कैसा फल देता है कुंडली में शुभ कत्री और पाप कत्री योग –
फलित ज्योतिष में जन्मकुंडली की ग्रहस्थिति के आंकलन और परिणाम के लिए ग्रहों के सीधे सीधे विश्लेषण के अतिरिक्त ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति से उत्पन्न बहुत से योगों का भी वर्णन किया गया है जिनका हमारे जीवन के घटकों को प्रभावित करने में बड़ा विशेष महत्व होता है फलित ज्योतिष के ऐसे ही योगों में से बहुत महत्वपूर्ण हैं शुभ कत्री और पाप कत्री योग इन्हें शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी के नाम से भी वर्णित किया गया है इन दोनों ही योगो का कुंडली में बनना हमारे जीवन की गतिविधियों पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है ज्योतिषीय दृष्टि में बृहस्पति, शुक्र, चन्द्रमाँ और बुध को नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह तथा सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु को नैसर्गिक रूप से पाप या उग्र ग्रह माना गया है इसी आधार पर कुंडली में इन ग्रहों की एक विशेष स्थिति से शुभ कत्री और पाप कत्री योग का निर्माण होता है तो आईये जानते हैं इन दोनों योगो के बारे में.. . . . . . . .
शुभ कत्री योग -
कुंडली के बारह भावों में से जब किसी भी भाव के दोनों और अर्थात किसी भी भाव के आगे और पीछे वाले भाव में यदि शुभ ग्रह स्थित हों तो इसे शुभ कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो शुभ ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे उस भाव की शुभता बढ़ जाती है इस लिए इसे शुभ कत्री योग कहते हैं। इस योग को भाव की वृद्धि करने वाला माना गया है कुंडली के जिस भाव में शुभ कत्री योग बन रहा हो उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों की जीवन में अच्छी स्थिति देने में यह योग सहायक होता है उदाहरण के लिए यदि लग्न भाव के दोनों और शुभ ग्रह (बृहस्पति,शुक्र,चन्द्रमाँ,बुध) बैठे हों तो ऐसे में लग्न भाव बली हो जाता है है जिससे स्वास्थ, प्रसिद्धि और यश की अच्छी प्राप्ति होती है इसी प्रकार धन भाव शुभ कटरी योग में होने पर जीवन में धन की अच्छी स्थिति बनती है सप्तम भाव में बना शुभ कत्री योग अच्छा वैवाहिक जीवन देता है अतः कुंडली का जो भाव शुभ कत्री योग में होता है उसके कारक तत्वों में वृद्धि होती है।
पाप कत्री योग -
कुंडली के बारह भावों में से यदि किसी भी भाव के दोनों और अर्थात भाव के आगे और पीछे वाले भाव में पाप ग्रह (सूर्य,मंगल,शनि,राहु,केतु) स्थित हों तो इसे पाप कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो पाप ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे भाव की शुभता में कमी और संघर्ष आता है, जिस भी भाव में पाप कत्री योग बनता है या जो भी भाव पाप कटरी योग में आ जाता है उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों को लेकर जीवन में संघर्ष उत्पन्न होता है जैसे यदि लग्न भाव पाप कत्री योग में आ रहा हो अर्थात लग्न के दोनों और पाप ग्रह हो तो ऐसे में स्वास्थ की स्थिति में उतार चढ़ाव बना रहता है यश और प्रसिद्धि नहीं मिल पाती यदि धन भाव में पाप कत्री योग बन रहा हो तो जीवन में आर्थिक पक्ष को लेकर संघर्ष आता है इसी प्रकार कुंडली के किसी भी भाव के दोनों और पाप ग्रह उपस्थित होने पर बना पाप कटरी योग उस भाव के कारक तत्वों की हानि करता है।
अब यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है शुभ कत्री और पपप कत्री योग केवल कुंडली के भावों को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि ग्रहों को भी प्रभावित करते हैं अर्थात यदि कोई ग्रह शुभ कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में वृद्धि होती है और यदि कोई ग्रह पाप कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में संघर्ष उपस्थित होता है उदहारण के लिए यदि कुंडली में धन और समृद्धि का कारक शुक्र दो शुभ ग्रहों के बीच में हो अर्थात शुभ कत्री योग में हो तो ऐसे में अच्छी आर्थिक स्थिति और समृद्धि देने में यह योग साहयक होगा और यदि शुक्र के आगे और पीछे पाप ग्रह होने से शुक्र पाप कत्री योग में हो तो ऐसे में जीवन में आर्थिक संघर्ष उत्पन्न होता है और आर्थिक स्थिति अपेक्षित नहीं होती। ....... इसी प्रकार कोई भी ग्रह शुभ कत्री योग में होने पर बली और पाप कत्री योग में कमजोर हो जाता है। .......
