Friday, February 16, 2018

शुभ कत्री और पाप कत्री योग

कैसा फल देता है कुंडली में शुभ कत्री और पाप कत्री योग –

फलित ज्योतिष में जन्मकुंडली की ग्रहस्थिति के आंकलन और परिणाम के लिए ग्रहों के सीधे सीधे विश्लेषण के अतिरिक्त ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति से उत्पन्न बहुत से योगों का भी वर्णन किया गया है जिनका हमारे जीवन के घटकों को प्रभावित करने में बड़ा विशेष महत्व होता है फलित ज्योतिष के ऐसे ही योगों में से बहुत महत्वपूर्ण हैं शुभ कत्री और पाप कत्री योग इन्हें शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी के नाम से भी वर्णित किया गया है इन दोनों ही योगो का कुंडली में बनना हमारे जीवन की गतिविधियों पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है ज्योतिषीय दृष्टि में बृहस्पति, शुक्र, चन्द्रमाँ  और बुध को नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह  तथा सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु को नैसर्गिक रूप से पाप या उग्र ग्रह माना गया है इसी आधार पर कुंडली में इन ग्रहों की एक विशेष  स्थिति से शुभ कत्री और पाप कत्री योग का निर्माण होता है तो आईये जानते हैं इन दोनों योगो के बारे में.. . . . . . . .

शुभ कत्री योग -

कुंडली के बारह भावों में से जब किसी भी भाव के दोनों और अर्थात किसी भी भाव के आगे और पीछे वाले भाव में यदि शुभ ग्रह स्थित हों तो इसे शुभ कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो शुभ ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे उस भाव की शुभता बढ़ जाती है इस लिए इसे शुभ कत्री योग कहते हैं। इस योग को भाव की वृद्धि करने वाला माना गया है कुंडली के जिस भाव में शुभ कत्री योग बन रहा हो उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों की जीवन में अच्छी स्थिति देने में यह योग सहायक होता है उदाहरण के लिए यदि लग्न भाव के दोनों और शुभ ग्रह (बृहस्पति,शुक्र,चन्द्रमाँ,बुध) बैठे हों तो ऐसे में लग्न भाव बली हो जाता है है जिससे स्वास्थ, प्रसिद्धि और यश की अच्छी प्राप्ति होती है इसी प्रकार धन भाव शुभ कटरी योग में होने पर जीवन में धन की अच्छी स्थिति बनती है सप्तम भाव में बना शुभ कत्री योग अच्छा वैवाहिक जीवन देता है अतः कुंडली का जो भाव शुभ कत्री योग में होता है उसके कारक तत्वों में वृद्धि होती है।

पाप कत्री योग -

कुंडली के बारह भावों में से यदि किसी भी भाव के दोनों और अर्थात भाव के आगे और पीछे वाले भाव में पाप ग्रह (सूर्य,मंगल,शनि,राहु,केतु) स्थित हों तो इसे पाप कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो पाप ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे भाव की शुभता में कमी और संघर्ष आता है, जिस भी भाव में पाप कत्री योग बनता है या जो भी भाव पाप कटरी योग में आ जाता है उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों को लेकर जीवन में संघर्ष उत्पन्न होता है जैसे यदि लग्न भाव पाप कत्री योग में आ रहा हो अर्थात लग्न के दोनों और पाप ग्रह हो तो ऐसे में स्वास्थ की स्थिति में उतार चढ़ाव बना रहता है यश और प्रसिद्धि नहीं मिल पाती यदि धन भाव में पाप कत्री योग बन रहा हो तो जीवन में आर्थिक पक्ष को लेकर संघर्ष आता है इसी प्रकार कुंडली के किसी भी भाव के दोनों और पाप ग्रह उपस्थित होने पर बना पाप कटरी योग उस भाव के कारक तत्वों की हानि करता है।

अब यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है शुभ कत्री और पपप कत्री योग केवल कुंडली के भावों को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि ग्रहों को भी प्रभावित करते हैं अर्थात यदि कोई ग्रह शुभ कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में वृद्धि होती है और यदि कोई ग्रह पाप कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में संघर्ष उपस्थित होता है उदहारण के लिए यदि कुंडली में धन और समृद्धि का कारक शुक्र दो शुभ ग्रहों के बीच में हो अर्थात शुभ कत्री योग में हो तो ऐसे में अच्छी आर्थिक स्थिति और समृद्धि देने में यह योग साहयक होगा और यदि शुक्र के आगे और पीछे पाप ग्रह होने से शुक्र पाप कत्री योग में हो तो ऐसे में जीवन में आर्थिक संघर्ष उत्पन्न होता है और आर्थिक स्थिति अपेक्षित नहीं होती। ....... इसी प्रकार कोई भी ग्रह शुभ कत्री  योग में होने पर बली और पाप कत्री  योग में कमजोर हो जाता है। .......

Wednesday, February 14, 2018

द्वादश लग्नों के आधार पर चयनित चाचक के कार्य क्षेत्र

*द्वादश लग्नों के आधार पर चयनित चाचक के कार्य क्षेत्र*

(अक्सर ज्योतिषी के सामने ये प्रश्न आता है... जाचक क्या बन सकता है... तो लग्न आधारित गुणों के अनुसार जान सकते हैं क्या बन सकते है आप- - ) उपाध्याय जी

1.  *मेष* - पुलिस ,सेना , अर्धसैनिक बल , अंगरक्षक , अग्निशमन , कारखाने , धातुओं को पिघलाना , बॉयलर्स , ईंट भट्ठे और पॉटरीज् , खेलकूद , खनन , हथियार बनाना , भवन निर्माण , प्रॉपर्टी डीलिंग , नेतागीरी।

2. *वृषभ* - आभूषण और रत्न बनाना बेचना , पशुगृह निर्माण और पशुआहार , ब्याज बट्टा , दलाली और कमीशन एजेंट , लाइजनिंग , वित्तीय संस्था और खजांची , शिल्प , कला , संगीत , सिनेमा , गायन वादन नर्तन और चित्रकारी , सजावट की वस्तुएं , सौंदर्य प्रसाधन और इत्र परफ्यूम्स , होटल और पर्यटन , फल फूल और जूस बेचना , महंगे वाहन और विलासितापूर्ण सामान , कामक्रीड़ा की वस्तुएं।

3. *मिथुन* -  सूचना एवं प्रसारण , दूरसंचार , अंतरिक्ष एवं खगोलविज्ञान , शिक्षा , पब्लिशिंग हाउस , गणित , एकाउंट्स , ऑडिट , कानून , राजदूत एवं प्रतिनिधि।

4. *कर्क* - आयात निर्यात , जहाजरानी , कृषि , किराना , दवाईयां , जल , दूध , फल फूल सब्जियां , सीप शंख मोती और जलीय वस्तुएं , होटल , तरल खाद्य , हलवाई और कैटरर , ब्रेवरीज और डिस्टलरीज।

5. *सिंह* - सरकारी नौकरी , न्याय , प्रशासनिक क्षेत्र , समाजसेवा , नेतृत्व , राजनीती , भारी ओद्योगिक क्रियाकलाप , एन0जी0ओ0।

6. *कन्या* - व्यापार , एकाउंट्स , लेखन , शिक्षा , खुदरा दुकान , अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाएं।

7. *तुला* - आभूषण , सजावटी सामान , शिल्प , इत्र एवं प्रसाधन , वस्त्र उद्योग , वित्तीय लेनदेन , दलाली , बैंक , बीमा , कानून , बार रेस्टोरेंट्स , गायन वादन एवं नृत्य विद्यालय , ब्यूटी पार्लर , सिनेमा , जीवन रक्षक दवाएं।

8. *वृश्चिक* - लोहा फैक्ट्री , तकनीकी उत्पादन इकाई , खनन , खेती , विद्युत् उपकरण विद्युत प्रसार एवं विद्युत् निर्माण , धातुएं पिघलाना, औजार एवं तकनीकी उपकरण , संन्यास , ज्योतिष , गुप्त विद्यायें , खनिज तेल एवं पेट्रोल पम्प।

9. *धनु* - वन विभाग , आरा मशीन , कारपेंटर , कानून , मंदिर मठ एवं धार्मिक संस्थान , वित्तीय संस्थान , सलाहकार , शिक्षा , गोला बारूद , मिलिट्री ट्रेनिंग , साहसिक कार्य , कमांडो , समाजसेवा , एन जी ओ , लंबी यात्रायें , धर्मगुरु।

10. *मकर* - होटल , खाद्य पदार्थ , कीटनाशक , तेलीय पदार्थ , खनन , पुराने कीमती सामान का क्रय विक्रय , हार्डवेयर स्टोर , चमड़ा उद्योग एवं जूता चप्पल बनाना , भवन निर्माण सामग्री , पत्थर की खाने एवं पत्थर तराशना बेचना , चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जैसे की ड्राईवर चपरासी हेल्पर कुली आदि।

11. *कुम्भ* - समुद्र एवं शैवाल विज्ञान , ज्योतिष , दर्शन , धर्म , शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रबंधन , प्रशासन , क्रांतिकारी क्रियाकलाप , विद्रोही क्रियाकलाप , नई लीक बनाना , प्राकृतिक गैस , उड्डयन , जेल , विस्फोटक निर्माण , धर्मशाला एवं लॉज , गुप्तचर विभाग एवं सेवायें , पशु कत्लखाने , कसाई , कराधान।

12. *मीन* - धर्मस्थान , पंडित पुरोहित ग्रंथी मौलवी प्रीस्ट , दवाईयां , विदेश विभाग , दूतावास , नौसेना , जहाजरानी , धार्मिक सेवाएं।

*लग्न के इन नैशर्गिक गुणों की प्रेरणा .. उस चाचक को इन क्षेत्रो में पारंगत कर सकती है.. परन्तू पूर्ण स्पस्ट करने के लिऐ.... विद्वानों द्वारा कुंंडली के अन्य पहलुओं का अध्यन भी नितांत आवस्यक है।।*

       

Tuesday, February 13, 2018

साझेदारी_व्यापार

||#साझेदारी_व्यापार||                                                साझेदारी का मतलब होता है दो या कई लोगो के बीच एक किसी चीज को लेकर आपसी तालमेल और हिस्सा चाहे वह व्यापार में हो, मकान में हो या किसी भी वस्तु के बीच हो उसे साझेदारी कहते है।कुंडली में साझेदारी का भाव कुंडली का सातवाँ भाव होता है।जब साझे में व्यापार किया जाता है तब सातवे भाव इस भाव का स्वामी और व्यापार कारक बुध गुरु सूर्य शनि को देखा जाता है बुध व्यापार का मुख्य कारक है इस कारण बुध की स्थिति बली और अनुकूल होना बहुत ज्यादा जरूरी होता है।जब सातवे भाव या सप्तमेश(सातवे भाव का स्वामी) का सम्बन्ध कुंडली के दूसरे भाव ग्यारहवे भाव से होता है और यह तीनो भाव/भावेश शुभ और बली स्थिति में होते है तब तब साझे में किए गए व्यापार से बहुत लाभ होता है और जातक साझे के व्यापार में उन्नति करता है क्योंकि सातवाँ भाव साझे के व्यापार का दूसरा भाव धन का और ग्यारहवा भाव आय, लाभ और उन्नति का होता है जब सप्तम भाव, सप्तमेश या दोनों का सम्बन्ध विशेष रूप से ग्यारहवे भाव सहित दूसरे भाव से भी हो तब साझे के व्यापार से बहुत धन लाभ और सफलता मिलती है।ऐसे योग के साथ कुंडली का नवम भाव/भावेश भी बली होना चाहिए क्योंकि यह भाव जातक का भाग्य है और जब भाग्य बली होता है तब सौभाग्य और सफलता जातक के कदम चूमती है।इस सप्तमेश सप्तम, द्वितीयेश द्वितीय भाव, एकादशेश एकादश भाव का यह आपसी सम्बन्ध केंद्र त्रिकोण में होने पर ही अच्छी सफलता मिलती है यह सम्बन्ध यदि 5वें या 11वें भाव में हो तब विशेष शुभ परिणाम साझे के व्यापार से मिलते हैं।सप्तम भाव, सप्तमेश जो ग्रह होगा जिन ग्रहों का प्रभाव सप्तमेश सप्तम भाव पर होगा दूसरे ग्यारहवे भाव/भावेश पर होगा उन कारक ग्रहो से सम्बंधित विषयो से सम्बंधित वस्तुओ का व्यापार जातक को करने पर अच्छी सफलता मिलती है।साझेदारी व्यापार के योग होने पर भी यदि सप्तमेश एकादशेश, व्यापार धन कारक बुध गुरु शनि सूर्य विशेष रूपसे बुध गुरु शनि अस्त हो नीच होकर पीड़ित हो या अन्य तरह से अशुभ हो तब साझेदारी व्यापार में नुकसान उठाना पड़ता है या सप्तमेश धनेश का सम्बन्ध अशुभ होकर 6, 8,12भाव/ भावेश से होने पर भी व्यापार में हानि होती है।इस कारण जब ठीक तरह से कुंडली में साझेदारी व्यापार या व्यापार के योग बन रहे हो तब ही उन्नति, सफलता व्यापार या साझेदारी व्यापार में मिलती है साथ ही ग्रह दशा, गोचर ग्रह भी व्यापार शुरू करते समय या व्यापार के दौरान अनुकूल होनी चाहिए।इस तरह साझेदारी व्यापार योग की ग्रह स्थिति जातक को सफलता दिलाती है।

Sunday, February 11, 2018

ग्रहों के विशिष्ट योग

ग्रहों के विशिष्ट योग
कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुरूप मनीषियों ने इन्हें विशिष्ट योगों के नाम दिए हैं।
1.युति :दो ग्रह एक ही राशि में एक सी डिग्री के हों तो युति कहलाती है। अशुभ ग्रहों की युति अशुभ फल व शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है। अशुभ व शुभ ग्रह की युति भी अशुभ फल ही देती है।
2.लाभ योग :एक ग्रह दूसरे से 60 डिग्री पर हो या तीसरे स्थान में हो तो लाभ योग होता है। यह शुभ माना जाता है।
3.केंद्र योग :दो ग्रह एक दूसरे से 90 डिग्री पर हो या चौथे व 10वें स्थान पर हो तो केंद्र योग होता है। यह योग शुभ होता है।
4.षडाष्टक योग :दो ग्रह 150 डिग्री के अंतर पर हो या एक दूसरे से 6 या8 वें स्थान में हों तो षडाष्टक दोष या योग होता है। यह कष्टकारी होता है।
5.नवपंचम योग :दो ग्रह एक दूसरे से 120 डिग्री पर अर्थात पाँचवें व नवें स्थान पर समान अंश में हो तो यह योग होता है। यह अति शुभ माना जाता है जैसे सिंह राशि का मंगल और धनु राशि का गुरु -
6.प्रतियुति :इसमें दो ग्रह 180 डिग्री पर अर्थात एक दूसरे से सातवें स्थान पर होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए इसके प्रभाव भिन्न-भिन्न होते हैं।
7.अन्योन्य योग :जब ग्रह एक दूसरे की राशि में हो तो यह योग बनता है। (जैसे वृषभ का मंगल और वृश्चिक का शुक्र) इसके भी शुभ फल होते हैं।
8.पापकर्तरी योग :किसी ग्रह के आजू-बाजू (दूसरे व व्यय में) पापग्रह हो तो यह योग बनता है। यह बेहद अशुभ होता है।

ग्रह बाधा होने से पूर्व मिलते हैं ये संकेत:

ग्रह बाधा होने से पूर्व मिलते हैं ये संकेत:
ग्रह अपना शुभाशुभ प्रभाव गोचर एवं दशा-अन्तर्दशा-प्रत्यन्तर्दशा में देते हैं । जिस ग्रह की दशा के प्रभाव में हम होते हैं, उसकी स्थिति के अनुसार शुभाशुभ फल हमें मिलता है ।
जब भी कोई ग्रह अपना शुभ या अशुभ फल प्रबल रुप में देने वाला होता है, तो वह कुछ संकेत पहले से ही देने लगता है ।इनके उपाय करके बढ़ी समस्याओं से बचा जा सकता है | ऐसे ही कुछ पूर्व संकेतों का विवरण यहाँ दिया है –

(*)सूर्य के अशुभ होने के पूर्व संकेत –
          सूर्य अशुभ फल देने वाला हो, तो घर में रोशनी देने वाली वस्तुएँ नष्ट होंगी या प्रकाश का स्रोत बंद होगा । जैसे – जलते हुए बल्ब का फ्यूज होना, तांबे की वस्तु खोना ।
          किसी ऐसे स्थान पर स्थित रोशनदान का बन्द होना, जिससे सूर्योदय से दोपहर तक सूर्य का प्रकाश प्रवेश करता हो । ऐसे रोशनदान के बन्द होने के अनेक कारण हो सकते हैं ।
जैसे – अनजाने में उसमें कोई सामान भर देना या किसी पक्षी के घोंसला बना लेने के कारण उसका बन्द हो जाना आदि ।
          सूर्य के कारकत्व से जुड़े विषयों के बारे में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है । सूर्य जन्म-कुण्डली में जिस भाव में होता है, उस भाव से जुड़े फलों की हानि करता है ।
 यदि सूर्य पंचमेश, नवमेश हो तो पुत्र एवं पिता को कष्ट देता है । सूर्य लग्नेश हो, तो जातक को सिरदर्द, ज्वर एवं पित्त रोगों से पीड़ा मिलती है । मान-प्रतिष्ठा की हानि का सामना करना पड़ता है ।
          किसी अधिकारी वर्ग से तनाव, राज्य-पक्ष से परेशानी ।
          यदि न्यायालय में विवाद चल रहा हो, तो प्रतिकूल परिणाम ।
          शरीर के जोड़ों में अकड़न तथा दर्द ।
          किसी कारण से फसल का सूख जाना ।
          व्यक्ति के मुँह में अक्सर थूक आने लगता है तथा उसे बार-बार थूकना पड़ता है ।
          सिर किसी वस्तु से टकरा जाता है ।
           तेज धूप में चलना या खड़े रहना पड़ता है ।
(*)चन्द्र के अशुभ होने के पूर्व संकेत

