राहू का विशेष रहस्य
राहू को एक छाया ग्रह के रूप में स्वींकार किया गया है। छाया का भाव है कि इस ग्रह के पास अपना कोई प्रकाश नहीं है। यह ग्रह प्रकाशहीन है, अतः इनमें भी शनि की तरह प्रकाशहीनता का दोष है। इसी आधार पर राहू के गुणों में शनि के अनेक गुण समाहित है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में राहू को भी शनि की तरह धूर्त, शानि की भांति लंबे आकार वाला, रोगकरक, बदला लेने वाला, अभाव प्रदान करने वाला और प्रत्येक कार्य में विलंब करने वाला ग्रह माना गया है। यद्यपि राहु में अपना एक विशिष्ट गुण भी है, जो शनि को प्राप्त नही है। शानि अपना प्रभाव धीरे-धीरे प्रदान करता है, जबकि राहू किसी भी घटना को अचानक घटित करता है, अपना प्रभाव अनायास दे देता है। शनि की तरह राहू भी स्नायु तन्त्र पर अपना प्रभाव रखता है। अतः शनि की तरह स्नायु तंत्र संबन्धी रोगों के पीछे भी राहु का स्पष्ट हाथ देखा जाता है। .....इसलिए किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में लग्न, लग्नेश, चंद्र, चंद्र लग्नेश, सूर्य, लग्नेश अथवा सूर्य लग्नेश पर राहू अथवा शनि का प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति को कम आयु में ही स्नायु विकार ग्रस्त हो जाते है। यदि यह दोष किसी ब्राह्यण जो, जो मद्यपान करता हो अथवा क्षत्रीय की जन्मकुंडली में हो तो रोग की अधिकता अधिक रहती है क्योंकि सूर्य, चन्द्र, गुरू व मगंल सभी शनि व राहू के शत्रु है। ये ग्रह उच्च जाति के है अर्थात् शूद्र नही है। इसी प्रकार राहू के प्रभाव मे ग्रह होने के कारण जन्मकुंडली में इसका प्रभाव यदि छठे अथवा आठवें भावों के स्वामी पर हो, साथ ही द्वितीय भाव अथवा उसके स्वामी पर हो तो वह व्यक्ति अपना जीवन अभावों में ही गुजारता है। जीवन में वह धन संचय नही कर पाता, क्योंकि ये दोनों ही भाव अभाव के है तथा द्वितीय भाव धन का है।
राहू एकाएक असर करने वाला, अचानक फल देने वाला ग्रह है। अतः जन्मकुंडली में राहू यदि धन द्योतक भाव अर्थात् लग्न, द्वितीय, पंचम, नवम अथवा एकादश भाव पर प्रभाव हो अर्थात् राहू के इस योग से व्यक्ति को लाटरी, सट्टा आदि से लाभ होता रहता है। जिन लोगों की जन्मकुंडली में यह योग होता है तो वह व्यवसाय करें अथवा नौकरी, परंतु वे ऐसे स्थान पर ही होते है कि उन्हें जब जब धन प्राप्त होता रहता है।
मेरे अनुभव में राहू के संबन्ध में बात ओर भी आयी है कि अगर किसी जन्मकुंडली में राहू के ऊपर किसी विशेष योग यथा गजकेसरी, लक्ष्मीनरायण अथवा किसी अन्य प्रकार के शुभ योग अथवा राजयोग का प्रभाव हो तो ऐसा राहू अपनी दशा अतंरदशा के दौरान जातक को अवश्य ही उस योग के फल प्रदान कराता है। इसी प्रकार यदि राहू किसी अशुभ योग के साथ अथवा अष्टमेश अथवा द्वाददेश आदि से युक्त अथवा दृष्ट होकर स्थित है, तो यह भी अपनी दशा अंन्र्तदशा के अनुसार अपना अशुभ फल देने में पीछे नही रहता।
