Thursday, August 31, 2017

*ग्रह और रोग*


 🌹🌹 *ग्रह  और रोग*🌹🌹
*प्रत्येक ग्रह हमारे शरीर पर प्रभाव डालते है। जिससे की हमे बीमारियों का सामना करना पड़ता है।नीचे में बता रहा हूँ कि कौनसा  ग्रह  कौनसा रोग.दे सकता  है।*

🌹🌹🌹 *सूर्य और रोग:*🌹🌹🌹

*विवेक  : विवेक खोना ।*
*दिमाग : दिमाग और शरीर का दायां भाग सूर्य से प्रभावित होकर रोग देता है।*
*अकड़न :सूर्य के कारण खराब होने पर शरीर में अकड़न आ सकती है।*
*थूक का आना :मुंह में थूक आते रहता है।*
*दिल का रोग :दिल के रोग का होना।*  
*धड़कन :धड़कन का कम-ज्यादा होते रहना ।*
*दांतों  : दांतों में तकलीफ का होना।*
*बेहोशी और सिरदर्द  :का रोग होना ।*

🌹🌹 *चंद्र ग्रह और रोग :*🌹🌹
*दिल और बायां भाग  : दिल और बायां भाग मे चंद्र ग्रह का प्रभाव होने से रोग देता है।*
*रोग : सर्दी-जुकाम ,मिर्गी ,पागलपन, बेहोशी ,मासिक धर्म ,फेफड़े संबंधी रोगो का होना।*
*मासिक धर्म :मासिक धर्म ठीक से न होना।*
*स्मरण शक्ति कमजोर होना, मानसिक तनाव और मन में घबराहट होना, शंका और अनिश्चित भय का होना ।*
*आत्महत्या : मन में आत्महत्या करने के विचार  आते रहते हैं।*

*मंगल और रोग :*
*रोग :नेत्र रोग,उच्च रक्तचाप ,वात रोग, गठिया रोग ,फोड़े-फुंसी ,जख्मी या चोट। ।*
*बुखार : बार-बार बुखार का आना ।*
*रोग :शरीर में कंपन ,गुर्दे में पथरी,शारीरिक ताकत मे कमी ,।*
*शरीर के जोड़  :शरीर के जोड़ मे समस्या का होना ।*
*रक्त : मंगल से रक्त संबंधी बीमारी हो सकती है  ।*
*बच्चे पैदा होने मे समस्या हो सकती ।*
🌹🌹 *बुध ग्रह और रोग :*🌹🌹
*तुतलाहट : तुतलाहट का होना।*
*सूंघने  : सूंघने की शक्ति क्षीण होना ।*
*दांतों :  दांतों का खराब होना।*
*मित्र : मित्र से संबंध ख़राब होना ।*
*बहन, बुआ और मौसी  : बहन, बुआ और मौसी पर मुसीबत आना।*
*नौकरी या व्यापार : नौकरी या व्यापार में हानि होना।*
*बदनामी  :बदनामी होती है। राहु हो तो बदनामी हेतु प्राण देने के मानसिक रूप रहते हैं*

*गुरु ग्रह और रोग :*
*रोग :  पेचिश, रीढ़ की हड्डी में दर्द, कब्ज, रक्त विकार, कानदर्द, पेट फूलना, जिगर में खराबी ,अस्थमा, दमा, श्वास आदि के रोग, गर्दन, नाक या सिर में दर्द , वायु विकार, फेफड़ों में दर्द ।*
🌹🌹 *शुक्र ग्रह और रोग :*🌹🌹
*रोग :  गाल, ठुड्डी और नसों पर प्रभाव ,अंतड़ियों के रोग ,गुर्दे का दर्द , पांव में तकलीफ ।*
*वीर्य : वीर्य की कमी होना,  यौन रोग का होना , कामेच्छा का समाप्त होना ।*
*अंगूठे : अंगूठे में दर्द का रहना ।*
*त्वचा :  त्वचा संबंधी रोग का होना ।*
*और भी अन्य गुप्तरोग जो शरीर में दिखाई नहीं देते*

*शनि ग्रह और रोग :*
*रोग :  दृष्टि, बाल, भवें और कनपटी पर रहता है।*
 *आंखें कमजोर होना। भवों के बाल झड़ना ।*
*कनपटी की नसों में दर्द का होना ।*
*सिर के बाल का झड़ना ।*
*फेफड़े की  तकलीफ होती है।*
*हड्डियां का कमजोर होना। जोड़ों का दर्द होना ।*
*रक्त की कमी होना ।*
*पेट का फूलना।*
*सिर की नसों में तनाव।*
*चिंता और घबराहट का होना ।*

राहु के रोग  :*
*रोग :गैस प्रॉब्लम, बाल झड़ना , उदर रोग,बवासीर, पागलपन।*
*मानसिक तनाव  : मानसिक तनाव का रहना ।*
*नाखून :नाखून का  टूटते रहना ।*
*मस्तिष्क : मस्तिष्क में पीड़ा और दर्द का बने रहना  ।*
*पागलखाने, दवाखाने या जेलखाने जा  सकता है।*
*राहु अचानक से कोई बड़ी बीमारी पैदा हो सकती  है।* *इस नंबर पर आज हमारी चर्चा हुई थी*
🌹🌹 *केतु का रोग  :*🌹🌹
*पेशाब :पेशाब का रोग ,कान, रीढ़ ,घुटने, लिंग, जोड़ की समस्या ।*
*संतान : संतान उत्पति में कठिनाई ।*
*बाल  : सिर के बाल झड़ते हैं।*
*नसों :शरीर की नसों में कमजोरी का होना ।*
*चर्म रोग :  चर्म रोग होता है।*
*कान :सुनने की क्षमता कमजोर होना ।*