फलित ज्योतिष में जन्मकुंडली की ग्रहस्थिति के आंकलन और परिणाम के लिए ग्रहों के सीधे सीधे विश्लेषण के अतिरिक्त ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति से उत्पन्न बहुत से योगों का भी वर्णन किया गया है जिनका हमारे जीवन के घटकों को प्रभावित करने में बड़ा विशेष महत्व होता है फलित ज्योतिष के ऐसे ही योगों में से बहुत महत्वपूर्ण हैं शुभ कत्री और पाप कत्री योग इन्हें शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी के नाम से भी वर्णित किया गया है इन दोनों ही योगो का कुंडली में बनना हमारे जीवन की गतिविधियों पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है ज्योतिषीय दृष्टि में बृहस्पति, शुक्र, चन्द्रमाँ और बुध को नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह तथा सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु को नैसर्गिक रूप से पाप या उग्र ग्रह माना गया है इसी आधार पर कुंडली में इन ग्रहों की एक विशेष स्थिति से शुभ कत्री और पाप कत्री योग का निर्माण होता है तो आईये जानते हैं इन दोनों योगो के बारे में.. . . . . . . .
शुभ कत्री योग -
कुंडली के बारह भावों में से जब किसी भी भाव के दोनों और अर्थात किसी भी भाव के आगे और पीछे वाले भाव में यदि शुभ ग्रह स्थित हों तो इसे शुभ कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो शुभ ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे उस भाव की शुभता बढ़ जाती है इस लिए इसे शुभ कत्री योग कहते हैं। इस योग को भाव की वृद्धि करने वाला माना गया है कुंडली के जिस भाव में शुभ कत्री योग बन रहा हो उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों की जीवन में अच्छी स्थिति देने में यह योग सहायक होता है उदाहरण के लिए यदि लग्न भाव के दोनों और शुभ ग्रह (बृहस्पति,शुक्र,चन्द्रमाँ,बुध) बैठे हों तो ऐसे में लग्न भाव बली हो जाता है है जिससे स्वास्थ, प्रसिद्धि और यश की अच्छी प्राप्ति होती है इसी प्रकार धन भाव शुभ कटरी योग में होने पर जीवन में धन की अच्छी स्थिति बनती है सप्तम भाव में बना शुभ कत्री योग अच्छा वैवाहिक जीवन देता है अतः कुंडली का जो भाव शुभ कत्री योग में होता है उसके कारक तत्वों में वृद्धि होती है।
पाप कत्री योग -
कुंडली के बारह भावों में से यदि किसी भी भाव के दोनों और अर्थात भाव के आगे और पीछे वाले भाव में पाप ग्रह (सूर्य,मंगल,शनि,राहु,केतु) स्थित हों तो इसे पाप कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो पाप ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे भाव की शुभता में कमी और संघर्ष आता है, जिस भी भाव में पाप कत्री योग बनता है या जो भी भाव पाप कटरी योग में आ जाता है उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों को लेकर जीवन में संघर्ष उत्पन्न होता है जैसे यदि लग्न भाव पाप कत्री योग में आ रहा हो अर्थात लग्न के दोनों और पाप ग्रह हो तो ऐसे में स्वास्थ की स्थिति में उतार चढ़ाव बना रहता है यश और प्रसिद्धि नहीं मिल पाती यदि धन भाव में पाप कत्री योग बन रहा हो तो जीवन में आर्थिक पक्ष को लेकर संघर्ष आता है इसी प्रकार कुंडली के किसी भी भाव के दोनों और पाप ग्रह उपस्थित होने पर बना पाप कटरी योग उस भाव के कारक तत्वों की हानि करता है।
अब यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है शुभ कत्री और पपप कत्री योग केवल कुंडली के भावों को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि ग्रहों को भी प्रभावित करते हैं अर्थात यदि कोई ग्रह शुभ कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में वृद्धि होती है और यदि कोई ग्रह पाप कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में संघर्ष उपस्थित होता है उदहारण के लिए यदि कुंडली में धन और समृद्धि का कारक शुक्र दो शुभ ग्रहों के बीच में हो अर्थात शुभ कत्री योग में हो तो ऐसे में अच्छी आर्थिक स्थिति और समृद्धि देने में यह योग साहयक होगा और यदि शुक्र के आगे और पीछे पाप ग्रह होने से शुक्र पाप कत्री योग में हो तो ऐसे में जीवन में आर्थिक संघर्ष उत्पन्न होता है और आर्थिक स्थिति अपेक्षित नहीं होती। ....... इसी प्रकार कोई भी ग्रह शुभ कत्री योग में होने पर बली और पाप कत्री योग में कमजोर हो जाता है। .......