Wednesday, January 31, 2018

भविष्यफल स्पष्ट करने के कुछ रोचक तथ्य:

भविष्यफल स्पष्ट करने के कुछ रोचक तथ्य:

 1. जब चन्द्र और मंगल की पूर्ण दृष्टि होती है, तभी स्त्री को रजोधर्म होता है। स्त्री की जन्म राशि से 1,2,4,7,8,9 या 12 चंद्रमा हो तथा उस पर गोचर से मंगल की 4,7,8 वीं पूर्ण दृष्टि हो, तब स्त्री को रजोधर्म होता है।

2.जब गुरु पुरुष या स्त्री के जन्म लग्न से 1,5,9,11 वें भाव में आये, तब गर्भाधान होता है।यदि गोचर से पंचम स्थान पर शनि की दृष्टि हो,तो भी गर्भाधान संभव है।

3.यदि गर्भाधान का समय हो, परन्तु पंचम भाव पर राहु या केतु की दृष्टि हो, तो गर्भपात निश्चित है।

4.जब गोचर में गुरु 1,5,9 स्थान में हो और सूर्य, चंद्र, मंगल और शुक्र अपने स्वयं के नवांश में हो, तो निश्चय ही गर्भाधान होता है।

 5.यदि जन्म लग्न से 2,5,9 वें भाव में गुरु या गुरू से पंचम भाव में पूर्ण बलवान ग्रह हो, तो उत्तम संतान का योग बनाता है।

6.यदि पंचम स्थान में स्त्री ग्रहों की प्रबलता हो या पंचम भाव में स्त्री ग्रह हो, तो निश्चय ही कन्या संतान होती है।

 7.यदि दूसरा स्थान या दूसरा भाव प्रबल हो और छठे भाव का स्वामी दूसरे भाव में हो, तो वह व्यक्ति निश्चय ही गोद जाता है।

 8.यदि नैसर्गिक रूप से कोई पापी ग्रह शुभ भाव का स्वामी होकर शुभ भाव में हो तो उसकी दशा में वह पापी ग्रह शुभ फल ही प्रदान करेगा।उदाहरण के लिए मंगल पापी ग्रह है ,पर वह नवम भाव में, जो शुभ भाव है, स्थित होने पर अपनी दशा में अनुकूल और श्रेष्ठ फल प्रदान करेगा ।

9.यदि शुभ ग्रह अशुभ स्थानों में बैठा हो या अशुभ स्थानों का स्वामी हो, तो उस ग्रह की शुभता समाप्त हो जाती है और अपनी दशा में वह शुभफल न देकर अशुभफल ही प्रदान करेगा ।

10.यदि कोई ग्रह त्रिकोण का स्वामी है, तो भले ही पापी या अशुभ हो, परन्तु अपनी दशा में अनुकूल फल ही प्रदान करेगा।

11.यदि नैसर्गिक पापी ग्रह त्रिकोण का स्वामी हो, तो वह स्वतः ही शुभ हो जाता है।

12.कोई भी ग्रह चाहे शुभ हो या अशुभ, पर यदि वह तीसरे, छठे यी ग्यारहवें भाव का मालिक होगा, तो पापी ही माना जायेगा।

 13.यदि तीसरे भाव का स्वामी तीसरे में या छठे भाव का स्वामी छठे भाव में या ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में हो, तो वह पापी नहीं माना जायेगा।

14.जन्मकुंडली में तीसरे स्थान का स्वामी बलवान या स्वराशि का या उच्च राशि का हो, तो ऐसा व्यक्ति जीवन में उन्नति करता है और अनेक लोग उसके अधीन कार्य करते हैं।

15.यदि छठे भाव का स्वामी छठे भाव में ही बैठा हो तो ऐसा व्यक्ति अत्यंत साहसी होता है और शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त करता है।

 16.यदि ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में हो, तो ऐसा जातक लक्ष्मीपति और सुख सौभाग्य का स्वामी होता है।

Friday, January 26, 2018

क्‍या आप जानते हैं वास्‍तव में क्‍या है'स्‍वास्‍तिक' चिह्न ?

क्‍या आप जानते हैं वास्‍तव में क्‍या है'स्‍वास्‍तिक' चिह्न ?

 वैदिककाल से ही हमारी सनातन संस्कृति में स्‍वास्‍तिक चिह्न को विशेष महत्व दिया गया है। आम धारणा में भले ही स्वास्तिक चिह्न को हिन्‍दुओं का प्रतीक चिह्न माना जाता हो लेकिन सच तो ये है कि विश्‍व की कई सभ्‍यताओं में इस चमत्‍कारी चिह्न को पूरी श्रद्धा के साथ मान्यता मिली हुई है।

हालांकि, बहुत कम ही लोग ऐसे हैं जो इस चिह्न के महत्‍व से परिचित हैं। तो आइए जानते हैं आखिर क्या है इस चिह्न के पीछे छिपा 'रहस्‍य'।

इसे रहस्‍य कहना भले ही ठीक ना हो, क्‍योंकि हजारो साल पहले ही हमारे ऋषियों ने इस चिह्न के रहस्‍य को उजागर कर दिया था, तो भी वर्तमान पीढ़ि इसके महत्‍व से परिचित नहीं है।

हमारी वैदिक सनातन संस्कृति का सर्वमंगलकारी प्रतीक चिह्न है 'स्‍वास्‍तिक'। इस चिह्न को हमारे सभी व्रत, पर्व, त्‍योहार, पूजा तथा प्रत्‍येक मांगलिक अवसर पर कुमकुम से अंकित किया जाता है। विद्वानों के अनुसार यह चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है।

क्‍या है 'स्‍वास्‍तिक' का अर्थ ?????

वैसे तो स्‍वास्‍तिक का सीधा सा अर्थ है 'शुभ-मंगल एवं कल्‍याण करने वाला' लेकिन, संस्कृत व्‍याकरण के अनुसार 'स्वास्तिक' शब्द 'सु' और 'अस' धातु से बना है। यहां 'सु' का अर्थ है शुभ, मंगल और कल्याणकारी वहीं 'अस' का अर्थ है अस्तित्व में रहना।

 कह सकते हैं कि यह पूर्णतः कल्याणकारी भावना को दर्शाता है। स्‍वास्‍तिक देवताओं के चहुंओर घूमने वाले आभामंडल का चिह्न है। इसी कारण देवताओं की शक्ति का प्रतीक होने के कारण इसे शास्त्रों में शुभ एवं कल्याणकारी माना गया है।

तो कितना प्राचीन है 'स्‍वास्‍तिक' ?????

देखा जाए तो स्वास्तिक चिह्न का प्रयोग विश्‍व के अनेक धर्मों में किया जाता है। जैन व बौद्ध सम्प्रदाय व अन्य धर्मों में प्रायः लाल, पीले एवं श्वेत रंग से अंकित स्वास्तिक का प्रयोग होता रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में ऐसे चिह्न एवं अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनसे यह प्रमाणित हो जाता है कि लगभग  तीन हजार वर्ष पूर्व भी मानव सभ्‍यता अपने भवनों में इस मंगलकारी चिह्न का प्रयोग करती थी।

द्वितीय विश्व युद्ध के समय एडोल्फ हिटलर ने उल्टे स्वास्तिक का चिह्न अपनी सेना के प्रतीक रूप में शामिल किया था। सभी सैनिकों की वर्दी एवं टोपी पर यह उल्टा स्वास्तिक चिह्न अंकित था। दरअसल उल्‍टा स्‍वास्‍तिक चिह्न अमंगलकारी माना जाता है। विद्वानों का मत है कि उल्टा स्वास्तिक ही उसकी बर्बादी का कारण बना। उसके शासन का नाश हुआ एवं भारी तबाही के साथ युद्ध में उसकी हार हुई |

अशुद्ध स्‍थानों पर ना बनाएं स्‍वास्‍तिक ?????

स्वास्तिक का प्रयोग शुद्ध, पवित्र एवं सही ढंग से उचित स्थान पर करना चाहिए। शौचालय एवं गन्दे स्थानों पर इसका प्रयोग वर्जित है। ऐसा करने वाले की बुद्धि एवं विवेक समाप्त हो जाता है। दरिद्रता, तनाव एवं रोग एवं क्लेश में वृद्धि होती है।

यहां बनाएं स्‍वास्‍तिक का चिह्न ?????

स्वास्तिक की आकृति श्रीगणेश की प्रतीक है और विष्णु जी एवं सूर्यदेव का आसन मानी जाती है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। प्रत्येक मंगल व शुभ कार्य में इसे शामिल किया जाता है। इसका प्रयोग रसोईघर, तिजोरी, स्टोर, प्रवेशद्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल एवं कार्यालय में किया जाता है। यह तनाव, रोग, क्लेश, निर्धनता एवं शत्रुता से मुक्ति दिलाता है।

स्‍वास्‍तिक निर्माण कैसे करें ?????

स्वास्तिक बनाने के लिए धन (+) चिह्न बनाकर उसकी चारो भुजाओं के कोने से समकोण बनाने वाली एक रेखा दाहिनी ओर खींचने से स्वास्तिक बन जाता है। रेखा खींचने का कार्य ऊपरी भुजा से प्रारम्भ करना चाहिए। इसमें दक्षिणवर्त्ती गति होती है। सदैव कुमकुम, सिन्दूर व अष्टगंध से ही स्‍वास्‍तिक का चिह्न अंकित करना चाहिए।

वैज्ञानिक हार्टमेण्ट अनसर्ट ने आवेएंटिना नामक यन्त्र द्वारा लाल कुमकुम से अंकित स्वास्तिक की सकारात्मक ऊर्जा को 100000 बोविस यूनिट में नापा है। इस शोध के अनुसार 'ॐ' जिसकी पॉजिटिव ऊर्जा तकरीबन 70000 बोविस है, से भी अधिक सकारात्मक ऊर्जा स्वास्तिक में विद्यमान है। 'ॐ' एवं स्वास्तिक का सामूहिक प्रयोग नकारात्मक ऊर्जा को शीघ्रता से दूर करता है।

यहां बनाएं स्‍वास्‍तिक चिह्न !!!!!

भवन, कार्यालय, दुकान या फैक्ट्री या फिर कार्यस्थल के मुख्य द्वार के दोनों ओर स्वास्तिक अंकित करने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। पूजा स्थल, तिजोरी, कैश बॉक्स, अलमारी में भी स्वास्तिक स्थापित करना चाहिए। स्वास्तिक को धन-देवी लक्ष्मी का प्रतीक भी माना जाता है। चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं; अग्नि, इन्द्र, वरूण एवं सोम तथा सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए स्‍वास्‍तिक का चमत्‍कारी चिह्न अंकित किया जाता है।

क्‍यों बनाएं स्‍वास्‍तिक चिह्न !!!!!

स्वास्तिक के प्रयोग से धनवृद्धि, गृहशान्ति, रोग निवारण, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा व चिन्ता से मुक्ति मिलती है। जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है। ज्योतिष में इस मांगलिक चिह्न को प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, सफलता व उन्नति का प्रतीक माना गया है।

मुख्य द्वार पर 6.5 इंच का स्वास्तिक बनाकर लगाने से अनेक प्रकार के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं। हल्दी से अंकित स्वास्तिक शत्रु का शमन करता है। स्वास्तिक 27नक्षत्रों को सन्तुलित करके सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। यह चिह्न नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इसका भरपूर प्रयोग अमंगल व बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।

ब्रह्माण्‍ड का प्रतीक !!!!!

स्‍वास्‍तिक का मंगलकारी चिह्न दरअसल ब्रह्माण्‍ड का प्रतीक माना गया है। इसके मघ्य भाग को विष्णु की नाभि, चारों रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित करने की भावना है।

देवताओं के चारों ओर घूमने वाले आभामंडल का चिह्न ही स्वास्तिक के आकार का होने के कारण इसे शास्त्रों में शुभ माना जाता है। तर्क से भी इसे सिद्ध किया जा सकता है।

अन्‍य संस्‍कृतियों में स्‍वास्‍तिक !!!!!

स्‍वास्‍तिक को नेपाल में हेरंब के नाम से पूजा जाता है। वहीं मेसोपोटेमिया में अस्त्र-शस्त्र पर विजय प्राप्त करने हेतु स्वस्तिक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। हिटलर ने भी इस स्वस्तिक चिह्न को अपनाया था।

बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह भगवान बुद्ध के पग़ चिन्हों को दिखता है दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।

जैन धर्म में भी स्‍वास्‍तिक के चिह्न का अत्‍यधिक महत्‍व है। जैन धर्म में यह सातवें जीना का प्रतिक है। श्‍वेताम्‍बर जैन सांस्कृतिक में स्वस्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक माना जाता है।

Wednesday, January 24, 2018

जाने कुंडली से शनि आपका मित्र या शत्रु -

जाने कुंडली से शनि आपका मित्र या शत्रु -

शनि को लंगड़ा ग्रह भी कहते हैं क्योंकि यह बहुत ही धीमी गति से चलता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि इंद्रजीत के जन्म के समय में रावण ने हर ग्रह को आदेश दिया था कि वे सबके सब एकादश भाव में रहें। इससे जातक की हर इच्छा की पूर्ति होती है। शनि भी एकादश भाव में बहुत बढ़िया प्रभाव देता है; उतना ही बुरा प्रभाव द्वादश में देता है। शनि मोक्ष का कारक ग्रह, मोक्षकारक द्वादश में हो तो इससे बुरा फल और क्या हो सकता है? देवताओं के इशारे पर शनि ने इंद्रजीत के जन्म समय में अपना एक पैर द्वादश भाव में बढ़ा दिया, जिसे देख रावण का क्रोध सीमा को पार कर गया एवं शनि के एक पैर को काट कर उसको लंगड़ा ग्रह बना दिया। शनि का सूर्य एवं चंद्र के प्रति मित्रता का भाव नहीं होता है। शनि का आचरण सूर्य-चंद्र के आचरण के विरुद्ध होता है। यही वजह है कि सूर्य-चंद्र की राशियों-सिंह एवं कर्क के विपरीत इसकी राशियां मकर एवं कुंभ हैं। चंद्र किसी काम को जल्दी में अंजाम देना चाहता है, पर शनि और चंद्र का किसी तरह का संबंध हो गया, तो एक तो काम जल्दी नहीं होगा, दूसरे कई बार प्रयास करना होगा। सूर्य हृदय का कारक ग्रह कहलाता है। अगर शनि एवं सूर्य का संबंध होता है तो खून को ले जाने वाली नलिकाओं के छेद को संकीर्ण बना कर हृदय रोग पीछा करता है। शनि के ये सब अवगुण स्पष्ट नज़र आते हैं, किंतु इसमें गुणों की भी कमी नहीं है। शनि जनतंत्र का कारक ग्रह कहलाता है। राजनीति में शनि विश्वास का प्रतीक माना जाता है। अगर किसी राजनीतिज्ञ की कुंडली में शनि की स्थिति ठीक नहीं होती तो जनता को उस राजनेता की बातों का विश्वास नहीं होता है। शनि शुष्क, रिक्त, नियम पालन करने वाला, एकांतप्रिय, रहस्यों को अपने अंदर छिपाने वाला ग्रह है। यह एकांतप्रिय होता है, अतः पूजा, साधना आदि के लिए शुभ ग्रह माना जाता है। यह मन को शांत रखता है और अगर पूजा के समय मन शांत हो गया तो साधना में मन भी लगेगा एवं सिद्धि भी जल्दी होगी। पंचम भाव को पूजा से संबंधित भाव माना जाता है। अगर किसी जातक के पंचम भाव का उपस्वामी चंद्र है तो उस आदमी का मन पूजा में कभी भी नहीं लगेगा। पूजा के समय मन इधर-उधर खूब भटकेगा एवं हर बात की चिंता उस आदमी को उसी समय होगी। पर अगर शनि पंचम का उपस्वामी है, तो पूजा के समय मन एकदम शांत रहेगा। शनि के दोस्त ग्रहों में बुध एवं शुक्र के नाम आते हैं। पर शनि वृष एवं तुला लग्न वालों के लिए हमेशा ही लाभदायक होगा। पर यह बात मिथुन एवं कन्या लग्न वालों पर लागू नहीं होगी। उत्तर कालामृत के अनुसार शनि अगर अपनी राशि में स्थित हो या गुरु की राशि पर स्थित हो या उच्च का हो, तो शुभ होता है। पर शनि के बारे में एक विशेष बात यह कही गयी है कि शनि अगर अपनी भाव स्थिति के अनुसार शुभ है, तो उसे स्वयं की राशि पर, उच्च राशि में, या वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो योगकारक शनि की दशा के समय राजा भी भिखारी बन जाएगा। शनि अगर अशुभ हो, तो काम में देरी हो सकती है, निराशा मिल सकती है, झगड़ा हो सकता है, शांति बाधित हो सकती है, जातक का निरादर हो सकता है, उसे अवहलेना का शिकार होना पड़ सकता है। पर अगर शनि शुभ हो, तो शांति से काम करने, धन की बचत का उपाय करने, मेहनत करने, जीवन में सफलता प्राप्त करने एवं अपने अंदर बहुत सारे रहस्यों को दबा रखने की क्षमता मिलती है। शनि आयुष्कारक ग्रह कहलाता है एवं अगर यह आयु स्थान, यानी अष्टम भाव में हो, तो उम्र को बढ़ाता है। गुरु में जहां वृद्धि की बात होती है, वहीं शनि में कटौती की। गुरु जहां संतान वृद्धि में कारक ग्रह होता है, वहीं शनि को, परिवार नियोजन के द्वारा, संतान वृद्धि को रोकने की क्षमता प्राप्त है। गुरु एवं शनि में एक और खास भेद है। गुरु जहां पुरोहित का काम, धर्म के प्रचारक का काम करता है, वहां शनि मौन रह कर साधना करता है। उसे भोज खाने के स्थान पर उपवास करना ही भाता है। शनि का रंग बैंगनी है। इसका रत्न नीलम होता है। अंकों में संख्या 8 होती है। शनि के प्रभाव की वजह से ही 8 अंक को छिपे रहस्यों का अंक कहा जाता है। शनि से संबंधित विषय इतिहास, भूगर्भ शास्त्र, चिकित्सा की पुरानी पद्धतियां आदि हैं। शनि एवं मंगल दोनों को ही जमीन से वास्ता होता है, पर मंगल जमीन की ऊपरी सतह से संबंधित होता है, जबकि शनि भीतरी सतह से। शनि अगर शुभ स्थिति में न हो, तो तरह-तरह की बीमारियां दे सकता है। शरीर से उस गंदगी को बाहर आने से रोक देता है, जिसे बाहर निकलना चाहिए था। पायरिया हो जाता है, झिल्ली कड़ी हो जाती है, शरीर में खून आदि का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। यह सब उस स्थिति में होता है जब शनि चंद्र को प्रदूषित करता है। अगर इस प्रदूषण में मंगल भी आता है तो चेचक की संभावना बनती है एवं शरीर में मवाद जम जाता है। शनि अगर सिर्फ मंगल को दूषित कर रहा हो, तो रीढ़ की हड्डी का टेढ़ा होना, गिर कर चोट लगना, पित्त की थैली में पथरी का होना इत्यादि बीमारियां होती हैं। इसी तरह से शनि अगर सूर्य एवं गुरु को प्रदूषित करता है तो, शरीर में कोलेस्ट्रोल की वृद्धि के कारण रक्त वाहक नलिकाओं में अवरोध पैदा होता है एवं हृदयाघात की संभावना पैदा होती है। इस तरह से अलग-अलग ग्रहों के साथ अलग-अलग रोग हो सकते हंै। शनि के द्वारा दी गयी बीमारी ज्यादा समय के लिए होती है

शनि का बारह भाव मे फल ओर उसके उपाय ..