आखिर क्यों कोई लड़की/कन्या घर से भागने को मजबूर हो जाती हैं


आइये आज समझने की कोशिश करते हैं की आखिर क्यों कोई लड़की/कन्या घर से भागने को मजबूर हो जाती हैं || मेरे विचार से इसके कुछ कारण निम्न हो सकते हैं–
01 .–अधिक उम्र होना ||
02 .–आत्मनिर्भर या स्वरोजगार होना ||
03 .–उस युवती के आवास/घर/मकान में वास्तु दोष होना अर्थात वायव्य कोण में निर्मित पानी की टंकी, बोरिंग, सैप्टिक टैंक या कुआं अथवा किसी प्रकार से नीचा भाग होने पर वहां की निवासी लड़की/कन्या घर में कम बाहर अधिक रहती है। यदि कन्या बालिग नहीं है, तो उसे वायव्य दिशा शयनकक्ष में नहीं सुलाना चाहिए। वस्तुतः वायव्य कोण में उच्चाटन की प्रवृति होती है। इसका उद्देश्य वायव्य कोण में सोने वाले जातक को घर से बाहर भेजना होता है। कम उम्र की कन्या जिसकी अभी शादी होनी है, वायव्य दिशा के बेडरूम में सोने पर चंचल हो जाती है। अर्थात् ऐसी कन्या के वायव्य दिशा के कमरे में सोने पर कदम बहक सकते हैं।
04 .–दूसरा अनुभव में मेने यह पाया हैं की जिस घर में मनी प्लांट का पौधा लगा होता हैं उस घर में रहने वाली लडकिया प्रेम/ अन्तर जातीय विवाह करती हैं अथवा घर से भागकर शादी करती हैं।।
05 .– जरुरत से ज्यादा नियंत्रण/कंट्रोल, डांटना-फटकारना..
06 .– उस लड़की/कन्या की कुंडली में मंगल-शुक्र की युति या इनका कोई सम्बन्ध होना,
07 .–उसकी कुंडली में राहु की महादशा में चन्द्रमा की अंतर्दशा या चन्द्रमा में राहु-केतु की अंतर्दशा / या इनका किसी प्रकार का सम्बन्ध..
08 .– आजकल की सहशिक्षा, एक साथ नौकरी ,घर से दूर रहकर नौकरी एवं जीवन शैली के आधुनिक पर्यावरण में वे कच्ची उम्र में ही प्यार-मोहब्बत के चक्कर में पड़कर अपना जीवन तबाह कर लेते हैं।
संभवतया ऐसी स्थिति में रहने वाली लड़कियां अपनी मर्जी से घर से भागकर शादी कर लेती हैं। अनेक घटनाओं में किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों के कदम बहक सकते हैं।
आजकल वे कौन से हालात हैं जिनके कारण कोई भी लड़की को घर छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं ??
ऐसे अधिकांश मामलों में कुछ भी ऊंच नीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरह तरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है ||
जब लड़का और लड़की में परस्पर प्रेम होता है तदनन्तर जब दोनों एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में देखने लगते है और वही प्रेम जब विवाह के रूप में परिणत हो जाता है तो हम उसे प्रेम-विवाह कहते है। विद्वत और प्रेमी समाज ने प्रेम को अपने अपने नजरिये से देखा है। इसलिए प्रेम सभी रूपों में प्रतिष्ठित है यथा माता और पुत्र का स्नेह, गुरु-शिष्य का प्रेम, देवी देवताओ के प्रति प्रेम, लौकिक व अलौकिक प्रेम, विवाह पूर्व लड़का-लड़की का प्रेम इत्यादि। परन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है की क्या सभी प्रेमी अपने प्रेमिका या प्रेमी को पाने में सफल हो सकते है ? इसका उत्तर हाँ और न दोनों में होता है, कोई प्रेमी प्रेमिका को पाने में सफल होता है, तो कोई असफल।
आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं|| जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है||
इस का एक मुख्य कारण आज का बदलता परिवेश है|| आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है||
हिन्दू संस्कृति में विवाह को सोलह संस्कारो मे सबसे महत्वपूर्ण माना गया है यही संस्कार आपको सृष्टि के संचालन में सामाजिक रूप से सक्षम बनाता है | यही कारण है , शास्त्रों में चारो पुरुषार्थ अर्थ ,धर्म , काम , मोक्ष की प्राप्ति में विवाह अनिवार्य सामाजिक स्तम्भ है |
हालाँकि प्राचीन समय में आठ तरह के विवाह प्रचलन में थे लेकिन वर्तमान में दो विवाह मुख्य रूप से चलन में है –
(1) पारंपरिक विवाह -जिसमे माता पिता परिजन की स्वीकृति को महत्व देकर युवक युवती का विवाह किया जाता है जिसमे खासतौर पर परम्परा, मान्यताओं , जाति , गौत्र आदि को मान्यता दी जाति है |
(२) प्रेम विवाह – इस विवाह में युवक युवती अपनी पंसद से विवाह करते है स्वयं की पसंद को ज्यादा महत्व दिया जाता है ऐसे युगल मान्यताओ ,जाति, गौत्र आदि नियम से परे हो सकते है |
हम आज कुंडली में सफल प्रेम विवाह के योग पर चर्चा करेंगे आखिर किन ज्योतिषीय योगो के कारण प्रेम विवाह के योग बनते है |
कारक ग्रह –  सबसे पहले जानेंगे प्रेम विवाह कराने वाले कारक ग्रह कौन से होते है ??
जन्मकुंडली में मुख्य रूप से चन्द्रमा क्योकि चन्द्रमा मन का कारक माना जाता है | दूसरा कारक ग्रह होता है शुक्र क्योकि शुक्र आकर्षण और सेक्स का कारक ग्रह होता है | तीसरा कारक मंगल है जो साहस का कारक होता है क्योकि परिवार और समाज विमुख होकर विवाह की ताकत मंगल ही देता है साथ ही स्त्री में आकर्षण और काम उत्पत्ति का कारक ग्रह होता है | इन सबके अलावा मुख्य भूमिका में होते है शनि देव क्योकि शनि अन्तर्जातीय विवाह विजातीय विवाह के कारक होते है शनि के साथ राहू जुड़ जाने पर दुसरे धर्म के लोगो से विवाह के कारक बन सकते है |
प्रेम विवाह में भाव भूमिका –
जन्मकुंडली में प्रेम विवाह के लिए लग्न , पचंम, सप्तम ,एकादश और द्वादश भाव की मुख्य भूमिका होती है | लग्न से जातक के तन ,मन ,सफलता , व्यक्तित्व का पता चलता है वही पंचम भाव शिक्ष के अलावा प्रेम का और सप्तम भाव भाव विवाह का होता है जबकि द्वादश भाव शय्या सुख का होता है | एकादश भाव आपकी मनोकामनाओ की पूर्ति करने वाला होता है अगर आपकी मनोकामना प्रेम विवाह की है तो एकादश भाव ख़ास होता है |
प्रेम विवाह के लिए सबसे महत्वपूर्ण पंचम , सप्तम,एकादश और द्वादश भाव और इनके अधिपति का आपसी संबध दृष्टी , युति ,स्थिति किसी भी प्रकार से हो और शनि का सम्बद्ध जुड़ जाए तो मानिये प्रेम विवाह के योग प्रबल है |
हम ज्योतिषीय गणनाओ ग्रहों के योगायोग के आधार पर प्रेम विवाह और सफल वैवाहिक जीवन का निर्धारण कर सकते है |
दूसरी खास बात मंगल शुक्र का कुंडली में आपस में जुड़ना , पंचम पंचमेश का सप्तम और सप्तमेश से
जुड़ना और द्वादश भाव उसके स्वामी का सम्बद्ध प्रेम को चरम पर पहुचाते है |
कुछ ख़ास योग जिसमे प्रेम विवाह की सम्भावना बनती है —
• लड़की की कुंडली के जिस राशि में मंगल होता है उस राशि के जिस लड़के का शुक्र बैठा हो , वह लड़की उस लड़के की तरफ शीघ्र आकर्षित हो सकती है | जैसे लड़की की कुंडली में मेष राशि में मंगल बैठा हो और जिस लड़के का शुक्र मेष राशी में बैठा हो तो दोंनो में सहज आकर्षण होगा |
• पंचम और सप्तम भाव के स्वामी का आपस में एक दुसरे के घर में बैठना चूँकि पंचम प्रेम और सप्तम विवाह का घर है अत: प्रेम +विवाह के प्रबल योग बन जाते है |
• शुक्र , मंगल , राहू , शनि का चन्द्र पर प्रभाव डाल रहै हो तो जातक के मन में प्रेम भाव जाग्रत करते है | साथ ही अगर 5,7,12 और 2 भावो प्रभावित करे तो प्रेम विवाह का योग बनता है |
• लग्नेश ,पंचमेश , सप्तमेश ,नवमेश आपस में राशी परिवर्तन करे या सम्बन्ध बनाये तो प्रेम विवाह के योग बनते है |
• शनि के जुड़ने से अंतरजातीय विवाह होता है | राहू के जुड़ने से भाग कर विवाह करते है |
कुंडली में ऐसे योग होने के बावजूद अगर गुरु का सम्बन्ध और दृष्टि होती है तो प्रेम विवाह भंग हो सकता है ऐसी स्थिति में घर वालो के सहयोग राजी मर्जी से ही विवाह हो सकता है ||
ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की युति भी प्रेम को विवाह की परिणिति तक लेजाने में मददगार होती है।जब किसी लड़का और लड़की के बीच प्रेम होता है तो वे साथ साथ जीवन बीताने की ख्वाहिश रखते हैं और विवाह करना चाहते हैं। कोई प्रेमी अपनी मंजिल पाने में सफल होता है यानी उनकी शादी उसी से होती है जिसे वे चाहते हैं और कुछ इसमे नाकामयाब होते हैं। ज्योतिषशास्त्री इसके लिए ग्रह योग को जिम्मेवार मानते हैं। देखते हैं ग्रह योग कुण्डली में क्या कहते हैं।
ज्योतिषशास्त्र में शुक्र ग्रहष् को प्रेम का कारक माना गया है ।कुण्डली में लग्नए पंचमए सप्तम तथा एकादश भावों से शुक्र का सम्बन्ध होने पर व्यक्ति में प्रेमी स्वभाव का होता है। प्रेम होना अलग बात है और प्रेम का विवाह में परिणत होना अलग बात है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता है और सप्तम भाव विवाह का। पंचम भाव का सम्बन्ध जब सप्तम भाव से होता है तब दो प्रेमी वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं। नवम भाव से पंचम का शुभ सम्बन्ध होने पर भी दो प्रेमी पति पत्नी बनकर दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त करते हैं।
ऐसा नहीं है कि केवल इन्हीं स्थितियो मे प्रेम विवाह हो सकता है। अगर आपकी कुण्डली में यह स्थिति नहीं बन रही है तो कोई बात नहीं है हो सकता है कि किसी अन्य स्थिति के होने से आपका प्रेम सफल हो और आप अपने प्रेमी को अपने जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करें। पंचम भाव का स्वामी पंचमेश शुक्र अगर सप्तम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह की प्रबल संभावना बनती है ।शुक्र अगर अपने घर में मौजूद हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है।
यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोईकोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.
आज लड़के लड़कियों को समान दर्जा दिया जा रहा है. उन में आपस में मित्रता आम बात है. मगर पाखंडों में डूबे मध्यवर्गीय परिवारों में लड़कियों का लड़कों से दोस्ती करने को शक की निगाह से देखा जाता है. यदि कोई लड़की किसी लड़के से बात करती है, तो उस पर संदेह किया जाता है. जब घर वालों के व्यंग्यबाण लड़की की भावनाओं को आहत करते हैं तो उस के अंदर विद्रोह की भावना जागती है, क्योंकि वह सोचती है कि जब वह गलत नहीं है तब भी उसे संदेह की नजरों से देखा जा रहा है, तो क्यों न अपने व्यक्तित्व को लोग और समाज जैसा सोचते हैं वैसा ही बना लिया जाए जब बात सीमा से परे या सहनशक्ति से बाहर हो जाती है तो यह विद्रोह की भावना विस्फोट का रूप इख्तियार कर लेती है. लेकिन ऐसे हालात में भी घर वालों का सहयोगात्मक रवैया उस के बाहर बढ़ते कदमों को रोक सकता है, मगर अकसर मातापिता का उपेक्षापूर्ण रवैया ही इस के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार रहता है.
मातापिता की बड़ी भूल—-
ज्यादातर मातापिता सहयोग की भावना की जगह गुस्से से काम लेते हैं. दरअसल, युवावस्था एक ऐसी अवस्था होती है, जब बच्चों को सब कुछ नयानया लगता है. उन के मन में सब को जानने और समझने की जिज्ञासा रहती है. यदि उन्हें सही ढंग से समझाया जाए तो वे ऐसे कदम न उठाएं, क्योंकि यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है, जहां वह किसी के रोके नहीं रुकता. युवा बच्चे के मन की हर बात, हर इच्छा उस पर जनून बन कर सवार होती है, जिसे सिर्फ और सिर्फ मातापिता की सहानुभूति और प्रेमपूर्ण व्यवहार ही शिथिल कर सकता है. यदि मातापिता यह सोचते हैं कि बच्चे उन की डांट, मार या उपेक्षापूर्ण रवैए से सुधर जाएंगे तो यह उन की सब से बड़ी भूल होती है.
जरूरी है सहयोगात्मक रवैया—-
माना कि लड़कियों के घर से भागने की जिम्मेदार वे खुद हैं. पर इस में मातापिता और परिवेश का भी पूरापूरा योगदान रहता है. मातापिता लड़कियों की भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते. जबकि उन का सहयोगात्मक रवैया बेहद जरूरी होता है.
मगर लड़कियों को भी चाहिए कि वे भावावेश या जिद में आ कर कोई निर्णय न लें. बड़ों की बात को विवेकपूर्ण सुन कर ही कोई निर्णय करें, क्योंकि यथार्थ यह भी है कि एक पीढ़ी अंतराल के कारण विचारों में परिवर्तन होता है, जिस से मतभेद स्थापित होते हैं. बड़ों का विरोध करें, मगर उन की उचित बातों को जरूर मानें वरना यही पलायन प्रवृत्ति जारी रही तो आप ही जरा कल्पना कीजिए कि भविष्य में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा ||
आज प्रेम विवाह या परिवार द्वारा आयोजित किए जानेवाले विवाह में कोई अंतर नहीं रह गया है। यदि युवा किसी से प्रेम भी करते हैं तो भले ही कुछ दिन इंतजार करना पडे , पर अपने अपने अभिभावकों को विश्वास में ले ही लेते हैं और आखिर में उनकी रजामंदी से प्रेम विवाह को अभिभावक के पसंदीदा विवाह में बदल ही दिया जाता है। सारे नाते रिश्तेदारों के मध्य उत्सवी माहौल में न सिर्फ उनका विवाह ही करवाया जाता है , वरन् उनके प्रेम का कोई गलत अर्थ न लगाते हुए उनके चुनाव की प्रशंसा भी की जाती है। यदि परिवारवालों की पसंद के अनुसार भी विवाह हो रहा हो , तो भी विवाह पूर्व युवकों और युवतियों को एक दूसरे से मिलने और एक दूसरे को समझने की पूरी स्वतंत्रता मिल ही जाती है।
किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें। ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं। वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है। इनके विवाह के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं। जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रेम विवाह से संबंधित तीन ग्रह होते हैं। यह तीन ग्रह सूर्य, बुध और शुक्र हैं। इन तीनों ग्रहों के कारण व्यक्ति को प्रेम होता है। अगर यह तीनों ग्रह एक साथ एक ही भाव में स्थित हो तो वह व्यक्ति प्रेम विवाह निश्चित करता है।
—यदि शुक्र, सूर्य और बुध तीनों ग्रह एक ही क्रम में अलग-अलग भावों में हो तो प्रेम होता है परंतु इनका विवाह नहीं हो पाता।
—सूर्य, बुध और सूर्य इन ग्रहों में से कोई दो युति करते हो और एक अन्य ग्रह भाव में स्थित हो जाए तो बहुत मुश्किल से प्रेम विवाह होता है।
—सूर्य, बुध सप्तम स्थान में हो तो अपने से बड़ी उम्र का प्रेमी मिलता है।
—शुक्र बलवान होन कई साथी मिलते हैं परतुं अन्य दो ग्रह सूर्य-बुध के कमजोर होने पर व्यक्ति को अपना प्रेम नहीं मिलता।
प्रेम विवाह करने वाले लडके व लडकियों को एक-दुसरे को समझने के अधिक अवसर प्राप्त होते है. इसके फलस्वरुप दोनों एक-दूसरे की रुचि, स्वभाव व पसन्द-नापसन्द को अधिक कुशलता से समझ पाते है. प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू भावनाओ व स्नेह की प्रगाढ डोर से बंधे होते है. ऎसे में जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी दोनों का साथ बना रहता है.पर कभी-कभी प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू के विवाह के बाद की स्थिति इसके विपरीत होती है. इस स्थिति में दोनों का प्रेम विवाह करने का निर्णय शीघ्रता व बिना सोचे समझे हुए प्रतीत होता है.
जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है।
शुक्र अगर लग्न स्थान में स्थित है और चन्द्र कुण्डली में शुक्र पंचम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह संभव होता है। नवमांश कुण्डली जन्म कुण्डली का शरीर माना जाता है अगर कुण्डली में प्रेम विवाह योग नहीं है और नवमांश कुण्डली में सप्तमेश और नवमेश की युति होती है तो प्रेम विवाह की संभावना 100 प्रतिशत बनती है। शुक्र ग्रह लग्न में मौजूद हो और साथ में लग्नेश हो तो प्रेम विवाह निश्चित समझना चाहिए । शनि और केतु पाप ग्रह कहे जाते हैं लेकिन सप्तम भाव में इनकी युति प्रेमियों के लिए शुभ संकेत होता है।
राहु अगर लग्न में स्थित है तोनवमांश कुण्डली या जन्म कुण्डली में से किसी में भी सप्तमेश तथा पंचमेश का किसी प्रकार दृष्टि या युति सम्बन्ध होने पर प्रेम विवाह होता है। लग्न भाव में लग्नेश हो साथ में चन्द्रमा की युति हो अथवा सप्तम भाव में सप्तमेश के साथ चन्द्रमा की युति हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है। सप्तम भाव का स्वामी अगर अपने घर में है तब स्वगृही सप्तमेश प्रेम विवाह करवाता है। एकादश भाव पापी ग्रहों के प्रभाव में होता है तब प्रेमियों का मिलन नहीं होता है और पापी ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्त है तो व्यक्ति अपने प्रेमी के साथ सात फेरे लेता है।
प्रेम विवाह के लिए सप्तमेश व एकादशेश में परिवर्तन योग के साथ मंगल नवम या त्रिकोण में हो या फिर द्वादशेश तथा पंचमेश के मध्य राशि परिवर्तन हो तब भी शुभ और अनुकूल परिणाम मिलता है। पर कभी.कभी प्रेम विवाह करने वाले वर.वधू के विवाह के बाद की स्थिति इसके विपरीत होती हैण् इस स्थिति में दोनों का प्रेम विवाह करने का निर्णय शीघ्रता व बिना सोचे समझे हुए प्रतीत होता हैण् आईये देखे कि कुण्डली के कौन से योग प्रेम विवाह की संभावनाएं बनाते हैं ||
राहु के योग से प्रेम विवाह की संभावनाएं —-
जब राहु लग्न में हों परन्तु सप्तम भाव पर गुरु की दृ्ष्टि हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह होने की संभावनाए बनती हैण् राहु का संबन्ध विवाह भाव से होने पर व्यक्ति पारिवारिक परम्परा से हटकर विवाह करने का सोचता हैण् राहु को स्वभाव से संस्कृ्ति व लीक से हटकर कार्य करने की प्रवृ्ति का माना जाता है।
जब जन्म कुण्डली में मंगल का शनि अथवा राहु से संबन्ध या युति हो रही हों तब भी प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती हैण् कुण्डली के सभी ग्रहों में इन तीन ग्रहों को सबसे अधिक अशुभ व पापी ग्रह माना गया हैण् इन तीनों ग्रहों में से कोई भी ग्रह जब विवाह भावए भावेश से संबन्ध बनाता है तो व्यक्ति के अपने परिवार की सहमति के विरुद्ध जाकर विवाह करने की संभावनाएं बनती है।
जिस व्यक्ति की कुण्डली में सप्तमेश व शुक्र पर शनि या राहु की दृ्ष्टि होए उसके प्रेम विवाह करने की सम्भावनाएं बनती है। जब पंचम भाव के स्वामी की उच्च राशि में राहु या केतु स्थित हों तब भी व्यक्ति के प्रेम विवाह के योग बनते है।
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प्रेम विवाह के ज्योतिषीय सिद्धांत या नियम—
जब किसी व्यक्ति कि कुण्ड्ली में मंगल अथवा चन्द्र पंचम भाव के स्वामी के साथए पंचम भाव में ही स्थित हों तब अथवा सप्तम भाव के स्वामी के साथ सप्तम भाव में ही हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है ।
इसके अलावा जब शुक्र लग्न से पंचम अथवा नवम अथवा चन्द लग्न से पंचम भाव में स्थित होंने पर प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है। प्रेम विवाह के योगों में जब पंचम भाव में मंगल हों तथा पंचमेश व एकादशेश का राशि परिवतन अथवा दोनों कुण्डली के किसी भी एक भाव में एक साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह होने के योग बनते है।
अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में पंचम व सप्तम भाव के स्वामी अथवा सप्तम व नवम भाव के स्वामी एक.दूसरे के साथ स्थित हों उस स्थितिमें प्रेम विवाह होने के योग बनते है।
अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में पंचम व सप्तम भाव के स्वामी अथवा सप्तम व नवम भाव के स्वामी एक.दूसरे के साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है।
जब सप्तम भाव में शनि व केतु की स्थिति हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह हो सकता है।
कुण्डली में लग्न व पंचम भाव के स्वामी एक साथ स्थित हों या फिर लग्न व नवम भाव के स्वामी एक साथ बैठे होंए अथवा एक.दूसरे को देख रहे हों इस स्थिति में व्यक्ति के प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है।
जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व सप्तम भाव के स्वामी एक .दूसरे से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहे हों तब भी प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है।
जब सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में ही स्थित हों तब विवाह का भाव बली होता ह तथा व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है।
पंचम व सप्तम भाव के स्वामियों का आपस में युतिए स्थिति अथवा दृ्ष्टि संबन्ध हो या दोनों में राशि परिवर्तन हो रहा हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है।् जब सप्तमेश की दृ्ष्टिए युतिए स्थिति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हों तोए प्रेम विवाह होता है।
द्वादश भाव में लग्नेशए सप्तमेश कि युति हों व भाग्येश इन से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहा होए तो प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है।
जब जन्म कुण्डली में शनि किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर वह मंगलए सप्तम भाव व सप्तमेश से संबन्ध बनाते है तो प्रेम विवाह हो सकता है।
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प्रेम विवाह हेतु निर्धारित भाव एवं ग्रह—
ज्योतिषशास्त्र में सभी विषयों के लिए निश्चित भाव निर्धारित किया गया है लग्न, पंचम, सप्तम, नवम, एकादश, तथा द्वादश भाव को प्रेम-विवाह का कारक भाव माना गया है यथा —
लग्न भाव — जातक स्वयं।
पंचम भाव — प्रेम या प्यार का स्थान।
सप्तम भाव — विवाह का भाव।
नवम भाव — भाग्य स्थान।
एकादश भाव — लाभ स्थान।
द्वादश भाव — शय्या सुख का स्थान।
वहीं सभी ग्रहो को भी विशेष कारकत्व प्रदान किया गया है। यथा “शुक्र ग्रह” को प्रेम तथा विवाह का कारक माना गया है। स्त्री की कुंडली में “ मंगल ग्रह “ प्रेम का कारक माना गया है।
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विवाह होने के कुछ योग निम्नानुसार हैं-
(1) लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए।
(2) जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में,
(3) लग्न,चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में,
(4) शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेशकी संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर।
(5) लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए,
(6) दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में,
(7) सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए।
(8) द्वितीयेश जिस राशि में हो,उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में।
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राहु के योग से प्रेम विवाह की संभावनाएं—-
1) जब राहु लग्न में हों परन्तु सप्तम भाव पर गुरु की दृ्ष्टि हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह होने की संभावनाए बनती है. राहु का संबन्ध विवाह भाव से होने पर व्यक्ति पारिवारिक परम्परा से हटकर विवाह करने का सोचता है. राहु को स्वभाव से संस्कृ्ति व लीक से हटकर कार्य करने की प्रवृ्ति का माना जाता है.
2.) जब जन्म कुण्डली में मंगल का शनि अथवा राहु से संबन्ध या युति हो रही हों तब भी प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है. कुण्डली के सभी ग्रहों में इन तीन ग्रहों को सबसे अधिक अशुभ व पापी ग्रह माना गया है. इन तीनों ग्रहों में से कोई भी ग्रह जब विवाह भाव, भावेश से संबन्ध बनाता है तो व्यक्ति के अपने परिवार की सहमति के विरुद्ध जाकर विवाह करने की संभावनाएं बनती है.
3.) जिस व्यक्ति की कुण्डली में सप्तमेश व शुक्र पर शनि या राहु की दृ्ष्टि हो, उसके प्रेम विवाह करने की सम्भावनाएं बनती है.
4) जब पंचम भाव के स्वामी की उच्च राशि में राहु या केतु स्थित हों तब भी व्यक्ति के प्रेम विवाह के योग बनते है.
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प्रेम विवाह के अन्य योग——
1) जब किसी व्यक्ति कि कुण्ड्ली में मंगल अथवा चन्द्र पंचम भाव के स्वामी के साथ, पंचम भाव में ही स्थित हों तब अथवा सप्तम भाव के स्वामी के साथ सप्तम भाव में ही हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है.
2) इसके अलावा जब शुक्र लग्न से पंचम अथवा नवम अथवा चन्द लग्न से पंचम भाव में स्थित होंने पर प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है |
3) प्रेम विवाह के योगों में जब पंचम भाव में मंगल हों तथा पंचमेश व एकादशेश का राशि परिवतन अथवा दोनों कुण्डली के किसी भी एक भाव में एक साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह होने के योग बनते है.
4) अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में पंचम व सप्तम भाव के स्वामी अथवा सप्तम व नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है.
5) जब सप्तम भाव में शनि व केतु की स्थिति हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह हो सकता है.
6) कुण्डली में लग्न व पंचम भाव के स्वामी एक साथ स्थित हों या फिर लग्न व नवम भाव के स्वामी एक साथ बैठे हों, अथवा एक-दूसरे को देख रहे हों इस स्थिति में व्यक्ति के प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है.
7) जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व सप्तम भाव के स्वामी एक -दूसरे से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहे हों तब भी प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है.
8) जब सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में ही स्थित हों तब विवाह का भाव बली होता है. तथा व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है.
9) पंचम व सप्तम भाव के स्वामियों का आपस में युति, स्थिति अथवा दृ्ष्टि संबन्ध हो या दोनों में राशि परिवर्तन हो रहा हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है.
10) जब सप्तमेश की दृ्ष्टि, युति, स्थिति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हों तो, प्रेम विवाह होता है.
11) द्वादश भाव में लग्नेश, सप्तमेश कि युति हों व भाग्येश इन से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहा हो, तो प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है.
12) जब जन्म कुण्डली में शनि किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर वह मंगल, सप्तम भाव व सप्तमेश से संबन्ध बनाते है. तो प्रेम विवाह हो सकता है.
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जानिए उन वास्तुदोष को जिनके कारण करती है लड़कियां घर से भाग कर शादी !!!!
वास्तु विज्ञान के अनुसार सोने के तरीके और बिस्तर का प्रभाव भी हमारे ऊपर होता है। आपका बिछावन और सोने का अंदाज सही नहीं है तो कैरियर और धन संबंधी समस्याओं को लेकर भी परेशानी बनी रहती है। बिस्तर का प्रभाव दांपत्य जीवन और विवाह पर भी होता है। इससे विवाह में बाधा भी आती है। इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए वास्तु विज्ञान में कुछ उपाय बताए गये हैं।
** यह स्थिति तब पैदा होती है जब उस लड़की के घर के वायव्य कोण में निर्मित पानी की टंकी, बोरिंग, सैप्टिक टैंक या कुआं अथवा किसी प्रकार से नीचा होने पर बेटी घर में कम बाहर अधिक रहती है।
प्रायः देखा गया है कि ऐसी स्थिति में रहने वाली लड़कियां अपनी मर्जी से घर से भागकर शादी कर लेती हैं। अगर घर का वास्तु ठीक नहीं है, तो किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों के कदम बहक सकते हैं।
वर्तमान सहशिक्षा एवं जीवन शैली के आधुनिक पर्यावरण में वे कच्ची उम्र में ही प्यार-मोहब्बत के चक्कर में पड़कर अपना जीवन तबाह कर लेते हैं।
*** दूसरा अनुभव में मेने यह पाया हैं की जिस घर में मनी प्लांट का पौधा लगा होता हैं उस घर में रहने वाली लडकिया प्रेम/ अन्तर जातीय विवाह करती हैं अथवा घर से भागकर शादी करती हैं।।
*****यदि आपके घर में बेटी के साथ ऐसी कोई समस्या है,तो उसकी कुंडली किसी योग्य और अनुभवी ज्योतिषि से विश्लेषण करवा कर उचित उपाय करे।
*****बेटी को फटकारने के बजाय घर के वास्तु दोषों पर ध्यान दीजिए। उन वास्तु दोषों को दूर करने के उपाय कीजिए। समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।
*****यदि कन्या बालिग नहीं है, तो उसे वायव्य दिशा शयनकक्ष में नहीं सुलाना चाहिए। वस्तुतः वायव्य कोण में उच्चाटन की प्रवृति होती है। इसका उद्देश्य वायव्य कोण में सोने वाले जातक को घर से बाहर भेजना होता है।
कम उम्र की कन्या जिसकी अभी शादी होनी है, वायव्य दिशा के बेडरूम में सोने पर चंचल हो जाती है। अर्थात् ऐसी कन्या के वायव्य दिशा के कमरे में सोने पर कदम बहक सकते हैं।उचित सलाह और उपाय से आप अपनी बेटी का भविष्य सवार सकते है।
ऐसे लगाएं बेड—–
वास्तु विज्ञान के अनुसार लड़के और लड़कियों के लिए बेड लगाने की दिशा अलग अलग है। लड़कियों के लिए वायव्य कोण यानी उत्तर पश्चिम दिशा शुभ होती है जबकि लड़कों के लिए पूर्व और पूर्वोत्तर दिशा शुभ रहती है। बेड लगाते समय यह भी ध्यान रखें कि बेड किसी भी दीवार से सटा हुआ नहीं हो।
बेड के नीचे कुछ न रखें—-
बेड की साफ सफाई जितनी जरूरी है उतनी ही जरूरी है बेड के नीचे की सफाई। इसलिए अगर बेड के नीचे सामान रखने की आदत है तो इसे बदल दीजिए। बेड के नीचे रखे हुए सामनों से नकारात्मक उर्जा का संचार होता है जो विवाह में बाधक होता है। अगर बॉक्स वाले पलंग पर सोते हैं तो निश्चित ही बॉक्स में काफी सामान रखते होंगे।
इससे भी नकारात्मक उर्जा का संचार होता है। इस नकरात्मक उर्जा को दूर करने के लिए पलंग के चारों पायों के नीचे तांबे का एक स्प्रिंग अथवा एक बाउल में नमक भर कर रखें।
बेड के बाईं ओर सोएं—-
बेड पर हमेशा बायीं ओर सोएं। यह सिर्फ वास्तुशास्त्र ही नहीं  बल्कि लंदन के एक होटल प्रीमियर इन द्वारा किये गये एक सर्वे रिपोर्ट में भी कहा गया है कि बांयी ओर सोने वाले व्यक्ति का मूड अधिक अच्छा रहता है। उनके अंदर सकारात्मक सोच रहती है और वह अधिक एक्टिव रहते हैं।
ऐसे युवक / युवती जो विवाह योग्य है और विवाह में अड़चने आ रही ही तो वैसे युवक-युवतियों को घर में उस कमरे में रहना चाहिए जो उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है । उनका कमरा और दरवाजा का रंग गुलाबी, हल्का पीला, सफेद(चमकीला) करवाएं जाय । यदि कुंडली में मंगल दोष की उपस्तिथि के कारण विवाह में विलंब होना सिद्ध हो रहा हो तो उनके कमरे के दरवाजे का रंग लाल अथवा गुलाबी रखना ही उत्तम होगा। ऐसे युवक/ युवती जिस पलंग पर सोते हों उसके नीचे लोहे की वस्तुएं या व्यर्थ का सामान नहीं रखना चाहिए।
नैरित्य कोण उपस्तिथ दोष विवाह में अवरोध और वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न करता है. यदि नैरित्य कोण में रसोई या शौच का कार्य हो, नैरित्य कोण दूषित हो जता है. इसके अलावा यदि इस कोण में सेप्टिक टेंक हो, अंडर ग्राउंड पानी की टंकी हो, .कुआं हो, बोर हो, मुख्य प्रवेश द्वार हो तो भी वास्तु दोष उत्त्पन्न होता है. अतः विवाह सम्बन्धी बातों की नियमितता के लिए यह आवश्यक है की इन तथ्यों की ओरे भी ध्यान दिया जाय.