            जातक की कोई चाँदी की अंगुठी या अन्य आभूषण खो जाता है या जातक मोती पहने हो, तो खो जाता है ।
           जातक के पास एकदम सफेद तथा सुन्दर वस्त्र हो वह अचानक फट जाता है या खो जाता है या उस पर कोई गहरा धब्बा लगने से उसकी शोभा चली जाती है ।
           व्यक्ति के घर में पानी की टंकी लीक होने लगती है या नल आदि जल स्रोत के खराब होने पर वहाँ से पानी व्यर्थ बहने लगता है । पानी का घड़ा अचानक टूट जाता है ।
           घर में कहीं न कहीं व्यर्थ जल एकत्रित हो जाता है तथा दुर्गन्ध देने लगता है ।

उक्त संकेतों से निम्नलिखित विषयों में अशुभ फल दे सकते हैं ->
           माता को शारीरिक कष्ट हो सकता है या अन्य किसी प्रकार से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ।
            नवजात कन्या संतान को किसी प्रकार से पीड़ा हो सकती है ।
            मानसिक रुप से जातक बहुत परेशानी का अनुभव करता है ।
           किसी महिला से वाद-विवाद हो सकता है ।
           जल से जुड़े रोग एवं कफ रोगों से पीड़ा हो सकती है । जैसे – जलोदर, जुकाम, खाँसी, नजला, हेजा आदि ।
           प्रेम-प्रसंग में भावनात्मक आघात लगता है ।
           समाज में अपयश का सामना करना पड़ता है । मन में बहुत अशान्ति होती है ।
           घर का पालतु पशु मर सकता है ।
           घर में सफेद रंग वाली खाने-पीने की वस्तुओं की कमी हो जाती है या उनका नुकसान होता है । जैसे – दूध का उफन जाना ।
          मानसिक रुप से असामान्य स्थिति हो जाती है
(*)मंगल के अशुभ होने के पूर्व संकेत

          भूमि का कोई भाग या सम्पत्ति का कोई भाग टूट-फूट जाता है ।
          घर के किसी कोने में या स्थान में आग लग जाती है । यह छोटे स्तर पर ही होती है ।
         किसी लाल रंग की वस्तु या अन्य किसी प्रकार से मंगल के कारकत्त्व वाली वस्तु खो जाती है या नष्ट हो जाती है ।
         घर के किसी भाग का या ईंट का टूट जाना ।
         हवन की अग्नि का अचानक बन्द हो जाना ।
         अग्नि जलाने के अनेक प्रयास करने पर भी अग्नि का प्रज्वलित न होना या अचानक जलती हुई अग्नि का बन्द हो जाना ।
         वात-जन्य विकार अकारण ही शरीर में प्रकट होने लगना ।
         किसी प्रकार से छोटी-मोटी दुर्घटना हो सकती है ।

(*)बुध के अशुभ होने के पूर्व संकेत

          व्यक्ति की विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है अर्थात् वह अच्छे-बुरे का निर्णय करने में असमर्थ रहता है ।
          सूँघने की शक्ति कम हो जाती है ।
          काम-भावना कम हो जाती है ।
          त्वचा के संक्रमण रोग उत्पन्न होते हैं । पुस्तकें, परीक्षा ले कारण धन का अपव्यय होता है । शिक्षा में शिथिलता आती है ।

(*)गुरु के अशुभ होने के पूर्व संकेत

          अच्छे कार्य के बाद भी अपयश मिलता है ।
          किसी भी प्रकार का आभूषण खो जाता है ।
          व्यक्ति के द्वारा पूज्य व्यक्ति या धार्मिक क्रियाओं का अनजाने में ही अपमान हो जाता है या कोई धर्म ग्रन्थ नष्ट होता है ।
          सिर के बाल कम होने लगते हैं अर्थात् व्यक्ति गंजा होने लगता है ।
          दिया हुआ वचन पूरा नहीं होता है तथा असत्य बोलना पड़ता है ।

(*)शुक्र के अशुभ होने के पूर्व संकेत

           किसी प्रकार के त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे – दाद, खुजली आदि उत्पन्न होते हैं ।
           स्वप्नदोष, धातुक्षीणता आदि रोग प्रकट होने लगते हैं ।
           कामुक विचार हो जाते हैं ।
           किसी महिला से विवाद होता है ।
           हाथ या पैर का अंगुठा सुन्न या निष्क्रिय होने लगता है ।

(*)शनि के अशुभ होने के पूर्व संकेत

           दिन में नींद सताने लगती है ।
          अकस्मात् ही किसी अपाहिज या अत्यन्त निर्धन और गन्दे व्यक्ति से वाद-विवाद हो जाता है ।
           मकान का कोई हिस्सा गिर जाता है ।
           लोहे से चोट आदि का आघात लगता है ।
           पालतू काला जानवर जैसे- काला कुत्ता,                   काली गाय, काली भैंस, काली बकरी या काला मुर्गा आदि मर जाता है ।
            निम्न-स्तरीय कार्य करने वाले व्यक्ति से झगड़ा या तनाव होता है ।
           व्यक्ति के हाथ से तेल फैल जाता है ।
           व्यक्ति के दाढ़ी-मूँछ एवं बाल बड़े हो जाते हैं ।
          कपड़ों पर कोई गन्दा पदार्थ गिरता है या धब्बा लगता है या साफ-सुथरे कपड़े पहनने की जगह गन्दे वस्त्र पहनने की स्थिति बनती है ।
          अँधेरे, गन्दे एवं घुटन भरी जगह में जाने का अवसर मिलता है ।

(*)राहु के अशुभ होने के पूर्व संकेत ->

            मरा हुआ सर्प या छिपकली दिखाई देती है ।
            धुएँ में जाने या उससे गुजरने का अवसर मिलता है या व्यक्ति के पास ऐसे अनेक लोग एकत्रित हो जाते हैं, जो कि निरन्तर धूम्रपान करते हैं ।
             किसी नदी या पवित्र कुण्ड के समीप जाकर भी व्यक्ति स्नान नहीं करता।
             पाला हुआ जानवर खो जाता है या मर जाता है ।
             याददाश्त कमजोर होने लगती है ।
             अकारण ही अनेक व्यक्ति आपके विरोध में खड़े होने लगते हैं ।
              हाथ के नाखुन विकृत होने लगते हैं ।
              मरे हुए पक्षी देखने को मिलते हैं ।
              बँधी हुई रस्सी टूट जाती है । मार्ग भटकने की स्थिति भी सामने आती है । व्यक्ति से कोई आवश्यक चीज खो जाती है ।

(*)केतु के अशुभ होने के पूर्व संकेत >

              मुँह से अनायास ही अपशब्द निकल जाते हैं ।
              कोई मरणासन्न या पागल कुत्ता दिखायी देता है ।
              घर में आकर कोई पक्षी प्राण-त्याग देता है ।
              अचानक अच्छी या बुरी खबरें सुनने को मिलती है ।
               हड्डियों से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।
               पैर का नाखून टूटता या खराब होने लगता है ।
               किसी स्थान पर गिरने एवं फिसलने की स्थिति बनती है ।भ्रम होने के कारण व्यक्ति से हास्यास्पद गलतियाँ होती है।

      

दशम भाव द्वारा करे अपने कर्म का विचार

दशम भाव द्वारा करे अपने कर्म का विचार :-
========================
जन्मकुंडली में दशम अथवा कर्म भाव
की महत्ता का विवरण महर्षि पराशर, मंत्रेश्वर और
वराहमिहिर ने विभिन्न ज्योतिष ग्रंथो में विस्तृत रूप से किया है | कर्म
भाव को यहाँ तक भाग्य भाव (नवम) पर
भी प्रधानता दी गयी है |
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवत
गीता में अर्जुन को कर्मयोग के बारे में
ही उपदेश दिया है |
गोस्वामी तुलसीदास ने कर्म का विवरण कुछ
इस तरह किया है ..
कर्म प्रधान विश्व रची राखा |
जो जस करई सो तस फल चाखा ||
अर्थात भगवान ने इस विश्व
की रचना ही कर्म प्रधान
की है और जो जिस तरह का कर्म करेगा उसका फल
भी उसे उसी अनुकूल मिलेगा | मनुष्य अपने
प्रारब्ध जनित दोषो को भी अपने कर्म के द्वारा समाप्त
कर सकता है |
शुभाशुभ कर्म, कृषि, पिता, आजीविका, यश, व्यापार,
राजा का आसन, राजपद की प्राप्ति, उचा पद,
नींद, गहने, अभिमान, खानदान, सन्यास, शास्त्र ज्ञान,
आकाश, दूर देश में निवास, यात्रा, ऋण का विचार दसवे भाव से
करना चाहिए |
१. पूर्ण बली कर्मेश अपनी राशि, नवमांश
या उच्च में हो तो जातक पितृ सौख्य युक्त, पुण्य कार्य करने
वाला तथा यशस्वी होता है | वही कर्मेश
निर्बल हो तो जातक कर्महीन होता है |
२. कर्मेश शुभ स्थान में शुभ ग्रहो से युक्त हो तो जातक
को वाणिज्य अथवा राजाश्रय से लाभ होता है | इसके
विपरीत पापयुत कर्मेश अशुभ स्थान में स्थित
हो तो अशुभ फल होता है |
३. दशम तथा एकादश स्थान पापगृहकांत हो तो मनुष्य दुष्कर्म करने
वाला, स्वजन का द्वेषी होता है |
४. कर्मेश अष्टमस्थ होकर राहु युक्त हो तो जातक जन-
द्वेषी महामूर्ख तथा दुष्कर्म कारक होता है |
५. कर्मेश शनि या मंगल के साथ सप्तम में हो और सप्तमेश
भी पाप ग्रह युक्त हो तो जातक
व्यभिचारी तथा पेटू होता है |
६. लाभेश दशम में, कर्मेश लग्न में हो या दोनों केंद्रस्थ
हो तो मनुष्य सुखी होता है |
७. शुक्र युक्त गुरु मीनस्त हो, लग्नेश
भी प्रबल हो, चंद्रमा अपने उच्च राशिगत हो तो जातक
अच्छे ज्ञान और संपत्ति से परिपूर्ण होता है |
८. कर्मेश स्वयं की राशि में होकर केंद्र या त्रिकोण में
हो और गुरु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक कार्यशील
होता है |
९. कर्मेश अष्टम में अष्टमेश कर्म स्थान में हो और पापग्रह
का संयोग हो तो जातक दुष्कर्म संलग्न होता है |
१०. नीचस्थ ग्रह के साथ शनि यदि दशम स्थान गत
हो, दशम का नवमांश भी पापग्रहकान्त हो तो जातक
कर्म रहित होता है |
११. दशम भाव गत चंद्रमा हो, दशमेश चंद्रमा से नवम पंचम में
हो और लग्नेश केंद्रस्थ हो तो जातक शुभ यश वाला होता है |
१२. कर्मेश भाग्यस्थ हो, लग्नेश कर्म स्थान गत हो, और लग्न
से पंचम में चंद्रमा रहे तो जातक विख्यात होता है

प्रशासनिक अधिकारी बनने के योग

प्रशासनिक अधिकारी बनने के योग
कुण्डली में बनने वाले योग ही बताते है कि व्यक्ति की आजीविका का क्षेत्र क्या रहेगा। प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश की लालसा अधिकांश लोगों में रहती है, बनते बिरले ही हैं। आई. ए. एस. जैसे उच्च पद की प्राप्ति के लिये व्यक्ति की कुण्डली में सर्वप्रथम शिक्षा का स्तर सर्वोत्तम होना चाहिए। कुंडली के दूसरे, चतुर्थ, पंचम एवं नवम भाव व भावेशों के बली होने पर जातक की शिक्षा उत्तम होती है। शिक्षा के कारक ग्रह बुध, गुरु व मंगल बली होने चाहिए, यदि ये बली हैं तो विशिष्ट शिक्षा मिलती है और जातक के लिए सफलता का मार्ग खोलती है। आईये देखें कि कौन से योग प्रशासनिक अधिकारी के कैरियर में आपको सफलता दिला सकते हैं:
* छठा, पहला व दशम भाव व भावेश बली हों तो प्रतियोगी परीक्षा में सफलता अवश्य मिलती है। सफलता के लिये समर्पण, एकाग्रता एवं परिश्रम की आवश्यकता होती है। इसका बोध तीसरे भाव एवं तृतीयेश के बली होने पर होता है। यदि ये बली हैं तो जातक में समर्पण, एकाग्रता एवं परिश्रम करने की क्षमता होती है और व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में सफलता की मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है।
* सूर्य को राजा और गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दोनों ग्रह मुख्य रूप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद प्राप्ति में सहायक हैं। जनता से अधिक वास्ता पड़ता है इसलिए शनि का बली होना अत्यन्त आवश्यक है। शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की कड़ी है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है और ये बली हों तो जातक अपनी कलम का लोहा नौकरी में अवश्य मनवाता है।
* किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा में सफलता के लिये लग्न, षष्टम, तथा दशम भावो/ भावेशों का शक्तिशाली होना तथा इनमे पारस्परिक संबन्ध होना आवश्यक है। ये भाव/ भावेश जितने समर्थ होगें और उनमें पारस्परिक सम्बन्ध जितने गहरे होगें उतनी ही उंचाई तक व्यक्ति जा सकेगा।
* सफलता के लिये पूरी तौर से समर्पण तथा एकाग्र मेहनत की आवश्यकता होती है। इन सब गुणों का बोध तीसरा घर कराता है, जिससे पराक्रम के घर के नाम से जाना जाता है। तीसरा भाव इसलिये भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दशम घर से छठा घर है। इस घर से व्यवसाय के शत्रु देखे जाते है।
* इसके बली होने से व्यक्ति में व्यवसाय के शत्रुओं से लडऩे की क्षमता आती है। यह घर उर्जा देता है। जिससे सफलता की उंचाईयों को छूना संभव हो पाता है।
* कुण्डली के सभी ग्रहों में सूर्य को राजा की उपाधि दी गई है तथा गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दो ग्रह मुख्य रुप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद प्राप्ति में सहायक ग्रह माने जाते हैं। जिनमें इनका योग बनता है, ऐसे अधिकारियों के मुख्यकार्य मुख्य रुप से जनता की सेवा करना है।
* उनके लिये शनि का महत्व अधिक हो जाता है क्योकि शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच के सेतू है। कई प्रशासनिक अधिकारी नौकरी करते समय भी लेखन को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल हुए है। यह मंगल व बुध की कृपा के बिना संभव नहीं है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है।
* प्रशासनिक अधिकारी मे चयन के लिये सूर्य, गुरु, मंगल, राहु व चन्द्र आदि ग्रह बलिष्ठ होने चाहिए। मंगल से व्यक्ति में साहस, पराक्रम व जोश आता है जो प्रतियोगिताओं में सफलता की प्राप्ति के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
* व्यक्ति को आई.ए.एस. बनने के लिये दशम, छठे, तीसरे व लग्न भाव/भावेशों की दशा मिलनी अच्छी होगी।
* भाव एकादश का स्वामी नवम घर में हो या दशम भाव के स्वामी से युति या दृष्ट हो तो व्यक्ति के प्रशासनिक अधिकारी बनने की संभावना बनती है।
* पंचम भाव में उच्च का गुरु या शुक्र होने पर उसपर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तथा सूर्य भी अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति इन्ही ग्रहों की दशाओं में उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्नेश और दशमेश स्वग्रही या उच्च के होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो और गुरु उच्च का या स्वग्रही हो तो भी व्यक्ति की प्रशासनिक अधिकारी बनने की प्रबल संभावना होती है।
* प्रशासनिक अधिकारी बनकर सफलता पाने के लिए सूर्य, गुरु, मंगल, राहु व चन्द्र आदि ग्रह बली होने चाहिए।
* मंगल से जातक में साहस एवं पराक्रम आता है जोकि अत्यन्त आवश्यक है। सूर्य से नेतृत्व करने की क्षमता मिलती है, गुरु से विवेक सम्मत निर्णय लेने की क्षमता मिलती है और चन्द्र से शालीनता आती है एवं मस्तिष्क स्थिर रहता है।
* यदि कुण्डली में अमात्यकारक ग्रह बली है अर्थात् स्वराशि, उच्च या वर्गोत्तम में है एवं केन्द्र में हो या तीसरे या दसवें हो तो अत्यन्त उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
* एकादशेश नौवें भाव में हो या दशमेश के साथ युत में हो या दृष्ट हों तो जातक में प्रशासनिक अधिकारी बनने की संभावना अधिक होती है।
* पंचम भाव में उच्च का गुरु या शुक्र हो औरउस पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो एवं सूर्य अच्छी स्थिति में हो तो जातक इन दशाओं में उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्नेश और दशमेश स्वराशि या उच्च का होकर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो और गुरु उच्च या स्वराशि में हो तो जातक प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्न में सूर्य और बुध हो और गुरु की शुभ दृष्टि इन पर हो तो जातक प्रशासनिक सेवा में उच्च पद प्राप्त करने में सफल रहता है।
* आई.ए.एस. बनने के लिये तृतीयेश, षष्ठेश, दशमेश व एकादशेश की दशा मिलनी सोने में सुहागा होता है अर्थात् सफलता निश्चित है।
* तीसरे, छठे, दसवें, एकादश में सर्वाष्टक वर्ग की संख्या बढ़ते क्रम में हो तो प्रशासनिक सेवाओं में धन, यश एवं उन्नति तीनों एक साथ मिलते हैं। ऐसे अधिकारी की सभी प्रशंसा करते हैं।
उक्त ज्योतिष योग कुण्डली में विचार कर आप जातक के प्रशासनिक सेवाओं में सफलता का निर्णय करके जातक को उचित सलाह देकर यश एवं धन के भागी बन सकते हैं। ये योग इस क्षेत्र में अच्छा कैरियर बनाते हैं।

