Saturday, August 12, 2017

मंगल शनी की युति/मंगल शुक्र का योग


1. मंगल शनी की युति
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मंगल देवहमारे शरीर में शक्ति के कारक माने जाते है | हमारे में जो फुर्ती होती है जो ललक होती है किसी भी कार्य को तत्काल करने की छमता मंगल पर निर्भर करती है जबकि दूसरी तरफ शनी देव आलस्य के कारक माने जाते है| हम किसी कार्य को कितना टालते है हमारे शरीर में उर्जा की कमी होना या किसी भी कार्य को करने में देरी करना शनी देव के प्रभाव के फलस्वरूप हमारे शरीर में होती है| शनि सांप तो मंगल शेर यानी की ऐसे जातक में इन दोनों की सिफ्फ्त मिली हुई होगी तो ऐसा जातक विनम्र , इंसान को माफ़ करने वाला लेकिन क्रूर इंसान को तबाह करने वाला होता है दुसरे शब्दों में ऐसा जातक बुरे इंसानों को कभी माफ़ नही करता और उनका नुक्सान करता है |
अब एक तो फुर्ती तेज़ी का प्रतीक मंगल देव तो दूसरी तरफ आलस्य के प्रतीक शनी देव दोनों एक साथ हो गये है| अत: स्पस्ट है की इन दोनों के अपने अपने प्रभाव में कुछ बदलाव तो जरुर आएगा|
शनी देव जो हर कार्य को काफी सोच समझ कर करने के कारक माने जाते है ऐसे में मंगल की अथाह शक्ति को शनी की समझ का सहारा मिल जाता है और इंसान में बहादुरी के साथ अच्छी समझ का भी समावेस हो जाता है|
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जब मंगल के साथ शनी हो तो मंगल अपनी सारी शक्ति शनी देव को दे देते है और खुद बुद्ध की तरह खाली हो जाते है और शनी देव ज्यादा बलि हो जाते है| इसका उदाहरण देकर समझाया गया है की ऐसे इन्सान के भाई की हालत जातक से जातक से अच्छी नही होती यानी वो किसी न किसी चीज में जातक से कम होता है जैसे धन दौलत | ऐसे इन्सान के घर चोरी होने का भय भी बना रहता है|
इनदोनों की युति जातक को एक अच्छा डॉक्टर एक सर्जन या टेकनिकल लाइन में अछ्छी सफलता दिला सकती है|
कालपुरुष की कुंडली में मंगल लग्न और अस्ठ्म भाव के मालिक है तो शनी कर्म आय भाव के मालिक बन जाते है ऐसे में कर्म के साथ शरीर का मेल और अपने शरीर के द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला योग इसे कहा जा सकता है |
पहले भाव में इन दोनों के योग के कारण मंगल की शुभता में बढोतरी हो जाती है| ऐसे में जातक को इन दोनों का शुभ फल मिलना तब सुरु होता है जब जातक खुद कमाई करके आजिविका प्राप्त करने लग जाता है| सुसराल वालों पर इस योग का शुभ प्रभाव पड़ता है और जातक की आर्थिक हालत में सुधार होता है|
दुसरे भाव में योग होने पर शादी के बाद जातक का भाग्य उदय होता है और ससुराल पक्ष को भी लाभ मिलता है|
तीसरे भाव मेंइन दोनों के योग होने से जब जातक के लडकी पैदा होती है उसके बाद भाग्य उदय होता है|
चोथे भाव में योग होने पर मंगल की अशुभता कुछ कम हो जाती है और यदि जातक खेती की जमीन ख़रीदे तो इन दोनों के कुछ शुभ फल मिलने सुरु हा जाते है|
पांचवें भाव मेंयोग होने पर जातक के पुत्र होने के बाद भाग्य में विरधी होती है|
छटे भाव में ये योग हो तब जब जातक के घर के सामने कोई कुतिया बच्चों को जन्म देती है
सातवें भाव में ये योग हो तोजब जातक किसी स्त्री से शारीरिकसम्बन्ध बना लेता है उसके बाद उसकी किस्मत जागती है |
