है।

इसके अतिरिक्त ------
--------कारकांश कुण्डली में चतुर्थ स्थान में बृहस्पति हो तो लकड़ी से बने घर की प्राप्ति होती है। यदि सूर्य हो तो घास फूस से बने मकान की प्राप्ति होती है। चतुर्थेश, लग्नेश व द्वितीयेश पर पापग्रहों का प्रभाव अधिक होने पर जातक को अपने भवन का नाश देखना पडता है।
-------चतुर्थेश अधिष्ठित नवांशेष षष्ठ भाव में हो तो जातक को भवन सुख नही मिलता। चतुर्थेश व चतुर्थ कारक यदि त्रिक भावो में स्थित हो तो जातक को भवन सुख की प्राप्ति नही होती। शनि यदि चतुर्थ भाव मे स्थित हो तो जातक को परदेश में ऐसे भवन की प्राप्ति होगी, जो टुटा-फूटा एवं जीर्ण-शीर्ण पुराना हो।
------द्वितीय, चतुर्थ, दशम व द्वादश का स्वामी, पापग्रहो के साथ त्रिक स्थान में हो, तो भवन का नाश होता है।
चतुर्थ भावस्थ पापग्रह की दशा में भवन की हानि होती है। भवन सुख हेतु कुण्डली में इसके अतिरिक्त नवम, दशम, एकादश, पंचम भावो भाव का बल भी परखना चाहिए। क्योकि इन भावो के बली होने पर जातक को अनायाश ही भवन की प्राप्ति होते देखी गई है। इन भावों में स्थित ग्रह, यदि शुभ होकर बली हो व भावेश भी बली होकर स्थित हो तो निश्चयात्मक रूप से उत्तम भवन सुख मिलता है।
-------जन्म कुंडली में लगच से चौथा भाव, सुख परिवार, माता, मातृभूमि, व-------जन्म कुंडली में लगच से चौथा भाव, सुख परिवार, माता, मातृभूमि, वाहन, जमीन जायदाद, जनता से संबंधित कार्य जनता के बीच प्रसिद्धि, कुर्सी, स्थानीय राजनीति से संबंध भाव माना गया है। चतुर्थ भाव का स्वामी जिसकी पत्रिका में शुभ हो, स्वराशिस्थ हो, उध का हो तो उस भाव में कोई उध राशि हो, वक्री या अस्त नहीं होना चाहिए न ही अशुभ योगों से दृष्टि संबंध बना रहा हो। चतुर्थ भाव की महादशा अन्तर दशा चल रही हो व गोचर में भी चतुर्थेश शुभ हो तो ऐसे जातक को वाहन, भूमि-भवन का सुख मिलाता हें...
----------जिन लोगों की कुंडली के नवम भाव में शनि स्थित हो तो उन्हें पिता की ओर से पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है। जन्मकुंडली का दशम भाव पिता एवं शासकीय कार्यों से संबंधित होता है। वृश्चिक लग्न में इस स्थान सिंह राशि का स्वामी सूर्य है। सूर्य की इस राशि में शनि होने पर व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन लोगों को भूमि एवं भवन का सुख भी पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है।

उपरोक्त संकेतों के आधार पर कुंडली का विवेचन कर घर खरीदने या निर्माण करने की शुरुआत की जाए तो लाभ हो सकता है। इसी तरह पति, पत्नी या घर के जिस सदस्य की कुंडली में गृह-सौख्य के शुभ योग हों, उसके नाम से घर खरीदकर भी कई परेशानियों से बचा जा सकता है।

भवन सुख हेतु बाधक ग्रह का वैदिक उपाय करने पर भवन सुख अवश्य मिलता हैं....

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