ज्योतिष में नाम के पहले अक्षर का महत्व काफी अधिक है।

ज्योतिष में नाम के पहले अक्षर का महत्व काफी अधिक है। व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में होता है, उसी राशि के अनुसार नाम का पहला अक्षर तय होता है। सभी 12 राशियों के लिए अलग-अलग अक्षर बताए गए हैं। नाम के पहले अक्षर से राशि मालूम होती है और उस राशि के अनुसार व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य से जुड़ी कई जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
यहां जानिए किस राशि के अंतर्गत कौन-कौन से नाम अक्षर आते हैं, किस राशि के व्यक्ति का स्वभाव कैसा है और किस राशि के लोगों की क्या विशेषता है...
*मेष राशि:– चू , चे, चो, ला, ली, लू , ले, लो, अ, इन अक्षरों से आने वाले नाम मेष राशि में आते हैं।*
1. मेष राशि चक्र की सबसे प्रथम राशि मेष है। जिसके स्वामी मंगल है। धातु संज्ञक यह राशि चर (चलित) स्वभाव की होती है। राशि का प्रतीक मेढ़ा संघर्ष का परिचायक है।
2. मेष राशि वाले आकर्षक होते हैं। इनका स्वभाव कुछ रुखा हो सकता है। दिखने में सुंदर होते है। यह लोग किसी के दबाव में कार्य करना पसंद नहीं करते। इनका चरित्र साफ -सुथरा एवं आदर्शवादी होता है।
3. बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी होते हैं। समाज में इनका वर्चस्व होता है एवं मान सम्मान की प्राप्ति होती है।
4. निर्णय लेने में जल्दबाजी करते है तथा जिस कार्य को हाथ में लिया है उसको पूरा किए बिना पीछे नहीं हटते।
5. स्वभाव कभी-कभी विरक्ति का भी रहता है। लालच करना इस राशि के लोगों के स्वभाव मे नहीं होता। दूसरों की मदद करना अच्छा लगता है।
6. कल्पना शक्ति की प्रबलता रहती है, सोचते बहुत ज्यादा हैं।
7. जैसा खुद का स्वभाव है, वैसी ही अपेक्षा दूसरों से करते हैं। इस कारण कई बार धोखा भी खाते हैं।
8. अग्रि तत्व होने के कारण क्रोध अतिशीघ्र आता है। किसी भी चुनौती को स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है।
9. अपमान जल्दी भूलते नहीं, मन में दबा के रखते हैं। मौका पडऩे पर प्रतिशोध लेने से नहीं चूकते।
10. अपनी जिद पर अड़े रहना, यह भी मेष राशि के स्वभाव में पाया जाता है। आपके भीतर एक कलाकार छिपा होता है।
जानिए शेष राशियों की खास बातें...
*वृष राशि:– ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू , वे, वो, इन अक्षरों से आने वाले नाम वृष राशि में आते हैं*
वृषभ राशि
1. इस राशि का चिह्न बैल है। बैल स्वभाव से ही अधिक पारिश्रमी और बहुत अधिक शक्तिशाली होता है, साधारणत: वह शांत रहता है, किन्तु क्रोध आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है।
2. बैल के समान स्वभाव वृष राशि के जातक में भी पाया जाता है। वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है।
3. इसके अन्तर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण और मृगशिरा के प्रथम दो चरण आते हैं।
4. आपके जीवन में पिता-पुत्र का कलह रहता है, जातक का मन सरकारी कार्यों की ओर रहता है। सरकारी ठेकेदारी का कार्य करवाने की योग्यता रहती है।
5. पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा जीविकोपार्जन का साधन होता है। जातक अधिकतर तामसी भोजन में अपनी रुचि दिखाता है।
6. गुरु का प्रभाव जातक में ज्ञान के प्रति अहम भाव को पैदा करने वाला होता है, वह जब भी कोई बात करता है तो स्वाभिमान की बात करता है।
7. सरकारी क्षेत्रों की शिक्षा और उनके काम जातक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
8. किसी प्रकार से केतु का बल मिल जाता है तो जातक सरकार का मुख्य सचेतक बनने की योग्यता रखता है। मंगल के प्रभाव से जातक के अन्दर मानसिक गर्मी प्रदान करता है।
9. कल-कारखानों, स्वास्थ्य कार्यों और जनता के झगड़े सुलझाने का कार्य जातक कर सकता है, जातक की माता के जीवन में परेशानी ज्यादा होती है।
10. ये अधिक सौन्दर्य प्रेमी और कला प्रिय होते हैं। जातक कला के क्षेत्र में नाम करता है।
*मिथुन राशि:- का, की, कू घ, ड़ ,छ, के को, हा अक्षरों से आने वाले नाम मिथुन राशि मे आते है।*
मिथुन राशि
1. यह राशि चक्र की तीसरी राशि है। राशि का प्रतीक युवा दम्पति है, यह द्वि-स्वभाव वाली राशि है।
2. मृगसिरा नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक मंगल-शुक्र हैं। मंगल शक्ति और शुक्र माया है।
3. व्यक्ति के अन्दर माया के प्रति भावना पाई जाती है, जातक जीवनसाथी के प्रति हमेशा शक्ति बन कर प्रस्तुत होता है। साथ ही, घरेलू कारणों चलते कई बार आपस में तनाव रहता है।
4. मंगल और शुक्र की युति के कारण जातक में स्त्री रोगों को परखने की अद्भुत क्षमता होती है।
5. जातक वाहनों की अच्छी जानकारी रखता है। नए-नए वाहनों और सुख के साधनों के प्रति अत्यधिक आकर्षण होता है। इनका घरेलू साज-सज्जा के प्रति अधिक झुकाव होता है।
6. मंगल के कारण जातक वचनों का पक्का बन जाता है।
7. गुरु आसमान का राजा है तो राहु गुरु का शिष्य, दोनों मिलकर जातक में ईश्वरीय ताकतों को बढ़ाते हैं।
8. इस राशि के लोगों में ब्रह्माण्ड के बारे में पता करने की योग्यता जन्मजात होती है। वह वायुयान और  सेटेलाइट के बारे में ज्ञान बढ़ाता है।
9. राहु-शनि के साथ मिलने से जातक के अन्दर शिक्षा और शक्ति उत्पादित होती है। जातक का कार्य शिक्षा स्थानों में या बिजली, पेट्रोल या वाहन वाले कामों की ओर होता है।
10. जातक एक दायरे में रह कर ही कार्य कर पाता है और पूरा जीवन कार्योपरान्त फलदायक रहता है। जातक के अन्दर एक मर्यादा होती है जो उसे धर्म में लीन करती है और जातक सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अपने को रत रखता है।
*कर्क राशि:- ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे डो इन अक्षरों से आने वाले नाम कर्क राशि मे आते है।*
कर्क राशि
1. राशि चक्र की चौथी राशि कर्क है। इस राशि का चिह्न केकड़ा है। यह चर राशि है।
2. राशि स्वामी चन्द्रमा है। इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।
3. कर्क राशि के लोग कल्पनाशील होते हैं। शनि-सूर्य जातक को मानसिक रूप से अस्थिर बनाते हैं और जातक में अहम की भावना बढ़ाते हैं।
4. जिस स्थान पर भी वह कार्य करने की इच्छा करता है, वहां परेशानी ही मिलती है।
5. शनि-बुध दोनों मिलकर जातक को होशियार बना देते हैं। शनि-शुक्र जातक को धन और जायदाद देते हैं।
6. शुक्र उसे सजाने संवारने की कला देता है और शनि अधिक आकर्षण देता है।
7. जातक उपदेशक बन सकता है। बुध गणित की समझ और शनि लिखने का प्रभाव देते हैं। कम्प्यूटर आदि का प्रोग्रामर बनने में जातक को सफलता मिलती है।
8. जातक श्रेष्ठ बुद्धि वाला, जल मार्ग से यात्रा पसंद करने वाला, कामुक, कृतज्ञ, ज्योतिषी, सुगंधित पदार्थों का सेवी और भोगी होता है। वह मातृभक्त होता है।
9. कर्क, केकड़ा जब किसी वस्तु या जीव को अपने पंजों को जकड़ लेता है तो उसे आसानी से नहीं छोड़ता है। उसी तरह जातकों में अपने लोगों तथा विचारों से चिपके रहने की प्रबल भावना होती है।
10. यह भावना उन्हें ग्रहणशील, एकाग्रता और धैर्य के गुण प्रदान करती है।
*सिंह राशि:- मा ,मी, मू ,मो, टा, टी, टू, टे इन अक्षरों से आने वाले नाम सिंह राशि मे आते है।*
सिंह राशि
1. सिंह राशि पूर्व दिशा की द्योतक है। इसका चिह्न शेर है। राशि का स्वामी सूर्य है और इस राशि का तत्व अग्नि है।
2. इसके अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वा फाल्गुनी के चारों चरण और उत्तराफाल्गुनी का पहला चरण आता है।
3. केतु-मंगल जातक में दिमागी रूप से आवेश पैदा करता है। केतु-शुक्र, जो जातक में सजावट और सुन्दरता के प्रति आकर्षण को बढ़ाता है।
4. केतु-बुध, कल्पना करने और हवाई किले बनाने के लिए सोच पैदा करता है। चंद्र-केतु जातक में कल्पना शक्ति का विकास करता है। शुक्र-सूर्य जातक को स्वाभाविक प्रवृत्तियों की तरफ बढ़ाता है।
5. जातक का सुन्दरता के प्रति मोह होता है और वे कामुकता की ओर भागता है। जातक में अपने प्रति स्वतंत्रता की भावना रहती है और किसी की बात नहीं मानता।
6. जातक, पित्त और वायु विकार से परेशान रहने वाले लोग, रसीली वस्तुओं को पसंद करने वाले होते हैं। कम भोजन करना और खूब घूमना, इनकी आदत होती है।
7. छाती बड़ी होने के कारण इनमें हिम्मत बहुत अधिक होती है और मौका आने पर यह लोग जान पर खेलने से भी नहीं चूकते।
8. जातक जीवन के पहले दौर में सुखी, दूसरे में दुखी और अंतिम अवस्था में पूर्ण सुखी होता है।
9. सिंह राशि वाले जातक हर कार्य शाही ढंग से करते हैं, जैसे सोचना शाही, करना शाही, खाना शाही और रहना शाही।
10. इस राशि वाले लोग जुबान के पक्के होते हैं। जातक जो खाता है वही खाएगा, अन्यथा भूखा रहना पसंद करेगा, वह आदेश देना जानता है, किसी का आदेश उसे सहन नहीं होता है, जिससे प्रेम करेगा, उस मरते दम तक निभाएगा, जीवनसाथी के प्रति अपने को पूर्ण रूप से समर्पित रखेगा, अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी का आना इस राशि वाले को कतई पसंद नहीं है।
*कन्या राशि:-टो ,पा,पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो इन अक्षरों से आने वाले नाम कन्या राशि मे आते है।*
कन्या राशि
1. राशि चक्र की छठी कन्या राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फूल लिए कन्या है। राशि का स्वामी बुध है। इसके अन्तर्गत उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण, चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।
2. कन्या राशि के लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हैं। भावुक भी होते हैं और वह दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा काम लेते हैं।
3. इस राशि के लोग संकोची, शर्मीले और झिझकने वाले होते हैं।
4. मकान, जमीन और सेवाओं वाले क्षेत्र में इस राशि के जातक कार्य करते हैं।
5. स्वास्थ्य की दृष्टि से फेफड़ों में शीत, पाचनतंत्र एवं आंतों से संबंधी बीमारियां जातकों मे मिलती हैं। इन्हें पेट की बीमारी से प्राय: कष्ट होता है। पैर के रोगों से भी सचेत रहें।
6. बचपन से युवावस्था की अपेक्षा जातकों की वृद्धावस्था अधिक सुखी और ज्यादा स्थिर होता है।
7. इस राशि वाल पुरुषों का शरीर भी स्त्रियों की भांति कोमल होता है। ये नाजुक और ललित कलाओं से प्रेम करने वाले लोग होते हैं।
8. ये अपनी योग्यता के बल पर ही उच्च पद पर पहुंचते हैं। विपरीत परिस्थितियां भी इन्हें डिगा नहीं सकतीं और ये अपनी सूझबूझ, धैर्य, चातुर्य के कारण आगे बढ़ते रहते है।
9. बुध का प्रभाव इनके जीवन मे स्पष्ट झलकता है। अच्छे गुण, विचारपूर्ण जीवन, बुद्धिमत्ता, इस राशि वाले में अवश्य देखने को मिलती है।
10. शिक्षा और जीवन में सफलता के कारण लज्जा और संकोच तो कम हो जाते हैं, परंतु नम्रता तो इनका स्वाभाविक गुण है।
*तुला राशि:- रा , री, रे, रो ,ता, ती, तू, ते इन अक्षरों से आने वाले नाम तुला राशि में आते है।*
तुला राशि
1. तुला राशि का चिह्न तराजू है और यह राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है, यह वायुतत्व की राशि है। शुक्र राशि का स्वामी है। इस राशि वालों को कफ की समस्या होती है।
2. इस राशि के पुरुष सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। आंखों में चमक व चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। इनका स्वभाव सम होता है।
3. किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते, दूसरों को प्रोत्साहन देना, सहारा देना इनका स्वभाव होता है। ये व्यक्ति कलाकार, सौंदर्योपासक व स्नेहिल होते हैं।
4. ये लोग व्यावहारिक भी होते हैं व इनके मित्र इन्हें पसंद करते हैं।
5. तुला राशि की स्त्रियां मोहक व आकर्षक होती हैं। स्वभाव खुशमिजाज व हंसी खनखनाहट वाली होती हैं। बुद्धि वाले काम करने में अधिक रुचि होती है।
6. घर की साजसज्जा व स्वयं को सुंदर दिखाने का शौक रहता है। कला, गायन आदि गृह कार्य में दक्ष होती हैं। बच्चों से बेहद जुड़ाव रहता है।
7. तुला राशि के बच्चे सीधे, संस्कारी और आज्ञाकारी होते हैं। घर में रहना अधिक पसंद करते हैं। खेलकूद व कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं।
8. तुला राशि के जातक दुबले-पतले, लम्बे व आकर्षक व्यक्तिव वाले होते हैं। जीवन में आदर्शवाद व व्यवहारिकता में पर्याप्त संतुलन रखते हैं।
9. इनकी आवाज विशेष रूप से सौम्य होती हैं। चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान छाई रहती है।
10. इन्हें ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करना बहुत भाता है। ये एक अच्छे साथी हैं, चाहें वह वैवाहिक जीवन हो या व्यावसायिक जीवन।
*वृश्चिक राशि:- तो, ना, नी ,नू , ने नो या यी , यु इन अक्षरों से आने वाले नाम वृश्चिक राशि मे आते है।*
वृश्चिक राशि
1. वृश्चिक राशि का चिह्न बिच्छू है और यह राशि उत्तर दिशा की द्योतक है। वृश्चिक राशि जलतत्व की राशि है। इसका स्वामी मंगल है। यह स्थिर राशि है, यह स्त्री राशि है।
2. इस राशि के व्यक्ति उठावदार कद-काठी के होते हैं। यह राशि गुप्त अंगों, उत्सर्जन, तंत्र व स्नायु तंत्र का प्रतिनिधित्व करती है। अत: मंगल की कमजोर स्थिति में इन अंगों के रोग जल्दी होते हैं। ये लोग एलर्जी से भी अक्सर पीडि़त रहते हैं। विशेषकर जब चंद्रमा कमजोर हो।
3. वृश्चिक राशि वालों में दूसरों को आकर्षित करने की अच्छी क्षमता होती है। इस राशि के लोग बहादुर, भावुक होने के साथ-साथ कामुक होते हैं।
4. शरीरिक गठन भी अच्छा होता है। ऐसे व्यक्तियों की शारीरिक संरचना अच्छी तरह से विकसित होती है। इनके कंधे चौड़े होते हैं। इनमें शारीरिक व मानसिक शक्ति प्रचूर मात्रा में होती है।
5. इन्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं होता है, इसलिए कोई इन्हें धोखा नहीं दे सकता। ये हमेशा साफ-सुथरी और सही सलाह देने में विश्वास रखते हैं। कभी-कभी साफगोई विरोध का कारण भी बन सकती है।
6. ये जातक दूसरों के विचारों का विरोध ज्यादा करते हैं, अपने विचारों के पक्ष में कम बोलते हैं और आसानी से सबके साथ घुलते-मिलते नहीं हैं।
7. यह जातक अक्सर विविधता की तलाश में रहते हैं। वृश्चिक राशि से प्रभावित लड़के बहुत कम बोलते होते हैं। ये आसानी से किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं। इन्हें दुबली-पतली लड़कियां आकर्षित करती हैं।
8. वृश्चिक वाले एक जिम्मेदार गृहस्थ की भूमिका निभाते हैं। अति महत्वाकांक्षी और जिद्दी होते हैं। अपने रास्ते चलते हैं मगर किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते।
9. लोगों की गलतियों और बुरी बातों को खूब याद रखते हैं और समय आने पर उनका उत्तर भी देते हैं। इनकी वाणी कटु और गुस्सा तेज होता है मगर मन साफ होता है। दूसरों में दोष ढूंढने की आदत होती है। जोड़-तोड़ की राजनीति में चतुर होते हैं।
10. इस राशि की लड़कियां तीखे नयन-नक्ष वाली होती हैं। यह ज्यादा सुन्दर न हों तो भी इनमें एक अलग आकर्षण रहता है। इनका बातचीत करने का अपना विशेष अंदाज होता है।
*धनु राशि:– ये, यो, भा, भी, भू , धा, फा, ड़ा, भे, इन अक्षरों से आने वाले नाम धनु राशि में आते है।*
धनु राशि
1. धनु द्वि-स्वभाव वाली राशि है। इस राशि का चिह्न धनुषधारी है। यह राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है।
2. धनु राशि वाले काफी खुले विचारों के होते हैं। जीवन के अर्थ को अच्छी तरह समझते हैं।
3. दूसरों के बारे में जानने की कोशिश में हमेशा करते रहते हैं।
4. धनु राशि वालों को रोमांच काफी पसंद होता है। ये निडर व आत्म विश्वासी होते हैं। ये अत्यधिक महत्वाकांक्षी और स्पष्टवादी होते हैं।
5. स्पष्टवादिता के कारण दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते हैं।
6. इनके अनुसार जो इनके द्वारा परखा हुआ है, वही सत्य है। अत: इनके मित्र कम होते हैं। ये धार्मिक विचारधारा से दूर होते हैं।
7. धनु राशि के लड़के मध्यम कद काठी के होते हैं। इनके बाल भूरे व आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। इनमें धैर्य की कमी होती है।
8. इन्हें मेकअप करने वाली लड़कियां पसंद हैं। इन्हें भूरा और पीला रंग प्रिय होता है।
9. अपनी पढ़ाई और करियर के कारण अपने जीवन साथी और विवाहित जीवन की उपेक्षा कर देते हैं। पत्नी को शिकायत का मौका नहीं देते और घरेलू जीवन का महत्व समझते हैं।
10. धनु राशि की लड़कियां लंबे कदमों से चलने वाली होती हैं। ये आसानी से किसी के साथ दोस्ती नहीं करती हैं।
*मकर राशिः– भो, जा, जी, खी, खू , खे, खो, गा, गी, इन अक्षरों से आने वाले नाम मकर राशि में आते हैं।
मकर राशि
1. मकर राशि का चिह्न मगरमच्छ है। मकर राशि के व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होते हैं। यह सम्मान और सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य कर सकते हैं।
2. इनका शाही स्वभाव व गंभीर व्यक्तित्व होता है। आपको अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है।
3. इन्हें यात्रा करना पसंद है। गंभीर स्वभाव के कारण आसानी से किसी को मित्र नहीं बनाते हैं। इनके मित्र अधिकतर कार्यालय या व्यवसाय से ही संबंधित होते हैं।
4. सामान्यत: इनका मनपसंद रंग भूरा और नीला होता है। कम बोलने वाले, गंभीर और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं।
5. ईश्वर व भाग्य में विश्वास करते हैं। दृढ़ पसंद-नापसंद के चलते इनका वैवाहिक जीवन लचीला नहीं होता और जीवनसाथी को आपसे परेशानी महसूस हो सकती है।
6. मकर राशि के लड़के कम बोलने वाले होते हैं। इनके हाथ की पकड़ काफी मजबूत होती है। देखने में सुस्त, लेकिन मानसिक रूप से बहुत चुस्त होते हैं।
7. प्रत्येक कार्य को बहुत योजनाबद्ध ढंग से करते हैं। गहरा नीला या श्वेत रंग प्रधान वस्त्र पहने हुए लड़कियां इन्हें बहुत पसंद आती हैं।
8. आपकी खामोशी आपके साथी को प्रिय होती है। अगर आपका जीवनसाथी आपके व्यवहार को अच्छी तरह समझ लेता है तो आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है।
9. आप जीवन साथी या मित्रों के सहयोग से उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।
10. मकर राशि की लड़कियां लम्बी व दुबली-पतली होती हैं। यह व्यायाम आदि करना पसंद करती हैं। लम्बे कद के बाबजूद आप ऊंची हिल की सैंडिल पहनना पसंद करती हैं।
*कुंभ राशि:– गू , गे, गो, सा, सी, सू , से, सो, दा, इन अक्षरों से आने वाले नाम कुंभ राशि में आते हैं।*
कुंभ राशि
1. राशि चक्र की यह ग्यारहवीं राशि है। कुंभ राशि का चिह्न घड़ा लिए खड़ा हुआ व्यक्ति है। इस राशि का स्वामी भी शनि है। शनि मंद ग्रह है तथा इसका रंग नीला है। इसलिए इस राशि के लोग गंभीरता को पसंद करने वाले होते हैं एवं गंभीरता से ही कार्य करते हैं।
2. कुंभ राशि वाले लोग बुद्धिमान होने के साथ-साथ व्यवहारकुशल होते हैं। जीवन में स्वतंत्रता के पक्षधर होते हैं। प्रकृति से भी असीम प्रेम करते हैं।
3. शीघ्र ही किसी से भी मित्रता स्थपित कर सकते हैं। आप सामाजिक क्रियाकलापों में रुचि रखने वाले होते हैं। इसमें भी साहित्य, कला, संगीत व दान आपको बेहद पसंद होता हैं।
4. इस राशि के लोगों में साहित्य प्रेम भी उच्च कोटि का होता है।
5. आप केवल बुद्धिमान व्यक्तियों के साथ बातचीत पसंद करते हैं। कभी भी आप अपने मित्रों से असमानता का व्यवहार नहीं करते हैं।
6. आपका व्यवहार सभी को आपकी ओर आकर्षित कर लेता है।
7. कुंभ राशि के लड़के दुबले होते हैं। आपका व्यवहार स्नेहपूर्ण होता है। इनकी मुस्कान इन्हें आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करती है।
8. इनकी रुचि स्तरीय खान-पान व पहनावे की ओर रहती है। ये बोलने की अपेक्षा सुनना ज्यादा पसंद करते हैं। इन्हें लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता है।
9. अपने व्यवहार में बहुत ईमानदार रहते हैं, इसलिये अनेक लड़कियां आपकी प्रशंसक होती हैं। आपको कलात्मक अभिरुचि व सौम्य व्यक्तित्व वाली लड़कियां आकर्षित करती हैं।
10. अपनी इच्छाओं को दूसरों पर लादना पसंद नहीं करते हैं और अपने घर परिवार से स्नेह रखते हैं।
*मीन राशि:– दी, दू , थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची इन अक्षरों से आने वाले नाम मीन राशि में आते हैं।*
मीन राशि
1. मीन राशि का चिह्न मछली होता है। मीन राशि वाले मित्रपूर्ण व्यवहार के कारण अपने कार्यालय व आस पड़ोस में अच्छी तरह से जाने जाते हैं।
2. आप कभी अति मैत्रीपूर्ण व्यवहार नहीं करते हैं। बल्कि आपका व्यवहार बहुत नियंत्रित रहता है। ये आसानी से किसी के विचारों को पढ़ सकते हैं।
3. अपनी ओर से उदारतापूर्ण व संवेदनाशील होते हैं और व्यर्थ का दिखावा व चालाकी को बिल्कुल नापसंद करते हैं।
4. एक बार किसी पर भी भरोसा कर लें तो यह हमेशा के लिए होता है, इसीलिये आप आपने मित्रों से अच्छा भावानात्मक संबंध बना लेते हैं।
5. ये सौंदर्य और रोमांस की दुनिया में रहते हैं। कल्पनाशीलता बहुत प्रखर होती है। अधिकतर व्यक्ति लेखन और पाठन के शौकीन होते हैं। आपको नीला, सफेद और लाल रंग-रूप से आकर्षित करते हैं।
6. आपकी स्तरीय रुचि का प्रभाव आपके घर में देखने को मिलता है। आपका घर आपकी जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
7. अपने धन को बहुत देखभाल कर खर्च करते हैं। आपके अभिन्न मित्र मुश्किल से एक या दो ही होते हैं। जिनसे ये अपने दिल की सभी बातें कह सकते हैं। ये विश्वासघात के अलावा कुछ भी बर्दाश्त कर सकते हैं।
8. मीन राशि के लड़के भावुक हृदय व पनीली आंखों वाले होते हैं। अपनी बात कहने से पहले दो बार सोचते हैं। आप जिंदगी के प्रति काफी लचीला दृटिकोण रखते हैं।
9. अपने कार्य क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिये परिश्रम करते हैं। आपको बुद्धिमान और हंसमुख लोग पसंद हैं।
10. आप बहुत संकोचपूर्वक ही किसी से अपनी बाह पाते हैं। एक कोमल व भावुक स्वभाव के व्यक्ति हैं। आप पत्नी के रूप में गृहणी को ही पसंद करते है।