शनि का बारह भाव मे फल ओर उसके उपाय  .......शनि का पहले भाव में फल

पहला घर सूर्य और मंगल ग्रह से प्रभावित होता है। पहले घर में शनि तभी अच्छे परिणाम देगा जब तीसरे, सातवें या दसवें घर में शनि के शत्रु ग्रह न हों। यदि, बुध या शुक्र, राहू या केतू, सातवें भाव में हों तो शनि हमेशा अच्छे परिणाम देगा। यदि शनि नीच का हो और जातक के शरीर में बाल अधिक हों तो जातक गरीब होगा। यदि जातक अपना जन्मदिन मनाता है तो बहुत बुरे परिणाम मिलेंगे हालांकि जातक दीर्घायु होगा। उपाय: (1) शराब और मांसाहारी भोजन से स्वयं को बचाएं। (2) नौकरी और व्यवसाय में लाभ के लिए जमीन में सुरमा दफनायें। (3) सुख और समृद्धि के लिए बंदरों की सेवा करें। (4) बरगद के पेड़ की जड़ों पर मीठा दूध चढानें से शिक्षा और स्वास्थ्य में सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

शनि का दूसरे भाव में फल

जातक बुद्धिमान, दयालु और न्यायकर्ता होगा। वह धन का आनंद लेगा और धार्मिक स्वभाव का होगा। भले ही शनि उच्च का हो या नीच का, यह नतीजा आठवें भाव में बैठे ग्रह पर निर्भर करेगा। जातक की वित्तीय स्थिति सातवें भाव में स्थित ग्रह पर निर्भर करेगी। परिवार में पुरुष सदस्यों की संख्या छठवें भाव और आयु आठवें भाव पर निर्भर करेगी। जब शनि इस भाव में नीच का हो तो शादी के बाद उसके ससुराल वाले परेशान होंगे। उपाय: (1) लगातार 43 दिनों तक नंगे पांव मंदिर जाएं। (2) माथे पर दही या दूध का तिलक लगाएं। (3) साँप को दूध पिलाए।

शनि का तीसरे भाव में फल

इस घर में शनि अच्छा परिणाम देता है। यह घर मंगल ग्रह का पक्का घर है। जब केतु अपने इस घर को देखता है तो यहां बैठा शनि बहुत अच्छे परिणाम देता है। जातक स्वस्थ, बुद्धिमान और बहुत सरल स्वभाव का होता है। यदि जातक धनवान होगा तो उसके घर में पुरुष सदस्यों की संख्या कम होगी। गरीब होने की दशा में परिणाम उल्टा होगा। यदि जातक शराब और मांशाहार से दूर रहता है तो वह लम्बे और स्वस्थ जीवन का आनंद उठाएगा। उपाय: (1) तीन कुत्तों की सेवा करें। (2) आँखों की दवाएं मुफ्त बांटें। (3) घर में एक कमरे में हमेशा अंधेरा रखना बहुत फायदेमंद साबित होगा।

शनि का चौथे भाव में फल

यह भाव चंद्रमा का घर होता है। इसलिए शनि इस भाव में मिलेजुले परिणाम देता है। जातक अपने माता पिता के प्रति समर्पित होगा और प्रेम मुहब्बत से रहने वाला होगा। जब कभी जातक बीमार होगा तो चंद्रमा से संबंधित चीजें फायदेमंद होंगी। जातक के परिवार से कोई व्यक्ति चिकित्सा विभाग से संबंधित होगा। जब शनि इस भाव में नीच का होकर स्थित हो तो शराब पीना, सांप मारना और रात के समय घर की नीव रखना जैसे काम बहुत बुरे परिणाम देते हैं। रात में दूध पीना भी अहितकर है। उपाय: (1) साँप को दूध पिलाएं अथवा दूध चावल किसी गाय या भैंस को खिलाएं। (2) किसी कुएं में दूध डालें और रात में दूध न पियें। (3) चलते पानी में रम डालें।

शनि का पांचवें भाव में फल

यह भाव सूर्य का घर होता है। जो शनि का शत्रु ग्रह है। जातक घमंडी होगा। जातक को 48 साल तक घर का निर्माण नहीं करना चाहिए, अन्यथा उसके बेटे को तकलीफ होगी। उसे अपने बेटे के बनवाए या खरीदे हुए घर में रहना चाहिए। जातक को अपने पैतृक घर में बृहस्पति और मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुएं रखनी चाहिए, इससे उसके बच्चों का भला होता है। यदि जातक के शरीर में बाल अधिक होंगे तो जातक बेईमान हो जाएगा। उपाय: (1) बेटे के जन्मदिन पर नमकीन चीजें बाटें। (2) बादाम का एक हिस्सा मंदिर में बाटें और दूसरा हिस्सा लाकर घर में रख दें।

शनि का छठें भाव में फल

यदि शनि ग्रह से संबंधित काम रात में किया जाय तो हमेशा लाभदायक परिणाम मिलेंगे। यदि शादी के 28 साल के बाद होगी तो अच्छे परिणाम मिलेंगे। यदि केतु अच्छी स्थित में हो जातक धन, लाभदायक यात्रओं और बच्चों के सुख का आनंद पाता है। यदि शनि नीच का हो तो शनि से सम्बंधित चीजें जैसे चमडा, लोहा आदि को लाना हानिकारक होता है, खासकर तब, जब शनि वर्षफल में छठवें भाव में हो। उपाय: (1) एक काला कुत्ता पालें और उसे भोजन करायें। (2) नदी या बहते पानी में नारियल और बादाम बहाएं। (3) सांप की सेवा बच्चों के कल्याण के लिए फायदेमंद साबित होगी।

शनि का सातवें भाव में फल

यह घर बुध और शुक्र से प्रभावित होता है, दोनो ही शनि के मित्र ग्रह हैं। इसलिए शनि इस घर में बहुत अच्छा परिणाम देता है। शनि से जुड़े व्यवसाय जैसे मशीनरी और लोहे का काम बहुत लाभदायक होगा। यदि जातक अपनी पत्नी से अच्छे संबंध रखता है तो वह अमीर और समृद्ध होगा और लंबी आयु के साथ अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेगा। यदि बृहस्पति पहले घर में हो तो सरकार से लाभ होगा। यदि जातक व्यभिचारी हो जाता है या शराब पीने लगता है तो शनि नीच और हानिकर हो जाता है। यदि जातक 22 साल के बाद शादी करता है तो उसकी दृष्टि पर प्रपर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। उपाय: (1) किसी बांसुरी में चीनी भरें और किसी सुनसान जगह जैसे कि जंगल आदि में दफना दें। (2) काली गाय की सेवा करें।

शनि का आठवें भाव में फल

आठवें घर में कोई भी ग्रह शुभ नहीं माना जाता है। जातक दीर्घायु होगा लेकिन उसके पिता की उम्र कम होती है और जातक के भाई एक-एक करके शत्रु बनते जाते हैं। यह घर शनि का मुख्यालय माना जाता है, लेकिन यदि बुध, राहू और केतु जातक की कुंडली में नीच के हैं तो शनि बुरा परिणाम देगा। उपाय: (1) अपने साथ चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें। (2) नहाते समय पानी में दूध डालें और किसी पत्थर या लकड़ी के आसन पर बैठ कर स्नान करें।

शनि का नौवें भाव में फल

जातक के तीन घर होंगे। जातक एक सफल यात्रा संचालक (टूर ऑपरेटर) या सिविल इंजीनियर होगा। वह एक लंबे और सुखी जीवन का आनंद लेगा साथ ही जातक के माता - पिता भी सुखी जीवन का आनंद लेंगे। यहां स्थित शनि जातक की तीन पीढ़ियों शनि के दुष्प्रभाव से बचाएगा। अगर जातक दूसरों की मदद करता है तो शनि ग्रह हमेशा अच्छे परिणाम देगा। जातक के एक बेटा होगा, हालांकि वह देर से पैदा होगा। उपाय: (1) बहते पानी में चावल या बादाम बहाएं। (2) बृहस्पति से संबंधित (सोना, केसर) और चंद्रमा से संबंधित (चांदी, कपड़ा) का काम अच्छे परिणाम देंगे।

शनि का दसवें भाव में फल

यह शनि का अपना घर है, जहां शनि अच्छा परिणाम देगा। जातक तब तक धन और संपत्ति का आनंद लेता रहेगा, जब तक कि वह घर नहीं बनवाता। जातक महत्वाकांक्षी होगा और सरकार से लाभ का आनंद लेगा। जातक को चतुराई से काम लेना चाहिए और एक जगह बैठ कर काम करना चाहिए। तभी उसे शनि से लाभ और आनंद मिल पाएगा। उपाय: (1) प्रतिदिन मंदिर जाएं। (2) शराब, मांस और अंडे से परहेज करें। (3) दस अंधे लोगों को भोजन कराएं।

शनि का ग्यारहवें भाव में फल

जातक के भाग्य का निर्धारण उसकी उम्र के अडतालीसवें वर्ष में होगा। जातक कभी भी निःसंतान नहीं रहेगा। जातक चतुराई और छल से पैसे कमाएगा। शनि ग्रह राहु और केतु की स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा परिणाम देगा। उपाय: (1) किसी महत्वपूर्ण काम को शुरू करने से पहले 43 दिनों तक तेल या शराब की बूंदें जमीन पर गिराएं। (2) शराब न पियें और अपना नैतिक चरित्र ठीक रखें।

शनि का बारहवें भाव में फल

शनि इस घर में अच्छा परिणाम देता है। जातक के दुश्मन नहीं होंगे। उसके कई घर होंगे। उसके परिवार और व्यापार में वृद्धि होगी। वह बहुत अमीर हो जाएगा। हालांकि, यदि जातक शराब पिए, मांशाहार करे या अपने घर के अंधेरे कमरे में रोशनी करे तो शनि नीच का हो जाएगा। उपाय: (1) किसी काले कपड़े में बारह बादाम बांधकर उसे किसी लोहे के बर्तन में भरकर किसी अंधेरे कमरे में रखने से अच्छे परिणाम मिलेंगे।

सोलह मुखी रुद्राक्ष



सोलह मुखी रुद्राक्ष



सोलह मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु एवं भगवान शिव का रुप माना जाता है| 16 सोलह मुखी रुद्राक्ष, सोलह कलाओं एवं सिद्धियों का प्रतीक है. इसे पहनने वाले को सोलह सिद्धियों का ज्ञान प्राप्त होता है. सोलह मुखी रुद्राक्ष विष्णु और शिव का संयुक्त रूप है और विजय प्राप्त होने का प्रतिनिधित्व करता है. यह रूद्राक्ष "केतु" द्वारा शासित माना गया है तथा केतु के बुरे प्रभावों से बचाता है. यह रूद्राक्ष की दुर्लभ किस्मों में से एक है |

सोलह मुखी रुद्राक्ष के लाभ
सोलह मुखी रूद्राक्ष को पहनने से व्यक्ति भगवान की भक्ति पाता है  और सत्य को निभाते हुए अपने जीवन और सात जन्म के पुण्य लाभ पाते हैं |माना जाता है कि अर्जुन ने जब मछली की आँख को साधा था तब उन्होंने सोलह मुखी रूद्राक्ष रुद्राक्ष को धारण कर रखा था अत:  सोलह मुखी रूद्राक्ष  को पहनने के बाद व्यक्ति असाधारण क्षमता को पाता है |सोलह मुखी रूद्राक्ष समस्त सुखों का भोग कराता है तथा सभी पापों से मुक्त करने में सहायक है |व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नही सताता तथा जिस घर में 16 मुखी रूद्राक्ष रखा हो वह घर चोरी, डकैती, या आग की समस्याओं से मुक्त होता है|सोलह मुखी रुद्राक्ष को उपयोग में लाने से पक्षपात जैसे रोग भी दूर हो जाते हैं शरीर की सूजन, गले संबंधी रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है|तपेदिक, कुष्ठ रोग, फेफड़ों के रोगों जैसी बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए सोलह मुखी रुद्राक्ष  लाभदायक है| सोलह मुखी रुद्राक्ष कैसे पहनना चाहिए

 सोलह मुखी रुद्राक्ष सोने या चांदी में जड़ा होना चाहिए और लाल धागे मे डालकर गर्दन मे पहनना चाहिए| सोलह मुखी रुद्राक्ष को पूजा के स्थान पर मंत्र का जाप करके  पहनना चाहिए|

सोलह मुखी रुद्राक्ष मंत्र

   "ओम नमः शिवाय"

    "‘ॐ ह्रीं हूम"






किसे नौकरी करने से सफलता प्राप्त होगी

किसे नौकरी करने से सफलता प्राप्त होगी
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*नौकरी, प्रसिद्धि एवं संपन्नताइन सभी ज्योतिषीय सूत्र का एवं योगों को जानकर नौकरी मैं प्रसिद्धि एवं संपन्नता को प्राप्त कर सकता है। ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए हमारे शास्त्रों मे कई सूत्र दिए हैं।कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार से हैं।*
*नौकरी-*
*द्वितीय, दशम व एकादश का संबंध छठे भावसे हो तो जातक नौकरी करता है और सफलता प्राप्त करता है।*
*दूसरा भाव:धन, परिवार, महत्वाकांक्षा, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि.*
*छठा भाव :छठा भाव नौकरी का एवं सेवा का है।*
*छठे भाव का कारक भाव शनि है।*
*छठे भाव का बलवान होना तथा अधिक ग्रहों की स्थिति नौकरी की संभावना दर्शाती है॥*
*दशम भाव-*
*पेशे, प्रसिद्धि, अधिकार, सम्मान, सफलता, कर्म, सफलता , पदोन्नति, नौकरी*
*दशम भाव या दशमेश का संबंध छठे भाव से हो तो जातक नौकरी करता है।दशम भाव बली हो तो नौकरी करना चाहिए॥*
*पंचम व पंचमेश का दशम भाव से संबंध हो तो शिक्षा जो प्राप्त हुई है वह नौकरी में काम आती है।*
*लग्नेश, लाभेश, छठे भाव का सवामी ,गुरु, चन्द्रमा का बली होना या केन्द्र त्रिकोण में स्थित होना नौकरी में सफलता दिलाता है।*
*नौकरी के कारक ग्रहों का संबंध सूर्य व चन्द्र से हो तो जातक सरकारी नौकरी पाता है।*
*द्वादश भाव का स्वामी यदि 1, 2, 4, , 5, 9, 10वें भाव में स्थित हो तो नौकरी का योग बनाता है।*
*दशमेश या दशम भाव में स्थित ग्रह दशमांश कुंडली में चर राशि में स्थित हो तो जातक नौकरी करता है और सफलता प्राप्त करता है।*
*शनि कुण्डली में बली होकर बुध को दृष्ट कर रहा है तो व्यक्ति नौकरी करता है.किसी भी कुंडली में मंगल, सूर्य, बुध, वृहस्पति, शनि, दशम् भाव व दशमेश इन सबकी स्थिति जितनी अच्छी होगी, उसी के अनुसार जातक को उच्च अधिकार प्राप्त होगा।*
*डी 9 ,डी १० चार्ट मे भी देखना है।*
*कुंडली से जाने नौकरी प्राप्ति का समय नियम: प्रथम, दूसरा भाव, छठे भाव,दशम भाव एवं एकादश भाव का संबंध या इसके स्वामी से होगा तो नौकरी के योग बनते है॥*
*लग्न के स्वामी की दशा और अंतर्दशा में*
*नवमेश की दशा या अंतर्दशा में*
*षष्ठेश की दशा या, अंतर्दशा में*
*प्रथम,दूसरा , षष्ठम, नवम और दशम भावों में स्थित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा में*
*दशमेश की दशा या अंतर्दशा में*
*द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में*
*नौकरी मिलने के समय जिस ग्रह की दशा और अंतर्दशा चल रही है उसका संबंध किसी तरह दशम भाव या दशमेश से ।*
*द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में भी नौकरी मिल सकती है।*
*राहु और केतु की दशा, या अंतर्दशा में-*
*जीवन की कोई भी शुभ या अशुभ घटना राहु और केतु की दशा या अंतर्दशा में हो सकती है।*
* गोचर: गुरु गोचर में दशम या दशमेश से नौकरी मिलने के समय केंद्र या त्रिकोण में ।गोचर : शनि और गुरु एक-दूसरे से केंद्र, या त्रिकोण में हों, तो नौकरी मिल सकती है॥*
*गोचर : नौकरी मिलने के समय शनि या गुरु का या दोनों का दशम भाव और दशमेश दोनों से या किसी एक से संबंध होता है।*
*नौकरी के कारक ग्रहों का संबंध सूर्य व चन्द्र से हो तो जातक सरकारी नौकरी पाता है।*
*सूर्य. चंद्रमा व बृहस्पति सरकारी नौकरी मैउच्च पदाधिकारी बनाता है।द्वितीय, षष्ठ एवं दशम् भाव को अर्थ-त्रिकोण सूर्य की प्रधानता होने पर सरकारी नौकरी करता है।*
*केंद्र में गुरु स्थित होने पर सरकारी नौकरी मे उच्च पदाधिकारी का पद प्राप्त होता है।*
*नौकरी के अन्य योग-*
*शनि कुण्डली में बली हो तो व्यक्ति नौकरी करता है.*
*मंगल कुण्डली में बली हो तो पुलिस, खुफिया विभाग अथवा सेना में उच्च पद होने की संभावना होती है।*
*गुरु कुण्डली में बली हो तो जातक को अच्छा वकील, जज, धार्मिक प्रवक्ता , ख्याति प्राप्त ज्योतिर्विद बनाता है।*
*बुध कुण्डली में बली हो तो व्यापारी, लेखक, एकाउन्टेंट, लेखन एवं प्रकाशन, में ।*
*शुक्र कुण्डली में बली हो तो फिल्मी कलाकार, गायक, सौंदर्य संबंधी ।डी 9 ,डी १० चार्ट मे भी देखना है।*
*कामयाबी योग-*
*कुंडली का पहला, दूसरा, चौथा, सातवा, नौवा, दसवा, ग्यारहवा घर तथा इन घरों के स्वामी अपनी दशा और अंतर्दशा में जातक को कामयाबी प्रदान करते है। पंच महापुरूष योग: जीवन में सफलता एवं उसके कार्य क्षेत्र के निर्धारण में महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।पंचमहापुरूष योग कुंडली में मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि अपनी स्वराशि अथवा उच्च राशि का होकर केंद्र में स्थित होने पर महापुरुष योग बनता है।फलादेश कैसे करते है -*
*जो ग्रह अपनी उच्च, अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में हो - शुभ फलदायक होगा।*
*इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभफल दायक होगा।*
*जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, वह शुभ फल देता है।*
*त्रिकोण के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं।*
*क्रूर भावों (3, 611) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।*
*दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते हैं।*
*शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं।*
*बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं, वैसा ही फल देते हैं।*
*सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ फल देते हैं।*
*नौकरी मिलने में बाधा के योग-*
*सूर्य और कॅरियर: दसवां भाव सूर्य का माना गया है। दसवें घर से व्यक्ति प्रोफेशन, कॅरियर, कार्यस्थल, कार्य सफलता,और प्रगति देखी जाती है। दसवें भाव में कोई अनिष्टकारी घर बैठा हो, सूर्य नीच एवं किसी ग्रह से पीड़ित हो, सूर्य को ग्रहण लगा हो तो कॅरियर में समस्याएं आती हैं।*

