Wednesday, November 8, 2017

खिलाड़ी बनने के लिए योग

*खिलाड़ी बनने के लिए योग*
कुंडली से जाने: खिलाड़ी बनने के लिए बनने के योग :
ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए हमारे शास्त्रों मे कई सूत्र दिए हैं।
कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार से हैं। करियर निर्धारण में विचारणीय सूत्र( फॉर्मूला )।
दशम भाव: करियर, लग्न :जातक का शरीर, चंद्रमा :मन ,सूर्य :आत्मा का विचार होता है।
कुंडली में इन भावों एवं भाव स्वामियों का, बलवान हो कर, खेल के कारक भावों एवं भावेशों तथा ग्रहों से संबंध खेल के द्वारा सफलता, ख्याति, उपलब्धि ,लाभ दिलाता है।
लग्न राशि : मेष, वृष, कर्क, तुला, वृश्चिक एवं मकर ।
पंचम भाव एवं पंचमेश : यश, मान, प्रतिष्ठा , मनोरंजन ,खेल का स्थान ,खेल प्रतिभा एवं दक्षता ।
पंचम भाव, पंचमेश : अन्य संबंधित भावों एवं ग्रहों से संबंध।
ग्रहों व भावों :बलवान तृतीय भाव, छठे भाव, मंगल, बुध व राहु पर निर्भर तृतीय भाव :बल और पराक्रम , शारीरिक क्षमताओं ।
छठे भाव : विरोधी पक्ष, प्रतियोगिता, संघर्ष ,प्रतिद्वंद्वियों ,सकारात्मक परिणाम।
सप्तम भाव: सहयोगी खिलाड़ियों।
मंगल : ताकत ,ऊर्जा, शक्ति, पराक्रम, वीरता एवं आक्रामकता।
मंगल का तृतीय भाव संबंध :सुदृढ़ शरीर वाला ,साहसी होता है।
बुध तीसरे व छठे भाव से संबंध : तकनीकी ।
राहु : जीत के प्रति सकारात्मक रवैये ।
लग्न लग्नेश : शरीर , स्वस्थ शरीर , स्वस्थ दिमाग,।
तृतीय भाव :पराक्रम , दाहिना हाथ ।
एकादश भाव : उपलब्धियों एवं लाभ ,बायां हाथ ,आय ।
तृतीय भाव तृतीयेश : बाहुबली ।
चतुर्थ भाव: लोकप्रियता ,जन-जनार्दन।
दशम भाव: कर्म एवं ख्याति ,कार्य क्षमता,स्थित ग्रहःशनि, मंगल, सूर्य एवं राहु।
नवम भाव: सफलता ,भाग्य , सफलता एवं यश ।
चंद्र: मन । शुक्र:कलात्मक शैली।शनि :संबंध लंबे समय तक पद पर ।
युति :मंगल+चंद्रमा : चंचलता, चपलता ।
मंगल +शनि युति: आक्रामकता, गुस्सा, एकाग्रता और संयम ।
चंद्रमा +गुरु की युति: कुशलता, निरीक्षणता और सूक्ष्मता।
स्वगृही, उच्चस्थ, केंद्र एवं त्रिकोण स्थित ग्रहःबलवान होते है।
राहु: राहु शीघ्र तथा सच्चा फल , सफलता ।
सूर्य-शनि-मंगल ग्रहः :पौरुषदाता।
लग्न राशि : मेष, वृष, कर्क, तुला, वृश्चिक एवं मकर सफल होते हैं। मंगल, या शनि उच्च का, या स्वगृही हो, तो रूचक, शश, पंच महापुरुष योग।
डी 9 नवांश ,डी 10 कुंडली भी देखे।
फलादेश कैसे करते है :
- जो ग्रह अपनी उच्च, अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में हो - शुभ फलदायक होगा।
- इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभफल दायक होगा।
- जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, वह शुभ फल देता है।
-त्रिकोण के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं।
- क्रूर भावों (3, 6, 11) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।
- दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते हैं।
- शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं।
-बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं, वैसा ही फल देते हैं।
- सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ फल देते हैं।
कामयाबी योग :
कुंडली का पहला, दूसरा, चौथा, सातवा, नौवा, दसवा, ग्यारहवा घर तथा इन घरों के स्वामी अपनी दशा और अंतर्दशा में जातक को कामयाबी प्रदान करते है।
सूर्य. चंद्रमा व बृहस्पति : उच्च पदाधिकारी बनाता है।
द्वितीय, षष्ठ एवं दशम् भाव को अर्थ-त्रिकोण सूर्य की प्रधानता।
केंद्र में गुरु स्थित होने पर उच्च पदाधिकारी का पद प्राप्त होता है।
बाधा के योग :
भाव दूषित हो तो अशुभ फल देते है।
ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो काममे बाधा आती है |
लग्नेश बलों में कमजोर, पीड़ित, नीच, अस्त, पाप मध्य, 6,8,12वें भाव में ,तो भी बाधा आती है .
कुण्डली मे D-१० (चार्ट ) का भी आंकलन करना चाहिये ।
लग्न कुडली में जो भाव, भावेश व भाव कारक अच्छी स्थिति में हों, उस भाव के जीवन में अच्छे फल मिलेंगे और जो भाव, भावेश व भाव कारक अशुभ स्थिति में हों, उसके फल नहीं मिलेंगे।

No comments:

Post a Comment