Wednesday, January 24, 2018

सूर्य_चंद्र_से_बनने_वाला_विपरीत_राजयोग

||#सूर्य_चंद्र_से_बनने_वाला_विपरीत_राजयोग||                            सूर्य चंद्र दोनों आपस में मित्र ग्रह है।सबसे शक्तिशाली और शुद्ध स्थिति में विपरीत राजयोग सूर्य और चन्द्र ही बनाते है अन्य ग्रहो के ग्रहयोग में कुछ न कुछ अशुद्धता रहती है।सूर्य चन्द्र से ही विपरीत राजयोग क्यों शक्तिशाली और शुद्ध तरह से बनता है इसका कारण है सूर्य और चन्द्र केवल ही राशि के स्वामी होते है अन्य ग्रह दो दो राशियों के स्वामी होते है।सूर्य चन्द्र एक राशि के स्वामी होने से इनका एकल अधिकार राशि स्वामित्व के अनुसार एक ही भाव पर होता है।यदि सूर्य चन्द्र छठे भाव के स्वामी है तो यह सिर्फ छठे भाव के ही स्वामी रहेगे किसी अन्य भाव के स्वामी नही होंगे क्योंकि यह सिर्फ एक ही राशि के स्वामी होते है अन्य ग्रह दो राशियों के स्वामी होने के कारण यदि वह छठे भाव का स्वामी है तो दशम नवम आदि दो भाव का स्वामी भी होगा जो विपरीत राजयोग का पूरी तरह से योग फलित नही करता।।                                                                                   *विपरीत राजयोग कैसे बनता है??                                                                                छठे आठवे बारहवे भाव से विपरीत राजयोग बनता है।जब छठे भाव का स्वामी आठवे बारहवे भाव, आठवे भाव का स्वामी छठे बारहवे भाव और बारहवे भाव का स्वामी छठे या आठवे भाव में होता है तो विपरीत राजयोग बनता है।सूर्य चन्द्र के आलावा अन्य ग्रह भी विपरीत राजयोग बनाते है लेकिन यहाँ बात सूर्य चन्द्र से बनने वाले विपरीत राजयोग की कर रहे है।सूर्य चन्द्र जब छठे आठवे बारहवे भाव के स्वामी होते है तो सिर्फ छठे आठवे बारहवे भाव के स्वामी ही होते किसी अन्य भाव के स्वामी नही होते क्योंकि इनकी एक ही राशि होती है जिस कारण यह एक ही भाव के स्वामी होते बाकि अन्य ग्रह दो भाव के स्वामी होने से विपरीत राजयोग पर कुछ नकारात्मक प्रभाव भी डालते है।सूर्य छठे भाव का स्वामी होकर आठवे बारहवे, आठवे भाव का स्वामी होकर छठे बारहवे, बारहवे भाव का स्वामी होकर छठे आठवे में होगा तब सूर्य विपरीत राजयोग बनाएगा।सूर्य से बनने वाला यह विपरीत राजयोग शक्तिशाली और पूरी तरह से शुद्ध स्थिति में होगा क्योंकि सूर्य सिर्फ 6, 8, 12 भाव ही स्वामी है किसी अन्य भाव, केंद्र त्रिकोण भाव का स्वामी नही है जिस कारण से यह सूर्य से बनने वाला राजयोग पूरी तरह से फलित होता है और उच्च सफलता, उन्नति, सोभाग्य, धन वृद्धि आदि जैसे शुभ फल देता है।इसी तरह बिलकुल सूर्य की स्थिति की तरह चन्द्र से  6, 8, 12 भाव की स्थिति से राजयोग बनेगा।अब क्योंकि मान लीजिये जैसे कन्या लग्न में शनि 5वे और 6वे भाव का स्वामी होता है यदि अब शनि 8वे भाव में होगा तो तो भी विपरीत राजयोग न शक्तिशाली होगा न फलित होगा क्योंकि शनि कन्या लग्न में 5वे भाव का स्वामी होता है जोकि की एक तरह से शुभ नही।इसी तेह मेष लग्न में बुध 3, 6 दो अशुभ भावो का स्वामी होकर यदि 8वे, 12वे भाव में होगा तो निश्चित ही विपरीत राजयोग के फल देगा।क्योंकि बुध यहाँ दो अशुभ भावो का स्वामी होकर अशुभ भाव में है।मेष लग्न में 12वे भाव में बुध नीच होने से कमजोर होता है इस कारण इसके फल माध्यम होंगे।इस कारण सूर्य चंद्र से बनने वाला विपरीत राजयोग ही सबसे ज्यादा प्रभावित और शक्तिशाली होता है।सूर्य चन्द्र से बनने वाले विपरीत राजयोग में किसी केंद्र ता त्रिकोण के स्वामी का सम्बन्ध नही होना चाहिए, विपरीत राजयोग ग्रह अस्त, पीड़ित, अंशो में कमजोर अन्य तरह से दूषित नही होना चाहिए।सूर्य से बनने वाला विपरीत राजयोग मीन, मकर, कन्या लग्न में और चन्द्र से कुम्भ, धनु, सिंह लग्न में फलित होता है।विपरीत राजयोग में एक खास बात होती है विपरीत राजयोग का फल राजयोग से कई गुना ज्यादा मिलता है।इस तरह सूर्य चन्द्र से बनने वाला विपरीत राजयोग सबसे ज्यादा शुद्ध, कारगर और प्रबल होता है।

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