दशम भाव द्वारा करे अपने कर्म का विचार :-
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जन्मकुंडली में दशम अथवा कर्म भाव
की महत्ता का विवरण महर्षि पराशर, मंत्रेश्वर और
वराहमिहिर ने विभिन्न ज्योतिष ग्रंथो में विस्तृत रूप से किया है | कर्म
भाव को यहाँ तक भाग्य भाव (नवम) पर
भी प्रधानता दी गयी है |
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवत
गीता में अर्जुन को कर्मयोग के बारे में
ही उपदेश दिया है |
गोस्वामी तुलसीदास ने कर्म का विवरण कुछ
इस तरह किया है ..
कर्म प्रधान विश्व रची राखा |
जो जस करई सो तस फल चाखा ||
अर्थात भगवान ने इस विश्व
की रचना ही कर्म प्रधान
की है और जो जिस तरह का कर्म करेगा उसका फल
भी उसे उसी अनुकूल मिलेगा | मनुष्य अपने
प्रारब्ध जनित दोषो को भी अपने कर्म के द्वारा समाप्त
कर सकता है |
शुभाशुभ कर्म, कृषि, पिता, आजीविका, यश, व्यापार,
राजा का आसन, राजपद की प्राप्ति, उचा पद,
नींद, गहने, अभिमान, खानदान, सन्यास, शास्त्र ज्ञान,
आकाश, दूर देश में निवास, यात्रा, ऋण का विचार दसवे भाव से
करना चाहिए |
१. पूर्ण बली कर्मेश अपनी राशि, नवमांश
या उच्च में हो तो जातक पितृ सौख्य युक्त, पुण्य कार्य करने
वाला तथा यशस्वी होता है | वही कर्मेश
निर्बल हो तो जातक कर्महीन होता है |
२. कर्मेश शुभ स्थान में शुभ ग्रहो से युक्त हो तो जातक
को वाणिज्य अथवा राजाश्रय से लाभ होता है | इसके
विपरीत पापयुत कर्मेश अशुभ स्थान में स्थित
हो तो अशुभ फल होता है |
३. दशम तथा एकादश स्थान पापगृहकांत हो तो मनुष्य दुष्कर्म करने
वाला, स्वजन का द्वेषी होता है |
४. कर्मेश अष्टमस्थ होकर राहु युक्त हो तो जातक जन-
द्वेषी महामूर्ख तथा दुष्कर्म कारक होता है |
५. कर्मेश शनि या मंगल के साथ सप्तम में हो और सप्तमेश
भी पाप ग्रह युक्त हो तो जातक
व्यभिचारी तथा पेटू होता है |
६. लाभेश दशम में, कर्मेश लग्न में हो या दोनों केंद्रस्थ
हो तो मनुष्य सुखी होता है |
७. शुक्र युक्त गुरु मीनस्त हो, लग्नेश
भी प्रबल हो, चंद्रमा अपने उच्च राशिगत हो तो जातक
अच्छे ज्ञान और संपत्ति से परिपूर्ण होता है |
८. कर्मेश स्वयं की राशि में होकर केंद्र या त्रिकोण में
हो और गुरु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक कार्यशील
होता है |
९. कर्मेश अष्टम में अष्टमेश कर्म स्थान में हो और पापग्रह
का संयोग हो तो जातक दुष्कर्म संलग्न होता है |
१०. नीचस्थ ग्रह के साथ शनि यदि दशम स्थान गत
हो, दशम का नवमांश भी पापग्रहकान्त हो तो जातक
कर्म रहित होता है |
११. दशम भाव गत चंद्रमा हो, दशमेश चंद्रमा से नवम पंचम में
हो और लग्नेश केंद्रस्थ हो तो जातक शुभ यश वाला होता है |
१२. कर्मेश भाग्यस्थ हो, लग्नेश कर्म स्थान गत हो, और लग्न
से पंचम में चंद्रमा रहे तो जातक विख्यात होता है
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जन्मकुंडली में दशम अथवा कर्म भाव
की महत्ता का विवरण महर्षि पराशर, मंत्रेश्वर और
वराहमिहिर ने विभिन्न ज्योतिष ग्रंथो में विस्तृत रूप से किया है | कर्म
भाव को यहाँ तक भाग्य भाव (नवम) पर
भी प्रधानता दी गयी है |
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवत
गीता में अर्जुन को कर्मयोग के बारे में
ही उपदेश दिया है |
गोस्वामी तुलसीदास ने कर्म का विवरण कुछ
इस तरह किया है ..