अस्ठ्म भाव में इन दोनों का योग बहुत बुरा फल देता है जिसे लाल किताबा में मुर्दाघाट या मंदी आग जलाने की जगह कहा गया है|ऐसी जातक के जीवन में बहुत तकलीफे आती है|
नवम भाव में इन दोनों का अच्छा फल जातक को मिलता है| जातक का जीवन अच्छा गुजरता है खासतोर परग्रहस्थ जीवन | ऐसे में जातक यदि घर में हवन यज्ञ करता रहे जन्मदिन आदि पर उत्सव मनाता रहे तो उसकी किस्मत को जगाने में सहायता मिलती है|
दसम भाव में इन दोनों का योग व्यवसाय पर शुभ प्रभाव डालता है| यदि दिन के समय घर में सांप निकल आये तो वो किस्मत जागने की निशानी मानी जाती है शर्त है की उस सांप को मारा न जाए| जातक की शादी होते ही जातक की किस्मत जाग जाती है|
ग्यारवें भाव में इन दोनों का योग जातक को शुभ फल देता है लेकिन यदि जातक बाप दादा की कमाई परही जीवन यापन करना सुरुबकर दें तोजातक की किस्मत कभी नही जागती| जातक को मेहनत और इमानदारी की कमाई बरकत देती है|
बारवें भाव मेंइनका योग शुभ फल ही देता है| जातक को घर में किये हुवे हवन आदि शुभ फल देते है|
इस योग वाले जातक के लिय पैसों का लेनदेन करते समय कागजी कार्यवाही करनी जरूरी होती है वरना उसे नुक्सान होने के पुरे योग होते है | इन दोनों के योग के फलस्वरूप घर में जातक के चोरी होने के योग बन जाते है यदि इनका अशुभ फल जातक को मिल रहा हो | लेकिन के ख़ास बात का जातक को ध्यान रखना होता है की जातक सांप के जैसे आँख वाली औरत से दूर रहे वो उसे नुक्सान देगी | भूरी आँखों वाली औरत जातक को हमेशा ही फायदा देगी | पराई औरत से किसी भी हालत में शारीरिक सम्बन्ध न बनाये | यदि जातक को धन का नुक्सान हो रहा हो धन की बरकत न हो रही हो तो घोड़ी ब्याहने के बाद उसका पहला दूध किसी कांच की बोतल मे डालकर घर में ररखे |
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2. मंगल शुक्र का योग
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आज के आधुनिक युग में जितना महत्व इन दोनों के योग को दिया जाता है उतना शायद अन्य किसी के योग को नही | जैसा की आपको पता चल रहा है और वर्तमान समय में भक्ति के स्थान पर काम भावना भोग विलास ज्यादा हावी है | ऐसे में लगभग हर इंसान एक अच्छे भोग विलास का आनन्द लेना चाहता है तो इन दोनों का योग जातक के अंदर ज्यादा काम भावना देता है | शुक्र जातक को हर प्रकार का भोतिक सुख देता है और मुख्य रूप से काम सुख का कारक होता है लेकिन जब तक शरीर में मंगल की उतेजना न हो उस सुख का पूर्ण आनन्द जातक के द्वारा नही लिया जा सकता | शुक्र पुरुष की कुंडली में पत्नी का कारक होता है तो मंगल स्त्री की कुंडली उसके पुरुष मित्र का कारक होता है और इसी कारक यदि पुरुष की कुंडली में ये योग हो और शुभ सिथ्ती में हो तो उसे स्त्री वर्ग से विशेष सुख दिलाता है जबकि स्त्री की कुंडली में उसके पुरुष मित्रों से सुख दिलवाता है लेकिन स्त्री की कुंडली में ये पति पत्नी के विचार आपस में बहुत कम मिलने देता है और दोनों में आपसी तनाव पैदा करता है क्योंकि मंगल अंहकार कका कारक ग्रह भी होता है ऐसे में महिला जातक में अंहकार की भावना सामान्य से ज्यादा होती है \
मंगल हमारे शरीर में खून का कारक ग्रह है और शुक्र वीर्य का | जब तक शरीर में खून की उचित मात्रा नही होगी वीर्य की कमी का सामना जातक को करना पड़ जाता है.