कुण्डली से जाने व्यवसाय में सफलता

कुण्डली से जाने व्यवसाय में सफलता *
*व्यवसाय में कैसी स्थिति रहेगी इस विषय का आंकलन ज्योतिष द्वारा किया जा सकता है. ग्रहों की किस प्रकार की दृष्टि, युति या स्थान परिवर्तन कैसा हो रहा है, इन सभी तथ्यों के आधार पर कारोबार में सफलता-असफलता एवं लाभ हानि को ज्ञात किया जा सकता है.*
*जन्म कुण्डली के अनुसार व्यक्ति में कार्यनिष्ठा का भाव देखने के लिये दशम घर से शनि का संबन्ध देखा जाता है.जातक की कुण्डली के आधार पर इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह कैरियर के क्षेत्र में कौन सी लाईन पकडेगा. कई व्यक्ति जीवन में दूसरों के अधीन रहकर कार्य करते हैं अर्थात नौकरी से अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं तो कुछ व्यक्ति स्वतंत्र रुप से कार्य करना पसन्द करते हैं.*
*कुण्डली में व्यापार करने के लिए योग मौजूद होते हैं. यह योग निम्नलिखित हैं.चन्द्रमा, गुरु तथा शुक्र परस्पर दो या बारह भावों में स्थित हों तो व्यक्ति स्वयं के व्यवसाय से जीविकोपार्जन करता है.*
*यदि चन्द्र कुण्डली में शुभ ग्रह केन्द्र में हो तो जातक बिजनेस से धन कमाता है.कुण्डली में बुध, राहु या शनि से दृष्ट अथवा युति है तो व्यक्ति स्वतंत्र रुप से व्यवसाय करने की चाह रखता है. लेकिन शनि कुण्डली में बली होकर बुध को दृष्ट कर रहा है तो व्यक्ति नौकरी करता है.चन्द्र कुण्डली से गुरु तृतीय भाव में स्थित हो तथा शुक्र लाभ भाव में स्थित हो तो व्यक्ति अपना स्वयं का व्यवसाय कर सकता है.*
*कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी यदि धन भाव में स्थित है और बुध सप्तम भाव में स्थित हो व्यक्ति बिजनेस कर सकता है.कुण्डली में बुध तथा शुक्र द्वितीय भाव अथवा सप्तम भाव में स्थित हों और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तब जातक व्यापार की ओर झुकाव रख सकता है.बुध को बिजनेस का कारक ग्रह माना जाता है. बुध कुण्डली में यदि सप्तम भाव में द्वितीयेश के साथ है तब जातक बिजनेस करता है.*
*दूसरे भाव का स्वामी शुभ ग्रह की राशि में स्थित हो और बुध या सप्तमेश उसे देख रहें हों तब व्यक्ति व्यापार करता है.यदि गुरु की द्वितीय भाव के स्वामी पर दृष्टि हो तो व्यक्ति व्यापार कर सकता है.उच्च के बुध पर द्वितीयेश की दृष्टि होने पर जातक व्यापार करने में रूचि रखता है.*
*यदि लग्नेश तथा दशमेश की परस्पर एक दूसरे पर दृष्टि हो, युति या दोनों का स्थान परिवर्तन हो रहा हो तब व्यक्ति बिजनेस कर सकता है.दशम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होने से व्यापार करता है. उसे बिजनेस में धन लाभ होता है.*
*दशम भाव में बुध की स्थिति से व्यक्ति व्यापारी बनता है.कुण्डली में आत्मकारक ग्रह के नवाँश में शनि स्थित है तब व्यक्ति व्यापार में समृद्धि पाता है.सप्तम भाव से द्वादश भाव तक या दशम भाव से तृतीय भाव तक पाँच या पाँच से अधिक ग्रह स्थित हैं तब व्यक्ति स्वतंत्र व्यापार करता है.दशम भाव का स्वामी केन्द्र या त्रिकोण भाव में स्थित है तब भी व्यक्ति स्वतंत्र रुप से व्यापार कर सकता है.*
* व्यवसाय में सफलता संबंधी अन्य योग *
*मंगल और चतुर्थ भाव का स्वामी केन्द्र या त्रिकोण भाव में स्थित हो या लाभ भाव में स्थित हो और दशमेश के साथ शुक्र तथा चन्द्रमा की युति हो तब व्यक्ति कृषि तथा पशुपालन से धन प्राप्त करता है.*
*कुण्डली के नवम भाव में बुध, शुक्र तथा शनि स्थित है तब व्यक्ति कृषि कार्य से धन प्राप्त करता है.कुण्डली में सूर्य ग्रह से लेकर शनि ग्रह तक सभी ग्रह परस्पर त्रिकोण भाव में स्थित हैं, तब जातक कृषि से संबंधित कार्यों से अपनी आजीविका कमा सकता है.गुरु अष्टम भाव में स्थित हो और पाप ग्रह केन्द्र में हों और किसी भी शुभ ग्रह का संबंध इनसे नहीं हो तो व्यक्ति माँस - मछली आदि का व्यापार करता है.बुध या शुक्र दशम भाव में दशमेश का नवाँशपति होकर स्थित हो तो व्यक्ति कपडे का व्यवसाय कर सकता है.*
*लग्न तथा सप्तम भाव में सभी ग्रह स्थित हो तब शकट योग बनता है और व्यक्ति ट्राँसपोर्ट से या लकडी के सामान के व्यापार से धनोपार्जन करता है.राहु-केतु को छोड़कर कुण्डली में सातों ग्रह किन्हीं चार भावों में स्थित है तो व्यक्ति भूमि अर्थात कृषि कार्य से लाभ पाता है.कुण्डली में चन्द्रमा या शुक्र की युति लग्नेश से हो जातक लेखक, कवि या पत्रकार बन सकता है.मंगल तथा सूर्य के दशम भाव में स्थित होने के कारण जातक अपनी कार्य कुशलता के आधार पर एक अच्छा कारीगर बनता है और धन पाता है.चन्द्रमा, बुध के नवाँश में स्थित हो और सूर्य से दृष्ट हो तब व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफलता हासिल करता है.*
*दशम भाव में चन्द्रमा तथा राहु की युति व्यक्ति को कूटनीतिज्ञ बनाती है.कुण्डली में दशम भाव में मंगल स्थित हो या मंगल का दशम भाव के स्वामी के साथ दृष्टि या युति संबंध हो तब व्यक्ति कुशल प्रशासक बनता है या सेना में अधिकारी का पद प्राप्त कर सकता है।*

दशमांश_कुंडली_D_10

||#दशमांश_कुंडली_D_10||                                                          दशमांश कुंडली जातक के रोजगार के लिए देखी जाती है।जातक की नोकरी/व्यवसाय/कैरियर की क्या स्थिति रहेगी इन विषयो के लिए दशमांश कुंडली देखी जाती है।जन्मकुंडली के दशम भाव, दशमेश और इन भाव भावेश से सम्बन्ध बनाने वाले ग्रह/भावेशों के अनुसार जातक की रोजगार की स्थिति का निर्धारण होता है।इसी तरह दशमांश कुंडली से जातक के रोजगार आदि की स्थिति देखी जाती है।दशमांश कुंडली जन्मकुंडली के दशम भाव का पूर्ण विस्तृत भाव होता है जिसके गहन अध्ययन के लिए दशमांश कुंडली का अध्ययन किया जाता है।                                                                 दशमांश कुंडली में दशमांश कुंडली के लग्न-लग्नेश, दशम भाव-दशमेश का महत्व होता है साथ ही लग्न कुंडली के दशमेश की स्थिति भी दशमांश कुंडली में महत्वपूर्ण रूप से देखी जाती है।दशमांश लग्न, लग्नेश, दशम भाव दशमेश का शुभ होना योगकारक ग्रहो से युक्त द्रष्ट होना, दशम भाव में या दशमेश के साथ दशमांश कुंडली में राजयोग बली होकर बन्ने से, सूर्य, गुरु, बुध, शनि का दशम भाव दशमेश से सम्बन्ध होने से साथ ही धन भाव द्वितीय और लाभ भाव एकादश भाव का सम्बन्ध दशम भाव भावेश से किसी भी तरह से होने से जातक के रोजगार की स्थिति को बली बनाता है।अब प्रश्न यह उठता है कि क्या लग्न कुंडली में ही दशम भाव में शुभ अवस्था में बली ग्रह बेठे हो तो क्या तब भी दशमांश के अनुसार फल होगा।यदि लग्न कुण्डली का दशम भाव दशमेश शुभ बली होने के साथ साथ, दशमांश कुंडली का भी लग्न लग्नेश दशम भाव दशमेश शुभ राजयोग कारक ग्रहो से युक्त द्रष्ट है, दशमेश के साथ या दशम भाव में राजयोग बन रहा है या दशमेश दशम भाव की स्थिति शुभ बली अवस्था में है तो सोने पर सुहागा वाली बात होती है मतलब जातक के कर्म स्थान की स्थिति बहुत प्रबल होती है क्योंकि लग्न कुंडली और दशमांश कुंडली दोनों में प्रबल राजयोग योग व् दशम भाव बली होता है।ऐसे जातक के लिए रोजगार की स्थिति मजबूत होने साथ ही सूर्य, गुरु , बुध, शनि व्यवसाय के ग्रहो का बलि होना उच्च स्तर का व्यवसाय कराते है।यदि लग्न कुंडली में दशमेश दशम भाव की स्थिति बहुत कमजोर, दूषित, पीड़ित हो और दशमांश कुंडली में दशम भाव दशमेश की स्थिति बली शुभ हो दशमांश लग्न लग्नेश के साथ तो जातक को कुछ सामान्य कठिनाइयों के बाद अच्छे रोजगार की प्राप्ति दशमांश में दशम भाव की स्थिति के अनुसार हो जाती है।इस तरह दशमांश कुंडली जातक के रोजगार आदि से सम्बंधित स्थिति के लिए देखी जाती है।

सूर्य_चंद्र_से_बनने_वाला_विपरीत_राजयोग

||#सूर्य_चंद्र_से_बनने_वाला_विपरीत_राजयोग||                            सूर्य चंद्र दोनों आपस में मित्र ग्रह है।सबसे शक्तिशाली और शुद्ध स्थिति में विपरीत राजयोग सूर्य और चन्द्र ही बनाते है अन्य ग्रहो के ग्रहयोग में कुछ न कुछ अशुद्धता रहती है।सूर्य चन्द्र से ही विपरीत राजयोग क्यों शक्तिशाली और शुद्ध तरह से बनता है इसका कारण है सूर्य और चन्द्र केवल ही राशि के स्वामी होते है अन्य ग्रह दो दो राशियों के स्वामी होते है।सूर्य चन्द्र एक राशि के स्वामी होने से इनका एकल अधिकार राशि स्वामित्व के अनुसार एक ही भाव पर होता है।यदि सूर्य चन्द्र छठे भाव के स्वामी है तो यह सिर्फ छठे भाव के ही स्वामी रहेगे किसी अन्य भाव के स्वामी नही होंगे क्योंकि यह सिर्फ एक ही राशि के स्वामी होते है अन्य ग्रह दो राशियों के स्वामी होने के कारण यदि वह छठे भाव का स्वामी है तो दशम नवम आदि दो भाव का स्वामी भी होगा जो विपरीत राजयोग का पूरी तरह से योग फलित नही करता।।                                                                                   *विपरीत राजयोग कैसे बनता है??                                                                                छठे आठवे बारहवे भाव से विपरीत राजयोग बनता है।जब छठे भाव का स्वामी आठवे बारहवे भाव, आठवे भाव का स्वामी छठे बारहवे भाव और बारहवे भाव का स्वामी छठे या आठवे भाव में होता है तो विपरीत राजयोग बनता है।सूर्य चन्द्र के आलावा अन्य ग्रह भी विपरीत राजयोग बनाते है लेकिन यहाँ बात सूर्य चन्द्र से बनने वाले विपरीत राजयोग की कर रहे है।सूर्य चन्द्र जब छठे आठवे बारहवे भाव के स्वामी होते है तो सिर्फ छठे आठवे बारहवे भाव के स्वामी ही होते किसी अन्य भाव के स्वामी नही होते क्योंकि इनकी एक ही राशि होती है जिस कारण यह एक ही भाव के स्वामी होते बाकि अन्य ग्रह दो भाव के स्वामी होने से विपरीत राजयोग पर कुछ नकारात्मक प्रभाव भी डालते है।सूर्य छठे भाव का स्वामी होकर आठवे बारहवे, आठवे भाव का स्वामी होकर छठे बारहवे, बारहवे भाव का स्वामी होकर छठे आठवे में होगा तब सूर्य विपरीत राजयोग बनाएगा।सूर्य से बनने वाला यह विपरीत राजयोग शक्तिशाली और पूरी तरह से शुद्ध स्थिति में होगा क्योंकि सूर्य सिर्फ 6, 8, 12 भाव ही स्वामी है किसी अन्य भाव, केंद्र त्रिकोण भाव का स्वामी नही है जिस कारण से यह सूर्य से बनने वाला राजयोग पूरी तरह से फलित होता है और उच्च सफलता, उन्नति, सोभाग्य, धन वृद्धि आदि जैसे शुभ फल देता है।इसी तरह बिलकुल सूर्य की स्थिति की तरह चन्द्र से  6, 8, 12 भाव की स्थिति से राजयोग बनेगा।अब क्योंकि मान लीजिये जैसे कन्या लग्न में शनि 5वे और 6वे भाव का स्वामी होता है यदि अब शनि 8वे भाव में होगा तो तो भी विपरीत राजयोग न शक्तिशाली होगा न फलित होगा क्योंकि शनि कन्या लग्न में 5वे भाव का स्वामी होता है जोकि की एक तरह से शुभ नही।इसी तेह मेष लग्न में बुध 3, 6 दो अशुभ भावो का स्वामी होकर यदि 8वे, 12वे भाव में होगा तो निश्चित ही विपरीत राजयोग के फल देगा।क्योंकि बुध यहाँ दो अशुभ भावो का स्वामी होकर अशुभ भाव में है।मेष लग्न में 12वे भाव में बुध नीच होने से कमजोर होता है इस कारण इसके फल माध्यम होंगे।इस कारण सूर्य चंद्र से बनने वाला विपरीत राजयोग ही सबसे ज्यादा प्रभावित और शक्तिशाली होता है।सूर्य चन्द्र से बनने वाले विपरीत राजयोग में किसी केंद्र ता त्रिकोण के स्वामी का सम्बन्ध नही होना चाहिए, विपरीत राजयोग ग्रह अस्त, पीड़ित, अंशो में कमजोर अन्य तरह से दूषित नही होना चाहिए।सूर्य से बनने वाला विपरीत राजयोग मीन, मकर, कन्या लग्न में और चन्द्र से कुम्भ, धनु, सिंह लग्न में फलित होता है।विपरीत राजयोग में एक खास बात होती है विपरीत राजयोग का फल राजयोग से कई गुना ज्यादा मिलता है।इस तरह सूर्य चन्द्र से बनने वाला विपरीत राजयोग सबसे ज्यादा शुद्ध, कारगर और प्रबल होता है।

