Friday, February 16, 2018

शुभ कत्री और पाप कत्री योग

कैसा फल देता है कुंडली में शुभ कत्री और पाप कत्री योग –

फलित ज्योतिष में जन्मकुंडली की ग्रहस्थिति के आंकलन और परिणाम के लिए ग्रहों के सीधे सीधे विश्लेषण के अतिरिक्त ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति से उत्पन्न बहुत से योगों का भी वर्णन किया गया है जिनका हमारे जीवन के घटकों को प्रभावित करने में बड़ा विशेष महत्व होता है फलित ज्योतिष के ऐसे ही योगों में से बहुत महत्वपूर्ण हैं शुभ कत्री और पाप कत्री योग इन्हें शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी के नाम से भी वर्णित किया गया है इन दोनों ही योगो का कुंडली में बनना हमारे जीवन की गतिविधियों पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है ज्योतिषीय दृष्टि में बृहस्पति, शुक्र, चन्द्रमाँ  और बुध को नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह  तथा सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु को नैसर्गिक रूप से पाप या उग्र ग्रह माना गया है इसी आधार पर कुंडली में इन ग्रहों की एक विशेष  स्थिति से शुभ कत्री और पाप कत्री योग का निर्माण होता है तो आईये जानते हैं इन दोनों योगो के बारे में.. . . . . . . .

शुभ कत्री योग -

कुंडली के बारह भावों में से जब किसी भी भाव के दोनों और अर्थात किसी भी भाव के आगे और पीछे वाले भाव में यदि शुभ ग्रह स्थित हों तो इसे शुभ कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो शुभ ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे उस भाव की शुभता बढ़ जाती है इस लिए इसे शुभ कत्री योग कहते हैं। इस योग को भाव की वृद्धि करने वाला माना गया है कुंडली के जिस भाव में शुभ कत्री योग बन रहा हो उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों की जीवन में अच्छी स्थिति देने में यह योग सहायक होता है उदाहरण के लिए यदि लग्न भाव के दोनों और शुभ ग्रह (बृहस्पति,शुक्र,चन्द्रमाँ,बुध) बैठे हों तो ऐसे में लग्न भाव बली हो जाता है है जिससे स्वास्थ, प्रसिद्धि और यश की अच्छी प्राप्ति होती है इसी प्रकार धन भाव शुभ कटरी योग में होने पर जीवन में धन की अच्छी स्थिति बनती है सप्तम भाव में बना शुभ कत्री योग अच्छा वैवाहिक जीवन देता है अतः कुंडली का जो भाव शुभ कत्री योग में होता है उसके कारक तत्वों में वृद्धि होती है।

पाप कत्री योग -

कुंडली के बारह भावों में से यदि किसी भी भाव के दोनों और अर्थात भाव के आगे और पीछे वाले भाव में पाप ग्रह (सूर्य,मंगल,शनि,राहु,केतु) स्थित हों तो इसे पाप कत्री योग कहते हैं इसमें भाव दो पाप ग्रहों के बीच में आ जाता है जिससे भाव की शुभता में कमी और संघर्ष आता है, जिस भी भाव में पाप कत्री योग बनता है या जो भी भाव पाप कटरी योग में आ जाता है उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों को लेकर जीवन में संघर्ष उत्पन्न होता है जैसे यदि लग्न भाव पाप कत्री योग में आ रहा हो अर्थात लग्न के दोनों और पाप ग्रह हो तो ऐसे में स्वास्थ की स्थिति में उतार चढ़ाव बना रहता है यश और प्रसिद्धि नहीं मिल पाती यदि धन भाव में पाप कत्री योग बन रहा हो तो जीवन में आर्थिक पक्ष को लेकर संघर्ष आता है इसी प्रकार कुंडली के किसी भी भाव के दोनों और पाप ग्रह उपस्थित होने पर बना पाप कटरी योग उस भाव के कारक तत्वों की हानि करता है।

अब यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है शुभ कत्री और पपप कत्री योग केवल कुंडली के भावों को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि ग्रहों को भी प्रभावित करते हैं अर्थात यदि कोई ग्रह शुभ कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में वृद्धि होती है और यदि कोई ग्रह पाप कत्री योग में हो तो उस ग्रह के कारक तत्वों में संघर्ष उपस्थित होता है उदहारण के लिए यदि कुंडली में धन और समृद्धि का कारक शुक्र दो शुभ ग्रहों के बीच में हो अर्थात शुभ कत्री योग में हो तो ऐसे में अच्छी आर्थिक स्थिति और समृद्धि देने में यह योग साहयक होगा और यदि शुक्र के आगे और पीछे पाप ग्रह होने से शुक्र पाप कत्री योग में हो तो ऐसे में जीवन में आर्थिक संघर्ष उत्पन्न होता है और आर्थिक स्थिति अपेक्षित नहीं होती। ....... इसी प्रकार कोई भी ग्रह शुभ कत्री  योग में होने पर बली और पाप कत्री  योग में कमजोर हो जाता है। .......