जानिए की किस मन्त्र के जाप से किस दिशा का होगा वास्तु दोष( प्रभाव )दूर


जानिए की किस मन्त्र के जाप से किस दिशा का होगा वास्तु दोष( प्रभाव )दूर या कम
आजकल शायद ही कोई ऐसा घर हो जो वास्तु दोष से मुक्त हो। वास्तु दोष का प्रभाव कई बार देर से होता है तो कई बार इसका प्रभाव शीघ्र असर दिखने लगता है।
इसका कारण यह है कि सभी दिशाएं किसी न किसी ग्रह और देवताओं के प्रभाव में होते हैं। जब किसी मकान मालिक ( जिसके नाम पर मकान हो) पर ग्रह विशेष की दशा चलती है तब जिस दिशा में वास्तु दोष होता है उस दिशा का अशुभ प्रभाव घर में रहने वाले व्यक्तियों पर दिखने लगता है।
आज में आपको सभी दिशाओं के दोष को दूर करने का सबसे आसान तरीका बता रहा हूँ।। इन मंत्र जप के प्रभाव स्वरूप (फलस्वरूप) आप काफी हद तक अपने वस्तुदोषो से मुक्ति प्राप्त कर पायेंगें ।। ऐसा मेरा विश्वास हें।।
ध्यान रखें मन्त्र जाप में में आस्था और विश्वास अति आवश्य हैं। यदि आप सम्पूर्ण भक्ति भाव और एकाग्रचित्त होकर इन मंत्रो को जपेंगें तो निश्चित ही लाभ होगा।।
देश- काल और मन्त्र सधाक की साधना(इच्छा शक्ति) अनुसार परिणाम भिन्न भिन्न हो सकते हैं।।
तर्क कुतर्क वाले इनसे दूर रहें।। इनके प्रभाव को नगण्य मानें।।
ईशान दिशा
इस दिशा के स्वामी बृहस्पति हैं। और देवता हैं भगवान शिव। इस दिशा के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नियमित गुरू मंत्र ‘ओम बृं बृहस्पतये नमः’ मंत्र का जप करें। शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का 108 बार जप करना भी लाभप्रद होता है।
पूर्व दिशा
घर का पूर्व दिशा वास्तु दोष से पीड़ित है तो इसे दोष मुक्त करने के लिए प्रतिदिन सूर्य मंत्र ‘ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का जप करें। सूर्य इस दिशा के स्वामी हैं। इस मंत्र के जप से सूर्य के शुभ प्रभावों में वृद्घि होती है। व्यक्ति मान-सम्मान एवं यश प्राप्त करता है। इन्द्र पूर्व दिशा के देवता हैं। प्रतिदिन 108 बार इंद्र मंत्र ‘ओम इन्द्राय नमः’ का जप करना भी इस दिशा के दोष को दूर कर देता है।।
आग्नेय दिशा
इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र और देवता अग्नि हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शुक्र अथवा अग्नि के मंत्र का जप लाभप्रद होता है। शुक्र का मंत्र है ‘ओम शुं शुक्राय नमः’। अग्नि का मंत्र है ‘ओम अग्नेय नमः’। इस दिशा को दोष से मुक्त रखने के लिए इस दिशा में पानी का टैंक, नल, शौचालय अथवा अध्ययन कक्ष नहीं होना चाहिए।
दक्षिण दिशा
इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और देवता यम हैं। दक्षिण दिशा से वास्तु दोष दूर करने के लिए नियमित ‘ओम अं अंगारकाय नमः’ मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। यह मंत्र मंगल के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है। ‘ओम यमाय नमः’ मंत्र से भी इस दिशा का दोष समाप्त हो जाता है।
नैऋत्य दिशा
इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह हैं। घर में यह दिशा दोषपूर्ण हो और कुण्डली में राहु अशुभ बैठा हो तो राहु की दशा व्यक्ति के लिए काफी कष्टकारी हो जाती है। इस दोष को दूर करने के लिए राहु मंत्र ‘ओम रां राहवे नमः’ मंत्र का जप करें। इससे वास्तु दोष एवं राहु का उपचार भी उपचार हो जाता है।
पश्चिम दिशा
यह शनि की दिशा है। इस दिशा के देवता वरूण देव हैं। इस दिशा में किचन कभी भी नहीं बनाना चाहिए। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शनि मंत्र ‘ओम शं शनैश्चराय नमः’ का नियमित जप करें। यह मंत्र शनि के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है।
वायव्य दिशा
चन्द्रा इस दिशा के स्वामी ग्रह हैं। यह दिशा दोषपूर्ण होने पर मन चंचल रहता है। घर में रहने वाले लोग सर्दी जुकाम एवं छाती से संबंधित रोग से परेशान होते हैं। इस दिशा के दोष को दूर करने के लिए चन्द्र मंत्र ‘ओम चन्द्रमसे नमः’ का जप लाभकारी होता है।
उत्तर दिशा
यह दिशा के देवता धन के स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा बुध ग्रह के प्रभाव में आता है। इस दिशा के दूषित होने पर माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है।। माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है। आर्थिक कठिनाईयों का भी सामना करना होता है। इस दिशा को वास्तु दोष से मुक्त करने के लिए ‘ओम बुधाय नमः या ‘ओम कुबेराय नमः’ मंत्र का जप करें। आर्थिक समस्याओं में कुबेर मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है।

जानिए की किस मन्त्र के जाप से किस दिशा का होगा वास्तु दोष( प्रभाव )दूर या कम


जानिए की किस मन्त्र के जाप से किस दिशा का होगा वास्तु दोष( प्रभाव )दूर या कम
आजकल शायद ही कोई ऐसा घर हो जो वास्तु दोष से मुक्त हो। वास्तु दोष का प्रभाव कई बार देर से होता है तो कई बार इसका प्रभाव शीघ्र असर दिखने लगता है।
इसका कारण यह है कि सभी दिशाएं किसी न किसी ग्रह और देवताओं के प्रभाव में होते हैं। जब किसी मकान मालिक ( जिसके नाम पर मकान हो) पर ग्रह विशेष की दशा चलती है तब जिस दिशा में वास्तु दोष होता है उस दिशा का अशुभ प्रभाव घर में रहने वाले व्यक्तियों पर दिखने लगता है।
आज में आपको सभी दिशाओं के दोष को दूर करने का सबसे आसान तरीका बता रहा हूँ।। इन मंत्र जप के प्रभाव स्वरूप (फलस्वरूप) आप काफी हद तक अपने वस्तुदोषो से मुक्ति प्राप्त कर पायेंगें ।। ऐसा मेरा विश्वास हें।।
ध्यान रखें मन्त्र जाप में में आस्था और विश्वास अति आवश्य हैं। यदि आप सम्पूर्ण भक्ति भाव और एकाग्रचित्त होकर इन मंत्रो को जपेंगें तो निश्चित ही लाभ होगा।।
देश- काल और मन्त्र सधाक की साधना(इच्छा शक्ति) अनुसार परिणाम भिन्न भिन्न हो सकते हैं।।
तर्क कुतर्क वाले इनसे दूर रहें।। इनके प्रभाव को नगण्य मानें।।
ईशान दिशा
इस दिशा के स्वामी बृहस्पति हैं। और देवता हैं भगवान शिव। इस दिशा के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नियमित गुरू मंत्र ‘ओम बृं बृहस्पतये नमः’ मंत्र का जप करें। शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का 108 बार जप करना भी लाभप्रद होता है।
पूर्व दिशा
घर का पूर्व दिशा वास्तु दोष से पीड़ित है तो इसे दोष मुक्त करने के लिए प्रतिदिन सूर्य मंत्र ‘ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का जप करें। सूर्य इस दिशा के स्वामी हैं। इस मंत्र के जप से सूर्य के शुभ प्रभावों में वृद्घि होती है। व्यक्ति मान-सम्मान एवं यश प्राप्त करता है। इन्द्र पूर्व दिशा के देवता हैं। प्रतिदिन 108 बार इंद्र मंत्र ‘ओम इन्द्राय नमः’ का जप करना भी इस दिशा के दोष को दूर कर देता है।।
आग्नेय दिशा
इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र और देवता अग्नि हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शुक्र अथवा अग्नि के मंत्र का जप लाभप्रद होता है। शुक्र का मंत्र है ‘ओम शुं शुक्राय नमः’। अग्नि का मंत्र है ‘ओम अग्नेय नमः’। इस दिशा को दोष से मुक्त रखने के लिए इस दिशा में पानी का टैंक, नल, शौचालय अथवा अध्ययन कक्ष नहीं होना चाहिए।
दक्षिण दिशा
इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और देवता यम हैं। दक्षिण दिशा से वास्तु दोष दूर करने के लिए नियमित ‘ओम अं अंगारकाय नमः’ मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। यह मंत्र मंगल के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है। ‘ओम यमाय नमः’ मंत्र से भी इस दिशा का दोष समाप्त हो जाता है।
नैऋत्य दिशा
इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह हैं। घर में यह दिशा दोषपूर्ण हो और कुण्डली में राहु अशुभ बैठा हो तो राहु की दशा व्यक्ति के लिए काफी कष्टकारी हो जाती है। इस दोष को दूर करने के लिए राहु मंत्र ‘ओम रां राहवे नमः’ मंत्र का जप करें। इससे वास्तु दोष एवं राहु का उपचार भी उपचार हो जाता है।
पश्चिम दिशा
यह शनि की दिशा है। इस दिशा के देवता वरूण देव हैं। इस दिशा में किचन कभी भी नहीं बनाना चाहिए। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शनि मंत्र ‘ओम शं शनैश्चराय नमः’ का नियमित जप करें। यह मंत्र शनि के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है।
वायव्य दिशा
चन्द्रा इस दिशा के स्वामी ग्रह हैं। यह दिशा दोषपूर्ण होने पर मन चंचल रहता है। घर में रहने वाले लोग सर्दी जुकाम एवं छाती से संबंधित रोग से परेशान होते हैं। इस दिशा के दोष को दूर करने के लिए चन्द्र मंत्र ‘ओम चन्द्रमसे नमः’ का जप लाभकारी होता है।
उत्तर दिशा
यह दिशा के देवता धन के स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा बुध ग्रह के प्रभाव में आता है। इस दिशा के दूषित होने पर माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है।। माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है। आर्थिक कठिनाईयों का भी सामना करना होता है। इस दिशा को वास्तु दोष से मुक्त करने के लिए ‘ओम बुधाय नमः या ‘ओम कुबेराय नमः’ मंत्र का जप करें। आर्थिक समस्याओं में कुबेर मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है।

रुद्राक्ष की पहचान कैसे करें


💐रुद्राक्ष की पहचान कैसे करें

💐आमतौरपर आपने देखा होगा की मार्किट में रुद्राक्ष हर दुकान ,चुराहेव कई तो कम्पनिया इसे बेच रही है, परन्तुइसकी पहचान करना बहुत ही कठिन है! एक मुखी व एकाधिक मुखीरुद्राक्ष महंगे होने के कारण नकली भी बाजार में बिक रहेहै! नकली मनुष्य असली के रूप में इन्हे खरीद तो लेता है परन्तु उसका फल नहीमिलता! जिस कारण वह रुद्राक्ष के फायदे से वंचित रह जाता है व जीवन भर उसकीमन में यह धारणा रहती है कि रुद्राक्ष एक बेकार वस्तु है! कई लोग लाभ केलालच में कैमिकल का इस्तेमाल कर इसका रंग रूप असली रूद्राक्ष जैसा कर देतेहै व इसके ऊपर धारिया बना कर मंहगे भाव में बेच देते है! कई बार दो रुद्राक्षों को बड़ीसफाई से जोड़ कर बेचा जाता है!

