Monday, November 27, 2017

राज योग (Raj Yogas)

राज योग (Raj Yogas)
राजयोग कोई विशिष्ट योग नहीं है यह कुण्डली में बनने वाले कई योगों का प्रतिफल है.  कुण्डली में जब शुभ ग्रहों का योग बनता है तो उसके आधार पर राजयोग का आंकलन किया जाता है.  इस ग्रह के आंकलन के लिए लग्न के अनुसार ग्रहों की शुभता, अशुभता, कारक, अकारक, विशेष योगकारक ग्रहो को देखना होता है साथ ही ग्रहों की नैसर्गिक शुभता/अशुभता का ध्यान रखना होता है.  राज योग के लिए केन्द्र स्थान में उच्च ग्रहों की उपस्थिति, भाग्य स्थान पर उच्च का शुक्र, नवमेश एवं दशमेश का सम्बन्ध बहुत महत्वपूर्ण होता है.  कुण्डली में अगर कोई ग्रह अपनी नीच राशि में मौजूद है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह फलदायी नहीं होगा क्योंकि जहां नीच राशि में ग्रह की स्थिति होगी वहीं से सप्तम उस ग्रह की दृष्टि अपने स्थान पर रहेगी.  गौर करने के बात यह है कि इसका क्या फल होगा यह अन्य ग्रहों से सम्बन्ध पर निर्भर करेगा.

कुण्डली में राजयोग किसी ग्रह विशेष से नहीं बनता है बल्कि इसमें सभी ग्रहों की भूमिका होती है.  ज्योतिषशास्त्र के नियामानुसार कुण्डली में चन्द्रमा अपनी स्थिति से योगों को काफी प्रभावित करता है.  चन्द्रमा के निर्बल होने पर योगकारक ग्रह भी अपना फल नहीं दे पाते हैं.  केन्द्र या त्रिकोण भाव में चन्द्रमा यदि पूर्ण बली शुक्र या बृहस्पति से दृष्टि होता है तो यह राजयोग का फल देता है और व्यक्ति को राजा के समान सुख प्रदान करता है.
राजयोग के प्रकार (Types of Rajyoga)
विपरीत राजयोग (Vipreet Rajyoga)त्रिक स्थानों के स्वामी त्रिक स्थानों (If the Trikha lorda are in the Trika houses) में हों या युति अथवा दृष्टि सम्बन्ध बनते हों तो विपरीत राजयोग बनता है.  इसे उदाहरण से इस प्रकार समझा जा सकता है कि अष्टमेश व्यय भाव या षष्ठ भाव में हो एवं षष्ठेश यदि अष्टम में, व्ययेश षष्ठ या अष्टम में हो तो इन त्रिक भावों के स्वामियों की युति दृष्टि अथवा परस्पर सम्बन्ध हो और दूसरे सम्बन्ध नहीं हों तो यह व्यक्ति को अत्यंत धनवान और खुशहाल बनाता है.  इस योग में व्यक्ति महाराजाओं के समान सुख प्राप्त करता है.  ज्योतिष ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि अशुभ फल देने वाला ग्रह जब स्वयं अशुभ भाव में होता है तो अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है.
 केन्द्र त्रिकोण राजयोग (Kendra Trikon Rajyoga)
कुण्डली में जब लग्नेश का सम्बन्ध केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों से होता है तो यह केन्द्र त्रिकोण सम्बन्ध कहलाता है.  केन्द्र त्रिकोण में त्रिकोण लक्ष्मी का व केन्द्र विष्णु का स्वरूप होता है.  यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में पाया जाता है वह बहुत ही भाग्यशाली होता है.  यह योग मान सम्मान, धन वैभव देने वाला होता है.

नीचभंग राजयोग (Neechbhang Raj yoga)
कुण्डली में जब कोई ग्रह नीच राशि का होता है और जिस भाव में वह होता है उस भाव का राशिश अगर उच्च राशि में हो अथवा लग्न से केन्द्र में उसकी स्थिति हो तब यह नीचभंग राजयोग कहा जाता है.  उदाहरण के तौर बृहस्पति मकर राशि में नीच का होता है लेकिन मकर का स्वामी शनि उच्च में है तो यह भंग हो जाता है जिससे नीचभंग राजयोग बनता है.

कलानिधि योग (Kalanidhi Yoga)
जन्म कुण्डली (Kundli) में द्वितीय अथवा पंचम भाव में गुरू के साथ बुध या शुक्र की युति होने पर कलानिधि योग (Kalanidhi Yoga) बनता है. गुरू यदि द्वितीय अथवा पंचम में हो और शुक्र या बुध उसे देख रहे हों तब भी कलानिधि योग का निर्माण होता है. यह योग राजयोग की श्रेणी में आता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है वह कलाओं में निपुण होता है. अपनी योग्यता से धन-दौलत अर्जित करता है. वाहन सुख तथा समाज में इन्हें प्रतिष्ठित भी मिलती है. राजनीति में भी यह सफल हो सकते हैं.

काहल योग (Kahal Yoga)
गुरू एवं चतुर्थेश एक दूसरे से केन्द्र में हों और लग्नेश बलवान हों तो काहल योग (Kahal Yoga) बनता है. काहल योग तब भी बनता है जब चतुर्थेश एवं लग्नेश दोनों एक दूसरे से केन्द्र भाव में विराजमान हों. काहल राजयोग जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में होता है वह बहादुर एवं साहसी होता है. वह जहां भी कार्य करता है उसकी भूमिका नेता के समान होती है. यह राजनेता अथवा किसी संस्थान के प्रमुख हो सकते हैं. आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है.

अमारक योग (Amarak Yoga)
सप्तमेश एवं नवमेश में गृह परिवर्तन योग होने पर अमारक योग (Amarak Yoga) बनता है. अमारक योग में सप्तमेश एवं नवमेश दोनों का बलवान होना जरूरी होता है. इस राजयोग वाले व्यक्ति को विवाह के पश्चात भाग्य का पूर्ण सहयोग मिलता है. इनका जीवनसाथी गुणवान होता है तथा वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है. धर्म-कर्म में इनकी गहरी आस्था होती है. विद्वान के रूप में इन्हें सम्मान मिलता है. वृद्धावस्था आन्नद एवं सुख से बिताते हैं

गजकेशरी योग (Gajakesari Yoga)
गजकेशरी योग को केशरी योग के नाम से भी जाना जाता है. यह योग गुरू चन्द्र के एक दूसरे से केन्द्र में स्थित होने पर बनता है. यह उच्च कोटि का राजयोग होता है. जिनकी कुण्डली में यह राजयोग होता है वह सुखी जीवन जीते हैं. इनके सगे-सम्बन्धियों की संख्या अधिक होती है तथा उनसे पूरा सहयोग मिलता है. गजकेशरी योग से प्रभावित व्यक्ति अपने नेक एवं नम्र स्वभाव के कारण प्रतिष्ठित होते हैं तथा आत्मविश्वास एवं मजबूत इरादों से मुश्किल हालातों एवं चुनौतियो का सामना भी आसानी से कर पाते हैं. इनका यह गुण इन्हें कामयाबी दिलाता है.
गजकेशरी योग (Gajkesari Yoga)
ज्योतिष शास्त्र में कई शुभ और अशुभ योगों का वर्णन किया गया है| शुभ योगों में गजकेशरी योग को अत्यंत शुभ फलदायी योग के रूप में जाना जाता है|
गजकेशरी योग (Gajkesari Yoga) को असाधारण योग की श्रेणी में रखा गया है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में उपस्थित होता है उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी अभाव नहीं खटकता है।  इस  योग के साथ  जन्म लेने वाले व्यक्ति की ओर धन, यश, कीर्ति स्वत:  खींची चली आती है।  जब कुण्डली में गुरू और चन्द्र पूर्ण कारक प्रभाव के साथ होते हैं तब यह योग बनता है। लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक हो तब यह कारक प्रभाव के साथ माना जाता है। हलांकि अकारक होने पर भी फलदायी माना जाता परंतु यह मध्यम दर्जे का होता है। चन्द्रमा से केन्द्र स्थान में 1, 4, 7, 10 बृहस्पति होने से गजकेशरी योग बनता है। इसके अलावा अगर चन्द्रमा के साथ बृहस्पति हो तब भी यह योग बनता है। कभी-कभी इन ग्रहों कि क्षमता कम होने पर जैसे ग्रह के बाल्या, मृता अथवा वृद्धावस्था इत्यादि में होने पर इस योग के प्रभाव को बढ़ाने हेतु ज्योतिषीय उपाय करने से इस राजयोग में वृद्धि होती है एवं व्यक्ति और अधिक लाभ प्राप्त कर पाता है |

लक्ष्मी योग (Laxmi Yoga)
राजयोग की श्रेणी में लक्ष्मी योग का नाम भी लिया जाता है. नवमेश की युति लग्नेश अथवा पंचमेश के साथ होने पर यह योग (Gaja Kesari Yoga) बनता है. लक्ष्मी राज योग वाले व्यक्ति काफी धन अर्जित करता है. मान्यता है कि जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में यह योग होता है वह धन-सम्पत्ति एवं वैभव से परिपूर्ण सुखमय जीवन जीवन जीते हैं. समाज में इन्हें सम्मान मिलता है. परिवार में यह आदरणीय होते हैं.

अमला योग (Amala Yoga)
चन्द्रमा जिस भाव में हो उससे दसवें घर में कोई शुभ ग्रह होने पर अमला योग बनता है. शुभ ग्रह पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव नहीं होना चाहिए. कुण्डली में यह स्थिति बन रही हो तो जीवन भर सुख एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. ज्योतिषशास्त्र में इस योग के विषय में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस योग के साथ जन्म लेता है वह भले ही गरीब परिवार में जन्म ले परंतु गरीबी का साया उस पर नहीं रहता है.

राजयोग (Raja Yoga)
उपरोक्त योग राजयोग की श्रेणी में रखे गये हैं परंतु मूल रूप से जिसे राजयोग कहते हैं वह तब बनता है जब केन्द्र अथवा त्रिकोण के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठें अथवा दो केन्द्र भाव के स्वामी गृह परिवर्तन करें और त्रिकोण भाव के स्वामी की उनपर दृष्टि हो. यह राजयोग जिस व्यक्ति की कुण्डली (Kundli) में होता है वह राजा के समान वैभवपू्र्ण जीवन जीता है. इनकी आयु लम्बी होती है. जबतक जीते हैं सम्मान से जीते हैं मृत्यु के पश्चात भी इनकी ख्याति व नाम बना रहता है.

मानव शरीर का वास्तु के पंच-तत्वों से संबंध

मानव शरीर का वास्तु के पंच-तत्वों से संबंध

नाड़ी शास्त्र के अनुसार, मानव शरीर में स्थित चक, जिनमें मूलाधार चक, स्वाधिष्ठान चक, मणिपूरक चक, अनाहत चक, विशुद्ध चक, आज्ञा चक एवं सहस्त्रार चक विद्यमान है। इन चकों का संबंध वास्तु विषय के जल तत्व, अग्नि तत्व, वायु तत्व, पृथ्वी तत्व एवं आकाश तत्व से संबंधित है। वास्तु में पृथक दिशा के लिये अलग-अलग तत्व दिये गये हैं जैसे : ईशान के लिये जल तत्व, आग्नेय के लिये अग्नितत्व, वायव्य के लिये वायु तत्व, नैऋत के लिये पृथ्वी तत्व एवं ब्रह्मस्थल के लिये आकाश तत्व का महत्व है।

जल तत्व : वास्तु के अनुसार, भूमिगत पानी के स्त्राsत ईशान में ही होने चाहिये। जिससे सुबह के समय सूर्य से मिलने वाली अल्ट्राव्हायलेट किरणों से जल की शुद्धि होती है एवं यह सूर्य रश्मियां जीवन को स्वास्थपद रखती है।

अग्नि तत्व : सूर्य को सृष्टि का संचालक कहा जाता है, क्योंकि सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा शक्ति का हमारे जीवन में अत्याधिक महत्व है। सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा का पभाव भवन की पूर्व, उत्तर, ईशान, पश्चिम-वायव्य एवं दक्षिण-आग्नेय दिशा से पाप्त होता है। अत इन ऊर्जा शक्तियों से शुभ परिणाम पाप्त करने के लिए उपरोक्त दिशाओं को खुला रखना अत्यंत आवश्यक होता है।

इसके विपरीत दक्षिण, पश्चिम-नैऋत, उत्तर-वायव्य एवं पूर्व-आग्नेय को खुला एवं खाली रखने से सूर्य की हानीकारक एवं नकारात्मक ऊर्जा का पवेश होता है, जो स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिये अत्यंत हानीकारक होती है।

वायु तत्व : पाण वायु (आक्सीजन) के बिना सृष्टि का चलना असंभव है। क्योंकि पाण वायु के बिना जीव, निर्जीव हो जायेगा। मकान में वायु के आवागमन हेतु उचित स्थान बनाया जाना चाहिये। क्योंकि स्वच्छ एवं शुद्ध वायु का सेवन जीवन के स्वास्थ्य एवं दीर्घायु हेतु बहुत आवश्यक है। इसके विपरीत पदूषण युक्त एवं दूषित वायु के सेवन से अनेक पकार की बीमारियां पनपने का अंदेशा रहता है। अत रोगमुक्त एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जीवन व्यतीत करने के लिये मकान में शुद्ध वायु का पवेश होना अत्यंत ही आवश्यक है।

यद्यपि वायु का आवागमन पत्येक दिशा से होता है, लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से भवन निर्माण में वायु पवेश का विशेष ध्यान रखना परम आवश्यक है। इसके लिये उत्तर-पश्चिम दिशा, जिसे वायव्य कोण कहा जाता है। इस वायव्य कोण की पश्चिम-वायव्य दिशा, वायु के संचारण हेतु मुख्य रूप से उपयोगी मानी गयी है। इस दिशा से वायु-तत्व की पाप्ति करना, पाणियों के स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं भवन के टिकाऊपन के लिये महत्वपूर्ण है।

पृथ्वी तत्व : समस्त संसार आकर्षण और विकर्षण से पभावित होता है। पृथ्वी के उत्तर-दक्षिण दिशा में चुंबकीय ध्रुव विद्यमान रहते हैं। इससे हमें गुरुत्वाकर्षण की शक्ति मिलती है। यह चुंबकीय ऊर्जा शक्ति उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ चलती है और इस ऊर्जा शक्ति का पभाव सभी जड़-चेतन पर समान रूप से पड़ता है। उत्तरी ध्रुव के पास दक्षिणी ध्रुव आने से विकर्षण पैदा होता है।

मानव शरीर के मस्तिष्क में उत्तरी ध्रुव विद्यमान है, इसलिये वास्तु विषय में दक्षिण में मस्तिष्क एवं उत्तर दिशा की तरफ पांव करके सोने के लिये निर्देश दिया गया है। जिससे हमारे शरीर को चुंबकीय शक्ति एवं नैसर्गिक ऊर्जा शक्ति का लाभ मिलता है। आवास स्थल में उत्तम चुंबकीय किरणों का पभाव बनाये रखने के लिये पूर्व, उत्तर व ईशान दिशा में जगह का खुला एवं ढलान तथा दक्षिण, पश्चिम व नैऋत दिशा को ऊंचा, मजबूत एवं ढका हुआ होना अत्यंत आवश्यक है।

आकाश तत्व : आकाश तत्व एक मूल तत्व माना गया है। अत वास्तु विषय में इसे ब्रह्म स्थल (मध्य स्थान) कहा जाता है। इस तत्व की पूर्ति करने के लिये पुराने जमाने में मकान के मध्य में खुला आंगन रखा जाता था, ताकि अन्य सभी दिशाओं में इस तत्व की आपूर्ति हो सके।

आकाश तत्व से अभिपाय यह है कि गृह निर्माण में खुलापन रहना चाहिये। मकान में कमरों की ऊँचाई और आंगन के आधार पर छत का निर्माण होना चाहिये। अधिक व कम ऊँचाई के कारण आकाश तत्व पभावित होता है। कई मकानों में दूषित वायु (भूत-पेत) का पवेश एवं आवेश देखा गया है। इसका मूल कारण वायु तत्व और आकाश तत्व का सही निर्धारण नहीं होना ही पाया गया है। मानसिक रोगों का पनपना भी आकाश तत्व के दोष का ही नतीजा पाया जाता है।

