केतु के नक्षत्र में जन्में बच्चे होते हैं स्वभाव के जिद्दी पढ़ाई में कमजोर, ऐसे पता लगाकर करें ये उपाय
देवताओं में अमृत वितरण के समय भगवान विष्णु ने राहु का सर धड़ से अलग कर दिया,सर का भाग राहु और धड़ का भाग केतु कहलाया,अमृत पीने के कारण ये दोनो भाग अमर हो गये तथा एक दूसरे से अलग होकर भ्रमण करने लग,राहु में धड़ के नीचे के भाग हाथ पैर पेट हृदय सम्बंधी कमियां है।
जबकि सर में स्थित इंद्रियां आंख,कान,नाक वाणी का बल विशेष रूप से है,वही केतु में निचले हिस्सों की इंद्रियों का बल विशेष है जबकि सर की इंद्रियों आंख कान वाणी आदि की कमजोरी है,केतु को बच्चो का कारक माना गया है,खासकर छोटे बच्चो पर केतु का खास प्रभाव होता है,
*मूल नक्षत्र और केतु*- बच्चो के जन्म के समय मूल नक्षत्र को अशुभ माना गया है,बुध के तीन नक्षत्र अश्लेशा,ज्येष्ठा,रेवती तथा केतु के नक्षत्र अश्विनी,मघा और मूल को मूल का नक्षत्र माना जाता है इसमे केतु के तीन नक्षत्र को विशेष हानिकारक माना जाता है इन नक्षत्रों में बच्चो का जन्म माता पिता के लिये हानिकारक माना जाता है,इसकी वैदिक रीति द्वारा ग्रह शांति कराई जाती है.
*सभी पालकगणों के लिये ध्यान देने वाली बातें*
माह में तीन दिन केतु के नक्षत्र होते है जिन बच्चो का जन्म मूल यानी अस्लेषा,ज्येष्ठा,रेवती,अश्विनी
मघा,मूल नक्षत्र में जन्म हुआ हो उन्हे अपने बच्चो को माह के तीन दिन आने वाले केतु के नक्षत्र में विशेष ध्यान देना चाहिये,उनके नाम से उस दिन गणेशजी की खास पूजा और लड्डु का वितरण करना चाहिये जिससे बच्चो पर आने वाला संकट टल जाता है.
*जिन मां के बच्चे ऊपर दिये गये मूल के छह नक्षत्रों में जन्मे है उन्हे गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिये.
*मूल नक्षत्र केतु के विषय में*
केतु ग्रह के देवता भगवान गणेश होते है.
*7अंक पर इसका प्रभाव होता है.
*केतु ऊँचाई से नीचे गिरने का कारक भी होता है.
*अचानक मानसिक दुख और अलगाव का कारक भी होता है.
*मानसिक पागलपन,विचित्र व्यवहार केतु ग्रह के कारण ही होता है.
*केतु सभी बच्चो का कारक होता है.
*केतु आकस्मिक घटनाओं का कारक भी होता है.
*विद्या बुद्धि शिक्षा,समझ के लिये भगवान गणेश की कृपा अत्यंत आवश्यक होती है.
*प्राचीन काल से बच्चो के शुभ भविष्य तथा विद्या में आने वाली रुकावटों के माता चतुर्थी का व्रत करती थी और आज भी करती है.
*अच्छी शिक्षा के लिये सभी विद्यार्थी गणेशजी का स्मरण करते है,और सभी शिक्षण संसथाओ को यह करना चाहिये.
देवताओं में अमृत वितरण के समय भगवान विष्णु ने राहु का सर धड़ से अलग कर दिया,सर का भाग राहु और धड़ का भाग केतु कहलाया,अमृत पीने के कारण ये दोनो भाग अमर हो गये तथा एक दूसरे से अलग होकर भ्रमण करने लग,राहु में धड़ के नीचे के भाग हाथ पैर पेट हृदय सम्बंधी कमियां है।
जबकि सर में स्थित इंद्रियां आंख,कान,नाक वाणी का बल विशेष रूप से है,वही केतु में निचले हिस्सों की इंद्रियों का बल विशेष है जबकि सर की इंद्रियों आंख कान वाणी आदि की कमजोरी है,केतु को बच्चो का कारक माना गया है,खासकर छोटे बच्चो पर केतु का खास प्रभाव होता है,
*मूल नक्षत्र और केतु*- बच्चो के जन्म के समय मूल नक्षत्र को अशुभ माना गया है,बुध के तीन नक्षत्र अश्लेशा,ज्येष्ठा,रेवती तथा केतु के नक्षत्र अश्विनी,मघा और मूल को मूल का नक्षत्र माना जाता है इसमे केतु के तीन नक्षत्र को विशेष हानिकारक माना जाता है इन नक्षत्रों में बच्चो का जन्म माता पिता के लिये हानिकारक माना जाता है,इसकी वैदिक रीति द्वारा ग्रह शांति कराई जाती है.
*सभी पालकगणों के लिये ध्यान देने वाली बातें*
माह में तीन दिन केतु के नक्षत्र होते है जिन बच्चो का जन्म मूल यानी अस्लेषा,ज्येष्ठा,रेवती,अश्विनी
मघा,मूल नक्षत्र में जन्म हुआ हो उन्हे अपने बच्चो को माह के तीन दिन आने वाले केतु के नक्षत्र में विशेष ध्यान देना चाहिये,उनके नाम से उस दिन गणेशजी की खास पूजा और लड्डु का वितरण करना चाहिये जिससे बच्चो पर आने वाला संकट टल जाता है.
*जिन मां के बच्चे ऊपर दिये गये मूल के छह नक्षत्रों में जन्मे है उन्हे गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिये.
*मूल नक्षत्र केतु के विषय में*
केतु ग्रह के देवता भगवान गणेश होते है.
*7अंक पर इसका प्रभाव होता है.
*केतु ऊँचाई से नीचे गिरने का कारक भी होता है.
*अचानक मानसिक दुख और अलगाव का कारक भी होता है.
*मानसिक पागलपन,विचित्र व्यवहार केतु ग्रह के कारण ही होता है.
*केतु सभी बच्चो का कारक होता है.
*केतु आकस्मिक घटनाओं का कारक भी होता है.
*विद्या बुद्धि शिक्षा,समझ के लिये भगवान गणेश की कृपा अत्यंत आवश्यक होती है.
*प्राचीन काल से बच्चो के शुभ भविष्य तथा विद्या में आने वाली रुकावटों के माता चतुर्थी का व्रत करती थी और आज भी करती है.
*अच्छी शिक्षा के लिये सभी विद्यार्थी गणेशजी का स्मरण करते है,और सभी शिक्षण संसथाओ को यह करना चाहिये.
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