#आपने देखा होगा कि कई रूद्राक्षोंपर गणेश, सर्प, वशिवलिंग की आकृति बना कर भी लाभ कमाया जाता है! ऐसी और भी बातों केकारण रूद्राक्ष मंहगे भाव में बेच दिय जाते हैं पर देखाजाये तो जो आदमी अध्यात्मिक विश्वास में रुद्राक्ष खरीदता है अगर उसे ऐसारुद्राक्ष मिल जाये तो उसे कोई लाभ नही बल्कि उसके अध्यात्मिक मन के साथधोखा होता है! आप ने कभी भी कोई रुद्राक्ष लेना तो विश्वसनीय स्थान से हीखरीदे! परन्तु आप भी अपने ढंग से जान सकते है असली और नकली रुद्राक्ष कैसेहोते है!  अकसरयह माना जाता है की पानी में डूबने वाला रुद्राक्ष असली और तैरने वालानकली होता है! यह सत्य नही है रुद्राक्ष का डूबना व तैरना उसके कच्चे पन वतेलियता की मात्रा पर निर्भर होता है पके होने पर व पानी में डूब जायेगा! दुसराकारण तांबे के दो सिक्को के बीच रुद्राक्ष को रख कर दबाने पर यो घूमताहै यह भी सत्य नही!

💐कोई दबाव अधिक लगायेगा तो वो किसी न किसी दिशा मेंअसली घूमेगा ही इस तरह की और धारणाये है जो की रुद्राक्ष के असली होने काप्रणाम नही देती! असली के लिए रुद्राक्ष को सुई से कुदेरने पर रेशा निकले तोअसली और कोई और रसायन निकले तो नकली असली रुद्राक्ष देखे तो उनके पठार एकदुसरे से मेल नही खाते होगे पर नकली रुद्राक्ष देखो या उनके ऊपरी पठार एकजैसे नजर आयेगा जैसे गोरी शंकर व गोरी पाठ रुद्राक्ष कुदरती रूप से जुड़ेहोते है परन्तु नकली रुद्राक्ष को काट कर इन्हे जोड़ना कुशल कारीगरों कीकला है परन्तु यह कला किसी को फायदा नही दे सकती! ऐसे हीएक मुखी गोल दाना रुद्राक्ष काफी महंगा व अप्राप्त है पर कारीगर इसे भीबना कर लाभ ले रहे है! परन्तु पहनने वाले को इसका दोष लगता है!

 💐नकलीरुद्राक्ष की धारिया सीधी होगी पर असली रुद्राक्ष की धारिया आढी टेडी होगी!कभी कबार बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर कारीगर द्वारा उसे रुद्राक्ष काआकार दे कर भी मार्किट में बेचा जाता है! इसकी परख के लिए इसे काफी पानी मेंउबालने से पता चल जाता है! परन्तु असल में कुछ नही होता वो पानी ठण्डा होनेपर वैसा ही निकलेगा! कोई भी दो जोड़े हुए रुद्राक्षों को आप अलग करेंगेतो बीच में से वो सपाट निकलेगें परन्तु असली आढा टेढा होकर टुटेगा! नोमुखी से लेकर 21 मुखी व एक मुखी गोल दाना गोरी शंकर ,गोरीपाठ आदि यह मंहगे रुद्राक्ष है!

💐रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा| इसके आलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली| लेकिन यह जांच अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है|
 #सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे तो समझो वो एक दम असली है|

ग्रहोत रंग और उनका प्रभाव




ग्रहोत रंग और उनका प्रभाव  
        रंगो का प्रभाव प्राणियो के जीवन पर अपना विशेष प्रभाव होता है।वाहन खरीदने में, घर में रंगाई-पुताई कराने में, कोई रंग भरा सामान खरीदने में आदि।जन्मकुंडली के अनुसार अनुकूल ग्रहो के रंगो का चयन करके उपयोग में लाया जाए तो ग्रहो के प्रभाव भी अनुकूल हो जाते है।जैसे वाहन, घर/निवास स्थान खरीदने में जन्मकुंडली के अनुसार चौथे भाव में जो राशि हो उस राशि का जो ग्रह स्वामी हो या चोथे भाव में जो ग्रह अनुकूल होकर बेठे हो उन्ही ग्रहो से या उन ग्रहो के मित्र ग्रहो से सम्बंधित रंग का वाहन, घर/निवास स्थान में रंगाई-पुताई कराने से शुभ परिणाम उन चीजो की ओर से मिलते रहते है।कुंडली में स्थिति योगकारक ग्रहो के, लग्नेश ग्रह से सम्बंधित रंग का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने से शुभ परिणाम मिलते रहते है इस तरह से ग्रह भू ज्यादा से ज्यादा शुभ फल करते है।।                                                                                                     कौन सा ग्रह किस रंग से सम्बन्ध रखता है??                                
  **सूर्य यह लाल रंग का मुख्य रूप से स्वामी है।नारंगी रंग का स्वामित्व भी सूर्य को है।।                                                                  **चंद्रमा यह सफ़ेद रंग का स्वामी है।।                                              
**मंगल यह गहरे लाल रंग का स्वामी है।।                                      
  **बुध यह सभी हल्के-गहरे हरे रंगो का स्वामी है।।                          
**गुरु यह भी सभी हल्के-गहरे पीले रंगो का स्वामी है।।                          
 ** शुक्र यह हल्के सफ़ेद, क्रीमी रंग, गुलावी रंग का स्वामी है।।                                                                  
   **शनि यह काले रंग का स्वामी है।।                                                                                  
  **राहु यह नीले रंग, सलेटी रंग, आसमानी रंग का स्वामी है।।                                                                                     **केतु यह चितकबरे रंग का स्वामी है।।  इसके आलावा कत्थई रंग, बादामी रंग गुरु शनि का मिश्रित रंग है।

डायबिटीज कंट्रोल करें बिना दवा । इस आसान मंत्र से




डायबिटीज कंट्रोल  करें बिना दवा । इस आसान मंत्र से :-

शुगर (मधुमेह) की बीमारी बहुत ही घातक होती है। इसमें शरीर के बाहरी भाग में रोग दिखाई नहीं देता। परन्तु शरीर को अंदर से बहुत बीमार बना देता है। इसमें व्यक्ति अपने स्वाद की कोई मीठी वस्तु नहीं खा पाता। ज्योतिष में शुगर रोग का कारण छटा भाव , उसमे शनि का होना , शुक्र का प्रभावहीन होना , और गुरु का हस्तक्षेप होता है। इसमें यदि सिर्फ शुक्र ही बलहीन हो तो शुगर होता है। परन्तु यदि साथ में मंगल भी पापी या अकारक हो तो ब्लडशुगर हो जाता है। ज्योतिष में शुक्र को गुप्तांग और वीर्य का मुख्य कारक माना गया है। शुगर रोगी को भविष्य में गुप्त रोग होने की संभावना भी होती है। अतः इस रोग से निवृति के लिए मुख्य रूप से शुक्र के जाप अति आवश्यक है। यदि ब्लडशुगर हो तो मंगल को शांति भी जरुरी है।  इस रोग की शांति हेतु आप किसी भी शुक्लपक्ष के पहले शुक्रवार से संकल्प लेकर शाम के समय माता लक्ष्मी की तस्वीर के सामने सफ़ेद आसन पर बैठकर स्फटिक की माला से शुक्र गायत्री के के जाप करें:-

!!ॐ भृगु जाताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो शुक्र प्रचोदयात !!


जाप के बाद प्रतिदिन नौ वर्ष से कम आयु की कन्याओं को मिश्री से साथ कोई सफ़ेद प्रसाद दें। पीपल में दूध - गुड़ मिला जल चढ़ाएं। सरसों के तेल का दीपक जलाएं। केले के पेड़ में सादा जल चढ़ाएं और घी का दीपक जलाएं। गाय को आटे की दो लोई , गुड़ और चने की गीली दाल का भोग लगाएं। शुक्र का रत्न या उपरत्न धारण करें। मंत्र जाप के अंतिम दिन किसी वृद्ध को ब्राहण को खीर व मिश्री का भोजन करवाएं। यह नियम पूर्ण मंत्र साधना में चलेगा। साधना समाप्त होने के बाद शुक्र मंत्र का जाप सिर्फ शुक्रवार को , पीपल में जल शनिवार को , तथा केले के पेड़ में जल व गाय को भोग सिर्फ गुरुवार को देना है। यदि ब्लडशुगर है तो शुक्र मंत्र जाप के साथ मंगल का जाप भी करना है।





ग्रहो से सम्बंधित #वृक्ष_की_जड़ पहनने से ग्रहो की अनुकूलता


||#ग्रहो से सम्बंधित #वृक्ष_की_जड़ पहनने से ग्रहो की अनुकूलता||
  ग्रहो के शुभ प्रभाव में वृद्धि करने और उनके शुभ फल प्राप्ति के लिए ग्रहो के रत्न पहन लिए जाते है खास तोर से उन ग्रहो के जो ग्रह योगकारक होकर या कोई शुभ भाव का स्वामी होकर शुभ फल देने वाला ग्रह हो लेकिन उसकी स्थिति कुंडली में ख़राब होने से वह नकारात्मक फल दे रहा होता है जिस कारण उसकी शुभता और सकारात्मक फल प्राप्ति के लिए उस ग्रह का रत्न पहनकर उसकी शुभता और शुभ फल देने की क्षमता में वृद्धि कर दी जाती है।रत्न महंगे आते है और इनकी पहचान न होने से अज्ञानता के कारण कई बार फर्जी रत्न भी हम ले आते है जिसका कोई महत्व नही होता।इसी कारण ग्रहो से सम्बंधित पेड़ की जड़ पहनना ग्रहो की शुभता और सकारात्मक शक्ति में वृद्धि करता है।।                                                                **सूर्य के लिए बेल वृक्ष की जड़ पहनी जाती है।इसे रविवार के दिन किसी लाल सूती कपडे में पहनकर धुप-दीपक से सूर्य के मन्त्र से अभिमंत्रित करके लाल धागे की सहायता से गले या हाथ की बाजु पर पहना जा सकता है।।                                                                                          **चंद्रमा के लिए खिरनी की जड़ को सफ़ेद सूती कपडे और सफ़ेद धागे की सहायता से धुप दीप और चन्द्र मन्त्र से अभिमंत्रित करके सोमवार की शाम में गले या बाजु में पहन जाता है।।                                                                                    **मंगल के लिए अनंतमूल की जड़ को लाल कपडे में धुप-दीप और मंगल के मन्त्र से अभिमंत्रित करके लाल धागे की सहायता से गले या हाथ की बाजु में धारण किया जाता है।।                                                                                     **बुध के लिए विधारा की जड़ को हरे सूती कपडे में धुप-दीप और बुध मन्त्र से अभिमंत्रित करके गले या हाथ की बाजु में पहना जाता है।।                                                                                  **इसी तरह गुरु के लिए बभनेठी या केले के वृक्ष की जड़ को पीले सूती धागे की सहायता से पीले धागे में धुप दीपक और गुरु मन्त्र से अभिमंत्रित करके गले या बाजु में पहना जाता है।।                                                           **शुक के लिए मजीठ की जड़ को सफ़ेद सूती कपडे और सफ़ेद धागे की सहायता से धुप-दीपक और शुक्र मन्त्र से अभिमंत्रित करके गले या बाजु में पहन सकते है।।                                      **शनि के लिए काले धतूरे के बीजो को काले कपडे और काले धागे की सहायता से इसी तरह धुप-दीप और शनिमंत्र से अभिमन्त्रित करके गले या हाथ की बाजु में पहना जाता है।शनि के पुरानी कील का छल्ला बनवाकर गंगा जल से छल्ले को गंगा जल से धोकर शनिवार को शाम में पहन सकते है।।।                                                            **राहु के लिए सफ़ेद चन्दन वृक्ष की जड़ को काले या नीले कपड़े में बांधकर धुप-दीप और राहु मन्त्र से अभिमंत्रित करके काले या नीले धागे से गले या हाथ की बाजु में पहनना जाता है।।                                                                                                      **केतु के लिए असगन्ध की जड़ को काले सूती कपडे में बांधकर काले धागे की सहायता से धुप-दीपक और केतु मन्त्र से अभिमंत्रित करके शनिवार की शाम को पहनना चाहिए।।   किसी भी जड़ को धारण करने से पहले उसे गंगाजल और कच्चे दूध से पंचमृत से शुद्ध जरूर कर लेना चाहिए उसके बाद ही उसे धारण करे।

