1. जिस जातक की कुंडली में एक दोष होगा उसको २५% स्त्री सुख में कमी , दो दोष होने पर ५०% सुख की कमी तथा इससे अधिक दोष होने पर दाम्पत्य जीवन जीना बहुत मुस्किल हो जाता है।
१. सप्तम भाव अथवा शुक्र से सप्तम भाव में राहू, शनि अथवा मंगल हो।
२. सप्तम भाव में कोई नीच राशि का अथवा शत्रु राशि का ग्रह हो।
३. सप्तम भाव पर शनि, मंगल अथवा राहू में से किन्हीं दो ग्रहों की दृष्टि हो।
४. सप्तम भाव के आस-पास अर्थात ६ ठे और ८ वे भावों शनि, मंगल, सूर्य, राहू , केतू आदि में से ग्रह हो. दोनों और
५. ६ ठे और ८ वे भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो।
६. सप्तमेश नीच राशि में हो।
७. यदि सप्तमेश उच्च राशि का हो लेकिन वक्री होतो।
८. सप्तमेश पर शनि , राहू, या मंगल की दृष्टि हो।
९. सप्तमेश ६, ८, अथवा १२ वे भाव में हो।
१०. सप्तमेश के साथ पाप ग्रह हो अथवा सप्तमेश अस्त हो।
११. षष्ठेश अथवा अष्टमेश सप्तम भाव में हो
१२. यदि शुक्र अस्त हो अथवा ६ ठे या ८ वे भाव में हो।
१३. यदि लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में एक साथ या अलग-अलग मंगल, शनि या राहू हो।
१४. शुक्र से ४ थे अथवा ८ वे भाव में पाप ग्रह हो और शुक्र पाप ग्रहों के मध्य हो।
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2. महिलाओं की कुंडली में मंगल का प्रभाव
१. यदि मंगल सप्तम भाव का स्वामी हो( मेष अथवा वृश्चिक राशि का स्वामी ) उस जातिका के गर्भाशय में व्याधि होती है।
२. यदि सप्तम भाव में मंगल हो (मकर राशि को छोड़कर ) अन्य राशि का हो और उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो, ऐसी स्त्री का पति, क्रूर, अभद्र तथा झगड़ालू होता है।
३. यदि सप्तम भाव में मंगल हो और उस पर क्रूर और पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसी जातिका के पति की आयु पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
४. यदि मंगल सप्तम अथवा अष्टम भाव में हो और नवांश कुंडली में बुध के नवांश में हो तो, दाम्पत्य जीवन बहुत कष्टमय होता है।
५. यदि मंगल ८ वे भाव में होतो, उस जातिका के पति की उम्र पर विपरीत प्रभाव , दाम्पत्य जीवन में परेशानियां अथवा पति को अत्यधिक मानसिक तनाव देता है। ६. जिस जातिका की नवांश कुंडली में चन्द्र, मंगल की युति होती है वह अपराधी प्रवृत्ति की होता है।
७. यदि सप्तमेश शनि के साथ हो और उस पर मंगल की दृष्टि होतो , उसका दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।
८. यदि जिस जातिका की कुंडली में पंचम भाव में अथवा ११ वे में सूर्य, मंगल की युति होती है , वह प्रथम संतान का गर्भपात करवाती है।
९. जिस जातिका का मीन लग्न( १२) वा लग्न हो और ११ वे भाव में उच्च राशि का मंगल होतो, वह जातिका करोड़पति होती है।
१०. यदि १० वे भाव में मकर राशि का मंगल होतो, वह जातिका उत्तम प्रकार का राजयोग प्राप्त करती है।
११. यदि सप्तम भाव में शत्रु राशि का मंगल होतो,वह जातिका अपने पति शत्रुता रखती है।
१२. यदि सप्तम भाव के मंगल पर किसी शत्रु ग्रह की दृष्टि होतो वह जातिका अविश्वनीय होती है तथा पति से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते है। अत्यधिक मानसिक तनाव देता है। १३. यदि किसी जातिका की कुंडली में शुक्र, मंगल की युति हो अथवा दोनों में राशि परिवर्तन हो तो वह स्त्री अति कामुक होती है, व विवाद प्रिय होती है।
१४. यदि किसी जातिका की कुंडली में मंगल, शनि की युति होतो वह जातिका झगड़ालू होती है।
१५. यदि मंगल, गुरू की युति हो तो वह जातिका सम्मानित तथा बुद्धिमती होती है।
१६. यदि किसी जातिका की कुंडली में मंगल, केतू की युति होतो मंगल दोष दो गुना हो जाता है।
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3. स्त्रियों की कुंडली में जीवन साथी द्वारा मिलने वाला छल