ज्योतिष में रत्न परामर्श

ज्योतिष में रत्न परामर्श
【हिन्दू वैदिक ज्योतिष के नियमो के अनुसार】रत्न कब पहनना चाहिये? कौन से रत्न धारण करने चाहिए? और कब करने चाहिए? कौनसे रत्न कभी भी नहीं पहनने चाहिए?
एक अनुसन्धान परख विश्लेषण .......!!
सबसे पहले एक बात जान लें कि निम्न परिस्थितियों में बिना जन्म कुण्डली विश्लेषण के ये रत्न पहनना घातक हो सकता है।
1 विवाह हेतु पुखराज या डॉयमंड।
2 व्यवसाय में सफलता हेतु पन्ना।
3 भूमि प्राप्ति या भूमि के कार्य में सफलता हेतु मूंगा।
4 आय वृद्धि हेतु एकादशेश का रत्न।
5 शत्रु विजय हेतु षष्टेश का रत्न।
6 विदेश यात्रा हेतु द्वादशेष का रत्न।
7 दशानाथ या अंतरदशानाथ का रत्न।
8 नाम राशि या चंद्र राशि का रत्न,राहु,केतु ,शनि के रत्न आदि बिना जन्म कुण्डली विश्लेशण के पहनना नुकसान दायक ही नहीं अपितु घातक भी सिद्ध हो सकता है।
कौनसा रत्न किस लिये और कब पहनना है इससे अधिक जरूरी है कि कौनसा रत्न कब और क्यों नही पहनना। आइये इस को थोड़ा समझते है ।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में केंद्र ओर त्रिकोण के अधिपति ग्रहों को शुभ ग्रह माना गया है। जिसमे भी त्रिकोणेश (1,5,9) को केंद्रश (1,4,7,10) की अपेक्षा अधिक शुभ माना गया है
सूर्य और चंद्रमा के अतिरिक्त सभी ग्रहों को दो राशियों का आधिपत्य प्राप्त है। यदि कोई ग्रह क्रेंद और त्रिकोण के एकसाथ अधिपति है तो हम उस ग्रह का रत्न धारण कर सकते।
जैसे कर्क और सिंह लग्न में मंगल ,या वृष और तुला लग्न में शनि या मकर और कुम्भ लग्न में शुक्र।
भारतीय ज्योतिषशास्त्र में लग्नेश को किसी भी कुण्डली में सबसे माहत्त्वपूर्ण ग्रह माना गया है। क्यों की लग्नेश केन्द्रेश और त्रिकोणेश दोनों है। अतः लग्नेश सदा शुभ अतः कभी भी लग्नेश का रत्न धारण किया जा सकता है।
3,6,8,12 के स्वामी ग्रहों के रत्न कभी भी धारण नहीं करने चाहिए क्योकि इन भावों के परिणाम हमेशा ही अशुभ होते है ।
अब यदि 2, 3 ,6 ,8, 12 के अधिपति केंद्र या त्रिकोण के भी अधिपति हो तो ?
यदि केंद्र के अधिपति 2 ,3 ,6 ,8 ,12 के अधिपति हों तो भी भी उसका रत्न धारण नहीं करना चाहिए ।
क्यों कि सूत्र है केन्द्राधिपति दोष के कारण शुभ ग्रह अपनी शुभता और अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देते है ।लेकिन दूसरी राशि जो कि 2 ,3 ,6 ,8 ,12 भावो में है उनके परिणाम स्थिर रहते है
यदि त्रिकोण के अधिपति 2 , और 12 भावों के भी स्वामी है तो हम रत्न धारण कर सकते है।
क्योकि 2 ,और 12 भावों के स्वामी ग्रह अपना फल अपनी दूसरी राशि पर स्थगित कर देते हैं और अपनी दूसरी राशि त्रिकोण में स्थित के आधार पर परिणाम देते है।
लेकिन यदि त्रिकोण के स्वामी 3 ,6, 8 भावों के भी अधिपति हों तो किन्ही विशेष परिस्तिथियों में हीें रत्न धारण करना चाहिए।
क्यों की कोई भी ग्रह दो राशियों का स्वामी है तो दोनों के परिणाम एक साथ देता है। रत्न हमेशा शुभ भावों की दशा - अंतरदशा के समय पहनने पर विशेष लाभ देते है !!
विशेष शनि ,राहु ,केतु के रत्न किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही पहने जा सकते है।अतः इनके रत्न बिना पूर्ण जनकारी के न पहने।
रत्न हमेशा गहन कुण्डली विश्लेशण के पश्चात् यदि आवश्यकता हो तभी धारण करें। क्यों की रत्नों के प्रभाव शीघ्र और तीव्र होते है। रत्न धारण करने से पूर्व भली भांति अपनी कुण्डली का विश्लेषण किसी अनुभवी और श्रेष्ठ ज्योतिषी से अवश्य कराये। रत्न का चयन ग्रहों का षडबल, सोलह वर्ग कुंडलियो में ग्रह की स्थिति, रत्न के शुभ और अशुभ प्रभाव क्या और किस क्षेत्र में होंगे ? सभी कुछ गहनता से जांचकर ही रत्न धारण करें।
गलत रत्न का चुनाव आपके ही नहीं आपके परिवार के सदस्यों के लिये भी घातक हो सकता है क्यों कि हमारी जन्म पत्रिका के शुभ - अशुभ प्रभाव हमारे परिवार के सदस्यों पर भी होते हैं।
कुछ आसान, आवश्यक तथा सही समय पर किये गए सही उपाय , कुछ जन्म पत्रिका के अनुसार सकारात्मक ग्रहो का सहयोग और कुछ सही मार्ग का चयन और सही दिशा में किया गया परिश्रम सुखी और खुशियों से भरा जीवन दे सकता है।

Saturday, January 20, 2018

*सामान्य पहिचान*

💐🕉 *सामान्य पहिचान* 🕉💐

_अगर आप का वाहन पहली वार  में ही स्टार्ट हो तो मानो आप का शनि अच्छा है_

_अगर आप के #कपडो में कोई छेद नही होता तो शुक्र अच्छा है_

_अगर आप का #घर सुंदर बनता जाता है तो अाप का मंगल अच्छा है_

_अगर आप की #लोग पसंद करते हैं तो आप का बुध अच्छा है_

_अगर आप के पर्स में पैसे रहते हैं तो आप का ब्रहस्पती अच्छा है_

_अगर आप को रोजाना #खाना स्वाद मिलता है तो अाप का चन्द्र अच्छा है_

_अगर आप को #सडक पर मुल्यावान वस्तु पड़ी मिलती है तो आप का सूर्य अच्छा है_

_अगर आप को #घडी पहना पसंद है तो आप का राहु अच्छा है_

_अगर आप की कही हर #वाणी सत्य होती है तो आप का केतू अच्छा है_

Friday, January 19, 2018

बारह मुखी रुद्राक्ष



बारह मुखी रुद्राक्ष


यह भगवान विष्णु का स्वरूप है इसके देवता बारह सूर्य है। इसके धारण करने से दोनों लोको में सुख की प्राप्ति होकर सदा भरण पोषण होता है गौं हत्या मनुष्य हत्या व रत्नों की चोरी जैसे पाप इसके उपयोग से नष्ट होते है।

नश्यन्ति तानि पापनि वक्त्रद्वादशधारणात्।

आदित्याश्चैव ते सर्वो द्वादशैव व्यवस्थिताः।।

द्वादशमुखी रुद्राक्ष धारण करने से उन मनुष्यों के पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैंै क्योंकि सूर्य आदि से लेकर संपूर्ण आदित्य द्वादशमुखी रुद्राक्ष में वास करते हैं। इस लिए उन मनुष्यों को चोर, अग्नि का भय तथा अनेक प्रकार की व्याधि नहीं होती और वे अर्थवान होते हैं यदि दरिद्र भी हों तब भी भाग्यवान हो जाते हैं हाथी, घोड़ा, हरिण, बिलाव, भैंसा, शूकर, कुत्ता, श्रृंगाल (सियार) अर्थात् दाढ़ वाले सभी प्रकार के पशु वगैरा उन मनुष्यों को बाधा नहीं पहुंचा सकते। इस रुद्राक्ष को दांतों की संख्या के बराबर अर्थात् (32) की माला कण्ठ में धारण करने पर उन मनुष्यों का गो-वधु मनुष्य-हत्या एवं चोर कार्य का पाप नष्ट हो जाता है। यह सब प्रकार की बाधाओं का कीलन करने वाला दाना ’आदित्यरुद्राक्ष’ नाम से जाना जाता है।

उपयोग से लाभ

यह रुद्राक्ष दरिद्रता को नष्ट करता है सभी प्रकार के भयानक पशुओं से रक्षा करता है।

इस रुद्राक्ष को दांतों की संख्या के बराबर की माला कंठ में धारण करने से गो-वध, मनुष्य एवं चोरी जैसे पाप को नष्ट करता है।

द्वादशमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी प्रकार की बांधायें नष्ट होती हैं मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा से छुटकारा मिलता है।


तेरह मुखी रुद्राक्ष



तेरह मुखी रुद्राक्ष

तेरह मुखी रुद्राक्ष में तरह धारियां होती हैं | तेरह मुखी रुद्राक्ष भगवान इंद्र का स्वरूप माना जाता है, इसके धारण करने से इंद्र प्रसन्न होते हैं, जिससे ऐश्‍वर्य की प्राप्ति होती है | यह रुद्राक्ष सभी प्रकार के अर्थ तथा सिद्धियों की पूर्ति करता है, जिससे हर प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा यश की प्राप्ति होती है | इसको धारण करने से हर प्रकार के भोगों की प्राप्ति होती है तथा सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं | तेरह मुखी रुद्राक्ष के देवता कामदेव हैं इसी कारण तेरह मुखी रुद्राक्ष काम और रस-रसायन तथा धातुओं तथा अर्थ को सिद्धि देनेवाला माना गया है | इसको धारण करने से इंद्र तथा कामदेव प्रसन्न होकर सभी प्रकार की सांसारिक कामनाएं पूर्ण करते हैं, यह परम प्रतापी तथा तेजस्वी रुद्राक्ष माना गया है | इसको धारण करने से राज्य की ओर से सम्मान में वृद्धि होती है, समाज में मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है, पद में उन्नति होती है | इसको धारण करने से बुद्धिमत्ता तथा तेजस्वीपन आता है तथा छल-कपट से होकर किसी को धोखा नहीं देता है | इसको पहनने से विपरीत लिंगी धारक की तरफ आकर्षित होता है |


चौदह मुखी रुद्राक्ष



चौदह मुखी रुद्राक्ष



चौदह मुखी रुद्राक्ष पर चौदह धारिया होती हैं | चौदह मुखी रुद्राक्ष रुद्र के नेत्र से प्रकट हुआ रुद्राक्ष माना जाता है | यह अत्यंत दुर्लभ रुद्राक्षों की श्रेणी में आता है | परम प्रभावशाली तथा अल्प समय में ही शिवजी को प्रसन्न करनेवाला यह चौदह मुखी रुद्राक्ष साक्षात् देवमणि है | पुराणों में इसके बारे में कहा गया है कि यह चौदह विद्या, चौदह मनु, चौदह लोक, चौदह इंद्र का साक्षात् देव स्वरूप है | चौदह मुखी को वृक्ष से उत्पन्न सर्वदेवमय, विशिष्ट एवं दुर्लभ रुद्राक्ष माना जाता है | चतुवर्गों का फल चाहनेवालों को चौदह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए | यह रुद्राक्ष भगवान शिव, तीनों लोकों के स्वामी देवों के देव महादेव का ही स्वरूप एवं उनके रुद्राक्षों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है | चौदह मुखी रुद्राक्ष का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि भगवान शिव स्वयं चौदह मुखी रुद्राक्ष धारण किया करते थे, इसीलिए चौदह मुखी ही एकमात्र ऐसा रुद्राक्ष है, जिसका एक दाना धारण करने से ही मनुष्य खुद साक्षात् शिव स्वरूप हो जाता है | पौराणिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार एक चौदह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य देवताओं से पूजित होकर सीधे स्वर्ग जाता है तथा जन्मों के संस्कार से अलग होकर पूर्णता की प्राप्ति करता है | चौदह मुखी रुद्राक्ष की शक्तिया अपार हैं |

परमात्मा शिव ने मानव के कष्टों के निवारण हेतु इन्हें उत्पन्न किया है | रूद्राक्ष धारण करने के पश्‍चात ही मानव का मन अपने शरीर में समाहित इन ग्यारह रूद्रों पर विजय प्राप्त कर पाएगा | इनके धारण से ही मानव के मन द्वारा कल्याणकारी कर्म संभव हो पाएंगे | जिन का फल मानव शरीर को सुख और कल्याण के रूप में प्राप्त होगा | जब मानव रूद्राक्ष पर रूद्रा अभिषेक कर ग्रहण करता है तो उसकी शक्तियां अपार हो जाती हैं |


पंद्रह मुखी रुद्राक्ष



पंद्रह मुखी रुद्राक्ष

पंद्रह मुखी रुद्राक्ष पन्द्रह तिथियों से संबंधित है | पंद्रह मुखी रुद्राक्ष पशुपतिनाथ का स्वरूप माना जाता है |इस रुद्राक्ष को धारण करने से अपने सभी उद्यमों में सफलता प्राप्त होती है. उर्जा शक्ति द्वारा अपने सभी कार्यों में सफलता पाता है.इस रुद्राक्ष के पहनने वाला तीव्र बुद्धि को पाता . वह अपने ज्ञान द्वारा सभी को प्रभावित करने में सक्षम होता है. मान्यता है कि जब भगवान विश्वकर्मा सभी देवताओं के लिए हथियार बनाते हैं तो वह भगवान शिव से अपने इस कार्य में सफलता पाने का आशीर्वाद मांगते हैं तथा भगवान शिव प्रार्थना से प्रसन्न हो  इन्हें आशीर्वाद के रूप में पंद्रह मुखी रुद्राक्ष प्रदान करते हैं.

जो व्यक्ति लौह और रसायन के व्यापार में लगे हुए हैं उन लोगों के लिए यह पंद्रह मुखी रुद्राक्ष बहुत उपयोगी माना जाता है. यह रूद्राक्ष सभी संबंधों को पूर्ण करने में सहायक है |

पंद्रह मुखी रुद्राक्ष का महत्व

    पंद्रह मुखी रुद्राक्ष सबसे महत्वपूर्ण और बहुत ही कम पाए जाने वाला रुद्राक्ष हैं|
    पंद्रह मुखी रुद्राक्ष  पशुपतिनाथ का स्वरूप माना जाता है |
    नेपाल में पंद्रह मुखी रुद्राक्ष बहुत शक्तिशाली माना जाता हैं और उर्जा चिकित्सा की उच्च डिग्री हैं |
    पंद्रह मुखी रुद्राक्ष का धारण करने से धारक को बहुत ही शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं|
    पंद्रह मुखी रुद्राक्ष संबंधो में सुधार लाता हैं और परिवार में प्यार बनाए रखता हैं |
    पंद्रह मुखी रुद्राक्ष धारक को उच्चतम ज्ञान प्रदान करता हैं |

पंद्रह मुखी रुद्राक्ष  के लाभ

    पंद्रह मुखी रुद्राक्ष स्वास्थ्य, धन, शक्ति, ऊर्जा, समृद्धि, आत्मा के उन्नयन और आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करता है |
    पंद्रह मुखी रुद्राक्ष उचित मार्ग दिखाता है तथा सही रास्ते पर लाकर हमें आगे बड़ाता है |
    पंद्रह मुखी रूद्राक्ष को पहनने से धन का अभाव नही रहता है |
    पंद्रह मुखी रूद्राक्ष मोक्ष को प्राप्त करने में तथा उच्च उर्जा शक्तियों की वृद्धि में सहायक होता है |
    पंद्रह मुखी रूद्राक्ष त्वचा के रोग को दूर करने में सहायक होता है |
    पंद्रह मुखी रूद्राक्ष अंतर्ज्ञान की शक्ति को बढ़ाता है |

पंद्रह मुखी रुद्राक्ष मंत्र

ॐ पशुपतय नम
ॐ नमः शिवाय
ॐ हृीं नमः

15 मुखी रुद्राक्ष को सोमवार के दिन सोने या चांदी में पहन सकते हैं या लाल धागे में 

9 ग्रहों के मंत्र और उनका दान

9 ग्रहों के मंत्र और उनका दान

सूर्य

सूर्य तांत्रिक मंत्र- ॐ ह्रां ह्रीं हौं स: सूर्याय नम:।

एकाक्षरी बीज मंत्र- ॐ घृणि: सूर्याय नम:

जप संख्या- 7000।

दान- माणिक्य, गेहूं, धेनु, कमल, गुड़, ताम्र, लाल कपड़े, लाल पुष्प, सुवर्ण।

चंद्र

चंद्र तांत्रिक मंत्र- 'ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:'।

चंद्र एकाक्षरी मंत्र- ॐ सों सोमाय नम:।

जप संख्या- 11,000।

दान- वंशपात्र, तंदुल, कपूर, घी, शंख।

भौम

भौम मंत्र- 'ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:'।

भौम एकाक्षरी मंत्र- ॐ ॐ अंगारकाय नम:।

दान- प्रवाह, गेहूं, मसूर, लाल वस्त्र, गुड़, सुवर्ण ताम्र।

वृषभ जप संख्या- 1000।

बुध

बुध मंत्र- 'ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:'।

बुध का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ बु बुधाय नम:'।

जप संख्या- 9,000।

दान- मूंग, हरा वस्त्र, सुवर्ण, कांस्य।

गुरु

गुरु मंत्र- 'ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:'।

गुरु का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ ब्रं बृहस्पतये नम:'।

जप संख्या- 19,000।

दान- अश्व, शर्करा, हल्दी, पीला वस्त्र, पीतधान्य, पुष्पराग, लवण।

शुक्र

शुक्र मंत्र- 'ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:'।

शुक्र का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ शुं शुक्राय नम:'।

जप संख्या- 16,000।

दान- धेनु, हीरा, रौप्य, सुवर्ण, सुगंध, घी।
शनि

शनि मंत्र- 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:'।

शनि का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ शं शनैश्चराय नम:'

जप संख्या- 23000।

दान- तिल, तेल, कुलित्‍थ, महिषी, श्याम वस्त्र।

राहु

राहु मंत्र- 'ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों स: राहवे नम:'।

राहु का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ रां राहुवे नम:'।

जप संख्या- 18,000

दान- गोमेद, अश्व, कृष्णवस्त्र, कम्बल, तिल, तेल, लोहा, अभ्रक।

केतु

केतु का तांत्रिक मंत्र- 'ॐ स्रां स्रीं स्रों स: केतवे नम:'।

केतु का एकाक्षरी मंत्र- 'ॐ के केतवे नम:'।

जप संख्या- 17,000।

दान- तिल, कंबल, कस्तूरी, शस्त्र, नीम वस्त्र, तेल, कृष्णपुष्प, छाग, लौहपात्र।

क्या वास्तु द्वारा भाग्य को बदला जा सकता है ??