चतुर्थ भाव प्रॉपर्टी के लिए मुख्य रुप से देखा जाता है.

चतुर्थ भाव प्रॉपर्टी के लिए मुख्य रुप से देखा जाता है. चतुर्थ भाव से व्यक्ति की स्वयं की बनाई हुई सम्पत्ति को देखा जाता है. यदि जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रह का प्रभाव अधिक है तब व्यक्ति स्वयं की भूमि बनाता है.
जन्म कुंडली में मंगल को भूमि का मुख्य कारक माना गया है. जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव या चतुर्थेश से मंगल का संबंध बनने पर व्यक्ति अपना घर अवश्य बनाता है. जन्म कुंडली में जब एकादश का संबंध चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति एक से अधिक मकान बनाता है लेकिन यह संबंध शुभ व बली होना चाहिए.
जन्म कुंडली में लग्नेश, चतुर्थेश व मंगल का संबंध बनने पर भी व्यक्ति भूमि प्राप्त करता है अथवा अपना मकान बनाता है. जन्म कुंडली में चतुर्थ व द्वादश भाव का बली संबंध बनने पर व्यक्ति घर से दूर भूमि प्राप्त करता है या विदेश में घर बनाता है.
जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ, अष्टम व एकादश भाव का संबंध बन रहा हो तब व्यक्ति को पैतृक संपति मिलती है. जन्म कुंडली में बृहस्पति ग्रह का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब भी व्यक्ति को पैतृक संपत्ति मिलती है.
जन्म कुंडली में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ भाव या भावेश या दशाओं से बने बिना घर का निर्माण नही होता है. इसलिए गृह निर्माण में मंगल व शनि की भूमिका मुख्य मानी गई है. मंगल भूमि का कारक है तो शनि निर्माण हैं इसलिए घर बनाने में इनका अहम रोल होता

कुंडली में श्राप योग /श्रापित कुंडली

कुंडली में श्राप योग /श्रापित कुंडली
================
श्रापित दोष का मतलब हुआ किसी व्यक्ति को श्राप मिला हुआ होना। श्रापित दोष तब होता है, जब किसी की कुंडली के एक ही स्थान पर शनि और राहु दोनों उपस्थित होते हैं। यह व्यक्ति द्वारा पूर्व में किए पापों का नतीजा होता है, जो अब सामने आता है। अगर किसी की कुंडली में श्रापित दोष हो तो उसे अच्छा फल नहीं मिलता है, भले ही उसकी कुंडली में अच्छे ग्रहों का समूह मौजूद हो। लेकिन कालसर्प दोष की ही तरह प्राचीन ज्योतिषशास्त्रों में श्रापित योग की जड़ों का जिक्र भी नहीं किया गया है। लाल किताब के अनुसार, जब राहु और केतु साथ आ जाएं, तो इस स्थिति को नागमणि (नाग का रत्न) कहा जाता है, जिसे अच्छा माना जाता है। ऐसी स्थिति जिसकी कुंडली में होती है, उस व्यक्ति के पास अपार काला धन होता है।
1- पितृ दोष- यह किसी जातक की जन्मकुण्डली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि दोषों के कारण दोष हो तो इसके लिए नारायण बलि नाग बलि, गया श्राद्ध, अश्विन कृष्ण पक्ष में अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन व दानादि करना चाहिए।
2- मातृ दोष- यदि चंद्रमा पंचमेश होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रांत हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में हो तो मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी आती है। इस दोष की शांति के लिए गोदान अथवा चांदी के पात्र में गो दुग्ध भरकर दान देना शुभ होता है। इसके अलावा एक लाख गायत्री मंत्र का जप करवाकर हवन, ब्राह्मण भोजन, वस्त्रादि का दान एवं दशमांस का तर्पण करने से दोष शांत होता है। पीपल वृक्ष का 28 हजार परिक्रमा का विधान भी बताया गया है।
3- भातृशाप- तृतीय भावेश मंगल राहु युक्त होकर पंचम भाव में हो और पंचमेश व लग्नेश दोनों अष्टम भाव में हो तो भ्रातृ शाप के कारण कष्ट एवं हानि होती है। इसके उपास स्वरूप श्रीसत्यनारायण व्रत रखकर विधि पूर्वक विष्णु पूजन तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर प्रसाद वितरण करना चाहिए।
4-सर्प शाप- यदि पंचम भाव में राहु हो और उसपर मंगल की दृष्टि हो तो सर्प शाप के कारण संतान की हानि होती है। इसके उपाय स्वरूप नारायण नागबलि विधि पूर्वक करवाना चाहिए तथा ब्राह्मणों को यथा शक्ति भोजन, वस्त्र, गौ, भूमि, चांदी व सुवर्ण आदि का दान करना चाहिए।
5-ब्राह्मण शाप- यदि गुरु की राशि (धनु या मीन) पर राहु हो, पंचम में गुरु, मंगल व शनि हो तथा नवमेश ग्रह अष्टम में हो तो ब्राह्मण शाप से संतान का क्षय होता है। इस शाप की शांति के लिए मंदिर में या सुपात्र ब्राह्मण को श्रीलक्ष्मीनारायण की मूर्तियों का दान तथा यथाशक्ति कन्यादान, बछड़े सहित गोदान, शैय्या दान दक्षिणा सहित करना शुभ होता है।
6- मातुल शाप- पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु व राहु हों तो मामा के शाप से संतान की हानि होती है। उपाय स्वरूप किसी मंदिर में श्रीविष्णु प्रतिमा की स्थापना, लोक हितार्थ पुल, तालाब, नल या प्याऊ लगवाने से संतति व संपत्ति में वृद्धि होती है।
7- प्रेत शाप- जब किसी जातक की जन्मकुण्डली के पंचम भाव में शनि, रवि हों और सातवें में क्षीण चंद्रमा हो तथा लग्न में राहु व 12वें भाव में गुरु हो तो प्रेत शाप क९ कारण वंश वृद्धि में बाधाएं आती हैं।
विशेष- इसके अतिरिक्त यदि किसी जातक द्वारा अपने दिवंगत पितरों के श्रद्धादि कर्म ठीक से न किए जा सके हों अथवा दिवंगत माता-पिता की उचित सेवा न की जा सकी हो तो भी प्रेत-पिशाचादि के कारण वंश वृद्धि में बाधाएं आती हैं। उपाय स्वरूप भगवान शिव की पूजा करवाकर विधिवत रूद्राभिषेक करवाना चाहिए और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।
इन शापों के कारण व्यक्ति की उन्नति नहीं होती, पुरुषार्थ का फल उसे प्राप्त नहीं होता। उसकी संतान जीवित नहीं रहती, इत्यादि। इन सब बुरे प्रभावों का कारण शापित कुंडलियां हैं। शापित कुंडलियों में त्रिशूल योग के आधार पर कालसर्प योग की तरफ ज्योतिष विद्वानों का ध्यान खींचा गया है। शापित कुंडलियों और कालसर्प योग की कुंडलियों में काफी हद तक समानता पाई जाती है।
जन्मांग में किसी भी स्थान में राहु-मंगल, राहु-बुध, राहु-गुरु, राहु-शुक्र, राहु-शनि, राहु-रवि इनमें से एक भी युती हो तो उस कुंडली को शापित कुंडली कहना चाहिए। इसी तरह चंद्र-केतु, रवि-केतु, रवि-राहु, इन ग्रहों की युतियां या प्रतियोग, रवि-केतु युती या प्रतियोग, चंद्र, राहु युति, चंद्र-शनि-राहु, चंद्र-मंगल राहु ऐसी युतियां भी शापित कुंडलियों में देखने में आती हैं।सभी ग्रह राहु-केतु के बीच अटके हुए हों तो ‘पूर्ण कालसर्प योग’ बनता है और यदि कोई एक ग्रह राहु-केतु की पकड़ के बाहर हो तो ऐसी स्थिति को ‘कालसर्प योग छाया’ कहना चाहिए।‘कालसर्प योग’ वृषभ, मिथुन, कन्या एवं तुला लग्र के व्यक्तियों को विशेष रूप से प्रभावित करता है।कुंडली में राहु अष्टम  स्थान में और केतु द्वितीय स्थान में हो और ऐसी अवस्था में यदि ‘कालसर्प योग’ बने तो यह ‘योग’ कष्टकारक होता है। ऐसे व्यक्तियों को सपने में सांप दिखाई देते हैं और व्यक्ति नींद में घबराकर भयभीत हो उठ बैठता है।ग्रहों के गोचर भ्रमण का फलित ज्योतिष में बड़ा महत्व है। कुंडली में जब गोचर भ्रमण से राहु छठे, आठवें या बारहवें स्थान में भ्रमण करता है तब या राहु-केतु की दशा-अंतर्दशा में कालसर्प योग के फल तीव्रता के साथ अनुभव में आते हैं

