तीनमुखी रूद्राक्ष
तीनमुखी रूद्राक्ष अग्नि का स्वरूप माना जाता है। यह रूद्राक्ष विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों को नष्ट करके, रचनात्मक एंव सृजनात्मक प्रवृत्तियों में वृद्धि करता है। तीनमुखी रूद्राक्ष को शरीर में धारण करके निम्न प्रकार के लाभ प्राप्त किये जा सकते है-
1- परस्त्रीगमन से उत्पन्न दोषों को दूर करता है।
2- ईष्र्या, घृणा, द्वेश आदि दुष्प्रवृत्तियों को दूर करके सदबुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
3- तीनमुखी रूद्राक्ष को रात्रि में किसी ताम्रपाद में जल भरकर उसमें रूद्राक्ष डाल दें। प्रातः काल उठकर उस जल को ग्रहण करने से, पेट के रोग, सूजन, प्लीहा तथा मलेरिया आदि रोगों में लाभ मिलता है।
4- तीनमुखी रूद्राक्ष को दाहिनी भुजा में बाधने पर, मंगल से सम्बन्धित दोषों का निवारण होता है।
5- जिन व्यक्तियों को क्रोध अधिक आता है, उन्हे तीनमुखी रूद्राक्ष धारण करने से लाभ मिलता है।
6- तीनमुखी रूद्राक्ष धारण करने से महिलाओं के मासिक धर्म से सम्बन्धित रोगों में लाभ मिलता है।
7- अग्नि तत्व प्रधान तीनमुखी रूद्राक्ष को धारण करने से मणिपुर चक्र शुद्ध हो जाता है, जिससे वाणी व व्यक्तित्व में आकर्षण उत्पन्न होता है।
8- तीनमुखी रूद्राक्ष धारण करने से बेरोजगार व्यक्तियों को शीघ्र ही रोजगार के अवसर उपलब्ध होते है।
धारण विधि- तांबे के पात्र में लाल चन्दन या रोली से, शमी की लकड़ी अथवा अनार की लकड़ी से त्रिकोण बनाकर उसके मध्य " रं " बीज लिखे। " रं " बीजाक्षर के उपर तीनमुखी रूद्राक्ष को गंगाजल से शुद्ध करके रखें। उसके उपर एक बेल पत्र तथा लाल रंग के पुष्प रखकर निम्न मन्त्र से- ॐ हूं रूद्राय तेजस् अधिपते विद्याकलात्मने हूं फट स्वाहा'' का 11 बार उच्चारण करके जल छिड़कना चाहिए।
हवन मन्त्र-
1- ॐ र अग्नये स्वाहा,
2-ॐ रं अग्र्विर्चसे स्वाहा,
3- ॐ ह्रीं सूर्योज्योतिज्र्योति अग्निर्वर्चसे स्वाहा, 4-ॐ ह्रां आ दिवे स्वाहा,
4- ॐ अग्ने ब्रतपते सूर्यो अग्निः अग्निः सूर्य जातवेदसे स्वाहा।
उपर लिखे पांचों मन्त्रों से पांच -पांच बार आहूतियां देनी चाहिए। यह हवन किसी भी शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णमासी तक नित्य करने के बाद रूद्राक्ष को मुठ्ठी में दबाकर " नमः शिवाय " मन्त्र से 11 बार जप करके दाहिनी भुजा या गले में धारण करने से चमत्कारिक लाभ मिलता है।
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