Monday, December 25, 2017

जन्म कुंडली में ग्रहों को कैसे देखें

जन्म कुंडली में ग्रहों को कैसे देखें:--
*****************************
जन्म कुंडली में ग्रह को समझने के लिए कुछ बातों पर विचार किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं.
सबसे पहले यह देखें कि ग्रह किस भाव में स्थित है और किन भावों का स्वामी है.
ग्रह के कारकत्व क्या-क्या होते हैं.
ग्रहों का नैसर्गिक रुप से शुभ व अशुभ होना देखेगें.
ग्रह का बलाबल देखेगें.
ग्रह की महादशा व अन्तर्दशा देखेगें कि कब आ रही है.
जन्म कालीन ग्रह पर गोचर के ग्रहों का प्रभाव.
ग्रह पर अन्य किन ग्रहों की दृष्टियाँ प्रभाव डाल रही हैं.
ग्रह जिस राशि में स्थित है उस राशि स्वामी की जन्म कुण्डली में स्थिति देखेगें और उसका बल भी देखेगें.
कुछ बातें जो कि महत्वपूर्ण हैं
कुछ बातें जो कि महत्वपूर्ण हैं उन्हें एक कुशल ज्योतिषी अथवा कुंडली का विश्लेषण करने वाले को अवश्य ही अपने मन-मस्तिष्क में बिठाकर चलना चाहिए.
जन्म कुंडली में स्थित सभी ग्रहो की अंशात्मक युति देखनी चाहिए और भावों की अंशात्मक स्थित भी देखनी चाहिए कि क्या है. जैसे कि ग्रह का बल, दृष्टि बल, नक्षत्रों की स्थिति और वर्ष कुंडली में ताजिक दृष्टि आदि देखनी चाहिए.
जिस समय कुंडली विश्लेषण के लिए आती है उस समय की महादशा/अन्तर्दशा/प्रत्यन्तर दशा को अच्छी तरह से जांचा जाना चाहिए.
जिस समय कुंडली का अवलोकन किया जाए उस समय के गोचर के ग्रहों की स्थिति का आंकलन किया जाना चाहिए.
भाव का परिचय
जन्म कुंडली में भाव क्या होते हैं आइए उन्हेँ जानने का प्रयास करें. जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है. कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं. इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है. पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता है़.
सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं. कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है.
बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है, इससे भाव के गुणो का ह्रास होता है. भाव स्वामी का अपने भाव से आगे जाना अच्छा होता है. इससे भाव के गुणो में वृद्धि होती है.
ग्रहो की स्थिति
जन्म कुंडली मैं सबसे आवश्यक ग्रहों की स्थिति है, आइए उसे जाने़. ग्रह स्थिति का अध्ययन करना जन्म कुंडली का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है. इनके अध्ययन के बिना कुंडली का कोई आधार ही नहीं है.
पहले यह देखें कि किस भाव में कौन सा ग्रह गया है, उसे नोट कर लें. फिर देखें कि ग्रह जिस राशि में स्थित है उसके साथ ग्रह का कैसा व्यवहार है. जन्म कुंडली में ग्रह मित्र राशि में है या शत्रु राशि में स्थित है, यह एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है इसे नोट करें. ग्रह उच्च, नीच, मूल त्रिकोण या स्वराशि में है, यह देखें और नोट करें.
जन्म कुंडली के अन्य कौन से ग्रहों से संबंध बन रहे है इसे भी देखें. जिनसे ग्रह का संबंध बन रहा है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, यह जांचे. जन्म कुंडली में ग्रह किसी तरह के योग में शामिल है या नहीं, जैसे राजयोग, धनयोग, अरिष्ट योग आदि अन्य बहुत से योग हैं.
कुंडली का फलकथन
फलकथन की चर्चा करते हैं, भाव तथा ग्रह के अध्ययन के बाद जन्म् कुंडली के फलित करने का प्रयास करें. पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक के फलों को देखें कि कौन सा भाव क्या देने में सक्षम है.
कौन सा भाव क्या देता है और वह कब अपना फल देगा यह जानने का प्रयास गौर से करें. भाव, भावेश तथा कारक तीनो की कुंडली में स्थिति का अवलोकन करना आवश्यक होता है. जन्म कुंडली में तीनो बली हैं तो जीवन में चीजें बहुत अच्छी होगी.
तीन में से दो बली हैं तब कुछ कम मिलने की संभावना बनती है लेकिन फिर भी अच्छी होगी. यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल नहीं मिलते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है
दशा का अध्ययन
अभी तक बताई सभी बातों के बाद दशा की भूमिका आती है, बिना अनुकूल दशा कै कुछ् नहीं मिलता है. आइए इसे समझने का प्रयास करें. सबसे पहले यह देखें कि जन्म कुंडली में किस ग्रह की दशा चल रही है और वह ग्रह किसी तरह का कोई योग तो नहीं बना रहा है.