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आज के समय में किसी को अच्छे बुरे की परवाह नहीं है और सभी लोग अंधों की तरह अपने स्वार्थों की पूर्ती करने में लगे हुए हैं. हम रोज़ ही अखबारों में पढ़ते रहते हैं की फलां स्त्री का अनैतिक यौन समबन्धों के कारण क़त्ल हो गया, फलां के साथ वैसा हो गया |
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पंचम भाव और पंचम का उपनक्ष्त्र स्वामी विवाह पूर्व प्रेम सम्बन्ध, शारीरिक सम्बन्ध आदि के होते है अन्य बातों के अलावा, शुक्र काम का मुख्य करक गृह है और रोमांस प्रेम आदि पर इसका अधिपत्य है. मंगल व्यक्ति में पाशविकता और तीव्र कामना भर देता है और शनि गुप्त रास्तों से कामाग्नि की पूर्ती करने को प्रेरित करता है ||
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“Astrology and Human Sex life” पुस्तक में Robson ने लिखा है : यदि शुक्र पर मंगल की द्रष्टि हो , दोनों गृह एक दुसरे की राशियों में हो तो व्यक्ति का अपनी बहिन या भाई या रक्त सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित होता है. और साथ ही यदि शुक्र के साथ चन्द्रमा हो – पुरुष की कुंडली में , तो वह अपनी बहिन या अन्य निकट सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित करता है. यदि वही शुक्र गुरु के साथ हो स्त्री की कुंडली में तो वह अपने भाई या अन्य निकट सम्बन्धियों से सम्बन्ध स्थापित करती है |
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4. कुंडली का अष्टम भाव अन्य बातों के अलावा यौन संब यौन संबंधों और क्रिया से सम्बन्ध रखता है |
यदि किसी व्यक्ति का १,५,११ भाव का सम्बन्ध मंगल शुक्र शनि से हो , वह स्वामित्व भी हो सकता है और राशी नक्षत्र और उपनक्ष्त्र के रूप में भी हो सकता है और मंगल शुक्र १ और ११ के कार्येष गृह हो सकते हैं जिन पर शनि की द्रष्टि पड़ रही हो तब निश्चित ही व्यक्ति के अन्दर , चाहे स्त्री हो या पुरुष , उन्मुक्तता की भावना रहेगी और दशा अंतर आने पर वह इन कृत्यों में लिप्त होकर ही रहेगा |
5. *आमतौर* पर लोग मानते हैं कि बुध शुभ ग्रह है और इससे लाभ मिलता है, लेकिन ऐसा नहीं है। यदि कुंडली में बुध सूर्य के संबंधित नहीं होगा तो इसकी वजह से व्यक्ति को हानि हो सकती है।
यदि बुध अशुभ होता है तो व्यक्ति को बुआ की ओर से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, कड़ी मेहनत के बाद भी व्वयवसाय या नौकरी में लाभ नहीं मिल पाता है।
बुध शुभ होने पर व्यक्ति को बुद्धि संबंधी कामों में विशेष लाभ मिलता है।
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जिन लोगों की कुंडली में केतु अकेला रहता है या अशुभ स्थिति में है, वे लोग गलतफहमी का शिकार होते रहते हैं। केतु की वजह से व्यक्ति को कई बार साथियों से धोखा मिलता है और सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है।
बुध के दोष दूर करने के लिए गणेशजी की विशेष पूजा करनी चाहिए। केतु के दोष दूर करने के लिए काले कंबल का दान करना चाहिए।
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6. मारकेश (अष्टम भाव का स्वामी ग्रह) की दशा में व्यक्ति को सावधान रहना जरूरी होता है क्योंकि इस समय जातक को अनेक प्रकार की मानसिक, शारीरिक परेशनियां हो सकती हैं. इस दशा समय में दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. जातक के जीवन में मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यत्तर दशा आती ही हैं. लेकिन इससे डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं पर नियंत्रण व सहनशक्ति तथा ध्यान से कार्य को करने की ओर उन्मुख रहना चाहिए||
very useful for life also read How the COVID-19 pandemic will affect our sex life
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