क्या वास्तु द्वारा भाग्य को बदला जा  सकता है ??
     अधिकान्श लोगो के मन मे यह विचार आता रहता है कि क्या वास्तु द्वारा भाग्य को बदला जा सकता है ??
            वास्तु द्वारा भाग्य को बदला नही जा सकता है । वास्तु का संबंध वस्तु की उचित व्यवस्था और प्रकृति के पंच तत्व वायु ,अग्नि ,जल ,आकाश व पृथ्वी के सन्तुलन से हैं ।वास्तु प्रकति से पूर्णतः लाभ प्राप्त की सहायता करता है न की भाग्य बदलने की । वास्तु इन्सान की शक्ति व उरजा को उन्नत कर सकता हैं ,वास्तु भाग्य फल को प्राप्त करने मे सहायता कर सकता है , और उसके लिए उचित वातावरण की व्यवस्था कर सकता है । यदि आपका भाग्य 100% मे से 70% परिणाम देने की झमता रखता है तो यदि आप उचित वातावरण मे वास्तु सममत भवन मे रह रहे है तो भाग्य द्वारा प्राप्त 70% को और अधिक माञा मे बढाया जा सकता है क्योकी जो लोग वास्तु सममत भवन मे निवास करते है उनकी शारीरिक व मानसिक झमता हमेशा उन्नत रहती है और किसी भी सही अवसर को पकडने की झमता बनी रहती है ।
    भाग्य का समबन्ध कमँ  से है जैसा करोगे वैसा फल प्राप्त होगा । अच्छा कमँ आप तभी कर सकते है जब आप वास्तु सममत भवन मे निवास करते हो क्योकी ये आपकी शारीरिक व मानसिक झमता को बढाता है । आपके द्वारा किए गये कर्मो का फल तो भुगतना ही पढेगा चाहे वह सही हो या गलत । वास्तु द्वारा भाग्य को बदला नहीं जा सकता । लेकिन वास्तु सममत भवन मे निवास करने से वास्तु तो केवल आपकी सोच, आपकी उर्जा शक्ति , को बढाता है ।स्वस्थ मानसिक प्रबलता , और भरपूर आत्म विश्वास पैदा करता है , सोचने समझने की शक्ति प्रदान करता है जिसके आधार पर आपके कमॅ करने की शक्ति बढ़ जाती है और जैसा कमॅ आप करेगे वैसा फल प्राप्त होगा ।
       वास्तु का सहयोग फल को अधिक अनुपात मे बढाने मे सहायक होता है फल जब अधिक माञा मे मिलेगा तो स्वाभाविक उन्नति ही होगी । अधिक उन्नति और अधिक फल आपके जीवन स्तर को ऊँचा उठाने मे सहायक होता है भाग्य जो भी फल दे रहा है यदि वह शुभ है तो वास्तु द्वारा उसके अनुपात को बढाया जा सकता है । यदि आपका भाग्य अशुभ फल दे रहा है और आपका भवन भी वास्तु सममत नहीं है तो आपको अनेकों शारीरिक मानसिक व आर्थिक परेशानियां बनी रहेगी ।
        अतः वास्तु की सहायता से आपके भाग्य को बदला नहीं जा सकता लेकिन वास्तु के नियमो का पालन कर भाग्य को उन्नत व प्रगतिशील बनाया जा सकता है

Saturday, January 13, 2018

दसमुखी रुद्राक्ष


दसमुखी रुद्राक्ष



यह रूद्राक्ष साक्षात जर्नादन भगवान का स्वरूप माना जाता है। दशमुखी रूद्राक्ष दशों दिशाओं से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा का संचारण करता है। इस रूद्राक्ष को धारण करके अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त किये जा सकते है।

1-इस रूद्राक्ष को धारण करने से यश,धन कीर्ति और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

2- बुद्धि विवेक व स्मरण शक्ति को तेज करने में यह रूद्राक्ष काफी उपयोगी सिद्ध होता है।

3- दशमुखी रूद्राक्ष को पहने से सन्यासियों व योगियों को आत्म ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिलती है।

4- जो लोग असमय बीमारियों का शिकार हो जाते हैं उन्हें यह रूद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए।

5- इस रूद्राक्ष को धारण करने से तमाम प्रकार लौकिक परलौकिक इच्छायें पूरी होती है।

6- नवग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए दसमुखी रूद्राक्ष धारण करना अत्यन्त शुभ माना जाता है।

7- दशमुखी रूद्राक्ष एक प्रकार से रक्षा कवच का काम करता है,इसे गले में धारण करने से नजर टोना-टोटका इत्यादि नकारात्मक ऊर्जा से यह रक्षा करता है।

धारण विधिः- घी का दीपक जलाकर अक्षत पंुज में रख दिया जाये। उसके सामने 10 मुखी का रूद्राक्ष को रख दे। भगवान जर्नादन का ध्यान करके गंगा जल से परिमार्जित कर दे। तत्पश्चात "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मन्त्र का 108 बार जप करे। जप करते हुये भगवान जर्नादन की मानसी पूजा करने के बाद "ऊँनमो नारायण" का जाप करते हुए रूद्राक्ष को सिर के सहस्रार चक्र के ऊपर रख कर भगवान का ध्यान करे। उसके बाद "त्रेलोक्य विक्रानताय नमस्तेस्तु त्रिविक्रम" कहकर रूद्राक्ष को गले या भुजा में धारण करें। यह साधना किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से त्रयोदशी तिथि तक नित्य करनी चाहिए। उसके पश्चात ही रूद्राक्ष को धारण करना चाहिए।


जिंदगी जीने का बिंदास तरीका सिखाती हैं स्वामी विवेकानंद की ये 21 बातें

जिंदगी जीने का बिंदास तरीका सिखाती हैं स्वामी विवेकानंद की ये 21 बातें

वेदों के ज्ञाता और महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद ने न सिर्फ भारत के उत्थान के लिए काम किया बल्कि लोगों को जीवन जीने की कला भी सिखाई. परोपकार, भाई-चारा, प्रेम, आत्म सम्मान, शिक्षा और महिला मुक्ति के लिए उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाले समय में भी लोगों रास्ता दिखाते रहेंगे.
स्वामी विवेकानंद अपनी आखिरी सांस तक न सिर्फ समाज की भलाई के बारे में सोचते रहे बल्कि उन्होंने पूरी दुनिया को जिंदगी जीने का सलीका भी सिखाया
आज यानी कि 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन है और इस मौके पर हम आपको उनके ऐसे ही 21 विचारों के बारे में बता रहे हैं जो आपको जीने का सलीका सिखाते हैं:
1- “खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है.”
2- “ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं. वो हमी हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है.”
3- “जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है.”
4- “किसी की निंदा न करें. अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढाएं. अगर नहीं बढ़ा सकते तो अपने हाथ जोड़िए, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिए.”
5- “जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है, पर जो रिश्ते हैं उनमें जीवन होना जरूरी है.”
6- “हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिए कि आप क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं. विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं.”
7- “जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते.”
8- “हम जितना ज्यादा बाहर जाएं और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा और परमात्मा उसमे बसेंगे.”
9- “तुम्हें अंदर से बाहर की तरफ विकसित होना है. कोई तुम्हें पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता. तुम्हारी आत्मा के आलावा कोई और गुरू नहीं है.”
10- “तुम फुटबॉल के जरिए स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाए गीता का अध्ययन करने के.”
11- “दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो.”
12- “किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आए- आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं.”
13- “प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है. इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है. वह जो प्रेम करता है जीता है, वह जो स्वार्थी है मर रहा है. इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है, वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो.”
14- “हम जो बोते हैं वो काटते हैं. हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं. हवा बह रही है, वो जहाज जिनके पाल खुले हैं, इससे टकराते हैं, और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं, पर जिनके पाल बंधे हैं हवा को नहीं पकड़ पाते. क्या यह हवा की गलती है? हम खुद अपना भाग्य बनाते हैं.”
15- “जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे. यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे, अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे.”
16- “जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो. सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं.”
17- “श्री रामकृष्ण कहा करते थे, ‘जब तक मैं जीवित हूं, तब तक मैं सीखता हूं ‘. वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है.”
18- “पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है.”
19- “दिन में एक बार अपने आप से बात करो वरना तुम दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण आदमी से बात नहीं कर पाओगे.”
20- “लोग मुझ पर हंसते हैं क्योंकि मैं अलग हूं. मैं लोगो पर हंसता हूं क्योंकि वो सब एक जैसे हैं.”
21- “अपने में बहुत सी कमियों के बाद भी हम अपने से प्रेम करते हैं तो दूसरों में ज़रा सी कमी से हम उनसे कैसे घृणा कर सकते हैं.”

Friday, January 12, 2018

मारक या मारकेश ग्रह।

मारक या मारकेश ग्रह।

मारक ग्रह के बारे में तो सुना ही होगा, क्योंकि प्रत्येक कुंडली में कुछ ग्रह मारक का काम करते हैं, माना जाता है कि जब भी इन ग्रहों की दशा या अंतर्दशा आती है तो उस समय यह ग्रह जातक को कष्ट देते हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि सभी को एक जैसा ही कष्ट और परेशानी दें, यह सब अलग-2 लग्नो के हिसाब से कष्ट देते हैं, और यह प्रत्येक कुंडली में शुभ अशुभ ग्रह, ग्रहों की अच्छी व बुरी दृष्टि पर ही निर्भर करता है इसलिए घबराना नहीं चाहिए।
आप अपनी कुंडली चेक कर जान सकते हैं कि कौन सा ग्रह आपके लिए मारक मतलब कष्टकारक होंगे।
कुंडली में लग्न से गिनने पर दूसरा घर और सातवां घर मारक स्थान या भाव कहलाते हैं, (कुछ विद्वान 12वें घर को भी मारक मानते है) इन घरों में जो भी राशि आती है उनके स्वामी मारकेश कहलाते हैं।
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मारकेश की दशा/अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा में मानसिक व शारीरिक कष्ट, चोट लगना, दुर्घटना होना, कोई लंबी बीमारी, मानसिक तनाव, अपयश, कार्यों में बाधाएं और अड़चने, वैवाहिक जीवन में क्लेश, बिना वजह क्लेश, डर व घबराहट, आत्म विश्वास की कमी आदि परेशानियां हो सकती है।
सौम्य और शुभ ग्रह यदि मारकेश हैं तो इतने कष्टकारी नहीं होते किन्तु यदि पापी और क्रूर ग्रह मारकेश हैं तो फिर कुछ कष्ट अवस्य देते हैं।
चंद्रमा और सूर्य यदि मारकेश हों तो मारकेश होकर भी मारकेश नहीं होते मतलब अशुभ फल नहीं देते।
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उपाय- यदि मारकेश की दशा/अंतर /प्रत्यंतर चल रहा हो तो घबराना नहीं चाहिए क्योंकि जहां चाह वहां राह होती है, अगर ज्योतिष में कुछ बुरे योग हैं तो वहां उपाय भी हैं।
शिव आराधना से लाभ मिलता है, शिवजलाभिषेख करें।
—मारक ग्रहों की दशा मे उनके उपाय करना चाहिए.
—महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार है:–
ॐ हौं ॐ जूं ॐ स: भूर्भुव: स्वःत्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतातॐ भूर्भुव: स्वः ॐ जूं स: हौं ॐ।।
—-इस विषय में राम रक्षा स्त्रोत, महामृत्युंजय मन्त्र, लग्नेश और राशीश के मन्त्रों का अनुष्ठान और गायत्री मन्त्रों द्वारा इनमे कुछ वृद्धि की जा सकती है।

नोकरी_और_शनि

||#नोकरी_और_शनि||                                                        शनि नोकरी का कारक ग्रह है।कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार नोकरी से लेकर उच्च स्तर का व्यवसाय करा देना भी शनि के अधिकार छेत्र में है।विशेष रूप से शनि नोकरी का ही कारक है।शुभ शनि का सम्बन्ध 2, 6, 10 भाव से होने पर शनि जातक को रोजगार में धीरे धीरे उन्नति देता है क्योंकि यह बहुत धीमी रफ़्तार से चलने वाला ग्रह है इसके फल शुभ-अशुभ फल भी बहुत दीर्घकाल तक के लिए मिलते है।शनि जब जातक से नोकरी करवाता है या शनि के कारण जातक को नोकरी मिलती है तब वह निम्न स्तर से मिलती है शनि दशम भाव में उच्च, मूलत्रिकोण, स्वराशि में होता है तब उच्च स्तर की नोकरी ही दिलाता है इसके आलावा अन्य राशि में होने पर या शनि की दृष्टि नोकरी भाव पर होने से निन्म स्तर की नोकरी शनि जातक को कराता है और धीरे धीरे अपनी धीमी गति के साथ शुभ होने पर धीरे धीरे उन्नति कराता है इसके आलावा सूर्य, चन्द्र मंगल, गुरु, बुध, शुक्र इनके द्वारा नोकरी मिलती है तो यह उच्च स्तर की नोकरी कराते है जिसका एक तरह से जातक को ज्यादा अभ्यास नही होता।शनि जातक को तपा कर निम्न स्तर से उच्च स्तर तक धीरे धीरे ले जाता है और हर तरह का अनुभव कराकर शुभ होने पर उच्च स्तर तक की नोकरी पर ले जाता है।शनि के फल को यहाँ गहराई से समझे, शनि पहले जातक को हर तरह से धीरे धीरे निम्न स्तर से नोकरी कराकर निम्न स्तर से उच्च स्तर तक का ज्ञान कराता है जिससे जातक के पास अनुभव ज्यादा होता है क्योंकि शनि जातक को निम्न नोकरी के माध्यम से हर स्थिति से गुजरवा चूका होता जिससे जातक को हर स्थिति का अनुभव हो जाता है और धीरे धीरे जब शनि जातक को नोकरी में उच्च पद तक ले जाता है तब उसको अपार सफलता देता है।शनि जातक को नोकरी में तपाकर कोयले से हीरा बनाकर उसको सफल बनाता है  जो अनुभव हर स्तर की स्थिति का नोकरी में शनि देता है वह अन्य और कोई ग्रह नही देता क्योंकि सूर्य गुरु शुक्र आदि ग्रह जब नोकरी कराते है तो सीधे जातक को उच्च स्तर की नोकरी दिला देते है जिस काम को करने का जातक को ठीक से अभ्यास भी नही होता।शनि का फल देर से और लंबे समय तक के लिए मिलता है जिस कारण से शनि शुभ होने पर स्थिर नोकरी देकर धीरे धीरे उसमे तरक्की देता है।शनि प्रधान नोकरी वाले काफी मेहनती होते है।इस कारण जब भी आपको शनि के कारण नोकरी के शुरुआती समय में संघर्ष करना पड़ता है तो ऐसा शनि शुभ बली होने पर धीरे धीरे जातक को ऊचाइयों पर ले जाता है और जब शनि के कारण जातक ऊचाइयों पर पहुचता है तब ऐसे इंसान की ताकत बहुत बढ़ चुकी होती है।जिससे नोकरी में उसका अपना एक अलग ही वर्चस्व स्थापित हो चूका होता है।यदि शनि किसी जातक/जातिका का अशुभ होता है तब यह नोकरी में सिर्फ संघर्ष कराता है जातक/जातिका को मेहनत के अनुसार फल नही मिलता।इस कारण जो जातक नोकरी पेशे में है उनको शनि के प्रभाव को समझकर शनि की शुभता में वृद्धि करने के उपाय करने से शनि सम्बंधित शुभ फल और प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।उपाय में शनि मन्त्र का जप करना, शमी के पौधे की देखभाल करना पोधे को जल देना, दिया जलाना।मजदुर वर्ग के लोगो की जरूरत के हिसाब से सहायता करना, शुभ काम करने से शनि के शुभत्व में वृद्धि की जा सकती है।।