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शुक्र घी तो मंगल शहद होता है और जैसे अलग अलग बीमारियों में इन दोनों का अनुपान भेद से प्रयोग किया जाता है लेकिन जब इन दोनों को समान मात्रा में मिला दिया जाता है तो वो जहर बन जाता है इसीप्रकार जैसे इन दोनों का योग लाभ देता है तो इन दोनों का योग हानिकारक भी बन जाता है और जब इनका योग दुष्फल दे रहा हो तो जातक चरित्र हीन हो जाता है | इन दोनों की युति लग्न में हो और त्रिसांस कुंडली में भी इनका सम्बन्ध बन रहा हो तो जातक या जातिका के पराये मर्द स्त्री से सम्बन्ध बनने के चांस बहुत ज्यादा रहते है \ शुक्र शरीर में वीर्य है तो वीर्य बढाने वाली बहुत सी दवाइयां शहद {मंगल } के साथ ली जाती है | शरीर में उतेजना जोश मंगल ही देता है |
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इन दोनों का योग हो और उसे बिर्हस्पती देखें तो बहुत ही उत्तम लक्ष्मी होगी जो सभी के काम आएगी इसी प्रकार इन दोनों के योग पर चन्द्र की नजर हो तो भी उत्तम फल मिलेगा | लेकिन इन दोनों के साथ ही चन्द्र भी आ जाए तो जातक को अंत्यंत चंचल परवर्ती का बना देता है और जातक पर स्त्री की तरफ बहुत जल्दी आकर्षित हो जाता है \
यदि इन दोनों के साथ ही बुद्ध हो या फिर पापी ग्रह शनी राहू या केतु की दृष्टी हो तो इन दोनों का योग शुभ फल देने में सक्षम नही रहता | ऐसे में जातक को अवैध सम्बन्ध के कारण कई बार बदनामी तक का सामना करना पड़ जाता है.
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रिश्तोंमें हम देखें तो शुक्र पत्नी तो मंगल भाई यानी की देवर भाभी का साथ और आपको पता है की इन दोनों का रिश्ता समाज में कैसा माना जाता है |
ऐसे हम इस प्रकार समझे की जैसे देवर भाभी इस साथ बैठे हुवे है उनको माता जी चन्द्र या दादा जी गुरु देख रहे है तो उनको किसी भी प्रकार की परेशानी नही होगी और दोनों अच्छी तरह से काम करेंगे लेकिन यदि उन्हें कोई नीच परवर्ती का इंसान राहू देख रहा हो तो वो उन दोनों के बारे गलत अफवाह भी उड़ा सकता सकता है और इन दोनों के मन में भी भी रहेगा की ये इंसान बदनामी करवा सकता है | इसी प्रकार यदि कुंडली में मंगल बद्द हो तो भी इनका योग शुभ फल नही मिलता जैसे की भट्टे की जली हुई मिटटी किसी काम में नही आती \इन दोनों के योग को तंदूर की मिटटी भी कारक होता है इसिलिय जब कुंडली में मंगल या इन दोनों का योग खराब फल दे रहा हो तो तंदूर पर बनी हुई मीठी रोटी कुतों को डालने का उपाय बताया जाता है |
शरीर में इन दोनों के योग का खराब फल मिलने पर खून का बहना जैसे की लेडीज को मासिक धर्म अधिक आना या किसी भी तरह से खून का अधिक बहना जैसे की नकसीर आदि की समस्या हो जाती है \ पुरुष जातक को ये अत्याधिक कामुक स्वभाव का बना देता है जिस से जातक समय से पहले अपनी ऊर्जा को खत्म कर शारीरिक कमजोरी का सामना करता है |
यदि हम कालपुरुष की कुंडली देखें तो मंगल लग्न का मालिक होता है और शुक्र धन परिवार और पत्नी के भाव का मालिक होता है इसिलिय इन दोनों के अधिकतर शुभ फल ही माने जाते है लेकिन हमे ये भी ध्यान रखना पड़ता है की दूसरा और सप्तम दोनों भाव मारक भाव भी होते है तो मंगल साथ में अस्ठ्म भाव का भी मालिक होता है ऐसे में इनका योग जितना शुभ फल दे सकता है उतना ही अशुभ फल भी | ये फल कुंडली में इस बात पर निर्भर करेगा की किस भाव में किस राशि में ये योग बन रहा है और अन्य ग्रहों से इनका कैसा सम्बन्ध बन रहा है |

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