Wednesday, August 30, 2017

ज्योतिषीय उपाय और उनका आधार


ज्योतिषीय उपाय और उनका आधार
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आप जब भी कोई उपाय करते है तो उस उपाय के पीछे कोई न कोई लोजिक अवश्य होता है। हालाँकि बहुत से लोग कहीं से भी पढकर उपाय करना शुरु कर देते है और फिर बोलते है की मै इतने उपाय कर चूका हूँ मुझे कोई फायदा नही हुआ | उपाय के रूप में जो मुख्य रूप से किये जाते है उनमे किसी भी ग्रह से सम्बन्धित वस्तु को जल में बहाना , या उसे जमीन में दबाना या उसका दान करना , सम्बन्धित ग्रह के मन्त्र जप करना , सम्बन्धित ग्रह के रत्न धारण करना , उस ग्रह से सम्बन्धित जानवर को उस ग्रह से सम्बन्धित वस्तु खिलाना , उस से सम्बन्धित रिश्तेदार, जानवर, पेड़ पौधों की सेवा करना और उस से सम्बन्धित वस्तु को घर में कायम करना |
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यदि आप कोई भी उपाय करते है तो उसके पीछे छिपे हुए रहस्य को आपको अवश्य समझना चाहिए इसिलिय आज उन रहस्यों को खोल रहा हूँ |
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जब भी आप किसी ग्रह की वस्तु को जल प्रवाह करते है या जमीन में दबाते है तो उस साल के लिए आप उस ग्रह के प्रभाव को खत्म कर रहे होते है ऐसे में आपको ये विशेष ध्यान रखना होता है की ऐसे उपाय से उस ग्रह के कारक रिश्तेदार को नुक्सान होने की पूरी सम्भावना बन जाती है जैसे की एक उपाय है की मंगल अष्टम में हो तो शहद का बर्तन जमीन में दबाना होता है ऐसे में जैसे की मंगल भाई का कारक ग्रह होता है और तीसरा भाव भाई को दर्शाता है ऐसे में यदि तीसरा भाव पाप प्रभाव में हो तो ऐसे उपाय से ये सम्भव है की आपके भाई को उस साल कोई मुसीबत का सामना करना पड़ जाए | इसी तरह से शनी जो की मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है और आप के नीचे मजदूर कार्य करते है और वर्षफल में और लग्न कुंडली में शनी अच्छे भाव में आया हुआ है और आप शनी से सम्बन्धित वस्तु जल प्रवाह कर देते है तो आपको अपने व्यवसाय में नुक्सान होना सम्भव हो जाता है | साथ ही इस बात का ध्यान रखे की यदि चन्द्र के दुश्मन ग्रह की वस्तु आप जल प्रवाह कर रहे है तो आप अपने चन्द्र को कमजोर कर रहे है ऐसे में आपको कुंडली में चन्द्र की स्थिति का विशेष ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है |
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किसी भी ग्रह के मन्त्र जप उस ग्रह को बल प्रदान करने के लिए किया जाता है | इसिलिय किसी भी ग्रह के मन्त्र जप आप उस स्थिति में करे जब कुंडली में वो ग्रह कारक होकर कमजोर हो रहा हो तो उस ग्रह के मन्त्र जप करने से उसका रत्न धारण कर उसे मजबूत करके उसके शुभ फलों में बढ़ोतरी की जा सकती है लेकिन यदि आप किसी बीज मन्त्र का जप करते है और उस मन्त्र का पहला अक्सर आपकी कुंडली में त्रिक भाव में पड़ने वाली राशि में आता है तो फिर आपको लाभ की जगह नुक्सान होने की पूरी सम्भावना रहती है |
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यदि कोई ग्रह कुंडली में अशुभफल देने वाला सिद्ध हो रहा है तो आप उसके दान कर सकते है | लेकिन यदि आप किसी अच्छे फल देने वाले ग्रह का दान करते है तो उसमे आपको हानि होने की पूरी सम्भवना रहती है |किसी भी ग्रह का दान उस ग्रह को कमजोर करने के लिए किया जाता है ताकि उसका प्रभाव आप पर कम हो सके |
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उदाहरण के तौर पर एक उपाय है की ग्रह से सम्बन्धित वस्तु उसी के जानवर को खिलाना जैसे की हम किसी ग्रह को नष्ट नही कर सकते तो ऐसे में उस ग्रह को काबू करने के लिय हम उसी ग्रह की वस्तु को उसी से सम्बन्धित जानवर को खिला देते है जैसे की यदि शुक्र अशुभ फल देने वाला सिद्ध हो रहा है तो हम शुक्र की वस्तुएं गाय को खिला देते है और शुक्र खुद उसे खाकर नष्ट करके गोबर में तब्दील कर देता है और हमे शुक्र से सम्बन्धित अशुभ फलों में कमी हो जाती है | ऐसे ही यदि सूर्य अशुभ फल दे रहा है तो तो हम भूरी चीटियों को गुड डालकर उसके अशुभ प्रभाव में कमी करते है |
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इसी तरह किसी ग्रह से सम्बन्धित वस्तु को घर में कायम किया जा सकता है जैसे की दुसरे भाव मे चन्द्र उच्च होता है कालपुरुष की कुंडली में ऐसे में इस भाव के चन्द्र के शुभ फलों में बढ़ोतरी के लिय चन्द्र माता से चावल चन्द्र लेकर अपने कमरे में कायम करे तो ऐसे में ये चावल जैसे जैसे पुराने होते जाते है चन्द्र के शुभ फल में बढोतरी होती जाती है |ग्रह को कायम करने से उसके फलों में बढ़ोतरी हो जाती है |
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यदि किसी ग्रह से सम्बन्धित रिश्तेदार या जानवर की हम सेवा करते है तो उसका १००% हमे फल मिलता है जैसे चन्द्र के लिए माँ, बुद्ध के लिय बहन बुआ बेटी आदि और यदि उस से सम्बन्धित पेड़ आदि की सेवा करते है तो पचास प्रतिशत फल मिल जाता है जैसे शनी के लिए कीकर, गुरु के लिय पीपल आदि | यदि किसी पत्थर रत्न को धारण करते है तो 85% तक उस ग्रह के हमे फल मिलते है हालाँकि रत्न के बारे में अलग अलग विद्वानों के अलग अलग मत है लेकिन मेरी नजर में जितने भी श्रेष्ठ ज्योत्षी है उनका ये ही मत है की रत्न का ज्यादा प्रभाव आपको तभी मिलता है यदि रत्न असली हो तथा रत्न को प्राण प्रतिष्ठित करवा कर धारण  करते है तो फिर इसमें कोई शक नही की उसका प्रभाव बहुत ज्यादा बढ़ जाता है |

आप नौकरी करेंगे या बिजनेस यह कुंडली देखकर पता लगाया जा सकता है।

आपकी जन्म कुंडली में स्पष्ट लिखा हुआ होता है आप नौकरी करेंगे या बिजनेस यह कुंडली देखकर पता लगाया जा सकता है। व्यापार-व्यवसाय का प्रतिनिधि ग्रह बुध होता है। बुध की अच्छी-बुरी स्थिति देखकर पता लगाया जाता है कि आप किस तरह का व्यापार करेंगे। जन्मकुंडली का दशम स्थान कर्म स्थान होता है। इसलिए दशम स्थान में जो ग्रह स्थित हो उसके गुण-स्वभाव के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय होता है आइये जानते हैं दशम भाव में ग्रहों के अनुसार क्या स्थिति बनती है.. यदि दशम भाव में एक से अधिक ग्रह हों तो जो ग्रह सबसे बलवान होता है उसके अनुसार व्यक्ति का व्यापार होता है यदि दशम भाव में कोई ग्रह न हो तो दशमेश यानी दशम ग्रह की राशि का जो स्वामी होता है उसके अनुसार व्यवसाय होता है दशमेश जिन ग्रहों के साथ होता है उनके अनुसार व्यक्ति व्यापार करता है जिन ग्रहों की दशम स्थान पर दृष्टि हो, उनका व्यापार किया जाता है। लग्नेश का भी व्यापार-व्यवसाय पर प्रभाव पड़ता है सूर्य के साथ जो ग्रह स्थित हो सूर्य के साथ जो ग्रह स्थित हो जो ग्रह लग्न में स्थित हों या अपनी दृष्टि से लग्न एवं लग्नेश को प्रभावित कर रहे हों, उनके अनुसार व्यापार होता है सूर्य के साथ जो ग्रह स्थित हो वह भी व्यवसाय पर असर दिखाता है। एकादश भाव या एकादशेश जहां स्थित हो उस राशि की दिशा से लाभ होता है पार्टनरशिप में व्यापार सफल होगा या नहीं यह सप्तम भाव से तथा निजी व्यापार का विचार दशम भाव से किया जाता है बुध संबंधित भाव एवं भावेश की स्थिति अनुकूल होने पर व्यापार से लाभ होता है बुध का दशम भाव से संबंध व्यक्ति को व्यापार की ओर प्रवृत्त करता है। छठे, आठवें और 12हवें भाव में कोई ग्रह न हो और यदि हो तो स्वराशि या उच्च राशि में हो तो व्यक्ति स्वयं के प्रयासों से बहुत बड़ा व्यापारी बनता है लग्नेश एवं भाग्येश अष्टम में न हों। शनि दशम या अष्टम में न हों तो व्यक्ति अकेला ही बिजनेस लीडर बनता है यदि बुध, शुक्र, चंद्र एक-दूसरे से द्वितीयस्थ या द्वादशस्थ हों तो जातक अपने पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाता है।