वर्ष कुंडली में मुंथा का महत्त्व

वर्ष कुंडली में मुंथा का महत्त्व -
वर्ष कुंडली में नवग्रहों के समान मुंथा की भी स्थापना की जाती है। मुन्था, मुन्थेश, वर्षेश तथा वर्षलग्नेश को वर्षलग्न में अधिक महत्त्व दिया गया है। मुंथा यद्यपि कोई ग्रह नहीं है, तो भी मुंथा को ताजिक शास्त्र में एक ग्रह के रूप में मान्यता दी गयी है। इसका फल ग्रह के समान ही महत्वपूर्ण है। मुंथा प्रतिवर्ष एक राशि में, एक माह में ढ़ाई अंश तथा एक दिन में ढ़ाई कला चलती है। इसे कभी वक्री नहीं माना गया है।
मुंथा जन्म लग्न से प्रति वर्ष एक-एक राशि आगे चलती है। वर्ष कुंडली में ४, ६, ७, ८ और १२वे भाव में स्थित मुंथा अशुभ फलदायक होती है। यदि ४, ६, ७, ८, १२वे भाव में शुभ ग्रह युक्त हो तो इतनी अधिक अनिष्टकारी नहीं होती।
द्वादश भावस्थ मुन्था फल
लग्न आदि द्वादश भावों में मुंथा का फल इस प्रकार होगा
लग्न भाव में मुंथा स्थित हो तो उस वर्ष शत्रु का नाश, भाग्य में वृद्धि, सवारी का सुख, यदि चार राशि में हो तो स्थान परिवर्तन के भी योग बनते हैं।
द्वितीय भावस्थ मुंथा हो तो कठिन परिश्रम द्वारा धन लाभ एवं धन प्राप्ति के साधन बनते हैं। मनोरंजन एवं सुख साधनों पर व्यय भी बढता है।
तृतीय भावस्थ मुंथा होने से शत्रु का नाश, भाइयों, मित्रों या उच्च पद प्राप्त महानुभावों का सहयोग प्राप्त होता है।
चतुर्थ भावस्थ मुंथा शरीर कष्ट, वायु विकार, अपने-परायों से विरोध, गुप्त चिंताएँ, नौकरी और व्यवसाय में अनेक प्रकार के विघ्न, स्थान परिवर्तन आदि अशुभ फल घटित होते हैं।
पंच्मस्थ मुंथा अत्यंत शुभ फल देने वाली होती है। सर्विस अथवा व्यापर में लाभ, धन, पुत्र एवं विद्या का लाभ, नए उद्योगों में सफलता मिले।
षष्ठस्थ मुंथा हो तो शरीर कष्ट, शत्रु का भय, चित्त में अशांति, ननिहाल को हानि, स्वभाव में चिडचिडापन रहता है।
सप्तमस्थ मुंथा अशुभ रहती है। स्त्री अथवा निकट बन्धुओं की और से कलह-क्लेश, पारिवारिक सदस्यों को कष्ट, बने बनाए कार्य बिगड़ना आदि अशुभ फल घटित होते हैं।
अष्टमस्थ मुंथा होने से आशाओं में निराशा, पेट तथा अन्य गुप्त रोगों का भय, स्थान परिवर्तन, अनावश्यक यात्राओं तथा स्वास्थय पर भी अपव्यय होता है।
नवमस्थ मुंथा उत्तम फल देती है। नौकरी में पद उन्नति अथवा व्यवसाय में लाभ-वृद्धि, पारिवारिक सुख एवं भाग्य में उन्नति होती है।
दशमस्थ मुंथा होने से आर्थिक लाभ, सरकारी क्षेत्र में यदि कोई कार्य रुका होगा तो पूरा होगा (यानि लाभ होगा) तथा सोचे हुए कार्यो में सफलता प्राप्त होगी।
ग्यारहवें भाव में मुंथा होने से धन लाभ, सुख-प्राप्ति, व्यापार और क्रय-विक्रय के कार्यो से लाभ होगा।
द्वादशस्थ मुंथा आने से व्यापार तथा यात्रा करने से हानि, धन का खर्च, स्थान परिवर्तन के योग बनेगे।
मुन्थेश - जिस घर में मुन्था होती है उस राशि के स्वामी को मुन्थेश कहते हैं।
यदि मुन्थेश सूर्य हो अथवा मुन्था सूर्य से युक्त हो या सिंह राशि में मुन्था व सूर्य दोनों हों अथवा मुन्था सूर्य से दृष्ट हो तो राज्यपक्ष से लाभ होता है, गुणों की प्राप्ति होती है तथा स्थानान्तरण होता है।
यदि मुंथा चंद्रमा के घर में हो यानी मुन्थेश चंद्रमा हो या चंद्रमा से युक्त या दृष्ट हो तो धर्म तथा यश की वृद्धि होती है, शरीर रोगरहित होता है, चित्त में संतोष होता है तथा बुद्धि की वृद्धि होती है। यदि पाप ग्रह से दृष्ट हो तो कष्ट प्राप्ति होती है।
यदि मुन्था मंगल के घर में अथवा मंगल से युक्त या दृष्ट हो तो पित्त रोग होता है। शस्त्र से चोट लगने तथा रक्तस्राव होने की आशंका रहती है। यदि मुन्थेश पर शनि की दृष्टि हो तो उपरोक्त फल में वृद्धि हो जाती है।
यदि मुन्था बुध के घर में, अथवा बुध से युक्त या दृष्ट हो तो पत्नी, बुद्धि, लाभ, सुख, धर्म तथा यश मिलते हैं, परंतु पाप ग्रह से दृष्ट या युक्त हो तो कष्ट मिलता है।
यदि मुन्था गुरु से युक्त, दृष्ट या गुरु की राशियों में हो तो पुत्र तथा स्त्री से सुख मिलता है। धन-धान्य की वृद्धि होती है।
यदि मुन्था शुक्र के घर में अथवा शुक्र से दृष्ट अथवा युक्त हो तो सुख, यश, धर्म-परायणता, सुबुद्धि तथा पत्नी से सुख प्राप्त होता है।
यदि मुन्था शनि के घर में हो अथवा शनि से दृष्ट या युक्त हो तो वातरोग, मानहानि, अग्निभय तथा धननाश होता है, परंतु गुरु की दृष्टि से उपरोक्त दोष समाप्त हो जाते है।
यदि मुन्थेश वर्षलग्न अथवा जन्मलग्नेश हो या बलवान होकर केन्द्र, त्रिकोण, द्वितीय अथवा एकादश स्थान में हो तो लाभ की प्राप्ति होती है।
यदि मुन्थेश १, ६, ८, १२वें स्थान में वक्री, अस्तंगत, पाप ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तथा क्रूर ग्रहों से चौथे या सातवें स्थान पर हो तो रोगभय, धननाश तथा कुशलता का अभाव होता है।
यदि मुन्थेश अष्टमेश के साथ बैठा हो या अष्टमेश से १, ४, ७, १०वी दृष्टि में हो तो मृत्युतुल्य कष्ट होता है।
छठे या आठवें भाव में स्थित मुन्थेश की दशा मारक होती है।

अमावस्या दोष

अमावस्या दोष *
*आप में से बहुत से लोगों ने किसी ज्योतिष या पंडित जी के मुँह से ये शब्द सुना होगा कि अमुक जातक अमावस का जन्मा है या इसे अमावस दोष है, जी हाँ दोस्तों आज में इसी दोष पर चर्चा करने जा रहा हूँ।*

*तो आईये सबसे पहले तो ये समझते हैं कि आखिर ये अमावस्या दोष होता क्या है।*

*दोस्तों जब भी सूर्य और चन्द्रमा कुंडली के किसी भी भाव में एक साथ होते हैं तो वहां पर अमावस्या दोष बन जाता है, या अमावस का जन्म होता है। इस दोष को सर्वाधिक अशुभ दोषों में से एक माना जाता है, क्योंकि अमावस्या को चन्द्रमा दिखाई नहीं देता मतलब अन्धकार चन्द्रमा का प्रभाव छिण हो जाता है। क्योंकि चन्द्रमा को ज्योतिष में कुंडली का प्राण माना जाता है, और जब चन्द्रमा ही अंधकारमय हो जाये तो फिर आप लोग समझ सकते हो कि इंसान के मन की क्या स्थिति होगी।*

*और कहा भी गया है कि चन्द्रमा मनसो जातः। सूर्य आग है और चन्द्रमा पानी दोनों के तत्व अलग है, और मानव शारीर में अधिकतर जल ही तो होता है। सूर्य के साथ एक ही घर में होने से चन्द्रमा अधिकतर अस्त हो जाता है और इसकी अपनी कोई शक्ति नहीं रह जाती।*

*चन्द्रमा हमारे मन और मस्तिष्क पर अपना पूर्ण प्रभाव होता है, और नियंत्रण भी यही करता है, और जब चन्द्रमा ही कमजोर हो जाये तो फिर इंसान को कुछ समझ नहीं आता और वह अधिकतर मन के रोग से पीड़ित हो जाता है या फिर उसे कुछ समझ नहीं आता की आखिर ये हो क्या रहा है।*

*इंसान के शारीर और मस्तिष्क में या तो जल तत्व बढ़ जाता है या फिर बहुत कम हो जाता है और दोनों ही स्थितियां ख़राब होती हैं।*

*मन अधिकतर भटकता ही रहता है, दिमाग में अच्छे विचार कम और बुरे ज्यादा आने लगते हैं, दिमाग में भरम, वहम, गन्दी और हिंसक सोच, नकारात्मक विचार, जैसे यदि आप सफ़र कर रहे हैं तो अचानक सोच बन जायेगी कि कहीं एक्सीडेंट न हो जाये, या मैं मर न जॉन, यदि सिरदर्द 2- 4 दिन लगातार हो जाये तो ये सोचना कि कहीं ब्रेन ट्यूमर न हो रहा हो, चेस्ट में थोडा गैस या अन्य कारण से दर्द हो रहा हो तो ये सोचना की कहीं अटैक न आ रहा हो आदि आदि बुरे विचार, इन विचारों में मनुष्य इतना उलझ जाता है कि फिर इनसे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, ऐसे नकारात्मक विचार चंद्र के दूषित होने से आते हैं। बहुत से लोग बीमार तो नहीं होते लेकिन खुद के विचार उन्हें बीमार कर देते हैं।*

*यह सबसे अधिक प्रभाव मन पर ही डालता है दोस्तों, क्योंकि तन एक बार बीमार हो जाये तो वह तो ठीक हो जाता है लेकिन मन बीमार हो जाये तो फिर इससे निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि मन के जीते जीत और मन के हारे हार होती है, दोस्तों आप जानते ही होंगे फिल्मस्टार दीपिका पादुकोण भी डिप्प्रेशन में चली गयी थी, उनकी कुंडली में भी चन्द्रमा की स्थिति कमजोर थी, और वह बड़ी मुश्किल से इससे बाहर निकली थी, आखिर वो भी इंसान ही है।इसके अलावा ऐसे बहुत सी फ़िल्मी हस्तियां थी जो मानसिक तौर से बीमार हो गए थे। और फिर कई मसक्कत के बाद ही बाहर निकले थे, खैर ग्रह दोष तो सभी को एक सामान रूप से ही परेशान करते हैं।*

*दोस्तों इस दोष में माता पिता की आर्थिक स्थिति अधिकतर ख़राब ही रहती है, जातक भी जीवन भर आर्थिक तंगी से जूझता रहता है, एक तरह से दरिद्र बना देता है।*

*मान सम्मान गिर जाता है, मन अधिकतर उदासीन और बिना बात के परेशान रहता है, आत्मविश्वास की अधिकतर कमी हो जाया करती है। और अधिकतर जातक आलसी और वहमी हो जाता है॥*

*सर्वप्रथम सुबह उठकर सुद्ध होकर सूर्य देव को अर्घ देना चाहिए,*

*दूसरा- सूर्य और चंद्र से सम्बंधित दान करने चाहिए जैसे कि गेहूं, लाल और सफ़ेद कपडा, दूध, चावल, खीर, आदि जो भी इनसे सम्बंधित सामग्री हो।*

*तीसरा- शिव आराधना करें और शिवलिंग में कच्चा दूध और पानी में गंगाजल मिलाकर अभिषेक करें।व पूर्णिमा का व्रत करें।*

*चौथा- सूर्य एवम चंद्र की शांति कराएं और रोज एक माला चन्द्रमा की जपें।ऐसे करने से धीरे-धीरे दोष में कमी आने लगती है।*

कुंडली के आठवे भाव में शनि

कुंडली के आठवे भाव में शनि  -

फलित ज्योतिष में कुंडली का आठवा भाव और शनि दोनों ही बड़े महत्वपूर्ण
और चर्चित विषय हैं कुंडली में अष्टम भाव को मृत्यु, कारागार, बन्धन, दुर्घटना, बड़े संकट, आकस्मिक दुर्घटनाएं, शरीर कष्ट आदि का कारक होने से दुःख भाव या पाप भाव के रूप में देखा जाता है तो वहीँ शनि को - कर्म, आजीविका, जनता, सेवक, नौकरी, अनुशाशन, दूरदृष्टि, प्राचीन-वस्तु, लोहा, स्टील, कोयला, पेट्रोल, पेट्रोलयम प्रोडक्ट, मशीन, औजार, तपश्या और अध्यात्म का करक मन गया है। स्वास्थ की दृष्टि से शनि हमारे पाचन-तंत्र, हड्डियों के जोड़, बाल, नाखून,और दांतों को नियंत्रित करता है। ..............

कुंडली में अष्टम भाव को पाप या दुःख भाव होने से अष्टम भाव में किसी भी ग्रह का होना अच्छा नहीं माना गया है इसमें भी विशेषकर पाप या उग्र ग्रह का अष्टम में होना अधिक समस्या कारक माना गया है कुंडली में कोई भी ग्रह अष्टम भाव में होने से वह ग्रह पीड़ित और कमजोर स्थिति में आ जाता है साथ ही स्वास्थ की दृष्टि से भी  बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं अब विशेष रूप से शनि की बात करें तो शनि का कुंडली के अष्टम भाव में होना निश्चित रूप से अच्छा नहीं है इससे जीवन में बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं शनि के अष्टम भाव में होने को लेकर एक सकारात्मक बात यह तो है के कुंडली में अष्टम का शनि व्यक्ति को दीर्घायु देता है यदि कुंडली में अन्य बहुत नकारात्मक योग न बने हुए हों तो अष्टम भाव में स्थित शनि व्यक्ति की आयु को दीर्घ कर देता है पर इसके अलावा शनि अष्टम में होने से बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

 यदि शनि कुंडली के आठवे भाव में स्थित हो तो ऐसे में
व्यक्ति को पाचन तन्त्र और पेट से जुडी समस्याएं लगी ही रहती हैं इसके अलावा जोड़ो का दर्द, दाँतों तथा नाखूनों से जुडी समस्याएं भी अक्सर परेशान करती हैं, शनि का कुंडली के अष्टम भाव में होना व्यक्ति की आजीविका या करियर को बाधित करता है करियर को लेकर संघर्ष की स्थिति बनी रहती है करियर में स्थिरता नहीं आ पाती और मेहनत करने पर भी व्यक्ति को अपनी प्रोफेशनल लाइफ में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते जो लोग राजनैतिक क्षेत्र में आगे जान चाहते हैं उनके लिए भी अष्टम भाव का शनि संघर्ष उत्पन्न करता है वैसे राजनीति और सत्ता का सीधा कारक सूर्य को माना गया है पर शनि जनता और जनसमर्थन का कारक होता है इस कारण राजनैतिक सफलता में शनि की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है कुंडली में शनि अष्टम भाव में होने से व्यक्ति को जनता का अच्छा सहयोग और जनसमर्थन नहीं मिल पाता जिससे व्यक्ति सीधे चुनावी राजनीती में सफल नहीं हो पाता या बहुत संघर्ष का सामना करना पड़ता है शनि अष्टम में होने से व्यक्ति को अपने कार्यों के लिए अच्छे एम्पलॉयज या सर्वेंट नहीं मिल पाते यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बिजनेस या व्यापार में सफलता के अच्छे योग हों पर शनि कुंडली के अष्टम भाव में हो तो ऐसे में लोहा, स्टील, काँच, पुर्जे, पेंट्स, केमिकल प्रोडक्ट्स, पेट्रोल आदि का कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि ये सभी वस्तुएं शनि के ही अंतर्गत आती हैं और अष्टम में शनि होने पर इन क्षेत्रों में किया गया इन्वेस्टमेंट लाभदायक नहीं होता हानि की अधिक संभावनाएं रहती हैं यदि शनि कुंडली के अष्टम भाव में हो तो ऐसे में शनि दशा स्वास्थ कष्ट और संघर्ष उत्पन्न करने वाली होती है।

अष्टम में शनि होना किसी भी स्थिति में शुभ तो नहीं है पर यदि यहाँ स्व उच्च राशि में हो या बृहस्पति से दृष्ट हो तो समस्याएं बड़ा रूप नहीं लेती और उनका समाधान होता रहता है।

यदि शनि कुंडली के अष्टम भाव में होने से ये समस्याएं उत्पन्न हो रही हों तो निम्नलिखित उपाय करना लाभदायक होगा।.........

1. ॐ शम शनैश्चराय नमः का जप करें।

2. साबुत उड़द का दान करें।

3. शनिवार को पीपल पर सरसों के तेल का दिया जलायें।

Vastu Tips for Bedroom

*_Vastu Tips for Bedroom_*

“Vastu Shatra is the Indian cosmic science of architecture and it helps create a harmonious environment to set up one’s life for wealth, happiness and harmony. It’s all about creating a rhythm and balance to ensure a better life,”


Here’s how Vastu can help you optimise your bedroom as a place of rest, relaxation and rejuvenation.


*Bedroom direction*

“Ideally, the bedroom at south-west brings good health and prosperity for the home owner and enhances longevity. Avoid a bedroom in the north-east or south-east zone of the house. In the south-east, it may result in quarrels among the couple. The bedroom in the north-east may cause a health issue. The children‘s bedroom is best in the east or north-west zone of the house.


*Bed placement*

According to Vastu, your bed should be placed with the head towards the east or south.

The bed in the guest room can have its head towards the west. Also, it is best if your bed is made of wood. Metal can create negative vibrations.  To encourage togetherness, a couple should sleep on one single mattress and not join two separate mattresses.


*Mirror placement*

Careful where you fix your dressing table, assuming it has a mirror.

According to Vastu, avoid a mirror in front of your bed as the reflection of one’s sleeping body in a mirror is inauspicious.

If the mirror is placed in front of the bed, the person whose picture reflects in the mirror tends to get Short tempered, selfish and agressive.


*What colour paint*

Colours don’t just brighten our world; they also affect our mood, health and happiness.

Ideally, paint your bedroom off-white, baby pink or cream. Avoid dark colours. Dark colors increases stress and anger and also symbolises revenge and jealousy. Couples bed room should contain energies of love. Romance and should have calm and peacefull aura. The room should be well-organised. Keep your bedroom clean and clutter-free


*Toss them out/Things to aviod*

Also, do not keep things that have not been used for years such as clocks, watches, electronic equipment, broken artefacts or machinery, in your bedroom.
Clutter disturbs the energy flow and creates disharmony in the house, she explains. “In the bedroom, avoid water fountains, aquariums and paintings of war scenes and single women.”
If no place to adjust such stuffs you can always creat a wall or door between storage and bedroom. The door will block the negative energies to an extent


*Aromatherapy*

Smells and aromas can be very powerful and can uplift the mood and spirit. So, make sure your room smells fresh; keep aromatic candles, diffusers or potpourri in your bedroom. Use refreshing jasmine or lavender fragrances.

For issues like lack of love, conceiving , attraction, intimacy and understanding  keep two rose quartz hearts in the south-west corner of your bedroom. It will add happy energy to your life. This will also bring romantic feelings and Love and bond between the couples

*More Tips*
✍🏻Avoid a round or oval-shaped bed.
✍🏻Bed should always have a head rest.
✍🏻Never keep a window open behind your head when sleeping.
✍🏻Avoid a round ceiling above the bed.
✍🏻Never sleep under an overhead beam.
✍🏻Refrain from hanging photographs of deceased ancestors on the wall.
✍🏻Do not place the temple in the bedroom.
✍🏻Remove all broken or chipped items.
✍🏻Keep door of attached toilet shut when not in use.
✍🏻Mop the floor at least once a week with sea salt added to the water as it removes negative energy.