राहु-केतु: की शान्ति के उपाय

राहु-केतु: की शान्ति के उपाय
====================
राहू -केतु दोनों पापी ग्रह हैं जिनका स्वतंत्र भौतिक अस्तित्व तो नहीं है किन्तु यह सभी ग्रहों के प्रभावों को प्रभावित करते हैं |अधिकतर अशुभता व्यक्ति के जीवन में इनके ही कारण आती है यद्यपि कारण मूल ग्रहों से उत्पन्न होता है |यह छोटे से कारण को इतना बधा देते हैं की व्यक्ति के लिए वह धातक हो जाता है |इनके स्वतंत्र गुण न होने पर भी यह क्रूर कर्म और पाप प्रभाव को अधिक बढाते हैं |कभी कभी यह व्यक्ति को लाभ भी देते हैं किन्तु तरीका उल्टा होता है |धन भी देब्गे तो सही रास्ते से नहीं |इनके पाप प्रभावों के कारण ही इन्हें अधिकांश भयकारक माना जाता है |
राहु और केतु ग्रह से पीड़ित व्यक्ति को रोजाना कबूतरों को बाजरा और काले तिल मिलाकर खिलाना चाहिए। कुष्ठ रोगियों को दो रंग वाली वस्तुओं का दान करें। मोर पंख की पूजा करें या हो सके तो उसे हमेशा अपने पास रखें। गिलहरी को दाना डालें। दो रंग के फूलों को घर में लगाएं और गणेशजी को अर्पित भी करें। हर मंगलवार या शनिवार को चीटियों को मीठा खिलाएं।
राहु
१॰ ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
२॰ हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
३॰ अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है।
४॰ जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
५॰ दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीम करना चाहिए।
६॰ यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
७॰ झुठी कसम नही खानी चाहिए।: जौ या मूली या काली सरसों का दान करें या अपने सिरहाने रख कर अगले दिन बहते हुए पानी में बहाए ,
राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।राहु के अशुभ होने पर हांथ के नाखून अपने आप टूटने लगे, राजक्ष्यमा रोग के लक्षण प्रगट होवे, दिमागी संतुलन ठीक न रहे, शत्रुओं के चाल पे चाल से मुश्किल बढ़ जावे ऐसी स्थिति में जौं या अनाज को दूध में धो कर बहते पानी में बहायें, कोयला को पानी में बहायें, मूली दान में देवें, भंगी को शराब,मांस दान में दें । सिर में चुटैया रखें, भैरव जी की की उपासना करें ।
राहु के लिए : समय रात्रिकाल
भैरव पूजन या शिव पूजन करें। काल भैरव अष्टक का पाठ करें।
राहु मूल मंत्र का जप रात्रि में 18,000 बार 40 दिन में करें।
मंत्र : 'ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:'।
दान-द्रव्य : गोमेद, सोना, सीसा, तिल, सरसों का तेल, नीला कपड़ा, काला फूल, तलवार, कंबल, घोड़ा, सूप।
शनिवार का व्रत करना चाहिए। भैरव, शिव या चंडी की पूजा करें। 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
केतु
-----
१॰ भिखारी को दो रंग का कम्बल दान देना चाहिए।
२॰ नारियल में मेवा भरकर भूमि में दबाना चाहिए।
३॰ बकरी को हरा चारा खिलाना चाहिए।
४॰ ऊँचाई से गिरते हुए जल में स्नान करना चाहिए।
५॰ घर में दो रंग का पत्थर लगवाना चाहिए।
६॰ चारपाई के नीचे कोई भारी पत्थर रखना चाहिए।
७॰ किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल अपने घर में लाकर रखना चाहिए।
केतु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, केतु के नक्षत्र (अश्विनी, मघा तथा मूल) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं |इसके अशुभ प्रभाव में होने पर मूत्र एवं किडनी संबंधी रोग होवे, जोड़ों का रोग उभरे, संतान को पीड़ा होवे तब अपने खाने में से कुत्ते को हिस्सा देवें, तिल व कपिला गाय दान में दें, कान छिदवायें व श्री विघ्नविनायक की आराधना करें ।: मिट्टी के बने तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ या सवा किलो आटे को भुनकर उसमे गुड का चुरा मिला दे और ४३ दिन तक लगातार चींटियों को डाले, या कला सफ़ेद कम्बल कोढियों को दान करें या आर्थिक नुकासन से बचने के लिए रोज कौओं को रोटी खिलाएं. या काला तिल दान करे,|
केतु के लिए : समय रात्रिकाल
भगवान गणेशजी की पूजा करें। गणेश के द्वादश नाम स्तोत्र का पाठ करें। केतु के मूल मंत्र का रात्रि में 40 दिन में 18,000 बार जप करें।
मंत्र : 'ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:'।
दान-द्रव्य : लहसुनिया, सोना, लोहा, तिल, सप्त धान्य, तेल, धूमिल, कपड़ा, फूल, नारियल, कंबल, बकरा, शस्त्र।
बृहस्पतिवार व्रत एवं गणेशजी की पूजा करें। 9 मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

चन्द्र और चन्द्र लग्न का महत्व

चन्द्र और चन्द्र लग्न का महत्व:::-
-----------------------------------------
दक्षिण भारत को छोड़कर पूरे भारत में प्रत्येक जन्मपत्री में दो लग्न बनाये जाते हैं। एक जन्म लग्न और दूसरा चन्द्र लग्न। जन्म लग्न को देह समझा जाये तो चन्द्र लग्न मन है। बिना मन के देह का कोई अस्तित्व नहीं होता और बिना देह के मन का कोई स्थान नहीं है। देह और मन हर प्राणी के लिए आवश्यक है इसीलिये लग्न और चन्द्र दोनों की स्थिति देखना ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। सूर्य लग्न का अपना महत्व है। वह आत्मा की स्थिति को दर्शाता है। मन और देह दोनों का विनाश हो जाता है परन्तु आत्मा अमर है।
चन्द्र ग्रहों में सबसे छोटा ग्रह है। परन्तु इसकी गति ग्रहों में सबसे अधिक है। शनि एक राशि को पार करने के लिए ढ़ाई वर्ष लेता है, बृहस्पति लगभग एक वर्ष, राहू लगभग १४ महीने और चन्द्रमा सवा दो दिन - कितना अंतर है। चन्द्रमा की तीव्र गति और इसके प्रभावशाली होने के कारण किस समय क्या घटना होगी, चन्द्र से ही पता चलता है। विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा, अष्टोतरी दशा आदि यह सभी दशाएं चन्द्र की गति से ही बनती है। चन्द्र जिस नक्षत्र के स्वामी से ही दशा का आरम्भ होता है। अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक की दशा केतु से आरम्भ होती है क्योंकि अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है। इस प्रकार जब चन्द्र भरणी नक्षत्र में हो तो व्यक्ति शुक्र दशा से अपना जीवन आरम्भ करता है क्योंकि भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। अशुभ और शुभ समय को देखने के लिए दशा, अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा देखी जाती है। यह सब चन्द्र से ही निकाली जाती है।
ग्रहों की स्थिति निरंतर हर समय बदलती रहती है। ग्रहों की बदलती स्थिति का प्रभाव विशेषकर चन्द्र कुंडली से ही देखा जाता है। जैसे शनि चलत में चन्द्र से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में हो तो शुभ फल देता है और दुसरे भावों में हानिकारक होता है। बृहस्पति चलत में चन्द्र लग्न से दूसरे, पाँचवे, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और दूसरे भावों में इसका फल शुभ नहीं होता। इसी प्रकार सब ग्रहों का चलत में शुभ या अशुभ फल देखना के लिए चन्द्र लग्न ही देखा जाता है। कई योग ऐसे होते हैं तो चन्द्र की स्थिति से बनते हैं और उनका फल बहुत प्रभावित होता है।
चन्द्र से अगर शुभ ग्रह छः, सात और आठ राशि में हो तो यह एक बहुत ही शुभ स्थिति है। शुभ ग्रह शुक्र, बुध और बृहस्पति माने जाते हैं। यह योग मनुष्य जीवन सुखी, ऐश्वर्या वस्तुओं से भरपूर, शत्रुओं पर विजयी , स्वास्थ्य, लम्बी आयु कई प्रकार से सुखी बनाता है।
जब चन्द्र से कोई भी शुभ ग्रह जैसे शुक्र, बृहस्पति और बुध दसवें भाव में हो तो व्यक्ति दीर्घायु, धनवान और परिवार सहित हर प्रकार से सुखी होता है।चन्द्र से कोई भी ग्रह जब दूसरे या बारहवें भाव में न हो तो वह अशुभ होता है। अगर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि चन्द्र पर न हो तो वह बहुत ही अशुभ होता है।
इस प्रकार से चन्द्र की स्थिति से १०८ योग बनते हैं और वह चन्द्र लग्न से ही बहुत ही आसानी के साथ देखे जा सकते हैं।
चन्द्र का प्रभाव पृथ्वी, उस पर रहने वाले प्राणियों और पृथ्वी के दूसरे पदार्थों पर बहुत ही प्रभावशाली होता है। चन्द्र के कारण ही समुद्र मैं ज्वारभाटा उत्पन्न होता है। समुद्र पर पूर्णिमा और अमावस्या को २४ घंटे में एक बार चन्द्र का प्रभाव देखने को मिलता है। किस प्रकार से चन्द्र सागर के पानी को ऊपर ले जाता है और फिर नीचे ले आता है। तिथि बदलने के साथ-साथ सागर का उतार चढ़ाव भी बदलता रहता है।
प्रत्येक व्यक्ति में ६० प्रतिशत से अधिक पानी होता है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है चन्द्र के बदलने का व्यक्ति पर कितना प्रभाव पड़ता होगा। चन्द्र के बदलने के साथ-साथ किसी पागल व्यक्ति की स्थिति को देख कर इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
चन्द्र साँस की नाड़ी और शरीर में खून का कारक है। चन्द्र की अशुभ स्थिति से व्यक्ति को दमा भी हो सकता है। दमे के लिए वास्तव में वायु की तीनों राशियाँ मिथुन, तुला और कुम्भ इन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि, राहु और केतु का चन्द्र संपर्क, बुध और चन्द्र की स्थिति यह सब देखने के पश्चात ही निर्णय लिया जा सकता है।
चन्द्र माता का कारक है। चन्द्र और सूर्य दोनों राजयोग के कारक होते हैं। इनकी स्थिति शुभ होने से अच्छे पद की प्राप्ति होती है। चन्द्र जब धनी बनाने पर आये तो इसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
चन्द्र खाने-पीने के विषय में बहुत प्रभावशाली है। अगर चन्द्र की स्थिति ख़राब हो जाये तो व्यक्ति कई नशीली वस्तुओं का सेवन करने लगता है। जातक पारिजात के आठवें अध्याय के १००वे श्लोक में लिखा है चन्द्र उच्च का वृष राशि का हो तो व व्यक्ति मीठे पदार्थ खाने का इच्छुक होता है।

कैसे बचें जेल योग से.

कैसे बचें कारावास योग से..?
  💐💐💐
यदि समय रहते आपको कारावास सम्बन्धी योग पता चलते हैं या इस तरह की स्थिति आपके सामने आती है, तो रेमेडियल एस्ट्रोलॉजी की सहायता से आप इस योग को समाप्त या उसकी तीव्रता को कम कर सकते हैं| इस प्रकार के योगों से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों का सहारा लेना चाहिए :
1. सर्वप्रथम यह पता करें कि किन ग्रहों के कारण यह योग निर्मित हो रहा है| फिर उस ग्रह की शान्ति हेतु उसके चतुर्गुणित जप करवाएँ, हवन करें, निश्‍चित संख्या में उससे सम्बन्धित वार के व्रत करें और तदनुसार सम्बन्धित वस्तुओं का दान करें|
2. शुभ मुहूर्त में भगवान् शिव के नर्मदेश्‍वर शिवलिंग पर सात सोमवार तक सहस्रघट करवाएँ|
3. अपनी आयु वर्षों के चतुर्गुणित संख्या में किलोग्राम ज्वार लें और जिस ग्रह के कारण यह योग बन रहा हो, उस ग्रह के वार को या शनिवार को प्रारम्भ कर ज्वार एक-एक मुट्ठी डालते हुए कबूतरों को खिलाएँ|
4. यदि आपने वास्तव में अपराध किया है, तो यह निश्‍चित है कि आपको उसकी सजा मिलेगी, इतना अवश्य है कि उपाय करने से या प्रायश्‍चित से वह सजा कम हो जाएगी| जिस व्यक्ति के प्रति आपने अपराध किया है, उससे क्षमा मॉंगें| इसके अतिरिक्त शनिवार से प्रारम्भ कर किसी शिव मन्दिर में जाएँ और भगवान् के समक्ष अपने सारे अपराध स्वीकार करें| यह ध्यान रखें कि मन्दिर आपके घर के पास में नहीं हो, थोड़ा दूर हो और वहॉं आप नंगे पैर ही जाएँ|
5. शनिवार से प्रारम्भ कर चालीस दिनों तक मूँगा के हनूमान् जी की मूर्ति के समक्ष हनूमान् चालीसा के प्रतिदिन 100 पाठ करें या करवाएँ| पाठ से पूर्व संक्षेप में हनूमान् जी की पूजा भी करें|
6. शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ कर ११ पण्डितों से ‘बन्दीमोचन स्तोत्र’ के 3100 पाठ करवाएँ|
7. जेल योग दूर करने के लिए यह टोटका अत्यन्त प्रसिद्ध और अनुभूत है| इसके अन्तर्गत अपनी जान-पहचान से या अन्य किसी की सहायता से एक दिन के लिए जेल जाएँ, वहॉं का भोजन करें और रात्रिकाल में वहीं शयन करें| इस उपाय से जेलयोग पूरा भी हो जाएगा और टल भी जाएगा|

कालसर्प योग

कालसर्प योग जन्म-कुण्डली मे बनने वाला एक योग है । बहुत से विद्वान इस योग को नहीं स्वीकार करते । समस्याएं हैं अगर तो उनका सस्ता प्रभावशाली स्वयं करने वाला जाप व उपाय भी है । दुनिया के बहुत सफल तथा प्रसिद्ध लोगो की कुण्डली में यह योग देखा गया है । काल सर्प योग कब दण्ड देता है -
१. जब-जब राहु की दशा , अन्तर्दशा,, प्रत्यन्तर्दशा आती है |
२. जब - जब भी गोचरवशात राहु अशुभ चलता हो |
३. जब भी गोचर से काल सर्प योग की सृष्टि हो

जब अन्य सभी ग्रह राहु-केतु के एक तरफ होते हैं तो कुण्डली में काल-सर्प योग (दोष) बनता है । मुख्य रूप से १२ कालसर्प दोष हैं -
१) अनन्त कालसर्प दोष- जब राहु प्रथम भाव में हो तथा केतु सातवें भाव में हो | जातक को जल्दी गुस्सा आता है | सफाई पसंद नहीं रहता | विवाहित जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है |
२) कुलिक कालसर्प दोष -जब राहु द्वितीय भाव में हो तथा केतु अष्टम भाव में हो | सम्पति पर बुरा प्रभाव पड़ता है | जुबान पर नियंत्रण नहीं रहता | दुर्घटना और शल्य-चिकित्सा भी करवा देता है |
३) वासुकी कालसर्प दोष -जब राहु तृतीय भाव में हो तथा केतु नवम भाव में हो | छोटे भाई-बहन से नहीं निभ पाती | कार्य के लिए संघर्ष नहीं कर पाता |
४) शंखपाल कालसर्प दोष -जब राहु चतुर्थ भाव में हो तथा केतु दशम भाव में हो | सुख-सुविधा में कमी आती है | कारोबार और नौकरी में परेशानी रहती है | माता सुख में कमी | अधिक गुस्सा |
५) पद्म कालसर्प दोष -जब राहु पंचम भाव में हो तथा केतु एकादश भाव में हो | शिक्षा प्रभावित होती है | औलाद होने में देरी | प्रेम-सम्बन्ध में समस्या |
६) महापद्म कालसर्प दोष -जब राहु छठे भाव में हो तथा केतु द्वादश भाव में हो | अधिक दुशमन | कर्जा , शारीरिक कमजोरी |
७) तक्षक कालसर्प दोष -जब राहु सातवें भाव में हो तथा केतु प्रथम भाव में हो | vivahik जीवन पर बुरा असर | विवाह में देरी | सिरदर्द ,उच्च रक्तचाप , क्रूरता |
८) कर्कोटक कालसर्प दोष -जब राहु अष्टम भाव में हो तथा केतु द्वितीय भाव में हो | बीमारी , bachat में कमी | ससुराल से झगड़ा | पैतृक़ सम्पति मिलने में रुकावट |
९) शंखचूड़ कालसर्प दोष -जब राहु नवम भाव में हो तथा केतु तृतीय भाव में हो | जुए,सट्टे की आदत | नास्तिक | रिश्तेदारों से झगड़ा | दुर्भाग्य |
१०) पातक कालसर्प दोष -जब राहु दशम भाव में हो तथा केतु चतुर्थ भाव में हो | सुविचारों में कमी | मानसिक अशांति |
११) विषधर कालसर्प दोष -जब राहु एकादश भाव में हो तथा केतु पंचम भाव में हो | पैसा कमाने में समस्या | अधिक यात्रा | भाई दुश्मन बन जाता है | बच्चे से भी परेशानी |
१२) शेषनाग कालसर्प दोष -जब राहु द्वादश भाव में हो तथा केतु छठे भाव में हो | कर्जा , सम्मान में कमी | दुश्मन से नुक्सान | बीमारी |