Sunday, November 26, 2017

सूर्य-शनि युति फलादेश

सूर्य-शनि युति फलादेश
सूर्य सुलभ दृष्ट, प्रकाशवान व ज्वलंत ग्रह है। वह जीवनी शक्ति, पिता, सफलता, सत्ता, सोना, लाल कपड़ा, तांबा, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आरोग्य, औषधि आदि का कारक है। इसका आंखों की ज्योति, शरीर के मेरूदंड, तथा पाचन क्रिया पर प्रभुत्व है। सूर्य के तेज के कारण अन्य ग्रह- चंद्र, मंगल, शनि, शुक्र, बृहस्पति व बुध उसके पास आने पर अस्त होकर प्रभावहीन हो जाते हैं, परंतु राहु व केतु सूर्य के समीप आने पर उसे ग्रहण लगाते हैं। सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है। वह 24 घंटे में भचक्र में 10 प्रगति कर एक राशि का गोचर 30 दिन में पूरा करता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है, मेष में उच्च तथा तुला राशि में नीचस्थ होता है।
उसकी विंशोत्तरी दशा छः वर्ष की होती है। सूर्य के विपरीत शनि ग्रह प्रकाशहीन, दूरबीन से दृष्ट और ठंडा ग्रह है। वह आलस, दासता, गरीबी, लंबी बीमारी और मृत्यु का मुख्य कारक है। शनि काले तिल, तेल, उड़द, लोहा, कोयला व काले वस्त्र आदि का कारक है। भचक्र में शनि दो राशियों- मकर व कुंभ का स्वामी है। वह तुला राशि में उच्च तथा मेष राशि में नीचस्थ होता है। शनि एक राशि का गोचर ढाई वर्ष में पूरा करता है।
वह कुंडली  में षष्ठ, अष्टम और द्वादश (त्रिक) भावों का कारक है जो कष्ट, दुःख और हानि दर्शाते हैं। अतः उसे नैसर्गिक पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है, परंतु वह तुला, मकर, कुंभ और वृष लग्नों में शुभकारी होता है। बलवान शनि जातक की प्रगति में पूर्ण सहायक होता है।

अन्य ग्रहों पर शनि के दुष्प्रभाव से उनके कारकत्व में न्यूनता आती है। सूर्य से अस्त होने पर शनि अधिक कष्टकारी बन जाता है। हृदय को खून ले जाने वाली नाड़ियों के संकुचित होने से जातक हृदय रोग से ग्रस्त होता है। शनि ग्रह के बारे में हिंदू धार्मिक ग्रंथों में अनेक महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त होते हैं।
जैसे शनि सूर्य के पुत्र हैं। इनका सूर्य की पत्नी की छाया से जन्म होने के कारण ये कृष्ण वर्ण, कुरूप तथा पिता समान ज्ञानी और बलवान ग्रह हैं। इनकी हानिकारक दृष्टि से बचने के लिए पिता सूर्य द्वारा जन्म के तुरंत बाद ब्रह्मांड में बहुत दूर फेंके जाने के कारण यह प्रकाश रहित और शीतल ग्रह है। कुंडली  में अशुभ भाव में स्थित होने पर शनि शीत-जनित और दीर्घकालीन रोग व कष्ट देता है।
इनका अपने पिता सूर्य से शत्रुवत व्यवहार है। शनि शिवजी के परम प्रिय शिष्य हैं। शनि के धार्मिक, सात्विक और निष्पक्ष आचरण से प्रसन्न होकर शिवजी ने इन्हें सभी प्राणियों के कर्मफल का निर्णायक बनाया था। विंशोत्तरी दशा में शनि को 19 वर्ष प्राप्त हैं। सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त शनि की तीसरी और दसवीं पूर्ण दृष्टि होती है। शनि जिस भाव में स्थित हों उसमें स्थिरता तथा दृष्ट ग्रह व भावों के कार्यकाल को हानि पहुंचाते है।

शनि कष्टकारी होने पर शिवजी तथा हनुमान जी की आराधना लाभकारी होती है। कुंडली  में इन दो विपरीत प्रकृति वाले शक्तिशाली ग्रहों की युति स्वभावतः जातक का जीवन कठिनाईयों से भरा और हताशापूर्ण बनाती है। इस बारे में कुछ मानद ज्योतिष  ग्रंथों का मार्गदर्शन इस प्रकार है:- फलदीपिका (अ. 18) के अनुसारः ‘सूर्य व शनि साथ-साथ हो तो जातक धातु के बर्तन निर्माण और व्यापार द्वारा अपना निर्वाह करता है अर्थात् मेहनत से जीवन यापन करता है। सारावली (अ. 15.7) के अनुसार: जातक धातुशिल्पी होता है। यह युति 6, 8, 12 (त्रिक) भावों में होने पर जातक पारिवारिक क्लेशों से घिरा रहता है। पुनश्च, (अ. 31, 22.25) के अनुसार: लग्न में सूर्य-शनि की युति होने पर जातक की माता का चरित्र संदिग्ध होता है। जातक स्वयं दुश्चरित्र, मलिन और दुष्कर्मी होता है। चतुर्थ भाव में धन की कमी, रिश्तेदारों से खराब संबंध और माता का सुख कम प्राप्त होगा।

सप्तम भाव में युति से जातक आलसी, मंदबुद्धि, दुर्भागी और नशे का सेवन करता है तथा पति-पत्नी के संबंधों में कटुता रहती है। दशम भाव में युति होने पर जातक विदेश में या स्वदेश में निम्न स्तर की नौकरी से धन कमाता है, और वह भी चोरी चला जाता है जिससे जातक धनहीन और दुःखी रहता है। सूर्य-शनि की युति के फलादेश का अध्ययन दर्शाता है कि शनि के दुष्प्रभाव से युति वाले भाव तथा उससे सप्तम भाव के फलादेश में न्यूनता आती है। यह युति सूर्य के कारकत्व पिता की स्थिति, उनका स्वास्थ्य तथा जातक के अपने कार्यक्षेत्र तथा मान-सम्मान में कमी करती है। जातक के अपने पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। सूर्य के अधिक निर्बल होने पर पिता का साया जल्दी उठ जाता है या जातक अपने पिता से अलग हो जाता है। इसी प्रकार संबंधियों से भी अलगाव होता है। अतः कुछ आचार्य इस युति को ‘विच्छेदकारी योग’ की संज्ञा देते हैं।

उपाय 1. सूर्य को बल देने के लिए जातक को सूर्योदय से पहले जागकर अपने पिता के चरण  स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। पिता की उम्र के व्यक्तियों का आदर करना चाहिए।
2. स्नान के बाद उगते सूर्य को तांबे के बर्तन में जल, थोड़ा गंगाजल, रोली, खांड और लाल फूल डालकर ‘ऊँ’ आदित्याय नमः। ‘ऊँ’ भास्कराय नमः। ‘ऊँ’ सूर्याय नमः का उच्चारण करते हुए धीरे-धीरे सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। ध्यान रखें कि छींटे पैर पर न पड़ें तथा चढ़े हुए जल से अपना तिलक करना चाहिए। उसके बाद एक माला ‘ऊँ आदित्याय नमः’ मंत्र का जप करना चाहिए।

 3. प्रत्येक रविवार को अनार फाड़कर सूर्य को अघ्र्य के बाद भोग अर्पण करते समय सूर्य मंत्र का धीरे-धीरे जप करना चाहिए। कुछ अनार के दाने प्रसादस्वरूप ग्रहण करना चाहिए। साथ ही शनि की शांति के लिए
1. प्रत्येक शनिवार सायंकाल शनिदेव का तैलाभिषेक करके कुछ तेल को मिट्टी के दीपक में डालकर समीपस्थ पीपल के पेड़ की जड़ के पास प्रज्ज्वलित करना चाहिए और ‘ऊँ शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का कुछ समय जप करना चाहिए।
2. उसके बाद मंदिर के सामने बैठे अपाहिज भिखारियों को उड़द दाल-चावल की खिचड़ी या उड़द दाल के बड़े यथाशक्ति बांटना चाहिए। धन का दान नहीं देना चाहिए।

 3. अपने नौकरो और सफाई कर्मचारियों से अच्छा व्यवहार और सामथ्र्य अनुसार कभी-कभी उनकी सहायता करते रहना चाहिए। उपरोक्त उपाय श्रद्धापूर्वक कुछ माह करने से जीवन में सुख-शांति का अनुभव होना आरंभ हो जाएगा।

कर्ज की समस्या और ज्योतिषीय कारण

कर्ज की समस्या और ज्योतिषीय कारण:-
जन्म होते ही हम अपने प्रारब्ध के चक्र से बंधे होते हैं, और जन्मकुंडली हमारे इसी प्रारब्ध को सूचित करती है। हमारे जीवन में सभी घटनाएं नवग्रह द्वारा ही सूचित होती हैं। आज के समय में जहाँ आर्थिक असंतुलन हमारी चिंता का एक मुख्य कारण है, वहीँ एक दूसरी स्थिति जिसके कारण अधिकांश लोग चिंतित और परेशान रहते हैं वह है “कर्ज की स्थिति” धन चाहे व्यक्तिगत लिया गया हो, या सरकारी लोन के रूप में, ये दोनों ही स्थितियां व्यक्ति के ऊपर एक बोझ के समान बनी रहती हैं, कई बार ना चाहते हुये भी परिस्थितिवश व्यक्ति को कर्ज रुपी बोझ का सामना करना ही पड़ता है, वैसे तो आज के समय में अपने कार्यो की पूर्ती के लिए अधिकांश लोग कर्ज लेते हैं, परन्तु जब जीवन पर्यन्त बनी रहे या बार-बार यह स्थिति सामने आये तो वास्तव में यह भी हमारी कुंडली में बने कुछ विशेष ग्रहयोगों के द्वारा ही सूचित होती है।कुंडली में “छटा भाव” कर्ज का भाव माना गया है, अर्थात कुंडली का छटा भाव ही व्यक्ति के जीवन में कर्ज की स्थिति को सूचित करता है, जब कुंडली के :-
छटे भाव में कोई पाप योग बना हो, या षष्टेश ग्रह बहुत पीड़ित हो तो व्यक्ति को कर्ज की समस्या का सामना करना पड़ता है जैसे –
यदि छटे भाव में कोई पाप ग्रह नीच राशि में भावस्थ हो, छठ्ठेे भाव में राहु-चन्द्रमाँ की युति हो, राहु-सूर्य के साथ होने से ग्रहण योग बन रहा हो, छठ्ठेे भाव में राहु मंगल का योग हो, छठ्ठे भाव में गुरु-चाण्डाल योग बना हो, शनि-मंगल या केतु-मंगल की युति छठ्ठे भाव में हो तो …ऐसे पाप या क्रूर योग जब कुंडली के छटे भाव में बनते हैं तो व्यक्ति को कर्ज की समस्या बहुत परेशान करती है और री-पेमेंट में बहुत समस्यायें आती हैं।
छठ्ठे भाव का स्वामी ग्रह भी जब नीच राशि में हो अष्टम भाव में हो या बहुत पीड़ित हो तो कर्ज की समस्या होती है । इसके अलावा “मंगल” को कर्ज का नैसर्गिक नियंत्रक ग्रह माना गया है ! अतः यहाँ मंगल की भी महत्वपूर्ण भूमिका है यदि कुंडली में मंगल अपनी नीच राशि (कर्क) में हो आठवें भाव में बैठा हो, या अन्य प्रकार से अति पीड़ित हो तो भी कर्ज की समस्या बड़ा रूप ले लेती है”
विशेष: – यदि छठ्ठे भाव में बने पाप योग पर बलवान बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो कर्ज का रीपेमेंट संघर्ष के बाद हो जाता है या व्यक्ति को कर्ज की समस्या का समाधान मिल जाता है परन्तु बृहस्पति की शुभ दृष्टि के आभाव में समस्या बनी रहती है।
छठ्ठे भाव में पाप योग जितने अधिक होंगे उतनी समस्या अधिक होगी, अतः कुंडली का छठा भाव पीड़ित होने पर लोन आदि लेने में भी बहुत सतर्कता बरतनी चाहिये।
बहुत बार व्यक्ति की कुंडली अच्छी होने पर भी व्यक्ति को कर्ज की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिसका कारण उस समय कुंडली में चल रही अकारक ग्रहों की दशाएं या गोचर ग्रहों का प्रभाव होता है, जिससे अस्थाई रूप से व्यक्ति उस विशेष समय काल के लिए कर्ज के बोझ से घिर जाता है।
उदाहरणार्थ : अकारक षष्टेश और द्वादशेश की दशा व्यक्ति को कर्ज की समस्या देती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में अलग-अलग ग्रह-स्थिति और अलग-अलग दशाओं के कारण व्यक्तिगत रूप से तो कुण्डली विश्लेषण के बाद ही किसी व्यक्ति के लिए चल रही कर्ज की समस्या के लिए सटीक ज्योतिषीय उपाय निश्चित किये जा सकते हैं। अतः यहाँ हम कर्जमुक्ति के लिए ऐसे कुछ मुख्य उपाय हैं, जिन्हें कोई भी व्यक्ति कर सकता है:-
उपाय :-
1. मंगल यन्त्र को घर के मंदिर में लाल वस्त्र पर स्थापित करें, और प्रतिदिन इस मंत्र का एक माला जाप करें :- ॐ क्राम क्रीम क्रोम सः भौमाय नमः।
2. प्रति दिन *ऋणमोचन मंगल स्तोत्र* का पाठ करें।
3. *हनुमान चालीसा* का पाठ करें।

जीवन में सर्वत्र सफलता , यश, कीर्ति हेतु कुछ खास उपाय l

जीवन में सर्वत्र सफलता , यश, कीर्ति हेतु कुछ खास उपाय l

1. जीवन में मनवांछित सफलता प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से अपने माता - पिता और बड़े बुजर्गो का आशीर्वाद लें कर ही अपने दिन की शुरुआत करें और तभी घर से कहीं बाहर जाएँ ,याद रखिये उनका कभी भी किसी भी दशा में दिल न दुखाएं ।

2.स्त्रियों को देवी का स्वरुप माना गया है घर की सभी स्त्रियों(एवं किसी भी स्त्री को )पूर्ण सम्मान दें ,शास्त्रों में भी लिखा है जिस घर में स्त्रियाँ प्रसन्न रहती है वहां पर सौभाग्य स्वयं खिंचा चला आता है ।

3.जीवन में स्थाई सुख और सफलता तभी प्राप्त होती है जब हमारे कर्म शुभ होते है , क्रोधी , लालची, अभिमानी , शक्ति का दुरूपयोग करने वाला , गलत तरीके से धन संग्रह करने वाले को यदि धन, शक्ति और सत्ता का आस्थाई सुख मिलता भी है तो उसको पारिवारिक जीवन का सुख नहीं मिलता है उसका बुडापा कष्टमय बीतता है , उसके जीवन में निरंतर अस्थिरता बनी रहती है , उसके परिवार में कोई न कोई रोग बना ही रहता है इसलिए हम सभी को अपने कर्म अवश्य ही अच्छे करने चाहिए ।

4.यदि जीवन में लगातार कार्यों में बाधाएं आती है तो किसी भी दिन किसी मंदिर में अनाज के दाने चड़ाकर सच्चे मन से अपनी मनोकामना को कहिये , काम अवश्य ही निर्विघ्न रूप से पूर्ण और सफल होगा ।

5.सुबह उठते ही सर्वप्रथम अपने दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर गौर से देखें , फिर उसे ३ बार चूम कर अपने चेहरे पर फिराएं , उसके बाद अपने इष्टदेव को मन ही मन में प्रणाम करते हुए अपना दाहिना पावँ जमीन पर रखें , तत्पश्चात अपने माता - पिता के चरण छू कर उनसे आशीर्वाद लें उनका अभिवादन करें तभी कुछ और बोलें ..यह दिन की शुरुआत बहुत ही चमत्कारी मानी जाती है , इससे आप निश्चित ही पूरे दिन उत्साह और प्रसन्नता का अनुभव करेंगे ।