Wednesday, February 14, 2018

द्वादश लग्नों के आधार पर चयनित चाचक के कार्य क्षेत्र

*द्वादश लग्नों के आधार पर चयनित चाचक के कार्य क्षेत्र*

(अक्सर ज्योतिषी के सामने ये प्रश्न आता है... जाचक क्या बन सकता है... तो लग्न आधारित गुणों के अनुसार जान सकते हैं क्या बन सकते है आप- - ) उपाध्याय जी

1.  *मेष* - पुलिस ,सेना , अर्धसैनिक बल , अंगरक्षक , अग्निशमन , कारखाने , धातुओं को पिघलाना , बॉयलर्स , ईंट भट्ठे और पॉटरीज् , खेलकूद , खनन , हथियार बनाना , भवन निर्माण , प्रॉपर्टी डीलिंग , नेतागीरी।

2. *वृषभ* - आभूषण और रत्न बनाना बेचना , पशुगृह निर्माण और पशुआहार , ब्याज बट्टा , दलाली और कमीशन एजेंट , लाइजनिंग , वित्तीय संस्था और खजांची , शिल्प , कला , संगीत , सिनेमा , गायन वादन नर्तन और चित्रकारी , सजावट की वस्तुएं , सौंदर्य प्रसाधन और इत्र परफ्यूम्स , होटल और पर्यटन , फल फूल और जूस बेचना , महंगे वाहन और विलासितापूर्ण सामान , कामक्रीड़ा की वस्तुएं।

3. *मिथुन* -  सूचना एवं प्रसारण , दूरसंचार , अंतरिक्ष एवं खगोलविज्ञान , शिक्षा , पब्लिशिंग हाउस , गणित , एकाउंट्स , ऑडिट , कानून , राजदूत एवं प्रतिनिधि।

4. *कर्क* - आयात निर्यात , जहाजरानी , कृषि , किराना , दवाईयां , जल , दूध , फल फूल सब्जियां , सीप शंख मोती और जलीय वस्तुएं , होटल , तरल खाद्य , हलवाई और कैटरर , ब्रेवरीज और डिस्टलरीज।

5. *सिंह* - सरकारी नौकरी , न्याय , प्रशासनिक क्षेत्र , समाजसेवा , नेतृत्व , राजनीती , भारी ओद्योगिक क्रियाकलाप , एन0जी0ओ0।

6. *कन्या* - व्यापार , एकाउंट्स , लेखन , शिक्षा , खुदरा दुकान , अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाएं।

7. *तुला* - आभूषण , सजावटी सामान , शिल्प , इत्र एवं प्रसाधन , वस्त्र उद्योग , वित्तीय लेनदेन , दलाली , बैंक , बीमा , कानून , बार रेस्टोरेंट्स , गायन वादन एवं नृत्य विद्यालय , ब्यूटी पार्लर , सिनेमा , जीवन रक्षक दवाएं।

8. *वृश्चिक* - लोहा फैक्ट्री , तकनीकी उत्पादन इकाई , खनन , खेती , विद्युत् उपकरण विद्युत प्रसार एवं विद्युत् निर्माण , धातुएं पिघलाना, औजार एवं तकनीकी उपकरण , संन्यास , ज्योतिष , गुप्त विद्यायें , खनिज तेल एवं पेट्रोल पम्प।

9. *धनु* - वन विभाग , आरा मशीन , कारपेंटर , कानून , मंदिर मठ एवं धार्मिक संस्थान , वित्तीय संस्थान , सलाहकार , शिक्षा , गोला बारूद , मिलिट्री ट्रेनिंग , साहसिक कार्य , कमांडो , समाजसेवा , एन जी ओ , लंबी यात्रायें , धर्मगुरु।

10. *मकर* - होटल , खाद्य पदार्थ , कीटनाशक , तेलीय पदार्थ , खनन , पुराने कीमती सामान का क्रय विक्रय , हार्डवेयर स्टोर , चमड़ा उद्योग एवं जूता चप्पल बनाना , भवन निर्माण सामग्री , पत्थर की खाने एवं पत्थर तराशना बेचना , चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जैसे की ड्राईवर चपरासी हेल्पर कुली आदि।

