Friday, November 3, 2017

ज्योतिष में कर्म


        ★★★ ज्योतिष में कर्म की बात करे तो कर्म का स्थान तो 10 स्थान है व्यवसाय आदि का , 10 स्थान प्रमुख केंद्र स्थान है और यह कर्म स्थान है और दशम से दशम विचार करे तो 7 स्थान भी व्यवसाय का ही होता है इसकी स्तिथि पे ही हम हमारे क्या कर्म होंगे या व्यवसाय होंगे इसका विचार होता है सबसे पहले तो हमे यह  देखना चाहिए कि हमारा लग्नेश कैसा है क्योंकि लग्नेश ही कुंडली का मूल स्तंभ है यह आयु , मान, समान व्यवसाय आदि सब बताता है और इसके बाद जो दशम स्थान में ग्रह है  और जो 7 स्थान में राशि या ग्रह है उसके अनुसार ही व्यवसाय आदि होता है 10 स्थान प्रमुख केंद्र है यह हमें ऊंचाई की और ले जाता है जब इसका स्वामी और लग्नेश से सम्बद बन जाये , वो कैसे ही हो युति या दृष्टि द्वारा तो मनुष्य  बहुत ही अधिक ऊंचाई पे जाता है ऊंचाई का स्थान है तो यह व्यवसाय की ऊंचाई का भी स्थान है यह शुभ हो तो व्यवसाय की ऊंचाई पे भी ले जाते है कर्म स्थान 10 भाव है और धर्म का स्थान का 9 भाव है जो कि प्रमुख त्रिकोण स्थान है जब इन दोनों का सम्बद होता है तो राजयोग होता है क्योंकि केंद्र और त्रिकोण का ही सम्बद राजयोग है पर व्यवसाय आदि के विषय मे जब 10 स्थान का स्वामी 9 में आ जाये तो व्यवसाय आदि में परेसानी देता है स्थिरता के हालात नही देता  , जब इसका स्वामी नीच का शत्रु राशि मे आदि स्थान में हो तो व्यवसाय आदि में बहुत ही परेसानी देता है वैसे अगर हम बात करे तो हम सभी कार्य हाथ से ही करते है और 3 भाव बाजू का है और 11 भाव भी बाजू का है उसके साथ साथ दशम स्थान कर्म स्थान है ही और लग्नेश तो सब कुछ है ही तो यह 4 भाव हमारे कुंडली मे निज सेल्फ के होते है लग्न ,3 ,10, और 11 भाव जब यह भाव शत्रु राशि हो राहु , शनि , सूर्य आदि पृथ्जनात्मक ग्रहों के साथ हो तो मनुष्य या तो जानबूझ कर या सोच समझ कर भी अपने व्यवसाय आदि को  छोड़ देता है , वैसे व्यवसाय क्या होगा इसका निर्णय करने के लिए बहुत से शुत्र वैदिक  ग्रन्थो में है जैसे कि  = सबसे पहले यह देखिए कि लग्न , सूर्य या 10 भाव इन तीनो में कौन ज्यादा बलबान है उसके दशम राशि कौन सी पड़ती है उस राशि का स्वामी किस नवमास में है उस नवमास राशि के स्वामी के गुणों आदि से सम्बदी व्यवसाय आदि होता है l

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