6.प्रतिदिन प्रातः काल कुल्ला करके सर्वप्रथम थोडा शहद चख लें , तत्पश्चात नियमित रूप से सुबह नहाने के बाद सूर्य देवता को ताम्बें के बर्तन में गुड़ / चीनी , फूल मिश्रित जल से अर्ध्य दिया करें , इससे जीवन में समस्त बाधाएँ दूर होती है एवं मान सम्मान ,ऐश्वर्य और सफलता की प्राप्ति होती है ।

7.मंगलवार के दिन मिट्टी के एक बर्तन में शुद्ध शहद भरकर किसी एकांत स्थान में चुपचाप रख आईये,कार्य निर्विघ्न रूप से बनने लगेंगे,ऐसा करने से पहले या बाद में इसे किसी को भी न बताएं ।

8.यदि गृह स्वामी अपने भोजन से गाय , चिड़िया और कुत्ते के लिए कुछ अंश निकालकर उन्हें नियमित रूप से खिला दें तो उसके घर में सदैव सुख और सौभाग्य का वास बना रहता है ।

9.रविवार को छोड़कर रोजाना सुबह स्नान के बाद पीपल के पेड़ में सादा जल और शनिवार के दिन दूध, गुड / शक्कर , मिश्रित जल चड़ाकर और संध्या के समय धूप / कडवे तेल का दीपक अर्पित करके अपनी मनोकामना कहिये , हर कार्यों में शीघ्र ही सफलता मिलनी लगेगी ।

10.एक बिलकुल नया लाल सूती वस्त्र लेकर उसमें जटायुक्त नारियल बांधकर प्रभु का स्मरण करते हुए उस नारियल से अपनी मनोकामना 7 बार कहें फिर उसे बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें , कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होने लगेगीं ।

11. दाहिने हाथ में काला धागा और दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली में सोने की अंगूठी धारण करें , इससे कार्य आसानी से बनेगें ।

12.यदि आपका कोई शत्रु है जो आपके कार्यों में रूकावट डालता है आपको हानि पहुंचाता सकता है तो मंगलवार के दिन एक नए लाल कपडे में 900 ग्राम लाल मसूर की दाल , सवा किलो गुड , एक कोई भी ताम्बें का बर्तन , चमेली के तेल की शीशी और 11 रुपये बांधकर उसे पहले हनुमान जी के चरणों से लगाकर अपनी सफलता के लिए प्रार्थना करें फिर किसी भी गरीब जरुरतमंद को दान दें दें ....ऐसा 3 मंगलवार तक अवश्य करें और उस दिन किसी पर भी क्रोध न करें ,शत्रु शांत होने लगेंगे ।

13.आर्थिक रुकावटें दूर करने के लिए धनतेरस से दीपावली तक लगातार तीन दिन संध्या के समय शुद्ध घी का दीपक जलाकर गणेश जी को लड्डू अर्पित करने और गणेश स्त्रोत्र का पाठ करने से सभी आर्थिक कार्य बनने लगते है ।

14.रात को सोते समय अपने सिरहाने में एक ताम्बे के बर्तन में जल भरकर उसमें शहद मिलकर कोई भी सोने / चाँदी की अंगूठी अथवा सिक्का रखकर उस बर्तन को बंद कर दें और सुबह अपने इष्ट देव एवं अपने माता - पिता को प्रणाम करने के बाद सर्वप्रथम निहार मुंह उसी जल को पियें , सभी कार्यों में आसानी से सफलता मिलने लगेगी ।

15.अपने घर की छत को हमेशा साफ करवाते रहे , पानी की टंकी दक्षिण , नैत्रतय कोण , दक्षिण या पश्चिम में ही रखवाएं और कोई भी भारी सामान इन्ही क्षेत्रों में रखें , याद रहे वावय्व कोण ,उत्तर , पूर्व और ईशान कोण हमेशा खाली या हल्का रहना चाहिए ।

16.यदि गोमती चक्र को लकड़ी की डिब्बी में पीले सिंदूर के साथ रख  दिया जाय तो व्यक्ति के कार्यों में बाधाएं खत्म होने लगती है उस व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होनी शुरू हो जाती है ।

17. व्यापार या किसी भी खास काम में जाने से पहले 21/- रुपये किसी गुप्त जगह में ईश्वर का नाम लेते हुए रखकर चले जाएँ, आपको सफलता मिलने की पूरी सम्भावना बनेगी ...वापस आकर इन रुपये को बिना किसी को बताए हुए किसी गरीब को दान में दे दें ।

18. घर से बाहर जाते हुए सबसे पहले विपरीत दिशा में चार पग जाये उसके पश्चात पलट कर अपने कार्य में चले जाये कार्यों में सफलता मिलेगी।

19. रविवार को छोड़कर प्रतिदिन 2-3 तुसली के पत्ते ग्रहण करके घर से बाहर जाने पर सभी बाधाएँ दूर होती है ।

20. प्राता काल गणेश जी को दूर्वा अर्पित करके घर से बाहर जाएँ सभी कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न होंगे ।

21. 5 बत्तियों का दीपक किसी भी मंगलवार या शनिवार को हनुमान मंदिर में जला कर उनसे अपनी समस्या के निराकरण के लिए प्रार्थना करें सभी परेशानियाँ, मानसिक तनाव दूर हो जायेंगे ।

22. सुबह पूजा के बाद आरती करते हुए दीपक में दो लौंग डाल दें या कपूर में दो फूल वाले लौंग डालकरआरती करें दिन भर सारे कार्य सुगमता से बनेगें ।

23. शनिवार के दिन सरसों के तेल और काली उरद के दान देने से सभी बाधाएं दूर हो जाती है ।

24. यदि आये दिन आपके कार्यों में विघ्न आते है बने हुए काम बिगड़ जाते है तो किसी भी दिन सरसों के तेल के दीपक में एक अखंडित लौंग डालकर उस दीपक को निर्जन स्थान में जला दें और प्रभु से मन ही मन अपनी समस्या के निराकरण के लिए प्रार्थना करें .....सभी विघ्न बाधाएं शांत हो जाएगी।।।। कार्यों में सफलता मिलने लगेगी ।

25. रविवार को छोड़कर प्रतिदिन सुबह तुलसी के पौधे में जल चड़ाकर धूप से अर्ध्य देकर ही घर से बाहर जाएँ ...सभी दिशाओं से उत्साह वर्धक समाचार प्राप्त होंगे ।

26. महत्वपूर्ण कार्यों को करते समय लाल/नीले गहरे कलर के कपड़े पहनने से कार्यों में अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है ।

27. घर से बाहर किसी महत्वपूर्ण कार्य में जाते समय मुख्य द्वार पर काली मिर्च डालकर उस पर पैर रखकर घर से बाहर निकलें फिर वापस न आएं कार्यों में सफलता मिलेगी ।

29. सिंदूर लगाये हुवे भेरवनाथ जी की मूर्ति से सिंदूर लेकर के अपने ललाट पर तिलक करे और अपने मन की सारी बात भेरवनाथ जी को कह दे एसा प्रत्येक रविवार के दिन करे कुछ ही सप्ताह में आपके सभी काम निर्विघ्न रूप से बनते ही जायेगे |

30. किसी शनिवार को, यदि उस दिन `सर्वार्थ सिद्धि योग’ हो तो अति उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी सूत नाप लें। फिर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्वच्छ जल से धोकर पोंछ लें। तब पत्ते पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी सूत लपेट दें और पत्ते को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और कामनाओं की पूर्ति होती है।

31. प्रत्येक प्रकार के संकट निवारण के लिये भगवान गणेश की मूर्ति पर कम से कम 21 दिन तक थोड़ी-थोड़ी जावित्री चढ़ावे और रात को सोते समय थोड़ी जावित्री खाकर सोवे। यह प्रयोग 21, 42, 64 या 84 दिनों तक करें।

32. बुधवार के दिन सुबह स्नान अदि करने के बाद समीप स्थित किसी गणेश मंदिर जाएं और भगवान श्रीगणेश को 21 गुड़ की ढेली के साथ दूर्वा रखकर चढ़ाएं। इस उपाय को करने से भगवान श्रीगणेश भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। ये बहुत ही चमत्कारी उपाय है।

यह कुछ ऐसे उपाय है जिनको सच्चे मन से अपनाकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में तमाम बाधाओं को दूर करते हुए अपने कार्यों में सफलता प्राप्त कर सकता है ।

नित्य प्रतिदिन घर से बाहर काम पर जाते समय अपनी माँ अथवा पत्नी के हाथ से थोड़ा मीठा दही या कुछ भी मीठा जैसे एक चुटकी चीनी ही खाकर फिर उस दिन के हिसाब से उपाय करके बाहर जाये आपको सर्वत्र सफलता मिलेगी।

किसी भी शुभ कार्य में जाने से पहले यदि सप्ताह के सभी दिन यथासंभव निम्न बातों का ध्यान रखें तो हर प्रकार से उन्नति एवं लाभ की प्राप्ति होती है । -