11. *कुम्भ* - समुद्र एवं शैवाल विज्ञान , ज्योतिष , दर्शन , धर्म , शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रबंधन , प्रशासन , क्रांतिकारी क्रियाकलाप , विद्रोही क्रियाकलाप , नई लीक बनाना , प्राकृतिक गैस , उड्डयन , जेल , विस्फोटक निर्माण , धर्मशाला एवं लॉज , गुप्तचर विभाग एवं सेवायें , पशु कत्लखाने , कसाई , कराधान।

12. *मीन* - धर्मस्थान , पंडित पुरोहित ग्रंथी मौलवी प्रीस्ट , दवाईयां , विदेश विभाग , दूतावास , नौसेना , जहाजरानी , धार्मिक सेवाएं।

*लग्न के इन नैशर्गिक गुणों की प्रेरणा .. उस चाचक को इन क्षेत्रो में पारंगत कर सकती है.. परन्तू पूर्ण स्पस्ट करने के लिऐ.... विद्वानों द्वारा कुंंडली के अन्य पहलुओं का अध्यन भी नितांत आवस्यक है।।*

       

Tuesday, February 13, 2018

साझेदारी_व्यापार

||#साझेदारी_व्यापार||                                                साझेदारी का मतलब होता है दो या कई लोगो के बीच एक किसी चीज को लेकर आपसी तालमेल और हिस्सा चाहे वह व्यापार में हो, मकान में हो या किसी भी वस्तु के बीच हो उसे साझेदारी कहते है।कुंडली में साझेदारी का भाव कुंडली का सातवाँ भाव होता है।जब साझे में व्यापार किया जाता है तब सातवे भाव इस भाव का स्वामी और व्यापार कारक बुध गुरु सूर्य शनि को देखा जाता है बुध व्यापार का मुख्य कारक है इस कारण बुध की स्थिति बली और अनुकूल होना बहुत ज्यादा जरूरी होता है।जब सातवे भाव या सप्तमेश(सातवे भाव का स्वामी) का सम्बन्ध कुंडली के दूसरे भाव ग्यारहवे भाव से होता है और यह तीनो भाव/भावेश शुभ और बली स्थिति में होते है तब तब साझे में किए गए व्यापार से बहुत लाभ होता है और जातक साझे के व्यापार में उन्नति करता है क्योंकि सातवाँ भाव साझे के व्यापार का दूसरा भाव धन का और ग्यारहवा भाव आय, लाभ और उन्नति का होता है जब सप्तम भाव, सप्तमेश या दोनों का सम्बन्ध विशेष रूप से ग्यारहवे भाव सहित दूसरे भाव से भी हो तब साझे के व्यापार से बहुत धन लाभ और सफलता मिलती है।ऐसे योग के साथ कुंडली का नवम भाव/भावेश भी बली होना चाहिए क्योंकि यह भाव जातक का भाग्य है और जब भाग्य बली होता है तब सौभाग्य और सफलता जातक के कदम चूमती है।इस सप्तमेश सप्तम, द्वितीयेश द्वितीय भाव, एकादशेश एकादश भाव का यह आपसी सम्बन्ध केंद्र त्रिकोण में होने पर ही अच्छी सफलता मिलती है यह सम्बन्ध यदि 5वें या 11वें भाव में हो तब विशेष शुभ परिणाम साझे के व्यापार से मिलते हैं।सप्तम भाव, सप्तमेश जो ग्रह होगा जिन ग्रहों का प्रभाव सप्तमेश सप्तम भाव पर होगा दूसरे ग्यारहवे भाव/भावेश पर होगा उन कारक ग्रहो से सम्बंधित विषयो से सम्बंधित वस्तुओ का व्यापार जातक को करने पर अच्छी सफलता मिलती है।साझेदारी व्यापार के योग होने पर भी यदि सप्तमेश एकादशेश, व्यापार धन कारक बुध गुरु शनि सूर्य विशेष रूपसे बुध गुरु शनि अस्त हो नीच होकर पीड़ित हो या अन्य तरह से अशुभ हो तब साझेदारी व्यापार में नुकसान उठाना पड़ता है या सप्तमेश धनेश का सम्बन्ध अशुभ होकर 6, 8,12भाव/ भावेश से होने पर भी व्यापार में हानि होती है।इस कारण जब ठीक तरह से कुंडली में साझेदारी व्यापार या व्यापार के योग बन रहे हो तब ही उन्नति, सफलता व्यापार या साझेदारी व्यापार में मिलती है साथ ही ग्रह दशा, गोचर ग्रह भी व्यापार शुरू करते समय या व्यापार के दौरान अनुकूल होनी चाहिए।इस तरह साझेदारी व्यापार योग की ग्रह स्थिति जातक को सफलता दिलाती है।