कुण्डली मे वाणी दोष


कुण्डली मे वाणी दोष *
*किसी जातक की कुण्डली मे वाणी दोष होने पर वह गूंगा हो सकता है या बोल नहीं पाता है । हमारी वाणी ही जीवन मे स्वयं के व्यक्तित्व को उभरने सँवारने बनाने और बिगड़ने मे बड़ा महत्व पूर्ण योगदान निभाती है।*
*“ वाणीक्या न सम अलंकृता “ ,“ कंठा भरण भूषिता “*
*व्यक्ति कितने ही मूल्यवान आभूषण कंठ मे धारण करले फिर भी सुसंस्कृत, मधुर, स्नेहिल, विनयी, सन्नमानित शब्द न हो तो वह कंठ के आभूषण भी व्यर्थ बने रहेते है।*
*वाणी दोष होने पर आप अपनी अभिव्यक्ति नहीं कर पाते है। विचारो की अभिव्यक्ति वाणी द्वारा ही होती है। मधुरभाषी सदैव सबको प्रिय होता है। विचारो की अभिव्यक्ति वाणी से होती है। वाणी ही मनुष्य की पहचान होती है। मधुरभाषी मनुष्य सभी को प्रिय होता है। यदि वाणी मे कोई दोष आ जाए या गूंगापन आ जाए तो जीवन मे बहुत कुछ खो जाता है। इसे पूर्व जन्मो के कर्म फलो के रूप मे देखते है। नाम के बाद वाणी ही उसकी पहचान बनाती है। वाणी दोष हो तो जीवन मे एक अभाव सा रहता है, जीवन मे एक प्रकार से कुछ खो सा जाता है जो सदेव सालता रहता है। यह दोष व्यक्ति मे पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण ही होता है।*
*किसी भी कुंडली मे दूसरा भाव वाणी का प्रतिनिधत्व करता है और बुध ग्रह वाणी का कारक कहलाता है। बुध मीन राशि मे होने पर नीच राशि मे होता है। बुध को पुरुष व नपुंसक ग्रह माना गया है तथा यह उत्तर दिशा का स्वामी है। बुध का शुभ रत्न पन्ना है , बुध तीन नक्षत्रो का स्वामी है अश्लेषा, ज्येष्ठ, और रेवती (नक्षत्र) इसका प्रिय रंग हरे रंग, पीतल धातु,और रत्नों मे पन्ना है। बुध एक ऐसा ग्रह है जो सूर्य के सानिध्य मे ही रहता है। जब कोई ग्रह सूर्य के साथ होता है तो उसे अस्त माना जाता है। यदि बुध भी 14 डिग्री या उससे कम मे सूर्य के साथ हो, तो उसे अस्त माना जाता है। लेकिन सूर्य के साथ रहने पर बुध ग्रह को अस्त का दोष नही लगता और अस्त होने से परिणामो मे भी बहुत अधिक अंतर नहीं देखा गया है। बुध ग्रह कालपुरुष की कुंडली मे तृतीय और छठे भाव का प्रतिनिधित्व करता है। बुध की कुशलता को निखारने के लिए की गयी कोशिश, छठे भाव द्वारा दिखाई देती है। जब-जब बुध का संबंध शुक्र, चंद्रमा और दशम भाव से बनता है और लग्न से दशम भाव का संबंध हो, तो व्यक्ति कला-कौशल को अपने जीवन-यापन का साधन बनाता है।*
*आइये जाने बुध गृह का वाणी पर प्रभाव
*बुध ग्रह को मुख्य रूप से वाणी और बुद्धि का कारक माना जाता है। इसलिए बुध के प्रबल प्रभाव वाले जातक आम तौर पर बहुत बुद्धिमान होते है तथा उनका अपनी वाणी पर बहुत अच्छा नियंत्रण होता है जिसके चलते वे अपनी बुद्धि तथा वाणी कौशल के बल पर मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियो को भी अपने अनुकूल बना लेने मे सक्षम होते है। ऐसे जातकों की वाणी तथा व्यवहार आम तौर पर अवसर के अनुकूल ही होता है जिसके कारण ये अपने जीवन मे बहुत लाभ प्राप्त करते है। किसी भी व्यक्ति से अपनी बुद्धि तथा वाणी के बल पर अपना काम निकलवा लेना ऐसे लोगों की विशेषता होती है तथा किसी प्रकार की बातचीत, बहस या वाक प्रतियोगिता मे इनसे जीत पाना अत्यंत कठिन होता है। आम तौर पर ऐसे लोग सामने वाले की शारीरिक मुद्रा तथा मनोस्थिति का सही आंकलन कर लेने के कारण उसके द्वारा पूछे जाने वाले संभावित प्रश्नो के बारे मे पहले से ही अनुमान लगा लेते है तथा इसी कारण सामने वाले व्यक्ति के प्रश्न पूछते ही ये उसका उत्तर तुरंत दे देते है। इसलिए ऐसे लोगो से बातचीत मे पार पाना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं होती तथा ऐसे जातक अपने वाणी कौशल तथा बुद्धि के बल पर आसानी से सच को झूठ तथा झूठ को सच साबित कर देने मे भी सक्षम होते है।*
*अपनी इन्हीं विशेषताओ के चलते बुध आम तौर पर उन्हीं क्षेत्रो तथा उनसे जुड़े लोगो का प्रतिनिधित्व करते है जिनमे सफलता प्राप्त करने के लिए चतुर वाणी, तेज गणना तथा बुद्धि कौशल की आवश्यकता दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक होती है जैसे कि वकील, पत्रकार, वित्तिय सलाहकार तथा अन्य प्रकार के सलाहकार, अनुसंधान तथा विश्लेषणात्मक क्षेत्रों से जुड़े व्यक्ति, मार्किटिंग क्षेत्र से जुड़े लोग, व्यापार जगत से जुड़े लोग, मध्यस्थता करके मुनाफा कमाने वाले लोग, अकाउंटेंट, साफ्टवेयर इंजीनियर, राजनीतिज्ञ, राजनयिक, अध्यापक, लेखक, ज्योतिषि तथा ऐसे ही अन्य व्यवसाय तथा उनसे जुड़े लोग। इस प्रकार यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज के इस व्यसायिक जगत मे बुध ग्रह के प्रभाव वाले जातक ही सबसे अधिक सफल पाये जाते है।*
*बुध गले , मस्तिष्क एवं वाणी के रोग उत्पन्ना करता है , तो अगर कोई व्यक्ति हकलता है , तुत्लाता है तो यह बुध गृह के कारण हो सकता है , बुध ऐसी स्तिथि करता है कि आप अगर कुछ बोलना चह् रहे है तो आपके दिमाग मे वह् शब्द नही आएंगे, अभद्र भाषा भी बुध गृह के ही कारण होती जाती है , आवाज़ बहुत भारी हो जाती है, जल्दबाजी मे झूठ और निंदा कर बैठते है , बुध गृह अगर किसी का बहुत खराब हो तो उनका उच्चारण इतना खराब हो जाता है कि दूसरों को समझने मे परेशानी होती है। वाणी दोष कि वजह से परिवार मे अशांति हो जाती है , अगर बुध कि उँगली (कनिष्ठ) बहुत अंदर कि तरफ झुकी हुइ है या फिर बाहर कि तरफ़ निकली हुई है , या फिर बुध के पर्वत पर बहुत सारी लकीरों का जाल है , तो जब आप बोलना चाहेंगे तब आप वह चीज बोल नही पाएँगे , झूठ ज्यादा बोलेंगे , गले से जुड़ी समस्या हो जाती है | कन्या राशि मे स्थित होने से बुध सर्वाधिक बलशाली हो जाते है जो कि इनकी अपनी राशि है तथा इस राशि मे स्थित होने पर बुध को उच्च का बुध भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त मिथुन राशि मे स्थित होने से भी बुध को अतिरिक्त बल प्राप्त होता है तथा यह राशि भी बुध की अपनी राशि है।*
*कुंडली मे बुध का प्रबल प्रभाव होने पर कुंडली धारक सामान्यतया बहुत व्यवहार कुशल होता है तथा कठिन से कठिन अथवा उलझे से उलझे मामलों को भी कूटनीति से ही सुलझाने मे विश्वास रखता है। ऐसे जातक बड़े शांत स्वभाव के होते है तथा प्रत्येक मामले को सुलझाने मे अपनी चतुराई से ही काम लेते है तथा इसी कारण ऐसे जातक अपने सांसारिक जीवन मे बड़े सफल होते है जिसके कारण कई बार इनके आस-पास के लोग इन्हे स्वार्थी तथा पैसे के पीछे भागने वाले भी कह देते है किन्तु ऐसे जातक अपनी धुन के बहुत पक्के होते है तथा लोगों की कही बातों पर विचार न करके अपने काम मे ही लगे रहते है। बुध के वाणी पर दुष्प्रभाव से बचने के लिए |अगर बच्चों मे तुतलाहट है तो यह चिंता का विषय बन जाता है , इस उपाय को करने से यह बीमारी ठीक हो सकती है , जबान साफ़ हो जाती है , शांत मन से शब्दों को धीरे धीरे बोलने कि कोशिश करे, अनुलोम – विलोम प्राणायाम सीख कर करा करे।*
*अगर आपके बच्चे को बोलने मे कठिनाई हो रही हो , या फिर कुछ शब्दों का उच्चारण ठीक से ना हो पा रहा हो तो तो उसको मजाक ना बनाये , इससे उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है और यह गंभीर रूप ले सकता है , इसके लिए बुध के उपाय करने से वाणी मे मधुरता आति है | शारदा स्तोत्र सा नित्य पाठ करते रहे। मंगल , केतु , बुध या शनि का अगर वाणी पर बूरा प्रभाव पड़ रहा होगा तो वह भी ठीक होने लगेगा। यदि कुंडली का दूसरा भाव, दूसरे भाव का स्वामी एवं वाणी कारक ग्रह बुध यदि पाप ग्रह से युत, दृष्ट या अशुभ भाव मे स्थित हो तो वाणी दोष होता है। वाणी से ही व्यक्तित्व का परिचय ओर सही पहेचान प्रदर्शित होती है |किसी भी व्यक्ति की वाणी को /आवाज को सुनकर केवल शब्दो के प्रयोजन ओर स्वर प्रवाह के माध्यम से भी किसी व्यक्ति के ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव को जाना जा सकता है।*
*बुध मस्तिष्क, जिह्वा, स्नायु तंत्र, कंठ -ग्रंथि, त्वचा, वाक-शक्ति, गर्दन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्मरण शक्ति के क्षय, सिर दर्द, त्वचा के रोग, दौरे, चेचक, पित्त, कफ और वायु प्रकृति के रोग, गूंगापन, उन्माद जैसे विभिन्न रोगों का कारक है। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार द्वितीय स्थान वक्तृत्व शक्ति, भाषण शक्ति का स्थान है और बुध भाषण का कारक ग्रह है। सवार्थ चिंतामणिकार लिखते है कि द्वितीयेश और गुरु अस्टम मे हो तो मनुष्य मूक होता है। शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार: शुक्र या मंगल द्वितीय या द्वादश भाव मे हो तो मूक बधिर योग होता है। पराशर होरा शास्त्र के अनुसार यदि चतुर्थ स्थान मे 1, 4, 7, 10 राशि हो तथा चतुर्थेश षष्ठ मे व मंगल 12 मे हो तो मनुष्य मूक होता है।*
*मूक योग के बारे मे सरावली मे कुछ विशेष लक्षण बतलाए गए है-:*
*पापग्रह राशियो की संधियो मे गए हो वृष राशि मे चंद्रमा पर मंगल शनि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक गूंगा होता है। जातक अलंकार के अनुसार यदि द्वितीयस्थान का स्वामी ग्रह और गुरु इन मे कोई एक या दोनों 6, 8, 12 वे स्थानो मे गये हो तो मनुष्य वाणीहीन अर्थात मूक होता है।*
*इसी प्रकार जातक की कुंडली मे माता-पिता, भ्राता आदि स्थानों के स्वामी उनसे द्वितीयेश व गुरु से युक्त होकर त्रिक स्थानों मे (6, 8, 12) मे गए हो उन संबंधियों की मूकतां कहनी चाहिए। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार द्वितीय स्थान वक्तृत्व शक्ति, भाषण शक्ति का स्थान है और बुध भाषण का कारक ग्रह है। वैदिक ज्योतिष अनुसार वाणी दोष के कुछ ज्योतिष योग इस प्रकार हो सकते है
*मंत्रेश्वर के अनुसार –:*
*तत्तद्भावादृष्टमेशस्थितांशो तत् त्रिकोणगे। व्ययेशस्थितमांशे वा मन्दे तद्भाव नाशनम्।*
*अर्थात्- जिस भाव का विचार करना हो, उससे आठवें या बारहवें भाव का स्वामी जिस राशि या नवमांश मे हो उससे 1, 5, व 9 मे भाव मे शनि आयेगा तब उस भाव का नाश करेगा। शास्त्रीय ग्रंथों मे गूंगा (मूक) योग के लिए ग्रह स्थितियां ।*
*1. कर्क, वृश्चिक और मीन राशि मे गये हुए बुध को अमावस्या का चंद्रमा देखता हो।*
*2. बुध और षष्ठेश दोनों एक साथ स्थित हो।*
*3. गुरु और षष्ठेश लग्न मे स्थित हो।*
*4. वृश्चिक और मीन राशि मे पाप ग्रह स्थित हों एवं किसी भी राशि के अंतिम अंशो मे व वृष राशि मे चंद्र स्थित हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो जीवन भर के लिए मूक (गूंगा) तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो पांच वर्ष के बाद बालक बोलता है।*
*5. क्रूर ग्रह संधि मे गये हो, चंद्रमा पाप ग्रहो से युक्त हो तो भी गूंगा होता है।*
*6. शुक्ल पक्ष का जन्म हो और चंद्रमा, मंगल का योग लग्न मे हो।*
*7. कर्क, वृश्चिक और मीन राशि मे गया हुआ बुध, चंद्र से दृष्ट हो, चैथे स्थान मे सूर्य हो और छठे स्थान को पाप ग्रह देखते हों।*
*8. द्वितीय स्थान मे पाप ग्रह हो और द्वितीयेश नीच या अस्तंगत होकर पापग्रहो से दृष्ट हो एवं रवि, बुध का योग सिंह राशि मे किसी भी स्थान मे हो।*
*9. सिंह राशि मे रवि, बुध दोनों एक साथ स्थित हों तो जातक गूंगा होता है।*
*10. यदि षष्ठेश और बुध लग्न मे हो तथा पापग्रह द्वारा दृष्ट भी हों तो जातक गूंगा होता है।*
*11. यदि बुधाष्टक वर्ग बनाने पर बुध स्थित राशि से द्वितीय राशि मे कोई रेखा न हो अर्थात वह शून्य हो तो जातक गूंगा होता है। अतः पित्रादि भावों के स्वामी की स्थिति द्वारा पित्रादि के गूंगेपन के संबंध मे समझना चाहिये।*
*12. दूसरे भाव से त्रिक भाव मे वाणी कारक बुध स्थित हो तो यह योग होता है। अथवा द्वितीयेश त्रिक भावों मे हो तो वाणी दोष होता है। यहां त्रिक भावों की गिनती द्वितीय भाव से होगी।*
*13. चन्द्र लग्न या लग्न से त्रिक भाव मे द्वितीयेश या वाणी कारक बुध स्थिति हो और पापग्रह से युत या दृष्ट हो और किसी प्रकार की शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक गूंगा होता है।*
*14. द्वितीयेश बुध व गुरु के साथ अष्टम भाव मे हो तो जातक गूंगा होता है।*
*15. दूसरे भाव मे नीच ग्रह स्थित हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वाणी दोष होता है।*
*16. दूसरे भाव मे सूर्य, चन्द्र, राहु व पापयुत शुक्र की युति हो तो वाणी दोष होता है।*
*17. शनि-चन्द्र की युति दूसरे भाव मे हो और उस पर सूर्य व मंगल की दृष्टि पड़े तो वाणी दोष होता है।*
*18. छठे भाव का स्वामी या बुध चौथे, आठवें या बारहवें स्थित हो और पापग्रह से दृष्ट हो तो वाणी दोष होता है या गूंगा होता है।*
*19. कर्क, वृश्चिक व मीन राशि मे गए हुए बुध को अमावस का चन्द्र देखे तो जातक गूंगा होता है।*
*20. द्वितीय भाव से कारक ग्रह बुध 6, 8, 12 वे भाव मे होने से दोष उत्पन्न होता है या द्वितीय भाव का स्वामी इन स्थानों मे हो या द्वितीय भाव मे 6, 8, 12 भावेश हों। यह स्थिति द्वितीयभाव को लग्न मानकर देखी जाती है।*
*21. जन्मलग्न या चंद्र लग्न से 6, 8, 12 भावों मे द्वितीयेश या कारक ग्रह बुध हो, इन पर पाप दृष्टि हो या पापयुक्त हो अर्थात् इन पर शुभदृष्टि न हो तो जातक गूंगा होता है।*
*22. द्वितीयेश इन भावों मे केंद्र व त्रिकोणेश के प्रभाव मे न हो तो भी जातक गूंगा होता है या द्वितीयेश या बुध गुरु युक्त अष्टम में हो तो भी जातक गूंगा होता है।*
*23. द्वितीय भाव में नीच का ग्रह हो तथा उस पर पापदृष्टि हो या पापयुक्त हो।*
*24. द्वितीय भाव मे सूर्य, चंद्र, राहु व पापयुक्त शुक्र हो या शनि युक्त चंद्र पापग्रही हो और सूर्य मंगल से दृष्ट हो।*
*25. कर्क, वृश्चिक और मीन राशि मे पापग्रह हो, चंद्र पापयुक्त हो या पापदृष्ट हो। षष्ठेश या बुध 4, 8,12 वे भाव मे पापदृष्ट हो तो जातक गूंगा होता है।*
*26. जन्मलग्न या चंद्र लग्न से तृतीयेश, अष्टमस्थ ग्रह, अष्टम पर दृष्टि रखने वाला ग्रह, निर्बल राहु, द्वितीयेश या बुध की दशा अंतर्दशा मे वाणी दोष उत्पन्न कर सकते है या द्वितीय भाव से 8वें या 12वें भाव का स्वामी जिस राशि नवमांश मे हो उससे 1, 5, 9वें जब शनि आयेगा, तब वाणी दोष उत्पन्न हो सकता है।*
* गूंगापन न होने के ज्योतिषीय योग : *
*1. यदि कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि मे पापग्रह हो तथा चंद्रमा किसी पाप ग्रह से द्रष्ट हो तो जातक गूंगा होता है। परंतु यदि चंद्रमा पर शुभग्रह की दृष्टि हो तो बालक अधिक समय बाद अथवा 5 वर्ष की आयु के बोद बोलना आरंभ कर देता है।*
*2. यदि द्वितीयेश एवं गुरु की अष्टम भाव मे युति हो तो जातक गूंगा होता है। परंतु यदि इन दोनो मे से कोई उच्च या शुभ हो तो गूंगा नहीं होता।*
*यदि वाणी का कारक बुध यदि प्रभावित है तो बुध संबंधी उपाय करना चाहिये।*
*1. बुधवार को गणेशजी को लड्डू का प्रसाद चढ़ाये या गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करे।*
*2. दुर्गा सप्तशती का पाठ करवाएं।*
*3. पेठा, कद्दू का दान करें या हरे वस्त्रों का दान करे।*
*4. तांबे का पैसा पानी मे बहाएं। यदि द्वितीयेश या तृतीयेश प्रभावित हो तो ग्रहो के अनुसार उपाय करने पर गूंगापन, बहरापन होने को कम किया जा सकता है।*
*5.उस बालक को पालतू चिड़िया का झूँठा पाली पिलाएं।*
*6.छोटे शंख की माला भी ऐसे बच्चों को पहनाने से लाभ होता है। शंख फूंकने से भी वाणी दोष मे सुधार सम्भव है।*
*सूर्य: गायत्री मंत्र का जप करे। गुड़ व गेहूं का दान करे। सूर्य को अघ्र्य दे।*
*चंद्र: शिवलिंग पर दूध व जल का अभिषेक करे। रात को दूध न पिये। चंद्र से संबंधित वस्तु चांदी, दूध का दान करे।*
*मंगल: हनुमानजी को गुड़ और चूरमे का भोग लगाएं। मीठे भोजन का दान करे। मंगलवार का व्रत रखे या सुंदर कांड का पाठ करे।*
*गुरु: केशर का तिलक माथे व नाभि पर लगाएं। पीपल का वृक्ष लगाएं। गुरु की सेवा करे।*
*शुक्र: गाय का दान करे या गाय को चारा खिलाए। शुक्र की देवी लक्ष्मीजी है। अतः उनके समक्ष घी का दीपक जलाकर श्री सूक्त का पाठ करे।*
*शनि: मछली को आटे की गोलियां खिलाएं। तेल का दान करे। कौओं को भोजन का अंश दे।*
*01.वाणी दोष होने पर कार्तिकेय मंत्र व स्तोत्र का पाठ नित्य सुबह संध्या काल मे पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर 10 बार पढ़े। ये प्रयोग किसी भी पुष्य नक्षत्र मे शुरू कर 27 दिनों तक अगले पुष्य नक्षत्र तक बिना किसी नागा के करे।*
*02.पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करते हुए ब्रह्माजी द्वारा नारद जी को बताए गए अश्वत्थ स्तोत्र का पाठ करना चाहिए व दीप प्रज्वलित करना चाहिए। इस उपाय को कने से गुरु जनित वाणी विकार व बधिर योग काफी हद तक शांत हो जाता है।*
*03.जिस दिन अनुराधा नक्षत्र बृहस्पतिवार को हो उस दिन सिरस के व आम के कोमल पत्तो को तोड़कर उनका रस निकाल कर उसे गुनगुना कर 4 बुंदे नित्य दोनो कानो मे 62 दिन तक लगातार डाले। कर्ण रोग से व सुनने मे उत्पन्न समस्या से छुटकारा मिल जाएगा।*
*04.जिस जातक के जन्मांग मे यह योग परिलक्षित होता है। उस जातक को भी वागेश्वरी पूजा यंत्र को सवा सात लाख मंत्रों से अभिमंत्रित करके शुक्ल पंचमी के दिन धारण करने से दोनों समस्याओं का निवारण होता है।*
*05.चांदी की सरस्वती का दान शुक्लपक्ष पंचमी को या बसंतपंचमी को करना मूक दोष को शांत करने का सर्वोत्तम उपाय है।*
*06. बुधवार को गरीब लड़कियों को भोजन व हरा कपड़ा दे।*
*07.किसी किन्नर/हिजड़े को बुध के दिन चांदी की चूड़ी और हरे रंग की साड़ी का दान करे ।*
*08. बुध के मन्त्र “ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः” तथा सामान्य मंत्र “बुं बुधाय नमः” है। बुधवार के दिन हरे रंग के आसन पर बैठकर उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बुध मंत्र का जाप करे ।*
*09.कुंडली के दूसरे भाव/भावेश तथा उसके नक्षत्र स्वामी को मजबूत करे और अगर क्रूर ग्रह का प्रभाव हो तो उसकी शांति के उपाय करे। वृहस्पति को मजबूत करे, भगवान गणेश ओर माँ शारदा का आराधना करे।*
*10. हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है।*
*11. विष्णु सहस्रनाम का जाप भी लाभकारी होता है।*
*12. तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए।*
*13. हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।*
*14. गणेशजी को लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चो को बाँटे।*
*बुध यंत्र से लाभ : कुंडली मे बुध कमजोर होने के कारण स्मरण शक्ति कमजोर हो,वाणी दोष हो, बुध यंत्र लाॅकेट चांदी मे शुद्धीकरण आदि करके हरे धागे मे बुधवार को सुबह धारण करना चाहिए। इसके साथ पाप ग्रह राहु ,केतु शनि ,मंगल, का उपाय करना चाहिए ।*
*ये वास्तुदोष भी बनते है वाणी दोष के कारण
*खिड़की, दरवाजे और मुख्य रूप से मेन-गेट पर काला पेंट हो तो परिवार के सदस्यों के व्यवहार मे अशिष्टता, गुस्सा, बदजुबानी आदि बढ़ जाते है। जन्मपत्रिका मे वाणी दोष ( ग्रह शनि, राहु मंगल और केतु ) हो, तो प्रभाव विशेष रूप से पता लगता है । यदि मंगल व केतु का प्रभाव हो तो लाल पेंट धारण से कुतर्क, अधिक बहस, झगड़ालू और व्यंगात्मक भाषा इस्तेमाल होती है। ऐसे हालात मे सफेद रंग का प्रयोग लाभदायक होता है।*
*यह मंत्र भी होता है लाभकारी
*महाविध्या महावाणी श्रुति स्मृति पदयीनी |साक्षात सरस्वतीदेवी जिह्वाग्रेहे वसतु मम ||*
*12500 जप ओर शहेद चीनी से दशांश हवन मार्जन तर्पण करे। गुरु, ब्राह्मण, गाय की सेवा ओर आशीर्वाद से अतिशीघ्र शुभ फल देखा जाता है।*

ज्योतिष अनुसार आर्थिक नुक्सान


ज्योतिष अनुसार आर्थिक नुक्सान
१ यदि दूसरे भाव में पाप ग्रह शनि,मंगल, राहू, केतू इनमे कोई एक या दो से अधिक ग्रह शत्रु राशी में बैठे हो, अथवा इन ग्रहों की दूसरे भाव पर दृष्टी होतो, संचित धन का नाश कर देते हैं।
२ यदि कोई पापी ग्रह शनि, मंगल, सूर्य अष्टम में बैठ कर सप्तम दृष्टी से दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश करेगी, इसमे शर्त यह है कि दूसरे भाव की राशी इनकी खुद की राशी ना हो।
३ यदि ५ वे भाव में स्थित शनि १० दृष्टी से दूसरे भाव को, मंगल ७ वे भाव से ८ वी दृष्टी से दूसरे भाव को देखता है तो, धन का नाश होगा।
४ यदि राहू या केतू ६ ठे भाव में स्थित होकर ९ वी दृष्टी से भाव दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश कर देंगे।
५ यदि दूसरे भाव में सूर्य+शनि अथवा सूर्य+राहू होतो, राज प्रकोप से धन का नाश होता है।
६ यदि ११ वे भाव में कोई भी ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल,बुध, गुरु, शुक्र, शनि होतो, वे जातक को धन लाभ कराते है. ११ वे भाव में स्थित ग्रह जिन वस्तुओं के कारक होते है, उन वस्तुओं के कारोबार से जातक को धन-लाभ होता है।
७ राहू, केतू ११ वे भाव में होतो, धन लाभ में रूकावट डालते है। आय में विलम्ब करते है। यह ग्रह अचानक रूका हुआ धन दिला देते है।
८ यदि १२ वे भाव में सूर्य+शनि की युति होतो , मुकदमे बाज़ी में धन का नाश होता है।
९ यदि दूसरे भाव का स्वामी और ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो जातक निर्धन हो जाता है।
१० यदि दूसरे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक के पास धन नहीं होगा।
११ यदि ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक कमाता जायेगा और खर्च होता जायेगा।