1. रविवार को पान खाकर या पान का पत्ता साथ रखकर जायें।

2. सोमवार को दर्पण में अपना चेहरा देखकर बाहर काम पर जाएँ।

3. मंगलवार को गुड़ या मिष्ठान खाकर घर से बाहर जायें।

4. बुधवार को हरा / सूखा धनिया खाकर घर से जायें ।

5. गुरूवार को जीरा या सरसों के कुछ दाने मुख में डालकर जायें।

6. शुक्रवार को दही खाकर काम जायें।

7. शनिवार को अदरक और घी खाकर जाना चाहिये। 

नक्षत्र माहीती


✳ *नक्षत्र माहीती*
नक्षत्र: अश्विनी
नक्षत्र देवता : अश्विनीकुमार
नक्षत्र स्वामी : केतु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : कुचला
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : अडुळसा
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण मेष राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: घोडा
नक्षत्र तत्व : वायु
नक्षत्र स्वभाव : शुभ
पौराणिक मंत्र:
अश्विनी देवते श्वेतवर्णो तौव्दिभुजौ स्तुमः
lसुधासंपुर्ण कलश कराब्जावश्च वाहनौ ll
नक्षत्र देवता मंत्र:
अ)ॐअश्विनी कुमाराभ्यां नमः
आ) ॐ अश्विभ्यां नमः
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:
स्वर्वेद्यावश्वीनौ देवौव्दिभुजौ शुक्लवर्णकोl
सर्वारिष्ट विनाशाय अश्विभ्यांवै नमो नमः
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ अश्वयुगभ्यां नमःl
२) भरणी
नक्षत्र : भरणी
नक्षत्र देवता : यम - आद्य पितर
नक्षत्र स्वामी :शुक्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : आवळा
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : खैर
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण मेष राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : हत्ती
नक्षत्र तत्व : अग्नी
नक्षत्र स्वभाव : क्रूर
पौराणिक मंत्र:
पाशदण्डं भुजव्दयं यमं महिष वाहनम l
यमं नीलं भजे भीमं सुवर्ण प्रतीमागतम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ यमाय् नमः l
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
दंडहस्तघरं देवं महामहिष वाहनं l
सर्वारिष्टं विनाशय नैमिनित्यं ll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ अपभरणीभ्यो नमःl
३) कृतिका
नक्षत्र: कृतिका
नक्षत्र देवता : अग्नी
नक्षत्र स्वामी : रवि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : उंबर, औदुंबर
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : बेहडा
राशी व्याप्ती : १ले चरण मेष राशीमध्ये,
बाकीचे ३ चरण वृषभ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: बकरी
नक्षत्र तत्व :अग्नी
नक्षत्र स्वभाव : क्रूर
पौराणिक मंत्र:
कृतिका देवतामाग्निं मेशवाहनं संस्थितम् l
स्त्रुक् स्तुवाभीतिवरधृक्सप्तहस्तं नमाम्यहम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ आग्नेय नमः l
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
आग्नेयः पुरुषोरक्त सर्व देवमयोव्ययः ll
नक्षत्र नाम मंत्र :ॐ कृतिकाभ्यो नमःl
४) रोहिणी
नक्षत्र: रोहिणी
नक्षत्र देवता :ब्रम्हा
नक्षत्र स्वामी : चंद्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :जांभळी, जांभूळ
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: बेल
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण वृषभ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: सर्प
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: शुभ
पौराणिक मंत्र:
प्रजापतीश्वतुर्बाहुः कमंडल्वक्षसूत्रधृत् l
वराभयकरः शुध्दौ रोहिणी देवतास्तु मे ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:-
अ) ॐ ब्रम्हणे नमःl
आ) ॐ प्रजापतये नमःll
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
त्रुवाक्ष मालाकरक पुस्तकाढ़यं चतुर्भुजं l
सर्वारिष्ट विनाशाय दातवत्क्रं नमामिच ll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ रौहिण्यै नमःl
५) मृगशीर्ष
नक्षत्र: मृगशीर्ष
नक्षत्र देवता: चंद्र
नक्षत्र स्वामी: मंगळ
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : खैर (कात)
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: पिंपळ
राशी व्याप्ती : २ चरण वृषभ राशीमध्ये,
बाकीचे २ चरण मिथुन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी :सर्प
नक्षत्र तत्व: वायु
नक्षत्र स्वभाव: शुभ
पौराणिक मंत्र:
श्वेतवर्णाकृतीः सोमो व्दिभुजो वरदण्डभृत् lदशाश्वरथमारूढो मृगशिर्षोस्तु मे मुदे ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र :-
अ) ॐ चंद्रमसे नमःl
आ) ॐ सोमाय नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
सर्व नक्षत्रं मध्येतु सोमोराजा व्यवस्थितःl
सर्वारिष्ट विनाशाय सोमाय सततं नमः ll
नक्षत्र नाम मंत्र :- ॐ मृगशीर्षाय नमःl
६) आर्द्रा
नक्षत्र: आर्द्रा
नक्षत्र देवता : रुद्र (शिव)
नक्षत्र स्वामी : राहु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : कृष्णागरू
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : चंदन
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण मिथुन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : कुत्रा
नक्षत्र तत्व : जल
नक्षत्र स्वभाव : तीक्ष्ण
पौराणिक मंत्र:
रुद्र श्वेतो वृशारूढः श्वेतमाल्यश्चतुर्भुजःl
शूलखड्गाभयवरान्दधानो मे प्रसीदतु ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ रुद्राय नमः l
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
रुद्रोदेवो वृषारुढश्चतुर्बाहुस्त्रिलोचनःl
सर्वारिष्ट विनाशाय रुद्रायच नमोनमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ आर्द्रायै नमःl
७) पुनर्वसु
नक्षत्र: पुनर्वसु
नक्षत्र देवता: अदिती
नक्षत्र स्वामी: गुरू
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : वेळू/ बांबू
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : वड
राशी व्याप्ती: 3 चरणे मिथुन राशीमध्ये,
बाकीचे १ चरण कर्क राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: मांजर
नक्षत्र तत्व: वायु
नक्षत्र स्वभाव: चर
पौराणिक मंत्र:
अदितीः पीतवर्णाश्च स्त्रुवाक्षकमण्डलून l
दधाना शुभदा मे स्यात पुनर्वसु कृतारव्या ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र :-
अ) ॐ आदित्यै नमःl
आ)ॐ आदितये नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
अदितीर्देवमाताच पुनर्वस्वधिपातया l
सर्वारिष्ट विनाशाय आदित्यैय नमोनमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ आर्द्रायै नमःl
८) पुष्य
नक्षत्र: पुष्य
नक्षत्र देवता: गुरु
नक्षत्र स्वामी: शनि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: पिंपळ
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : पळस
राशी व्याप्ती :४ हि चरण कर्क राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी :बकरी
नक्षत्र तत्व :अग्नी
नक्षत्र स्वभाव:शुभ
पौराणिक मंत्र:
वंदे बृहस्पतिं पुष्यदेवता मानुशाकृतिम् l
सर्वाभरण संपन्नं देवमंत्रेण मादरात् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र :- ॐ बृहस्पतये नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
देवमंत्री विशालाक्ष सदालोकहिते रतःl
सर्वारिष्ट विनाशाय धिषणाय नमोनमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ पुष्याय नमःl
९) आश्लेषा
नक्षत्र:आश्लेषा
नक्षत्र देवता: सर्प
नक्षत्र स्वामी : बुध
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: जुई (नागचाफा)
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष :उंडी
राशी व्याप्ती :४ हि चरण कर्क राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : मांजर
नक्षत्र तत्व : जल
नक्षत्र स्वभाव: तीक्ष्ण,शोक
पौराणिक मंत्र: सर्पोरक्त स्त्रिनेत्रश्च फलकासिकरद्वयःl
आश्लेषा देवता पितांबरधृग्वरदो स्तुमे ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ सर्पेभ्यो नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
स्वर्वेद्यावश्वीनौ देवौ व्दिभुजौ शुक्लवर्णको lसर्वारिष्ट विनाशाय तुस्मै नित्यं नमोनमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ आश्लेषायै नमःl
१०) मघा
नक्षत्र: मघा
नक्षत्र देवता: पितर
नक्षत्र स्वामी: केतु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: वड
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: रिठा
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण सिंह राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: उंदीर
नक्षत्र तत्व: अग्नी
नक्षत्र स्वभाव :क्रुर, उग्र
पौराणिक मंत्र :
पितरः पिण्डह्स्ताश्च कृशाधूम्रा पवित्रिणःl
कुशलं द्घुरस्माकं मघा नक्षत्र देवताःll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ पितृभ्यो नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
पितरः कृष्णवर्नाश्च चतुर्हस्ता विमा नगाःl
सर्वारिष्ट विनाशाय तेभ्योनित्यं नमोनमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ मघायै नमःl
११)पुर्वा (फाल्गुनी)
नक्षत्र: पुर्वा (फाल्गुनी)
नक्षत्र देवता : भग
नक्षत्र स्वामी : शुक्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : पलाश (पळस)
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: बेल
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण सिंह राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी:उंदीर
नक्षत्र तत्व: क्रुर
नक्षत्र स्वभाव : शुभ
पौराणिक मंत्र:
भगं रथवरारुढं व्दिभुंज शंखचक्रकम् l
फाल्गुनीदेवतां ध्यायेत् भक्ताभीष्टवरप्रदाम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ भगाय नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
स्वर्वेद्यावश्वीनौ देवौ व्दिभुजौ शुक्लवर्णको lसर्वारिष्ट विनाशाय अश्विभ्यांवै नमो नमः
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ पुर्व फाल्गुनीभ्यां नमःl
१२) उत्तरा (फाल्गुनी)
नक्षत्र:उत्तरा (फाल्गुनी)
नक्षत्र देवता : अर्यमा
नक्षत्र स्वामी: रवि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : पायरी पिंपरी(प्लक्ष)
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष :अर्जुन
राशी व्याप्ती १ ले चरण सिंह राशीमध्ये,
बाकीचे ३ चरण कन्या राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: गाय
नक्षत्र तत्व :वायु
नक्षत्र स्वभाव: शुभ
पौराणिक मंत्र: संपूजयाम्यर्यमणं फाल्गुनी तार देवताम् l
गायत्री मंत्रः धुम्रवर्णं रथारुढं सुशक्तिकरसंयुतम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र :- ॐ अर्यम्ने नमः
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
उत्तराधिपतिश्चैव लोकसंरक्षकस्तथा l
सर्वारिष्ट विनाशाय तस्मै नित्यं नमोनमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ उत्तरा फाल्गुनीभ्यां नमःl
१३) हस्त
नक्षत्र :हस्त
नक्षत्र देवता : सुर्य
नक्षत्र स्वामी : चंद्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : जाई,चमेली
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: रिठा
राशी व्याप्ती :४ हि चरण कन्या राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : म्हैस
नक्षत्र तत्व : वायु
नक्षत्र स्वभाव: शुभ, सत्वगुणी
पौराणिक मंत्र:
सवितारहं वंदे सप्ताश्चरथ वाहनम् l
पद्मासनस्थं छायेशं हस्तनक्षत्रदेवताम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र :- ॐ सवित्रे नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
हस्तस्याधिपतीः सुर्यःजगदात्मा तथैवच l
सर्वारिष्ट विनाशाय अश्विभ्यांवै नमो नमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ हस्ताय नमःl
१४) चित्रा
नक्षत्र : चित्रा
नक्षत्र देवता: त्वष्टा
नक्षत्र स्वामी: मंगळ
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: बेल
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: बकुळ
राशी व्याप्ती : २ चरण कन्या राशीमध्ये,
बाकीचे, २ चरण तुळ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: वाघ
नक्षत्र तत्व : वायु
नक्षत्र स्वभाव: तीक्ष्ण
पौराणिक मंत्र:
त्वष्टारं रथमारूढं चित्रानक्षत्रदेवताम् l
शंखचक्रान्वितकरं किरीटीनमहं भजे ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ त्वष्ट्रे नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
त्वाष्ट्राॠक्षधिपश्चैव भक्त संरक्षकस्तथा l
सर्वारिष्ट विनाशाय त्वष्ट्राधिप नमोनमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ चित्रायै नमःl
१५) स्वाती
नक्षत्र :स्वाती
नक्षत्र देवता: वायु
नक्षत्र स्वामी : राहु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: अर्जुन
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : काटे सांवर
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण तुळ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: म्हैस
नक्षत्र तत्व: अग्नी
नक्षत्र स्वभाव: शुभ
पौराणिक मंत्र:
वायुवरं मृगारुढं स्वाती नक्षत्र देवताम् l
खड्.ग चर्मोज्वल करं धुम्रवर्ण नमाम्यह्म् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ वायवे नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
स्वर्वेद्यावश्वीनौ देवौव्दिभुजौ शुक्लवर्णकोl
सर्वारिष्ट विनाशाय अश्विभ्यांवै नमो नमः
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ स्वात्यै नमःl
१६) विशाखा
नक्षत्रःविशाखा
नक्षत्र देवता : इंद्राग्नी
नक्षत्र स्वामी : गुरू
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: देव बाभुळ ( दा.पं. = नागकेशर )
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : पारिजातक
राशी व्याप्ती : पहिले 3 चरण तुळ राशीमध्ये,
बाकीचे १ चरण वृश्चिक राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : वाघ
नक्षत्र तत्व : वायु
नक्षत्र स्वभाव: अशुभ
पौराणिक मंत्र:
इंद्राग्नीशुभदौ स्यातां विशाखा देवतेशुभे l
नमोम्ये करथारुढौ वराभयकरांबुजौ ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ इंद्राग्नीभ्यां नमः
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
स्वर्वेद्यावश्वीनौ देवौ व्दिभुजौ शुक्लवर्णको lसर्वारिष्ट विनाशाय इंद्राग्नीभ्यां नमोनमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ विशाखाभ्यां नमःl
१७) अनुराधा
नक्षत्र :अनुराधा
नक्षत्र देवता : मित्र
नक्षत्र स्वामी : शनि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :नागकेशर
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष : सिता अशोक
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण वृश्चिक राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: हरीण
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: शुभ
पौराणिक मंत्र:
मित्रं पद्मासनारूढं अनुराधेश्वरं भजे l
शूलां कुशलसद्भाहुं युग्मंशोणितवर्णकम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ मित्राय नमः l
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
अनुराधाधिपोमित्रः आयुष्योवर्धकस्तथा l सर्वारिष्ट विनाशाय मित्रायच नमोनमः
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ अनुराधाभ्यो नमःl
१८) जेष्ठा
नक्षत्र: जेष्ठा
नक्षत्र देवता: इंद्र
नक्षत्र स्वामी :बुध
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: निर्गुडी/सांबळ (दा.पं. = सांबर )
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: लोध्र
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण वृश्चिक राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: हरीण
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: तीक्ष्ण
पौराणिक मंत्र:
श्वेतहस्तिनमारूढं वज्रांकुशलरत्करम् l
सहस्त्रनेत्रं पीताभं इंद्रं ह्रदि विभावये ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ इंद्राय नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
इंद्रः सुरपतिः श्रेष्ठो वज्रहस्तो महाबलः l
रातयज्ञाधिपो देवस्तर मैनित्यं नमो नमः|l
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ जेष्ठायै नमःl
१९) मूळ
नक्षत्र:मूळ
नक्षत्र देवता: निॠति (राक्षस)
नक्षत्र स्वामी: केतु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : राळ
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: देव बाबुळ
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण धनु राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: कुत्रा
नक्षत्र तत्व : जल
नक्षत्र स्वभाव: तीक्ष्ण
पौराणिक मंत्र: खड्.गखेटधरं कृष्णं यातुधानं नृवाहनम् l
अर्ध्वकेशं विरुपाक्षं भजे मुलाधिदेवताम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ निॠतये नमः l
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
निॠति खड्.गहस्तंच सर्व लोकैक पावन l
नरवाहन मत्युग्रं वंदेहं कालिकाप्रियं ll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ मुलाय नमःl
२०) पूर्वाषाढा
नक्षत्र: पूर्वाषाढा
नक्षत्र देवता: जल/ उदक
नक्षत्र स्वामी: शुक्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: वेत
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: अशोक सीता
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण धनु राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी:वानर
नक्षत्र तत्व: जल
नक्षत्र स्वभाव: उग्र
पौराणिक मंत्र:
आषाढदेवता नित्यमापः सन्तु शुभावहाःl
समुद्र गास्तरा गिणोल्हादिन्यःसर्वदेहिनाम्ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ अद्भयो नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
स्त्रीरूपाः पाशाकलशहस्ता मकरवाहनाःl
श्वेतमौक्तिक भूषाढ्या अद्भस्ताभ्यो नमो नमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ पूर्वाषाढाभ्यां नमःl
२१) उत्तराषाढा
नक्षत्र: उत्तराषाढा
नक्षत्र देवता: विश्वदेव
नक्षत्र स्वामी: रवि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :फणस
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: कांचन
राशी व्याप्ती : पहिले चरण धनु राशीमध्ये,
बाकीचे ३ चरण मकर राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: मुंगुस
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: स्थिर
पौराणिक मंत्र:
विश्वांदेवान् अहं वंदेषाढनक्षत्रदेवताम् l
श्रीपुष्टिकीर्तीधीदात्री सर्वपापानुमुक्तये ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः l
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
देवता बहुरूपत्वात् विश्वेदेवास्तथैवच l
सर्वारिष्ट विनाशाय तेभ्यो नित्यं नमो नमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ उत्तराषाढाभ्यां नमःl
२२) श्रवण
नक्षत्र: श्रवण
नक्षत्र देवता: विष्णु
नक्षत्र स्वामी: चंद्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: रुई ( अर्क ) मंदार
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: आंबा
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण मकर राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: वानर
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: चर
पौराणिक मंत्र:
शांताकारं चतुर्हस्तं श्रोणा नक्षत्रवल्लभम् l
विष्णु कमलपत्राक्षं ध्यायेद् गरुड वाहन् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ विष्णवे नमः l
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
विष्णुं विष्णुं महाविष्णुं महेश्वरं l
सर्वारिष्ट विनाशाय नमामि पुरुषोत्तम ll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ श्रवणाय नमःl
२३) धनिष्ठा
नक्षत्र: धनिष्ठा
नक्षत्र देवता :वसु
नक्षत्र स्वामी: मंगळ
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: शमी
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: नीम
राशी व्याप्ती: पहिले २ चरण मकर राशीमध्ये,
बाकीचे २ चरण कुंभ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: सिंह
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: थोडेसे शुभ
पौराणिकमंत्र
श्राविष्ठादेवतां वंदे वसुन्वरधराश्रिताम् l
शंखचक्रांकितरांकिरीटांकित मस्तकाम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ वसुभ्यो नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
अष्टौदेवाच वसवो यज्ञ संरक्षकास्तथा l
सर्वारिष्ट विनाशाय तेभ्यो नित्यं नमो नमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ धनिष्ठायै नमःl
२४) शततारका
नक्षत्र: शततारका
नक्षत्र देवता: वरुण
नक्षत्र स्वामी: राहु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :कदंब
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष:आपटा
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण कुंभ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: घोडा
नक्षत्र तत्व: जल
नक्षत्र स्वभाव: चर
पौराणिक मंत्र:
वरुणं सततं वंदे सुधाकलश धारीणम् l
पाशहस्तं शतभिशग् देवतां देववंदीतम ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ वरुणाय नमः
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
पाशहस्तंच वरुणं यादसां पतिमीश्वरं l
अपांपति महं वंदे देवं मकरवाहनं ll
नक्षत्र नाम मंत्र :- ॐ शतभिषजे नमः
२५) पुर्वाभाद्रपदा
नक्षत्र: पुर्वाभाद्रपदा
नक्षत्र देवता: अजैक चरण
नक्षत्र स्वामी: गुरू
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: आंबा
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: हिरडा
राशी व्याप्ती : पहिले ३ चरण कुंभ राशीमध्ये,
बाकीचे १ चरण मीन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी :सिंह
नक्षत्र तत्व: अग्नी
नक्षत्र स्वभाव: उग्र
पौराणिक मंत्र:
शिरसा महजं वंदे ध्येकपादं तमोपहम् l
मुदे प्रोष्ठपदेवानं सर्वदेवनमस्कृतम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र :-
ॐ अजैकपदे नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
अजायैकपदे नित्यं लोकस्यानंददायकः l
सर्वारिष्ट विनाशाय तस्मै नित्यं नमो नमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ पुर्वाप्रोष्ठपद्भ्यां नमःl
२६) उत्तराभाद्रपदा
नक्षत्र : उत्तराभाद्रपदा
नक्षत्र देवता : अहिर्बुंधन्य
नक्षत्र स्वामी: शनि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: कडुलिंब (नीम)
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष :आवळा
राशी व्याप्ती : ४ ही चरण मीन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: गायक
नक्षत्र तत्व : जल
नक्षत्र स्वभाव : ध्रुव
पौराणिक मंत्र:
अहिर्मे बुध्नियो भूयात मुदे प्रोष्ठ पदेश्वरःl
शंखचक्रांकीतकरः किरीटोज्वलमौलिमान् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ अहिर्बुंधन्याय नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
अहिर्बुंधन्यः सदाश्रेष्ठः सर्वरक्षणकस्तथा l
सर्वारिष्ट विनाशाय तस्मै नित्यं नमो नमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ उत्तरप्रोष्ठपदभ्यां नमःl
२७) रेवती
नक्षत्र : रेवती
नक्षत्र देवता :पूषा
नक्षत्र स्वामी :बुध
नक्षत्र आराध्य वृक्ष
मोह ( मधुक )
नक्षत्र पर्यायी वृक्ष: जेष्ठमध/ चिंच
राशी व्याप्ती : ४ ही चरण मीन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : हत्ती
नक्षत्र तत्व: जल
नक्षत्र स्वभाव: मृदु
पौराणिक मंत्र:
पूषणं सततं वंदे रेवतीशं समृध्दये l
वराभयोज्वलकरं रत्नसिंहासने स्थितम् ll
नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ पूष्णे नमःl
नक्षत्र पीडाहर मंत्र:-
अधिपोरेवतीॠक्षः पशुरक्षणकस्तथाl
सर्वारिष्टसर्वार्थ विनाशाय तस्मै नित्यं नमो नमःll
नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ रेवत्यै नमः

L" एल अक्षर

"L" एल अक्षर

जिस लड़की या लड़के के नाम की शुरुआत अंग्रेजी के 'L' अक्षर से होता है तो उस व्यक्ति के लिए प्यार, रोमांस ही सब कुछ होता है| रंग-रूप में भी ये काफी सुंदर होते हैं| हर चीज दिल से सोचने वाले होते हैं एल अक्षर वाले| इन्हें गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है, लेकिन इनके गुस्से पर भोलेनाथ की कृपा रहती है इसलिए इनका गुस्सा जल्द ही काफूर हो जाता है। इस अक्षर वाले लोगों की एक खासियत होती है वो है इस अक्षर का व्यक्ति कभी किसी बड़ी चीज की तमन्ना नहीं रखता हैं। इन्हें छोटी-छोटी ही चीजों में खुशी मिलती है। ये बहुत कल्पनाशील होते हैं। इसलिए ये लोग अक्सर साहित्य के क्षेत्र में अपना करियर बनाते हैं।