Sunday, February 11, 2018

ग्रहों के विशिष्ट योग

ग्रहों के विशिष्ट योग
कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुरूप मनीषियों ने इन्हें विशिष्ट योगों के नाम दिए हैं।
1.युति :दो ग्रह एक ही राशि में एक सी डिग्री के हों तो युति कहलाती है। अशुभ ग्रहों की युति अशुभ फल व शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है। अशुभ व शुभ ग्रह की युति भी अशुभ फल ही देती है।
2.लाभ योग :एक ग्रह दूसरे से 60 डिग्री पर हो या तीसरे स्थान में हो तो लाभ योग होता है। यह शुभ माना जाता है।
3.केंद्र योग :दो ग्रह एक दूसरे से 90 डिग्री पर हो या चौथे व 10वें स्थान पर हो तो केंद्र योग होता है। यह योग शुभ होता है।
4.षडाष्टक योग :दो ग्रह 150 डिग्री के अंतर पर हो या एक दूसरे से 6 या8 वें स्थान में हों तो षडाष्टक दोष या योग होता है। यह कष्टकारी होता है।
5.नवपंचम योग :दो ग्रह एक दूसरे से 120 डिग्री पर अर्थात पाँचवें व नवें स्थान पर समान अंश में हो तो यह योग होता है। यह अति शुभ माना जाता है जैसे सिंह राशि का मंगल और धनु राशि का गुरु -
6.प्रतियुति :इसमें दो ग्रह 180 डिग्री पर अर्थात एक दूसरे से सातवें स्थान पर होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए इसके प्रभाव भिन्न-भिन्न होते हैं।
7.अन्योन्य योग :जब ग्रह एक दूसरे की राशि में हो तो यह योग बनता है। (जैसे वृषभ का मंगल और वृश्चिक का शुक्र) इसके भी शुभ फल होते हैं।
8.पापकर्तरी योग :किसी ग्रह के आजू-बाजू (दूसरे व व्यय में) पापग्रह हो तो यह योग बनता है। यह बेहद अशुभ होता है।

ग्रह बाधा होने से पूर्व मिलते हैं ये संकेत:

ग्रह बाधा होने से पूर्व मिलते हैं ये संकेत:
ग्रह अपना शुभाशुभ प्रभाव गोचर एवं दशा-अन्तर्दशा-प्रत्यन्तर्दशा में देते हैं । जिस ग्रह की दशा के प्रभाव में हम होते हैं, उसकी स्थिति के अनुसार शुभाशुभ फल हमें मिलता है ।
जब भी कोई ग्रह अपना शुभ या अशुभ फल प्रबल रुप में देने वाला होता है, तो वह कुछ संकेत पहले से ही देने लगता है ।इनके उपाय करके बढ़ी समस्याओं से बचा जा सकता है | ऐसे ही कुछ पूर्व संकेतों का विवरण यहाँ दिया है –

(*)सूर्य के अशुभ होने के पूर्व संकेत –
          सूर्य अशुभ फल देने वाला हो, तो घर में रोशनी देने वाली वस्तुएँ नष्ट होंगी या प्रकाश का स्रोत बंद होगा । जैसे – जलते हुए बल्ब का फ्यूज होना, तांबे की वस्तु खोना ।
          किसी ऐसे स्थान पर स्थित रोशनदान का बन्द होना, जिससे सूर्योदय से दोपहर तक सूर्य का प्रकाश प्रवेश करता हो । ऐसे रोशनदान के बन्द होने के अनेक कारण हो सकते हैं ।
जैसे – अनजाने में उसमें कोई सामान भर देना या किसी पक्षी के घोंसला बना लेने के कारण उसका बन्द हो जाना आदि ।
          सूर्य के कारकत्व से जुड़े विषयों के बारे में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है । सूर्य जन्म-कुण्डली में जिस भाव में होता है, उस भाव से जुड़े फलों की हानि करता है ।
 यदि सूर्य पंचमेश, नवमेश हो तो पुत्र एवं पिता को कष्ट देता है । सूर्य लग्नेश हो, तो जातक को सिरदर्द, ज्वर एवं पित्त रोगों से पीड़ा मिलती है । मान-प्रतिष्ठा की हानि का सामना करना पड़ता है ।
          किसी अधिकारी वर्ग से तनाव, राज्य-पक्ष से परेशानी ।
          यदि न्यायालय में विवाद चल रहा हो, तो प्रतिकूल परिणाम ।
          शरीर के जोड़ों में अकड़न तथा दर्द ।
          किसी कारण से फसल का सूख जाना ।
          व्यक्ति के मुँह में अक्सर थूक आने लगता है तथा उसे बार-बार थूकना पड़ता है ।
          सिर किसी वस्तु से टकरा जाता है ।
           तेज धूप में चलना या खड़े रहना पड़ता है ।
(*)चन्द्र के अशुभ होने के पूर्व संकेत

