अल्पायु और दीर्घायु योग
दीर्घायु योग-कुंडली में 8वाँ स्थान आयु का होता है और अष्टम से अष्टम होने से तीसरा स्थान भी आयु का ही माना जाता है। दीर्घायु का निर्धारण करते समय लग्न के स्वामी के बलाबल के साथ इन स्थानों के स्वामी के बलाबल और उनकी स्थिति तथा इन स्थानों में बैठे ग्रहों के स्थिति का भी आकलन किया जाना जरूरी होता है
दीर्घायु योग
1. सभी ग्रह बलवान हो, लग्नेश प्रबल स्थिति में हो।
2. दसवे स्थान में मंगल, नवम में गुरु और पंचम में चन्द्र हो।
3. लग्न, दशम और अष्टम स्थान के स्वामी शनि के साथ केंद्र में ह
4 राहू 3, 6 या 11वें स्थान में हो और पाप प्रभाव से रहित हो।
5 अष्टम में शुभ ग्रह (गुरु नहीं) हो या स्वगृही शनि हो।
6 सारे ग्रह विषम राशियों में गए हो या सारे ग्रह अपनी स्वराशि में या मित्र ग्रहों की राशि में हो। चन्द्रमा पर और लग्न पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो।
7. चन्द्रमा स्वराशि का भाग्य में हो, लग्नेश मजबूत हो।
अल्पायु योग
1. आयु निर्धारण में मुख्य ग्रह यानि लग्न के स्वामी का बड़ा महत्व होता है। यदि मुख्य ग्रह 6, 8,12 में है तो वह स्वास्थ्य की परेशानी देगा ही देगा
2. यदि ग्रह शनि, राहू, सूर्य, मंगल, केतु और चंद्रमा (अमावस्या वाला) 3, 6,12 में हो तो आयु योग कमजोर करते हैं। लग्न में लग्नेश सूर्य के साथ हो और उस पर पाप दृष्टि हो तो आयु योग कमजोर पड़ता है।
3. यदि आठवें स्थान का स्वामी यानि अष्टमेश 6 या 12 स्थान में हो और पाप ग्रहों के साथ हो या पाप प्रभाव में हो तो आयु कम करते है। लग्नेश निर्बल हो और केंद्र में सभी पाप ग्रह हो, जिन पर शुभ दृष्टि न हो तो आयु कम होती है।
4. धन और व्यय भाव में (2 व 12 में) पाप ग्रह हो और मुख्य ग्रह कमजोर हो तो आयु कम होती है।
5. लग्न में शुक्र और गुरु हो और मंगल 5वें भाव में हो तो आयु कमजोर करता है।
6. लग्न का स्वामी होकर चन्द्रमा अस्त हो, ग्रहण में हो या नीच का हो तो आयु कम करता है।
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