Monday, August 28, 2017

सरकारी जॉब प्राप्त करने के लिए जन्म कुंडली में निम्न योगों का होना अनिवार्य माना जाता है


सरकारी जॉब प्राप्त करने के लिए जन्म कुंडली में निम्न योगों का होना अनिवार्य माना जाता है-
1. जन्म-कुंडली में दशम स्थान
जन्म-कुंडली में दशम स्थानको (दसवां स्थान) को तथा छठे भाव को जॉब आदि के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरी के योग को देखने के लिए इसी घर का आकलन किया जाता है। दशम स्थान में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति की दृष्टि पड़ रही होती है साथ ही उनका सम्बन्ध छठे भाव से हो तो सरकारी नौकरी का प्रबल योग बन जाता है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि जातक की कुंडली में दशम में तो यह ग्रह होते हैं लेकिन फिर भी जातक को संघर्ष करना पड़ रहा होता है तो ऐसे में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति पर किसी पाप ग्रह (अशुभ ग्रह) की दृष्टि पड़ रही होती है तब जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि आपके यह ग्रह पाप ग्रहों से बचे हुए रहें।
2. जन्म कुंडली में जातक का लग्न
जन्म कुंडली में यदि जातक का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला है तो ऐसे में शनि ग्रह और गुरु (वृहस्पति) का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना, सरकारी नौकरी के लिए अच्छा योग उत्पन्न करते हैं।
3. जन्म कुंडली में यदि केंद्र में अगर चन्द्रमा, ब्रहस्पति एक साथ होते हैं तो उस स्थिति में भी सरकारी नौकरी के लिए अच्छे योग बन जाते हैं। साथ ही साथ इसी तरह चन्द्रमा और मंगल भी अगर केन्द्रस्थ हैं तो सरकारी नौकरी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
4. कुंडली में दसवें घर के बलवान होने से तथा इस घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने से जातक को अपने करियर क्षेत्र में बड़ी सफलताएं मिलतीं हैं तथा इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक को आम तौर पर अपने करियर क्षेत्र में अधिक सफलता नहीं मिल पाती है।
5. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य तथा चंद्र को राजा या प्रशासन से सम्बंध रखने वाले ग्रह के रूप में जाना जाता है। सूर्य या चंद्र का लग्न, धन, चतुर्थ तथा कर्म से सम्बंध या इनके मालिक के साथ सम्बंध सरकारी नौकरी की स्थिति दर्शाता है। सूर्य का प्रभाव चंद्र की अपेक्षा अधिक होता है।
6. लग्न पर बैठे किसी ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव रखने वाला माना जाता है। लग्न पर यदि सूर्य या चंद्र स्थित हो तो व्यक्ति शाषण से जुडता है और अत्यधिक नाम कमाने वाला होता है।
7. चंद्र का दशम भाव पर दृष्टी या दशमेश के साथ युति सरकारी क्षेत्र में सफलता दर्शाता है। यधपि चंद्र चंचल तथा अस्थिर ग्रह है जिस कारण जातक को नौकरी मिलने में थोडी परेशानी आती है। ऐसे जातक नौकरी मिलने के बाद स्थान परिवर्तन या बदलाव के दौर से बार बार गुजरते है।
8. सूर्य धन स्थान पर स्थित हो तथा दशमेश को देखे तो व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में नौकरी मिलने के योग बनते है। ऐसे जातक खुफिया ऐजेंसी या गुप चुप तरीके से कार्य करने वाले होते है।
9. सूर्य तथा चंद्र की स्थिति दशमांश कुंडली के लग्न या दशम स्थान पर होने से व्यक्ति राज कार्यो में व्यस्त रहता है ऐसे जातको को बडा औहदा प्राप्त होता है।
10. यदि ग्रह अत्यधिक बली हो तब भी वें अपने क्षेत्र से सम्बन्धित सरकारी नौकरी दे सकते है। मंगल सैनिक, या उच्च अधिकारी, बुध बैंक या इंश्योरेंस, गुरु- शिक्षा सम्बंधी, शुक्र फाइनेंश सम्बंधी तो शनि अनेक विभागो में जोडने वाला प्रभाव रखता है।
11. सूर्य चंद्र का चतुर्थ प्रभाव जातक को सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्रदान करता है। इस स्थान पर बैठे ग्रह सप्तम दृष्टि से कर्म स्थान को देखते है।
12. सूर्य यदि दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को सरकारी कार्यो से अवश्य लाभ मिलता है। दशम स्थान कार्य का स्थान हैं। इस स्थान पर सूर्य का स्थित होना व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रो में अवश्य लेकर जाता है। सूर्य दशम स्थान का कारक होता है जिस कारण इस भाव के फल मिलने के प्रबल संकेत मिलते है।
13. यदि किसी जातक की कुंडली में दशम भाव में मकर राशि में मंगल हो या मंगल अपनी राशि में बलवान होकर प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या दशम में स्थित हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
14. यदि मंगल स्वराशि का हो या मित्र राशि का हो तथा दशम में स्थित हो या मंगल और दशमेश की युति हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
15. चंद्र केंद्र या त्रिकोण में बली हो तो सरकारी नौकरी का योग बनाता है ।
16. यदि सूर्य बलवान होकर दशम में स्थित हो या सूर्य की दृष्टि दशम पर हो तो जातक सरकारी नौकरी में जाता है ।
17. यदि किसी जातक की कुंडली में लग्न में गुरु या चौथे भाव में गुरु हो या दशमेश ग्यारहवे भाव में स्थित हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
18. यदि जातक की कुंडली में दशम भाव पर सूर्य, मंगल या गुरु की दृष्टि पड़े तो यह सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
19. यदयदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,
20. यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का होतो।
21. मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.
22. यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।
23. लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।
24. लग्नेश (१) +दशमेश (१०) की युति हो।
25. दशमेश (१०) केंद्र १, ४, ७, १० या त्रिकोण ५, ९ वे भाव में हो तो। उपरोक्त योग होने पर जातक को सरकारी नौकरी मिलती है। जितने ज्यादा योग होगे , उतना बड़ा पद प्राप्त होगा।
26. भाव:कुंडली के पहले, दसवें तथा ग्यारहवें भाव और उनके स्वामी से सरकारी नौकरी के बारे मैं जान सकते हैं।
27.सूर्य. चंद्रमा व बृहस्पति सरकारी नौकरी मै उच्च पदाधिकारी बनाता है।
28. भाव :द्वितीय, षष्ठ एवं दशम् भाव को अर्थ-त्रिकोण सूर्य की प्रधानता होने पर सरकारी नौकरी प्राप्त करता है।
29. नौकरी के कारक ग्रहों का संबंध सूर्य व चन्द्र से हो तो जातक सरकारी नौकरी पाता है।
30. दसवें भावमें शुभ ग्रह होना चाहिए।
31. दसवें भाव में सूर्य तथा मंगल एक साथ होना चाहिए।
32. पहले, नवें तथा दसवें घर में शुभ ग्रहों को होना चाहिए।
33. पंच महापुरूष योग: जीवन में सफलता एवं उसके कार्य क्षेत्र के निर्धारण में महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।पंचमहापुरूष योग कुंडली में मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि अपनी स्वराशि अथवा उच्च राशि का होकर केंद्र में स्थित होने पर महापुरुष योग बनता
34. पाराशरी सिद्धांत के अनुसार, दसवें भाव के स्वामी की नवें भाव के स्वामी के साथ दृष्टि अथवा क्षेत्र और राशि स्थानांतर संबंध उसके लिए विशिष्ट राजयोग का निर्माण करते हैं।
कुंडली से जाने नौकरी प्राप्ति का समय नियम:
1. लग्न के स्वामी की दशा और अंतर्दशा में
2. नवमेश की दशा या अंतर्दशा में
3. षष्ठेश की दशा या, अंतर्दशा में
4. प्रथम,दूसरा , षष्ठम, नवम और दशम भावों में स्थित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा में
5. दशमेश की दशा या अंतर्दशा में
6. द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में
7. नौकरी मिलने के समय जिस ग्रह की दशा और अंतर्दशा चल रही है उसका संबंध किसी तरह दशम भाव या दशमेश से ।
8. द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में भी नौकरी मिल सकती है।
9. छठा भाव :छठा भाव नौकरी का एवं सेवा का है। छठे भाव का कारक भाव शनि है।
10. दशम भाव या दशमेश का संबंध छठे भाव से हो तो जातक नौकरी करता है।
11. राहु और केतु की दशा, या अंतर्दशा में :
जीवन की कोई भी शुभ या अशुभ घटना राहु और केतु की दशा या अंतर्दशा में हो सकती है।
12. गोचर: गुरु गोचर में दशम या दशमेश से केंद्र या त्रिकोण में ।
13. गोचर : नौकरी मिलने के समय शनि और गुरु एक-दूसरे से केंद्र, या त्रिकोण में हों तो नौकरी मिल सकती है
14. गोचर : नौकरी मिलने के समय शनि या गुरु का या दोनों का दशम भाव और दशमेश दोनों से या किसी एक से संबंध होता है।
15. कुंडली का पहला, दूसरा, चौथा, सातवा, नौवा, दसवा, ग्यारहवा घर तथा इन घरों के स्वामी अपनी दशा और अंतर्दशा में जातक को कामयाबी प्रदान करते है।

Saturday, August 26, 2017

वैदिक ज्योतिष में विवाह के संदर्भ में भविष्यवाणी


वैदिक ज्योतिष में विवाह के संदर्भ में आवश्यक निश्चित नियम निरूपित किए गए हैं, जिसके आधार पर विवाह के सम्बंध मे भविष्यवाणी की जा सकती है, हां इसके रूप अलग-अलग हो सकते हैं।
जैसे कुंडली मे निश्चित विवाह योग है या विवाह योग नहीं है? इसके अलावा विवाह विलंब के योग हैं, द्वि-विवाह या तलाक के योग हैं या सुखद वैवाहिक जीवन के योग हंै या प्रेम विवाह के योग है, साथ ही विवाह के समय व जीवन साथी कैसा होगा इन सभी बातों का कुंडली से पता चलता है।
जातक की कुंडली मे विवाह प्रकरणों में शुक्र व मंगल महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हंै, इन दोनों ग्रहों को विवाह संस्कार के आधार स्तम्ंभ कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी शुक्र विवाह के कारक है तो मंगल विच्छेदक ग्रह है।
विवाह का भाव कंुडली मे सप्तम भाव है। इसके अलावा कन्या की कुंडली में देवगुरू बृहस्पति व वर की कुंडली में सूर्य की महत्ता भी होती है।
सुखद वैवाहिक जीवन का आकलन करते समय कुंडली के चतुर्थ भाव का भी अध्ययन किया जाता है। सप्तम भाव के आधार पर ही नही वरन विवाह के बारे मे निर्णय लेते समय चतुर्थ भाव, पंचम भाव व
एकादश भाव का भी गहन अध्ययन आवश्यक है।
सुखद वैवाहिक जीवन के योग
सप्तम भाव के स्वामी का सम्बंध पंचम भाव से व पंचम के स्वामी का सम्बंध सप्तम भाव से हो तो वैवाहिक जीवन सुखद होता है।
शुक्र का सम्बंध 6, 8,12 भावों से नहीं हो, मंगल से युति न हो व उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो दांपत्य जीवन सुखद होता है।
पंचम भाव मे सौम्य ग्रह यथा चंद्र, गुरू, बुध हो तो ऎसे जातक सुमधुर वैवाहिक जीवन बिताते हैं।
पंचम, सप्तम भाव के स्वामी साथ राहू या केतू की युति सफल दांपत्य जीवन प्रदान कराती है।
पंचम भाव मे राहू व एकादश भाव में केतू हालांकि संतान पक्ष को कमजोर करती है, पर ऎसे जातकों का वैवाहिक जीवन ठीकरहता है।
शुक्र व चंद्रमा की युति या सम -सप्तक योग सुखद और आनंददायक वैवाहिक जीवन प्रदान कराते हैं।
विवाह किस जगह होगा
कुंडली में जिस भाव में शुक्र स्थित है, वहां से सातवें भाव में जो राशि स्थित है उस राशि के स्वामी की दिशा में ही जातक के जन्म स्थान से ससुराल होता है।
जैसे किसी की कुंडली में शुक्र कर्क राशि में स्थित है तो इस राशि से सातवीं राशि मकर होती है, मकर राशि के स्वामी शनि होते हैं और इनकी दिशा पश्चिम है तो उक्त जातक का ससुराल उसके जन्म स्थान से पश्चिम मे होता है। शुक्र से यदि सप्तमेश नजदीक है तो ससुराल उसी दिशा मे नजदीक व दूर स्थित है तो ससुराल जन्म स्थान से दूर होगा।
वैवाहिक जीवन में बाधाएं
शुक्र व मंगल की युति सुखद वैवाहिक जीवन मे बाधाएं प्रदान करते हैं।
सप्तम भाव मे कू्रर ग्रह सूर्य, शनि राहू या केतू अल्प दांपत्य सुख प्रदान कराते हैं।
कुंडली में मंगल दोष विवाह विलंब कराते हंै, मंगल दोष सिर्फ लग्न कुंडली से ही नहीं वरन चंद्र व सूर्य कुंडली से भी देखना चाहिए।
सप्तम भाव का स्वामी यदि 6, 8 व 12 भाव मे स्थित हो तथा कू्रर ग्रहों से युति करता हो या उस पर किसी कू्रर ग्रह की दृष्टि हो तो वैवाहिक जीवन में बाधाएं आती है।
पंचम भाव में शनि व सप्तम मे सूर्य हो तो विवाह अत्यंत विलंब से होता है।
सप्तम भाव मे मंगल हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो ये द्विविवाह योग बनाते हैं।
कब होगा विवाह?
विवाह काल का निर्णय कुंडली मे विभिन्न योगों से जाना जा सकता है, ज्योतिष शास्त्र मे विभिन्न योग निम्नानुसार हैं:
शुक्र चंद्रमा की महादशा मे जब देवगुरू का अंतर आए तो विवाह होता है।
दशम भाव के स्वामी की महादशा में जब अष्टम भाव के स्वामी का अंतर आए तो भी विवाह होता है।
यदि कुंडली में शुक्र ग्रह से अन्य कोई ग्रह युति कर रहा हो तो ऎसे ग्रह की महादशा में गुरू, शुक्र व शनि के अंतर काल में विवाह प्रकरण तय होते है
लग्न भाव के स्वामी व सप्तम भाव के स्वामी के स्पष्ट राशि योग के समान राशि मे उसी अंश पर देवगुरू आते हैं तो विवाह होता है।
यदि महादशा सप्तम भाव के स्वामी चल रही तो उस (सप्तम) भाव मे स्थित ग्रह, बृहस्पति व शनि के अंतर काल मे विवाह निश्चित होता है।
सप्तम भाव के स्वामी व शुक्र के स्वामित्व वाले भाव में जब चंद्र व गुरू की गोचरीय युति हो तो विवाह होता है।

What is Kundalini?



What is Kundalini?
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There is consciousness present within our whole body, and it is divided in the upper and lower halves of the body. This divine force or consciousness is called as the Kundalini Shakti.
Kundam is the body or pot, and the energy inside that is the Kundalini energy. When the energy in the body rises up (through the chakras), it has many manifestations. All different emotions are just manifestations of this one beautiful energy.
When this Kundalini Shakti is awakened and rises within us, then our entire life becomes a dance of joy and bliss. Then nothing in the world can trouble us, and the entire world becomes an amazement when the power of consciousness gets awakened within you.
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What are chakras?

Chakras are the nerve centres in our body. There are 1,72,000 nadis (channels of metaphysical energy or life-force) in our body, and there are various nerve centres for these 1,72,000 Nadis. The human body actually has 109 nerve centres, but among those, nine centres are important, and even in those nine, seven centres (chakras) are of primary importance.
What are the seven chakras and where are they located in the body?

The first chakra is at the base of the spine, at beginning of the anus and is called Muladhara.
Just above that is the next chakra which is called Svadhishthana.
The third chakra is just above the navel and is called Manipura.
Above that is the Anahata chakra which is in the center of the chest
Then comes the throat chakra called Visuddha
Above that is the chakra in-between the eyebrows called Ajna
The last chakra is on top of the head called Sahasrara.
What are the emotions or sensations associated with each of the seven chakras?