            जातक की कोई चाँदी की अंगुठी या अन्य आभूषण खो जाता है या जातक मोती पहने हो, तो खो जाता है ।
           जातक के पास एकदम सफेद तथा सुन्दर वस्त्र हो वह अचानक फट जाता है या खो जाता है या उस पर कोई गहरा धब्बा लगने से उसकी शोभा चली जाती है ।
           व्यक्ति के घर में पानी की टंकी लीक होने लगती है या नल आदि जल स्रोत के खराब होने पर वहाँ से पानी व्यर्थ बहने लगता है । पानी का घड़ा अचानक टूट जाता है ।
           घर में कहीं न कहीं व्यर्थ जल एकत्रित हो जाता है तथा दुर्गन्ध देने लगता है ।

उक्त संकेतों से निम्नलिखित विषयों में अशुभ फल दे सकते हैं ->
           माता को शारीरिक कष्ट हो सकता है या अन्य किसी प्रकार से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ।
            नवजात कन्या संतान को किसी प्रकार से पीड़ा हो सकती है ।
            मानसिक रुप से जातक बहुत परेशानी का अनुभव करता है ।
           किसी महिला से वाद-विवाद हो सकता है ।
           जल से जुड़े रोग एवं कफ रोगों से पीड़ा हो सकती है । जैसे – जलोदर, जुकाम, खाँसी, नजला, हेजा आदि ।
           प्रेम-प्रसंग में भावनात्मक आघात लगता है ।
           समाज में अपयश का सामना करना पड़ता है । मन में बहुत अशान्ति होती है ।
           घर का पालतु पशु मर सकता है ।
           घर में सफेद रंग वाली खाने-पीने की वस्तुओं की कमी हो जाती है या उनका नुकसान होता है । जैसे – दूध का उफन जाना ।
          मानसिक रुप से असामान्य स्थिति हो जाती है
(*)मंगल के अशुभ होने के पूर्व संकेत

          भूमि का कोई भाग या सम्पत्ति का कोई भाग टूट-फूट जाता है ।
          घर के किसी कोने में या स्थान में आग लग जाती है । यह छोटे स्तर पर ही होती है ।
         किसी लाल रंग की वस्तु या अन्य किसी प्रकार से मंगल के कारकत्त्व वाली वस्तु खो जाती है या नष्ट हो जाती है ।
         घर के किसी भाग का या ईंट का टूट जाना ।
         हवन की अग्नि का अचानक बन्द हो जाना ।
         अग्नि जलाने के अनेक प्रयास करने पर भी अग्नि का प्रज्वलित न होना या अचानक जलती हुई अग्नि का बन्द हो जाना ।
         वात-जन्य विकार अकारण ही शरीर में प्रकट होने लगना ।
         किसी प्रकार से छोटी-मोटी दुर्घटना हो सकती है ।

(*)बुध के अशुभ होने के पूर्व संकेत

          व्यक्ति की विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है अर्थात् वह अच्छे-बुरे का निर्णय करने में असमर्थ रहता है ।
          सूँघने की शक्ति कम हो जाती है ।
          काम-भावना कम हो जाती है ।
          त्वचा के संक्रमण रोग उत्पन्न होते हैं । पुस्तकें, परीक्षा ले कारण धन का अपव्यय होता है । शिक्षा में शिथिलता आती है ।

(*)गुरु के अशुभ होने के पूर्व संकेत

          अच्छे कार्य के बाद भी अपयश मिलता है ।
          किसी भी प्रकार का आभूषण खो जाता है ।
          व्यक्ति के द्वारा पूज्य व्यक्ति या धार्मिक क्रियाओं का अनजाने में ही अपमान हो जाता है या कोई धर्म ग्रन्थ नष्ट होता है ।
          सिर के बाल कम होने लगते हैं अर्थात् व्यक्ति गंजा होने लगता है ।
          दिया हुआ वचन पूरा नहीं होता है तथा असत्य बोलना पड़ता है ।

(*)शुक्र के अशुभ होने के पूर्व संकेत

           किसी प्रकार के त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे – दाद, खुजली आदि उत्पन्न होते हैं ।
           स्वप्नदोष, धातुक्षीणता आदि रोग प्रकट होने लगते हैं ।
           कामुक विचार हो जाते हैं ।
           किसी महिला से विवाद होता है ।
           हाथ या पैर का अंगुठा सुन्न या निष्क्रिय होने लगता है ।