राहू का गोचर फल
राहू अपने संक्रमण काल में अर्थात् राशि में प्रवेश से लगभग तीन महीने पहले ही अपना फल देने लगता है। राहू राशि के अंतिम भाग में अर्थात् 20 अंश से 30 अंश के मध्य अधिक फल देता है। प्रत्येक जन्म राशि में राहू का गोचर निम्न प्रकार से रहता है। यहां मतान्तर के मत को कोष्ठक में व्यक्त किया गया है तथा अतिरिक्त राहू जब भी गोचर में आद्र्रा, स्वाति व शतभिषा नक्षत्रों में भ्रमण करेगा तो उसके शुभ फल में वृद्धि हो जाती है। राहू गोचर में 3, 6 व 11 भाव में अत्यधिक शुभफल प्रदान करते है तथा अष्टम व द्वादश भाव में बहुत ही अशुभ फल देते है। राहू को सदैव ही रहस्यमय ग्रह के रूप में देखा गया है। शायद यही करण है कि राहू के सभी कार्य रहस्य से भरे रहते है। राहू सदैव अचानक ही फल देता है। इसीलिए राहू कब क्या फल देगा, इस संबन्ध में कोई कुछ नही कर सकता।
मेरे अनुभव में जब जन्मकुंडली में राहू की स्थिति अशुभ हो तो जातक राहू की दशा मे सदैव गलत कार्य ही करता है। उसके सभी कार्यो में कोई न कोई रहस्य छिपा रहता है। यदि शनि की स्थिति शुभ हो तो राहू की दशा में जातक ऐसे कार्य कर बैठता है कि जब राहू की दशा समाप्त होती है तो उसे विश्वास ही नही होता कि वह कार्य उसने किये है। जातक राहू के प्रभाव से ही शराब का सेवन करता है, चोरी करता है, रिश्वत लेता है अर्थात् राहू जो गलत कार्य करा दे, वह कम होता है। जातक यदि शराब नही पीता तो राहू के व्यवसाय भाव अथवा उसके स्वामी पर प्रभाव होने से वह शराब का कारोबार करता है।
जन्म राशि सेः-
जन्म राशि- रोग, कष्ट, ऋण वृद्धि, आर्थिक हानि।
द्वितीय स्थानः- आर्थिक हानि।
तृतीय स्थानः- आर्थिक लाभ व पराक्रम वृद्धि।
चतुर्थ स्थानः- शत्रु कष्ट व शत्रु वृद्धि।
पंचम स्थानः- संतान से कष्ट अथवा हानि व कार्य में मन न लगना।
षष्ठ स्थानः- आर्थिक लाभ व सुख वृद्धि।
सप्तम स्थानः- अनिष्ट, जीवन साथी कष्ट, पारवारिक कलह।
अष्टम् स्थानः- शारीरिक कष्ट व दुर्घटना भय, मृत्यु तुल्य कष्ट।
नवम स्थान:- धर्म से विमुख व आर्थिक हानि तथा प्रवास।
दशम स्थान:- शत्रुता, मानसिक कष्ट, कर्म क्षेत्र में हानि।
एकादश स्थान:- आर्थिक लााभ, सुख , कार्य सिद्धि।
द्वादश स्थानः- प्रत्येक क्षेत्र में हानि व अत्यधिक व्यय, अग्नि तथा दुर्घटना भय।
अशुभ राहू
समान्यतः राहू के जन्मकुंडली में पापी बनकर बैठने से जातक को स्नायु रोग, कोढ, मानसिक रोग, कमर से निचले हिस्से में पीडा, पागलपन, संधिवात, उदरवात तथा किसी भी रोग का दीर्घकाल तक ठीक न होना, अचानक घटित होने वाली घटनायें जैसे वाहन दुर्घटना, करंट लगना, जेल जाना, सर्पदंश, पदावनति, नौकरी छूटना, चुनाव में हारना, विषघात, फूड पोयजपिंग, बेहोश होना जैसे रोग अधिक होते है। राहू के अधिक पापी अथवा पीडित होने पर जातक अत्यधिक आलसी किस्म का तथा किसी भी कार्य को बहुत ही धीरे धीरे करने वाला बनता है।