पूजा से जुड़ी हुईं अति महत्वपूर्ण बातें

।।पूजा से जुड़ी हुईं अति महत्वपूर्ण बातें।।

★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।

★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

★ जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

★ संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,

★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

★  देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

★  किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

★  एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

★ शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंुकुम नहीं चढ़ती।

★ शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी  को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

★ अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावंे।

★ नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

★ विष्णु भगवान को चावल गणेश जी  को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण  को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।

★ पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।

★ किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।

★पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।

★ सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।

★ गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।

★ पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।

★ दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।

★ सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

★ पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।

★ पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।

★ घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।

कुंडली में लग्न के अनुसार जातक पर प्रभाव

*कुंडली में लग्न के अनुसार जातक पर प्रभाव:-*

मेष लग्न-जन्म के समय यदि मेष लग्न हो तो जातक का औसत कद, सुघड़ शरीर, तीव्र स्वभाव, लालिमापूर्ण आंखें, महत्वाकांक्षी, साहसी, कमजोर टांगे, स्त्रीप्रिय, अभिमानी तथा अस्थिर धनवाला होता है।
इस लग्न पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति आवेशात्मक व झगड़ालू हो जाता है। ये लोग प्राय: स्थिर स्वभाव के नहीं होते, अत: जीवन में ये बार-बार काम बदलते हैं। फिर भी इनमें वला की कार्य कुशलता तथा कभी निराश न होने का गुण होता है। इनका स्वभाव प्राय: गरम होता है तथा ये अपने ऊपर पड़ी जिम्मेदारी को जल्दी ही निबटाना पसन्द करते हैं अर्थात् काम में विलम्ब करना इनका स्वभाव नहीं होता है। ये भोजन के शौकीन होते हैं, लेकिन फिर भी कम भोजन कर पाते हैं तथा जल्दी भोजन करना इनका स्वभाव होता है। कभी कभी इनके नाखूनों में विकार देखा जाता हैं ये लोग साहसिक कामों में अपनी प्रतिभा का विस्तार कर सकते हैं।

वृष लग्न-इस लग्न में जातक मध्यम शरीर, चर्बी रहित तथा शौकीन स्वभाव के होते हैं। ये प्राय: सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं तथा कई स्त्रियों से भोग करने की लालसा रखते हैं। प्राय: रंग खुलता गेहुआं तथा बाल चमकदार होते हैं। इनकी जांघें मजबूत तथा इनकी चाल मस्तानी होती है। इनमें धैर्य खूब होता है, इसीलिए बहुत जल्दी ये लोग उत्तेजित नहीं होते हैं। यथासम्भव क्रोधित होने पर ये लोग खूंखार हो जाते हैं। ये लोग प्राय: प्रबल इच्छा शक्ति रखते हैं तथा जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करते हैं। ये जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाते। ये धन कमाते हैं तथा संसार के सारे सुखों को भोगना चाहते हैं। इनके जीवन का मध्य भाग काफी सुखपूर्वक व्यतीत होता है। इनके यहां कन्या सन्तान की अधिकता होती है।

मिथुन लग्न-मिथुन लग्न में उत्पन्न बालक लम्बे कद व चमकीले नेत्रों वाला होता है। इनकी भुजाएं प्राय: लम्बी देखी गयी हैं। ये लोग प्राय: खुश मिजाज व चिन्तारहित होते हैं। ये लोग प्राय: प्राचीन शास्त्रों में रुचि रखते हैं। तथा कुशल वक्ता होते हैं। अपनी बात को प्रभावी ढंग से पेश करना इनकी विशेषता होती है। इनकी नाम लम्बी व ऊंची होती है। ये लोग स्त्रियों या अपने से कम उम्र के लोगों से दोस्ती रखते हैं। इनकी एकतरफा निर्णय करने की शक्ति कुछ कम होती है। ये लोग कई व्यवसाय कर सकते हैं। स्वभावत: भावुक होते हैं तथा भावावेश में कभी अपना नुकसान सहकर भी परोपकार करते हैं। ये लोग उच्च बौद्धिक स्तर के होते हैं। तथा शीघ्र धनी बनने के चक्कर में कभी कभी सट्टा या लॉटरी का शौक पाल लेते हैं। इनकी मध्य अवस्था प्राय: संघर्षपूर्ण होती है। ये लोग कवित्व शक्ति से भी पूर्ण होते हैं।

कर्क लग्न-इन लग्न के लोग छोटे कद वाले होते हैं। इनका शरीर प्राय: मोटापा लिए होता है तथा जलतत्व राशि होने के कारण जल्दी सर्दी की पकड़ में आ जाते हैं। इनके फेफड़े कमजोर होते है। इन्हें नशीले पदार्थों का शौक होता है। इनका जीवन प्राय: परिवर्तनशील होता है। पूर्वावस्था में इन्हें संघर्ष करना पड़ता है। इनकी कल्पना शक्ति अच्छी होती है तथा लेखन का इन्हें शौक होता है। आवेश इनकी कमजोरी होती है तथा जीवन में ये तेज रफ्तार से दौड़ना चाहते हैं। ये लोग प्राय: मध्यावस्था में धन व सम्मान अर्जित करते हैं तथा स्वयं को कुछ श्रेष्ठ मानते हैं। इनकी स्मरण-शक्ति भी अद्भुत देखी गई है। ये लोग प्राय: बातूनी होते हैं। यदि सप्तम स्थान पर शुभ ग्रहों का प्रभाव न हो तो इनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता। गृहस्थ जीवन से ये बहुत लगाव रखते हैं। धन जमा करना इनका स्वप्न होता है। इन्हें अच्छी चीजों का शौक होता है। इनकी विचारधारा कभी बहुत शूरतापूर्ण तथा कभी बहुत भीरू होती है। जीवन के तीसरे पहर में इन्हें विरासत में धन-सम्पत्ति भी प्राप्त होती है।

सिंह लग्न-इस लग्न के जातक तीक्ष्ण स्वभाव वाले तथा क्रोधी होते हैं। इनका कद मध्यम व व्यक्तित्व रौबीला होता है, इन्हें पेट व दांत के रोग होने की सम्भावना रहती है। महत्वाकांक्षा बहुत होती है। ये लोग अपनी बात से बहुत हठी होते हैं तथा उच्चाधिकार प्राप्त होने पर ये खूब रौब जमाते हैं। इनका वैवाहिक जीवन प्राय: सुखी नहीं होता। ये लोग राजनीति में भी पड़ते हैं। ये लोग दूसरों पर अधिक विश्वास रखते हैं। प्राय: कृपालु व उदार-हृदय वाले ये लोग बहुत न्यायप्रिय होते हैं। माता के ये अधिक दुलारे होते हैं। इन्हें अभक्ष्य भक्षण का भी शौक होता है। पुत्र कम होते हैं। तथा सन्तान भी कम होती हैं।

कन्या लग्न- इस लग्न के व्यक्ति प्राय: मोटे नहीं होते तथा इनकी तोंद कम निकलती है। ये लोग समय-चतुर तथा बुद्घिमान होते हैं। औपचारिक शिक्षा में इनकी6 अभिरुचि कम होती है। ये लोग दुनियादारी में काफी तेज होते हैं। ये लोग शास्त्र के अर्थ को समझने वाले, गणित प्रेमी,  चिकित्सा या ज्योतिष का शौक रखने वाले तथा गुणी होते हैं। ये लोग विवाह देर से करते हैं तथा विवाह के बाद गृहस्थी में रम जाते हैं। इनकी भौंहे आपस में मिली होती हैं। ये श्रृंगार प्रिय होते हैं। इनका झुकाव धन इकट्ठा करने की तरफ अधिक होता है। ये परिवर्तनशील स्वभाव के होते हैं। अत: ये हरफनमौला बनने का प्रयास करते हैं। यदि कमजोर लग्न हो तो भाग्यहीन होते हैं तथा बली लग्न में संघर्ष के बाद अच्छी सफलता पाते हैं। इन्हें यात्राओं का बहुत शौक होता है। इनकी अभिरुचियों में स्त्रीत्व का प्रभाव पाया जाता है।

तुला लग्न-इन लग्न के लोगों का व्यक्तित्व शानदार तथा आकर्षक होता है। इनकी नाक लम्बी व रंग गोरा होता है। ये मूल रूप से बड़े धार्मिक, सत्यवादी, इन्द्रियों को वश में करने वाले तथा तीव्र बुद्घि वाले होते हैं। ये धीर गम्भीर स्वभाव रखते हैं। यदि अष्टम स्थान तथा वृहस्पति पर शुभ प्रभाव हो तो ये सांसारिक होते हुए भी मानवीय मूल्यों की मिसाल होते हैं। क्रूर प्रभाव पड़ने से प्राय: तेज, चालक व शारीरिक श्रम करने वाले हो जाते हैं। इन लोगों में वैरागय की भावना भी जाग सकती है। ये लोग प्राय: सांसारिक सम्बन्धों को अधिक विस्तार नहीं देते है तथा प्राय: अपने परिवार के विरोध का सामना करते हैं। इनकी कल्पना शक्ति व विचारों का स्तर सामान्यत: उन्नत होता है। ये लोकप्रियता प्राप्त करते हैं। कई बड़े सत्पुरुषों का जन्म तुला लग्न में हुआ है। महात्मा गांधी व विवेकानन्द तुला लग्न के व्यक्ति थे। तुला लग्न के व्यक्ति बहुत प्रेममय होते हैं। ये लोग प्राय: लेखक, उपदेशक, व्यापारी आदि भी पाए जाते हैं।

वृश्चिक लग्न-इन लग्न के लोग संतुलित शरीर के होते हैं तथा इनके घुटने व पिंडलियां गोलाई लिए होती हैं। ये लोग अपनी बात पर अड़ जाते हैं, प्राय: ये बिना सोचे समझे भी बात को पकड़ कर अड़ते हैं। यद्यपि इनकी कल्पना शक्ति तीव्र होती है तथा ये बुद्धिमान भी होते हैं लेकिन अपने निकटवर्ती धोखेबाज को भी नहीं पहचान पाते। अक्सर ठगे जाने पर अक्लमंदी दिखाते हैं। इन्हें असानी से किसी तरफ भी मोड़ा जा सकता है। ये कामुक स्वभाव के होते हैं तथा अपनी स्त्री के अतिरिक्त भी अन्य स्त्रियों से शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं। दिखने में सरल होते हैं लेकिन अनेक फलितवेत्ता इस बात से सहमत हैं। कि इनमें छिपे तौर पर पाप  vकरने की प्रवृत्ति होती है। स्वभावत: ये खर्चीले स्वभाव के होते हैं, लेकिन अधिकांश खर्च अपने आराम व शौक पर करते हैं। इनका घरेलू जीवन अक्सर अस्त व्यस्त होता है, यदि शुभ प्रभाव से युक्त लग्न हो तो इनकी रुचि गुप्त विद्याओं की तरफ हो जाती है। शुभ प्रभाव वाले लग्न में उत्पन्न होने पर ये कुशल प्रशासक भी होते हैं।

धनु लग्न-ये लोग अच्छे शारीरिक गठन वाले होते हैं। शुभ प्रभाव होने पर ये लोग काफी सुन्दर होते हैं। लग्न पर बुरा प्रभाव होने पर इनके दॉत व नाक मोटे हो जाते हैं। ये परिश्रमी तथा धैर्यवान होते हैं। ये लोग जल्दी निर्णय नहीं ले पाते तथा काफी सोच विचार के उपरान्त ही कोई काम करते हैं। ये जोशीले व आलस्य रहित होते हैं अत: जीवन में ये काफी आगे बढ़ते हैं। ये लोग अक्सर सत्यवादी तथा ईमानदार होते हैं लेकिन शनि, राहु, मंगल का प्रभाव लग्न पर हो तो ये प्राय: स्वार्थी व धोखेबाज भी बन जाते हैं। तब इनकी कथनी व करनी में बहुत अन्तर होता है। प्राय: ये लोग धनी तथा भाग्यशाली होते हैं।

मकर लग्न-इस लग्न के लोग लम्बे कद के निकलते हैं। इनका शारीरिक विकास धीरे-धीरे होता है। ये दिखने में कठोर व्यक्तित्व वाले होते हैं। ये लोग दूसरों की बात को बड़े ध्यान से सुनते हैं तथा सुन-सुनकर ही बहुत कुछ सीखते हैं। इनकी सहन शक्ति बहुत होती है। ये लोग हर एक बात को बड़े व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखते हैं। ये लोग धीरे-धीरे सन्तोष से अपना काम करते है। यदि लग्न पर अशुभ प्रभाव हो तो ये लोग धोखेबाज, जेब कतरे, चोर तथा दादागिरी दिखाने वाले हो जाते हैं। इसके विपरीत शुभ प्रभाव होने पर ये ईमानदार तथा कर्तव्यनिष्ठ होते हैं। ये लोग अन्धभक्ति करने वाले, स्रेह से सब कुछ न्यौछावर करने वाले तथा शक्ति से वश में न होने वाले होते हैं। ये लोग बहुत परिश्रमी होते हैं। तथा सबके प्रति बड़ा सेवा भाव रखते हैं। यदि इनके स्वाभिमान की रक्षा होती रहे तो बड़े-बड़े दान-पुण्य के महान कार्य कर देते हैं। ये अड़ियल होते हैं। तथा मुसीबत का सीना तान कर सामना करते हैं। प्राय: ये पुरानी विचार धाराओं को मानने वाले होते हैं।

कुम्भ लग्न-इस लग्न के व्यक्ति पूरे लम्बे कद तथा लम्बी गरदन वाले होते हैं। ये लोग बहुत सन्तुलित स्वभाव वाले तथा एकान्त प्रिय देखे गए हैं। संघर्ष करने की इनमें क्षमता होती है। ये लोग अपने सिद्घान्त के लिए सब कुछ दांव पर लगा सकते हैं। इनका कभी कभी थोड़े समय के लिए बहुत भाग्योदय हो जाता है।  ये लोग बीस वर्ष के उपरान्त ही सफलता पाना शुरू करते हैं। इनके काम रातों रात सम्पन्न नहीं होते, अपितु मेहनत से करने पड़ते हैं। इन्हें अपनी बात समझाकर अपने ढंग से चलाना बड़ा मुश्किल कार्य होता है। लेकिन बात समझ में आने पर ये पूरी ईमानदारी व तत्परता से उसे मान लेंगे। इन्हें जीवन में प्राय: हर सिरे से असन्तोष होता है। ये लोग अपने असन्तोष को कभी कभी संघर्ष की शक्ल में या विद्रोह के रूप में प्रकट करते हैं। शारीरिक कष्ट सहने की इनमें अद्भुत क्षमता पाई जाती है। इनका विवाह थोड़ी देर से तथा अक्सर बेमेल होता है। ये लोग सबको अपने ढंग से चलाने का प्रयास करते हैं। प्राय: इनका भाग्योदय स्थायी नहीं होता है। फिर भी ये अपने क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध होते हैं।

मीन लग्न-इन लग्न के व्यक्ति प्राय: नाटे देखे जाते हैं। इनका माथा औसत शरीर के अनुपात में थोड़ा बड़ा दिखता है। ये लोग जीवन में बेचैनी अनुभव करते हैं तथा कभी कभी दार्शनिकता की तरफ झुक जाते हैं। ये लोग अस्थिर स्वभाव के होते हैं। इनमें अभिनेता, कवि, चिकित्सक, अध्यापक, या संगीतकार बनने योग्य गुण होते हैं। इन्हें प्राय: पैतृक सम्पत्ति प्राप्त होती है तथा ये लोग उसे बढ़ाने की पूरी कोशिश करते हैं। भीतरी तौर पर ये लोग दब्बू तथा डरपोक होते हैं।
इन्हें सन्तान अधिक होती है। तथा ये स्वभाव से उद्यमी नहीं होते हैं। इन्हें जीवन में अचानक हानि उठानी पड़ती है। यदि वृहस्पति अशुभ स्थानों में अशुभ प्रभाव में हो तो प्रारम्भिक अवस्था में इनके जीवन की सम्भावना क्षीण होती हैं।
इस तरह हमने जाना कि जन्म लग्न मानव स्वभाव व उसके व्यक्तित्व की संरचना में बड़ा योगदान करता है। लग्न पर प्रभाव से उपर्युक्त गुणों में न्यूनता या अधिकता देखी जाती है। यदि लग्नेश बलवान होकर शुभ स्थानों में शुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हो तो बहुत से दोषों को दूर कर देता है।

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष




इक्कीस मुखी रुद्राक्ष



इक्कीस मुखी रूद्राक्ष भगवान कुबेर को दर्शाता है जो धन-संपदा के स्वामी हैं, इसके अतिरिक्त यह रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतिनिधित्व भी करता है. 21 मुखी रुद्राक्ष सभी रुद्राक्षों में एक बेहतरीन रुद्राक्ष है. भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य सभी देवी देवता इस रूद्राक्ष में निवास करते हैं. प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, जब इक्कीस मुखी रुद्राक्ष को पूजा के स्थान में रखा गया तब समस्त देवताओं ने स्वयं को इसके चारों ओर स्थापित किया.

इसे घर में रखने से शांति एवं सदभाव का वातावरण उत्पन्न होता है तथा यह रुद्राक्ष अपार समृद्धि लेकर आता है. माना जाता है कि इस रूद्राक्ष को धारण करने से ब्रह्म हत्या गौ हत्या और ब्राह्मण हत्या जैसे पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है. इसे पहनने से आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता है और व्यक्ति "सनातन धर्म" की राह पर चलता है.