(*)शनि के अशुभ होने के पूर्व संकेत

           दिन में नींद सताने लगती है ।
          अकस्मात् ही किसी अपाहिज या अत्यन्त निर्धन और गन्दे व्यक्ति से वाद-विवाद हो जाता है ।
           मकान का कोई हिस्सा गिर जाता है ।
           लोहे से चोट आदि का आघात लगता है ।
           पालतू काला जानवर जैसे- काला कुत्ता,                   काली गाय, काली भैंस, काली बकरी या काला मुर्गा आदि मर जाता है ।
            निम्न-स्तरीय कार्य करने वाले व्यक्ति से झगड़ा या तनाव होता है ।
           व्यक्ति के हाथ से तेल फैल जाता है ।
           व्यक्ति के दाढ़ी-मूँछ एवं बाल बड़े हो जाते हैं ।
          कपड़ों पर कोई गन्दा पदार्थ गिरता है या धब्बा लगता है या साफ-सुथरे कपड़े पहनने की जगह गन्दे वस्त्र पहनने की स्थिति बनती है ।
          अँधेरे, गन्दे एवं घुटन भरी जगह में जाने का अवसर मिलता है ।

(*)राहु के अशुभ होने के पूर्व संकेत ->

            मरा हुआ सर्प या छिपकली दिखाई देती है ।
            धुएँ में जाने या उससे गुजरने का अवसर मिलता है या व्यक्ति के पास ऐसे अनेक लोग एकत्रित हो जाते हैं, जो कि निरन्तर धूम्रपान करते हैं ।
             किसी नदी या पवित्र कुण्ड के समीप जाकर भी व्यक्ति स्नान नहीं करता।
             पाला हुआ जानवर खो जाता है या मर जाता है ।
             याददाश्त कमजोर होने लगती है ।
             अकारण ही अनेक व्यक्ति आपके विरोध में खड़े होने लगते हैं ।
              हाथ के नाखुन विकृत होने लगते हैं ।
              मरे हुए पक्षी देखने को मिलते हैं ।
              बँधी हुई रस्सी टूट जाती है । मार्ग भटकने की स्थिति भी सामने आती है । व्यक्ति से कोई आवश्यक चीज खो जाती है ।

(*)केतु के अशुभ होने के पूर्व संकेत >

              मुँह से अनायास ही अपशब्द निकल जाते हैं ।
              कोई मरणासन्न या पागल कुत्ता दिखायी देता है ।
              घर में आकर कोई पक्षी प्राण-त्याग देता है ।
              अचानक अच्छी या बुरी खबरें सुनने को मिलती है ।
               हड्डियों से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।
               पैर का नाखून टूटता या खराब होने लगता है ।
               किसी स्थान पर गिरने एवं फिसलने की स्थिति बनती है ।भ्रम होने के कारण व्यक्ति से हास्यास्पद गलतियाँ होती है।

      