सातमुखी रुद्राक्ष



सातमुखी रुद्राक्ष

सातमुखी रुद्राक्ष को सप्त माता एवं सप्त ऋषियों का प्रतीक माना जाता है। इस रुद्राक्ष में सप्त ऋषियों का प्रतीक माना जाता है। इस रुद्राक्ष में सप्तमाताओं की शक्तियाँ निहित होती है। सातमुखी रुद्राक्ष को धारण करके अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त करके सुखमय एवं समृद्धिशाली जीवन गुजारा जा सकता है।

1- सातमुखी रुद्राक्ष पहनने से प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है तथा यश व कीर्ति में वृद्धि होती है।

2- सातमुखी रुद्राक्ष धारण करने से आर्थिक स्थिति में मजबूती आती है, एवं मन शान्त रहता है।

3- व्यवसायी वर्ग के लिए सप्तमुखी रुद्राक्ष धारण करना अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।

4- सातमुखी रुद्राक्ष पहनने से गणेश व लक्ष्मी जी की विशेष कृपा बनी रहती है, जिसके कारण घर व परिवार में सुख व समृद्धि बनी रहती है।

5- नौकरी वाले जातक यदि सातमुखी रुद्राक्ष धारण करते है, तो उनके कैरियर में प्रगति होती है तथा उनका बॉस काफी प्रभावित रहता है।

6- स्नायु तन्त्र से सम्बन्धित रोगों में सातमुखी रुद्राक्ष धारण करने से लाभ मिलता है।

7- सातमुखी रुद्राक्ष को पहनने से शनि ग्रह से सम्बन्धित दोषों जैसे साढ़ेसाती, ढैय्या आदि का शमन होता है।

धारण विधिः- किसी भी मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक तीनो दिन गंगाजल में केसर दूध मिलाकर निम्न मन्त्र से- ''ऊँ ऐं हीं श्री क्लीं हूं सौः जगत्प्रसूतये नमः'' से सातमुखी रुद्राक्ष पर जल छिड़के। इसके बाद गंध अक्षत, दूर्वा, पुष्प, बेल-पत्र, धतूरा चढ़ाकर विधिवत् पूजन करें। तत्पश्चात् निम्न मन्त्र से ''ऊँ ऐं हीं श्रीं क्लीं हूं सौः जगत्प्रसूयते'' से 108 बार हवन करना चाहिए। और 7 बार हवन-अग्नि की परिक्रमा करके सातमुखी रुद्राक्ष को गले या भुजा में धारण करें।


बुध केतु युति

बुध केतु युति
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बुध जो बुद्धिमत्ता का ग्रह है
वाणी संवाद लेखन, तर्क शक्ति, और व्यवसायिक चातुर्य भी बुध के ही अधिपत्य में आते है। व्यक्ति अगर बुद्धि चातुर्य के साथ साथ अच्छा लेखक है , बहुत अच्छा वक्ता है और साथ ही उसकी भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ है , तो वो अपनी इन क्षमताओं का उपयोग अच्छे व्यक्तिगत और व्यवसायिक सम्बन्ध बनाने में कर सकता है। बुध प्रधान व्यक्ति हाजिर जवाब होने के साथ साथ अच्छा मित्र भी होता है क्योंकि वो सम्बन्धो को निभाना जानता है।
केतु एक विभाजित करने वाला ग्रह , एक संत की तरह जो अकेले रहता है , सुख सुविधाओं और भोग -विलास से पूर्णतः दूर , रिश्तों और उनमे संवाद की जंहा कोई आवश्यकता नहीं।
केतु का स्वभाव बुध से पूर्णतः विपरीत है , केतु जब भी किसी ग्रह के साथ होता है तो उसे उसके फल देने से भटकाता है ,बुध का प्रमुख फल बुद्दि (मति) प्रदान करना है , इसलिए बुध – केतु योग को मति भ्रम योग कहते है। केतु और बुध की युति का भी फल इसी प्रकार बुद्धि को भ्रमित करने वाला होता है , हालांकि किस राशि और कुंडली के किस भाव में ये योग बना है इस बात पर भी फल निर्भर करता है।
इस योग में बुध के प्रभाव दूषित हो जाते है जैसे बुध की प्रबल होने की परिस्थिति में कोई व्यक्ति बहुत अच्छा वक्ता है तो केतु के साथ आने की परिस्थिति में अर्थ हीन , डींगे हांकने वाला और आवश्यकता से अधिक बोलने वाला हो सकता है , कई बार उसके व्यक्तव्य उसी के लिए परेशानी खड़ी करने वाले हो सकते है (वाणी पर नियंत्रण होना) , यही हाल उसकी वाणिज्यिक योजनाओं का हो सकता है , उसके समीकरण और योजनाएं सत्य से परे हो सकते है जो उसके लिए परेशानी का कारन बन सकते है, या कहे बुद्धि की भ्रमित होने की परिस्थिति का निर्मित होना । उदहारण के लिए आर्थिक परिस्थिति को जांचे बिना व्यापारिक योजना बनाना और आर्थिक स्थिति का ध्वस्त होना । विचारधारा का संकुचित होना पर सोचा का अत्यधिक संवेदनशील होना , हमेशा अज्ञात भय रहना और वाणी पर नियंत्रण न होना
बुध केतु योग में बुध बहुत कमजोर हो तो व्यक्ति कम बोलने वाला , संकोची और अपने पक्ष या मन की बात को स्पष्ट रूप से नहीं रख पाने वाला होगा। ऐसे लोग बड़े एकाकी होते है , आपसी रिश्तों में संवाद की कमी के चलते और संकोच के कारन अपनी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं कर पाते साथ ही व्यापारिक का क्रियान्वयन भी नहीं हो पता। रिश्तों में कई बार धोखा होने की सम्भावना बनी रहती है , विशेषकर व्यवसायिक।
बुध केतु युति में आर्थिक उतार चढाव बहुत बार देखा गया है , जिसका कारण बिना परिस्थितियों को समझे निवेश या खर्च करना होता है और व्यापारिक दृष्टिकोण का आभाव। कई बार ये लोग मीत व्ययी और कई बार अति व्ययी हो जाते है , बहुत सी परिस्थितियों में जब बुध अत्यन्त ही कमजोर और दुःस्थान में हो तब ये योग गम्भीर एकाकीपन गम्भीर मानसिक अवसाद जेल योग (या लम्बे समय तक हास्पिटल /सुधार ग्रह तक में रहने की नौबत ला देता है। इस योग की वजह से व्यक्ति दूसरों की बात और सलाह को स्वीकार करने या समझने की परिस्थिति से अत्यन्त दूर होता है जो उसकी आर्थिक परेशानी और एकाकीपन का कारन भी बनता है।
इस दुर्योग से बचने के बहुत से तरीके हो सकते है परन्तु मेरी सोच में सबसे सटीक उपाय है , अधिक से अधिक सामाजिक होने की चेष्टा करना और दूसरों की सलाह ले कर आगे बढ़ना , साथ ही धन के निवेश या कोई भी योजना बनते समय सतर्क रहना।
बुद्धि के देवता भगवान श्री गणेश की आराधना इस दुर्योग से बचाने का कार्य करती है, अतः विघ्न हर्ता बुद्धि के दाता श्रीगणेश की आराधना करते रहे।

केतु के नक्षत्र में जन्में बच्चे होते हैं स्वभाव के जिद्दी पढ़ाई में कमजोर, ऐसे पता लगाकर करें ये उपाय

केतु के नक्षत्र में जन्में बच्चे होते हैं स्वभाव के जिद्दी पढ़ाई में कमजोर, ऐसे पता लगाकर करें ये उपाय

देवताओं में अमृत वितरण के समय भगवान विष्णु ने राहु का सर धड़ से अलग कर दिया,सर का भाग राहु और धड़ का भाग केतु कहलाया,अमृत पीने के कारण ये दोनो भाग अमर हो गये तथा एक दूसरे से अलग होकर भ्रमण करने लग,राहु में धड़ के नीचे के भाग हाथ पैर पेट हृदय सम्बंधी कमियां है।
जबकि सर में स्थित इंद्रियां आंख,कान,नाक वाणी का बल विशेष रूप से है,वही केतु में निचले हिस्सों की इंद्रियों का बल विशेष है जबकि सर की इंद्रियों आंख कान वाणी आदि की कमजोरी है,केतु को बच्चो का कारक माना गया है,खासकर छोटे बच्चो पर केतु का खास प्रभाव होता है,
*मूल नक्षत्र और केतु*- बच्चो के जन्म के समय मूल नक्षत्र को अशुभ माना गया है,बुध के तीन नक्षत्र अश्लेशा,ज्येष्ठा,रेवती तथा केतु के नक्षत्र अश्विनी,मघा और मूल को मूल का नक्षत्र माना जाता है इसमे केतु के तीन नक्षत्र को विशेष हानिकारक माना जाता है इन नक्षत्रों में बच्चो का जन्म माता पिता के लिये हानिकारक माना जाता है,इसकी वैदिक रीति द्वारा ग्रह शांति कराई जाती है.
*सभी पालकगणों के लिये ध्यान देने वाली बातें*
माह में तीन दिन केतु के नक्षत्र होते है जिन बच्चो का जन्म मूल यानी अस्लेषा,ज्येष्ठा,रेवती,अश्विनी
मघा,मूल नक्षत्र में जन्म हुआ हो उन्हे अपने बच्चो को माह के तीन दिन आने वाले केतु के नक्षत्र में विशेष ध्यान देना चाहिये,उनके नाम से उस दिन गणेशजी की खास पूजा और लड्डु का वितरण करना चाहिये जिससे बच्चो पर आने वाला संकट टल जाता है.
*जिन मां के बच्चे ऊपर दिये गये मूल के छह नक्षत्रों में जन्मे है उन्हे गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिये.
*मूल नक्षत्र केतु के विषय में*
केतु ग्रह के देवता भगवान गणेश होते है.
*7अंक पर इसका प्रभाव होता है.
*केतु ऊँचाई से नीचे गिरने का कारक भी होता है.
*अचानक मानसिक दुख और अलगाव का कारक भी होता है.
*मानसिक पागलपन,विचित्र व्यवहार केतु ग्रह के कारण ही होता है.
*केतु सभी बच्चो का कारक होता है.
*केतु आकस्मिक घटनाओं का कारक भी होता है.
*विद्या बुद्धि शिक्षा,समझ के लिये भगवान गणेश की कृपा अत्यंत आवश्यक होती है.
*प्राचीन काल से बच्चो के शुभ भविष्य तथा विद्या में आने वाली रुकावटों के माता चतुर्थी का व्रत करती थी और आज भी करती है.
*अच्छी शिक्षा के लिये सभी विद्यार्थी गणेशजी का स्मरण करते है,और सभी शिक्षण संसथाओ को यह करना चाहिये.

अष्टमुखी रुद्राक्ष



अष्टमुखी रुद्राक्ष



यह रूद्राक्ष अष्ट देवियों का स्वरुप माना जाता है। इसे धारण करने से आठ देवियों की विशेष कृपा बनी रहती है। आठमुखी रुद्र्राक्ष पहनने से विभिन्न प्रकार के संकटों को दूर किया जा सकता है।

1-जिन जातकों के कोर्ट- कचहरी में मुकदमें चल रहे है ऐसे लोगों को आठमुखी रुद्राक्ष धारण करने से शीघ्र ही विजय मिलती है।

2- आठमुखी रुद्राक्ष शत्रुओं का नाश करने में काफी सक्षम होता है। अतः जो लोग अपने शत्रुओं से परेशान रहते है, उन्हें यह रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए।

3-साहस, आत्मविश्वास और पराक्रम से भरपूर आठमुखी रुद्राक्ष को उन लोगों को अवश्य पहनना चाहिए जो मनुष्य शारीरिक व मानसिक रुप से कमजोर रहते है।

4- जिस परिवार में अकाल मृत्यु या दुर्घटनाएं प्रायः होती रहती है। उस घर में आठमुखी रुद्राक्ष की विधिवत् पूजा करने से लाभ होता है।

5- जिन जातकों को कमर या रीढ़ की हड्डी से सम्बन्धित कोई समस्या बनी रहती है, उन्हें रेशमी धागे में आठमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से लाभ मिलता है।

6-यह रुद्राक्ष प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल बनाने में काफी प्रभावशाली साबित होता है।

7-राहु का दुष्प्रभाव दूर करने के लिए आठमुखी रुद्राक्ष को गले या भुजा में धारण करने से राहु का दोष समाप्त हो जाता है।

धारण विधिः-किसी मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से लेकर पूर्णमासी तक विधिवत् पूजन करना चाहिए। हल्दी के चूर्ण को घोलकर अनार की कलम में ताम्रपत्र पर षणकोण यन्त्र बनाकर उसके मध्य में इस मन्त्र "श्रीं गलौं फट् स्वाहा" को लिखे । इसके बाद "ऊँ सर्वशक्ति कमलासनाय नमः" मन्त्र को पढ़ते हुए पुष्प अक्षत रखकर गंगाजल से परिमार्जित अष्ठमुखी रुद्राक्ष को समर्पित करे ।
गंगाजल में केसर, गोरोचन व दूध मिलाकर निम्न मन्त्र ऊँ गं गणधिपते नमः से रुद्राक्ष का अभिषेक करें।

हवन मन्त्र -ऊँ श्रीं ग्लौं फट्- स्वाहा
-ऊँ हूं ग्लौं फट्- स्वाहा
-ऊँ हीं ग्लौं फट्- स्वाहा
-ऊँ क्लीं ग्लौं फट्- स्वाहा
-ऊँ स्त्रीं ग्लौं फट्- स्वाहा
-ऊँ गं ग्लौं फट्- स्वाहा
-ऊँ ग्लौं फट्- स्वाहा

उपरोक्त सभी मन्त्रों से 5-5 बार स्वाहा बोलकर हवन करना चाहिए। तत्पश्चात् हवन अग्नि की 7 बार परिक्रमा करके रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।



कुंडली के अष्टम भाव में स्थित सूर्य का फल

कुंडली के अष्टम भाव में स्थित सूर्य का फल:-
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सूर्य का अधिकार सम्पूर्ण सृष्टि सहित ब्रह्माण्ड पर है,सूर्य की गति नियत है वह न तो कभी आगे है और न ही कभी पीछे है गति के अनुसार समय पर उदय होना है और समय पर ही अस्त होना है किसी प्रकार का बदलाव सृष्टि जगत में हलचल मचा सकता है। सूर्य उजाले का राजा है शक्ति का दाता है सूर्य की शक्ति से ही जगत का विकास सम्भव है। सूर्य की शक्ति ग्रहण की क्रिया जगत के विकास के लिये ही है वह गंदगी से भी शक्ति को ग्रहण कर सकता है और स्वच्छ जलवायु से भी शक्ति को प्राप्त कर सकता है इसलिये कहा भी गया है कि सूर्य समर्थ है और समर्थ को कोई दोष नही दे सकता है। सूर्य आग गंगाजी इन तीनो के लिये कोई भी पवित्र अपवित्र कारक मायना नही रखता है। प्रस्तुत कुंडली तुला लगन की है सूर्य ग्यारहवे भाव का मालिक है और लाभ तथा बडे भाई सहित मित्रो का कारक भी है शुक्र के घर मे स्थापित होने के कारण अहम का भी दाता बन जाता है बुध जो तुला लगन के लिये भाग्य और व्यय का कारक होने के कारण तथा वक्री होने के कारण सूर्य के साथ अपनी युति से न तो अस्त हो सकता है और न ही अपनी वास्तविकता को प्रदर्शित कर सकता है यह जो है उसका उल्टा प्रभाव देने के लिये माना जा सकता है कोई भी किसी प्रकार का साधन विद्या और धन आदि की बात मे यह बुध अपनी युति से उल्टी गिनती से अपना कार्य सफ़ल करने के लिये अपनी योग्यता को धारण करता है। सूर्य पर जब गुरु की द्रिष्टि मिलती है तो सूर्य जीवात्मा का कारक बन जाता है गुरु अगर जीव है तो सूर्य आत्मा है। इस कुंडली मे जीवात्मा का योग है और जातक के लिये ईश्वर अंश से जन्म लेना माना जा सकता है। लेकिन गुरु का बारहवे भाव मे होने से तथा बारहवे भाव का कारक राहु होने से गुरु के अन्दर एक प्रकार का अनौखा उद्वेग पैदा हो जाता है जो जीव जगत मे अपनी पहिचान करने के लिये उन्ही कारको का सहारा लेता है जो कारक सेवा और धन के साथ गणित विद्या मे माहिर होते है आंकडों के जाल की भाषा रचने का प्रभाव इस स्थान के गुरु को मिल जाता है वही प्रभाव गुरु अपनी वृहद नजर से गुरु और बुध को प्रदान करने लगता है। जातक के अन्दर धन सम्बन्धी विदेशी व्यापार सम्बन्धी एक प्रकार का गुण भर देता है जिसे प्रयोग करने के बाद जातक अपने जीवन मे सफ़लता प्राप्त करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता चला जाता है।
सूर्य आसमान का राजा है अगर अष्टम भाव मे चला जाता है तो वह पाताल मे उजाला करने मे असमर्थ हो जाता है लेकिन वही सूर्य अगर आसमानी गुरु से देखा जा रहा है तो वह गुरु के बल से असीमित शक्ति को प्राप्त करने के बाद पाताल मे ग्यान रूपी उजाला फ़ैलाने के लिये अपनी शक्ति को पूरा करता है। गुरु जो जातक के रूप मे होता है अपने जन्म स्थान को त्याग कर घर से दक्षिण पूर्व दिशा मे जाकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करता है और धन सम्बन्धी सेवा सम्बन्धी धर्म सम्बन्धी क्रियाओं को पूरा करने के लिये अपनी अन्दरूनी चमक को जाहिर करता है। इस गुरु की नवी नजर सूर्य पर होने से और बुध वक्री के साथ युति बनाने से शेयर कमोडिटी बाजार भाव के उतार चढाव तथा उल्टी क्रिया जैसे जब जनता के अन्दर खरीददारी की ललक बनती है तो जातक के द्वारा बिक्री करने की गति पैदा होती है और जब जनता के अन्दर बिक्री की गति बनती है तो जातक के द्वारा खरीददारी की गति बनती है। इस प्रकार से जातक गुरु केतु की बुद्धि से अपनी बुद्धि को उल्टी रीति से घुमाकर जहां भी सेवा वाले काम करता है उसे फ़ायदा निरन्तर पहुंचाने की क्रिया को पूरा करता है। दूसरे भाव का सूर्य सोना होता है तो अष्टम भाव का सूर्य लोहे के रूप मे माना जाता है खनिज सम्पत्ति को जानना और उसकी क्रिया को पूरा करना भी उसे आता है साथ ही जातक के अन्दर चिकित्सा सम्बन्धी गुण भी होते है और वह अपनी क्रिया शक्ति के द्वारा उन्ही कारको का काम करता है जो कारक पोषक चीजो से अपनी युति प्रदान करते है। मंगल के दो रूप होते है अगर मंगल दूसरे छठे और दसवे भाव मे मार्गी होता है तो जातक के अन्दर धन के प्रति उत्तेजना देता है जो उत्तेजना मे खर्च होने के कारण जातक धन के लिये परेशान होता है लेकिन वही मन्गल अगर दूसरे भाव मे वक्री होता है तो जातक के लिये यह मंगल दिमागी रूप से धन की विवेचना करना और ताकत की बजाय तकनीकी बुद्धि से धन के प्रति भोजन के प्रति आहार विज्ञान के प्रति अपनी परिभाषा को प्रकट करता है। सूर्य का जब वक्री मंगल से योगात्मक प्रभाव सामने आता है तो जातक के पिता के बडे भाई या जातक के पिता के द्वारा सोने चांदी के कार्य दूसरो से करवाकर फ़ायदा अपने अनुसार लिया जाता है लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब जातक के पिता के छोटे भाई जो उम्र में कम से कम ढाई साल छोटे होते है वह अपनी स्थिति से सब कुछ बरबाद करने के बाद कई प्रकार के व्यापारिक क कारण पैदा कर देते है और जातक के पिता का कार्य उस प्रकार से नही चल पाता है जैसे कि चलना चाहिये।
जातक की माता भी तीन बहिने होती है एक बहिन यात्रा वाले कार्यों से जुडे परिवार मे होती है दूसरी बहिन धन के लेनदेन वाले कार्यों से जुडे परिवार मे होती है और खुद जातक की माता कई प्रकार के जायदाद और रहने वाले स्थान के बदलाव के लिये अपनी शक्ति को प्रदर्शित करती है। इसी प्रकार से जातक के दादा भी अपने स्थान से बाहर रहने के लिये अपनी गति को प्रदान करते है और तीन भाई होकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करते है लेकिन उनका लालन पालन अपनी ननिहाल मे हुआ होता है उनके समय मे उनकी ननिहाल की स्थित भी रजवाडे के नामी लोगो के नाम से जानी जाती है और धन आदि के लेन देन मे उनका नाम होता है। जातक के एक दादा के दत्तक संतान के प्रति भी जाना जा सकता है या तो वह ननिहाल मे जायदाद के लिये या पत्नी खानदान मे अपनी स्थिति को पैदा करने के लिये अपनी स्थिति को बताते है। जातक के माता खानदान मे भी जायदाद का मिलना या इसी प्रकार का योगात्मक प्रभाव का होना माना जा सकता है।