"O" ओ अक्षर

"O" ओ अक्षर

बेहद आकर्षक और उर्जावान होते हैं ओ अक्षर वाले| इस अक्षर वाले व्यक्ति सामाजिक सेवा में काफी योगदान देने वाले होते हैं| कुल मिलाकर यह कहा जाता है कि इस नाम के लोग सफल और अच्छे इंसान होते है। इन्हें नाम, पैसा, सोहरत सभी इनके क़दमों तले होती है| प्रेम, भावनाएं और रिश्ते इन लोगों के लिए काफी मायने रखते है। सेक्स लाइफ को बहुत पसंद करते है। इस अक्षर वाले लोग प्रेम विवाह पर ज्यादा भरोसा करते हैं| बस इनमें एक कमी होती है कि हर चीज को दिल से लगा लेते है। जो चीज इनके दिल में एक बार घर कर गई उसे निकालना काफी मुश्किल होता है। ये जल्दी किसी को माफ नहीं करते हैं।

"M" एम अक्षर

"M" एम अक्षर

संकोची और चिंतन में डूबे रहने वाले होते हैं एम अक्षर वाले| इस अक्षर का व्यक्ति हर छोटी-बड़ी बात को दिल से लगा लेने वाले होते हैं, इसलिए इनका जब दिल टूटता है तो कभी-कभी दूसरों के लिए काफी खतरनाक साबित होते है। इसलिए इन्हें संवेदनशील भी कहा जा सकता है। ऐसे लोग राजनीति में ज्यादा दिखायी पड़ते है। आमतौर पर इन्हें लोग पसंद ही करते है। वैसे ये दिल के काफी साफ इंसान होते है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जब तक आप इन्हें छेड़े नहीं तब तक ये आपको नुकसान नहीं पहुंचायेगे। एम अक्षर वाले व्यक्तियों के लिए प्रेम काफी मायने रखता है और ये अपना प्यार पाने के लिए हर संभव कोशिश भी करते है लेकिन ये धोखा करने वालों को बिल्कुल भी बक्शते नहीं है । इनके ऊपर किस्मत काफी मेहरबान होती है इसलिए धन और इज्जत इन्हें मिल ही जाती है। इस अक्षर वाले व्यक्तियों के लिए सेक्स लाईफ काफी मायने रखती है। जिद्दी स्वभाव के होते हैं एम अक्षर वाले | ये जिस चीज को एक बार पकड़ लेते हैं उसे छोड़ते भी नहीं है।

वास्तु के अनुसार भवन का नक्शा व् निर्माण

वास्तु के अनुसार भवन का नक्शा व् निर्माण """"""""""""""""""""""""""""""''''''
   वास्तु एक भवन निर्माण की प्रकिया है कला है । प्रत्येक व्याक्ति का सपना होता है कि उसका अपना घर हो जिसमें वह और उसका परिवार सुख शांति व् प्रसन्नता से रह सके और यह तभी संभव है जब भवन निर्माण में वास्तु के नियमो का पालन किया गया हो क्योंकि वास्तु का उद्देश्य सुख शांति समृद्वि व् प्रसन्नता प्रदान करना होता है ।
   वास्तु पांच तत्वों का समन्वय है ये पांच तत्त्व अग्नि जल वायु आकाश व् पृथ्वी होते है इन तत्वों का संतुलन ही वास्तु है और असन्तुलन वास्तु दोष होता है ।वास्तु सम्मत भवन का निर्माण तभी संभव है जब उसमे वास्तु के नियमो का पालन किया गया हो ।
    किसी भी भवन निर्माण से पहले भवन का नक्शा वास्तु अनुरूप बनवाते हुये उसके सभी पहलू पर ध्यान रखा जाना आवश्यक है ।साथ ही भवन की आंतरिक साज सज्जा में भी वास्तु के नियमो का पालन किया जाना भी आवश्यक है ।तभी एक वास्तु सम्मत भवन का निर्माण किया जा सकता है
1  ऐसी भूमि का चयन करें जो वास्तु दोष से मुक्त हो ।
2  भवन निर्माण हेतु ऐसी भूमि का चयन करें जो आयताकार या समकोण हो।
वास्तु अनुसार भवन का नक्शा
"""""""""""""""""""""""""""""""""''''
       किसी भी भवन में उसके मुख्य प्रवेश द्वार का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है
A....यदि आपका भवन पूर्व मुखी है तो प्रवेश द्वार E 3,व् E 4 में बना सकते है जो आपके लिये लाभदायक होगी।
B...यदि आपका भवन पाश्चिम मुखी है तो मुख्य द्वार W 3,W 4 ,W 5,व् व W 8 ,में बनवा सकते है जो शुभ फलदायक होगी ।
C....यदि आपका भवन उत्तर मुखी है तो मुख्य प्रवेश द्वार N 3,N 4, N 5 N 8 में बनवा सकते है जो शुभ फलदायक होगी।
D. ...यदि आपका भवन दक्षिण मुखी है तो मुख्य प्रवेश द्वार  S 2 ,S3, S 4 में बनवा सकते है जो शुभ फलदायक होगी।
1    ईशान कोण में पूजा का कमरा, जल का स्रोत रखा जाना चाहिये ।
2  पूर्व के मध्य में केवल स्नानघर होना चाहिये ।
3  आग्नेय कोण में रसोई घर होंना चाहिये ।
4   दक्षिण दिशा में भंडार गृह , शयन गृह होंना चाहिये ।
5  नैतृत्व कोण में मुख्य शयन रूम व् भारी सामान रखा जाना चाहिये ।
6  पाश्चिम में भोजन रूम ,  स्नान रूम ,व् शौचालय होंना चाहिये ।
7  वाव्यव कोण में शयन रूम बनाया जा सकता है ।
8  उत्तर दिशा में कीमती सामान भंडार, अध्ययन रूम , बनाया जा सकता है।
9  घर भवन का मध्य भाग खुला व् हल्का होंना चाहिये ।
     वास्तु के नियमो को ध्यान में रखकर बनाये गये नक्शे  के आधार पर भवन का निर्माण किया जाये तो वास्तु के उद्देश्य को पूरा कर सुख शान्ति सम्पति समृद्धि व् प्रसन्नता आदि को प्राप्त किया जा सकता है ।
    एक इंजिनियर आर्किटेक्ट कम से कम जगह में सुंदर से सुंदर भवन का निर्माण कर सकता है  लेकिन सुख शांति सम्पति वृद्धि समृद्धि व् प्रसन्नता वास्तु के नियमो को ध्यान में रखकर ही प्राप्त किया जा सकता है ।

नक्षत्रो के स्वामी नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें

 सूर्य:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान सूर्य देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) रविवार के दिन प्रातःकाल पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा करें.
(आ) व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ हो उस दिन (जो कि प्रत्येक माह में अवश्य आता है) भी पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा अनिवार्य करें.
(इ) पानी में कच्चा दूध मिला कर पीपल पर अर्पण करें.
(ई) रविवार और अपने नक्षत्र वाले दिन 5 पुष्प अवश्य चढ़ाए. साथ ही अपनी कामना की प्रार्थना भी अवश्य करे तो जीवन की समस्त बाधाए दूर होने लगेंगी.

 चन्द्र:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान चन्द्र देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) प्रति सोमवार तथा जिस दिन जन्म नक्षत्र हो उस दिन पीपल वृक्ष को सफेद पुष्प अर्पण करें लेकिन पहले 4 परिक्रमा पीपल की अवश्य करें.
(आ) पीपल वृक्ष की कुछ सुखी टहनियों को स्नान के जल में कुछ समय तक रख कर फिर उस जल से स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल का एक पत्ता सोमवार को और एक पत्ता जन्म नक्षत्र वाले दिन तोड़ कर उसे अपने कार्य स्थल पर रखने से सफलता प्राप्त होती है और धन लाभ के मार्ग प्रशस्त होने लगते है.

 मंगल:-

जिन नक्षत्रो के स्वामी मंगल है. उन नक्षत्रों के व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है....
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और प्रति मंगलवार को एक ताम्बे के लोटे में जल लेकर पीपल वृक्ष को अर्पित करें.
(आ) लाल रंग के पुष्प प्रति मंगलवार प्रातःकाल पीपल देव को अर्पण करें.
(इ) मंगलवार तथा जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 8 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल की लाल कोपल को (नवीन लाल पत्ते को) जन्म नक्षत्र के दिन स्नान के जल में डाल कर उस जल से स्नान करें.
(उ) जन्म नक्षत्र के दिन किसी मार्ग के किनारे १ अथवा 8 पीपल के वृक्ष रोपण करें.
(ऊ) पीपल के वृक्ष के नीचे मंगलवार प्रातः कुछ शक्कर डाले.
(ए) प्रति मंगलवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन अलसी के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष के नीचे लगाना चाहिए.

 बुध:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध ग्रह है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) किसी खेत में जंहा पीपल का वृक्ष हो वहां नक्षत्र वाले दिन जा कर, पीपल के नीचे स्नान करना चाहिए.
(आ) पीपल के तीन हरे पत्तों को जन्म नक्षत्र वाले दिन और बुधवार को स्नान के जल में डाल कर उस जल से स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल वृक्ष की प्रति बुधवार और नक्षत्र वाले दिन 6 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे बुधवार और जन्म, नक्षत्र वाले दिन चमेली के तेल का दीपक लगाना चाहिए.
(उ) बुधवार को चमेली का थोड़ा सा इत्र पीपल पर अवश्य लगाना चाहिए अत्यंत लाभ होता है.

 वृहस्पति:-

जिन नक्षत्रो के स्वामी वृहस्पति है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) पीपल वृक्ष को वृहस्पतिवार के दिन और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीले पुष्प अर्पण करने चाहिए.
(आ) पिसी हल्दी जल में मिलाकर वृहस्पतिवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष पर अर्पण करें
(इ) पीपल के वृक्ष के नीचे इसी दिन थोड़ा सा मावा शक्कर मिलाकर डालना या कोई भी मिठाई पीपल पर अर्पित करें.
(ई) पीपल के पत्ते को स्नान के जल में डालकर उस जल से स्नान करें
(उ) पीपल के नीचे उपरोक्त दिनों में सरसों के तेल का दीपक जला

 शुक्र:-

जिन नक्षत्रो के स्वामी शुक्र है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर स्नान करना.
(आ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और शुक्रवार को पीपल पर दूध चढाना.
(इ) प्रत्येक शुक्रवार प्रातः पीपल की 7 परिक्रमा करना.
(ई) पीपल के नीचे जन्म नक्षत्र वाले दिन थोड़ासा कपूर जलाना.
(उ) पीपल पर जन्म नक्षत्र वाले दिन 7 सफेद पुष्प अर्पित करना.
(ऊ) प्रति शुक्रवार पीपल के नीचे आटे की पंजीरी सालना.

शनि:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी शनि है. उस नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) शनिवार के दिन पीपल पर थोड़ा सा सरसों का तेल चडाना.
(आ) शनिवार के दिन पीपल के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाना.
(इ) शनिवार के दिन और जन्म नक्षत्र के दिन पीपल को स्पर्श करते हुए उसकी एक परिक्रमा करना.
(ई) जन्म नक्षत्र के दिन पीपल की एक कोपल चबाना.
(उ) पीपल वृक्ष के नीचे कोई भी पुष्प अर्पण करना.
(ऊ) पीपल के वृक्ष पर मिश्री चडाना.

राहू:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी राहू है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 21 परिक्रमा करना.
(आ) शनिवार वाले दिन पीपल पर शहद चडाना.
(इ) पीपल पर लाल पुष्प जन्म नक्षत्र वाले दिन चडाना.
(ई) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल के नीचे गौमूत्र मिले हुए जल से स्नान करना.
(उ) पीपल के नीचे किसी गरीब को मीठा भोजन दान करना.

 केतु:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी केतु है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न उपाय कर अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहिए.
(अ) पीपल वृक्ष पर प्रत्येक शनिवार मोतीचूर का एक लड्डू या इमरती चडाना.
(आ) पीपल पर प्रति शनिवार गंगाजल मिश्रित जल अर्पित करना.
(इ) पीपल पर तिल मिश्रित जल जन्म नक्षत्र वाले दिन अर्पित करना.
(ई) पीपल पर प्रत्येक शनिवार सरसों का तेल चडाना.
(उ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की एक परिक्रमा करना.
(ऊ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की थोडीसी जटा लाकर उसे धूप दीप दिखा कर अपने पास सुरक्षित रखना.
इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति उपरोक्त उपाय अपने अपने नक्षत्र के अनुसार करके अपने जीवन को सुगम बना सकते है, इन उपायों को करने से तुरंत लाभ प्राप्य होता है और जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है और जो बाधा हो वह तत्काल दूर होने लगती है. शास्त्र, आदि सभी महान ग्रन्थ अनुसार पीपल वृक्ष में सभी देवी देवताओं का वास होता है. उन्हीं को हम अपने जन्म नक्षत्र अनुसार प्रसन्न करते है. और आशीर्वाद प्राप्त करते है.

