Friday, November 24, 2017

।प्रेम में धोखा मिलने के ज्योतिषीय योग।

।प्रेम में धोखा मिलने के ज्योतिषीय योग।

प्रेम किसी से भी किया जा सकता है- अपने दोस्त से, प्रकृति से, पेड़-पौधों से, पशु-पक्षी आदि से। प्रेम वात्सल्य है, न कि वासना ।
कभी कभी प्रेम में उन्मत्त होकर जब प्रेमी एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खाने लगते हैं तब तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।और ऐसा न होने की स्थिति में वे अपने जीवन तक को दाँव में लगा देते हैं।
पर प्रेम में कभी -कभी जबरजस्त धोखा भी भी मिल जाता है ।और फिर जीवन कितना भयावह हो जात है ।आइये जानते हैं सच्चे व प्रेम में धोखा मिलने के कुछ ज्योतिषीय योग।
शुक्र कला व सौन्दर्य के साथ प्रेम का भी कारक ग्रह है। चन्द्र मन का कारक है। शुक्र-चन्द्र की युति एक आदर्श प्रेमी की होती है, वहीं शुक्र चन्द्र का समसप्तम योग भी सफल प्रेम की निशानी होती है।
शुक्र मंगल का संबंध या दृष्टि संबंध होने पर शुद्ध प्रेम नहीं रहता। उसमें कहीं न कहीं वासना का पुट रहता है। यदि शनि भी साथ हो तो ऐसे प्रेमी से बचना ही चाहिए। शुक्र राहु की युति या दृष्टि संबंध भी सात्विक प्रेमी की निशानी नहीं कहा जा सकता। शुक्र-गुरु साथ हो तो प्रेम में संयम देख जा सकता है। गुरु ज्ञान का कारक होता है।
जिसकी जन्म पत्रिका में शुक्र, मंगल, राहु साथ हो तो उस जातक से बचना ही चाहिए नहीं तो धोखा ही मिलता है। वृषभ लग्न वाले प्रेमी होते हैं। जब शुक्र लग्न में हो, वहीं तुला लग्न भी प्रेमियों के लिए उत्तम होता है। ध्यान रहे चन्द्र पर किसी भी अशुभ ग्रह की दृष्टि नहीं होना चाहिए।
इसी तरह अगर जातक का एकादश भाव कमजोर है तो भी उसकी इच्छायें अधूरी ही रहती हैं।
अगर जन्मपत्रिका में कहीं भी सूर्य या चंद्र राहु केतु या शनि से युक्त दृष्ट हैं तो ऐसा जातक दब्बू व एकांत जीवन व्यतीत करने वाला होता है।वह अपने प्रेमी को कभी भी मझधार में छोड़ सकता है।
यदि शुक्र और यूरेनस किसी भी तरह एक दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में हैं तब भी प्रेम में धोखा मिलने की संभावनाएं रहती हैं।
हाथ में अगर शुक्र पर्वत दबा है और उस पर जाल है तथा हृदय रेखा कई जगह से टूटी है तब भी प्रेम में धोखा मिल सकता है।
इसी प्रकार पंचमेश व सप्तमेश भी प्रथकतावादी ग्रहों से प्रभावित है तब भी प्रेम में असफलता मिलती है।

क्या आपकी कुंडली में हैं लव-मैरिज के योग?
लव-मैरिज का मतलब होता है अपनी पसंद से विवाह करना, अब चाहे लाइफ पार्टनर हमारी जाति के हों या नहीं।
* किसी भी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव से प्रणय संबंधों का पता चलता है जबकि सातवां भाव विवाह से संबंधित है। शुक्र सातवें भाव का कारक ग्रह है अतः जब पंचमेश-सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग होता है तो पति-पत्नी दोनों में गहरा स्नेह संबंध होता है। ऐसी ग्रह स्थिति में प्रेम विवाह संभव है।
* शुक्र सप्तमेश (सेवंथ हाउस में मौजूद राशि का स्वामी) से संबंधित होकर पांचवें भाव में बैठा हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
* पंचमेश व सप्तमेश का राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है। यानी पांचवी राशि सातवें घर में बैठी हो और सातवीं राशि पांचवें घर में।
* मंगल, शुक्र का परस्पर दृष्टि प्रेम विवाह का परिचायक है।
* पंचम या सप्तम भाव में सूर्य एवं हर्षल की युति होने पर भी प्रेम विवाह हो सकता है।
इस प्रकार के योग यदि जन्म कुंडली में होते हैं, तब प्रेम विवाह के योग बनते हैं। यह जरूरी नहीं है कि प्रेम विवाह मतलब जाति से बाहर विवाह होना।

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