बारह मुखी रुद्राक्ष
यह भगवान विष्णु का स्वरूप है इसके देवता बारह सूर्य है। इसके धारण करने से दोनों लोको में सुख की प्राप्ति होकर सदा भरण पोषण होता है गौं हत्या मनुष्य हत्या व रत्नों की चोरी जैसे पाप इसके उपयोग से नष्ट होते है।
नश्यन्ति तानि पापनि वक्त्रद्वादशधारणात्।
आदित्याश्चैव ते सर्वो द्वादशैव व्यवस्थिताः।।
द्वादशमुखी रुद्राक्ष धारण करने से उन मनुष्यों के पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैंै क्योंकि सूर्य आदि से लेकर संपूर्ण आदित्य द्वादशमुखी रुद्राक्ष में वास करते हैं। इस लिए उन मनुष्यों को चोर, अग्नि का भय तथा अनेक प्रकार की व्याधि नहीं होती और वे अर्थवान होते हैं यदि दरिद्र भी हों तब भी भाग्यवान हो जाते हैं हाथी, घोड़ा, हरिण, बिलाव, भैंसा, शूकर, कुत्ता, श्रृंगाल (सियार) अर्थात् दाढ़ वाले सभी प्रकार के पशु वगैरा उन मनुष्यों को बाधा नहीं पहुंचा सकते। इस रुद्राक्ष को दांतों की संख्या के बराबर अर्थात् (32) की माला कण्ठ में धारण करने पर उन मनुष्यों का गो-वधु मनुष्य-हत्या एवं चोर कार्य का पाप नष्ट हो जाता है। यह सब प्रकार की बाधाओं का कीलन करने वाला दाना ’आदित्यरुद्राक्ष’ नाम से जाना जाता है।
उपयोग से लाभ
यह रुद्राक्ष दरिद्रता को नष्ट करता है सभी प्रकार के भयानक पशुओं से रक्षा करता है।
इस रुद्राक्ष को दांतों की संख्या के बराबर की माला कंठ में धारण करने से गो-वध, मनुष्य एवं चोरी जैसे पाप को नष्ट करता है।
द्वादशमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी प्रकार की बांधायें नष्ट होती हैं मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा से छुटकारा मिलता है।
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