दशम भाव द्वारा करे अपने कर्म का विचार

दशम भाव द्वारा करे अपने कर्म का विचार :-
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जन्मकुंडली में दशम अथवा कर्म भाव
की महत्ता का विवरण महर्षि पराशर, मंत्रेश्वर और
वराहमिहिर ने विभिन्न ज्योतिष ग्रंथो में विस्तृत रूप से किया है | कर्म
भाव को यहाँ तक भाग्य भाव (नवम) पर
भी प्रधानता दी गयी है |
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवत
गीता में अर्जुन को कर्मयोग के बारे में
ही उपदेश दिया है |
गोस्वामी तुलसीदास ने कर्म का विवरण कुछ
इस तरह किया है ..
कर्म प्रधान विश्व रची राखा |
जो जस करई सो तस फल चाखा ||
अर्थात भगवान ने इस विश्व
की रचना ही कर्म प्रधान
की है और जो जिस तरह का कर्म करेगा उसका फल
भी उसे उसी अनुकूल मिलेगा | मनुष्य अपने
प्रारब्ध जनित दोषो को भी अपने कर्म के द्वारा समाप्त
कर सकता है |
शुभाशुभ कर्म, कृषि, पिता, आजीविका, यश, व्यापार,
राजा का आसन, राजपद की प्राप्ति, उचा पद,
नींद, गहने, अभिमान, खानदान, सन्यास, शास्त्र ज्ञान,
आकाश, दूर देश में निवास, यात्रा, ऋण का विचार दसवे भाव से
करना चाहिए |
१. पूर्ण बली कर्मेश अपनी राशि, नवमांश
या उच्च में हो तो जातक पितृ सौख्य युक्त, पुण्य कार्य करने
वाला तथा यशस्वी होता है | वही कर्मेश
निर्बल हो तो जातक कर्महीन होता है |
२. कर्मेश शुभ स्थान में शुभ ग्रहो से युक्त हो तो जातक
को वाणिज्य अथवा राजाश्रय से लाभ होता है | इसके
विपरीत पापयुत कर्मेश अशुभ स्थान में स्थित
हो तो अशुभ फल होता है |
३. दशम तथा एकादश स्थान पापगृहकांत हो तो मनुष्य दुष्कर्म करने
वाला, स्वजन का द्वेषी होता है |
४. कर्मेश अष्टमस्थ होकर राहु युक्त हो तो जातक जन-
द्वेषी महामूर्ख तथा दुष्कर्म कारक होता है |
५. कर्मेश शनि या मंगल के साथ सप्तम में हो और सप्तमेश
भी पाप ग्रह युक्त हो तो जातक
व्यभिचारी तथा पेटू होता है |
६. लाभेश दशम में, कर्मेश लग्न में हो या दोनों केंद्रस्थ
हो तो मनुष्य सुखी होता है |
७. शुक्र युक्त गुरु मीनस्त हो, लग्नेश
भी प्रबल हो, चंद्रमा अपने उच्च राशिगत हो तो जातक
अच्छे ज्ञान और संपत्ति से परिपूर्ण होता है |
८. कर्मेश स्वयं की राशि में होकर केंद्र या त्रिकोण में
हो और गुरु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक कार्यशील
होता है |
९. कर्मेश अष्टम में अष्टमेश कर्म स्थान में हो और पापग्रह
का संयोग हो तो जातक दुष्कर्म संलग्न होता है |
१०. नीचस्थ ग्रह के साथ शनि यदि दशम स्थान गत
हो, दशम का नवमांश भी पापग्रहकान्त हो तो जातक
कर्म रहित होता है |
११. दशम भाव गत चंद्रमा हो, दशमेश चंद्रमा से नवम पंचम में
हो और लग्नेश केंद्रस्थ हो तो जातक शुभ यश वाला होता है |
१२. कर्मेश भाग्यस्थ हो, लग्नेश कर्म स्थान गत हो, और लग्न
से पंचम में चंद्रमा रहे तो जातक विख्यात होता है