नवग्रह के दोष दूर करने के अचूक उपाय

नवग्रह के दोष दूर करने के अचूक उपाय
ज्योतिष की मानें तो हर कोई किसी न किसी ग्रह दोष से ग्रस्त रहता है. कई बार उसे पता नहीं चलता कि किस वजह से उसकी जिंदगी में तूफान थमने का नाम नहीं ले रही. किस वजह से जीना मुहाल हो रहा है. तो क्या हैं नवग्रह दोष के लक्षण और उससे निजात पाने के उपाय. अगर बिना बात घर में कलह क्लेश हो, हर काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं, शत्रु अकारण परेशान कर रहे हों , सेहत नहीं दे रही साथ, मान सम्मान का हो रहा हो नाश, बच्चे की बुद्धि का नहीं हो रहा विकास तो आप नवग्रह दोषों से ग्रस्त हैं. फिर तो आप जान लीजिए वो 9 उपाय जो खत्म करेगा 9 ग्रहों के दोष. ज्योतिषाचार्य राजकुमार शास्त्री ने हर ग्रह के बारे में विस्तार से बताया है.
1. सूर्य दोष के लक्षण:- असाध्य रोगों के कारण परेशानी, सिरदर्द, बुखार, नेत्र संबंधी कष्ट, सरकार के कर विभाग से परेशानी, नौकरी में बाधा
उपाय:- भगवान विष्णु की आराधना करें [ ऊं नमो भगवते नारायणाय ] मंत्र का 1 माला लाल चंदन की माला से जाप करें गुड़ खाकर पानी पीकर कार्य आरंभ करें बहते जल में 250 ग्राम गुड़ प्रवाहित करें सवा पांच रत्ती का माणिक तांबे की अंगूठी में बनवायें रविवार को सूर्योंदय के समय दाएं हाथ की मध्यमा अंगूली में धारण करें मकान के दक्षिण दिशा के कमरे में अंधेरा रखें पशु-पक्षियों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करें घर में मां, दादी का आशीर्वाद जरूर लें.
2. चंद्रमा दोष के लक्षण:- जुखाम, पेट की बीमारियों से परेशानी, घर में असमय पशुओं की मत्यु की आशंका, अकारण शत्रुओं का बढ़ना, धन का हानि
उपाय:- भगवान शिव की आराधना करें [ ऊं नम: शिवाय ] मंत्र का रूद्राक्ष की माला से 11 माला जाप करें बड़े बुजुर्गों, ब्रह्मणों, गुरूओं का आशीर्वाद लें सोमवार को सफेद कपड़े में मिश्री बांधकर जल में प्रवाहित करें चांदी की अंगूठी में चार रत्ती का मोती सोमवार को जाएं हाथ अनामिका में धारण करें शीशे की गिलास में दूध, पानी पीने से परेहज करें 28 वर्ष के बाद विवाह का निर्णय लें लाल रंग का रूमाल हमेशा जेब में रखें माता-पिता की सेवा से विशेष लाभ.
3. मंगल दोष के लक्षण:- घर में चोरी होने का डर, घर-परिवार में लड़ाई-झगड़े की आशंका, भाई के साथ संबंधों में अनबन, दांपत्य जीवन में तनाव, अकाल मृत्यु की आशंका.
उपाय: भगवान हनुमान की आराधना करें [ ऊं हं हनुमते रूद्रात्मकाय हुं फट कपिभ्यो नम: ] का 1 माला जाप करें हनुमान चालीसा या बजरंगबाण का रोज पाठ करें त्रिधातु की अंगुठी बाएं हाथ की अनामिका अंगूली में धारण करें 400 ग्राम चावल दूध से धोकर 14 दिन तक पिवत्र जल में प्रवाहित करें घर में नीम का पौधा लगायें बहन, बेटी, मौसी, बुआ, साली को मीठा खिलायें बहन, बुआ को कपड़े भेंट न दें तंदूर की बनी रोटी कुत्तों को खिलायें.
4. बुध दोष के लक्षण: स्वभाव में चिड़चिड़ापन, जुए-सट्टे के कारण धन की बड़ी हानि, दांत से जुड़े रोगों के कारण परेशानी सिर दर्द. अधिक तनाव की स्थिति.
उपाय: मां दुर्गा की आराधना करें ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का 5 माला जाप करें देवी के सामने अखंड घी का दीया जलायें घर की पूर्व दिशा में लाल झंडा लगायें सोने के आभूषण धारण करें, हरे रंग से परहेज करें खाली बर्तनों को ढ़ककर न रखें चौड़े पत्ते वाले पौधे घर में लगायें, मुख्य द्वार पंचपल्लव का तोरण लगायें 100 ग्रíम चावल, चने की दाल बहते जल में प्रवाहित करें.
5. गुरू दोष के लक्षण:- सोने की हानि, चोरी की आशंका उच्च शिक्षा की राह में बाधाएं झूठे आरोप के कारण मान-सम्मान में कमी पिता को हानि होने की आशंका.
उपाय:- परमपिता ब्रह्मा की आराधना करें बहते पानी में बादाम, तेल, नारियल प्रवाहित करें माथे पर केसर का तिलक लगायें सोने की अंगूठी में सवा पांच रत्ती का पुखराज गुरूवार को दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें पूजा स्थल की नियमित रूप से सफाई करें पीपल के पेड़ पर 7 बार पीला धागा लेपटकर जल दें 600 ग्राम पीले चने मंदिर में दान दें जुए-सट्टे की लत न पालें, मांसाहार-मद्यपान से परहेज करें कारोबार में भाई का साथ लाभकारी संबंध मधुर बनायें रखें.
शुक्र दोष के लक्षण:- बिना किसी बीमारी के अंगूठे, त्वचा संबंधी रोगों से परेशानी, राजनीति के क्षेत्र में हानि, प्रेम व दापंत्य संबंधों में अलगाव जीवनसाथी के स्वास्थ्य को लेकर तनाव.
उपाय: मां लक्ष्मी की आराधना करें. [ ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसिद प्रसिद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम: ] रोज रात में मंत्र का 1 माला जाप करें मां लक्ष्मी को कमल के पुष्पों की माला चढ़ायें मंदिर में आरती पूजा के लिए गाय का घी दान करें 2 किलो आलू में हल्दी या केसर लगाकर गाय को खिलायें चांदी या मिटटी के बर्तन में शहद भरकर घर की छत पर दबा दें आडू की गुटली में सूरमा सूरमा भरकर घास वाले स्थान पर दबा दें शुक्रवार के दिन मंदिर में कांसे के बर्तन का दान करें लाल रंग के गाय की सेवा करें, 800 ग्राम जिमीकंद मंदिर में दान करें.
शनि दोष के लक्षण: पैतृक संपत्ति की हानि, हमेशा बीमारी से परेशानी मुकदमे के कारण परेशानी बनते हुए काम का बिगड़ जाना.
उपाय: भगवान भैरव की आराधना करें [ ऊं प्रां प्रीं प्रौं शं शनिश्चराय नम: ] मंत्र का 1 माला जाप करें शनिदेव का 1 किलो सरसों के तेल से अभिषेक करें सिर पर काला तेल लगाने से परहेज करें 43 दिन तक लगातार. शनि मंदिर में जाकर नीले पुष्प चढ़ायें कौवे या सांप को दूध, चावल खिलायें किसी बर्तन में तेल भरकर अपना चेहरा देखें, बर्तन को जमीन में दबा दें शनिवार 800 ग्राम दूध, उड़द जल में प्रवाहित करें जल में दूध मिलाकर लकड़ी या पत्थर पर बैठकर स्नान करें घर की छत पर साफ-सफाई का ध्यान रखें 12 नेत्रहीन लोगों को भोजन करायें.
राहु दोष के लक्षण: मोटापेके कारण परेशानी अचानक दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े की आशंका हर तरह के व्यापार में घाटा.
उपाय: मां सरस्वती की आराधना करें [ ऊं ऐं सरस्वत्यै नम: ] मंत्र का 1 माला जाप करें तांबेके बर्तन में गुड़, गेहूं भरकर बहते जल में प्रवाहित करें माता से संबंध मधुर रखें 400 ग्राम धनिया, बादाम जल में प्रवाहित करें घर की दहलीज के नीचे चांदी का पत्ता लगायें सीढ़ियों के नीचे रसोईघर का निर्माण न करवायें रात में पत्नी के सिर के नीचे 5 मूली रखें, सुबह मंदिर में दान कर दें मां सरस्वती के चरणों में लगातार 6 दिन तक नीले पुष्प की माला चढ़ायें चांदी की गोली हमेशा जेब में रखें लहसुन, प्याज, मसूर के सेवन से परहेज करें.
केतु दोष के लक्षण: बुरी संगत के कारण धन का हानि जोड़ों के दर्द से परेशानी संतान का भाग्योदय न होना, स्वास्थ्य के कारण तनाव.
उपाय: भगवान गणेश की आराधना करें [ ऊं गं गणपतये नम:] मंत्र का 1 माला जाप करें गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें कुंवारी कन्याओं का पूजन करें, पत्नी का अपमान न करें घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ तांबे की कील लगायें पीले कपड़े में सोना, गेहूं बांधकर कुल पुरोहित को दान करें दूध, चावल, मसूर की दाल का दान करें बाएं हाथ की अंगुली में सोना पहनने से लाभ 43 दिन तक मंदिर में लगातार केला दान करें काले व सफेद तिल बहते जल में प्रवाहित करें.आजतक ब्यूरो.
राहु की महादशा में नवग्रहों की अंतर्दशाओं का फल एवं उपाय अशोक शर्मा राहु मूलतः छाया ग्रह है, फिर भी उसे एक पूर्ण ग्रह के समान ही माना जाता है। यह आद्र्रा, स्वाति एवं शतभिषा नक्षत्र का स्वामी है। राहु की दृष्टि कुंडली के पंचम, सप्तम और नवम भाव पर पड़ती है। जिन भावों पर राहु की दृष्टि का प्रभाव पड़ता है, वे राहु की महादशा में अवश्य प्रभावित होते हैं। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है।
राहु में राहु की अंतर्दशा का काल 2 वर्ष 8 माह और 12 दिन का होता है। इस अवधि में राहु से प्रभावित जातक को अपमान और बदनामी का सामना करना पड़ सकता है। विष और जल के कारण पीड़ा हो सकती है। विषाक्त भोजन, से स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। इसके अतिरिक्त अपच, सर्पदंश, परस्त्री या पर पुरुष गमन की आशंका भी इस अवधि में बनी रहती है। अशुभ राहु की इस अवधि में जातक के किसी प्रिय से वियोग, समाज में अपयश, निंदा आदि की संभावना भी रहती है। किसी दुष्ट व्यक्ति के कारण उस परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है।
उपाय: भगवान शिव के रौद्र अवतार भगवान भैरव के मंदिर में रविवार को शराब चढ़ाएं और तेल का दीपक जलाएं। शराब का सेवन कतई न करें। लावारिस शव के दाह-संस्कार के लिए शमशान में लकड़िया दान करें। अप्रिय वचनों का प्रयोग न करें।
राहु में बृहस्पति: राहु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा की यह अवधि दो वर्ष चार माह और 24 दिन की होती है। राक्षस प्रवृत्ति के ग्रह राहु और देवताओं के गुरु बृहस्पति का यह संयोग सुखदायी होता है। जातक के मन में श्रेष्ठ विचारों का संचार होता है और उसका शरीर स्वस्थ रहता है। धार्मिक कार्यों में उसका मन लगता है। यदि कुंडली में गुरु अशुभ प्रभाव में हो, राहु के साथ या उसकी दृष्टि में हो तो उक्त फल का अभाव रहता है। ऐसी स्थिति में निम्नांकित
उपाय : किसी अपंग छात्र की पढ़ाई या इलाज में सहायता करें। शैक्षणिक संस्था के शौचालयों की सफाई की व्यवस्था कराएं। शिव मंदिर में नित्य झाड़ू लगाएं। पीले रंग के फूलों से शिव पूजन करें। राहु में
शनि: राहु में शनि की अंतदर्शा का काल 2 वर्ष 10 माह और 6 दिन का होता है। इस अवधि में परिवार में कलह की स्थिति बनती है। तलाक भाई, बहन और संतान से अनबन, नौकरी में या अधीनस्थ नौकर से संकट की संभावना रहती है। शरीर में अचानक चोट या दुर्घटना के दुर्योग, कुसंगति आदि की संभावना भी रहती है। साथ ही वात और पित्त जनित रोग भी हो सकता है। दो अअशुभ ग्रहों की दशा-अंतर्दशा कष्ट कारक हो सकती है।
उपाय : भगवान शिव की शमी के पत्रों से पूजा और शिव सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र के जप स्वयं, अथवा किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जप के पश्चात् दशांश हवन कराएं जिसमें जायफल की आहुतियां अवश्य दें। नवचंडी का पूर्ण अनुष्ठान करते हुए पाठ एवं हवन कराएं। काले तिल से शिव का पूजन करें।
राहु में बुध: राहु की महादशा में बुध की अंतर्दशा की अवधि 2 वर्ष 3 माह और 6 दिन की होती है। इस समय धन और पुत्र की प्राप्ति के योग बनते हैं। राहु और बुध की मित्रता के कारण मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है। साथ ही कार्य कौशल और चतुराई में वृद्धि होती है। व्यापार का विस्तार होता है और मान, सम्मान यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
उपाय: भगवान गणेश को शतनाम सहित दूर्वाकुंर चढ़ाते रहें। हाथी को हरे पत्ते, नारियल गोले या गुड़ खिलाएं। कोढ़ी, रोगी और अपंग को खाना खिलाएं। पक्षी को हरी मूंग खिलाएं।
राहु में केतु: राहु की महादशा में केतु की यह अवधि शुभ फल नहीं देती है। एक वर्ष और 18 दिन की इस अवधि के दौरान जातक को सिर में रोग, ज्वर, शत्रुओं से परेशानी, शस्त्रों से घात, अग्नि से हानि, शारीरिक पीड़ा आदि का सामना करना पड़ता है। रिश्तेदारों और मित्रों से परेशानियां व परिवार में क्लेश भी हो सकता है।
उपाय: भैरवजी के मंदिर में ध्वजा चढ़ाएं। कुत्तों को रोटी, ब्रेड या बिस्कुट खिलाएं। कौओं को खीर-पूरी खिलाएं। घर या मंदिर में गुग्गुल का धूप करें।
राहु में शुक्र: राहु की महादशा में शुक्र की प्रत्यंतर दशा पूरे तीन वर्ष चलती है। इस अवधि में शुभ स्थिति में दाम्पत्य जीवन में सुख मिलता है। वाहन और भूमि की प्राप्ति तथा भोग-विलास के योग बनते हैं। यदि शुक्र और राहु शुभ नहीं हों तो शीत संबंधित रोग, बदनामी और विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इस अवधि में अनुकूलता और शुभत्व की प्राप्ति के लिए निम्न
उपाय करें- सांड को गुड़ या घास खिलाएं। शिव मंदिर में स्थित नंदी की पूजा करें और वस्त्र आदि दें। एकाक्षी श्रीफल की स्थापना कर पूजा करें। स्फटिक की माला धारण करें।
राहु में सूर्य: राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा की अवधि 10 माह और 24 दिन की होती है, जो अन्य ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक कम है। इस अवधि में शत्रुओं से संकट, शस्त्र से घात, अग्नि और विष से हानि, आंखों में रोग, राज्य या शासन से भय, परिवार में कलह आदि हो सकते हैं। सामान्यतः यह समय अशुभ प्रभाव देने वाला ही होता है।
उपाय: इस अवधि में सूर्य को अघ्र्य दें। उनका पूजन एवं उनके मंत्र का नित्य जप करें। हरिवंश पुराण का पाठ या श्रवण करते रहें। चाक्षुषोपनिषद् का पाठ करें। सूअर को मसूर की दाल खिलाएं।
राहु में चंद्र: एक वर्ष 6 माह की इस अवधि में जातक को असीम मानसिक कष्ट होता है। इस अवधि में जीवन साथी से अनबन, तलाक या मृत्यु भी हो सकती है। लोगों से मतांतर, आकस्मिक संकट एवं जल जनित पीड़ा की संभावना भी रहती है। इसके अतिरिक्त पशु या कृषि की हानि, धन का नाश, संतान को कष्ट और मृत्युतुल्य पीड़ा भी हो सकती है।
उपाय: राहु और चंद्र की दशा में उत्पन्न होने वाली विषम परिस्थितियों से बचने के लिए माता की सेवा करें। माता की उम्र वाली महिलाओं का सम्मान और सेवा करें। प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का शुद्ध दूध से अभिषेक करें। चांदी की प्रतिमा या कोई अन्य वस्तु मौसी, बुआ या बड़ी बहन को भेंट करें। राहु में मंगल: राहु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का यह समय एक वर्ष 18 दिन का होता है। इस काल में शासन व अग्नि से भय, चोरी, अस्त्र शस्त्र से चोट, शारीरिक पीड़ा, गंभीर रोग, नेत्रों को पीड़ा आदि हो सकते हंै। इस अवधि में पद एवं स्थान परिवर्तन तथा भाई को या भाई से पीड़ा की संभावना भी रहती है।