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष लाभ |

भगवान कुबेर का स्वरूप यह रुद्राक्ष धन धान्य की कमी को दूर करता है. इसे धारण करने से निर्धन भी धनवान हो जाता है, अलख निरंजन रुप में यह रुद्राक्ष व्यक्ति को भक्ति के रस में लीन कर देता है . इसे रुद्राक्ष को अपनाकर मनुष्य त्रिदेवों के साथ अन्य देवों का आशीर्वाद भी पाता है.

इस रूद्राक्ष को पहनने वाला विशाल संपत्ति के साथ ही साथ सांसारिक सुखों का लाभ भी उठाता है व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं भाग्यशाली बन जीवन का आनंद लेता है. 21 मुखी रुद्राक्ष जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता दिलाता है.

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष से स्वास्थ्य लाभ |

प्राचीन वैदिक ग्रंथों के अनुसार इक्कीस मुखी रुद्राक्ष सकारात्मक उर्जा का संचार करता है. यह स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करता है. जागरूकता बढ़ाता है, मानसिक परेशानियों को दूर करता है यह रूद्राक्ष तीसरा नेत्र चक्र है, यह आज्ञा चक्र कुंडलिनी को जागृत करने में भी सहायक होता है इसे धारण करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है.  यह रुद्राक्ष भी तंत्र मंत्र तथा अन्य बुरी शक्तियों से बचाव करने में उपयोगी है.

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष मंत्र |

‘ॐ नमः शिवाय’ इस मंत्र का जाप करते हुए इस रुद्राक्ष को धारण करें. इस रुद्राक्ष को मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके शुद्ध एवं पवित्र मन के साथ पहनना चाहिए. 21 मुखी रूद्राक्ष सोमवार को सोने चांदी या लाल धागे में पिरोकर धारण किया जा सकता है. यह रूद्राक्ष उन लोगों के लिए बहुत लाभदायक है जो जीवन में अनेक उचाईयों  को छूना चाहते हैं.   वरिष्ठ अधिकारियों, बड़े व्यापारी, राजनेता बनने की चाह रखने वालों को या बहुराष्ट्रीय कंपनियों, सिने अभिनेता, निर्माता और निदेशकों को इसे धारण करना चाहिए.

Wednesday, February 7, 2018

ज्योतिष और राजनितिक योग

ज्योतिष और राजनितिक योग

कोई व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ बनेगा या नहीं यह बहुत कुछ उसके जन्म ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। अन्य व्यवसायों की भांति ही राजनीति में प्रवेश करने वालों की कुंडली में भी ज्योतिषीय योग होते हैं। नीति कारक ग्रह राहू, सत्ता का कारक सूर्य, न्याय-प्रिय ग्रह गुरु, जनता का हितैषी शनि और नेतृत्व का कारक मंगल जब राज्य-सत्ता के कारक दशम भाव, दशम से दशम सप्तम भाव, जनता की सेवा के छठे भाव, लाभ एवं भाग्य स्थान से शुभ संबंध बनाएं तो व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ बनता है।

राहू की भूमिका होती है खास
राजनीति में राहू का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे सभी ग्रहों में नीतिकारक ग्रह का दर्जा प्राप्त है। राहू के शुभ प्रभाव से ही नीतियों के निर्माण व उन्हें लागू करने की क्षमता व्यक्ति में आती है। राजनीति के घर (दशम भाव) से राहू का संबंध बने तो राजनेता में स्थिति के अनुसार बोलने की योग्यता आती है। सफल राजनेताओं की कुंडली में राहू का संबंध छठे, सातवें, दसवें व ग्यारहवें भाव से देखा गया है। छठे भाव को सेवा का भाव कहते हैं। व्यक्ति में सेवा भाव के लिए इस भाव में दशम या दशमेश का संबंध होना चाहिए।

ये योग हैं आवश्यक योग
जन्म कुंडली के दसवें घर को राजनीति का घर कहते हैं। सत्ता में भाग लेने के लिए दशमेश और दशम भाव का मजबूत स्थिति में होना आवश्यक है। दशम भाव में उच्च मूल त्रिकोण या स्वराशिस्थ ग्रह के बैठने से व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में बल मिलता है। गुरु नवम भाव में शुभ प्रभाव में स्थित हो और दशम घर व दशमेश का संबंध सप्तम भाव से हो तो व्यक्ति राजनीति में सफल होता है। सूर्य राज्य का कारक ग्रह है अत: यदि यह दशम भाव में स्वराशि या उच्च राशि में होकर स्थित हो और राहू छठे, दशवें व ग्यारहवें भाव से संबंध बनाए तो राजनीति में सफलता की प्रबल संभावना बनती है। इस योग में वाणी के कारक ग्रह का प्रभाव आने से व्यक्ति अच्छा वक्ता बनता है।
शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबंध बनाए और इसी दशम भाव में मंगल भी स्थित हो तो व्यक्ति समाज के लोगों के हितों के लिए राजनीति में आता है। शनि और मंगल का संबंध व्यक्ति को राजनेता बनने के गुण प्रदान करेगा और समाज में मान-सम्मान तथा उच्च पद की प्राप्ति होती है।

जन्म लग्र से राजनीति के योग
मेष लग्न में प्रथम भाव में सूर्य, दशम में मंगल व शनि व दूसरे भाव में राहू हों तो जनता का हितैषी राजनेता बनेगा।

वृष- दशम भाव का राहू राजनीति में प्रवेश दिलाता है। राहू के साथ शुक्र भी हो तो राजनीति में प्रखरता आती है।

मिथुन- शनि नवम में तथा सूर्य, बुध लाभ भाव में हों तो व्यक्ति प्रसिद्धि पाता है। राहू सप्तम में तथा सूर्य 4, 7 या 10वें भाव में हो तो प्रखर व्यक्तित्व तथा विरोधियों में धाक जमाने वाला राजनेता बनता है।

कर्क- शनि लग्र में, दशमेश मंगल दूसरे भाव में, राहू छठे भाव में तथा सूर्य बुध पंचम या ग्यारहवें भाव में चंद्रमा से दृष्ट हों तो राजनीति में यश मिलता है।

सिंह- सूर्य,चंद्र, बुध व गुरु धन भाव में हों, मंगल छठे, राहू बारहवें भाव में तथा शनि ग्यारहवें घर में हों तो व्यक्ति को राजनीति विरासत में मिलती है। यह योग व्यक्ति को लंबे समय तक शासन में रखता है।

कन्या- दशम भाव में बुध का संबंध सूर्य से हो, राहू, गुरु, शनि लग्र में हों तो व्यक्ति राजनीति में रुचि लेगा।

तुला लग्न-चंद्र, शनि चतुर्थ भाव में हों तो व्यक्ति वाकपटु होता है। सूर्य सप्तम में, गुरु आठवें, शनि नौवें तथा मंगल बुध ग्यारहवें भाव में हों तो राजनीति में अपार सफलता पाता है।

वृश्चिक- लग्रेश मंगल बारहवें भाव में गुरु से दृष्ट, शनि लाभ भाव में, चंद्र-राहू चौथे भाव में, शुक्र सप्तम में तथा सूर्य ग्यारहवें घर के स्वामी के साथ शुभ भाव में हों तो व्यक्ति प्रखर नेता बनता है।

धनु- चतुर्थ भाव में सूर्य, बुध, शुक्र हों तो जातक तकनीकी सोच के साथ राजनीति करता है।

मकर-राहू चौथे भाव में तथा नीचगत बुध उच्चगत शुक्र के साथ तीसरे भाव में हों तो नीचभंग राजयोग से व्यक्ति राजनीति में दक्ष होता है।

कुंभ - लग्र में सूर्य-शुक्र हों तथा दशम में राहू हो तो राहू तथा गुरु की दशा में राजनीति में सफलता मिलती है।

मीन- चंद्र, शनि लग्र में, मंगल ग्यारहवें तथा शुक्र छठे भाव में हों तो शुक्र की दशा में राजनीतिक लाभ तथा श्रेष्ठ धन लाभ होता है।

Tuesday, February 6, 2018

सप्ताह के वार के अनुसार करें ये काम जीवन में मिलेगी सफलता



सप्ताह के वार के अनुसार करें ये काम जीवन में मिलेगी सफलता

हिन्दू धर्म में शुभ-अशुभ का बड़ा महत्व होता हैं। हिन्दू धर्म में किसी भी कार्य को करने से पहले उसका शुभ मूर्हत देखा जाता हैं, ताकि उस काम में सफलता प्राप्त हो। हिन्दू धर्म में सप्ताह के हर वार का अपना महत्व होते हैं। सप्ताह के हर दिन से सम्बंधित कई कार्य हैं जिनमें से कुछ उस दिन के लिए निषेध हैं तो कुछ उस वार के लिए शुभ। आज हम आपको बताने जा रहे हैं वार के अनुसार किये जाने वाले काम जो उस दिन किये जाने चाहिए। तो आइये जानते हैं कौनसे दिन क्या काम करना शुभ।

* रविवार : यह सूर्य देव का वार माना गया है। इस दिन नवीन गृह प्रवेश और सरकारी कार्य करना चाहिए। विज्ञान, इंजीनियरिंग, सेना, उद्योग बिजली, मैडिकल एवं प्रशासनिक शिक्षा उत्तम, नवीन वस्त्र धारण, सोने और तांबे की वस्तुओं के नवीन आभूषण धारण करने शुभ होते हैं।

* सोमवार : सोमवार के दिन आप कृषि संबंधी कोई भी नया कार्य प्रारंभ करें, फलित ही होगा। कृषि संबंधी कार्य जैसे कि खेती यंत्र खरीदी, बीज बोना, बगीचा, फल के वृक्ष लगाना, आदि इस दिन करें। इसके अलावा वस्त्र तथा रत्न धारण करना, औसत क्रय-विक्रय, भ्रमण-यात्रा, कला कार्य, स्त्री प्रसंग, नवीन कार्य, अलंकार धारण करना, पशुपालन, वस्त्र आभूषण का क्रय-विक्रय हेतु इस दिन शुभ होता है।

* मंगलवार : मंगल देव के इस दिन विवाद एवं मुकद्दमे से संबंधित कार्य करने चाहिए। बिजली से संबंधित कार्य, सर्जरी की शिक्षा, शस्त्र विद्या सीखना, अग्नि स्पोर्टस, भूगर्भ विज्ञान, दंत चिकित्सा, मुकदमा दायर करना शुभ है। लेकिन इस दिन भूल कर भी किसी से उधार न लें।

* बुधवार : यदि आप किसी को ऋण दे रहे हैं, तो बुधवार को दें। इस दिन दिया हुआ ऋण आपके पास जल्दी वापस आ जाता है। इसके अलावा शिक्षा-दीक्षा विषयक कार्य, विद्यारंभ अध्ययन, सेवावृत्ति, बहीखाता, हिसाब विचार, शिल्पकार्य, निर्माण कार्य, नोटिस देना, गृहप्रवेश, राजनीति विचार शुभ है।

* गुरुवार : यूं तो यह दिन सबसे अधिक शुभ माना जाता है, लेकिन इस दिन आप ऐसे कौन से कार्य करें कि वह सफल हों यह जान लीजिए। इस दिन ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा, धर्म संबंधी कार्य, अनुष्ठान, विज्ञान, कानूनी कार्य, नई शिक्षा आरंभ करना, गृह शांति, मांगलिक कार्य, आदि शुभ कार्य साथ ही सफल होते हैं।

* शुक्रवार : शुक्र ग्रह से प्रभावित होता है यह दिन। इस दिन सांसारिक कार्य, गुप्त विचार गोष्ठी, प्रेम व्यवहार, मित्रता, वस्त्र, मणिरत्न धारण तथा निर्माण, अर्क, इत्र, नाटक, छायाचित्र फिल्म, संगीत आदि कार्य शुभ भण्डार भरना, खेती करना, हल प्रवाह, धान्या रोपण, आयु ज्ञान शिक्षा शुभ है।

* शनिवार : मकान बनाना, गृह प्रवेश, ऑपरेशन, तकनीकी शिल्प कला, मशीनरी संबंधित ज्ञान, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी का ज्ञान सीखना, तेल लगाना विशेष शुभ, मुकदमा दायर करना शुभ है।

एक शीशा आपको बना सकता है करोड़पति,



घर में लगा सिर्फ एक शीशा आपको बना सकता है करोड़पति, यकीन नहीं तो ट्राई करके देखिए...


शीशा या आईना हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है, पर क्या आप जानते हैं कि महज एक शीशा हमें करोड़पति भी बना सकता है? यदि नहीं, तो कोई बात नहीं आज हम आपको बता रहें हैं शीशे से संबंधित एक ऐसे उपाय के बारे में जो आपको बना सकता है करोड़पति।

यहां आज हम आपको शीशे के उपयोग के बारे में और उसको सही से प्रयोग करने के बारे में जानकारी दे रहें हैं, ये सभी उपाय आपके जीवन पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव डालेंगे, तो आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में।

1- आपने जिस जगह पर खाना खाते हैं, वहां पर इस प्रकार का शीशा लगवाए जो की आपको खाना खाते समय प्रतिबिंबित करें। असल में इस प्रकार से खाना अपनी मात्रा से दुगना दिखाई देता है और फेंगशुई के अनुसार यह आपके घर की तरक्की में काफी योगदान देता है।

2- आप जो भी शीशा उपयोग करते हैं उसके फ्रेम का आप अच्छे से ध्यान रखें, यानी कभी भी तीखा या भड़काऊ कलर का फ्रेम अपने शीशे पर न लगवाए इसके बदले आप शीशे का फ्रेम हल्के रंग का ही लगवाएं।

3- यह बात आप हमेशा ध्यान रखें कि शीशा जितना बड़ा और हल्का होता है वह उतना ही प्रभावशाली होता है, इसके अलावा आप शीशे को हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा में ही लगवाए तथा इन दोनों दिशाओं में आप कभी भी गोल शेप के शीशे का उपयोग न करें।

इस प्रकार से अपने घर में यदि आप शीशे का उपयोग करेंगे तो आपके घर पर बहुत बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और आपके जीवन में तरक्की के रास्ते खुलेंगे।

Sunday, February 4, 2018

ग्रहों के वर्गोत्तम होने पर भी अलग अलग फल मिलता है


(Navamsha Kundli) से जीवन के लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर ज्ञात किया जा सकता है। शिक्षा से सम्बन्धित, व्यवसाय से सम्बन्धित, विवाह से सम्बन्धित, माता पिता एवं संतान से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर आप नवमांश कुण्डली से जान सकते हैं।

नवमांश कुण्डली (Navamsha Kundali) वर्ग चार्ट कुण्डली के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लग्न कुण्डली अगर शरीर है तो नवमांश कुण्डली को उसकी आत्मा कहा जा सकता है क्योंकि इसी से ग्रहों के फल देने की क्षमता का ज्ञान होता है। कुण्डली से फलादेश करते समय जबतक नवमांश कुण्डली का सही आंकलन नहीं किया जाए फलादेश सही नहीं हो सकता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति का लग्न वर्गोत्तम नवमांश होता है वह शारीरिक व मानसिक तौर पर स्वस्थ और मजबूत होता है। इसके अलावा व्यक्ति को अपने लग्न में स्थित राशि के अनुसार फल प्राप्त होत हैं। इसी प्रकार ग्रहों के वर्गोत्तम होने पर भी अलग अलग फल मिलता है जैसे

सूर्य वर्गोत्तम (Surya Vargottam)
जिस व्यक्ति का सूर्य वर्गोत्तम होता हे वह दार्शनिक प्रवृति का होता है। इनकी मानसिक व शारीरिक क्षमता अच्छी होती है। ये शानो शौकत से जीवन का आनन्द लेते हैं। इन्हें समाज में मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिलती है। गूढ़ विषयों में इनकी रूचि होती है। नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर सूर्य स्थित है तो यह व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में उच्च पद दिलाता है।

चन्द्र वर्गोत्तम (Chandra Vargottam)
चन्द्र वर्गात्तम वाले व्यक्ति माता के भक्त होते है। इनकी स्मरण क्षमता अच्छी रहती है। ये बुद्धिमान और होशियार होते हैं। ये भेदभाव का विचार नहीं रखते और सभी के साथ एक समान व्यवहार रखने वाले होते हैं। ये अपनी चाहतों को अच्छी तरह से समझते हैं और उसे प्राप्त करने हेतु तत्पर रहते हैं। नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर चन्द्र स्थित है तो व्यक्ति को व्यापार में सफलता मिलती है।

मंगल वर्गोत्तम (Mangal Vargottam)
जिस व्यक्ति की कुण्डली में मंगल वर्गोत्तम होता है वे अपनी बातों से लोगों को प्रभावित करना जानते हैं। ये ज्योतिष विद्या में रूचि रखते हैं और अपने परिवेश में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान करने की क्षमता रखते हैं। ये उत्साही प्रवृति के होते हैं जो इन्हें पसंद नहीं होता उसका विरोध करते हैं। ये अपने ऊपर किसी चीज़ को जबर्दस्ती नहीं ढोते। नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर मंगल स्थित है तो व्यक्ति सेना और उससे सम्बन्धित क्षेत्र में कामयाब होता है।

बुध वर्गोत्तम (Budh Vargottam)
बुध वर्गोत्तम वाले व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं। ये अपनी बातों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं। ये तर्क वितर्क में कुशल और प्रभावशाली होते हैं। इस वर्गोत्तम के व्यक्ति ज्योतिष विद्या में भी निपुणता रखते हैं। नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर बुध स्थित है तो यह व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में सफल होता है।