फलकथन करने से पूर्व विचार करने योग्य बातें

फलकथन करने से पूर्व विचार करने योग्य बातें :-
1. किसी भी ग्रह की महादशा में उसी ग्रह की अन्तर्दशा अनुकूल फल नहीं देती।
2. योगकारक ग्रह की महादशा में पापी या मारक ग्रह की अन्तर्दशा आने पर प्रारंभ में शुभ फल तथा उत्तरार्द्ध में अशुभ फल देने लगता है।
3. अकारक ग्रह की महादशा में कारक ग्रह की अन्तर्दशा आने पर प्रारंभ में अशुभ तथा उत्तरार्द्ध में शुभ फल की प्राप्ति होती है।
4. भाग्य स्थान का स्वामी यदि भाग्य भाव में बैठा हो और उस पर गुरु की दृष्टि हो तो ऐसा व्यक्ति प्रबल भाग्यशाली माना जाता है।
5. लग्न का स्वामी सूर्य के साथ बैठकर विशेष अनुकूल रहता है।
6. सूर्य के समीप निम्न अंशों तक जाने पर ग्रह अस्त हो जाते हैं, (चन्द्र-१२ अंश, मंगल-१७ अंश, बुध-१३ अंश, गुरु-११ अंश, शुक्र-९ अंश, शनि-१५ अंश) फलस्वरूप ऐसे ग्रहों का फल शून्य होता है। अस्त ग्रह जिन भावों के अधिपति होते हैं उन भावों का फल शून्य ही समझना चाहिए।
7. सूर्य उच्च का होकर यदि ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति अत्यंत प्रभावशाली तथा पूर्ण प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्तित्व होता है।
8. सूर्य और चन्द्र को छोड़कर यदि कोई ग्रह अपनी राशि में बैठा हो तो वह अपनी दूसरी राशि के प्रभाव को बहुत अधिक बढ़ा देता है।
9. किसी भी भाव में जो ग्रह बैठा है, इसकी अपेक्षा जो ग्रह उस भाव को देख रहा होता है, उसका प्रभाव ज़्यादा रहता है।
10. जिन भावों में शुभ ग्रह बैठे हों या जिन भावों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वे भाव शुभ फल देने में सहायक होते हैं।
11. एक ग्रह दो भावों का अधिपति होता है। ऐसी स्थिति में वह ग्रह अपनी दशा में लग्न से गिनने पर जो राशि पहले आएगी उसका फल वह पहले प्रदान करेगा।
12. दो केन्द्रों का स्वामी ग्रह यदि त्रिकोण के स्वामी के साथ बैठे हैं तो उसे केंद्रत्व दोष नहीं लगता और वह शुभ फल देने में सहायक हो
जाता है। सामान्य नियमों के अनुसार यदि कोई ग्रह दो केंद्र भावों का स्वामी होता है तो वह अशुभ फल देने लग जाता है चाहे वह जन्म-कुंडली में करक ग्रह ही क्यों न हो।
13. अपने भाव से केन्द्र व त्रिकोण में पड़ा हुआ ग्रह शुभ होता है।
14. केंद्र के स्वामी तथा त्रिकोण के स्वामी के संबंध हो तो वे एक दूसरे की दशा में शुभ फल देते हैं। यदि संबंध न हो तो एक की महादशा में जब दूसरे की अंतर्दशा आती है तो अशुभ फल ही प्राप्त होता है।
15. वक्री होने पर ग्रह अधिक बलवान हो जाता है तथा वह ग्रह जन्म-कुंडली में जिस भाव का स्वामी है, उस भाव को विशेष फल प्रदान करता है।
16. यदि भावाधिपति उच्च, मूल त्रिकोणी, स्वक्षेत्री अथवा मित्रक्षेत्री हो तो शुभफल करता है।
17. यदि केन्द्र का स्वामी त्रिकोण में बैठा हो या त्रिकोण केंद्र में हो तो वह ग्रह अत्यन्त ही श्रेष्ठ फल देने में समर्थ होता है। जन्म-कुंडली में पहला, पाँचवा तथा नवाँ भाव त्रिकोण स्थान कहलाते हैं। परन्तु कोई ग्रह त्रिकोण में बैठकर केंद्र के स्वामी के साथ संबंध स्थापित करता है तो वह न्यून योगकारक ही माना जाता है।
18. त्रिक स्थान (कुंडली के ३, ६, ११वे भाव को त्रिक स्थान कहते हैं) में यदि शुभ ग्रह बैठे हो तो त्रिक स्थान को शुभ फल देते हैं परन्तु स्वयं दूषित हो जाते हैं और अपनी शुभता खो देते हैं।
19. यदि त्रिक स्थान में पाप ग्रह बैठे हों तो त्रिक भावों को पापयुक्त बना देते हैं पर वे ग्रह स्वयं शुभ रहते हैं और अपनी दशा में शुभ फल देते हैं।
20. चाहे अशुभ या पाप ग्रह ही हो, पर यदि वह त्रिकोण भाव में या त्रिकोण भाव का स्वामी होता है तो उसमे शुभता आ जाती है।
21. एक ही त्रिकोण का स्वामी यदि दूसरे त्रिकोण भाव में बैठा हो तो उसकी शुभता समाप्त हो जाती है और वह विपरीत फल देते है। जैसे पंचम भाव का स्वामी नवम भाव में हो तो संतान से संबंधित परेशानी रहती है या संतान योग्य नहीं होती।
22. यदि एक ही ग्रह जन्म-कुंडली में दो केंद्रस्थानों का स्वामी हो तो शुभफलदायक नहीं रहता। जन्म-कुंडली में पहला, चौथा, सातवाँ तथा दसवां भाव केन्द्र स्थान कहलाते हैं।
23. शनि और राहु विछेदात्मक ग्रह हैं अतः ये दोनों ग्रह जिस भाव में भी होंगे संबंधित फल में विच्छेद करेंगे जैसे अगर ये ग्रह सप्तम भाव में हों तो पत्नी से विछेद रहता है। यदि पुत्र भाव में हों तो पुत्र-सुख में न्यूनता रहती है।
24. राहू या केतू जिस भाव में बैठते हैं उस भाव की राशि के स्वामी समान बन जाते हैं तथा जिस ग्रह के साथ बैठते हैं, उस ग्रह के गुण ग्रहण कर लेते हैं।
25. केतु जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है उस ग्रह के प्रभाव को बहुत अधिक बड़ा देता है।
26. लग्न का स्वामी जिस भाव में भी बैठा होता है उस भाव को वह विशेष फल देता है तथा उस भाव की वृद्धि करता है।
27. लग्न से तीसरे स्थान पर पापी ग्रह शुभ प्रभाव करता है लेकिन शुभ ग्रह हो तो मध्यम फल मिलता है।
28. तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में पापी ग्रहों का रहना शुभ माना जाता जाता है।
29. तीसरे भाव का स्वामी तीसरे में, छठे भाव का स्वामी छठे में या ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो ऐसे ग्रह पापी नहीं रहते अपितु शुभ फल देने लग जाते हैं।
30. चौथे भाव में यदि अकेला शनि हो तो उस व्यक्ति की वृद्धावस्था अत्यंत दुःखमय व्यतीत होती है।
31. यदि मंगल चौथे, सातवें , दसवें भाव में से किसी भी एक भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति का गृहस्थ जीवन दुःखमय होता है। पिता से कुछ भी सहायता नहीं मिल पाती और जीवन में भाग्यहीन बना रहता है।
32. यदि चौथे भाव का स्वामी पाँचवे भाव में हो और पाँचवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो विशेष फलदायक होता है। इसी प्रकार नवम भाव का स्वामी दशम भाव में बैठा हो तथा दशम भाव का स्वामी नवम भाव में बैठा हो तो विशेष अनुकूलता देने में समर्थ होता है।
33. अकेला गुरु यदि पंचम भाव में हो तो संतान से न्यून सुख प्राप्त होता है या प्रथम पुत्र से मतभेद रहते हैं।
34. जिस भाव की जो राशि होती है उस राशि के स्वामी ग्रह को उस भाव का अधिपति या भावेश कहा जाता है। छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी जिन भावों में रहते हैं, उनको बिगाड़ते हैं, किन्तु अपवाद रूप में यदि यह स्वगृही ग्रह हों तो अनिष्ट फल नहीं करते, क्योंकि स्वगृही ग्रह का फल शुभ होता है।
35. छठे भाव का स्वामी जिस भाव में भी बैठेगा, उस भाव में परेशानियाँ रहेगी। उदहारण के लिए छठे भाव का स्वामी यदि आय भाव में हो तो वह व्यक्ति जितना परिश्रम करेगा उतनी आय उसको प्राप्त नहीं सकेगी।
36.यदि सप्तम भाव में अकेला शुक्र हो तो उस व्यक्ति का गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता और पति-पत्नी में परस्पर अनबन बनी रहती है।
37. अष्टम भाव का स्वामी जहाँ भी बैठेगा उस भाव को कमजोर करेगा।
38. शनि यदि अष्टम भाव में हो तो उस व्यक्ति की आयु लम्बी होती है।
39. अष्टम भाव में प्रत्येक ग्रह कमजोर होता है परन्तु सूर्य या चन्द्रमा अष्टम भाव में हो तो कमजोर नहीं
रहते।
40. आठवें और बारहवें भाव में सभी ग्रह अनिष्टप्रद होते हैं, लेकिन बारहवें घर में शुक्र इसका अपवाद है क्योंकि शुक्र भोग का ग्रह है बारहवां भाव भोग का स्थान है। यदि शुक्र बारहवें भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति अतुलनीय धनवान एवं प्रसिद्ध व्यक्ति होता है।
41. द्वादश भाव का स्वामी जिस भाव में भी बैठता है, उस भाव को हानि पहुँचाता है।
42. दशम भाव में सूर्य और मंगल स्वतः ही बलवान माने गए हैं, इसी प्रकार चतुर्थ भाव में चन्द्र और शुक्र, लग्न में बुध तथा गुरु और सप्तम भाव में शनि स्वतः ही बलवान हो जाते हैं तथा विशेष फल देने में सहायक होते हैं।
43.ग्यारहवें भाव में सभी ग्रह अच्छा फल करते हैं।
44. अपने स्वामी ग्रह से दृष्ट, युत या शुभ ग्रह से दृष्ट भाव बलवान होता है।
45. किस भाव का स्वामी कहाँ स्थित है तथा उस भाव के स्वामी का क्या फल है, यह भी देख लेना चाहिए। यदि कोई ग्रह जिस राशि में है उसी नवमांश में भी हो तो वह वर्गोत्तम ग्रह कहलाता है और ऐसा ग्रह पूर्णतया बलवान माना जाता है तथा श्रेष्ठ फल देने में सहायक होता है।.

"N" एन अक्षर

"N" एन अक्षर

बेहद ही स्वतंत्र विचारों वाले और मनमौजी होते है एन अक्षर वाले| एन अक्षर वाले व्यक्तियों को दिखावे पर बहुत यकीन होता है। ये कब क्या करेगें इन्हें खुद भी पता नहीं होता है। इनका किसी से कोई लेना-देना नहीं होता है| अपनी ही धुन और दुनिया में मस्त रहने वाले होते हैं ये लोग| कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मस्तमौला होते हैं एन अक्षर वाले| एन अक्षर वाले बिना मेहनत के हर चीज पाने की कामना रखते है| ऐसे व्यक्ति वैसे तो ऊपरी तौर पर शांत दिखायी देते है लेकिन अंदर ही अंदर ये बेहद ही आक्रमक होते है। इनको अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं होती है। ये जरूरत से ज्यादा मुंहफट,स्वार्थी,और घमंडी होते हैं| एन अक्षर वाले अपना काम निकालने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं| ऐसे व्यक्तियों के लिए प्रेम एक हिसाब किताब की तरह होता है| ये वहीं रिश्ता जोड़ते है जहां इनका फायदा होता है। सेक्स लाईफ भी इनके लिए काफी मायने रखती है| ये आकर्षक रूप-रंग के मालिक होते हैं। जिसका फायदा ये समय-समय पर उठाते रहते है। मै तो यही कहूंगी कि इन लोगों से दूरी बनाकर ही रखिए।

कारक सिद्धान्त -

कारक सिद्धान्त -
अब तक हम ज्योतिष के लगभग सभी जरूरी सिद्धान्त को समझ चुके हैं। अब समझते हैं कि उन सिद्धान्तों का भविष्यफल देखने में कैसे प्रयोग करें। सबसे पहले बताता हूं कारक सिद्धान्त के बारे में।
जब कुण्डली में किसी विषय विशेष के बारे में देखते हैं तो आपको तीन मुख्य बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा - पहला भाव, दूसरा भावेश और तीसरा स्थिर कारक ग्रह। इनके आपस में संयोग से अगल अलग बातों की भविष्यवाणी की जाती है। जैसे हम ग्रह कारकत्व वाले एपीसोड से जानते हैं कि सूर्य स्वास्थ्य, पिता, राजा आदि का कारक ग्रह है। अगर किसी कुण्डली में सूर्य बहुत कमजोर है तो जरूरी नहीं कि सूर्य के सभी कारकत्व नकारात्मक रूप से प्रभावित हों। कौन से कारकत्व प्रभावित होंगे वह भाव और भावेश पर निर्भर करेगा। जैसे हम भाव के कारकत्व एपीसोड से जानते हैं कि स्वास्थ्य को पहले भाव से देखा जाता है, पिता को नवें भाव से देखा जाता है आदि। तो अगर सूर्य के साथ नौवां भाव और नौवे भाव का स्वामी भी कमजोर हों तभी पिता के बारे में खराब परिणाम मिलेंगे। अगर नौवां भाव और नवे भाव का स्वामी कुण्डली में शक्तिशाली हो तो सिर्फ सूर्य के कमजोर होने से पिता से जुडे हुए खराब फल नहीं मिल सकते। इसी तरह अगर पहला भाव और पहले भाव का स्वामी शक्तिशाली हो तो सिर्फ सूर्य के खराब होने से स्वास्थ्य खराब नहीं होगा। समझे? इसलिए ही कहा कि किसी विषय विशेष के बारे में देखने के लिए तीनों बातों - भाव, भावेश और कारक ग्रह को देखना जरूरी है।
कुण्डली अध्ययन की सुविधा के लिए ग्रह और भाव के मिलेजुले कारकत्व को ब्लैकबोर्ड पर देखें और नोट कर लें -
सूर्य व प्रथम भाव - स्वास्थ्य, शरीर
सूर्य / चन्द्र व द्वितीय भाव - आंखें
गुरु व द्वितीय भाव - एकादश - धन
बुध व द्वितीय भाव - बोलना
तृतीय भाव व मंगल - भाई बहन
चतुर्थ भाव व चंद्र - माता
चतुर्थ भाव व मंगल - प्रॉपर्टी
चतुर्थ भाव व शुक्र - वाहन
पंचम भाव व शु्क्र – फिल्म / सिनेमा / कला आदि
पंचम भाव व गुरु - पुत्र
पंचम भाव व बुध - बुद्धि
षष्ठ भाव व शनि - रोग व शत्रु
सप्तम भाव व शुक्र - पति / पत्नी / विवाह आदि
अष्टम भाव व शनि - आयु
नवम भाव व सूर्य - पिता
नवम भाव व गुरु - गुरु व धर्म
दशम भाव व बुध / गुरु - यश व व्यवसाय
एकादश भाव व गुरु - धन व लाभ
द्वादश भाव व राहु - विदेश यात्रा
जैसे माता के बारे में देखना हो तो चौथे भाव और चंद्र को देखें। अगर प्रापर्टी के बारे में देखना हो तो चौथे भाव और मंगल को देखें आदि। यह जीवन से जुडे हुए मुख्य विषयों की तालिका है।

Friday, November 24, 2017

।प्रेम में धोखा मिलने के ज्योतिषीय योग।

।प्रेम में धोखा मिलने के ज्योतिषीय योग।

प्रेम किसी से भी किया जा सकता है- अपने दोस्त से, प्रकृति से, पेड़-पौधों से, पशु-पक्षी आदि से। प्रेम वात्सल्य है, न कि वासना ।
कभी कभी प्रेम में उन्मत्त होकर जब प्रेमी एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खाने लगते हैं तब तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।और ऐसा न होने की स्थिति में वे अपने जीवन तक को दाँव में लगा देते हैं।
पर प्रेम में कभी -कभी जबरजस्त धोखा भी भी मिल जाता है ।और फिर जीवन कितना भयावह हो जात है ।आइये जानते हैं सच्चे व प्रेम में धोखा मिलने के कुछ ज्योतिषीय योग।
शुक्र कला व सौन्दर्य के साथ प्रेम का भी कारक ग्रह है। चन्द्र मन का कारक है। शुक्र-चन्द्र की युति एक आदर्श प्रेमी की होती है, वहीं शुक्र चन्द्र का समसप्तम योग भी सफल प्रेम की निशानी होती है।
शुक्र मंगल का संबंध या दृष्टि संबंध होने पर शुद्ध प्रेम नहीं रहता। उसमें कहीं न कहीं वासना का पुट रहता है। यदि शनि भी साथ हो तो ऐसे प्रेमी से बचना ही चाहिए। शुक्र राहु की युति या दृष्टि संबंध भी सात्विक प्रेमी की निशानी नहीं कहा जा सकता। शुक्र-गुरु साथ हो तो प्रेम में संयम देख जा सकता है। गुरु ज्ञान का कारक होता है।
जिसकी जन्म पत्रिका में शुक्र, मंगल, राहु साथ हो तो उस जातक से बचना ही चाहिए नहीं तो धोखा ही मिलता है। वृषभ लग्न वाले प्रेमी होते हैं। जब शुक्र लग्न में हो, वहीं तुला लग्न भी प्रेमियों के लिए उत्तम होता है। ध्यान रहे चन्द्र पर किसी भी अशुभ ग्रह की दृष्टि नहीं होना चाहिए।
इसी तरह अगर जातक का एकादश भाव कमजोर है तो भी उसकी इच्छायें अधूरी ही रहती हैं।
अगर जन्मपत्रिका में कहीं भी सूर्य या चंद्र राहु केतु या शनि से युक्त दृष्ट हैं तो ऐसा जातक दब्बू व एकांत जीवन व्यतीत करने वाला होता है।वह अपने प्रेमी को कभी भी मझधार में छोड़ सकता है।
यदि शुक्र और यूरेनस किसी भी तरह एक दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में हैं तब भी प्रेम में धोखा मिलने की संभावनाएं रहती हैं।
हाथ में अगर शुक्र पर्वत दबा है और उस पर जाल है तथा हृदय रेखा कई जगह से टूटी है तब भी प्रेम में धोखा मिल सकता है।
इसी प्रकार पंचमेश व सप्तमेश भी प्रथकतावादी ग्रहों से प्रभावित है तब भी प्रेम में असफलता मिलती है।

क्या आपकी कुंडली में हैं लव-मैरिज के योग?
लव-मैरिज का मतलब होता है अपनी पसंद से विवाह करना, अब चाहे लाइफ पार्टनर हमारी जाति के हों या नहीं।
* किसी भी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव से प्रणय संबंधों का पता चलता है जबकि सातवां भाव विवाह से संबंधित है। शुक्र सातवें भाव का कारक ग्रह है अतः जब पंचमेश-सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग होता है तो पति-पत्नी दोनों में गहरा स्नेह संबंध होता है। ऐसी ग्रह स्थिति में प्रेम विवाह संभव है।
* शुक्र सप्तमेश (सेवंथ हाउस में मौजूद राशि का स्वामी) से संबंधित होकर पांचवें भाव में बैठा हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
* पंचमेश व सप्तमेश का राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है। यानी पांचवी राशि सातवें घर में बैठी हो और सातवीं राशि पांचवें घर में।
* मंगल, शुक्र का परस्पर दृष्टि प्रेम विवाह का परिचायक है।
* पंचम या सप्तम भाव में सूर्य एवं हर्षल की युति होने पर भी प्रेम विवाह हो सकता है।
इस प्रकार के योग यदि जन्म कुंडली में होते हैं, तब प्रेम विवाह के योग बनते हैं। यह जरूरी नहीं है कि प्रेम विवाह मतलब जाति से बाहर विवाह होना।