कर्म प्रधान विश्व रची राखा |
जो जस करई सो तस फल चाखा ||
अर्थात भगवान ने इस विश्व
की रचना ही कर्म प्रधान
की है और जो जिस तरह का कर्म करेगा उसका फल
भी उसे उसी अनुकूल मिलेगा | मनुष्य अपने
प्रारब्ध जनित दोषो को भी अपने कर्म के द्वारा समाप्त
कर सकता है |
शुभाशुभ कर्म, कृषि, पिता, आजीविका, यश, व्यापार,
राजा का आसन, राजपद की प्राप्ति, उचा पद,
नींद, गहने, अभिमान, खानदान, सन्यास, शास्त्र ज्ञान,
आकाश, दूर देश में निवास, यात्रा, ऋण का विचार दसवे भाव से
करना चाहिए |
१. पूर्ण बली कर्मेश अपनी राशि, नवमांश
या उच्च में हो तो जातक पितृ सौख्य युक्त, पुण्य कार्य करने
वाला तथा यशस्वी होता है | वही कर्मेश
निर्बल हो तो जातक कर्महीन होता है |
२. कर्मेश शुभ स्थान में शुभ ग्रहो से युक्त हो तो जातक
को वाणिज्य अथवा राजाश्रय से लाभ होता है | इसके
विपरीत पापयुत कर्मेश अशुभ स्थान में स्थित
हो तो अशुभ फल होता है |
३. दशम तथा एकादश स्थान पापगृहकांत हो तो मनुष्य दुष्कर्म करने
वाला, स्वजन का द्वेषी होता है |
४. कर्मेश अष्टमस्थ होकर राहु युक्त हो तो जातक जन-
द्वेषी महामूर्ख तथा दुष्कर्म कारक होता है |
५. कर्मेश शनि या मंगल के साथ सप्तम में हो और सप्तमेश
भी पाप ग्रह युक्त हो तो जातक
व्यभिचारी तथा पेटू होता है |
६. लाभेश दशम में, कर्मेश लग्न में हो या दोनों केंद्रस्थ
हो तो मनुष्य सुखी होता है |
७. शुक्र युक्त गुरु मीनस्त हो, लग्नेश
भी प्रबल हो, चंद्रमा अपने उच्च राशिगत हो तो जातक
अच्छे ज्ञान और संपत्ति से परिपूर्ण होता है |
८. कर्मेश स्वयं की राशि में होकर केंद्र या त्रिकोण में
हो और गुरु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक कार्यशील
होता है |
९. कर्मेश अष्टम में अष्टमेश कर्म स्थान में हो और पापग्रह
का संयोग हो तो जातक दुष्कर्म संलग्न होता है |
१०. नीचस्थ ग्रह के साथ शनि यदि दशम स्थान गत
हो, दशम का नवमांश भी पापग्रहकान्त हो तो जातक
कर्म रहित होता है |
११. दशम भाव गत चंद्रमा हो, दशमेश चंद्रमा से नवम पंचम में
हो और लग्नेश केंद्रस्थ हो तो जातक शुभ यश वाला होता है |
१२. कर्मेश भाग्यस्थ हो, लग्नेश कर्म स्थान गत हो, और लग्न
से पंचम में चंद्रमा रहे तो जातक विख्यात होता है
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