बृहस्पति वर्गोत्तम (Guru Vargottam)
जो व्यक्ति बृहस्पति वर्गोत्तम से प्रभावित होते हैं वे घमंडी और अहंकारी होते हैं। ये दूसरों की बातों को ध्यान से सुनते और समझते हैं और सच को जानने की कोशिश करते हैं। ये बुद्धिमान और समझदार होते हैं। ये दिखने में सुन्दर और गठीले नज़र आते हैं। नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर बृहस्पति स्थित है तो यह व्यक्ति को धार्मिक क्षेत्र में उच्च स्थान दिलाता है।

शुक्र वर्गोत्तम (Shukra Vargottam)
शुक्र वर्गोत्तम वाले व्यक्ति अपने शरीर और सौन्दर्य के प्रति विशेष ध्यान देने वाले होते हैं। इस वर्गोत्तम के व्यक्ति सामने वाले के मन में क्या चल रहा है इस बात को समझने की बेहतर क्षमता रखते हैं। ये एक अच्छे भविष्यवक्ता हो सकते हैं। ये अधिक बीमार नहीं होते क्योंकि इनमें रोगों से लड़ने की क्षमता होती है। नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर शुक्र स्थित है तो यह व्यक्ति को सुख सुविधाओं से परिपूर्ण जीवन प्रदान करता है।

शनि वर्गोत्तम (Shani Vargottam)
शनि वर्गोत्तम से प्रभावित व्यक्ति अपनी जिम्मेवारियों के प्रति लापरवाह होते हैं और मेहनत से बचना चाहते हैं। इनमें दृढ़ इच्छा शक्ति होती है। ये अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत और गंभीर होते हैं। इनकी आयु लम्बी होती है परंतु इनका जीवन संघर्ष से भरा होता है। नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर शनि स्थित है तो व्यक्ति जीवन भर किसी की नौकरी करता है।

नवमांश कुंडली से पत्नी/पति का विचार किया जाता है

नवमांश कुंडली से पत्नी/पति का विचार किया जाता है। एक अच्छा ज्योतिषी आपकी नवमांश कुंडली देखकर आपकी पत्नी के बारे में सटीक भविष्यवाणी कर सकता है।  मैंने तो यहाँ तक पाया है की अगर आपकी कुंडली में गजकेसरी योग है तो आपकी पत्नी/पति की नवमांश कुंडली में गजकेसरी योग होने की प्रबल संभावना है। मेरा ये Rule 80% फिट बैठता है। सभी के पास Exact Birth Time भी मुश्किल है। यह एक गहन शोध का विषय है।

पराशर के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म कुन्डली एवं नवांश कुण्डली में एक ही राशि होती है तो उसका वर्गोत्तम नवमांश होता है वह शारीरिक व आत्मिक रुप से स्वस्थ होता है।

अगर कोई ग्रह जिस राशि में है उसी नवमांश में भी हो तो वर्गोत्तम कहलाता है। वर्गोत्तम ग्रह शुभ फल देता है।

अगर कोई ग्रह जन्म कुण्डली में नीच का हो एवं नवांश कुण्डली में उच्च को हो तो वह अपेक्षाकृत शुभ फल प्रदान करता है

लग्न के नवमांशाधिपति से जातक के शरीर की आकृति, गठन इत्यादि का पता लगाया जा सकता है।

चन्द्रमा के नवमांश से जातक के रंग का पता लगाया जा सकता है।

कलत्र-राशि निकालने में नवमांश कुंडली का ही उपयोग होता है।

विवाह समय निर्धारण में गुरु की नवमांश में गोचर स्तिथि देखना कुछ लोग अनिवार्य मानते हैं।

सन्तानोपत्ति-शक्ति देखने के लिए पुरुष का बीज स्फुट और स्त्री का क्षेत्र स्फुट नवमांश में किस राशि में है यह देखना अनिवार्य है।

सन्तानोपत्ति के सही समय का आंकलन भी बिना नवमांश कुंडली के असम्भव ही होता है।

ज्योतिष ग्रंथो में बहुत से राजयोग सिर्फ नवमांश कुंडली के आधार पर ही बताये गए हैं, जैसे की अगर लग्नेश, एकादशेश, द्वितीयेश तथा नवमेश उच्च नवमांश में हो जातक करोड़पति होता है। इसी तरह बहुत से योग हैं।

दशमेश का नवमांशेश और उस पर विभिन्न ग्रहों का प्रभाव जातक के व्यवसाय का सही विवरण देता है।


कुण्डली में नवमांश का महत्व

*कुण्डली में नवमांश का महत्व

*कुंडली के बारे में जानते -पढ़ते -सुनते समय नवमांश कुंडली का जिक्र आप लोगों ने कई बार सुना होगा। तब मन में ये प्रश्न आता होगा कि ये नवमांश कुंडली आखिर है क्या ? कई जिज्ञासु पाठक व कई मित्र जो ज्योतिष में रूचि रखते हैं वे कई बार आग्रह कर चुके हैं कि आप नवमांश कुंडली पर भी कुछ कहें। क्या होती है ?कैसे बनती है आदि-:*
 
*सामान्यतः आप सभी को ज्ञात है कि  कुंडली में नवें भाव को भाग्य का भाव कहा गया है। यानि आपका भाग्य नवां भाव है। इसी प्रकार भाग्य का भी भाग्य देखा जाता है ,जिसके लिए नवमांश कुंडली की आवश्यकता होती है। जागरूक ज्योतिषी कुंडली सम्बन्धी किसी भी कथन से पहले एक तिरछी दृष्टि नवमांश पर भी अवश्य डाल चुका होता है।बिना नवमांश का अध्य्यन  किये बिना भविष्यकथन में चूक की संभावनाएं अधिक होती हैं। ग्रह का बलाबल व उसके फलित होने की संभावनाएं नवमांश से ही ज्ञात होती हैं। लग्न कुंडली में बलवान ग्रह यदि नवमांश कुंडली में कमजोर हो जाता है तो उसके द्वारा दिए जाने वाले लाभ में संशय हो जाता है।  इसी प्रकार लग्न कुंडली में कमजोर दिख रहा ग्रह यदि नवमांश में बली हो रहा है तो भविष्य में उस ओर से बेफिक्र रहा जा सकता है ,क्योंकि बहुत हद तक वो स्वयं कवर कर ही लेता है।अतः भविष्यकथन में नवमांश आवश्यक हो जाता है  .नवमांश कुंडली(डी-9)*

*षोडश वर्ग में सभी वर्ग महत्वपूर्ण होते है लेकिन लग्न कुंडली के बाद नवमांश कुंडली का विशेष महत्व है।नवमांश एक राशि के नवम भाव को कहते है जो अंश 20 कला का होता है।नो नवमांश इस प्रकार होते है जैसे, मेष में पहला नवमांश मेष का, दूसरा नवमांश वृष का, तीसरा नवमांश मिथुन का, चौथा नवमांश कर्क का, पाचवां नवमांश सिंह का, छठा कन्या का, सातवाँ तुला का, आठवाँ वृश्चिक का और नवा नवमांश धनु का होता है।नवम नवमांश में मेष राशि की समाप्ति होती है और वृष राशि का प्रारम्भ होता है।वृष राशि में पहला नवांश मेष राशि के आखरी नवांश से आगे होता है।इसी तरह वृष में पहला नवमांश मकर का, दूसरा कुंभ का, तीसरा मीन का, चौथा मेष का, पाचवा वृष का, छठा मिथुन का, सातवाँ कर्क का, आठवाँ सिंह का और नवम नवांश कन्या का होता है। इसी तरह आगे राशियों के नवमांश ज्ञात किए जाते है। नवमांश कुंडली से मुख्य रूप से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है।इसके अतिरिक्त भी नवमांश कुंडली का परिक्षण लग्न कुंडली के साथ-साथ किया जाता है।यदि बिना नवमांश कुंडली देखे केवल लग्न कुंडली के आधार पर ही फल कथन किया जाए तो फल कथन में त्रुटिया रह सकती है या फल कथन गलत भी हो सकता है।क्योंकि ग्रहो की नवमांश कुंडली में स्थिति क्या है?नवमांश कुंडली में ग्रह कैसे योग बना रहे है यह देखना अत्यंत आवश्यक है तभी ग्रहो के बल आदि की ठीक जानकारी प्राप्त होती है।इसके अतिरिक्त अन्य वर्ग कुण्डलिया भी अपना विशेष महत्व रखते है।लेकिन नवमांश इन वर्गों में अति महत्वपूर्ण वर्ग है। लग्न और नवमांश कुंडली परीक्षण-:*

*यदि लग्न और नवमांश लग्न वर्गोत्तम हो तो ऐसे जातक मानसिक और शारीरिक रूप से बलबान होते है।वर्गोत्तम लग्न का अर्थ है।लग्न और नवमांश दोनों कुंडलियो का लग्न एक ही होना अर्थात् जो राशि लग्न कुंडली के लग्न में हो वही राशि नवमांश कुंडली के लग्न में हो तो यह स्थिति वर्गोत्तम लग्न कहलाती है।इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में हो तो वह ग्रह वर्गोत्तम होता है वर्गोत्तम ग्रह अति शुभ और बलबान होता है।जैसे सूर्य लग्न कुंडली में धनु राशि में हो और नवमांश कुंडली में भी धनु राशि में हो तो सूर्य वर्गोत्तम होगा।वर्गोत्तम होने के कारण ऐसी स्थिति में सूर्य अति शुभ फल देगा।वर्गोत्तम ग्रह भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार भी अपने अनुकूल भाव में बेठा हो तो अधिक श्रेष्ठ फल करता है। शुभ राशियों में वर्गोत्तम ग्रह आसानी से शुभ परिणाम देता है और क्रूर राशियों में वर्गोत्तम ग्रह कुछ संघर्ष भी करा सकता है। जब कोई ग्रह लग्न कुण्डली में अशुभ स्थिति में हो पीड़ित हो, निर्बल हो या अन्य प्रकार से उसकी स्थिति ख़राब हो लेकिन नवमांश कुंडली में वह ग्रह शुभ ग्रहो के प्रभाव में हो, शुभ और बलबान हो गया हो तब वह ग्रह शुभ फल ही देता है अशुभ फल नही देता।इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली में अपनी नीच राशि में हो और नवमांश कुंडली में वह ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो उसे बल प्राप्त हो जाता है जिस कारण वह शुभ फल देने में सक्षम होता है।ग्रह की उस स्थिति को नीचभंग भी कहते है।चंद्र और चंद्र राशि से जातक का स्वभाव का अध्ययन किया जाता है।लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में चंद्र जिस राशि में हो तथा यदि नवमांश कुंडली के चंद्रराशि का स्वामी लग्न कुंडली के चंद्रराशि से अधिक बली हो और चंद्रमा भी लग्न कुंडली से ज्यादा नवमांश कुंडली में बली हो तो जातक का स्वभाव नवमांश कुंडली के अनुसार होगा।ऐसे में जातक के मन पर नवमांश कुंडली के चंद्र की स्थिति का प्रभाव अधिक पड़ेगा।यदि नवमांश कुंडली का लग्न, लग्नेश बली हो और नवमांश कुंडली में राजयोग बन रहा हो और ग्रह बली हो तो जातक को राजयोग प्राप्त होता है। नवमांश कुंडली मुख्यरूप से विवाह और वैवाहिक जीवन केलिए देखी जाती है यदि लग्न कुंडली में विवाह होने की या वैवाहिक जीवन की स्थिति ठीक न हो अर्थात् योग न हो लेकिन नवमांश कुंडली में विवाह और वैवाहिक जीवन की स्थिति शुभ और अनुकूल हो, विवाह के योग हो तो वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त होता है।*

 *पाठक अब देखें की नवमांश कुंडली का निर्माण कैसे होता है व नवमांश में ग्रहों को कैसे रखा जाता है। हम जानते हैं कि एक राशि अथवा एक भाव 30 डिग्री का विस्तार लिए हुए होता है। अतः एक राशि का नवमांश अर्थात 30 का नवां हिस्सा यानी 3. 2 डिग्री। इस प्रकार एक राशि में नौ राशियों  नवमांश होते हैं। अब 30 डिग्री को नौ भागों में विभाजित कीजिये-:*

              …        *पहला नवमांश          ०० से 3.२०*

                       *दूसरा नवमांश           3. २० से ६.४०*

                       *तीसरा नवमांश          ६. ४० से १०. ०*

                       *चौथा नवमांश           १० से १३. २०*

                       *पांचवां नवमांश         १३.२० से १६. ४०*

                       *छठा नवमांश            १६. ४० से २०. ००*

                       *सातवां नवमांश        २०. ०० से २३. २०*

                       *आठवां नवमांश        २३. २० से २६. ४०*

                       *नवां नवमांश           २६. ४० से ३०. ००*
               
*मेष -सिंह -धनु (अग्निकारक राशि) के  नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।*

*वृष -कन्या -मकर  (पृथ्वी तत्वीय राशि ) के नवमांश  का आरम्भ मकर से होता है।*

*मिथुन -तुला -कुम्भ (वायु कारक राशि ) के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।*

*कर्क -वृश्चिक -मीन  (जल तत्वीय राशि ) के नवमांश  आरम्भ कर्क से होता है।*
               
*मेष -सिंह -धनु (अग्निकारक राशि) के  नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।*

*वृष -कन्या -मकर  (पृथ्वी तत्वीय राशि ) के नवमांश  का आरम्भ मकर से होता है।*

*मिथुन -तुला -कुम्भ (वायु कारक राशि ) के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।*

*कर्क -वृश्चिक -मीन  (जल तत्वीय राशि ) के नवमांश  आरम्भ कर्क से होता है।*
 *इस प्रकार आपने देखा कि राशि के नवमांश का आरम्भ अपने ही  तत्व स्वभाव की राशि से हो रहा है। अब नवमांश राशि स्पष्ट करने के लिए सबसे पहले लग्न व अन्य ग्रहादि का स्पष्ट होना आवश्यक है।*

*उदाहरण के लिए मानिए कि किसी कुंडली में लग्न ७:०३:१५:१४ है ,अर्थात लग्न सातवीं राशि को पार कर तीन अंश ,पंद्रह कला और चौदह विकला था (यानी वृश्चिक लग्न था ),अब हम जानते हैं कि वृश्चिक जल तत्वीय राशि है जिसके नवमांश का आरम्भ अन्य जलतत्वीय राशि कर्क से होता है। ०३ :१५ :१४  मतलब ऊपर दिए नवमांश चार्ट को देखने से ज्ञात हुआ कि ०३ :२० तक पहला नवमांश माना जाता है। अब कर्क से आगे एक गिनने पर (क्योंकि पहला नवमांश ही प्राप्त हुआ है ) कर्क ही आता है ,अतः नवमांश कुंडली का लग्न कर्क होगा। यहीं अगर लग्न कुंडली का लग्न ०७ :१८ :१२ :१२ होता तो हमें ज्ञात होता कि १६. ४० से २०. ०० के मध्य यह डिग्री  हमें छठे नवमांश के रूप में प्राप्त होती। अतः ऐसी अवस्था में कर्क से आगे छठा नवमांश धनु राशि में आता ,इस प्रकार इस कुंडली का नवमांश धनु लग्न से बनाया जाता।*
 
*अन्य उदाहरण से समझें .......  मान लीजिये किसी कुंडली का जन्म लग्न सिंह राशि में ११ :१५ :१२ है (अर्थात लग्न स्पष्ट ०४ :११:१५ :१२ है )ऐसी अवस्था में चार्ट से हमें ज्ञात होता है कि ११ :१५ :१२ का मान हमें १०.०० से १३. २० वाले चतुर्थ नवमांश में प्राप्त हुआ। यानी ये लग्न का चौथा नवमांश है। अब हम जानते हैं कि सिंह का नवमांश मेष से आरम्भ होता है। चौथा नवमांश अर्थात मेष से चौथा ,तो मेष से चौथी राशि कर्क होती है ,इस प्रकार इस लग्न कुंडली की नवमांश कुंडली कर्क लग्न से बनती। इसी प्रकार अन्य लग्नो की गणना की जा सकती है।*

*इसी प्रकार नवमांश कुंडली में ग्रहों को भी स्थान दिया जाता है। मान लीजिये किसी कुंडली में सूर्य तुला राशि में २६ :१३ :०७ पर है (अर्थात सूर्य स्पष्ट ०६ :२६ :१३ :०७ है ) चार्ट देखने से ज्ञात  कि २६ :१३ :०७  आठवें नवमांश जो कि २३. २० से २६. ४० के मध्य विस्तार लिए हुए है के अंतर्गत आ रहा है। इस प्रकार तुला से आगे (क्योंकि सूर्य तुला में है और हम जानते हैं कि तुला का नवमांश तुला से ही आरम्भ होता है ) आठ गिनती करनी है। तुला से आठवीं राशि वृष होती है ,इस प्रकार इस कुंडली की नवमांश कुंडली में सूर्य वृष राशि पर लिखा जाएगा। इसी प्रकार गणना करके अन्य ग्रहों को भी नवमांश में स्थापित किया जाना चाहिये।*

*ज्योतिष के विद्यार्थियों अथवा शौकिया इस शाश्त्र से जुड़ने वालों के लिए भी नवमांश का ज्ञान होना उन्हें अपने सहयोगी ज्योतिषी से एक कदम आगे रखने में बहुत मददगार साबित होगा ऐसा मेरा विश्वास है। बहुत सरल शब्दों में नवमांश का दिया गया ये उदाहरण आशा है आप सब जिज्ञासुओं को सहायक होगा।