जिस ग्रह की दशा चल रही है वह किस भाव का स्वामी है और कहाँ स्थित है, यह जांचे. कुंडली में महादशा नाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में मित्रता का भावरखते है या शत्रुता का भाव रखते हैं यह देखें.
कुंडली के अध्ययन के समय महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ किस भाव में स्थित है अर्थात जिस भाव में महादशानाथ स्थित है उससे कितने भाव अन्तर्दशानाथ स्थित है, यह देखें. महादशानाथ बली है या निर्बल है इसे देखें. महादशानाथ का जन्म और नवांश कुंडली दोनो में अध्ययन करें कि दोनो में ही बली है या एक मे बली तो दूसरे में निर्बल तो नहीं है यह देखें.
गोचर का अध्ययन
सभी बातो के बाद आइए अब ग्रहो के गोचर की बात करें. दशा के अध्ययन के साथ गोचर महत्वपूर्ण होता है. कुंडली की अनुकूल दशा के साथ ग्रहों का अनुकूल गोचर भी आवश्यक है तभी शुभ फल मिलते हैं.
किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है. जन्म कुंडली में यदि दशा नहीं होगी और गोचर होगा तो अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होती है क्योकि अकेला गोचर किसी तरह का फल देने में सक्षम नहीं होता है.
*दशा-महादशाओं का फल
ज्योतिष में अष्टोत्तरी और विंशोत्तरी दो प्रकार की महादशाएँ मान्य हैं। अष्टोत्तरी अर्थात 108 वर्षों में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं तथा विंशोत्तरी अर्थात 120 वर्ष में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं।
आजकल विंशोत्तरी महादशा प्रणाली ही गणना में है। इसके अनुसार प्रत्येक ग्रह की दशाओं की अवधि अलग-अलग होती है।
क्रमानुसार - सूर्य - 6 वर्ष,
चंद्र-10 वर्ष,
मंगल - 7 वर्ष,
राहु - 18 वर्ष,
गुरु - 16 वर्ष,
शनि-19 वर्ष,
बुध - 17 वर्ष,
केतु - 7 वर्ष,
शुक्र - 20 वर्ष
* जन्म के विचारानुसार जातक ने जिस ग्रह की महादशा में जन्म लिया है, उससे अगले क्रम में दशाएँ गिनी जाती हैं।
* सामान्यत: 6, 8, 12 के स्वामी के साथ उपस्थित ग्रह या 6, 8, 12 स्थान में उपस्थित ग्रहों की महादशा अच्छा फल नहीं देती है।
* केंद्र व त्रिकोण में स्थित ग्रहों की दशा-महादशा अच्छा फल देती है।
* शुभ ग्रह की महादशा में पाप ग्रहों की अंतर्दशा अशुभ फल देती है मगर पाप ग्रहों में शुभ ग्रह की अंतर्दशा मिला-जुला फल देती है।
* पाप ग्रहों की महादशा में पाप ग्रहों की अंतर्दशा या शुभ ग्रहों में शुभ ग्रह की अंतर्दशा अच्छा फल देती है।
ज्योतिष में अष्टोत्तरी और विंशोत्तरी दो प्रकार की महादशाएँ मान्य हैं। अष्टोत्तरी अर्थात 108 वर्षों में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं तथा विंशोत्तरी अर्थात 120 वर्ष में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं।
भावानुसार फल -
* लग्नेश की महादशा - स्वास्थ्य अच्छा, धन-प्रतिष्ठा में वृद्धि
* धनेश की महादशा - अर्थ लाभ मगर शरीर कष्ट, स्त्री (पत्नी) को कष्ट
* तृतीयेश की महादशा - भाइयों के लिए परेशानी, लड़ाई-झगड़ा
* चतुर्थेश की महादशा - घर, वाहन सुख, प्रेम-स्नेह में वृद्धि
* पंचमेश की महादशा - धनलाभ, मान-प्रतिष्ठा देने वाली, संतान सुख, माता को कष्ट
* षष्ठेश की महादशा - रोग, शत्रु, भय, अपमान, संताप
* सप्तमेश की महादशा - जीवनसाथी को स्वास्थ्य कष्ट, चिंताकारक
* अष्टमेश की महादशा - कष्ट, हानि, मृत्यु भय
* नवमेश की महादशा - भाग्योदय, तीर्थयात्रा, प्रवास, माता को कष्ट
* दशमेश की महादशा - राज्य से लाभ, पद-प्रतिष्ठा प्राप्ति, धनागम, प्रभाव वृद्धि, पिता को लाभ
* लाभेश की महादशा - धनलाभ, पुत्र प्राप्ति, यश में वृद्धि, पिता को कष्ट
* व्ययेश की महादशा - धनहानि, अपमान, पराजय, देह कष्ट, शत्रु पीड़ा
विशेष : अच्छे भावों के स्वामी केंद्र या ‍त्रिकोण में होने पर ही अच्छा प्रभाव दे पाते हैं। ग्रहों के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए पूजा व मंत्र जाप करना चाहिए।

1 comment:

  1. कृपया बताये दशाये कैसे कम करती जैसे राहु की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा हो सूर्य की प्रन्तार्दशा हो तो इस अवधि में राहु अपने अनुसार फल देगा या शुक्र या फिर सूर्य का फल मिलेगा.
    http://bit.ly/2gN3uEP

    ReplyDelete