प्रशासनिक अधिकारी बनने के योग

प्रशासनिक अधिकारी बनने के योग
कुण्डली में बनने वाले योग ही बताते है कि व्यक्ति की आजीविका का क्षेत्र क्या रहेगा। प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश की लालसा अधिकांश लोगों में रहती है, बनते बिरले ही हैं। आई. ए. एस. जैसे उच्च पद की प्राप्ति के लिये व्यक्ति की कुण्डली में सर्वप्रथम शिक्षा का स्तर सर्वोत्तम होना चाहिए। कुंडली के दूसरे, चतुर्थ, पंचम एवं नवम भाव व भावेशों के बली होने पर जातक की शिक्षा उत्तम होती है। शिक्षा के कारक ग्रह बुध, गुरु व मंगल बली होने चाहिए, यदि ये बली हैं तो विशिष्ट शिक्षा मिलती है और जातक के लिए सफलता का मार्ग खोलती है। आईये देखें कि कौन से योग प्रशासनिक अधिकारी के कैरियर में आपको सफलता दिला सकते हैं:
* छठा, पहला व दशम भाव व भावेश बली हों तो प्रतियोगी परीक्षा में सफलता अवश्य मिलती है। सफलता के लिये समर्पण, एकाग्रता एवं परिश्रम की आवश्यकता होती है। इसका बोध तीसरे भाव एवं तृतीयेश के बली होने पर होता है। यदि ये बली हैं तो जातक में समर्पण, एकाग्रता एवं परिश्रम करने की क्षमता होती है और व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में सफलता की मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है।
* सूर्य को राजा और गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दोनों ग्रह मुख्य रूप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद प्राप्ति में सहायक हैं। जनता से अधिक वास्ता पड़ता है इसलिए शनि का बली होना अत्यन्त आवश्यक है। शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की कड़ी है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है और ये बली हों तो जातक अपनी कलम का लोहा नौकरी में अवश्य मनवाता है।
* किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा में सफलता के लिये लग्न, षष्टम, तथा दशम भावो/ भावेशों का शक्तिशाली होना तथा इनमे पारस्परिक संबन्ध होना आवश्यक है। ये भाव/ भावेश जितने समर्थ होगें और उनमें पारस्परिक सम्बन्ध जितने गहरे होगें उतनी ही उंचाई तक व्यक्ति जा सकेगा।
* सफलता के लिये पूरी तौर से समर्पण तथा एकाग्र मेहनत की आवश्यकता होती है। इन सब गुणों का बोध तीसरा घर कराता है, जिससे पराक्रम के घर के नाम से जाना जाता है। तीसरा भाव इसलिये भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दशम घर से छठा घर है। इस घर से व्यवसाय के शत्रु देखे जाते है।
* इसके बली होने से व्यक्ति में व्यवसाय के शत्रुओं से लडऩे की क्षमता आती है। यह घर उर्जा देता है। जिससे सफलता की उंचाईयों को छूना संभव हो पाता है।
* कुण्डली के सभी ग्रहों में सूर्य को राजा की उपाधि दी गई है तथा गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दो ग्रह मुख्य रुप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद प्राप्ति में सहायक ग्रह माने जाते हैं। जिनमें इनका योग बनता है, ऐसे अधिकारियों के मुख्यकार्य मुख्य रुप से जनता की सेवा करना है।
* उनके लिये शनि का महत्व अधिक हो जाता है क्योकि शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच के सेतू है। कई प्रशासनिक अधिकारी नौकरी करते समय भी लेखन को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल हुए है। यह मंगल व बुध की कृपा के बिना संभव नहीं है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है।
* प्रशासनिक अधिकारी मे चयन के लिये सूर्य, गुरु, मंगल, राहु व चन्द्र आदि ग्रह बलिष्ठ होने चाहिए। मंगल से व्यक्ति में साहस, पराक्रम व जोश आता है जो प्रतियोगिताओं में सफलता की प्राप्ति के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
* व्यक्ति को आई.ए.एस. बनने के लिये दशम, छठे, तीसरे व लग्न भाव/भावेशों की दशा मिलनी अच्छी होगी।
* भाव एकादश का स्वामी नवम घर में हो या दशम भाव के स्वामी से युति या दृष्ट हो तो व्यक्ति के प्रशासनिक अधिकारी बनने की संभावना बनती है।
* पंचम भाव में उच्च का गुरु या शुक्र होने पर उसपर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तथा सूर्य भी अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति इन्ही ग्रहों की दशाओं में उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्नेश और दशमेश स्वग्रही या उच्च के होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो और गुरु उच्च का या स्वग्रही हो तो भी व्यक्ति की प्रशासनिक अधिकारी बनने की प्रबल संभावना होती है।
* प्रशासनिक अधिकारी बनकर सफलता पाने के लिए सूर्य, गुरु, मंगल, राहु व चन्द्र आदि ग्रह बली होने चाहिए।
* मंगल से जातक में साहस एवं पराक्रम आता है जोकि अत्यन्त आवश्यक है। सूर्य से नेतृत्व करने की क्षमता मिलती है, गुरु से विवेक सम्मत निर्णय लेने की क्षमता मिलती है और चन्द्र से शालीनता आती है एवं मस्तिष्क स्थिर रहता है।
* यदि कुण्डली में अमात्यकारक ग्रह बली है अर्थात् स्वराशि, उच्च या वर्गोत्तम में है एवं केन्द्र में हो या तीसरे या दसवें हो तो अत्यन्त उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
* एकादशेश नौवें भाव में हो या दशमेश के साथ युत में हो या दृष्ट हों तो जातक में प्रशासनिक अधिकारी बनने की संभावना अधिक होती है।
* पंचम भाव में उच्च का गुरु या शुक्र हो औरउस पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो एवं सूर्य अच्छी स्थिति में हो तो जातक इन दशाओं में उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्नेश और दशमेश स्वराशि या उच्च का होकर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो और गुरु उच्च या स्वराशि में हो तो जातक प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्न में सूर्य और बुध हो और गुरु की शुभ दृष्टि इन पर हो तो जातक प्रशासनिक सेवा में उच्च पद प्राप्त करने में सफल रहता है।
* आई.ए.एस. बनने के लिये तृतीयेश, षष्ठेश, दशमेश व एकादशेश की दशा मिलनी सोने में सुहागा होता है अर्थात् सफलता निश्चित है।
* तीसरे, छठे, दसवें, एकादश में सर्वाष्टक वर्ग की संख्या बढ़ते क्रम में हो तो प्रशासनिक सेवाओं में धन, यश एवं उन्नति तीनों एक साथ मिलते हैं। ऐसे अधिकारी की सभी प्रशंसा करते हैं।
उक्त ज्योतिष योग कुण्डली में विचार कर आप जातक के प्रशासनिक सेवाओं में सफलता का निर्णय करके जातक को उचित सलाह देकर यश एवं धन के भागी बन सकते हैं। ये योग इस क्षेत्र में अच्छा कैरियर बनाते हैं।