12th house ke karkatva

12th house ke  karkatva

1. Loss or Christmas
2 . expenditure
3. Shaiyya sukh
4. Hospital
5. Jail
6. left eye
7.Videsh niwas
8 .Moksha
9. Aashram
10. Charitra
11 .Physical Weaknesses
12.foot
13.Grand mother
14.Nana (4th Se 9th )
15. Kidnep  (Apharan)
16.Children loss ya pareshani.
17.Gupt Shatru
18. After marital affairs
19.pita ka sukh
20.Videsh Yatra
21.mama mausi ka spouse 22.संतान की आयु
23.investment
24.labour
25.जीवन साथी का शत्रु /रोग स्थान
26.युद्ध
27.शरणार्थी
28.टेरेरिस्ट
29.घरो में अग्नि काण्ड
30.रेप
31.वेश्यावृति
32.जासूस
33.चोर बाजारी
34.जालसाजी
35.गुप्त सेवाएँ
36.महामारी
37.मठ...कैम्प
38.लूट
39.बाया कंधा
40.गुदा
41.पीठ
42.नींद
43.मृत्यु

11H के कारकत्व

11H के कारकत्व

1.चर राशियों का बाधक स्थान।
2.लाभ स्थान
3.बाया कान
4.बाया बाजू
5.बाया अण्डकोष
6 .लात
7.पिंडली
8.बिमारियां
9.देश का खजाना
10.कानून निर्माण
11.सहयोगी संगठन
12.मित्र
13.आभूषण
14.इच्छापूर्ति
15.बडे भाई बहन
16.एवार्ड
17.दूसरे देश से लाभ
18.लोक सभा
19.राष्ट्रीय मुद्रा
20.सरकारी समझौते
21.शुभ समाचार
22: pita ka prakerm sthan( third from ninth )
23:- pita ke chote bhai behan
24:- suksham
Aayu sthan of father
25:- sixth to sixth also
Consider as a rog ripu rinn
26 :- subse balli kamsthan
27:- trishdaye bhav
28. छोटे भाई बहन का भाग्य
29. बच्चों का जीवन साथी
30. माता की आयु
 31. उपचय स्थान
(6th se 6th )rog ki vridhi
32. संतान के लिए मारक स्थान
33. Ek se adhik vivaah ya relations (5 th from 7 H )
34. Achanak bahut labh ya haani (4 th from 8 H)
35. Dharm ka prachaar karne vala       (3 rd from 9 H)
36. Income from multiple tasks /jobs (2nd from 10 H )

दशम भाव के कारकत्व

दशम भाव के कारकत्व

1.      Business
2.      पिता का मारक स्थान
3.      कर्म स्थान
4.      माता का मारक (4H से 7h )
5.      Govt job
6.    जातक के राज्य
7.      मान
8.     नौकरी
9.     पिता का सुख
10.    प्रभुता
11.   अधिकार
12.   ऐश्वर्या-भोग
13.   कीर्ति-लाभ
14.    नेतृत्व
15.    विदेश यात्रा
16.   आत्मविश्वास
17.    अंतिम केंद्र स्थान
18.    भाई का अरिष्ट (3h से 8H )
19.    संतान की बीमारी(5H से 6H)
20.     सास् (स्पाउस की माँ )
21.   temporal honours
22.   self-respect
23.   knowledge and dignity
24.   Natio
25.   Doctors
26.   Mama mausi ki santan
27.    Videshi vyapar
28.    Sansad
29.     Nee joint. Nee cap
                ( Ghutne )
30.      Left nose   Left thai
31.       Police
32.      Chief minister
33.    Bhai bahan ka labh/ hani
       (3h से 8h) & (11h se 12 h)
        8h gift ka bhi h so
         labh huwa.

9 house Navam bhaav k kartatv..

9 house
Navam bhaav k kartatv..

1)     daan
2)     punya
3)     tirth yaatra me pavitra
         snan, ve niwas
4)     tapasya
5)     guru jano ki seva v
         bhakti
6)     aushdhi me upyogi
         jadibootiya
7)     charitra aacharan
8)     man ki pavitrata
9)     devtaao ki pooja
         upaasna.
10)   vidya prapti k liye
        parikshram or prayaas
11)    dhan vaebhav
12)    vahan
13)    neeti niyam
14)    gaurav
15)    vinamrata
16)    prataap
17)    dharmik punya kathae
18)    yaatra paryatan
19)    pushti poshtikta
20)    satsang
21)    sukh v anand ki prapti
22)    pita ka dhan vebhab
23)    putra putri
24)    brahm gyan ki sthapna
25)    yag v dharmic utsav
26)    dhan ka daan
27)    dharma
28)    pita
29)    bhagya
30)    Higher education
31)    Hamara prarbadh
32)    Dharm trikone ka
          antim bhav
33.    Mata ka rog sthan
          (4 th se 6 H )
34     Barre bhai ka labh
          sthan
35.    Chotte bhai behno ka
          kalatra bhav
36.    Spouse ke bhai -bahan
37.    long foriegn travel
38.    law /court
39.    Changes in  profession
         (12 th from 10 H )
40.    Confirmation of child
          (5 th to 5H )
41.    Justice
42.    4 of 6th....rog se mukti,
          court se nyay, payment
          of loans etc..
43.    अन्तर्ज्ञान व भविष्य विचार
44.    दान वृत्ति
45.    पौत्र
46.   आध्यात्मिक  पढाई
47.   कानून, दर्शन शास्त्र व साहित्य
        की  पढाई
48.   अभिभावक व सौतेले पिता
49.   Transfer
50.   Promotion
51.   Purchase of Property
        (6th from 4th)
52.  Jatak ki second wife
        /husband (in case of
         second marriage)
53.   Jatak ka teesra putra
54.    Mama mausi ka sukh
55.    Politics me saflata
56.    Hut yoga. ..perfect
          politician

8 house अष्टम् भाव के कारकत्व

8 house
अष्टम् भाव के कारकत्व.....

1.     आयु
2.      पाप कर्म  ( पिछले जनम के )
3.      अचानक/घटना
4.      संकट
5.      चोरी
6.      रुकावटे/ अड़चने/विघ्न
7.       परेशानिया
8.       दुःख
9.       गुप्त शत्रु
10      पूर्ण विनाश
11      दुर्भाग्य
12      शत्रुता
13      षड़यंत्र
14      अकाल मृत्यु
15      मृत्यु का कारन
16      स्पाउस का मारक स्थान
17      स्पाउस का धन
18      सार्वजनिक निंदा
19      छुपे हुए अफेयर्स
20      पैंत्रिक सम्पति
21      गढ़ा धन
22     अचानक प्राप्ति
23     अचानक  घाटा/ loss
24     नवम से द्वादश भाव
25     स्पाउस की वाण
26.  ship dwara videsh yatra
27.  Samadhi
28. research
29. khadaan aur surang
30. adhyatam
31. Moksh trikon ka 2 kon
5 of 4h
32. Santan ki happiness (4 of 5)
3 of 6
33. Doosra Trik bhav... 6,8,124
34. Bhagya kee haani ( ninth to twelth )
35. Ek jeewan chakra ka antt
36. Mata kee seekhasha (
Fourth to fifth
37 .आकस्मिक परिवर्तन
38. दुर्घटना
39.असाध्य रोग
40. under the tabel income
41. unerned money
From legacy /insurane /dowry 42. आय का कर्म स्थान
43. कर्म का आय स्थान
44. Gift
45. Chhote bhai ki naukri
46. Bade bhai ka bhautik sukh
47. Bade bhai ki service  (profession)
48. तंत्र एवम् रहस्यमयी गुप्त विद्याये
49.सास का लाभ स्थान
50 .ससुराल का धन

7House सप्तम भाव के कारकत्व

7House
         सप्तम भाव के कारकत्व

1.      पति परमेश्वर ( spouce)
2.      पद प्राप्ति   ( प्रमोशन )
3.      मारक भाव
4.      दशम से दशम
5.      पाटनर शिप
6.      विवाह
7.      माँ का सुख
8.      भूमि ( 4H से 4H )
9       legal transaction
10.    relation ship
11.    Romance
12.    Love affairs
13.    Contact
14.    Separation
15.    Open enemies
16.     Divorce
17.     Loss of memories
18.     Medical terms
           Lower urinary tract
           Canal , semen ,
           semind vesicles ,
           Urethra.
19.     मांगलिक भाव
20.     केन्द्र स्थान
21.     पिता का लाभ भाव
           (नवम् से एकादश )
22.     पति का स्टेटस
23.     दूसरी संतान
24.     Business
25.     विदेश निवास
26:      काम त्रिकोण का दूसरा  भाव
27.      पीडित सप्तम का  नवम भाव
            से संबंध  ( सन्यास yog )
28.      विदेशी गुप्तचर
29.      चोरी / डकैती
30.      शत्रु का नाश /पराजय
31.       मार्ग से भटक जाना
32.      Rog ,ripu,rin ka marak
            bhav
33.      Chote bhai bahno ki
            santan
34.      Elder siblings ki  
            bhagya
35.      Parivar ke satru
36.      Public image

षष्टम भाव के कारकत्व

षष्टम भाव के कारकत्व.....
1.रोग
2 .शत्रु
3.ऋण
4.चोट
5.दुर्घटनाएं
6.सेनाएं
7.नौकर/सेवक
8.वस्त्र
9.अपमान
10.चरित्र हनन
11.गर्भपात
12.अकाल प्रसव
13.लड़ाई/झगड़ा
14.शस्त्र
15.पाप
16.क़ानूनी मुकदमेबाजी
17.दुःख और चिन्ताएं
18.सौतेली माता
19.उपचय स्थान
20.कलंक
21.जन विरोध
22.चोरी
23.नाभि/कमर
25.उदर रोग
26.मामा/मौसी
27.पिता का प्रोफेशन
28.   Ripu-sthan
29.   Rog-sthan
30.   health
31.   service
32  relations on father's side.
33    Food
34.   subordinatevs
35.   debts, obstacles in life
36     mental worries
37     theft and calamity etc.
38     The body part denoted
          are kidney, large
          intestine, uterus
          and anus.
39      competition
40      बीमारियों का घर
           (DiseaseHouse )  
41      सेवा भाव
42.     डर
43.     insult
44.     कोट केस
45.     गुप्त शत्रु
46.    मानसिक ताप
47.     जख्म
48.    शरीरिक ताण
49.  vish(zehar)
50.  jeewansathi se viyog

51. (a.) न्याय :- दशम स्थान का राज ग्रहों ( गुरु सूर्य मंगल ) के साथ 6l से संयोग ऐसे जातक बताता है जो न्याय पालिका से जुड़े होते है।

( b). Vidhan :- nyaay banaana aur uska paalan na karna bhee isi bhaav se related hai.

52. Rog :- ( a). Netra rog :- agar surya v ashush shukra ka sambandh 6l se hota hai

(b). Mirgi :-. Agar 6h /6l ka sambandh chandrama se ho

(c).. Sleepless ness :- shani se 6h/6l ka sambandh

(d)... Skin disease :- Budh. Ka sambandh 6h/6l se.

(e)... Stomach related koi bhee rog 6h se hi sambandhit hai ( UTI. Apendicitis etc

53. Maternal uncle
54.. Aatam aalochak :- yadi budh,, Rahu lagnesh v dashmesh ke saath 6h mai ho to.
55:- trik orr trishdaye bhavo
Main subse bali bhav
56:- dhan trkone ka doosra bhav

पंचम भाव के कारकत्व

पंचम भाव के कारकत्व
1. सन्तान
2. शिक्षा
3. माता का मारक स्थान(2H from 4H)
4. पिता का भाग्य(9H from 9H)
5. पूर्व पुण्य
6. दादा(9H from 9H)
7. विवेक
8. छाता
9. पत्नी का आय स्थान(11H from 7H)
10. मन्त्र
[11.uterus
12.live
 13.planning
14.love
15.friends
16.lawtry
17 jua
18.satta
 19.aadhyatmikta
20.mann ki bhavna
21.kaam mai rukaavat ya change..(dasham se ashtam)
22.patni ke kaaran prapt bhagy ya vaibhav..(saptam se akadash)
 23.vidya
24.Buddhi
25.Vichar shakti
26.Mantri
27.Mantra sadhna
28.kisi kary kshetra ka arambh karna
29.Vinamrta
30.Pita ki dhan sampati
31.pet pachantantra
32.share market
33.Manoranjan
34.Grand fathe
35.Devta
36.Raja
37.Sanchit puny karm
38.pran shakti
39.pustak prakasha
40:- devalaya sthapna
41;/ teerth yatra( navam se navam )
 42. dharm
Trikone ka dusra bhav
43:- chotee yatra
(third se third)
44:- spouse of elder brother ( seventh from
11 th)
45. भावना या भावुकता
46. कर्म का बाधक स्थान
47. रहस्य (क्योंकि ये अष्टम से दशम है । रहस्य के कर्म)
48. ऋण रोग रिपु से मुक्ति
49. पिता का या पैतृक पद प्राप्त करना ( आज के समय में अनुकम्पा नियुक्तु भी इसी के अंतर्गत आनी चाहिए एवम् पारंपरिक विद्या भी )
50. भाई या बहन का सप्तम अर्थात जीजा या भाभी
51. आय का मार्क भाव (शायद जुआ सट्टा आय के मारक ही माने जाएँगे एवम् अधिक आध्यात्मिक होने पर भी आय में ख़ास रूचि नहीं रह जाती )

चतुर्थं भाव के कारकत्व

चतुर्थं भाव के कारकत्व :-
1. माँ
2. वाहन
3. भूमि /घर
4. सुख (परिवार /भौतिक सुख )
5. विद्या ( 2h से मौखिक ,3H से शारिरिक , 4H से विधालय ,और 5H से उच्च शिक्षा )
6. बाग़ बगीचे
7. भार्या का उपार्जन ( 4h 10th है 7h का )
8. पूर्व जन्मो के पुण्यो के दोष भी इसी भाव से देखते है क्योंकि ये 5h का 12th है और 5h पूर्व जनम के कर्म है।
9. chest
10. upar ka peet
11. mann
12. विरोधी दल
13. छोटे भाई बहनो का मारक स्थान (2H from 3H)
14. Lungs
15. Heart
16.भूमि के नीचे की चीजें
17.pita ka marak sthan
18. elder  siblings  ka rinn rog ripu
19.दुध  और दूध से बने पदार्थ
20.इत्र और सुगन्धित वस्तुएं
21.दिव्य औषधि
22.yash,kriti,prashansa
23.jhutha arop
24.ghar ki wapasi
25. sabhi prakar ke pashudhan
26. ghar ka chhutna
27. vastra,poshak
28. नदी,तालाब,कुयाँ,पानी की टंकी
29. Dusra kendra sthan
30. Moksh trikone ka pehla bhav
31. राजनीतिक  जीवन  वृत्ति  का भाव
32. Janta ( aam public )
33. Chote bhai behno ka dhan sthan
34. क्षेत्रीय राजनीति
35. विपक्षी पार्टी
36. Industries
37. विवाह
38. सम्पत्ति की क्रय विक्रय
39. स्थान परिवर्तन(घर या नगर)
40. bhagya ki hani and suuden bhagya se prapti
41) घर बनाना
42. घर भाड़े पर लगाना
43. हमेशा बीमार रहना
44. प्राइमरी शिक्षा
45. पढाई बन्द होना
46. उच्च शिक्षा के लिए 4/9/11 का सम्बन्ध होना।
47. जमीन की खरीदारी
48. परीक्षा में असफलता
49. शिक्षा न होना
50. स्वयं का वाहन होना
51. वाहन बेचना
52. वाहन की चोरी होना
53. माँ से जुदाई
54. माँ की मृत्यु
55. घर का बदलाव
56. नौकरी में बदलाव
57. घर वापस आना
58. गोद लेना
59. इन्कमटैक्स रेड
60. कॉलेज में दाखला।