राहू को एक छाया ग्रह के रूप में स्वींकार किया गया है। छाया का भाव है कि इस ग्रह के पास अपना कोई प्रकाश नहीं है। यह ग्रह प्रकाशहीन है, अतः इनमें भी शनि की तरह प्रकाशहीनता का दोष है। इसी आधार पर राहू के गुणों में शनि के अनेक गुण समाहित है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में राहू को भी शनि की तरह धूर्त, शानि की भांति लंबे आकार वाला, रोगकरक, बदला लेने वाला, अभाव प्रदान करने वाला और प्रत्येक कार्य में विलंब करने वाला ग्रह माना गया है। यद्यपि राहु में अपना एक विशिष्ट गुण भी है, जो शनि को प्राप्त नही है। शानि अपना प्रभाव धीरे-धीरे प्रदान करता है, जबकि राहू किसी भी घटना को अचानक घटित करता है, अपना प्रभाव अनायास दे देता है। शनि की तरह राहू भी स्नायु तन्त्र पर अपना प्रभाव रखता है। अतः शनि की तरह स्नायु तंत्र संबन्धी रोगों के पीछे भी राहु का स्पष्ट हाथ देखा जाता है। .....इसलिए किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में लग्न, लग्नेश, चंद्र, चंद्र लग्नेश, सूर्य, लग्नेश अथवा सूर्य लग्नेश पर राहू अथवा शनि का प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति को कम आयु में ही स्नायु विकार ग्रस्त हो जाते है। यदि यह दोष किसी ब्राह्यण जो, जो मद्यपान करता हो अथवा क्षत्रीय की जन्मकुंडली में हो तो रोग की अधिकता अधिक रहती है क्योंकि सूर्य, चन्द्र, गुरू व मगंल सभी शनि व राहू के शत्रु है। ये ग्रह उच्च जाति के है अर्थात् शूद्र नही है। इसी प्रकार राहू के प्रभाव मे ग्रह होने के कारण जन्मकुंडली में इसका प्रभाव यदि छठे अथवा आठवें भावों के स्वामी पर हो, साथ ही द्वितीय भाव अथवा उसके स्वामी पर हो तो वह व्यक्ति अपना जीवन अभावों में ही गुजारता है। जीवन में वह धन संचय नही कर पाता, क्योंकि ये दोनों ही भाव अभाव के है तथा द्वितीय भाव धन का है।
राहू एकाएक असर करने वाला, अचानक फल देने वाला ग्रह है। अतः जन्मकुंडली में राहू यदि धन द्योतक भाव अर्थात् लग्न, द्वितीय, पंचम, नवम अथवा एकादश भाव पर प्रभाव हो अर्थात् राहू के इस योग से व्यक्ति को लाटरी, सट्टा आदि से लाभ होता रहता है। जिन लोगों की जन्मकुंडली में यह योग होता है तो वह व्यवसाय करें अथवा नौकरी, परंतु वे ऐसे स्थान पर ही होते है कि उन्हें जब जब धन प्राप्त होता रहता है।
मेरे अनुभव में राहू के संबन्ध में बात ओर भी आयी है कि अगर किसी जन्मकुंडली में राहू के ऊपर किसी विशेष योग यथा गजकेसरी, लक्ष्मीनरायण अथवा किसी अन्य प्रकार के शुभ योग अथवा राजयोग का प्रभाव हो तो ऐसा राहू अपनी दशा अतंरदशा के दौरान जातक को अवश्य ही उस योग के फल प्रदान कराता है। इसी प्रकार यदि राहू किसी अशुभ योग के साथ अथवा अष्टमेश अथवा द्वाददेश आदि से युक्त अथवा दृष्ट होकर स्थित है, तो यह भी अपनी दशा अंन्र्तदशा के अनुसार अपना अशुभ फल देने में पीछे नही रहता।
राहू का गोचर फल