When energy (kundalini) flows through the chakras, there are different emotions, feelings or sensations that one experiences. It is one energy that manifests itself in different ways in the different regions of the body.
Muladhara chakra:

When the Muladhara chakra is activated (through the flow of energy, one experiences enthusiasm in life. When it is dormant, then one experiences dullness and inertia. One does not feel interested in anything.
Svadhishthana chakra:

The same energy moves upwards to the second chakra which is located behind the genitals and it manifests as procreation or creation – meaning in the form of creative activity or as sex drive.
Manipur chakra:

The same energy moves upwards to the navel region and manifests in four forms –  jealousy, greed, joy and generosity. These are the four flavors of consciousness that manifest in the third chakra.
Santa Claus, the Laughing Buddha, or a wealthy businessman, they all have a big stomach representing joy and generosity.
Anahata chakra:

From the navel region, the energy moves upwards to the heart region and manifests in three forms – fear, love and hatred.
When people feel hatred or fear or love, the sensation is felt in the heart region. When someone’s heart is broken, it means that the love has become sour and turned into hatred. Love, fear and hatred are all the same.
When there is love, there is no fear. When there is fear, there is no love. At any point of time, only one of the three emotions take the front position while the other two go in the background. It is not that they disappear entirely.
People who feel fear also have love. When love is predominant, then there is no fear or hatred.
Vishuddhi chakra:

When the same energy moves to the throat Chakra, it manifests in two forms – gratitude and grief. When you are grieving, your throat chokes. And when you feel very grateful, then also your throat chokes.
Ajna chakra:

When the consciousness moves to the center of the forehead, it manifests as anger, awareness or alertness. Knowledge and awareness are depicted by the sixth chakra. The same point is also the seat of anger, and is also said to be the region of the mystical Third Eye. You must have read or heard


Friday, August 25, 2017

कमजोर चन्द्रमाँ बनाता है व्यक्ति को इमोशनली सैंसिटिव -


कमजोर चन्द्रमाँ बनाता है व्यक्ति को इमोशनली सैंसिटिव -

हम अपने पूरे जीवन में कितनी ही बार सुख-दुःख, सफलता-विफलता, उत्साह-निराशा आदि कितनी ही अलग अलग परिस्थितियों का सामना करते हैं पर इन परिस्थितियों में जो चीज हमें सुख या दुःख का अनुभव कराती है वह है हमारा मन, हमारा मन संघर्ष के समय में जहाँ हमें दुःख या निराशा का अनुभव कराता है वही मन हमें उस दुःख या निराशा की परिस्थिति का सामना करने की आंतरिक शक्ति भी देता है। मन का मजबूत होना व्यक्ति को परिस्थिति के अनुरूप ढलने की शक्ति देता है तो वहीं कमजोर मन व्यक्ति की आंतरिक शक्तियों को क्षीण बनाता है तथा कमजोर मन या क्षीण आतंरिक शक्ति के कारण व्यक्ति पर परिस्थिति या भावनाये जल्दी हावी हो जाती हैं तो आईये देखते हैं इसके कुछ ज्योतिषीय तथ्य –
ज्योतिष में चन्द्रमाँ को मन का कारक माना गया है चन्द्रमाँ ही हमारी मानसिक और भावनात्मक स्थिति को नियंत्रित करता है व्यक्ति की भावनात्मक और मानसिक शक्ति कैसी होगी यह उसकी जन्मकुंडली में स्थित चन्द्रमाँ पर निर्भर करता है कुंडली में मजबूत चन्द्रमाँ जहाँ व्यक्ति के मन को एकाग्र, शांत और आंतरिक शक्ति से युक्त बनाता है वहीँ कुंडली में चन्द्रमाँ कमजोर होने पर व्यक्ति की मानसिक और भावनात्मक स्थिति अस्थिर और अशांतिपूर्ण होती है।

यदि कुंडली में चन्द्रमाँ पाप भाव(6,8,12) में हो, नीच राशि वृश्चिक में हो, अमावश्या का हो और विशेष रूप से यदि चन्द्रमाँ राहु या शनि के साथ या इनसे दृष्ट हो ऐसे में चन्द्रमाँ पीड़ित होने से व्यक्ति को जीवन में मानसिक रूप से बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिन लोगो की कुंडली में चन्द्रमाँ अति पीड़ित स्थिति में हो तो ऐसे व्यक्ति को मानसिक शांति की हमेशा कमी महसूस होती है, ऐसे में व्यक्ति को अधिक मानसिक तनाव, ओवर थिंकिंग या नेगेटिव थिंकिंग की बहुत समस्या होती है और कमजोर चन्द्रमाँ ही व्यक्ति को इमोशनली सेंसिटिव बनाता है कुंडली में चन्द्रमाँ पीड़ित होने पर व्यक्ति बहुत अधिक भावुक प्रकृति का होता है।  कमजोर चन्द्रमाँ वाला व्यक्ति किसी भी बात को लेकर बहुत जल्दी परेशन हो जाता है और ऐसा व्यक्ति अपने साथ घटी घटनाओ को आसानी से नहीं भुला पाता, भावनाओं में बहुत जल्दी बह जाता है, कमजोर चन्द्रमाँ वाला व्यक्ति अपने मन की बातो को आसानी से किसी से शेयर नहीं कर पाता और मानसिक घुटन की स्थिति में रहता है ऐसे व्यक्ति को अकेले में रोने की आदत होती है अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाता।  कुंडली में चन्द्रमाँ पीड़ित होने पर व्यक्ति काबिल होने पर भी अपने को अंडरस्टीमेट करता रहता है। जिन बच्चों की कुंडली में चन्द्रमाँ पीड़ित स्थिति में होता है वो छोटी छोटी बातों पर जल्दी ही रोने लगते हैं और किसी भी काम को करने से पहले ही घबराने लगते हैं ऐसे बच्चो को अपने माता पिता के इमोशनल सपोर्ट की बहुत आवश्यकता होती है।  इमोशनल सेंसिटिविटी के अलावा डिप्रेशन, एंग्जायटी, घबराहट और साइकोलॉजिकल डिसऑडर्स का कारण भी कमजोर या पीड़ित चन्द्रमाँ ही होता है, कमजोर चन्द्रमाँ ही व्यक्ति को मूड स्विन्ग्स की समस्या देता है और पीड़ित चन्द्रमाँ ही व्यक्ति के मन में  कई बार अपने जीवन तक को समाप्त कर लेने जैसे नकारात्मक विचार ला देता है इस लिए आज के समय में चन्द्रमाँ की भूमिका हमारे जीवन में बहुत अधिक है इसके साथ ही यदि हमारे आस पास भी कोई ऐसे व्यक्ति या बच्चे हो जो इमोशनली बहुत सेंसिटिव हों तो हमेशा उन्हें इमोशनल सपोर्ट देकर उनसे  उत्साहवर्दक बातें  करके उकके उत्साह को बढ़ाते रहना चाहिए नहीं तो कई बार ऐसे व्यक्ति या बच्चे भावुकता या क्षीण मानसिक शक्ति के कारण अपने आप में उपस्थित प्रतिभा  को बाहर नहीं निकाल पाते।

कमजोर चन्द्रमाँ के नकारात्मक परिणाम से बचने और चन्द्रमाँ को सकारात्मक और बली करने के लिए हम कुछ उपाय बता रहे हैं जो आपके लिए सहायक होंगे -

उपाय -

1. ॐ सोम सोमाय नमः का जाप करें (एक माला रोज)
2. आदित्य हृदय स्तोत्र का रोज पाठ करें।
3. चाँदी की एक ठोस गोली का लॉकेट गले में धारण करें।
4. सफ़ेद चन्दन का तिलक मस्तक पर लगाएं।
5. प्रातः काल जल्दी उठकर सूर्य दर्शन अवश्य करें।
6. किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श के बाद मोती भी धारण कर सकते हैं।
7. प्रतिदिन शिवलिंग का दूध और जल से अभिषेक करें।
8. अकेले में रहने की आदत न डालें और मन की बातों को शेयर करने की कोसिस करें।
9. प्रतिदिन कुछ देर के लिए अपने इष्ट (देव/देवी) के सामने जरूर बैठे और उनकी आँखों में देखते हुए मानसिक रूप से अपने मन की बाते उन्हें बतायें अवश्य लाभ होगा।

।।श्री हनुमते नमः।।

Wednesday, August 23, 2017

ज्योतिष में कैंसर के योग (उपचार और उपाय)


ज्योतिष में कैंसर के योग (उपचार और उपाय)
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 कैंसर शब्द या रोग से आज हर कोई परिचित है। इसका नाम सुनते ही हाथ आंव फूल जाते हैं और मृत्यु सामने दिखने लगती है। केन्सर के ९०% प्रतिशत मामलों में मृत्यु हो भी जाती है। ज्योतिष से कैंसर जैसे भयानक रोग की उत्पत्ति में कौन कौन से ग्रहों का प्रभाव रहता है इसे जाना जा सकता है। ज्योतिष सृष्टि संचरण की घड़ी है एवं व्यक्ति की जन्म कुंडली सोनोग्राफी है जिसके विश्लेषण से कैंसर की संभावना का पता लगाया जा सकता है। समय रहते प्रतिकूल ग्रहों को मंत्र जप एवं अन्य उपायों के द्वारा शांत कर इस रोग से बचा जा सकता है।
मानव शरीर में कैंसर की उत्पत्ति में कोशिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कोशिकाओं में श्वेत एवं लाल रक्त कण होते हैं। ज्योतिष में श्वेत रक्त कण का सूचक कर्क राशि का स्वामी चंद्र तथा लाल रक्त कण का सूचक मंगल है। कर्क राशि का अंग्रेजी नाम कैंसर है तथा इसका चिह्न केकड़ा है। केकड़े की प्रकृति होती है कि वह जिस स्थान को अपने पंजों से जकड़ लेता है, उसे अपने साथ लेकर ही छोड़ता है। इसी प्रकार कोशिकाएं मानव शरीर के जिस अंग को अपना स्थान बना लेती है उसे शरीर से अलग करके ही कोशिकाओं को हटाया जाता है। इसलिए ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग के लिए कर्क राशि के स्वामी चंद्र का विशेष महत्व है। इसी प्रकार रक्त में लाल कण की कमी होने पर प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है। ज्योतिष पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का आधार है अर्थात हम ज्योतिष द्वारा ज्ञात कर सकते हैं कि हमारे पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का परिणाम हमें इस जन्म में किस प्रकार प्राप्त होगा। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है। ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान में सहायक होता है। पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था में होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सभी ज्योतिष विधि द्वारा जाना जा सकता है।
जन्म कुंडली में जब एक भाव पर ही अधिकतर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, विशेषकर शनि, राहु व मंगल से तब उस संबंधित भाव वाले अंग में कैंसर रोग के होने की संभावना अधिक होती है. कैंसर रोग जिस दशा में होता है, उसके बाद आने वाली दशाओं का आंकलन किया जाना चाहिए. यदि यह दशाएँ शुभ ग्रहों की है या अनुकूल ग्रह की है या योगकारक ग्रह की दशा आती है तब रोग का पता आरंभ में ही चल जाता है और उपचार भी हो जाता है।

ज्योतिष में राहु को कैंसर का कारक माना गया है लेकिन शनि व मंगल भी यह रोग देते हैं।

जानिए जन्म कुंडली में कोनसे योग कैंसर कारक हो सकते हैं
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१👉 राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।

२👉 षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मे स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

३👉 बारहवें भाव में शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।

४👉 राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।

५👉 षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।

६👉 बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।

७👉 बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है। बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ''रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप.....

अत: जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है।

८👉 सभी लग्नो में कर्क लग्न के जातकों को सबसे ज्यादा खतरा इस रोग का होता है।

९👉 कर्क लग्न में बृहस्पति कैसर का मुख्य कारक है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठे, आठवे, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाये व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होना लगभग तय है।

१०👉 शनि या मंगल किसी भी कुंडली में यदि छठे या आठवे स्थान में राहू या केतु के साथ हों तो कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है

११👉 छठे भाव का स्वामी लग्न, आठवे या दसवे में भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना होती है।

१२👉 किसी जातक की कुंडली में सूर्य यदि छठे, आठवे या बढ़ावे भाव में पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक को पेट या आंतों में अल्सर और कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है।

१३👉 किसी जातक की कुंडली में यदि सूर्य कही भी पाप ग्रहों के सग्रहों के साथ हो और लग्नेश या लग्न भी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना रहती है।

१४👉 कमज़ोर चंद्रमा पापग्रहों की राशी में छठे, आठवे या बारहवे हो और लग्न अथवा चंद्रमा, शनि और मंगल से दृष्ट हो तो अवश्य ही कैंसर होता है।

१५👉 चंद्रमा व शनि छठे भाव में स्थिति है तब व्यक्ति को पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद रक्त कैंसर हो सकता है।

१६👉 आश्लेषा नक्षत्र, लग्न या छठे भाव से संबंधित होने पर और मंगल से पीड़ित होने पर कैंसर होने की संभावना बनती है।

१७👉 शनि छठे भाव में राहु के नक्षत्र में स्थित हो और पीड़ित हो तब कैंसर रोग की संभावना बनती है।

१८👉 शनि और मंगल की युति छठे भाव में आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में हो रही हो.तो कैंसर की संभावना बनती है।

१९👉 मंगल और राहु छठे या आठवें भाव को पीड़ित कर रहे हों तब त्वचा का कैंसर हो सकता है।

२०👉 छ्ठे भाव में मेष राशि हो या स्वाति या शतभिषा नक्षत्र पड़ रहा हो और शनि छठे भाव को पीड़ित कर रहा हो तब त्वचा कैंसर का रोग हो सकता है।

२१👉 जन्म कुंडली में राहु या केतु लग्न में षष्ठेश के साथ हो तो पेट का कैंसर हो सकता है।

२२👉 छठा भाव पीड़ित हो और राहु या केतु, आठवें या दसवें भाव में स्थित हो तो पेट का कैंसर हो सकता है।

२३👉 यदि किसी जातिका की कुण्डली में लग्नेश अष्टम, षष्टम अथवा द्वाद्श में चला गया हो, लग्न स्थान पर क्रूर व पापी ग्रहों की स्थिति हो, चतुर्थ स्थान का अधिपति शत्रुगृही होकर पीड़ित हो, छठे भाव का अधिपति चतुर्थेश से संबंध बना रहा हो तो ऐसी स्थिति में जातिका को ब्रेस्ट कैंसर या स्तनों में बड़े विकार की संभावना प्रबल रूप से मौज़ूद होती है।

२४👉 छठे भाव में कर्क अथवा मकर राशि का शनि स्तन कैंसर का संकेत देता है।
२५👉 छठे भाव में कर्क या मकर का मंगल स्तन कैंसर का द्योतक है।

२६👉 यदि छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह हो और लग्नेश आठवें या दसवें घर में बैठा हो तो कैंसर रोग की आशंका रहती है।

२७👉 छठे भाव में कर्क राशि में चंद्रमा हो, तब भी कैंसर का द्योतक है।

२८👉 चंद्रमा से शनि का सप्तम होना कैंसर की संभावना को प्रबल बनाता है।

कैंसर से बचाव हेतु उपचार और उपाय
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जन्म कुंडली में भावों के अनुसार शरीर से संबंधित ग्रहों के रत्नों का धारण करने से रोग-मुक्ति संभव होती है। लेकिन कभी-कभी जिसके द्वारा रोग उत्पन्न हुआ है, उसके शत्रु ग्र्रह का रत्न धारण करना भी लाभप्रद होता है और ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए।
एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय मंत्र-यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को नहीं बदल सकते दूध जब तक दूध है तभी तक उसे बचा सकते हैं ,दही बनने पर वह दूध नहीं हो सकता इसलिए मात्र ज्योतिषीय उपायों के बल पर बैठना घातक होगा क्योकि एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय ,मंत्र,यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को नहीं बदल सकते ... रोगी में सकारात्मक ऊर्जा ,धनात्मक ऊर्जा बढ़ा देंगे जिससे लड़ने की क्षमता बढ़ जाए भाग्य अगर किन्ही नकारात्मक ऊर्जा के कारण बाधित है अथवा नकारात्मक ऊर्जा रोग बढ़ा रही है तो उसे मंत्र हटा देंगे जीवनी शक्ति बढ़ा देंगे पर रोग हो गया तो उसे केवल इनसे ख़त्म करना मुश्किल है। ज्योतिषीय उपाय , मंत्र के साथ अवचेतन को बल देना बेहतर होता है क्योकि अंततः सारा खेल अवचेतन को ही करना होता है अगर यह निराश हताश हुआ तो फिर न दवा काम करेगी न कोई उपाय  इन सभी के साथ-साथ औषधि सेवन, चिकित्सकों के द्वारा दी गई सलाह आदि का पालन किया जाना उतना ही आवश्यक है। तभी इसका पूर्ण लाभ सम्भव होगा।