तृतीय भाव के कारकत्व

3House
तृतीय भाव के कारकत्व :-

1 . छोटे भाई बहन
2. पराक्रम  साहस
3. सगे सम्बन्धी
4. वाक् शक्ति
5. कान
6. छोटी यात्राएं
7. सेवक सेविका
8. कण्ठ
9. पिता का मारक स्थान(7H से 9H)
10.  बड़े भाई की शिक्षा, सन्तान
       (5H से  11H)
11.  श्वसुर(9H से  7H)
12.  दांया कन्धा
13   भौतिक सुख का नुकसान
14   पत्नी का भाग्य
15   बच्चो का लाभ
16   सास की service
17   पैतृक सम्पत्ति की लाभ हानि
18   पडोसी
19   likhne ki shamta
20   खेल कूद में रूचि
21   कलात्मक कार्य में रूचि
22   काम त्रिकोण का पहला भाव
23    सुख स्थान का व्यय
           (12H से 4H)
24   धैर्य /शक्ति
25   पुत्र को गोद लेना
26   पुत्र के मित्र
27   सैनिक
28   सौतैली मा (4ह से 12 ह)
29   Transfer
30   Change
31   पहला उपचय स्थान
32   अष्टम् से अष्टम् मारक भाव
33    विदेश में सुख
34   Profession me bhadhae
35   पौरुषता
36   कलात्मकता
37   रूचि  (hobbies )
38   Physical energy
39   Communication
40   Sudden profit & Loss
41   Kutumb ka marak sthan
42   Parivar ka dhan
43   Will power
44   sanchar
45   videshi bhasha

Thursday, November 23, 2017

द्वितीय भाव के कारकत्व

द्वितीय भाव के कारकत्व
1. Right eye
2. Speech
3. house of elder siblings
     (4H from 11H)
4. sickness of father (6H
     from 9H )
5. Profession of child (10H
     from 5H)
6. Gain to mother(11H from
     4H)
7.  Primary school
8 . kutumbh bhav
9   throat
10  Spouse ka mangaly bhav
       ( 8 th from 7 th )
11:- RINN and loss ( pita se
        Virast main mila ) sixth
         from ninth
12:-  Teeth
13:-  chote siblings kaa loss
         ( 12 th from third )
14.   Jatak ka bank balance
15.    Khane peene ki ruchi
16.    Jatak ka marak sthan
17.    चेहरा
18     साहित्य  संबंधित  उपहार
19    सत्य  असत्य
20    बहुमूल्य  रत्न
21   दूसरो  की  सहायता  की प्रवृत्ति
22    जिह्वा
23   Gain from property
        ( 11 from 4th)
24  balheen (prakrm ka vyay)
       Depends on family
        (12 from 3 H)
25.  Family business
      Patrik vyavyas/ sampati
      (5 from 10th)
26  भौतिक सुख का लाभ
27   संस्कार
28    Marriage
29   Children
         (Bcp me jab 2nd house
          activate hota he tab
          hum marriage aur
          santaan bhi predict ki
           jaati he)
30      Niyum
31       नाखून
32     मित्रता (4H से 11H )
33     नौकर /चाकर /कुटुम्भ से प्राप्त
          नौकर
34     पत्नी के पुत्रो की मृत्यु जो (जो
           गर्भ में मृत्यु हुई हो )7H से
           8H है
35      पिता से प्राप्त धन/ज्ञान (10H
           से पंचम )
36       नेत्र चकित्सा
37       नर्स , धोबी, हलवाई, होटल
            का बिज़नस ,रसोईया सब
            2H से

प्रथम भाव के कारकत्व

प्रथम भाव के कारकत्व.....
1. लग्न/शरीर,स्वास्थ्य
2. व्यक्तित्व,चरित्र
3. प्रारंभिक जीवन ,खुशियाँ
4. जीवनकाल
5. बाल (केश)
6. त्वचा का रंग रूप
*7. सहोदरों से प्राप्त होने वाला सुख
8. माता का व्यवसाय(10H from 4H)
9. पति का मारक स्थान(7H from 7H)
10. संतान का भाग्य(9H from 5H)
11. पिता की शिक्षा (5H from 9H)
12. कर्म से प्राप्त होने वाला सुख(4H from 10H)
*13. Boss ki mata.
14. Swabhav
15. Shareer per chinh (til ya massa)
16. निद्रा
17. स्वप्न
18. शांति
19. बड़े भाई द्वारा की गयी छोटी यात्रायें(3H from 11H)
20.Raja
21.shatru ki mritu (8H from 6H)
22.guru ka putr(5H from 9H)
23.karyprabandhan ki kshamta.
24. putr ki videsh yatra(9H from 5H)
25. matrbhasha
*26.  Mama mausi ka gift
*27.chhote bhai ka labh haani
*28. Kutub ke karmo ka investment.
29. Bahu/ damad ke chhote bhai bahan(3H from 7H of 5H)
30.life partner ki nani(4H from 4H of 7H)

Arogya स्वस्थ रहें

 Arogya
      स्वस्थ रहें
      -------------
1-- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।

2-- कुल 13 अधारणीय वेग हैं |

3--160 रोग केवल मांसाहार से होते है |

4-- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।

5-- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।

6-- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।

7-- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।

8-- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।

9-- ठंडे जल (फ्रिज) और आइसक्रीम से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है।

10-- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।

11-- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

12-- बाल रंगने वाले द्रव्यों (हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।

13-- दूध (चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।

14-- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।

15-- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।

16-- टाई बांधने से आँखों और मस्तिश्क हो हानि पहुँचती है।

17-- खड़े होकर जल पीने से घुटनों (जोड़ों) में पीड़ा होती है।

18-- खड़े होकर मूत्र-त्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।

19-- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।

20-- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।

21-- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।

22-- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय (टीबी) होने का डर रहता है।

23-- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है, मलेरिया नहीं होता है।

24-- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।

25-- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।

26-- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।

27-- हृदय-रोगी के लिए अर्जुन की छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी, सेंधा नमक, गुड़, चोकर-युक्त आटा, छिलके-युक्त अनाज औशधियां हैं।

28-- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।

29-- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।

30-- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।

31-- जल सदैव ताजा (चापाकल, कुएं आदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।

32-- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।

33-- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।

34-- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।

35-- भोजन पकने के 48 मिनट के अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोशकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।

36-- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोशकता 100%, कांसे के बर्तन में 97%, पीतल के बर्तन में 93%, अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।

37-- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।

38-- 14 वर्श से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, बे्रड, समोसा आदि) कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।

39-- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेश्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।

40-- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।

41-- सरसों, तिल, मूंगफली या नारियल का तेल ही खाना चाहिए। देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।

42-- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।

43-- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।

44-- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है। हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।

45-- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी (कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।

46-- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।

47-- बर्तन मिटटी के ही परयोग करन चाहिए।

48-- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर दातून और मंजनकरना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे। (आँखों के रोग में दातून नहीं करना)

49-- यदि सम्भव हो तो सूर्यास्त के पश्चात् न तो पढ़े और लिखने का काम तो न ही करें तो अच्छा है।

50-- निरोग रहने के लिए अच्छी नींद और अच्छा (ताजा) भोजन अत्यन्त आवश्यक है।

51-- देर रात तक जागने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है। भोजन का पाचन भी ठीक से नहीं हो पाता है आँखों के रोग भी होते हैं।

52-- प्रातः का भोजन राजकुमार के समान, दोपहर का राजा और रात्रि का भिखारी के समान।

शिव आराधना कब और कैसे करें

शिव आराधना कब और कैसे करें

राहु सता रहा हो, मारकेश चल रहा हो, मृत्यु तुल्य कष्ट हो,विवाह न हो रहा हो, विवाह हो गया और विवाह में परेशानियां हो

, मन अशान्त हो, मानसिक परेशानी हो, आर्थिक दिक्कत हो, समाज में सम्मान न मिल रहा हो तो शिव पूजा के उपाय किये जाते हैं

परन्तु शिव पूजा कब की जाये और कैसे की जाये, यह हममें से बहुत कम लोग जानते हैं

इसलिए शिव पूजा का फल नहीं प्राप्त होता है।

शिव पुराण के अनुसार शिव सिद्धि हेतु शिव-पार्वती संवाद :-

भगवन शिव ने पार्वतीजी से कहा :- “एकांत स्थान पर सुखासन में बैठ जाएँ. मन में ईश्वर का स्मरण करते रहें. अब तेजी से सांस अन्दर खींचकर फिर तेजी से पूरी सांस बाहर छोड़कर रोक लें. श्वास इतनी जोर से बाहर छोड़ें कि इसकी आवाज पास बैठे व्यक्ति को भी सुनाई दे.

 इस प्रकार सांस बाहर छोड़ने से वह बहुत देर तक बाहर रुकी रहती है. उस समय श्वास रुकने से मन भी रुक जाता है और आँखों की पुतलियाँ भी रुक जाती हैं. साथ ही आज्ञा चक्र पर दबाव पड़ता है और वह खुल जाता है. श्वास व मन के अल्प कालिक रुकने से अपने आप ही ध्यान होने लगता है और आत्मा का प्रकाश दिखाई देने लगता है. यह विधि शीघ्र ही आज्ञा चक्र को जाग्रत कर देती है.

फिर शिवजी ने पार्वतीजी से कहा :-

रात्रि में एकांत में बैठ जाएँ आँखों बंद करें. हाथों की अँगुलियों से आँखों की पुतलियों को दबाएँ. इस प्रकार दबाने से तारे-सितारे दिखाई देंगे.

कुछ देर दबाये रखें फिर धीरे-धीरे अँगुलियों का दबाव कम करते हुए छोड़ दें तो आपको सूर्य के सामान तेजस्वी गोला दिखाई देगा. इसे तैजस ब्रह्म कहते हैं. इसे देखते रहने का अभ्यास करें.

 कुछ समय के अभ्यास के बाद आप इसे खुली आँखों से भी आकाश में देख सकते हैं. इसके अभ्यास से समस्त विकार नष्ट होते हैं, मन शांत होता है और परमात्मा का बोध होता है.

ऊँ नम: शिवाय का महत्व व जाप पूजा पद्धति :-

ऊँ नम: शिवाय का जप जब आद्रा नक्षत्र हो और चतुर्दशी तिथि हो तो जप अक्षत फलदायक होता है। शिव पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। दूसरी चीज जब आर्द्रा नक्षत्र हो और सूर्य की संक्रांति हो तो जप अक्षत फलदायक होता है। कोई भी समस्या हो,

आपको फल मिलेगा लेकिन शिव पुराण में एक बात का और उल्लेख है कि कलयुग में कर्म भी करने पड़ेंगे। आपके कर्म निष्फल न हो इसलिए कर्म के समय जप करने से आपको भोले बाबा की कृपा प्राप्त होगी। हर नक्षत्र के चार पग होते हैं, मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम पग में आप जाप करते है तो हजारों समस्याओं से बच जाते हैं ।

Sunday, November 19, 2017

पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पाठ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं

पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पाठ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं.वे नियम कुछ इस प्रकार हैं?????

1 सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते हैं. इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए. इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है।

2 गणेश जी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

3 दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए।

4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए. जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं,उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं।

6 रविवार,एकादशी,द्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए।

7 दूर्वा( एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।

8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए।

९ कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।

10 बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।

.11 तुलसी की पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।

12 हाथों में रख कर हाथों से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।

13 तांबे के पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए।

14 दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए जो दीपक से दीपक जलते हैं वो रोगी होते हैं।

15 पतला चंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए।

16 प्रतिदिन की पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा में अपने दोष,दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें, अवश्य सफलता मिलेगी और मनोकामना पूर्ण होगी।

17 चर्मपात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए।

18 स्त्रियों और शूद्रों को शंख नहीं बजाना चाहिए यदि वे बजाते हैं तो लक्ष्मी वहां से चली जाती है।

19 देवी देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए. सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म बेला में प्रथम पूजन और आरती होनी चाहिए।प्रात:9 से 10 बजे तक दिवितीय पूजन और आरती होनी चाहिए,मध्याह्र में तीसरा पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए शाम को चार से पांच बजे तक चौथा पूजन और आरती होना चाहिए,रात्रि में 8 से 9 बजे तक पाँचवाँ पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए।

20 आरती करने वालों को प्रथम चरणों की चार बार,नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार और समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए।

21 पूजा हमेशा पूर्व या उतर की ओर मुँह करके करनी चाहिए, हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में करें।

22 पूजा जमीन पर ऊनी आसन पर बैठकर ही करनी चाहिए, पूजागृह में सुबह एवं शाम को दीपक,एक घी का और एक तेल का रखें।

23 पूजा अर्चना होने के बाद उसी जगह पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएँ करें।

24 पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी ,लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

25 गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें.अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें, यह अमंगलकारक है एवं इनसे विपतियों का आगमन होता है।

26 मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता --पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें,उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।

27 विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।

28 प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में कलश स्थापित करना चाहिए कलश जल से पूर्ण, श्रीफल से युक्त विधिपूर्वक स्थापित करें यदि आपके घर में श्रीफल कलश उग जाता है तो वहाँ सुख एवं समृद्धि के साथ स्वयं लक्ष्मी जी नारायण के साथ निवास करती हैं तुलसी का पूजन भी आवश्यक है।

29 मकड़ी के जाले एवं दीमक से घर को सर्वदा बचावें अन्यथा घर में भयंकर हानि हो सकती है।

30 घर में झाड़ू कभी खड़ा कर के न रखें झाड़ू लांघना, पाँवसे कुचलना भी दरिद्रता को निमंत्रण देना है दो झाड़ू को भी एक ही स्थान में न रखें इससे शत्रु बढ़ते हैं।

31 घर में किसी परिस्थिति में जूठे बर्तन न रखें. क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि रात में लक्ष्मीजी घर का निरीक्षण करती हैं यदि जूठे बर्तन रखने ही हो तो किसी बड़े बर्तन में उन बर्तनों को रख कर उनमें पानी भर दें और ऊपर से ढक दें तो दोष निवारण हो जायेगा।

32 कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा घर में नित्य अवश्य जलाना चाहिए,जिससे वातावरण अधिकाधिक शुद्ध हो: वातावरण में धनात्मक ऊर्जा बढ़े।

33 घर में नित्य घी का दीपक जलावें और सुखी रहें।

34 घर में नित्य गोमूत्र युक्त जल से पोंछा लगाने से घर में वास्तुदोष समाप्त होते हैं तथा दुरात्माएँ हावी नहीं होती हैं।

35 सेंधा नमक घर में रखने से सुख श्री(लक्ष्मी) की वृद्धि होती है ।

36 रोज पीपल वृक्ष के स्पर्श से शरीर में रोग प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है।

37 साबुत धनिया,हल्दी की पांच गांठें,11 कमलगट्टे तथा साबुत नमक एक थैली में रख कर तिजोरी में रखने से बरकत होती है श्री (लक्ष्मी) व समृद्धि बढ़ती है।

38 दक्षिणावर्त शंख जिस घर में होता है,उसमे साक्षात लक्ष्मी एवं शांति का वास होता है वहाँ मंगल ही मंगल होते हैं पूजा स्थान पर दो शंख नहीं होने चाहिएँ।

39 घर में यदा कदा केसर के छींटे देते रहने से वहां धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है पतला घोल बनाकर आम्र पत्र अथवा पान के पते की सहायता से केसर के छींटे लगाने चाहिएँ।

40 एक मोती शंख,पाँच गोमती चक्र, तीन हकीक पत्थर,एक ताम्र सिक्का व थोड़ी सी नागकेसर एक थैली में भरकर घर में रखें श्री (लक्ष्मी) की वृद्धि होगी।

41 आचमन करके जूठे हाथ सिर के पृष्ठ भाग में कदापि न पोंछें,इस भाग में अत्यंत महत्वपूर्ण कोशिकाएँ होती हैं।

42 घर में पूजा पाठ व मांगलिक पर्व में सिर पर टोपी व पगड़ी पहननी चाहिए,रुमाल विशेष कर सफेद रुमाल शुभ नहीं माना जाता है।

हरि ॐ