राहू अपने संक्रमण काल में अर्थात् राशि में प्रवेश से लगभग तीन महीने पहले ही अपना फल देने लगता है। राहू राशि के अंतिम भाग में अर्थात् 20 अंश से 30 अंश के मध्य अधिक फल देता है। प्रत्येक जन्म राशि में राहू का गोचर निम्न प्रकार से रहता है। यहां मतान्तर के मत को कोष्ठक में व्यक्त किया गया है तथा अतिरिक्त राहू जब भी गोचर में आद्र्रा, स्वाति व शतभिषा नक्षत्रों में भ्रमण करेगा तो उसके शुभ फल में वृद्धि हो जाती है। राहू गोचर में 3, 6 व 11 भाव में अत्यधिक शुभफल प्रदान करते है तथा अष्टम व द्वादश भाव में बहुत ही अशुभ फल देते है। राहू को सदैव ही रहस्यमय ग्रह के रूप में देखा गया है। शायद यही करण है कि राहू के सभी कार्य रहस्य से भरे रहते है। राहू सदैव अचानक ही फल देता है। इसीलिए राहू कब क्या फल देगा, इस संबन्ध में कोई कुछ नही कर सकता।
मेरे अनुभव में जब जन्मकुंडली में राहू की स्थिति अशुभ हो तो जातक राहू की दशा मे सदैव गलत कार्य ही करता है। उसके सभी कार्यो में कोई न कोई रहस्य छिपा रहता है। यदि शनि की स्थिति शुभ हो तो राहू की दशा में जातक ऐसे कार्य कर बैठता है कि जब राहू की दशा समाप्त होती है तो उसे विश्वास ही नही होता कि वह कार्य उसने किये है। जातक राहू के प्रभाव से ही शराब का सेवन करता है, चोरी करता है, रिश्वत लेता है अर्थात् राहू जो गलत कार्य करा दे, वह कम होता है। जातक यदि शराब नही पीता तो राहू के व्यवसाय भाव अथवा उसके स्वामी पर प्रभाव होने से वह शराब का कारोबार करता है।
जन्म राशि सेः-
जन्म राशि- रोग, कष्ट, ऋण वृद्धि, आर्थिक हानि।
द्वितीय स्थानः- आर्थिक हानि।
तृतीय स्थानः- आर्थिक लाभ व पराक्रम वृद्धि।
चतुर्थ स्थानः- शत्रु कष्ट व शत्रु वृद्धि।
पंचम स्थानः- संतान से कष्ट अथवा हानि व कार्य में मन न लगना।
षष्ठ स्थानः- आर्थिक लाभ व सुख वृद्धि।
सप्तम स्थानः- अनिष्ट, जीवन साथी कष्ट, पारवारिक कलह।
अष्टम् स्थानः- शारीरिक कष्ट व दुर्घटना भय, मृत्यु तुल्य कष्ट।
नवम स्थान:- धर्म से विमुख व आर्थिक हानि तथा प्रवास।
दशम स्थान:- शत्रुता, मानसिक कष्ट, कर्म क्षेत्र में हानि।
एकादश स्थान:- आर्थिक लााभ, सुख , कार्य सिद्धि।
द्वादश स्थानः- प्रत्येक क्षेत्र में हानि व अत्यधिक व्यय, अग्नि तथा दुर्घटना भय।
अशुभ राहू
समान्यतः राहू के जन्मकुंडली में पापी बनकर बैठने से जातक को स्नायु रोग, कोढ, मानसिक रोग, कमर से निचले हिस्से में पीडा, पागलपन, संधिवात, उदरवात तथा किसी भी रोग का दीर्घकाल तक ठीक न होना, अचानक घटित होने वाली घटनायें जैसे वाहन दुर्घटना, करंट लगना, जेल जाना, सर्पदंश, पदावनति, नौकरी छूटना, चुनाव में हारना, विषघात, फूड पोयजपिंग, बेहोश होना जैसे रोग अधिक होते है। राहू के अधिक पापी अथवा पीडित होने पर जातक अत्यधिक आलसी किस्म का तथा किसी भी कार्य को बहुत ही धीरे धीरे करने वाला बनता है।
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